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  • 2 days ago

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00:00संतों की हमेशा पहचान रही है कि उन्होंने आम लोगों के बीच आम लोगों साही जीवन बिताया है
00:16ऐसे काम जो करते हैं वो आम तोर पर पन्थवादी होते हैं
00:22नियम अनुशासन परंपरा ढर्रे से वो नहीं चलते
00:24यह जो रंगे कपड़े पहनने इत्यादी की बात है इसी को तो लेकर के जो वास्तविक संथनों ने क्या बोला था
00:30मन न रंगाये जोगी, रंगाये कपड़ा, बोलते हैं कपड़ा रंगा के क्या होगा, मन तो रंगा नहीं रहे तुम, और ये इतना स्नान करके क्या होगा, मन तो धो नहीं रहे तुम, और बाल मूंड के क्या होगा, मन तो मूंड नहीं रहे तुम, संतों का तो काम रहा है कि �
01:00मेरा प्रश्नी ये है कि मदलब जो हमारे संत रहते हैं चाहे किसी भी दरम में हो वो बहुत त्याग संतों का रहता है यह कि त्याग चाहे वो कपडों से हो अपने केश लुषिंगी बात की ती और खाने के भी देखा जाता है तो क्या हम उसको दमन कहेंगे या नहीं क्योंकि
01:30आम तोर पर ऐसे काम नहीं करते हैं
01:33ऐसे काम जो करते हैं
01:37वो आम तोर पर पंथवादी होते हैं
01:41वो किसी मठ या अखाड़े से संबंधित
01:47साधू और गैरा होते हैं
01:50संतों की हमेशा पहचान रही है
01:55कि उन्होंने आम लोगों के बीच
01:57आम लोगों साही जीवन बिताया है
01:59विशेष्टया अपने आचरण और अपने वस्त्रों इत्यादे से जो पहचाना जा सके
02:07वो साधू होता है
02:08साधू किसी पंथ या किसी परमपरा से संबंधित होते हैं
02:15और उनका आचरण भी उसी परमपरा से निर्धारित होता है
02:18संतों का आचरण कहीं से निर्धारित नहीं होता
02:24संत ऐसे नहीं करते
02:25साधू ऐसा करते हैं
02:29मुनि ऐसा करते हैं
02:30जैसे अभी जैन मुनियों की बात कर रहे हो
02:32संतों में ऐसा नहीं होता
02:35संतों में और ग्यानियों में
02:37आप आम तोर पर नहीं पाओगे कि वो
02:39किसी विशेश पूर निरधारित अनुशासन के तले चल रहे हो
02:45संतों में बात प्रेम की रहती है ज्यानियों में बात ज्यान की रहती है बोध की
02:58उनको प्रेम चलाता है उनको बोध चलाता है
03:01नियम अनुशासन परमपरा धर्रे से वो नहीं चलते
03:05आप उनसे कहेंगे कि फलाने रंग का ही कपड़ा पहनो उनको समझ में नहीं आएगा
03:13उनको कहेंगे पर मतलब क्या है इस बात का
03:15आप उनसे कहेंगे फलाने तरह का ही आचरण करो ये भी हो समझ नहीं पाएंगे
03:24यो कहेंगे हमारा आचरण तो हमारे बोध से आएगा ना वो कहेंगे हमारा आचरण हमारे प्रिय से आएगा प्रिय की जो आग्या होगी वैसा आचरण करेंगे परंपरा की आग्या से थोड़ी करेंगे
03:38और ये जो बात होती है जहां आप कहते हो कि मैं अपने बोध पर चलूँगा या अपने प्रेम पर चलूँगा
03:51ये बात किसी भी तरह के अनुशासन से बहुत उपर की होती है
03:55जो अभी बहुत अनुशासन कर रहा है उसे पूरा भरोसा नहीं आया है ना अपने बोध पर ना अपने प्रेम पर
04:08पर जब तक वो भरोसा ना आ जाए तब तक ये अनुशासन रखना जरूरी भी होता है
04:12लेकिन ये अनुशासन रखा ही इसलिए जाता है ताकि एक दिन इस अनुशासन की कोई जरूरत न बचे
04:22तो आप जीवन भर एक विशेश प्रकार का आचरण करते आए हो
04:27और अब आप 40, 50 या 60 या 80 साल के हो रहे हो
04:34और अभी भी आपको वैसा ही आचरण पकड़े रहने की जरूरत है
04:39तो इसका मतलब यही है कि वो आचरण वनुशासन आपके किसी काम आया ही नहीं
04:43अगर काम आया होता तो अब तक आप उससे मुक्त हो गए होते
04:49यह जो रंगे कपड़े पहनने इत्यादी की बात है इसी को तो लेकर के जो वास्तविक संथनों ने क्या बोला था
05:03मन न रंगाये जोगी रंगाये कपड़ा बोले कपड़ा रंगा के क्या होगा संथों ने तो इन सब चीजों
05:17पर बड़े प्रशन उठाए हैं बोलते कपड़ा रंगा के क्या होगा मन तो रंगा नहीं रह तुम
05:22और ये इतना स्नान करके क्या होगा
05:26मन तो धो नहीं रहे तुम
05:27और बाल मूड के क्या होगा
05:32मन तो मूड नहीं रहे तुम
05:34और जंगल जाके क्या होगा
05:41मन तो तुम्हारा बाजार में ही है
05:52कि संतों का तो काम रहा है कि वो जब यह सब होता देखे तो बोले बाप मर गया है तो कव्य को पानी पिला रहा है और जब बाप जिंदा था तो बाप कोई नहीं पानी पिलाया
06:13कि संतों की वाणी है
06:22तो अनुशासन का अपना महत्तो है लेकिन वास्तविक महत्तो है ऐसा हो जाने का कि अब किसी अनुशासन की जरूरत रहे ही नहीं
06:45अनुशासन ऐसा रखिये कि एक दिन उस अनुशासन से मुक्त हो सके
06:48अगर मैं ये कहूं कि
07:02अनिवारे ता नहीं है
07:04मुक्ति के मार पे चलने की
07:06उस अनुशाशन की मुक्त जो एक
07:09जो आप बुर देख पांतों के उसमें रहता है
07:12कि इसी तरह से करना रहेगा
07:13वो एक विधी है
07:18उस विधी के अलावा अन्य विधीयां भी हो सकती है
07:20ये पहली बात हुई
07:21ठीक है
07:23फलानी तरह का आचरण करना
07:26या
07:27ऐसे वस्त्र पहनना या ऐसा
07:30ये एक विधी है
07:35तो पहली बात ये कि कोई भी विधी
07:38इकलौती नहीं होती दूसरी भी विधीयां हो सकती है
07:40अगर विधी बनानी है तो
07:41और दूसरी और ज्यादा महत्वपूर्ण बात ये
07:44कि कोई भी विधी आखिरी नहीं होती
07:47आखिरी बात होती है विधियों से मुक्ति
07:52किसी ने एक विधी पकड़ रखी है
07:56ये बहुत अच्छी बात है वो विधी हो सकता है उसके उपियोग की हो
07:58हम नहीं इंकार कर रहे है आप अपनी विधी रखिए अच्छी बात
08:01लेकिन उस विधी के अलावा अन्य विधियां भी हो सकती है
08:05और ऐसी भी विधियां हो सकती है जो उस विधि से बिलकुल विपरीत हो
08:07और दूसरी बात ये कि विधि कोई भी हो एक बिंदु पर आ करके आपको विधि को त्यागना होगा
08:18अगर आप विधि को पकड़े ही जा रहे हो, लिये ही जा रहे हो, वही विधी, वही विधी, वही विधी, तो विधी किसलिए उठाई थी?
08:23विधी तो इसलिए होती है ना कि
08:29साध्य तक ही पहुँच जाओ
08:33साध्य तक पहुँचे ही नहीं, विधी ही पकड़े हुए हो
08:41ये कौन सी नाव है जो सदा बस तैरती रहती है, कभी पार नहीं उतारती
08:50और जो पार उतर गया, वो नाव तो छोड़ेगा ना
08:53कोई नाव पे चढ़ा था और जीवन भर नाव पे ही दिखाई दे रहा है
08:57तो इस आदमी की नाव तो व्यर्थ गई बिल्कुल
09:01और पाखंड का भी खतरा रहता है, और धोखा खाने का भी
09:19क्योंकि ये सब विधियां आम तोर पर स्थूल होती है
09:23सबको दिखाई देती है, फलाने तरह है कि कोई विधि कर रहा है
09:29कोई पवास करे ही जा रहा है, सबको दिखाई देगा कि ये हैं बाबाजी खाना नहीं खा रहे
09:34चीज स्थूल है, तो सारुजने खो जाती है, सबको दिखाई दे रही है
09:39किसी ने मन रंगा लिया है वो आपको दिखाई नहीं देगा पर किसी ने कपड़ा रंगा लिया है वो आपको दिखाई देगा आप धोखा खा जाएंगे
09:51कपड़ा रगाने वाले जान जाएगा कि मन तो दिखाई दे नहीं सकता तो कपड़ा रगाने वाले बहुत पैदा हो जाएंगे
10:00और कई बार ये भी हो सकता है कि आप भी सचमुच धोखा खा जाएं रंगा कपड़ा पहन करके
10:11आपको ही लगने लगे कि मैं ग्यानी हो गया या भक्त हो गया क्योंकि मैं रंगा कपड़ा पहनता हूं ये भी हो सकता है
10:20तो इसलिए विधियों का उपयोग भी है लेकिन विधियों से बहुत साउधान भी रहना पड़ता है
10:28और उपयोग करो भी विधियों का तो एक बिंदू पे आकर विधियों को त्याग ना
10:32ध्यानी वो है उदाहरण के लिए जो अब ध्यान की कोई विधि नहीं रखता
10:50जिसका ध्यान अब नैसर्गिक हो गया
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