- 2 days ago
Category
📚
LearningTranscript
00:00:00अपनिशद जैसे सुई छोटी सी और लोक धर्म के बड़े-बड़े गुबारे और उपनिशद ऐसे धीरे से आते हैं
00:00:06और ऐसे फिर मासूम तो चेहरा बना के देनी मेंने तो
00:00:09इतना ही बताया बस कि अनित्य को नित्य नहीं मिल सकता अनित्य के साथ पता है क्या खत्रा है धोखा देता है
00:00:18तुम उसको एक बात समझते हो वो कोई और बात निकलता है और जो बात हो निकलता है वो वो बात भी नहीं होता है
00:00:24भारत में किसी को बोल दो
00:00:26फूल
00:00:27एकदम खुश हो जाएंगे
00:00:29और इंग्लेंड में किसी को बोल दो
00:00:31फूल
00:00:31तो गड़बड हो सकती है
00:00:33एक ही बाग के अर्थ बहुत बदल जाते हैं
00:00:36अलग-अलग जगहों पर
00:00:38तुम जैसे हो
00:00:40तुम्हारा सब कुछ वैसा ही होगा
00:00:41तुम्हारे इरादे वैसे होगे
00:00:43तुम्हारा परिवार वैसा होगा
00:00:45तुम्हारा समाज वैसा होगा
00:00:46और तो और
00:00:47तुम्हारा इष्ट तुम्हारा भगवान भी तुम्हारे ही जैसा होगा
00:00:50जैसे तुम हो
00:00:50उपनिशद दिल तोड़ देते हैं
00:00:53सारे मारगों का
00:00:54कोई मारग हो दुनिया का
00:00:56सबका दिल तोड़ देते हैं
00:00:57आँख बंद करके
00:00:59कीचड में गिर करके
00:01:02कीचड से ही रिष्टा बना लेने में बुराई है
00:01:04तो बुराई कीचड में भी नहीं थी बुराई
00:01:07उपनिशदों का खुफिया सूत्र
00:01:10जो तुम अपने आपको मानते हो अगर तुम वही हो
00:01:13परेखा खीजिए सीधी
00:01:23और उसमें एक तरफ लिखिए अनित्य
00:01:27शीरशक दे दिजिए अनित्य
00:01:29और अनित्य के नीचे लिखिए
00:01:33अहंकार और उसके सब
00:01:36विशय
00:01:38तो जीव और जगत
00:01:41जीव और जगत
00:01:44और समूचा द्वयत
00:01:46ये सब अनित्य है
00:01:47जीव और जगत, समूचा द्वयत, ये अनित्य है
00:01:52और एखा के दूसरी और लिखिए नित्य
00:02:01वहां लिखिए
00:02:04आत्मा
00:02:06सत्य
00:02:09परम
00:02:12ये नित्य है
00:02:17ठीक है?
00:02:22अनित्य क्या होता है?
00:02:32जो अभी है
00:02:34और अगले पल नहीं होगा
00:02:37जिसके होने की गवाही
00:02:45सिर्फ इंद्रियां दे सकती है
00:02:47वो अनित्य है
00:02:50जितने भी अनुभव अहंकार को हो सकते है
00:02:56वो सब अनित्य है
00:02:58क्योंकि अहंकार
00:03:00स्वयम भी एक इंद्रिय ही है
00:03:03सबसे आखरी इंद्रिय है वो
00:03:09वो बाकी सब इंद्रियों का भोकता है
00:03:15तो जितने अनुभव अहंकार को हो सकते हैं
00:03:23सब अनित्य हैं
00:03:24जितने विशय अहंकार के हो सकते हैं
00:03:28सब अनित्य हैं
00:03:30अहंकार का पूरा जगत ही अनित्य है
00:03:45हमने कहा जीव और जगत के द्वयत को ही अनित्यता कहते हैं
00:03:53जीव है जगत है जीव भी अनित्य और जगत भी अनित्य है
00:03:59इनमें कुछ भी ऐसा नहीं है
00:04:01जो काल का
00:04:09समय का
00:04:14और अनुभोकता का
00:04:21प्रहार जहल पाए
00:04:25इनके प्रहारों के बावजूद इस्थाइत तो रख पाए
00:04:30समझाता हूँ अनित्यता क्या है
00:04:33यह क्या है
00:04:46हम पता हो तुझे से यह क्या है
00:04:51कोई शब्द है
00:04:53तुम बताओ यह क्या है
00:04:55यह पता नहीं है तुम्हारे लिए यह क्या है
00:05:01रिबन है तुम्हारे लिए क्या है
00:05:05कव्वा है
00:05:09ठीक है
00:05:10यह है
00:05:13सब अनित्य विशयों का
00:05:19अहम सापेक शोना
00:05:22जो कुछ भी है
00:05:26एक विशय में
00:05:29वो विशय का अपना नहीं है
00:05:31वो उसके विशयेता का है
00:05:33बदल जाएगा
00:05:36एक विशय एक व्यक्त के लिए जैसा है
00:05:41दूसरे व्यक्त के लिए वैसा नहीं है
00:05:43एक विशय एक व्यक्त के लिए जैसा है
00:05:48दूसरे व्यक्त के लिए बिलकुल भिन्न है
00:05:50तो हमें क्या पता कि कोई विशय कैसा है
00:05:53यह अनित्यता है, एक पक्ष अनित्यता का, यह सब विशय अहम सापेक्ष होते हैं, अहम सापेक्ष माने दृष्टा सापेक्ष, जो देख रहा है वो तै करता है कि दृष्षय क्या है, आरी बात सकते हैं
00:06:23तुम प्यासे हो तो यह क्या है, मग है, और इसमें क्या है गर्म, चाय है, ठीक, और अगर तुम क्रोधेत हो तो यह क्या है, हथियार है, चाय गर्म है,
00:06:53तुम्हें भी गर्म कर देते हैं, और उसके बात फिर फेक के भी मारेंगे, तो इसको क्या कहें कि यह क्या है, कुछ नहीं क्या सकते कि यह क्या है, क्योंकि इसका होना तुम पर निर्भर करता है, और तुम, और तुम, और तुम, सब हो अलग-अलग, तो अहम सापेक्ष हो
00:07:23ठीक है, तो ये तो अलग-अलग जीवों, व्यक्तियों के लिए इसकार्थ अलग-अलग हुआ, अब एक ही व्यक्ति को ले लो, मानलो तुम ही हो, अब ये तुम्हारा मौसम अच्छा है, तो ये क्या है, और किसी को भेट में भी दे सकते हो, इसको ऐसे लपेट के कागज में
00:07:53मौसम भीतरी खराब हो गया, तो क्या करोगे? गए हो वहां पर, और इसको ले करके पटक दोगे, अब व्यक्ति एक ही है, अब हम अलग-�लग व्यक्तियों की नहीं बात कर रहे हैं, पहली अनित्यता क्या थी? कि एक ही विशह का अर्थ अलग-अलग व्यक्तियों के लिए �
00:08:23तो इनके लिए क्या था इनके कोई प्रियेजन है उन्होंने ये इनको तोफे में दिया था और सुबह तक लग रहा था कि बड़ा प्यारा आदमी है बहुत अच्छा है तो उसको ऐसे सीने से लगाए बड़ी अच्छी चीज़े बड़ी प्यारी चीज़े ठीक है अग्दम �
00:08:53पासवर्ड मिल गया इनको मौसम बदल गया जजवात बदल गया हालात बदल गया सब बदल गया शाम को ये क्या इसे पांच और पटक पटक के तोड़े आ रहे थे पूरे ही बदल गया ये ये क्या था सुबह ये क्या था और शाम को ये क्या हो गया एक ही वेक्ति है काल का
00:09:23पाए काल के सामने हस्ती क्या थी एक ऐसा था समूचा सुबह तक और शाम आते आते क्या हुआ कई टुकड़े होगा इसकी हस्ती भी गई और इसका आर्थ भी गया
00:09:40सुबह ये प्रेम की निशानी था और शाम आते आते ये
00:09:46बेफाई की घात की निशानी बन गया धोखे की निशानी बन गया
00:10:00अर्थ भी गया और इसकी हस्ती भी गई और तुम नहीं भी तोड़ो मानलो इसको तो भी काल तो इसको तोड़ी डालेगा
00:10:08तो ये अनित्य है क्योंकि काल के सामने ये टिका नहीं रह पाएगा
00:10:18न तथे के रूप में न अर्थ के रूप में इसका तथे मानिये जो इसका शरीर है इसका शरीर भी काल बदल देगा
00:10:26और इसका जो अर्थ है वो भी काल ऐसे पलक जपकते बदल देता है
00:10:30पन्वारी बात तो यह अनित्य हो गया पहली अनित्य हमने क्या बोली थी
00:10:37एक ही वस्तु का या एक ही विशय का अलग-अलग अर्थ होता है
00:10:42अलग-अलग व्यक्तियों के लिए
00:10:44कोई वस्तु दिखा दो जिसका एक ही अर्थ हो सब के लिए नहीं होता है
00:10:52अमीर हवाई जहाज को देखता है उसके लिए उसका अर्थ है
00:11:02कुछ भी नहीं वाहन
00:11:04और गरीब हवाई जहाज को देखता है तो उसके लिए उसका अर्थ है भविश्य हसरतें
00:11:11सपने
00:11:13अयाशी
00:11:15उसके लिए अभी वो क्या है एक वular sitta है
00:11:18देखो एक ही चीज है क्या
00:11:20हवाई जहाज पर उसके अर्थ
00:11:21अलग अलग है सबके लिए
00:11:26तो आहम सा पेक्ष
00:11:28और काल सा पेक्ष
00:11:30और तीसरी चीज जो नितिता में आती है
00:11:34कि वो होता है स्थान सा पेक्ष
00:11:36क्या होता है
00:11:38स्थान सा पेक्ष
00:11:40एक ही बात के
00:11:54अर्थ बहुत बदल जाते हैं
00:11:57अलग-अलग
00:11:58जगहों पर
00:12:00एक ही बात के
00:12:02अलग-अलग जगहों पर अर्थ बदल जाते हैं
00:12:05एक ही पल में
00:12:06काल नहीं बदला
00:12:07एक ही पल में एक चीज है भारत में
00:12:10उसका एक अर्थ होगा और उसका कहीं और दूसरा कुछ और अर्थ होगा
00:12:14भारत और
00:12:16ब्रिटेन तो बहुत दूर है
00:12:17एक घर में उसका एक अर्थ होगा
00:12:21और उसी पल में बगल वाले घर में पड़ो उसमें उस विशय का बिलकुल दूसरा अर्थ होगा
00:12:27बात आरी है समुझे
00:12:41चोरी हो रही थी क्योंकि बिजली गायब थी
00:12:46अब पड़ो उसमें कोई बैटके पढ़ रहा था
00:12:50सुबह उसकी परीक्षा थी
00:12:52बिजली आ गई
00:12:54इसके दो विपरी तर्थ हो गए दो घरों में
00:13:00तदारन सी घटना है बिजली आ गई
00:13:03क्या विशय है प्रकाश विशय है
00:13:04बिजली आ गई आँखों को प्रकाश मिलने लगा
00:13:08जो पढ़ने के लिए बैठा था उसके लिए इस घटना का एक अर्थ है
00:13:12और जो चोरी के लिए खुसा हुआ था उसके लिए इस घटना का बिलकुल दूसरा अर्थ है
00:13:17स्थान सा पेक्षता
00:13:20एक ही बात अलग-अलग जगों पर अलग-�लग अर्थ रखती है
00:13:24भारत में किसी को बोल दो
00:13:29फूल एकदम खुश हो जाएंगे
00:13:32और इंग्लेंड में किसी को बोल दो फूल
00:13:37तो गड़बड हो सकती है
00:13:39बात एक ही थी लेकिन
00:13:43तो अनित्य है
00:13:45इस्थान का आगात नहीं जहेल पा रहा है ये विशय
00:13:51और नजाने कितने उधारण आप खुद सोच सकते हो
00:13:53खुद सोच लो
00:13:54या नित्यता होती है
00:14:11हम नित्यता कितनी बात क्यों कर रहे हैं
00:14:15लेना देना क्या है
00:14:16अनित्यता क्यों समझ रहे हैं
00:14:18कि तीन तरह क्यों अनित्यता होती है
00:14:19क्यों इतनी बातें कर रहे हैं
00:14:23इसलिए कर रहे हैं
00:14:25क्योंकि अहंकार
00:14:28स्वयम अनित्य है
00:14:31और स्वयम से असंतुष्ट है
00:14:33अहंकार अनित्य है
00:14:38भी हमने क्या कहा है
00:14:38जीव और जगत का जो जोड़ई है वो क्या होता है अनित्य होता है तो अहंकार अनित्य है और वो खुद से बहुत नाराज रहता है कोई नहीं मिलेगा आपको जो जैसा है भीतरी तोर पर उससे सचमुच इमानदारी से आनंदित हो कोई नहीं मिलेगा
00:14:59हम सब बदलाओ का प्रयास करते रहते हैं और यहीं बताता है कि अभी कुछ खोट बाकी है खोट ना बाकी होती तो बदलाओ यानि बहतरी का प्रयास प्रतेक मनुष्य प्रतेक जगाय प्रतेक पल क्यों कर रहा होता
00:15:18तो अहंकार अनित्य है और अनित्यता से वो संतुष्ट नहीं है तो अगर अहंकार अनित्यता से संतुष्ट नहीं है तो पता करना पड़ेगा ना कि अनित्यता होती क्या है
00:15:32तो हमने पता अगरा पहले कि अनित्य था होती क्या है
00:15:35तो हमें पता चलागी सब कुछ ही अनित्य है
00:15:39जीव जगत का जोड़ा ही अनित्य है
00:15:43जो कुछ भी बुद्धियों का और अहम का इंद्रियों का विशे बन पाए
00:15:52वो सब अनित्य है
00:15:54तो सबकुछ ये अनित्य निकल गया
00:15:56और अहंकार अनित्य से असंतुष्ठ है
00:15:59तो फिर अहंकार किस से असंतुष्ठ है
00:16:00ये जो कुछ है उसी से
00:16:02ये हमारी
00:16:04इस्थिति रहती है
00:16:06हम न सिर्फ असंतुष्ठ हैं
00:16:09बलकि जो कुछ है
00:16:10उसमें से कुछ भी हम पा लें
00:16:15हम असंतुष्ठ ही रहने वाले हैं क्योंकि सब कुछ ही अनित्य है
00:16:19तो इतना तो समझ में आ रहा है कि हंकार को अगर अनित्यता से समस्या है
00:16:24तो शायद उसे नित्यता चाहिए
00:16:27क्या चाहिए नित्यता चाहिए अब यहां तक ठीक है
00:16:30अहंकार को अनित्यता में उकबीक होती है, छटपटाहट होती है, बेचैन रहता है, किस में? अनित्य में, तो अगर अनित्य में बेचैन है तो सपष्ठ है फिर उसमें से, निशकर्ष क्या? नित्य चाहिए, यहां तक सभी लोग पहुंच जाते हैं कमोबोश, कि कुछ ऐसा �
00:17:00नित्य हो, क्यों नित्य चाहिए? क्योंकि नित्य के साथ वो तीन खतरे नहीं होते, जो अनित्य के साथ हैं, अनित्य के साथ पता है क्या खतरा है? धूखा देता है, तुम उसको एक बात समझते हो, वो कोई और बात निकलता है, और जो बात वो निकलता है, वो वो बात भी
00:17:30और चाहिए आपको कुछ ऐसा जिस पर आप टिक सको, टिक नहीं सको, जिसको अपना आधार ही बना लो, जिस पर खड़े ही हो सको, खड़े भी नहीं हो सको, जिस पर बैठ सको, बैठ भी नहीं सको, जिसमें समाई जाओ, पूरी आश्वस्ति के साथ कि अब मामला पक्का है,
00:18:00कोई चोटनी मिलने वाली जो चीज जैसी दिखाई दे रही है वैसी ही है और अनित्य का मतलब जो चीज आज जैसी है
00:18:24कलव ऐसी नहीं कि तुमने भरोसा कर लिया आगले दिन ठोकर खाओगे दुख
00:18:28तो अनित्यता बराबर दुख
00:18:31ऐसे लिखो अनित्यता बराबर धोखा बराबर दुख
00:18:36जहां कुछ अनित्य है
00:18:38महातुरंत घंटी बच जाए भीतर कि अब धोखा मिलेगा और दुख होगा
00:18:43धोखा पढ़ने ही वाला है
00:18:46काल का धोखा पढ़ता है
00:18:55स्थान का धोखा पढ़ता है
00:18:58कोई चीज है जो यहां बड़ी अच्छी लग रही थी
00:19:02और कहीं और उसको देखा तो वो फिर किसी काम की नहीं निकली
00:19:08कुछ जवा नहीं
00:19:12हम तो मूल ले दे बैठे किसी वस्तो को किसी खास जगह पर
00:19:16पर जगहें बदलते ही हैं
00:19:20जी वो एक ही जगह पर नहीं रह सकता
00:19:21जगह बदलते ही क्या हुआ
00:19:22उस वस्तो का मूले कुछ और निकला
00:19:25उस वस्तो की प्रक्रती कुछ और निकली
00:19:28फिर दोखा खा गए
00:19:31और तीसरा दोखा जो मिलता नित्यता से
00:19:34अहम सापेक्ष्टा
00:19:36आप किसी चीज़ को मूले दे रहे हो
00:19:41आप ही बदल गए
00:19:47उसका मूले बचा नहीं
00:19:52आप जिस चीज़ को मूले दे रहे हैं
00:19:57उसको लेके आप समाज के बादार में चले गए
00:19:59दूसरा वेक्ति उसका मूले कर नहीं रहा है
00:20:03वो किसी और चीज़ का मूले कर रहा है
00:20:05अब फिर दोखा खा गए
00:20:07तो अनित्यता बराबर दोखा बराबर दुख
00:20:15तो इसलिए अध्यात्म में नित्यता को बहुत बड़ी बात कहा जाता है
00:20:22बार-बार कहा जाता है कि मुझे तो नित्य से पहले कहीं नहीं रुकना है
00:20:29नित्य के अतरिक्त कहीं नहीं संतुष्ठ होना है
00:20:33अनित्य क्या करता है दोखा देता और धोखा देता है तो दुख होगा
00:20:41यहां तक सबको समझ में आ गया कि अनित्य धोखा देता है धोखे में दुख होगा
00:20:50ठीक है पर अब जो बात कही जा रही हो समझना मैं जानता हूं
00:20:56कि संपदा अनित्ते है
00:21:00संपदा को पढ़ो
00:21:01मूल संपदा तो अहंकार के लिए
00:21:03अहंकार ही होता है
00:21:05वो सब कुछ गवाने को तयार हो जाएगा
00:21:08एक बार को स्वैम को गवाने को तयार
00:21:10नहीं होगा
00:21:10किसी से कुछ भी छुड़वाना आसान है
00:21:13उसका आपा छुडवाना उसकी खुदी छुडवाना बड़ा मुश्किल है लोग एकदम भी लुट जाते हैं तो कोई समझदार थोड़ी हो जाते हैं अहंकार अपना बचा कर रखते हैं पूरा लुट गया है जिंदगी ने बढ़ियां वाली चोट मारी
00:21:36एक हमीर आदमी है हंकारी जो हंकारी होगा वो भ्रह्म में भी जी रहा होगा अब भ्रह्म में जी रहा था तो सब लुट लुटा गया उसका वो अपना सब कुछ लुटने देगा लेकिन फिर भी अपना एंकार नहीं लुटने देगा
00:21:51तेवर भी उसके वैसेयां जी नहीं वो तो धोखा हो गया सईयोग की बात है गलती से हम बरबाद हो गए ने आदमी तो हम बहुत होशी आ रहे हैं अभी देखना अब हम बस दो साल दो पहले से दूनी हम दौलत इकठा करके दिखाएंगे
00:22:07तो संपदा अहंकार के लिए अहंकार ही संपदा है बाकी सब संपदा है बाद में आती है उसकी वो किसी भी और संपदा का सौदा भी तो कर लेता है कर लेता है आपके पास बहुत महेंगी चीज है
00:22:2610 करोड की
00:22:30उसको बेच के 20 करोड की चीज मिलती है
00:22:34तो ले लेते हो कि नहीं ले लेते हो
00:22:35पर कभी किसी ने हंकार का सौधा करा है
00:22:39कि हंकार का सौधा कर रहा हूँ
00:22:40हंकार हटा रहा हूँ
00:22:41मुक्ते मिल जाए
00:22:42करोगे कोई नहीं करता
00:22:43संपदा जो कहा गया है
00:22:46उसको क्या मानना है हंकार, हंकार के लिए वही सबसे बड़ी संपदा है
00:22:49तो कह रहे हैं कि
00:22:53अनित्य से नित्य प्राप्त नहीं हो सकता
00:22:58पहली बात ये समझो ये लोग नहीं समझते
00:23:00इतना तो समझते हैं कि अनित्य से दुख मिल रहा है, बेचैनी हो रही है
00:23:03पर आज जो दो सूत्र दिये गए उसमें से पहला है और बहुत आवश्यक सूत्र है बहुत बढ़िया सूत्र है
00:23:09अनित्य से नित्य को प्राप्त नहीं करा जा सकता यही बात उस दिन आचारे नागारजुन बोल रहे थे याद
00:23:18कि जो स्वयम असिद्ध है वो दूसरे को सिद्ध नहीं कर सकता है वी बात वहाँ पर बॉत माध्यमिक धर्शन में बोली जा रही थी और यहाँ पर उपनिशद में वेधान्त में बोली जा रही है
00:23:34अनित्य न तो स्वयम नित्य को पा सकता न अनित्य साधन लगा करके वो नित्य को पा सकता
00:23:44अनित्य साधक है अहंकार ही अनित्य है अहंकार ही साधक है और वो साधन भी कौन से लगाता है
00:23:56अनित्य और ये दो करके हुश्यारी वो क्या उम्मीद लगाता है
00:24:03कि नित्य मिल जाएगा
00:24:05तो जितनी दुनिया में
00:24:07धार्मिक ववस्थाएं चल रही है
00:24:09उपनिशदों ने यहाँ पर
00:24:12शलोक के एक छोटे से हिस्से से
00:24:16सारी धार्मिक ववस्थाओं को तुरंद धुस्त कर दिया
00:24:20इसलिए तो जो व्यक्ति जितना
00:24:25हंकारी होगा वो और सब मार्गों की और भागेगा
00:24:29उपनिशद की और नहीं आएगा
00:24:30सीदे कह दिया
00:24:32न तुम्हें मिल सकता नित्य
00:24:36न तुम्हारे किसी साधन को
00:24:39तुम्हारी किसी विध्य को
00:24:41तुम्हारी किसी चतुराई को
00:24:43तुम्हारे किसी मार्ग को
00:24:44क्योंकि तुम भी अनित्य हो
00:24:47तुम्हारा साधन, तुम्हारा मार्ग, तुम्हारी विधी, तुम्हारी चतुराई
00:24:50तुम्हारा उपाय, ये सब भी अनित्य है
00:24:53और अनित्य के द्वारा नित्य को पाया नहीं जा सकता
00:24:55बात खतम हो गई
00:24:56अब इसके पलट आप क्या देखते हो दुनिया में
00:25:01मैं तो अनित्य हूँ और मेरा साधन भी अनित्य है
00:25:05पर मेरा दावा ये है कि मैंने परमात्मा पा लिया
00:25:09तुम अगर अनित्य हो तो तुमने जो साधन लगा करके पाया है
00:25:16वो परमात्मा भी अनित्य ही होगा
00:25:19हो सकता है कि सचमुछ तुमने कुछ पा लिया हो
00:25:22सपने देखने से किस यो कौन रोख सकता है
00:25:25कुछ आगया होगा तुमको सपना
00:25:27लेकिन सपने में तुमने जो कुछ भी पा लिया है
00:25:29परमात्मा, भगवान, ईश्वर
00:25:30वो भी फर्जी होगा तुम्हारी ही तरह
00:25:32जो वास्तविक है जो असली है परम है जो आत्मा है जो उसको न तुम पा सकते न तुम्हारी कोई विधी पा सकती ये सशक्त घोषणा है उपनिशदों की
00:25:50यो तुम कहते हो न कि मैं तो हूँ और मैं पालूँगा अपने इश्ट को नहीं पा सकते
00:25:55या मैं ऐसी विधी लगाऊंगा जो भगवान को भी बांध कर ले आएगी मेरे सामने
00:26:04न तुम न तुम्हारी विधी अनित्य से नित्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता
00:26:13तो यहां तक तो हर आदमी जानता है कि मैं अनित्य हूँ और दुनिया भी अनित्य है और
00:26:25बड़ी कस्मसाहाथ होती है, बहुत तडप रहती है, लेकिन भ्रम ये पढ़ जाता है कि अनित्य रहते रहते मैं नित्य को तुम अनित्य हो तो तुम्हारे सारे विश्य भी अनित्य होंगे, तुम पातो लोगे पर अपने ही जैसे किसी को पाऊगे,
00:26:47अनित्य बिलकुल पा सकता है, पर जिसको पाएगा वो भी अनित्य ही होगा, यह हम भूली नहीं पाते हैं, हम इस तल पर होते हैं, और हम सोचते हैं, हम इस तल पर रहते रहते आस्मान को पालेंगे, अब तुम उस तल पर यहां बैठे हुए हो, यहां बैठे हो, यहां बैठ
00:27:17पर इंसान ने अपने पहले दिन से यही भूल करिए
00:27:20मैं अनित्य हूँ या अनित्य के तल पर बैठा हूँ
00:27:23यहां बैटे बैटे मैं आस्मान को पा लूँगा
00:27:25पाई नहीं लूँगा किताबों में लिख दूँगा कि मैंने पा लिया
00:27:29और बड़ी-बड़ी मधार्मी के उस्थाएं चला दूँगा कि मैंने तो पा लिया
00:27:33मैं तो मैं ही हूँ और मैंने उसको पा लिया
00:27:36मैं मैं हूँ मैंने उसको पा लिया
00:27:42ओप निशद खेह रहे हैं
00:27:44अगर तुम यहाँ हो और वो वहाँ है तो तुम्हारा कोई मिलन हो नहीं सकता कभी
00:27:49क्योंकि ये तल उस तल तक पहुँच नहीं सकता कभी
00:27:53अगर सचमुच तुम यह हो और वो सचमुच वहाँ है तो तुम दोनों कभी एक नहीं हो सकते
00:28:00हटाओ ये सारा प्रपंच भरा दुएतवाद कि मैं यहां हूँ वो वहाँ है
00:28:05अगर सचमुछ तुम यहां हो वो वहाँ है
00:28:08तो तुम्हारा कोई मिलन कोई योग कभी संभव नहीं है
00:28:11क्योंकि अनित्त द्वारा नित्ते को प्राप्त नहीं किया जा सकता
00:28:14तुम क्या आसमानों की और हाथ जोड़ कर खड़े हो रहे हो
00:28:21तुम अगर जमीन पर हो तो आसमान को हाथ जोड़ने से कुछ नहीं मिलेगा
00:28:26क्योंकि जमीन द्वारा आकाश को कभी नहीं पाया जा सकता
00:28:28जमीन जमीन है आकाश आकाश है
00:28:30आकाश से तो आकाश ही मिल सकता है पर तुम्हारा हट ये है पहली तुम्हारी जिद पहला तुम्हारा दावा ये है कि तुम तो अनित्य हो तुम्हें अनित्य ही रहना है
00:28:45तो उपनिशा दिल तोड़ देते हैं सारे मारगों का कोई मारग हो दुनिया का सबका दिल तोड़ देते हैं
00:28:53क्याते अगर तुम अपने आपको भोशित कर रहे हो कि तुम अनित्य हो तुमने अपने आपको अनित्य माल लिया तो तुम्हारी कोई तरकीब कोई साधन कोई जपतप यंत्रमंत्र तुम्हारा कुछ काम नहीं आएगा क्योंकि तुम अनित्य हो अनित्य तो नित्य को कभी न
00:29:23बड़ी इरश्या और बड़ी हिंसा उठती है क्योंकि वहाँ जिंदगी पर लगाई गई है अनित्य के द्वारा क्या करके
00:29:36कि मैं अनित्य हूँ और मैं उसको पालूँ और विदान्त ने आगर कि एक बार में गोश्णा कर दी संभव नहीं है
00:29:43शुति कहती है आपका जो बैदिक धर्म है वो साफ साफ कहता है जो तुम चाहरे हो नहीं हो पाएगा
00:29:56तुम जिस तलके हो अगर तुम वाकई उसी तलके हो तो तुम्हें कुछ मिलेगा भी अपने प्रयासों से तो अपने इतलका मिलेगा
00:30:04तुम्हें मिल जाएगा प्रयास करोगे तुम मिल जाएगा पर जो मिलेगा वो तुम्हारी तरह फर्जी होगा
00:30:09तुम कमजोर हो करो बहुत प्रयास
00:30:14पर अगर तुम कमजोर हो सच मुछ तो तुम्हारे प्रयासों से तुम्हें और कमजोरी ही मिलेगी
00:30:20जो मिलेगा वो भी तुम्हारी तरह कमजोर होगा
00:30:22तो ये तो हो गया
00:30:31खंडन का वक्त अब्वे
00:30:35जो आज के श्लोक में पहली बात है
00:30:37वो जो लोकधर्म में माननिता चलती है
00:30:41उसके खंडन की है
00:30:42खंडन कर दिया
00:30:46तुम्हें कभी नहीं मिल सकते
00:30:47अगर वो तुमसे दूर है अगर तुमसे उपर है
00:30:51तुमसे अलग है तुमसे आगे है किसी और लोक का है
00:30:55तुमसे विरहद है ये है वो है जो भी है तो तुम्हें कभी नहीं मिल सकता
00:30:59अगर तुम छोटे से हो
00:31:01सीमित हो
00:31:03अलपग्य हो
00:31:05तो तुम जैसे हो तुम्हें वैसे ही कुछ मिलेगा
00:31:09तुम कर लो दावा कि तुमको इश्वर मिल गया है
00:31:12वो इश्वर भी तुम्हारी ही तरह संकुचेत और लगो होगा
00:31:14वो इश्वर भी तुम्हारा ही प्रतिरूप होगा
00:31:18तुम तुम हो तो तुम्हें जो मिलेगा तुम्हारी जैसा मिलेगा
00:31:22केचुए को चील से थोड़ी प्यार हो जाएगा यह हो जाएगा केचुए के लिए तो चील मौत जैसी है
00:31:36केचुए ने बड़ी लंबी यात्रा करी
00:31:40अपनी आउकात के हिसाब से केचुवा जितनी आत्रा कर सकता हो
00:31:45पर वो तो ऐसे 50 फीट भी चला जाये तो उसने अपनी नजर में
00:31:51बड़ी लंबी आत्रा कर ली
00:31:54केचुवे ने बड़ी लंबी आत्रा करी
00:31:56बड़ी मेहनत करी हम पूरी दुनिया घुमाए केचुवी ढूणने के लिए
00:31:59हमें बताया गया था फ़लानी जगह पर दिव्वे केचुवी मिलती है
00:32:07मादा केचुवा क्यों बोलूँ मज़े भी तो लगाने
00:32:11तो वो जो उसको दिव्वेता मिली
00:32:17जीवन भर घुमघाम के वो भी क्या होगी
00:32:22उसी की तरह केचुवा ही तो और क्या है
00:32:25हाँ इतना अंतर हो सकता है कि तुम केचुवा हो
00:32:29केचुवी ही है इतना ही अंतर हो सकता है
00:32:31तुम भूरा केचुवा हो वो नीला केचुवा है इतना हो जाएगा
00:32:35पर तुम्हारे तल पर तुम्हें जो मिलेगा वो तुम्हारे ही जैसा होगा
00:32:42तुम जैसे हो तुम्हारा सब कुछ वैसा ही होगा
00:32:47तुम्हारे इरादे वैसे होंगे
00:32:51तुम्हारा परिवार वैसा होगा तुम्हारा समाज वैसा होगा और तो और
00:32:56तुम्हारा इश्ट तुम्हारा भगवान भी तुम्हारे ही जैसा होगा जैसे तुम हो
00:33:01हिंसक लोगों का भगवान कैसा होगा अच्छा बताओ
00:33:08बहुत हिंसक होगा और दुनिया में सब लोगों ने अपने अपने भगवान बनाये हुए
00:33:12कुट्टे बिल्ली अगर अपने भगवान की रचना करें तो कैसा होगा
00:33:23बुद्ध महावीर कृष्ण कभीर जैसा होगा कैसा होगा उसका मुझ कैसा होगा कुट्टे जैसा होगा
00:33:31अनित्य द्वारा अनित्य को ही प्राप्त किया जाता है केचुए द्वारा केचुए को ही प्राप्त किया जाता है केचुए द्वारा कोई दिव्विता नहीं प्राप्त करी जा सकती हाँ वो नाम दे सकता हो कह देगा ये मैंने दिव्विता प्राप्त करी है पर जिव्वित
00:34:01सा पहले आगे लगा होगा क्या के चुवा दिव्यता
00:34:10दर रिलेटिव केंनोट रीच था एपसॉल्यूट
00:34:31अब क्या करें अब क्या करें फस गए हम तो अनित्य हैं और कह रहे हैं अनित्य के द्वारा नित्य को पाया नहीं जा सकता और शुरुआत हमने ये बोल कर करी थी कि अनित्यता में हमको बड़ी घुटन होती है
00:34:49अनित्यता में हमें घुटन होती है और अनित्य के द्वारा नित्य को पाया नहीं जा सकता तो हम तो फस गए ना अनित्यता में घुटन है अनित्य को नित्य मिल नहीं सकता तो अनित्य को क्या मिलेगा अनित्य माने घुटन को घुटन मिलेगी तो हम तो फस गए तो कुछ ह
00:35:19हो कहते हैं हमने यही तो कहा था कि अगर तुम अनित्य हो तो तुम्हें नित्य नहीं मिल सकता हमने यही तो कहा था वो जो अगर था वो जो यदि था वो जो इफ था अरे उसको तुम भूल गए
00:35:37अगर तुम अनित्य हो तो तुम नित्य नहीं मिल सकता पर अगर तुम्हारी अनित्यता ही जूठी हो तो
00:35:47अब बच्चे खुश हो गए
00:35:50सब उदास हो गए थे बच्चे रिशी बैठे थे बीच में सब उमीदें तोड़ दी थी अपना बैज गए थे कि अब तो लगता है लॉलीपॉप नहीं मिलेगी
00:36:02मैंने जो बोला उस पर पूरा गौर करो मैंने बोला अगर तुम अनित्य हो तो तुम्हारी अनित्यता तुम्हारे ही द्वारा
00:36:32पाला गया भ्रहम हो तो तो तो तो अब बच्चे ऐसे देख रहे हैं कोई नई बात तो आ रही है और बहुत खुफिया लग रही है उमीद की किरण तो आई है कि नित्यता भी मिल सकती है पर ये उसके साथ कहानी क्या बता रहे है क्या हम क्या हम अनित्य नहीं है अनित्य कै
00:37:02यहां से बात दूसरे सूत्र में सूत्र के दूसरे पक्ष में पहुंच जाती है
00:37:30मैंने अनित्य विशयों को अगनिको अर्पित करके नित्य को प्राप्त किया
00:37:43या मैं नित्य को प्राप्त हुआ
00:37:45नित्यता नहीं पाई जा सकती
00:37:53नहीं संभव है छोड़ दो तुम सारी उम्मीदें और ये सारी तरकीबें
00:38:00संसारी नित्यता पाना चाहता है संसारी जुगाड लगा करके पैसा बहुत सारा ले लूँ
00:38:08कुन्बा बहुत बड़ा खड़ा कर लूँ मकान बहुत बड़ा खड़ा कर लूँ तो मैं अमर हो जाओंगा नित्य हो जाओंगा
00:38:13और जो लोकधार्मिक आदमी होता है वो नित्यता पाना चाहता है धार्मिक vidhiyan लगा के
00:38:21धोलक बजाओ, मंजीरे बजाओ, कहीं नाचो, कहीं चलिये जाओ, कहीं समुद्र में डुपकी मारो, कहीं पहाड पर चड़ो, कहीं रेगिस्तान में भगो, कुछ करो, ये करो, वो करो, इतनी तो है, उपनिशत जैसे सुई छोटी सी,
00:38:51और लोक धर्म के बड़े-बड़े गुब्बारे, यहाँ पर मामला कैसा होता है, सुत्रवत होता है, ऐसे-इसे, इतने, वहाँ अब बड़ी-बड़ी बातें कथाएं, और उपनिशत ऐसे धीरे से आते हैं, और ऐसे पर मासूम तो चैहरा बना कैते हैं, मैंने तो, इतने नह
00:39:21बड़ी-बड़ी लंबी-लंबी आप फेकिये, पर हम तो एक छोटी सी बात बताने आये हैं, कि आप कितना भी फेक लें, कुछ भी उछाल लें, अनित्य को नित्य नहीं मिलने वाला, नहीं मिलने वाला तो नहीं, हाँ, अगर मिल रहा है, तो और खतरे की बात है, क्योंकि �
00:39:51पूज रहे हैं, और अब उसी को पूज रहे हो, तो बाबाजी वायरा तो उपनिशिदों की सुनेंगे नहीं, तो उपनिशिदों का नाम लेने से धर रहाते हैं, अब अच्छे बैठे हैं, छोटे-छोटे,
00:40:11ऐसी ही मुलाकातों में, ऐसी ही छोटी-छोटी बातों में, जनम लिया उपनिशिदों ने,
00:40:30यह से युवा सब शिश्य बैठे हुए हैं, और उनसे क्या हो रही हैं, बस बातचीत, उसी बातचीत का नाम उपनिशिदों होता है,
00:40:41तो अब बच्चों, में दुबारा कुछ उच्छा तो आ रहा है, पर उनको पता है कि यह रिशी ग्यानी तो ठीक हैं, पर शरार्ती बहुत है,
00:40:54अभी थोड़े देर पहले उन्होंने सुई लगाई थी, हमारे अर्मानों के सारे इन्होंने फुग्गे फोड़े थे, और अब कहा रहे हैं कि नहीं,
00:41:02एक यदि है तुम्हारे लिए लाइफ लाइन, अभी तुम बच सकते हो, क्योंकि नित्य न मिलना पका है, यदि तुम अनित्य हो,
00:41:18तो अब सब ऐसे शिश्य सुन रहे हैं, हाँ बताईए, आगे, आगे, रोचक तो है, पर घातक भी है, क्या बूलने जा रहे हैं, क्या बूलने आ रहे हैं,
00:41:29तुम्हें कैसे पता तुम अनित्य हो और अनित्य हो अगर तुम वही हो जो तुम अपने आपको समझते हो तो तुम्हारे लिए कोई उम्मीद नहीं है तुम अपने आपको अगर जीव ही मानते हो यही जो बैठे हो यहां पर तो तुम्हारे लिए कोई उम्मीद नहीं क्यों
00:41:59यह है उपनिशदों का खुफिया सूत्र, जो तुम अपने आपको मानते हो, अगर तुम वही हो, तो खेल खतम पैसा हजम, इस मरीज का आप कुछ नहीं हो सकता, इसको दवा नहीं, दुआ की ज़रूरत है, इसको घर ले जाईए,
00:42:22पर मरीज बच सकता है, अगर वो मरीज होई ना, अगर वो सचमुच मरीज है, तो उसको ऐसी दवाई लगी है, ऐसी बीमारी लगी हुई है, जो असाद्ध है,
00:42:40अगर वो सचमुच मरीज है, तो उसके बचने का कोई तरीका नहीं, अब तो वो एक ही तरीके से बच सकता है, कि शायद वो मरीज होई ना,
00:42:56आपको पता चले, कि कोई था, आपके सामने एक एक रोगी का केस आया, केस डिस्रिप्शन आया, उसमें लिखा हुआ है कि इसको
00:43:22AIDS, Cancer, TB एक साथ है, और ये 120 साल का है, और Cancer भी 3rd ग्रेड और 4th स्टेज का है,
00:43:40ठीक, ये आपके सामने आया, और आप एक साल बात पाते हैं कि एक जवान आदमी मस्त घूम रहा है, एक दुम,
00:43:52सुडॉल, हट्टा-कट्टा, और आप से कहा जाता है, देखा, वो तो बच गया, आप बोल रहे थे कि वो बच ही नहीं सकता, पर वो तो बच गया,
00:44:01इसका एक ही अर्थ है सिर्फ, बच तो नहीं सकता था, जो कुछ भी वो उसको माना जा रहा था, अगर वो वही था,
00:44:09एक सो बीस साल का बुढ़्धा जिसे एड्स और कैंसर और टीवी एक साथ हुआ है, तो बच नहीं सकता था, अगर वो बचा है तो इसका एक ही अर्थ है, क्या, वो वो था ही नहीं जो उसको माना जा रहा था,
00:44:22ये वेदान थे, तुम अपने आपको जो मानते हो वो जूट है, और अगर तुम वही हो जो तुम अपने आपको मानते हो, तो तुम्हारे बचने की कोई उमीद नहीं है, अनित्य को नित्य नहीं मिल सकता,
00:44:36जीव अगर वास्ताओं में जीव है, तो उसको मुक्ते नहीं मिल सकती, इसलिए फिर आचारे शंकर ने कहा, कि जीव और ब्रहम अलग अलग नहीं है, ना परह वो अलग अलग नहीं है, परमाने अलग होना,
00:44:52क्योंकि अगर वो अलग है तो जीव को कभी मुक्ति नहीं मिल सकती जीव यहां है ब्रह्म वहां है यहां से वहां की यात्रा संभव नहीं है अनित्य को नित्य प्राप्त नहीं हो सकता यात्रा संभव नहीं है आरी बात समझे
00:45:06तो क्या करें? बोले चलो अब फिर खोजते हैं कि क्या हम सुचमुच वही हैं जो अपने आपको मानते हैं
00:45:18ये विधी है
00:45:20दरपन विधी
00:45:23क्या विधी? दरपन विधी
00:45:26तुम अगर वही हो
00:45:31तो हटो सामने से तुम बरबाद हो
00:45:36और बरबाद हो और बरबाद
00:45:38रहोगे तुमसे क्या बात करनी है?
00:45:41तुम दवा की नहीं? दवा की दवा की ज़रूरत है तुम्हारा तो वह मामला तुमसे कोई बात में पर अगर तुम वह नहीं हो जो तुम
00:45:50अपने आपको सोचते हो तो बच जाओगे
00:45:54और खुश्खबरी यह देता है वेदान्त कि आप मेंसे कोई भी वो नहीं है जो आपने स्वयम को मान रखा है इसके अलावा कोई सूत्र नहीं है यही से सारी शुरुवात होनी है तुम वो नहीं हो जिसे तुम अपने आपको समझते हो
00:46:10तुमारी पहचान ही तुमारा भ्रम है मूल तो कैसे पता करें क्या है दरपन दरपन ही विधि है
00:46:24खुद को देखो आत्म वलोकन आत्म ग्यान उसके अलावा कोई विधी नहीं हो सकती
00:46:31बाकी सब विधियों को उपनिशदों ने सिरे से नगार दिया है
00:46:34कह रहे हैं ये फिजूल कामों में पड़ मत जाना
00:46:37कलपना के गुबारे उड़ाने से कुछ नहीं मिलने वाला
00:46:44नित्यता मिलती है अनित्यता के हृदय में
00:46:55ठीक वैसे जैसे आग मिलती है धुएं के दिल में
00:47:06कहीं बहुत सारा धुआ ओ तो आग कैसे खोजोगे फिर
00:47:11धुएं के भीतर घुजाओ एकदम भीतर एकदम भीतर
00:47:15धुएं के दिल में आग मिल जाएगी
00:47:16यह जो तुम अपने आपको माने बैठे हो इसी में प्रवेश कर जाओ
00:47:33पर यह साहस का मार्ग है
00:47:37एक मात्र लेकिन यही मार्ग है जो साहस नहीं दिखा सकता उसके लिए फिर तरह तरह के पाखंड हैं पाखंडियों के बहुत मार्ग हैं उन पे चल लो
00:47:48साहस का मार्ग क्यों है क्योंकि अनित्यता हमें कैसी लगती है बुरी और मार्ग कहता है कि अगर तुम अपने आपको अनित्यता समझते हो
00:47:59तो अपनी अनित्यता का सामना करो गुजरो अपनी अनित्यता में से हो करके यह रही तुम्हारी अनित्यता इसी में से होकर गुजरो तो तुम्हें अपने ही केंद्र में नित्य मिल जाएगा तुम्हारे हिर्दय में अगर नहीं है वह तो और कहीं नहीं मिल सकता तुम्हें �
00:48:29आपन के सब भिशय मिलेंग डूपर वालेgrass Алगा रंग वाले छवियों वाले नाम वाले लिंग वाले तुम्हारे लिंग है तुम अपनी इश्थ को भी एक � g dharn करा देते होा तुम रंग भी कपड़े पहनते हो तो अपने इश्थ को भी सब आप के कर पहना देते हो बहार त
00:48:59कुछ दवाई के रूप में आपको क्या बोल दिया गया है जाके अपनी ही छाया को निहारना ठीक हो जाओगे क्या
00:49:09तो क्या कह रहा है कठुपनिशद प्रमुकपनिशदों में से कठुपनिशद
00:49:19बहुत सारे सूत्र हैं कठुपनिशद के जो बिल्कुल निर्देश वाक्य जैसे माने जाते हैं ब्रहम वाक्य
00:49:32शुति प्रमाण जब कि यह को शुति प्रमाण देना हो तो आप यह कठुपनिशद को उध्रत करें
00:49:47तो आपने बिल्कुल सटीक काम करा है और यदि आपने कठुपनिशद को उध्रत कर दिया है तो उसके बाद नियम यह है कि सामने वाले को चुप हो जाना चाहिए कठुपनिशद से उपर फिर कोई और सत्ता नहीं है
00:50:01शुत्य प्रमाण से उपर कोई और प्रमाण नहीं है
00:50:06कोई आकर परंपरागी बात करें आपने उसके सामने शुत्य रख दी उसे चुप हो जाना चाहिए
00:50:11कोई परंपरा शुत्य के आगे पानी नहीं भर सकती
00:50:14कोई स्मृत्य से कुछ लेकर के आजाए
00:50:17स्मृतियों के भी बहुत सारे ग्रंथ हैं कोई स्मृतिय से कोई दोहा चौपाई कुछ ले करके आ
00:50:21जाए या श्लोखी ले करके आ जाए आप उसके सामने का ठूप निशद का वचन रख दें उसे चुप हो आना चाहिए
00:50:28कि शुतिय से उपर कुछ नहीं होता हुआ
00:50:30पारी बात समझ में जो कुछ भी तुमने स्वयम में अनित्य माना है मैंने अनित्य विशयों को अगने को अरपित किया मैं रित्य को प्राप्त हुआ
00:50:55जो कुछ भी अनित्य है लेकिन जिसको तुमने अपना विशय बना रखा है उसे अगनी को अरपित कर दो नित्यता तुम्हारे भीतर से ही उद्भूत हो जाएगी
00:51:10तो नित्यता नहीं पाई जाती अनित्य द्वारा दौड लगा करके
00:51:17अनित्य जब स्वयम को अगनी में ज्होंक देता है अपने सब विशयों के साथ तो जो बचता है वो है नित्य
00:51:27अनित्य जब स्वयम को अपने सब विशेयों के साथ अग्नी को अर्पित कर देता है तो जो शेश रह जाता है वही नित्य है
00:51:39जब अहंकार में एक इमांदार बेचैनी होती है तो वो कहता है कि मैंने जितने जूठे साधन जूठे उपाय जूठे विशेय पकड़ रखे थे इनको मैं अब आग में जोगता हूँ
00:52:09यही मुक्ते का मार्ग है एक मात्र और कुछ नहीं सच नहीं खोजना है जूठ को चूले में डाल देना है और कोई तरीका नहीं है सच नहीं खोजना होता सच तो तुम ही हो
00:52:24तुम हमसे बड़ा कोई सच नहीं है
00:52:29तुम कहां सत्य को खोजने जा रहे हो मों को कहां ढूंडरे बंदे है मैं तो तेरे पास में तुम कहां चल दिये ढूंडने के लिए सत्य को तुम ही सत्य हो लेकिन तुम वो
00:52:47जिसने न जाने कितने जूट और कितने कपट और कितने भर्म के चोले डाल रखें तुम प्यास की तरह हो और एक एक परत जूट की है और एक एक परत जब उतरती है
00:53:06तो आखों से बड़े आशू आते हैं
00:53:07किस-किस ने छीली है प्यास समयलो तुम खुद को छील रहे हो अपनी पहली परत उतारी फिर में दूसरी परत उतारी फिर यही तरीका है बस
00:53:26नहीं तो यह तो बताईए प्यास के भीतर क्या है
00:53:34बाहर बाहर तो तुम हो प्यास में बाहर बाहर तो तुम हो जब तक भीतर पहुचेंगे तो सारे छिलके उतार की पहुचेंगे तो मने भीतर पहुचेंगे तो किसको उतार दिया होगा तुमको तो जब तक भीतर पहुचेंगे तो भीतर कौन है भीतर क्या है यह पूछने
00:54:04जिसने कोई छिलका नहीं उतारा न, वही सब डरपोक लोग कहते हैं, वो तो ठीक है छिलके तो उतार देंगे, पर भीतर मिलेगा क्या, ये तो बताओ, कोई अग्रेम आश्वस्ती तो दो, ये प्रश्न पूछने वाला ही बाहरी छिलका है, ये जो प्रश्न करता है, इसी को �
00:54:34भीतर पहुंचो गई उतारता जाएगा, शान्ती है, मौन है, फिजूल कोई सवाल वहां बचता नहीं है,
00:54:56पुझ में आ रही है बात ये, छिलके उतारे कैसे जाते हैं, बहुत महनत पढ़ती है नहीं,
00:55:04रिशी कहते हैं, बहुत आसान है, छिलका अपने आप उदर जाता है,
00:55:15तो रिशी कहते हैं, न देखना ही अज्ञान है, और देखना ही ज्ञान है,
00:55:34न देखने के लिए जिम्मेदार होता है आँख का छिलका,
00:55:44चलो सब लोग अपनी अपनी आँख पर छिलका चड़ाओ, चड़ गया न छिलका, तो यही अज्ञान है, देखो आँख पर छिलका चड़ा हुआ है,
00:55:54चड़ा हुआ है, सब के चड़ा है, यही अज्ञान है, बताओ छिलका उतारें कैसे, लोग उतर गया,
00:56:04कितना असान है, कितना असान है, आँख पर यह जो चड़ा है न यही छिलका है,
00:56:13जान बूझ करके जो प्रत्यक्षा उसको भी तुम देखना नहीं चाते, जान बूझ करके जूट में जिन्दगी बिता रहे हुआ है, यही छिलका है, क्यासे उतर गया, लो उतर गया,
00:56:24उतारना, तो सहज है, प्रश्ण तो उल्टा है, तुमने चड़ा कैसे रखा था आज तक, छिलका स्वेम नहीं चड़ने आता,
00:56:38तुम जगे हुए हो, लेकिन आख बंद करके रखना चाहते हो, पलक गिरा कर रखना चाहते हो, श्रम तो उसमें लगता है, या जब तुम जगे हुए हो, तो पलक उठाने में श्रम लगता है, बुलो, लेकिन देखो हम चतुराई में कैसे अपने प्रश्ण को रचते हैं,
00:57:08ऐसे उतारो, खोल लो, ये चड़ा हुआ, ये उतर गया, ये चड़ा हुआ, ये उतर गया, जस्ट सी, बस देखो सामने, कुछ और नहीं करना, जस्ट, जस्ट माने सहज, सहज, सहज माने सह और ज, ज माने जन्म लेना, और सह माने किसी के साथ, किस के साथ, स्वभाव के साथ ह
00:57:38जन्म लेने वाला, तो उसका अभ्यास नहीं करना बढ़ता, देखने का कोई अभ्यास नहीं, देखने की कोई विधी नहीं होती है, नहीं पर बताइए छिलका उतारने कोई विधी है, छिलका उतारना माने देखना, और देखने की कोई विधी नहीं होती, क्योंकि देखना स�
00:58:08बात समझ में आ रही है तो अनित्य बने बने नित्य को खोजना बड़ी मेहनत का काम है क्योंकि अनित्य तो तुम
00:58:17हो यह नहीं तो पहली मेहनत तो तुम ने यह करी कि जबरदस्ती मेहनत करकर के अनित्य बना रहूंगा
00:58:27और फिर दूसरी मेहनत यह करी कि अनित्य बने बने नित्य को खोजूँगा
00:58:35यह ऐसा है कि जैसे तुमने अपनी जेब में कोई चाभी डाल रखी है
00:58:49और फिर कह रहे हो मुझे खोजनी है और खोजने कैसे जा रहे हो कह रहे हो मैं तो लंगड़ा हूँ
00:58:58मैं तो लंगड़ा हूँ
00:59:02जबरदस्ती अनित्य बने हो जबरदस्ती लंगड़े बने हो खुद अपनी टांग पीछे बांध के लंगड़े बने हो
00:59:08और अब पूरी दुनिया में खोजने निकले हो वो उस चीज को जो तुमारी जेब में है पहली मेहनत किस चीज में कर रहे हो लंगड़ा बनने में तुम कृत्रिम लंगड़े हो तुम लंगड़े नहीं हो
00:59:21जो सचमुझ लंगड़ा होता है उसे कृत्रिम टांग लगाई जाती है
00:59:26और तुम वो जो लंगड़े नहीं हो पर तुम कृत्रिम रूप से लंगड़े बने हो
00:59:31ऐसा ही थोड़ी हम जुन्नू लाल कहनाते हैं
00:59:36उपलब्द है जुन्नू हो पाना बड़ी महनत से जुन्नू बनता है कोई
00:59:40पहले तो टांग पीछे बांधी है और अब कूद कूद के वो चीज़ खोजर है जो तुमारी जेब में है
00:59:46आम आदमी की जिन्दगी महनतों के अलावा किस चीज़ में कटती है
00:59:52और तुम पैदा नहीं हो सच पुछो उस तल की उस प्रकार की महनत करने के लिए जो तुम करते हो
00:59:58ये सारी महनत क्यों करी जाती है मालूम है अपनी अनित्यता को सुरक्षित रखने के लिए
01:00:03अपने जूट को बचाने के लिए महनत करता है आम आतनी पूरी जिन्दगी मजदूर की तरह गढ़े की तरह काम करता है सिर्फ इसली ताकि उसके जूट किसी तरह से सुरक्षित रहे और नहीं कोई वज़ा है महनत करने के
01:00:15तुम ऐसों को दिखाने के लिए कमाते हो जिनसे तुम्हारा कोई नाता नहीं
01:00:32तुम ऐसों को खुश करना चाहते हो जिनको ना तुमसे प्यार है और सचमुश तुम्हें भी उनसे कोई प्यार नहीं पर इसके लिए तुम मेहनत बहुत कर रहे हो
01:00:45तुम्हें एक ऐसी नौकरी पाना चाहते हो जिसमें तुम्हारा दम घुटने आला है पर तुम महनत बहुत कर रहे हो
01:00:50आम आदमी की सारी महनत बत उसके जूट को कायम रखने के लिए होती है
01:00:55मैं तो कहा करता हूँ ध्यान के लिए बड़ा अच्छा है
01:00:58कभी खड़े हो जाओ अपने घर की छट पर और सुबह का ट्रैफिक देखो आठ से नौ के बीच का
01:01:06और उसमें तुम्हें इंसान की दिन्दगी की सारी कहानी दिख जाएगी
01:01:10ये जितने जा रहे हैं सब के चेहरे उतरे हुए होते हैं
01:01:15और उससे भी जादा उतरे हुए चेहरे देखने हैं तो शाम का साथ से आठ का ट्रैफिक देख लेना
01:01:20तुम्हें दिख जाएगा कि इंसान माने क्या
01:01:24एक गधा जो मेहनत करे जा रहा है करे जा रहा और ऐसी मेहनत कर रहा है जिससे उसे कुछ नहीं मिलना है
01:01:34वे एक दिन एसे मेहनत करते गरते गरते मर जाएगाbab दुनिया में कोई प्रणी इतनी मेहनत नहीं करता इतना
01:01:41करता है अप Progress नीआ बेवजभ थी मेहनत कम से कम कोई नहीं करता है
01:01:45सारी मेहनत किस लिए क्योगत है तो असमभव को समभव बनाना जाते हो
01:01:49तुम अगर कुछ ऐसा कर रहे होते जो करना संभव भी होता तो थोड़े प्रयास के बाद या कितने भी प्रयास के बाद काम पूरा तो होता कभी ने कभी तो पूरा होता क्योंकि संभव होता तो पूरा भी हो जाता तुम्हें अनंत महनत इसलिए करनी पड़ती है क्योंकि त
01:02:20तुम अपने मुर्दा पौधों में फूल खिलाना चाहते हो जो खिल नहीं सकते हो
01:02:28तुम करे जाओ महनत करे जाओ महनत करे जाओ महनत
01:02:36जैसे सहारा रेजिस्तान में कोई किसान
01:02:40furry – खुद अपने इकंदों पर रखके खल चलाता हो
01:02:44करे जाओ मेहनत महां घास का एक्तिनका नहीं पैदा होगा आ
01:02:51कि अरब से अंच में आरहा कि क्यों लोकधर्म में आशा बहुत बड़ी बात
01:02:55होती है क्योंकि आशा नहीं होगी तो आवा आदमी मर जाएगा कि आशा नहीं होगी तो
01:03:00तत् instr होगा आशा माने भविष्य तत्य माने वर्तमान अशा नहीं होगी तो
01:03:05तuuuu और तत्र ये है कि तुम जो कुछ कर रहे है इसे तुम है कुछ नहीं मिल सकता क्यों कि दो तुम
01:03:10रहे हो वो नियम विरुद्ध है उसको अस्तित्तों नहीं वर्जित कर रखा है जो तुम चाह रहे हो
01:03:22उसकी कोई संभावना नहीं कोई शक्यता नहीं
01:03:25इतनी मेहनत मत करो
01:03:42और ऐसी मेहनत अगर कर रहे हो तो यहीं बोलो कि मूर्खों
01:03:45कम सकम इस प्रकार की मेहनत करने के बाद नैतिक श्रेश्ठता का दावा तो मत ही ठोको
01:03:53हमने इतनी मेहनत करी है देखा इतनी मेहनत करी है तो और बड़े कदे हो क्यों करी है
01:04:00वो यह ऐसे ही मिले कि आख बंद करके चलता आ रहा है और दस जगह से उसका मुझ तूटा हुआ है
01:04:09और नाक खुर्ची हुई है और घुटने लहु लुहान है ऐसे चल रहा था जिन्दगी पर अपना छिलका चढ़ा करके और फिर आके कहरा देखो बेटा हमें बहुत अनुभव है जिन्दगी में और हमने बहुत खून भाया है
01:04:24सुना करो हमारी हम बहुत बड़े हैं हाँ आप हो बहुत बड़े पर आप बहुत बड़े हो
01:04:48आरी बात समझें क्यों आख बंद करके चल रहे हो क्यों नहीं छिलका उतार रहे है
01:04:53खोलनी ही तो है आख
01:04:56जिन्दगी कैसे माफ करेगी तुमें
01:05:00आख वाला अंधा बन कर जिये हो
01:05:11ग्रंथ भी सब जीवन के निश्पक्छ अवलोकन से ही उतरते हैं
01:05:18जो जिन्दगी को ही नहीं देख सकता आख खोल करके
01:05:21ग्रंथ भी उसकी सहायता नहीं कर पाएंगे
01:05:24क्योंकि स्वयम ग्रंथ
01:05:26जिन्दगी की इमांदार जमीन से उठते हैं
01:05:32रिश्यों को बताने थोड़ी आया था
01:05:35उन्होंने जीवन देखा और उस जीवन से उपनिशद खड़े हो गए
01:05:40जो जीवन के तथ्यों का सामने ही नहीं करना चाहता आख बंद करके चलना चाहता है
01:05:50कोई ग्रंथ कोई गुरू उसके काम नहीं आएगा
01:05:57ग्यानियों से आगर पूछो कैसे प्राप्ति कैसे होती है तो कहते हैं
01:06:16घूंघट के पट खोल रे तो हिपिया मिलेंगे
01:06:21हो गई प्राप्ति
01:06:27पीया तो दूर ही हैं नहीं तुमने घूंघट का ट डाल रिखा हटा
01:06:34मिल जाएंगे उसकी जगे तुम सम सांत कर रहे हूँ
01:06:37लोकधार में कांड कर रहा होँ पता नहीं कहां कहां क्या क्या खूदवांद कर रहें
01:06:43कि आरी बात समझें तुम अनित्य हो नहीं
01:06:57अनित्यता ही माया है अनित्यता ही थोखा है जो तुमने अपने साथ खेल लिया है
01:07:12और कैसे अनित्य बन गए तुम किसका संकीत भी हमको श्लोक में मिल जाता है
01:07:25तुम अनित्य बने हो अनित्य विशयों को बिना जाचे परखे पकड़ करके
01:07:33और अहंकार के साथ ही यह नियम है वो जिस विशय को पकड़ता है उसकी प्रक्रति को धारण कर लेता है तुम अनित्य विशय को पकड़ोगे तुम भी अनित्य हो जाओगे
01:07:51कि कहते है ना इस यू विल लव दसकाई यू विल गोविंस
01:08:13प्रक्रति को भी धारण करना पड़ेगा।
01:08:43और कीचण को धारण करोगे तो पिगीवत हो जाओगे।
01:09:13मुक्त का अभिमानी मुक्त है और बंधन का अभिमानी से अर्थ है जिसको अपना विशय बना लिया तुमने वैसे ही हो जाओगे।
01:09:31और भी जगह पर है।
01:09:38जिससे जुड़ोगे वैसे ही हो जाओगे।
01:09:50तो यह समझाने के लिए शुरुति में एक खाल्पनिक भ्रिंगी कीट का उदाहरण देते हैं।
01:10:00जिस चीज को देखने लगता है वैसे हो जाता है। वह जिसको अपना विशय बना लेता है।
01:10:14जिससे जुड़ जाता है। जिसको एक टक देखना शुरू कर देता है वह वैसे हो जाता है।
01:10:22औस लिओं यहां पर कह रहें यहां पाता है कि अपने अनित्य विशय को अगनी को अर्पित कर दिया, क्योंकि मैं अनित्य बनाई कैसे था।
01:10:33listeners are सञ्त पालों करते है तो सब और इन विशय को अगनीम डालने क्या मतलब होता है।
01:10:41होता है कि घरद्वार जला दो कि हाँ है कि मैं घर जा रहा आपना लिया लोग अठी हाथ जो घर जा रहे आपना चले हमारे साथ यह क्या कि अगनी को अर्पित करने क्या मतलब है
01:11:02कौन सी अगनी को ज्यान ही अगनी है
01:11:06कि जिस भी विशह से संबंधित हो रहे हो उसको अच्छे से जान लो
01:11:17कि पिर जो होना होगा अपने आप होगा कि संबंधित होने में बुराई नहीं है आंख बंद करके संबंधित होने में बुराई है
01:11:26अहंकार तो संबंधित हो गई हम कह रहे हैं आकाश संबंध बनाओ ना संबंधित होने में बुराई नहीं है हो जाओ आकाश संबंधित
01:11:34आख बंद करके कीचण में गिर करके कीचण से ही रिष्टा बना लेने में बुराई है
01:11:43तो बुराई कीचण में भी नहीं थी बुराई आख बंद करने में थी
01:11:48आख बंद करोगे तो कहीं भी गिरोगे
01:11:49आँख खोलो जिन भी विश्यों से संबंध है उनसे जरा तीखे कड़े गहरे सवाल करो
01:12:08उनकी प्रक्रति को पर्खो उनके वादों का परीक्षण करो
01:12:16सब विश्य तुम्हारे जीवन में कुछ वादा करके आते हैं
01:12:22मुझे अपने जीवन में आने दो मैं तुम्हें ऐसी ऐसी चीज़ें दूँगा
01:12:25पूछो कि क्या इसने अपना वादा रखा क्या ये अपना वादा रखने की क्षमता भी रखता है
01:12:32नहीं रखता, अगर नहीं रखता तो तुम्हारी जिन्दगी में कर क्या रहा है
01:12:37जो कुछ भी अपने जीवन में लाओ
01:12:50आँख खोल कर लाओ
01:12:55आँख बंद रहेगी तो अनित्य आएगा और अनित्य आएगा तो तुम्हें भी अनित्य बना जाएगा
01:13:01तो फिर उधर उधर घूमते फिरोगे अगर अगर अपने आपको आधुनिक बोलोगे और बहुत
01:13:08उधार चित्य का बोलोगे तो तुम दुनिया भर की चीजों के पीछे घूमोगे कि नित्यता मिल जाए
01:13:20कि सहा हम तो बहुत एडवांस हैं उन्नत हैं अगड़े हैं
01:13:31तो हम क्या कर रहे हैं हम यह वो टेकनोलोजी में जा रहे हैं कि क्या पता वहां कुछ हमें मिले जो हमें चैन देई दे
01:13:37और अगर थोड़ा दखियान उसी किसम के हो गए पिछड़े किसम के हो गए तो बाबा जी के पास घूमोगे कि बाबा जी हमें नित्य दिलवा देंगे
01:13:45अनित्य तुम बन गए एक बार तो फिर तुम्हें नित्य कोई नहीं दिलवा सकता है नित्यता पाने का यही तरीका है कि जान लो कि तुम अनित्य हो ही नहीं जूट मूट अनित्य बने बैठे हो आंख बंद कर ली है इसलिए व्यर्थ चीजों को पकड़े बैठे हो
01:14:07हर चीज जो जीवन में है उसके प्रते एक प्रश्न रखो
01:14:17मुझे तुझसे कोई दुश्मनी नहीं पर तु यह बता दे
01:14:22कि तु मेरे साथ क्यों है क्योंकि तेरा मेरे साथ होना मेरी जीवन ऊर्जा बहुत खींचता है
01:14:31वो कुर्सी है कुर्सी अच्छी अपने लिए अच्छी है पर मेरी नजर में क्यों है
01:14:39मेरी नजर में आ रही है तो मेरी जिंदगी उस पर जा रही है
01:14:43पूछो कुछ भी
01:14:47मेरी इंद्रियों के क्षेत्र में क्यों है
01:14:52कुछ भी मेरी उर्जा मेरे ध्यान के क्षेत्र में क्यों है
01:15:00मान अस्पटल पर मेरे कुछ भी लिखा हुआ क्यों है
01:15:11किसी भी विशय का विचार मन में क्यों है
01:15:21पूछो लड़ नहीं रहे न विशय से न विचार से बस पूछ रहे हैं कि तेरे होने से
01:15:27मुझे क्या मिला मुझे तो नित्य की तलाश है तू मेरे मन में बैठा है तो क्या मुझे नित्यता मिल रही है
01:15:36क्फा से कबजा कर रखाती है तो हटाना नहीं पढ़ता ज्ञान अगनी है ये जान लेना ये ज्ञान हो जाना क tut दिया
01:16:00माने उस विशय को तुमने ग्ञान की अगनी से भस्म कर दिया वो विशय सवय ही हट जायेगा, तुमें लडाई झघडा नहीं करना है ग्ञान रहा है जानना हटाना जाना नहीं कि मुक्त हो गए जिसकी विएर्थता को जान लिया, अब उस से लडाई झघडा नहीं करना प�
01:16:30झाल झाल
Be the first to comment