- 1 day ago
Category
📚
LearningTranscript
00:00आम आजमी में श्रद्धा असंभव होती है श्रद्धा होई नहीं सकती जब जो अपने आपको श्रद्धा लो बोल रहे हैं उनमें किसी में लाखों में कोई एक होता होगा जिसमें श्रद्धा वास्ताव में होती होगी यह तो हम श्रद्धा शब्द का भी अपमान कर देते
00:30हो अपनी कामना भी चलना थुम्हें दो पीला पसंद लेकिन आप लोग सामने za sendo क्हहते हो सफेड तो मैं
00:35क्या खूशिद कर देता हूं यही तो सफेद है मैं यह नहीं कहता कि मैं इसको उतार करके जो सच
00:40पर जो आम आदमी है वो अश्रद्धा में ही जीता है और उसको लगता है कि वो बहुत बड़ा श्रद्धान हुआ है
00:55आप इसमें मत रहिए कि आप किसी को भी समझा पाएंगे मैं आप लोगों को नहीं समझा पाता
01:00जब मैंने शुरू करा था तो मेरी यजाब से बहुत कम थी और मुझे पंदरा साल लग गए हैं आपको इस स्क्रीम पर लाने के लिए
01:08शद्धा का अर्थ होता है कि
01:12शद्धा क्या है
01:30बहुत सीधी सी चीज है शद्धा बहुत सरल है
01:36इसलिए हम उसकी कई तरीके की जटिल बे आख्याएं करते हैं
01:46सरल चीज खतरनाक हो जाती है उससे आखें नहीं चुराई जा सकती
01:50जो चीज सरल है सीधी है जिसके दो चार अर्थ सामान ने तया निकलेंगे ही नहीं
02:01आप उस चीज के साथ फिर खिलवाड़ा नहीं कर सकते है उसके विक्रित अर्थ नहीं कर सकते
02:12लेकिन जो सरल हो अगर वही खतरनाक हो
02:15तो उससे पीछा छुडाना ज़रूरी हो जाता है अच्छा चुडाने के लिए फिर
02:24दो-चार तरह के दाएं-बाइं के विक्रित अर्थ करने आवश्यक हो जाते है
02:29तो शद्धा को लेकर हमने बहुत सारी बातें पहला दी हैं कई तरह के अर्थ कर दी हैं
02:38शद्धा बहुत सीधी चीज़ है, कोई पारलोकिक एकाई नहीं चाहिए शद्धा रखने के लिए, किसी में शद्धा नहीं रखी जाती,
02:55कोई दूसरा नहीं चाहिए, जिस पर भरोसा करना हो।
03:25जए शद्धा रहा है, वो करूंगा, फिर जो परिणाम आएगा, उसी परिणाम को शुभ मानौँगा।
03:35लिख लिजेए, कि अधिक्तम सत्यनिष्ठा के साथ कर्म करूंगा, पिर जो परिणाम आएगा, उसी परिणाम को कौंगा, यही तो शुभ है।
03:47अब शद्धा की परिवाशा यदे इतनी सहरल है तो उससे हमें समस्या क्या हो जाती है
03:57समस्या कामना की है हम कर्म करते हैं किसी निश्चित परिणाम की आशा में
04:08इसी को कामना बोलते हैं तो जो परिणाम है वो पहले तै किया जाता है परिणाम पर द्रिश्चित पहले ठहराई जाती है पहले निश्चित कर ले जाता है कि परिणाम क्या चाहिए और फिर यह देखा जाता है कौन सा कर्म वो परिणाम ला सकता है
04:25जो सामान ने गणेत है हमारा साधारण वो ऐसे चलता है भीतरी ठीक है पहले परिणाम निश्चित कर लो और फिर उस परिणाम के अनुसार कर्म चुन लो
04:37और अगर कर्म का जो वास्तविक परिणाम आया वो अपेक्षित परिणाम से मेल खा गया तो हम कहते हैं कि जो घटना घटी वो शुब है ठीक
04:49तो साधारण शुभता की परिभाशा होती है वो कहती है वास्तविक परिणाम यदि वास्तविक परिणाम बराबर अपिक्षित परिणाम तो कहेंगे कि जो घटना घटी है वो है शुभ
05:04ये अश्रद्धा है ये अश्रद्धा इसलिए है क्योंकि इसमें अंकार ने पहले ही तैह कर लिया है उसके क्या अच्छा है उसने पहले ही अपने लिए एक निश्चित अपेक्षित परिणाम बैठा लिया है
05:26कहता है यह चाहिए
05:27मैं तो जानता हूँ इसको पाना ही मेरे लिए अच्छा है
05:30और फिर उसको पाने के लिए जो भी कुछ करना पड़ेती है
05:33यहां पांचा मैं सब करूँगा
05:35श्रद्धा इससे उलट चलती है
05:38श्रद्धा कहती है
05:40काम सही किया ना
05:43उस काम का जो भी परणाम आया मैं उसको श्रद्धा काम को सुनिश्चित करती है कर्म को
05:51अश्रद्धा फल को निश्चित करती है
05:54श्रद्धा में पहली चीज होती है कर्म
05:59कर्म भी नहीं करता
06:01कि करता ठीक होगा तबी तो कर्म है
06:05तो श्रद्धा में पहली चीज होती है कर्म या करता और अश्रद्धा में पहली चीज होती है कर्मफल या कामना या परिणाम जो बोलो
06:19ठीक है अब ये धाहिर सी बात है कि श्रद्धाल होने के लिए निश्काम होना ज़रूरी है क्योंकि अगर कामना पहले से ही है तो सबसे उपर कामना चलेगी ना और कामना निरधारत करेगी कि अब काम क्या करना है
06:40कामना ही तै कर देगी कि अब काम क्या करना है
06:49श्रद्धा होने के लिए निश्काम होना जरूरी और हंकार जैसे ही निश्काम होने लगता है उसकी हस्ती पर ही चोट पड़ जाती है हंकार का अर्थ है जो अपूर्ण है और जो अपूर्ण है उसे कामना तो करनी पड़ेगी न ऐसा कैसे होगा कि अधूरे भी हो और कामना �
07:19लेकिन हमें बता दिया गया है कि शद्धा बड़ी अच्छी बड़ी प्यारी उंची चीज है
07:24तो हम क्या करते हैं हम कहते हैं मेरे पास अगर शद्धा नहीं है
07:28तो मेरे पास जो कुछ है मैं उसी को शद्धा बोल दूगा
07:33आपने कह दिया
07:39सफेद रंग बहुत शुब होता है अब मुझे तो यह पसंद है और मैं अपनी कामना पर चलता हूं मैंने यह धारण कर रखा है पीला
07:52ठीक है लेकिन आप सब बड़े लोग हैं पूरा समाज है जो बोल रहा है सफेद बहुत शुब होता है
07:59कह रहे होंगे मुझे तो अपनी कामना पर चलना है तो मुझे तो पीला पसंद है लेकिन अब आप लोग सामने खड़े आते हों कहते हो सफेद सफेद
08:06तो मैं क्या खुशित कर देता हूं यही तो सफेद है मैं यह नहीं कहता कि मैं इसको उतार करके जो सचमुच सफेद है उसको धारण करूँगा मैं कहता हूं मैं जो पकड़े हुए हूं वो तो पकड़ी रहूँगा हां सफेदी की परिभाशा बदल दूँगा
08:24कि कहा दूँगा इसी को सफेद बोलते हैं
08:27तो हमने शरद्धा की परिभाशा बदल कर अशरद्धा को शरद्धा बना दिया है
08:32शरद्धा में तो परिणाम अपेक्षित हो इनी सकता
08:38और हम जिसको शरद्धा कहते हैं
08:44वो कुछ और नहीं एक आशा होती है
08:47कि मन चाहा परिणाम मिलेगा उसको हम शरद्धा कहते हैं आम भाशा में
08:51आम भाशा में कोई शरद्धा लू मिले
08:54तो वो विश्वासी है कि फलाना कर्म करने से उसको मन चाहा फल मिलेगा
09:01इसको कहते हैं शरद्धा
09:02कोई आपको मेले काई मुझे फलानी देवी देवता पर बड़ी श्रद्धा है उसका एक ही अर्थ है
09:08अगर मैंने कुछ मांगा इनसे तो मनोकामना पूरी होगी
09:14और जहां कामना है वाँ श्रद्धा होई नहीं सकती
09:17श्रद्धा के लिए आपको मैंने कहा कोई पारलौखिक इकाही नहीं चाहिए
09:26देवी देवताओं के भी कोई ज़रूरत नहीं है
09:28श्रद्धा का अर्थ है अपनी सीमित ख्शमता लेकिन पूरी सत्यनिष्ठा के साथ मैं कर्म करता हूं
09:39और सत्य निष्ठा कहां से आती है आत्मग्यान से
09:45और कोई सत्य निष्ठा नहीं आती
09:51सत्य तो कोई ना बरतन है ना दिवाल है ना आदमी है ना वरत है
09:56ना घर है ना सड़क है सत्य तो सत्य को ले करके क्या निष्ठा रखोगे
10:03सत्य निष्ठा का अरत होता है
10:07खुद को जानना
10:10आत्म ग्यान ही सत्य निष्ठा है
10:12तो कि अगर आत्म ग्यान नहीं होगा
10:19तो निष्ठा तो रखो गई
10:20किसी ने किसी बते भरोसा रखो गई
10:21किस पर रखो गई फिर आप
10:23फिर रखो गई अपनी मानिताओं पर
10:25जब ग्यान नहीं होता तो किसके भरोसे चलते हो आगे
10:28मानने तागे भरोसे
10:30जब पता नहीं होता तो किसके भरोसे आगे बढ़ते हो
10:33अनुमान या कल्पना के सहरे
10:34जब नहीं पता होता तो भी आगे तो आप बढ़ते ही होना जिन्दगी में
10:38किसके भरोसे आगे बढ़ते हो
10:40कुछ हनुमान लगा लिया, कुछ कल्पना कर लिया
10:43कुछ तुक्का मार दिया
10:44तो आम आदमी जीता है
10:56अश्रद्धा में
10:58आम आदमी जीता है
11:02अश्रद्धा में
11:04क्योंकि उसके पास पहले से ही
11:06निर्धारित कामनाएं होती हैं कामनाएं उसकी मजबूरी है क्योंकि अहंकार अपूर्ण होता है यह गणित पूरा पकड़ के चलिएगा
11:17हंकार की मजबूरी है कामना क्योंकि हंकार क्या होता है और जो अधूरा है वो अधूरे
11:27पन से क्या पाता है दुख उसी दुख के मारे उसको क्या करनी पड़ती है कामना करनी पड़ती है जब कामना करनी पड़ती है
11:38तो अपने हर कर्म से पहले क्या रखना पड़ता है कर्म फल
11:45फलाना लाब होगा कि नहीं होगा ये काम करके लाब होता दिखेगा तो काम करेंगा नहीं तो काई को करेंगा
11:53तो आम भाशा में शद्धा का क्या मतलब हुआ
11:58ये काम करूंगा तो वो चीज मिलेगी
12:02इसको कहते हैं आमश्रद्धा
12:04ये काम करूंगा तो वो चीज मिलेगी
12:08ये है आमश्रद्धा
12:09मुझे भरोसा है कि ये काम करूंगा
12:14तो वो चीज मिलेगी
12:16ये है आमश्रद्धा
12:18इसी को आप थोड़ा धार्मिक रंग और दे दीजिए
12:22ये काम करूँगा को कर दीजिए ये कर्म कांड करूँगा
12:27ये कर्म कांड करूँगा तो इच्छित वस्तु प्राप्त होगी
12:34ये है आम श्रद्धा
12:38ये श्रद्धा है ही नहीं
12:42ये लेंदेन है व्यापार है
12:45कामना का कपट है
12:47सब जो अपने आपको श्रद्धा लो बोल रहे हैं
12:52उनमें किसी में
12:53लाखों में कोई एक होता होगा
12:55जिसमें श्रद्धा वास्ताव में होती होगी
12:57ये तो हम शद्धा शब्द का भी अपमान कर देते हैं
13:01इसी तरह से जो आस्था शब्द है वो भी पूरा-पूरा कामना से ही जुड़ा हुआ है
13:18आस्था शब्द आता है इस्थापित करने से
13:21स्थापन आस्था क्या स्थापित किया है ये विश्वास कि कामना पूरी हो जाएगी
13:30तो जो साधारन आस्था है वो भी बस यह है
13:35कामना पूर्ति का सारा प्रपंच
13:39वास्तविक्षद्धा क्या है
13:50वास्तविक्षद्धा कहती है
13:53मुझे नहीं पता कि सही फल क्या होता है
13:56न मुझे जानना है
13:58मुझे ये पता है सही कर्म क्या होता है
14:02और सही कर्म का जो भी परणाम आए
14:04सर्मा थे
14:06सही कर्म का जो भी परणाम आए सर्मा थे
14:09मैं उसे अच्छा या बुरा बोली नहीं सकता बताओ क्यों
14:13क्योंकि अच्छा या बुरा बोलने के लिए तुलना करनी पड़ती है
14:19तुलना करनी पड़ती है
14:23आपके बच्चे के अठारा नमबर आएं अच्छे हैं कि बुरे हैं
14:3020 मेंसे भी हो सकते हैं और 500 मेंसे भी हो सकते हैं
14:41तो अच्छा या वुरा बोने के लिए तुल्णा करनी पड़ती है ना
14:45जो वास्तिवी ख़द्धार होँ है कियोंकि पहले से ही उसके मन में अपेक्षित करूपल की कोई छवी हई नहीं
14:56जब कोई छवी नहीं है तो तुलना कहीं से करे
14:58मान लो उसके मन में छवी होतीगी
15:01फलाना काम करूंगा सौ रुपए मिलेंगे
15:03और उसने फलाना काम करा तो उसको मिले बस बीस रुपए
15:07तो वो कहता कि परिणाम अच्छा नहीं था
15:10पार जब उसने चाहा ही नहीं था की 100 रुपय मिलें, तो उसको 20 मिलें, तो भी वही बात, तो यह हुआ निम श्द्धार अलग अलग नहीं है, एक की बात हैं, और धिशाओ से नहीं हो भी नहीं सकती हैं
15:28पचास बातें कहाँ से आएंगी?"
15:40ये तीन तो होते हैं
15:42इसमें क्या पचास बाते ले आ दें
15:44इतना तो सरल है मामला सारा
15:45मैं सब कुछ नहीं जानता
15:55लेकिन अपनी अधिक्तम सामर्थ से
15:57मुझे जो भी ठीक लग रहा है
15:59उसको मैं पूरी निष्ठा से करूँगा
16:02और साथी साथ मैं जानता हूं
16:07कि जो मैं जानता हूं वो परियाप्त नहीं पूर्ण नहीं
16:10लेकिन और कोई विकल्प नहीं है
16:11तो मैं तो यही कर सकता हूं कि
16:13अपनी पूरी इमानदारी से
16:15अपनी पूरी जग्यासा से
16:17मैंने सोयम से जितने प्रशन हो सकते पूछे
16:19इसलिए हमने शद्धा का संबंध किसे बताया आत्मग्यान से
16:23अपने आप से पूरी इमानदारी से प्रश्ण करने के बाद
16:27जो मुझे सही रास्ता दिखाई दिया
16:29मैं उस पर चला
16:31अब अंजाम जो होता हो
16:33सो हो
16:35दोनों बाते कह सकते हैं
16:38हम उस अंजाम के प्रते उदासीन हैं
16:41या हम उस अंजाम को शुभ मान लेंगे
16:45ऐसे भी कह सकते हैं कि जो भी अंजाम आएगा
16:49सही काम का हम उसके प्रते उदासीन रहेंगे
16:53या ऐसे कह सकते हैं कि जो भी अंजाम आएगा
16:55हम उसको शुभ मान लेंगे
16:57एक ही बात वो कहने के दो तरीके है अगर उदासीन रहेंगे तो उसको हम कहा देते हैं निश्कांता और जो ही परिणाम आया उसी को शुभ मान लेंगे तो उसको हम कहा देते हैं कि भक्त को प्रसाद मिल गया है
17:18क्या मिला प्रसाद में यह हमें पता ही नहीं न जानना है इतना परयाप्त है कि भगवान का प्रसाद है
17:27पर यहां किसी कामना पूर्ति करने आले भगवान की बात नहीं करी जा रही
17:35यहां भगवान की किसी च्छवी की बात नहीं की जा रही
17:38ऐसी च्छवी जो भक्त ने स्वयमी बनाई है
17:41ताकि उससे मेरी इच्छाओं
17:43तो सहरा मिल सके
17:47मुझ रहे हैं यह जिस बात भगवान की बात की शचा की जा रहे है इसक। तो निर्गुर्ण सथी ही होना पड़ेगा
18:01भगवान की इच्छविँ में गुण तो सारे हमारा स्वारत ही डालता� और कहां से आएंगे
18:09बॉटे सांगे हमारे दो हांत हैं तो हम एश्वर के भी दो हाथ हांत बना देते हैं करते हो नहीं हमारी शकले वैसा बना देते हैं आहां आप जो छवियां भन görünसी क्यों नहीं बनाते हैं
18:25क्या रहा था लेकिन अगर वो हमारा पिता है तो हमारी जैसा तो दिखता होगा
18:37अगर वो हमारा पिता है तो हमारी जैसा तो दिखता होगा तो इसमें क्या बुराई है अगर हमने उसको अपने जैसा बना दिया मूर्ति में
18:46एक छोटा तो जंजट रह गया है वो आपका तो पिता है लेकिन सिर्फ आपका पिता नहीं है न वो चीनियों का भी तो पिता है और अभी बात आगे तक जाएगी वो कुत्ते बिल्लियों शेरों सब जानवरों सब प्रजातियों का पिता है तो अगर आपको उसकी शक्ल उसक
19:16फसे कि नहीं फसे
19:19पर ऐसा तर्क दिया जाता है
19:21कियते हैं हमारे ही जैसा तो होगा क्योंकि
19:26हमारा पिता है
19:28सब बच्चे की शकल अपने बाप से मिलती है न
19:31तो बच्चे की शकल देख के बाप की शकल का थोड़ा थोड़ा अनुवान लग जाता है
19:34हाँ वो बाप है अगर ऐसे ही कहना है ठीक है बिलकुल वो बाप है पर सब का बाप है वो तो जो सब
19:41जड़ पदारत है उनका भी बाप है तो अब बताओ कैसी शकल बनाओगे उसकी
19:48अपने जैसी शकल बनाना
19:51बड़े स्वार्थ का काम है
19:52अपने से आगे देखी नहीं पा रहे तो अपने इसी शकल
19:55अब वो भी अपने जैसी कैसी
19:56कि उत्तर भारत के हैं तो उत्तर भारती जैसी
19:59और दक्षन भारत के हैं तो
20:00दक्षन भारती जैसी
20:02अफ्रीका वाले हैं उनका क्या करना है उनका नहीं पिता है
20:08तब को भुला दिया है
20:14Caucasians कहां गए
20:15उधर वाले जो Red Indians है वो कहां गए
20:19और जो करोणों प्रजातियां है
20:28मातर प्रथवी प्रथवी पर वो बाकी प्रजातियां कहां गई
20:31या इतना अपने अहंकार में गुम हो गए हो कि
20:36सोच रहे हो कि वो बस मनुश्यों का ही पिता है
20:38करोणों और प्रजातियां बीटो है
20:40तो उसकी मूर्तिय बनानी हैं तो उन जैसी ही बनाओ
20:43मच्छर जैसी भी बनाओ
20:44अमीवा जैसी भी बनाओ
20:46बैक्टिरिया जैसी भी बनाओ
20:47तो इसलिए जो थोड़े से समझदार लोग थे
20:55उन्होंने कहा उसकी कोई छवी नहीं हो सकते
20:57कौन सी छवी बनाओगे
21:01उसकी कोई छवी नहीं हो सकते
21:04या ये कह दो कि सब छवीयां उसी की है
21:08लेकिन कोई एक छवी निश्चित मत कर लेना वो गड़बड़ बात हो जाएगी
21:12या तो कह दो ये खंबा भी उसी की छवी है
21:15बादल भी उसी की छवी है नदी भी उसी की छवी है
21:19फूल पत्ते और सब अच्छी अच्छी बाते नहीं
21:23कीचड और दलदल और मृत देह ये भी उसी की छवी है
21:27या तो ऐसे कर लो या कहदो कि कोई छवी उसकी छवी नहीं हो सकती
21:33पर ये कुतर्ग मत करोगे हमारा बाप है तो इसलिए हमारे जैसा हुआ
21:38अध्यात्म के क्षेत्र को बहुत लोग सोच लेते हैं कि
21:46बुद्धि वर्जित क्षेत्र है कि इसमें प्रवेशी तब ही हो सकता है
21:53जब बुद्धि शब्द से बहुत समस्या हो जाए तो फिर वही इस तरह की बातें करते है
21:58स्वार्थ लेकर के अगर आप अध्यात्म में आएंगे
22:08तो एक-एक शब्द के ऊपर आप विकार पूतते जाएंगे
22:18अच्छे से अच्छे उच्छे उच्छे आपको शब्द दिये जाएंगे और आप उनके निचले से निचले अर्थ करते जाएंगे
22:24क्योंकि आपके लिए कोई शब्द महत्वपूर्ण नहीं है
22:28स्वार्थी के लिए तो बस उसका स्वार्थ महत्तुपूर्ण है कामीं के लिए तो बस उसका काम महत्तुपूर्ण है
22:35जो सही है वो कर रहा हूँ जो ही अंजाम आ रहा है स्वीकार है यही शद्धा है
22:56नहीं पूछूंगा कि मेरा क्या होगा अगर यह सही काम कर दिया तो
23:02बहुत व्यावहारिक नहीं बन जाओंगा कि देखिए था आप बात तो यह सही है लेकिन थोड़ा आगा भी तो देखकर चलना पड़ता है
23:09नहीं आगा देखकर आगा देखकर चलना मने परणाम देखकर चलना लोग कहते है न जो थोड़े मंजे हुए सामाजे खिलाड़ी होते हो तो खासता और पर ऐसी बात करेंगे नहीं नहीं देखिए बात तो आपने बिल्कुल ठीक बोली अध्यात्मिक दृष्टे से लेकि
23:39ठीक है तो जो होगा वही सही है तुम्हें कैसे पता कि जो हो रहा है वो गलत हो रहा है जो हो रहा है वो गलत है ऐसा निश्चे आप बस अपनी अपेक्षित कामना से मिलान करके मैचिंग करके ही तो कर पाते हो नहीं तो जो हो वही अच्छा है अगर कोई आशा ही नहो तो �
24:09किया और जो किया वो अपने आप में पूरा है अब उससे और ज्यादा आगे ही क्या आशा रखनी है यह सब्सक्त है अग्दम सब्सक्त है
24:30ठीक हैं अचारी जी आज हमने ये जाना कि सद्दा के बारे में जाना और मेरा इस सवाल ये था कि फिर बाद में मैं ये मतलब फड़ा विचार मैंने लगा कि फिर मतलब जो मंदिर जाना हुआ
24:47फिर मन्दिर एना तो फिर यह हो गया कि मतलब वहां पर हम जाके अपना
24:51आप्मयों करें और फिर आत्मयों हो करें वभक बहुत बढ़ेक बाहएं एक्तम ठीकły बहुत बहुत क्यों
25:00तो हमें ऐसे मंदिर चाहिए और हमें ऐसे लोग चाहिए जो मंदिरों का इस प्रकार सदुपयोग कर सकें
25:08मंदिर कामना पूर्ति की जगहें नहीं होनी चाहिए नहीं मंदिर कर्मकांड और अंधविश्वास और
25:15ये सब थोड़ी मंदिर के लिए है
25:19मंदिर वो जगह हो जहां आप जाएं
25:22तो आपको अपना दर्शन हो जाए
25:25आपको पता चल जाए कि मेरी जिन्दगी कैसी चल रही है
25:29मेरा जूट क्या है और मेरा यथार्थ क्या है
25:32मंदिर निर्मित भी इसी तरह होने चाहिए
25:38और मंदिरों में जाना भी इसी दृष्टे से चाहिए
25:41मंदिर में मैं जा रहा हूँ
25:45किसी दूसरी शक्ति को प्रसंद करने
25:47या अपनी मनो कामनाओं की पूर्ति करने
25:50ये बात बिलकुल भी ठीक नहीं है
25:52मंदिर उची से उची जगह होनी चाहिए
25:58और हमारी कामनाएं हमारे अस्तित्तों का बहुत निचला हिस्सा होती है
26:05मंदिर का कामनाओं से कोई संबंद नहीं होना चाहिए
26:08मंदिर का अर्थ होना चाहिए ध्यान, श्रद्धा, आत्मवलोकन, आत्मविचार
26:14और ये काम तो मतलब कहीं पर भी हो सकता है, ज़रूरी नहीं कि विशिष्ट जगह ही जाए
26:26जहां होने लग जाए आप उसी जगह को मंदिर भी कह सकते है
26:30और चुकि हर जगह हो तो सकता है पर होना सुलभ नहीं होता
26:35तो इसके लिए हमेशा आवश्यक रहेगा कि कुछ विशिष्ट जगहें बनाई जाएं
26:40उन्हीं विशिष्ट जगहों को मंदिर कहने है
26:43आत्मवलोकन, बिल्कुल हर जगह हो सकता होना भी चाहिए
26:49लेकिन कम से कम जो लोग आरंभिक कोटे के साधक होते हैं
26:54उनके लिए यह संभव नहीं हो पाएगा कि वह कहीं भी खड़े रहकर के जगत को दरप्ण की तरह देख लें
27:00पहचानने लग जाएं तो उनके लिए विशिष्ट जगहें बनानी ही पड़ेंगी उन्हीं विशिष्ट जगहों को फिर हम नाम देंगे मंदिर
27:08को फिर है जैसे की प्राचीन काल में मतलब जैसे बोलते देख टैंपल इसदा क्रीना मिक
27:20सेंटर माधा इस्टेम में पढ़ते हैं कि टैंपल को इपन्धि पूरोईतों ने मतलब जिस हृसाब से इंका
27:37सोचन किया है जनता का सोचन किया है तो मतलब क्या वो भी क्या
27:42economic center मानना भी embrace you economic center दो तरह से हो सकता है एक
27:47तो यह कि मंदिर आपको जो सबसे सही और सबसे उचा केंदर हो
27:53सकता है वहाँ पर ले जाए और फिर आप कहें कि अब मेरी समाजे के
27:58विवस्था आर्धिक विवस्था राजनेतिक विवस्था सब यहीं से निकलेगी
28:02तो इस अर्थ में वो economic center हो गया रहा हो गया एक तो यह बात हो सकती है
28:07और दूसरी बात यही हो सकती है कि जिस जगह पर आप अपना economic gain हो गयारा कर रहे हैं
28:13उसी को आपने मंदिर का नाम दे दिया
28:15इज़े दूसरी बात है बहुत गलबड़े
28:17मंदिर को सर्व प्रथम
28:21सिर्फ और सिर्फ ध्यान और शद्धा का ही केंदर होना होगा
28:25लेकिन अगर मंदिर ध्यान और शद्धा का केंदर है
28:31तो फिर वो आपकी अस्तित्तों का ही केंद्र हो गया ना
28:34तो आप जीवन में जो कुछ भी करते हैं वो फिर एक तरह से मंदिर से ही निकलेगा
28:40आप समाज कैसा बनाते हो
28:42आप सभिता कैसी निर्मित करते हो
28:46आप शिक्षा विवस्था कैसी निर्मित करते हो
28:48और आप अर्थविवस्था कैसी चलाते हो
28:51ये सारी बातें फिर
28:52मन्दिर से ही अपने आप
28:54सहज ही उद्भूत होंगी
28:55और मतलब एक ये भी रहता था कि
29:00कि अगर कोई राजा दूसरे राजा भी अटेक कर रहे है
29:02तो सबसे बहूर मंदिर भी अटेक करता था
29:03मतलब एगर ऐस अव्यतागर वहां से चल रही है, तो मतलब उसकी नीव को भी तोड़ दो तो तो राजा का भी हो हो गया।
29:12है भॉआ सब दुनियादारी की चीजें हां नहीं की वहां पर ला
29:19करके अपना धन रखा हुआ है वहां से राजनैतिक गतिविधिया चल रही है वहां से यह चल रहा है वो फिर जो मंदिर है वो संसारिक्ता का
29:28हिस्सा बन गया वह एक बार संसारिक्ता का हिस्सा बन गया फिर आपको संसार के पार कैसे ले जा पाएगा
29:34मंदिर वो है जहां आप ऐसे समझ लिजे कि द्वार पर
29:46जूतों के साथ साथ संसार को भी बहार छोड़ कर आते हैं
29:52मंदिर वो जगए है
29:54जहां मंदिर ही संसारिक्ता की आश्रेस थली बन गया हो अब बंदिर आपको क्या दे पाएगा
30:07प्रणाम आचर जी जी आवज आ रही है सर्व मेरा सवाल ये है कि जैसा कि आज आपने श्रद्दा का जो मतलब
30:22पताया यह मुझे भी आज थोड़ा सा जादा किलियर हुआ एस कंपेर जो मैं पहले सुनती थी उससे पर जो आम आदमी है वह आश्रद्धा में यह जीता है
30:33और उसको लगता है कि वह बहुत बड़ा स्रद्धाल हुए ठीक है फॉर इग्जाम्पल मतलब मेरे घर मेरे भाई वैन है तो मैं मतलब सेशन्स वगेरा सुनती हो आपके या मैं वीडियो वगेरा भी देखती हूँ तो उनको लगता है कि मैं यह पाखन कर रही हूँ पर ज
31:03पर मेरे लिए उनको यह बात समझाना बहुत दिफिकल्ट हो जाती है कि मतलब श्रद्धा का सही मतलब क्या है तो प्लीज थोड़ा साब एक्स्प्रीन करते है आपको तो कर दिया आप किसको करूं नहीं सर वह बात यह हो जाती जैसे जो मेरी मियूजिक टीजर है वह से ज�
31:33तो आप समझने पर देजिए क्या समझाना है उपनिशाद कहते हैं कि
31:53कि आत्मा किसको मिलती है आत्मा किसको उपलब्ध होती है जिसको ये कोई ऐसी चीज नहीं है कि किसी पर थोपी जा सकती हो
32:12विदान्त का मतलब ही है चुनाव चुनाव
32:17कहीं कहीं भीतर से कम से कम थोड़ी सी तो चिनगारी खड़ी होनी चाहिए ना फिर हम इसमें इंधन डालके उसको आग बना देंगे
32:34आप इसमें मत रहिए कि आप किसी को भी समझा पाएंगे
32:39मैं आप लोगों को नहीं समझा पाता आप आगे समझा पाएंगे मैं इसका क्या सूत्र बताओं वह सूत्र मुझे पता होता तो उसी सूत्र से मैंने आपको नहीं समझा दिया होता
32:52अभी आज 30 तारीक है होना तो यह चाहिए कि आप जितने लोग हैं आपको पता है कि इस बारम जल्दी सत्र शुरू करेंगे
33:02चार-पांच थारीक से होना तो यह चाहिए कि कल खुद बखुद आप सब लोग आप पर आजाएं क्योंकि आईटी ने विवस्था बनाई है उसमें तो जब आप अपना अन्रोल्मेंट दुबारा करते हो तभी आप आपके लिए सक्रिये होती है
33:14पर वो होगा नहीं अब यहां से पिर जब होगा नहीं तो यहां से कॉल जाने शुरू होंगे कि हांजी कहां गायब हैं
33:23उन में से भी फिर बहुत धुरंदर होंगे जो फोन ही नहीं उठाएंगे और यह कितनी ज्यादा क्या बोलूँ बद्तमीजी की बात है कि पहले तो नौबती क्यों आए कि यहां से फोन जा रहा है
33:35आपकी और से फोन आना चाहिए बलकी और जब फोन जाए भी तो उठा नहीं रहे और जब उठा भी रहे हैं तो ऐसे ऐसे घुमा रहे हैं संस्था के लोगों का समय विर्थ है क्या फालतू का है कि घुमाते हो
33:49और उसके बाद भी कम से कम 20-25 प्रतिशत सूर्मा ऐसे होंगे जो भग जाएंगे पूछे क्यों भग गए बुले वह पिछली बार पांच मेंसे तीन तो करी नहीं पाए थे ना तो इस बार भग दे
34:06कि आप समझ लें मेरे लिए यही बहुत बड़ी वात है मैं आपको कहां समझा पा रहा हूं अभी भी बहुत लोग यही सोच के सुन रहे होंगे कि यह महीने का आखरी यह बस हो गया बस आखरी है
34:18कि अपके बिछडे
34:26जान लगानी पड़ती है तब जाकर करके उतना भी हो पाता है जितना मैं थोड़ा बहुत कर पा रहा हूं उसमें कोई आसान सूत्र नहीं है जो मैं आपको दे पाऊं कि उससे आप अपने घरवालों को यह अपनी
34:48आपकी म्यूजिक टीचर को बता दे तो लेटर फेस दे म्यूजिक के बात करते हैं और सुवामी जी के वारे में बात करते हैं रोज सुबह मतलब उनका एक कोटा जाता है स्वामी जी का जो दिया हुआ है विवेकानन साहित से पर जब
35:18मेरे से बात करती है या मैं आपके वारे में उनसे डिसकस करती हूं तो वो मेरी बात ध्यान से सुनती है फिर कभी उनने आपके सौट्स देखे होता है या वीडियो देखे होता है तो गोजवारे में भी बात करती है या जो मेरे भजन है जो मैं आपसे सीखती हूं तो मु�
35:48से बहुत कम थी और मुझे पंद्रा साल लग गए हैं आपको इस स्क्रीन पर लाने के लिए
35:55इतना वक्त लगता है इतना आसान नहीं होता इतना आसान होता तो आज हमारे साथ
36:04फिसमें तो मुझे बोलना है इसी टेक्नालोजी के माद्यम से बात पांच लग लोग तक भी जा सकती है पर वक्त लगता है बहुत मेहनत लगती है
36:19इतना नहीं आसान है आपको यह आसान इस लिए
36:49दादा जी पंडित है तो उन्होंने जो कर्मकान बता दिये थे वहाई सब भूत प्रेत को लेके में लिए मुझे थैंक्यू बोला है आपको क्यों जो भूत वाला अंदर से निकल लिया है क्योंकि वह आत्मा प्रेत यह वह अगला जना तो वह चीज बहुत ज्यादा थी कही �
37:19पंडित उन्हें मिल भर जाए बस वह खुद भी संस्कृत के विद्वान थे और पंडित मिला नहीं कि पकड़ लेते थे कि यह जो भी बोला
37:31जब तुम्हें इसका उचारण ही नहीं आता तो तुम्हें इसका अर्थ क्या आता होगा
37:37अभी एक दिन बीता है मेरी माता जी बहुत उस दिन उदास हो रही थी क्यूंकि विशेश दिन था उसमें पिता जी खुदी बैठ करके ग्रंथ सुनाते थे मा को
37:56वो खुदी पंडित बन जाते थे बुलते थे मुझसे मैं ही बताता हूँ खुदी बताते भी थे अर्थ भी करते थे अब वो दिन अभी बीत गया
38:04भर्म ऐसा होना चाहिए ना अर्थ पूर्ण
38:12और
38:15मैंने का कि मुझे पंदरा साल लगे उसमें ये भी सोचिए फिर कि जो मेरे पीछे थे जिन्नों ने मेरे उपर मेहनत करी उनके कितने साल लगे थे
38:24उतनी मेहनत करनी पड़ती है तब आप तक ये पका पकाया माल आसानी से पहुँचता है
38:30अब आपको भी उतनी ही मेहनत करनी पड़ेगी उन लोगों पर
38:36कम मेहनत में काम हो जाए तो मानिएगा अनुकम पाए
38:40पर आप ये मान कर चलिए कि एक आदमी को ज्ञान देना
38:48बिलकुल एक आदमी को जन्म देने के बराबर है
38:51जन्म भी छोटी बात होती है जिन्दगी देने के बराबर है
38:54ज्ञान देना छोटी बात नहीं होती
38:57जो अज्ञान और अंधेरे में जी रहा हो
39:01अगर आपने उसको रोशनी दे दी तो आपने उसको जिन्दगी दे दी
39:06ये बहुत बड़ी बात होती ना साधारन तोर पर इमा बनना कितनी मुश्किल का काम होता है पहले पैदा करो फिर बढ़ा करो फिर ये करो वो करो पढ़ाओ लिखाओ सौ जंजट
39:16वो तो एक सारीरिक चीज है जब कि
39:19जब किसी को आपको
39:21मानसिक तोर पर
39:23और फिर आत्मिक तोर पर जनम देना होता है
39:25वो तो बहुत बड़ी बात हो जाती है
39:28उसे बहुत मेहनत करनी पड़ती है
39:29गुरुशिशे का रिष्टा इसी लिए
39:33किसी भी दुनिया के और रिष्टे से
39:34उपर माना गया है
39:35मैं नहीं गुरु कह रहा हूं
39:39उपने आपको बता रहा हूं
39:40बसकि जो होते थे उन्होंने कितनी
39:42महनत करी है ठीक है हम तो उनकी
39:44महनत का प्रसाद खा रहे हैं गीता नहीं
39:46होती है तो हम सतर कैसे कर रहे होते हैं तो गुरू तो यह हैं इन्होंने महनत करी है तो उससे हमें लाब हो रहा है तो आसान नहीं समझी है इस बात को आप सब लोग आ जाते हैं कहते हैं आप से हमने समझ लिया तीन घंटे में आप से हमने तीन घंटे में समझ लिया फिर हम ग
40:16के परोज पाया वो तीन घंटे ऐसे थोड़ी हुआ कि मैं वहां बैठा और मैंने का सुनो भक्त जनो ऐसे थोड़ी हो जाता है यह ऐसी सी बात है कि आप कहें कि E is equal to mc square इसमें रखा गया है E mc square भाई वो निकालने के लिए उसने पता नहीं क्या-क्या करा है तब वो इतनी स
40:46कि घरवालों से दोस्तों से और म्यूजिक टीचर से समझाने की उनको कोशिश किया करें उससे कम सब्सक्राइब आपको थोड़ा कम सब्सक्राइब थोड़ा पता तो चलेगा कि इसमें मेहनत लगती कितनी है नहीं तो आप लोग सोच लेते हो कि यह तो अचारी जी एक शल
41:16घर से बाहर देखिए का है इसमीं में तो कोई बात ही नहीं है और फिर बोल रहा हूँ जहां यह देख पाएं वही जगे घर है
41:42अ
41:46तहाब हमारे बोल गए है कि जिस घर में तुम ग्यान की बात नहीं कर सकते और जहां सादू नहीं आ सकता उस घर को शम्शान जानना होता है
42:01घर का क्या मतलब होता है घर का मतलब वही जहां आप बस सको बसना स्थित हो सको और आपको तो आत्मस्थ होना आत्मा में स्थित होना है
42:17घर में अगर गीता का वचन पड़ता है तो उससे घर पवित्र हो जाता है यग्य के धुए से नहीं घर पवित्र होता है
42:34यग्य का असली अर्थ जब घर में गूंजता है तब घर पवित्र होता है
42:38बहुत सारे कर्मकांडी गूंते हों कहते हैं यग्य का जो धुवा उठता हो बैक्टीरिया मार देता है उससे घर पवित्र हो जाता है
42:44हाँ यग्य से घर निश्चित रूप से पवित्र होता है जब आप समझ लेते हैं कि यग्य का अर्थ होता है निश्कामता उस दिन घर पवित्र हो जाता है
42:52धुमे से नहीं पवित्र होता लकड़ी जलाने से नहीं पवित्र होता
42:55मेहनत करिये और कोई तरीका नहीं है
43:02दन्रवाद अचारी जी
43:07समस्कार अचारी जी सौगत मेरा प्रश्णी ये था कि आज आपने समझाया श्रद्धा का असली अर्थ
43:19और उसमें आपने कहा कि अधिक्तम सत्य निष्ठा पहले चुनो और उसमें लगे रहो यही है
43:29तो इसमें मेरे मन में दोस्त प्रश्ण आए एक तो यह कि ये विद्या और अविद्या दोनों शेत्रों में लगाना है
43:39और दूसरा उसका क्रैटीरिया क्या हो कि सत्य मतलब आपने ये भी कहा कि सत्य कोई ऐसी चीज तो है नहीं जो एक अब्जेक्टिव है जो आप जिसको कह सेगे
43:48तो जो मैं उसका अर्थ समझ रहा हूँ कि सत्य निष्ठा में लग जाना सच्छे अर्थों में अपने ही खिलाफ लड़ाई लड़ते रहना ये ही उसका एक अर्थ हुआ
44:00बाहरी दुनिया में उसको अब्जेक्टिविटी बोल देंगे मैक्सिमम अब्जेक्टिविटी भीतरी दुनिया में उसको आप मैक्सिमम ऑनेस्टी बोल दोगे लेकिन ये बस मैं कहने के लिए कह रहा हूँ क्योंकि अब्जेक्टिविटी जिसे हम वस्तु निष्ठता ब
44:30आते हैं या सुविधान उसार तोड मरोड के अपनी सुविधान उसार तोड मरोड के तथियों को नहीं देखना है इसको और जादा जमीन की भाशा में कहें तो ऐसे भी क्या सकते हैं कि बाहर भी देखो तो वैग्यानिक दृष्टी से और भीतर भी देखो तो वैग्यानिक क
45:00बहले ही आना चाहिए आइडियली एक्वेशन के हिसाब से 5.0 पर अब आ रहा है आपका 5.2 तो आप क्या करो लिखो आया है हो सकता उससे यही निकल के आए कि जो आपका एक्विप्मेंट था उसमें कुछ फॉल्ट है या केलिबरेशन नहीं ठीक कुछ भी निकल के आएगा �
45:30सुविधा माईने नहीं रखती जो तत्थ है वो माईने रखता है मेरे हिसाब से मेरी सुविधा कहती है कि मेरा बेटा मैट्स का चैंपियन है तो उसके निन्यानवे तो आने चाहिए आए है 62 आए है 62 तो मैं इसी को ना तो बता रहा हूं कभी छुपा रहा हूं और कभी ब
46:00है तो है उसमें घपले बाजी नहीं बहुत सार लोग जा करके डॉक्टर तक से जुट बोलाते हैं पूछता है क्या खाते हो क्या पीते हो बताते ही नहीं उसको बोल्टी दवाई देता है मर जाते है तुमने जब बताया ही नहीं उसको कि तुम क्या खाते हो क्या पीते हो �
46:30बहुत सुन्दर है
46:31वो कहते हैं
46:35चदरिया वाले अपने भजन में
46:38कहते हैं
46:40दास कबीर जतन कर ओड़ी
46:42जस की तस धर दीनी चदरिया
46:45जस का तस
46:48एक प्रतिशत उस पर अपने आपे का धाग नहीं लगने देना है
46:53चदरिया माने यही जो पंचभूत की चदरिया होती है
46:56इसको चदरिया बोल रहे है
46:57माने यही जो जगत है इसको चादर जैसा मानो
46:59कहा रहे उस पे मेरी अहंता का दाग न लगे
47:02जैसा है वैसा ही रहे बस
47:04प्रक्रति प्रक्रति है और पुरुष
47:07पुरुष जाके प्रक्रति पे अपना दाग नहीं छोड़ेगा
47:10जस की तस धर्दीनी चदरिया
47:12जस का तस
47:16कहीं हो करके आ रहे हो कोई पूछे क्या देखा है
47:19साफ बता दो जैसे CCTV हो
47:21इंसान बनोगे तो हंकार बीच में ले आओगे
47:24CCTV का हंकार नहीं होता
47:26जैसे वो बता देता है क्या था वैसे ही बता दो क्या था
47:28अपने आपको बीचे मतलाओ
47:30जस की तस धर्दीनी चदरिया
47:32यह है अधिक्तम सत्यनिष्ठा
47:36लिविंग इन दे फैक्ट
47:37तथ्यों में ही जीना है
47:39उसमें अपने हिसाब से
47:43यह नहीं कि
47:48एक को कहानी एक है
47:49एक ने अपने हिसाब से कुछ कहानी बना दी
47:51उस कहानी का एक दूसरा संस्क्रण चल रहा है
47:53अपने हिसाब से तीसरा चल रहा है
47:54पाँचवाँ चल रहा है सब ने अपने अपने हिसाब से कहानी निकाल दी
47:57और सब अपनी ये कहानी को क्या बोल रहे हैं सकते ऐसे नहीं
48:03एक एक थोड़ी सी शंका और ये भी थी आपने कहा है अधिक्तम कोशिश करो जो भी रिसाइट कर लिए
48:17तो अवलोकन मैंने अपना किया तो मैंने शायद आज तक कभी भी इसका अधिक्तम तो मैंने कभी शायद जीवना आज तक
48:28मन में जो आशा वाली रहती नहीं थोड़ी अभी ताकत बाकी अभी और एक कर सकते हैं
48:34जब भी मैं रुका हूँ, कुछ भी काम कर रहा हूँ, मैं तो अविद्या के छित्र से ज़्यादा कह सकता हूँ, विद्या तो इतनी है भी नहीं, कि एक पॉइंट आता है कि आप
48:45जैसे छोड़ देते हैं, गिव अप कर देते हैं, कुछ भी यह जैसे मालीजिए मैं कुछ पढ़ाने की तयारी कर रहा हूँ, कोटिंग कर रहा हूँ, कुछ अटक गया गई, तो ऐसा नहीं होता है कि वो पूरा जीरो हो गया है और अब मैं बेहोजो के गिर गया हूँ, कहीं �
49:15रहना चाहिए हमेशा, क्योंकि यह तो मैं पता है कि आहम कभी पूर्ण तो होता नहीं, जो ultimate है आखिरी, अंतिम, वहां तक तो हम जा सकता नहीं, तो निश्चित रूप से अभी आपने जो भी करा, जैसा भी देखा, जो समझा, उसमें अभी और संभावना बाकी तो थी ही
49:45निर्मित हो सकता है, पूर्णता अभी शेश है, यह हमेशा आप कही भीतर एक जो जो अभी अंच्छूआ सत्य है, उसके वियोग की आग जलती रहे है, अभी पूरा थोड़ी पाया है, अभी पूरा नहीं पाया है, अभी पाना बाकी है, अहंकार जल्दी से संतोष्टर्�
50:15चाहता है कि मैंने तो पा लिया, मैंने तो पा लिया, उसी को आज हम क्या बोल रहे थे, असुया, असुया वैसे तो इर्शया होती है, पर इर्शया से पहले उसमें तुलना होती है, ऐसे से तुलना जिससे तुम्हें तुलना करनी नहीं चाहिए, जब पाया नहीं तो साफ ब
50:45पर रुख गए हैं हम कहा रहे हैं अभी और संभव है और हर बीत्ते दिन के साथ हम और और और करते ही जा रहे हैं एक के बाद एक उचे आस्मान
50:54इसमें गलतिया होंगी क्योंकि ये सब फैसले कौन ले रहा है एहंकारी ले रहा है तो वह इसलिए मैंने कहा पूर्ण सत्य निष्ठा नहीं क्या बोला मैंने अधिक्तम सत्य निष्ठा जो अधिक्तम हैं हंकार का कई बार वो भी अपर्याप्त पड़ेगा
51:15क्योंकि हंकार का अधिक्तम है
51:17आवश्यक नहीं है कि ओपर आप थो
51:19तो कई बार आप गलतियां करोगे
51:22वहाँ पर तो आपको यही कहना है गलती करी है
51:24ठीक है
51:25अगली बार
51:27और
51:29और ज्यादा
51:30थोड़ा और दम थोड़ी जान और
51:34थोड़ा ध्यान और
51:36और जान से और ध्यान से
51:39दोनों बढ़ाऊंगा अगली बार
51:41अध्यात्मिक आदमी अपनी गलती पर
51:50कभी भी
51:52चकित नहीं हो जाता
51:54चकित तो वही होता है न जिसको लगता है
51:57अरे मैंने गलती कर कैसे दी
51:58गलती कर कैसे दी वाने क्यों नहीं करोगे
52:01अध्यात्मिक आद्मी जानता है कि गल्ती तो होगी
52:04क्योंकि निरने मेरा था
52:06निरने था मैं हूँ और मैं कौन हूँ
52:08मैं आत्मा थोड़ी हूँ मैं कौन हूँ
52:10मैं तो अहम हूँ
52:11मैं अहम हूँ तो मैं गल्ती कर बैठा हो सकता है हो गई हो
52:15गल्ती हुई है हम स्विकार करें गल्ती हो यह और समझेंगे और गहराई से ध्यान देंगे फिर आगे बढ़ेंगे
52:21सत्य में रख शद्धा पार नमित करके एहंकार गीता की गुन करके बार
52:42आमुक्त हो भव बंधकार सत्य में रख शद्धा पार नमित करके एहंकार गीता की गुन करके बार
52:59आमुक्त हो भव बंधकार
53:12करक crate करे एहंकार
53:17आमुक्त हो ऑ濃 भव बंधकार
53:21आमुक्त हैाै
Be the first to comment