- 1 hour ago
Category
📚
LearningTranscript
00:00:00जिन्दगी बे रौनक थी तो पिक्चर देखने आई थी और पिक्चर बे रौनक निकली तो पॉपकॉर्ण चबाने लगे और सारा पॉपकॉर्ण चबाने के बाद भी भीतर रौनक आने पाई और बिचारा पॉपकॉर्ण वो तुमें क्या रौनक दे सकता है और जिन्दग
00:00:30पिशे को जितने लोग छोड़ देते हैं, वो सब धार्मिक कहलाते हैं, ऐसे नहीं धार्मिक हो याते, इतना सस्ता नहीं है धार्मिक होना, अगर लंगोट भर भी तुम पहने हुए हो, ठीक है, और बाकी पूरी दुनिया त्यागे हुए हो, तो भी मोक्ष नहीं मिलना है, ब
00:01:00करके भी बात बनेगी, नहीं, स्व में इस्थित होना ही है मुक्ति
00:01:08अश्टा उक्रगीता तिरहुए अध्याय का पहला श्लोक, पहला ही शब्द है, अकिंचन
00:01:30किंचन मने थोड़ा सा, अकिंचन मने थोड़ा सा भी नहीं, थोड़ा सा भी नहीं, तो दोरे अर्थ रखता है किंचने आपर, मैं थोड़ा सा भी नहीं हूँ, मेरा थोड़ा सा भी नहीं है, दोनों अर्थ एक ही है,
00:02:00क्योंकि मेरे के बिना मैं चलता नहीं, मम के बिना अहम चलता नहीं।
00:02:11तो अकिंचन मने कुछ भी जरा भी वास्ताव में मेरा नहीं है।
00:02:24आसकते तादात में मुझे किसी से नहीं रखना है।
00:02:27यह यहां पर अकिंचन का आरता है। इसको अच्छे से समझे लें।
00:02:30अकिंचन थोड़े से पर ध्यान को केंद्रित करा है।
00:02:50कि यह जो हम कहते हैं थोड़ा सा तो थोड़ा सा तो इतना सा तो।
00:02:57बात यहां ज्यादा या कम की है यह नहीं।
00:03:04बात ज्यादा कम की नहीं। बात यह नहीं कि तुमने कम कर लिया।
00:03:09विशयों से अपना रिष्टा संख्या कम कर लिया। जी उमने विशयों की तो तुम अध्यात्मिक हो गए नहीं।
00:03:20बात विशयों की नहीं है। पहला ही शब्द कह रहा है बहुत कम करके भी बात बनेगी नहीं।
00:03:29अकिंचन अकिंचन मने थोड़ा सा बहुत कम बहुत कम करके भी बात बनेगी नहीं।
00:03:38वो सब कुछ है जो तुम बुरा जानते हो त्याज्य जानते हो उसको बहुत कम कर लोगे तुभी बात बनेगी नहीं और इसी के समान अंतर वो सब कुछ जो तुम बहुत श्रेष्ठ जानते हो बहुत अच्छा बहुत उचा जानते हो विश्यों में वो सब अपने जीवने ब
00:04:08अकिंचन बात बनेगी नहीं विशयों की संख्या या मात्रा न्यून या अधिक करने से
00:04:19क्योंकि बात विशयों की संख्या या विशयों की मात्रा की है ही नहीं
00:04:26बात ही है नहीं कि कितने विशय पकड़ लिए हैं कितने विशय छोड़ती हैं आगे क्या कहते हैं
00:04:32कि यह जो अकिंचन होने से जो स्वास्थ होता है और स्वास्थ से के आश है अपने भीतर इस्थित होना आत्मस्थ होने को ही स्वस्थ होना कहते है
00:04:52स्वस्थ होना माने यह नहीं कि बीमारी नहीं लेगी हो यह खासी जुखाम नहीं है तो अभी स्वस्थ है
00:04:59बुखार उतर गया हां आप स्वस्थ है यह सब साधारन व्योहार में ऐसे प्रयुक्त होता है
00:05:09अध्यात्मे स्वास्थे का बड़ा विशिष्ट गहरा सुन्दर मतलब होता है
00:05:20स्वस्थ स्वमे स्थित और वो बिलकुल वही है जिसको हम कहते हैं आत्मस्थ या ब्रहमस्थ
00:05:28वही है स्वस्थ
00:05:30तो स्वमे स्थित होना ही है मुक्ति
00:05:42विशयों को गोल गोल घुमाना कम ज्यादा करना पकड़ना छोड़ना इसमें धार्मिकता नहीं है
00:06:00विशयों पर बड़ा ध्यान केंद्रत करना ये मुक्तिका मारग नहीं है
00:06:10मुक्तिका मारग है स्वमे स्थित होना और स्वमे स्थित कैसे हुआ जाता है होने की जरूरत ही नहीं है
00:06:18क्योंकि स्व माने वो जो तुम हो तो स्व में इस्थित होना
00:06:25प्रियास करना विधि पूछना यह तो बात ही विचितर है
00:06:36इस्थित होने का प्रियास तो स्व की परिभाशा का विरोध करने लग जाएगा
00:06:42सौ में एस्थित होने का प्रियास करोगे
00:06:48तो सो की परिभाषा
00:06:51का ही
00:06:52निशेद हो जाएगा
00:06:54सो की परिभाषा गया है
00:06:55सो मने आत्मा
00:06:57वो जिससे
00:07:00हटना संभव ही नहीं है
00:07:03वो जिससे
00:07:06हटा ही नहीं जा सकता
00:07:07उसे सुव कहते हैं, सुव भाव जिससे हटा ही नहीं जा सकता, सुव मने वो जो मैं हुई उससे तो हटा जा जा ही नहीं सकता, और तुम कहा रहे हैं प्रयास करना है,
00:07:25प्रयास करने की बात करते ही तुमने क्या कह दिया, किसी इसका प्रयास करना है, वापस आने का न, और परिभाशा कहती है उससे हटा नहीं जा सकता, और प्रयास कहता है हट गए है वापस आना है,
00:07:43स्वस्थ होने का प्रयास स्वास्थिकी परिभाशा के विरुद्ध जाता है यह बात समझ में आ रही है तुम जिससे हटी नहीं सकते
00:07:59अगर तुम उस तक पहुचने का प्रयास कर रहे हो तो यह तो परिभाशा जूठी थी
00:08:08यह प्रयास फिजूल है अब परिभाशा तो जूठी नहीं है तो प्रयास ही फिजूल होगा
00:08:17तो कैसे इस्थापित हो सोव में आत्मस्थ हुआ कैसे जाता है विशयों की दिशा से नहीं हुआ जाता
00:08:29यह हमको पहले ही शब्द में कह दिया गया ठीक है न कि
00:08:37निवनाधिक की दौड लगाने से त्यागने ग्रहन करने का खेल खेलने से आप आत्मस्थ नहीं हो जाएंगे
00:08:52हमने का चलिए भी माने लेते हैं समझे तो नहीं है पर समझने की प्रक्रिया में थोड़ी देर के लिए आपकी बात को मानकर यहां रख दिया
00:09:02ताकि उसका परिक्षण किया सके हां च्छा लाईए दीजिए तो हमसे कहा जा रहा है कि विश्यों के साथ खिलवाड करके उच्छल कूद करके फुलाने विश्य को पालो तृपते मिल जाएगी शांते मिल जाएगी नहीं मिलेगी
00:09:24फ़लाने विश्य को जितने लोग छोड़ देते हैं वो सब धार्मिक कहलाते हैं ऐसे नहीं धार्मिक हो जाते हैं इतना सस्ता नहीं है धार्मिक होना तो विश्यों की जोड़ तोड़ से तो धार्मिकता सिध्ध होने वाली नहीं तो फिर कहां से होने वाली यह धार्मिकता
00:09:54करने से छोरने से घटाने से बढ़ाने से यदि मैं आत्मस्त कैसे हो जाओ तो हमने का
00:10:02साब आप ठोके रहे हैं कि आत्मस्त के ससे करें पर प्रेयास करना ही परिभाशह को नकार दे
00:10:12तो प्रयास भी फिजूल है आत्मस्त होने का अब फस गए
00:10:17विशेयों के साथ कुछ कर नहीं सकते और जो कुछ करा जाता है विशेयों के साथ ही करा जाता है
00:10:24आपने सिंदगी में कभी भी कुछ करा है तो उसके लिए विशेय चाहिए
00:10:28विशय ना हो तो कर्म नहीं हो सकता
00:10:31आप चलते हैं तो किसी दिशा में प्रत्थवी के उपर
00:10:36विशय चाहिए ना
00:10:38आप पकड़ते हैं तो कुछ पकड़ा होगा
00:10:41आप बात करते हैं तो कोई सामने होगा
00:10:44विशय चाहिए ना
00:10:47सब कर्मों में कोई विशय चाहिए
00:10:49तो विश्यों के साथ उठापटक करने से मुक्ति नहीं सिध्ध होती ये शुरू में कहा
00:10:59फिर ये भी हमने कहा कि आत्मस्त होने का मुक्त होने का प्रयास भी वियर्थी है
00:11:10क्योंकि प्रयास कर रहे हो अगर तुम आत्मस्त होने का तो इसका तो तुमने अर्थ यह दे दिया है कि सुभाव से तुम छिटके हुए हो और उसमभव नहीं है तो फिर करें क्या क्या करा जाता है बहुत-बहुत ध्यान से सुनिये
00:11:26मुक्ति खोजी नहीं जाती बंधन छोड़े जाते हैं और यहां तेसे बिंदों पर आते ही सत्र शुरू हुए अभी दसी मिनट हुए होंगे मिर्ची लग जाती है
00:11:46क्योंकि उम्मीद हम सबकी यह रहती है सबकी माने मैं भी शामिल हूं भाई आप जैसे वैसे ही मैं कि बंधन पकड़े-पकड़े हम मुक्ति को भी पकड़ ले
00:12:08मुक्ति को भी हम विशे ही बना देते हैं हम कहते हैं बंधन तो रहना चाहिए क्योंकि उसी के साथ आदत है उसी के साथ सुविधा है उसी के साथ अतीत है उसी के साथ परंपरा है जान पहचान है बंधन तो नहीं है हाँ इसी बंधन के साथ में अगर आप बताएं कि मुक्
00:12:38धर्म के नाम पर हर जगा यही चला है, खुद को मत देखो, अपने बंदरों को मत छोड़ो, मुक्ति के लिए और पांसाथ विशे पकड़ के यह इस तरीके का कुछ कर्म कर लो, इस तरह की कोई क्रिया कर लो तो तुम्हें मुक्ति मिल जाएगी, यही चला है न, और हम कह रह
00:13:08जूला जूला छोड़ दो कि कभी विशे उपर, कभी तुम उपर, कभी विशे उसे बिलकुल जोली भर ली, और कभी कहा कि नहीं सारे विशे हटा दो, ऐसे नहीं होता, बात विशे हों की है यही नहीं, मुक्ति क्या विशे हों को चाहिए, फसा कौन हुआ है, फसे तो त�
00:13:38के साथ करके क्या साबित करना चाहते हो कि कुछ हो जाएगा, कुछ नहीं होगा, तो बताइए और किस दिशा से प्रयास करें, कोई प्रयास नहीं जलेगा, मुक्ति कहीं प्रयास से मिली नहीं सकती, वो तो, सोभाव है, वो तो है ही है, तो फिर क्या करना होता है, बंधन छ
00:14:08बड़ी प्यारी चीज होती है
00:14:11हम अपनी बिमारी खुद है
00:14:16और आप यदि खुद ही बिमारी हो
00:14:22बिमारी आपकी पहचान बन गई हो
00:14:24तो बिमारी प्यारी हो जाएगी ना
00:14:26कि नहीं हो जाएगी
00:14:30हम avis
00:14:38हम दीवारें खड़ी करते हैं, दीवारें खड़ी होती है तो आम तोर पर उसको कैद कहा जाना चाहिए, और उसको क्या बोल देते हैं, ये तो मेरा नीड है, घोसला है, ये है बंधनों से हमारा रिष्टा, तुम सोचो, खाली जगह है, स्थान है, आकाश है, सब कुछ खाली
00:15:08बहुत एक रूप से हटा दो, मानसिक भी बाते करो गरतो, बंधन अमारे लिए सब कुछ हो जाते हैं, एक एक चीज जिससे आपका परिचय है, नाता है, वो एक दीवार ही है, वो एक बंधन ही है, और उससे अपना पूरा, पूरी हस्ती जड़ जाती है, तो उसको छोड़
00:15:38तो फिर हम आगरह क्या करते हैं, हम कहते हैं, हम जैसे हैं, हम ऐसे ही रहने तो, हम जेल के भीतर हैं, कोई दिक्कत नहीं, पंद्रह अगस्त पर आजादी की पिक्चर चला दो बढ़ियां वाली, पता ना जेल के कैदियों को भी पंद्रह अगस्त को देश भक्ती की फिल्म �
00:16:08हम बहुत खुश हो आते हैं
00:16:11जेल से बाहर नहीं आना है
00:16:14जेल के भीतर आजादी की पिक्चर देखनी है
00:16:16ये है हमारी धार्मिक्ता
00:16:19हमारा अध्यात्म जिसको मैं लोकधर्म कहता हूँ
00:16:21जेल की सलाखों को ही
00:16:25रंग दो तीन रंगों से
00:16:27और कहतो ये ही तो मेरी आजादी है
00:16:31ये ही तो आजादी है मेरी
00:16:35यहाँ दिवारे ही दिवारे है
00:16:46सिर्फ दिवारे हैं तत्थिये हैं कि वो दिवारे है
00:16:50पर कोई बहुत डरा हुआ आदमी हो
00:16:56और उसने अपने यहां ऐसे चार दिवारे घड़ी कर लिये हो तो उसे लगता है कवच है फिर ही नहीं कहागा कि दिवारे यहां कहागा मेरा सुरक्षा घेरा है देखो यहां आप मुझे कोई धानी नहीं दे सकता
00:17:10तो इसलिए बंधन नहीं थोड़ेंगे नहीं छोड़ेंगे नहीं छोड़ेंगे नहीं छोड़ेंगे बंधन थोड़ेंगे यहां मेरा कवच है भाई यह तुम्हें कैसे पता कि बाहर तुम्हें हानी हो जाएगी तुम्हें कैसे पता नहीं पर ऐसा लगता है तुम्हें कैसे
00:17:40हुआ वो तुम्हें याद नहीं वो तुम्हें याद नहीं क्योंकि बहुत बहुत पीछे से
00:17:48कि तुम प्रभावित हो अनुकूलित हो संस्कारित हो
00:17:53तुम्हें याद भी नहीं कि तुम्हारे भीतर माननेताइं किसने डाली कब डाली तुम बहुत छोटे थे और जब छोटे नहीं भी थे थोड़े बड़े थे तो भी तुम्हारे दिमाग में माननेताओं का कहानियों का प्रवेश चोरी छुपे हुआ तुम्हें पता ही नहीं
00:18:23एक प्रकार का व्यवहार करते देखा
00:18:25इससे तुम्हारे भीतर क्या माननेता बैठ गई
00:18:27तो कुछ बातें साफ साफ
00:18:32खुले आम मौखिक रूप से
00:18:33बताई गई तो भीतर घुज गई
00:18:35बाकी बातें तो बताई भी नहीं गई
00:18:37बाकी बातें हमने
00:18:39हवाओं से सोख ली
00:18:53अभागार बन गया है वो मारा अश्यस्थल बन गया है वो दिवारे पर हमारे लिए वो कवच बन गई है बंकर है भाई बंकर
00:19:11को जमीन के नीचे शैकड़ों फिट कॉंक्रीट के नीचे बड़े बड़ा बंबी गिरेगा तो हमें कुछ नहीं होगा
00:19:19सोच咎 तुम्हें पूरीव सिंदगी एक बाहुत गयरी सुरंग में बेतानी पड़े मोत भरोसा ए सरड़ा यहां कि
00:19:31बड़े से बड़ा बंबी गिरेगा तो तुम्हें कुछ होगा नहीं
00:19:35अभी पता नहीं कि कुछ होगा कि नहीं होगा वो अलग बात है
00:19:40कुछ होगा कि नहीं होगा वो बात भी तब है जब पहले कुछ बंब गिराने वाला हो
00:19:44कुछ भी पक्का नहीं है कि बम गिरेगा कि नहीं गिरेगा
00:19:49और गिरेगा तो यह तो सुरक्षा कम बना रखा हो काम आएगा किनी आए कुछ पक्का नहीं है
00:19:53पर ये � Photograph अपर यह दरूर पक्का है कि अब तुम पूरी जिंदगी उस सुरंग में रहने वाले हो
00:19:58सुरक्षा के नाम पर
00:20:00मुक्ति पाने जैसा कुछ भी नहीं होता
00:20:07और मैं कितना भी बोलनू
00:20:09मैंने जितना बोला हो
00:20:11उतना ही मुझे फिर बोलना पड़ेगा
00:20:13और जितना मैंने उसके बाद बोला हो
00:20:15उतना ही मुझे फिर बोलना पड़ेगा
00:20:16तो भी बात बनेगी नहीं
00:20:19बात तो बस उसके लिए बनेगी
00:20:21जो अब उप चुका है
00:20:22बात उसके लिए बनेगी
00:20:25जिसकी बेईवानी पूरी तरह तूट चुकी है
00:20:27मैं तो बूलता ही जा रहा हूँ
00:20:35वही बात
00:20:36अपने से बाहर की
00:20:41कोई खोज किसी काम की नहीं है
00:20:43अपने से बाहर, अगर तुम कुछ खोज रहे हो, तु बस खुद को धोखा दे रहे हो, तुम्हारी सारी कमस्या तुम्हारे ही भीतर है और वो छुपी हुई नहीं है, वो किसी ऐसी चीज के रूप में है जो तुमने पकड़ रखी है, पकड़ रखी है क्योंकि उसमें तुम
00:21:13तो जो बाहर की दुनिया को छोड़ करके कहते हैं, हम सब विशयों से मुक्त हो गए, तो हम मुक्त हो गए, ऐसों पर घ्यानी बढ़ीया तंजकस रहे हैं आज, होटे है न बाहर, उनके लिए मुक्ते का यही मतलब होता है, कि हमने सांसारी को चोड़ रखा है, वो गएगे
00:21:43छोड़ रखा है हम धार्मे का आदमी है न चाय कॉफी थोड़ी पीते हैं और क्या छोड़ रखा आपने वो हम पता नहीं क्या और क्या छोड़ते हैं भाई हम पिक्चर देखने नहीं जाते हैं हमने छोड़ रखा हम धार्मे का आदमी है हमने प्यास लेसन छोड़ रखा है ह
00:22:13वाले, लंबी-लंबी छोड़ोने वाले, और जनक और अश्टा उक्रजा से भी सदा से रहे हैं, तो तंज कस रहे हैं, बाबा जी बोले हमने सब त्याग दिया, अब हमें मुक्ति मिल जाएगी, तो यहां क्या कहा जा रहा है, कह रहें, लंगोट त्यागी है, क्या, यह श्लो
00:22:43पर भी तुम पहने हुए हो, ठीक है, और बाकी पूरी दुनिया त्यागे हुए हो, तो भी मोक्ष नहीं मिल ला है, क्योंकि विशयों के ग्रहन या त्याग से मुक्ति का कोई संबंध है नहीं, तुम सब विशय त्याग दो, अन्ततर बस कौपीन पर आ जाओ, कौपीन मने
00:23:13वाली लंगोट होती है, बस इतनी कि अब उससे छोटी नहीं हो सकती, बेर मिनमम, अगर तुम उस पर भी आ जाओ, तुम सारे विशय दुनिया के छोड़ दो, इतना तुम छोड़ दो कि बद वही पर बचे, तो भी तुम्हें मुक्ति नहीं मिलेगी, क्योंकि बात विशय
00:23:43बात उसको त्यागने की है, जो जूटी माननेता के मारे विशयों में सुख ढूंडता है, उसको त्याग दो विशय तो अपने आप अट गए, विशय नहीं बुरे है, विशयों से तुमने जूटी आशा लगा रखी है, विशयों के प्रति अज्यान के कारण वो है बंधन
00:24:13बंधन है, इसने तुम्हें कह दिया कि कोई भी विशय बंधन है, कोई विशय बंधन नहीं है, बशर्ते तुम उस विशय को जानते हो, विशय बंधन नहीं है, विशय के प्रति तुम्हारा अज्यान बंधन है, तुम विशय को जान लो, तुम मुक्त हो, नहीं विशय को �
00:24:43और कुछ नहीं छोड़ना होता है विशय नहीं अज्ञान छोड़ना होता है अच्छे से जान लो कि सामने वह क्या है वस्तु वस्तु रहे विशय न बन जाए वस्तु विशय कब बन जाती है जब अहंकार उसमें आशा रखने लगता है पूरा जो तुम्हारा प्रहांध है �
00:25:13और वस्तुओं में कोई समस्या नहीं है तुम भी वस्तु हो भाई तुम भी वस्तु हो भाशा में वस्तु का बड़ा अच्छा अर्थ होता है वस्तु वस्तुतव वास्तविक यह सब एक साथ चलते हैं
00:25:33वस्तु माने वो जिसमें सच्चाई है वस्तु माने वो जिसमें सच्चाई है पर वस्तु के साथ जैसे ही तुमने आशा लगा दी माने तुम वस्तु की सच्चाई से अब अनभिग्य हो गए वस्तु में जैसे ही आशा जोड़ जाती है तो वो विशय बन जाता है वस्तु ध
00:26:03विशह है और आशा हमेशा अज्ञान से ही उठती है कौन सी आशा है मैं उस आशा की नहीं बात कर रहा है कि इतने बज़े आपकी ट्रेन आनी है तो आप आशा कर रहे हैं कि आएगी वो आशा ठीक है हम बात कर रहे हैं अहंकार जनित आशा ये आशा कि कोई भी वस्तु आ करक
00:26:33ली कि ये मेरी जिंदगी में आएगी मैं इससे संबंद बनाऊंगा और ये मुझे पूर्णत्या दे जाएगी ये आशा जूठी है आप उस वस्तु को नहीं समझ रहे थे आप स्वयम को नहीं समझ रहे थे दो तरफा इस अज्ञान का नतीजा निकला आपने आशा लगा ली
00:27:03को है चाहता विशयों को विशय सम त्याग तू क्यों कि देखो वस्तु को त्यागने की नहीं बात करी है विशय को त्यागने की बात करी है और विशय में क्या-क्या है वस्तु और आशा आशा माने अज्ञान अज्ञान माने अहंकार
00:27:21तो किसको त्यागना है अज्ञान को त्यागना है और अज्ञान तो कुछ होता नहीं अंकार के पास क्या ज्ञान की कमी होती है
00:27:32सब ज्ञानी घूम रहे हैं पनवाडी के हाँ चले जाओ वहां आठ ज्ञानी मिल जाएंगे कोई है जो ज्ञानी नहीं हो
00:27:38जितना जितना जितना जितना जितना जितना जितना जितना जितना जितना जितना जितना जितना जितना जितना जितना जितना जितना जितना जितना जितना जितना जितना जितना जितना जितना जितना जितना जितना जितना जितना जितना जितना जितना जितना जितना जितना �
00:28:08को ज्यान कहते रहते हो यही ज्यान है जो बोज बनता है वास्टविक ज्यान कोई धारण करने की बात होती ही नहीं है
00:28:19कि वास्टविक ज्यान तो आग जैसा होता है
00:28:22जिसको जलाता है उसको जलाने के बाद स्वयम भी नहीं बचता है
00:28:30तुम उसे धारण कैसे करोगे
00:28:32कभी देखा है कि लकडी में आग लगी हो लकडी मिट गई आग बाकी है
00:28:38तो वास्तविक ज्यान और जूठे ज्यान का आग और लकडी का रिष्टा है
00:28:46वास्तविक ज्यान और जूटे ज्यान का आग और लकडी का रिष्टा है
00:28:51लकडी छोड़ दो हो सकता है 500 साल पड़ी रहे
00:28:56उपने आप पड़ी रहेगी
00:28:59जैसे मानने ता है 500 साल पुरानी चल रही है चल रही है वो लकडी है
00:29:03वो लकडी है
00:29:04वो 500 साल पुरानी होगे भी सुरक्षित हो सकती है
00:29:08पर वास्तविज्ञान 500 साल नहीं चल सकता
00:29:12वास्तविज्ञान 500 साल नहीं चलेगा
00:29:18500 साल पुरानी गोई आग देखी आज तक
00:29:22पर 500 साल पुरानी लखड़ी देखी होगी
00:29:25500 साल पुरानी आग हो सकती है बड़ा मुश्किल है
00:29:29वो भी तभी होगी जब सूरज ऐसा हो कोई
00:29:35कितना इंधाने इतना इंधाने गया भी जली रहा है
00:29:37पर वो भी वहाँ भी समाप्ति हो जानी है
00:29:39आपको पता है न सूरज हमारा क्रमश्य बुझ रहा है
00:29:44एक दिन सूरज जो है एकदम गाया भी हो जाना है
00:29:47वास्तविक ज्यान आग की तरह होता है
00:29:52उसका संग्रहन भंडारन नहीं हो सकता
00:29:56वो आता है बस जूठे ज्यान की लकड़ी को जलाने के लिए
00:30:00और जैसे जूठा ज्यान राक होता है
00:30:03वैसे ही वास्तविक ज्यान की आग भी मिट जाती है
00:30:07बचती नहीं है तो तुम उसको कहीं जाकर व्यक्त नहीं कर पाओगे
00:30:10कि मेरे पास वास्तविक ज्यान है और ये रहा
00:30:12हाँ नकली ज्यान तुम व्यक्त कर सकते हो
00:30:15लकडी देखा सकते हो दुनिया भार को यह रही लकडी यह रही लकडी आग तो बस उतनी देर तक देखा पाओ को जितनी देर तक वो है और आग उतनी देर तक रहेगी जितनी देर तक लकडी है
00:30:26बात आ रही है सा मुझे में
00:30:30तो वो सब कुछ जो आप ग्यान के नाम पर पकड़े हो
00:30:34उसी को त्यागना मोक्ष है
00:30:40और वो ऐसे नहीं त्याग पाऊगे
00:30:42हाँ मैंने त्याग दिया
00:30:43उसको त्यागा जाता है उसका जीवन्त परीक्षन करके
00:30:47मैं ये मान के बैठा हूँ पर जिन्दगी तो कुछ और दिखा रही है
00:30:51मैं बेमानी क्यों करूँ
00:30:53अब दिख गया तो छूट गया
00:30:56ऐसे छूटा ग्यान हटता है
00:30:59आप जो माने बैठे हो उसमें और जिन्दगी में
00:31:03सदा एक कॉंटरिक्षन होगा विरोधभास होगा बेमेल होंगी दोनों बातें
00:31:07आप कभी गौर नहीं करते इस बात पर
00:31:10आपकी माननेता और आपका जीवन कितना विसंगत है
00:31:13कभी गौर करा
00:31:14कभी गौर करा
00:31:20फलाने से मुझे बड़ा प्रेम है
00:31:22और फलाना मुझे से बहुत प्रेम करता है
00:31:25अच्छा एक बात बताना सब चाहता शक किस पर करते हो
00:31:28तर सज़वता हो
00:31:31तर सज़वता हो
00:31:33अख़बार में वे ग्यापन आया था
00:31:38लोकल
00:31:41कि
00:31:43किसी का वाटसैप हैक करना हो तो ऐसे करें
00:31:48किसी का WhatsApp है करना हो बोले बस उसका मुबाइल उठाईए उसमें ऐसे ऐसे करिए ये घुमाईए ये डाल दीजिए एक OTP आएगा उसको कहिए OTP बताए और हो जाएगा है उसका सारा WhatsApp आप पढ़ पाएंगे
00:32:00कि ये कहा जा रहा है उसका मुबाइल उठाईए किसका alerts ये कि साकते हो फिरोसी घर मों ये किसकी बात हो रही है किसके WhatsApp को Hack करने की बात हो रही है
00:32:13घुटे च्कश्री अपनी पत्नी अपनी बेती अपना बेटा
00:32:16और किसकी बात हो रही है यह यह सब वही है जिनके प्रति तुम्हारा प्रेम का दावा है तुमने और किस पर इतना भयानक शक करा है बताना
00:32:28माननेता तुम्हारी ये रहती है कि हमें प्रेम है हमें प्रेम है जिन्दगी तुम्हारी शक से भरी हुई है तुम्हारी माननेता और तुम्हारी जिन्दगी कितनी विसंगत हैं कितनी बेमेल हैं कितनी विरोधावासी हैं तुम्हें दिखनी रहा जैसे ये देख लेते हो मान
00:32:58है वो कलपना है वो माननेता है वो जूठा दावा है उसे गिरना पड़ेगा पर फिर बड़ी विकट इस्थिति खड़ी हो जाएगी अगर प्रेम नहीं है तो फिर ये सबाधान-प्रदान क्या चल रहा है इतने रुपए-पैसे क्यों लिए दिये जा रहे हैं ये साथ-साथ
00:33:28तो फिर हम कहते है नहीं-ँशन क्यों आने के प्रेम नहीं है और हम दो नावों पर एकसाथ सवारी कर लेते हैं प्रेम भी है और शक अचन्स और असुरक्षा भी है-सबसे आदा असुरक्षत किसको लेकर रहते हो
00:33:42जिनको अपना खहते हैं और किसको लेके
00:33:51ये एक उधारण है ऐसे सौधारण मिल जाएंगे
00:33:58आपने कोई भी माननेता आपने भीतर डाल रखी हो
00:34:00कोई भी माननेता आप पाओगे कि आपकी जिन्दगी ही
00:34:05आपकी माननेता का खोखलापन रोज जाहिर करती है
00:34:10कोई नहीं चाहिए
00:34:15मेरे जैसा जो आपकी स्क्रीन पर बैठ कर बोले कि
00:34:18अपनी माननेता को जहां चो टटो लो परखो
00:34:21माननेता खोखली है
00:34:22आपकी ही जिन्दगी रोज प्रकट करे दे रही है
00:34:25कि माननेता जूटी है
00:34:27और जिन्दगी जो दिखा रही हो तथे है
00:34:31मननेता तो भीतर है कलपना है
00:34:33तथ्य और कलपना टकराएं
00:34:34तो निश्यत रूप से तथ्य ही सही होगा
00:34:36अगर तथ्य और कलपना
00:34:39एक दूसरे के विरुद्ध जा रहे हो
00:34:42बेमेल हो रहे हो
00:34:43तो कलपना ही जूटी होगी
00:34:45तथ्य तो जूटा नहीं है
00:34:46ऐसे जूठा ग्यान त्यागा जाता है जूठा ग्यान मने कल्पना
00:34:54अगर हम कभी किसी को अज्ञानी कहें तो इसका अर्थिये नहीं है कि उसके पास ग्यान की कमी है
00:35:00अज्ञानी है माने उसके पास धारणा माननेता बहुत है
00:35:04बहुत गुबारे के अंदर बुलबुले के अंदर जीता है वो
00:35:09नजाने क्या भीतरी गुल खिलाता रहता है
00:35:15कहता है ऐसा तो होता ही है
00:35:16और इस बात को भी लेके दर्जन उबार मैंने कहा है
00:35:20ऐसा तो है ही
00:35:22ये सबसे अधार्मिक वक्तव्य है
00:35:25ऐसा तो है ही
00:35:27या ऐसा तो होता ही है
00:35:33ये बड़ा अधार्मिक वक्त अबे है
00:35:35है
00:35:39है
00:35:41ये सिर्फ किसके साथ लगा जा सकता है
00:35:44आत्मा के साथ, सत्य के साथ
00:35:47बाकी है नहीं
00:35:49प्रतीत होता है
00:35:51है नहीं
00:35:53तो मैं बिल्कुल
00:35:56चकित रह जाता हूँ ऐसों को देख करके
00:35:59जो बड़े आत्मी विश्वास के साथ कहा करते है
00:36:03देखो ऐसा तो है ही, या ऐसा तो होता ही है
00:36:05कितनी प्रबल धारणा है
00:36:08मानिता को लेकर कितनी गहरी जिद है
00:36:12कि न सिर्फ माने बैठे हो
00:36:15बलकि जनता में उद्गोश कर रहे हो
00:36:20क्या ऐसा तो है ही ना ऐसा तो करना ही होता है
00:36:25ऐसा तो होता ही है अरे तुम्हें क्या पता क्या है होता ही है
00:36:29नहीं होता है किया तुम्हें क्या पता तुम्हें कैसे पता कि तुम्हें लग रहा है तुमने कभी लगक रहा है वह त Value मिक ये टीज ले
00:36:45खरश्रशन
00:36:50यहीं फसे हुआ है अच्छे समझ लेना जिन चीजों को ले करके बड़ा विश्वास है वहीं तुम्हारा बंधन है एक-एक विश्वास जूठा है उसका परीक्षन करो डरो मत
00:37:05कुछ नया ताजा सुंदर ही मिलेगा एक नियम बता देता हूं अगर इमानदारी से कुछ छूट रहा है तो जो छूटा है उससे कुछ बहतर ही अपने आप रकट हो जाएगा लालज दे रहा हूं पर ऐसा होता है
00:37:32तुम्हारी इमानदारी के कारण अगर तुमसे कुछ छूट रहा है इसको अच्छे से लिख लो रेखांकित करके लिख लो
00:37:40तुम्हारी इमानदारी के कारण अगर तुमसे कुछ छूट रहा है
00:37:46तो जो छूट रहा है उससे कुछ बहुत बहुत बहुत बेहतर प्रकट हो जाएगा
00:37:53अपने आप तुम्हारे बिना चाहे बिना प्रयास करे
00:38:10तो घबरा मत जाना दुखी मत हो जाना कलपना की घोड़े मत दोड़ा देना हम भविष्य की बड़ी चिंता करते हैं हम कहते हैं फलानी चीज है
00:38:24इमांदारी रखी तो ये चीज छूट जाएगी फिर मेरे भविष्य का क्या होगा तुम्हें वही दिख रहा है जो अभी है तुम्हें वह थोड़ी दिख रहा है जो अभी नहीं है पर होगा
00:38:40बीर्ज के टूटते वक्त किसको अंदाजा हो सकता है कि इसमें से
00:38:46कितना भारी रिक्ष खड़ा होने वाला है हो सकता है तुम्हें तो बस ये दिखाई देता है अभी मेरे पास क्या था चोटा था बीज था वो भी तूट गया और बीज तूटे नहीं तो पेड़ कहां से आए
00:38:59बताना कि ये बीज को सुरक्षित रखे किसने पेड़ो गा लिया आज तक पर हम कहते हैं देखो ये बीज है इसको रखे रहो आज बीज है कल ट्योड़ा बीज होगा
00:39:16मैं इसको चक्रवृद्धि ब्याज पर लगा दूँगा मैं बीज का निवेश करूँगा इन्वेस्टमेंट करूँगा पाँच साल बाद एक बीज से दो बीज हो जाएंगे मैं बहुत बढ़ियां इन्वेस्टर हूँ
00:39:29इसे चलता है ना अरे भाई जिसको हम अन्न समझ करके खरीदते हैं उसाब क्या होते हैं वास्तव में वह बीज ही तो होते हैं
00:39:41तो हम बीजों की भी क्या करना चाहते हैं खरीद फरोगत हम कहते हैं देखो इसको बेचोंगा तो इतना मुनाफ़आ हो जाएगा
00:39:50हो भी सकता है
00:39:52आपेठेके जरहा नहीं बेचो नहीं उसे टूटने दो
00:39:58और अगर उसको टूटने दो तो कितने की मुणाफ़ा होगा
00:40:04करोड प्रथिशят का
00:40:06करोड प्रतिशय इचाहब करोड को
00:40:08होगा की नहीं होगा
00:40:09लेकिन उसको देखके लगता ही नहीं है कि ये मुझे करोड़ प्रतिश्यत का मुनाफ़ा दे सकता
00:40:15मैं लगता है इसको सम्हाल के रखो
00:40:17इसका निवेश करो, इसका व्यापार करो, इसका आदान प्रदान करो
00:40:22तो पांच एक साल में एक बीज से दो बीज को चला जाओंगा
00:40:26और ये कोई छोटी बात है, सो प्रतिश्यत बढ़ुत्री हो गई
00:40:30ये सूत्र याद रहेगा, इमानदारी की वजह से जिन्दगी से कुछ छूट रहा है
00:40:43तो जो कुछ छूट रहा है, उससे बहुत कुछ बहतर जीवन में प्रवेश भी कर रहा है
00:40:49बस जो प्रवेश कर रहा है, जरूरी नहीं है कि वो तुम्हारी उमीदों के अनुसार हो
00:40:57जरूरी नहीं है कि उसकी शकल तुमें पहले से पता हो
00:41:01ज़रूरी नहीं है कि वो अपना परिचाय पहले से देखर के आए कि देखो मैं हूँ बहतर वाला
00:41:07ये नियम है लेकिन अस्तित्तों का जीवन का
00:41:12वियर्थ यदि जा रहा है तो जाते जाते वो अपने से कहीं बहतर कुछ उगाड़ कर जाएगा
00:41:20संद्य है कि कोई बात नहीं प्रतीक्षा भी नहीं करनी पड़ेगी
00:41:27वियर्थ जितना जाता जा रहा है अपने से बहतर कुछ वो लाता जा रहा है वो हरता जा रहा है
00:41:34हाँ व्यर्थ से आपका परिचे था तो साफ दिखाई देता है कि जिससे परिचे था वो तो चला गया
00:41:40जो नया आ रहा है उसको आप जानते नहीं तो आपको पता ही नहीं चलता कि वो आ गया
00:41:45तो लगता है कि ये तो सौधा नुकसान का हो गया
00:41:51अडे कुछ चला गया और आया कुछ नहीं
00:41:55जो गया है उससे बहुत बहतर अपने आप आ भी चुका है
00:41:58बस जो गया है उसके नाम से शक्ल से आप परिचित थे
00:42:03और जो आया है चुकी वो नया है इसलिए आप उसे पहचानी नहीं पा रहे हो
00:42:08कि कितनी अदभूत चीज चीवन में आ भी गई है
00:42:10समय उस नए के आने में नहीं लगता
00:42:15समय उसको पहचानने में लग सकता है
00:42:19हो सकता आपको 5 साल लग जाए पहचानने में कि अरे 5 साल पहले से इतनी अदभूत चीज जीवन में आ चुकी है मैंने अब पहचाना
00:42:28मैंने इसको शेह ही नहीं दिया मैंने धन्यवाद नहीं दिया मैंने आभार नहीं दिया मैंने प्रेम नहीं दिया
00:42:34मैंने नहीं दिया पर ये जो चीज है ये मेरे जीवन में पांच साल पहले ही आ चुकी है और पांच साल पहले क्यों आ चुकी क्योंकि जो व्यर्थ था मैंने उसको जाने दिया
00:42:46जाने दिया
00:42:47मैं ये भी नहीं क्या रहा हूं अच्छे का परणाम अच्छा होता है
00:42:53परणाम की भी बात नहीं है
00:42:55परणाम तो भविश्य में होता है परणाम तो आगे होता है
00:42:59परणाम के लिए तो प्रतिक्षा करनी पड़ती है धीरज रखना पड़ता है
00:43:02न प्रतिक्षा करनी है न धेर धर न है डविश्य की बात है कोई
00:43:09कि जैसे जैसे वेर्थ आपके जीवन से हटता जाता है समझित ठीक वैसे वैसे जो किसार्त शैवन दी भी कर दो कि फैसरे करने तो कोई बाहरी चीज करेगी प्रवेश करेगी
00:43:23प्रवेश नहीं करता क्या करता है प्रकट होता है उसको आप जल्दी पहचान लो तरह आपके लिए अच्छा है लेकिन आप पहचानो ना पहचानो उसने अपना गाम कर दिया
00:43:35उसने कहा कि तुमने जो भेर्थ था उसको विदाई दी लो
00:43:42मैंने अपना चेहरा दिखा दिया लो में आ गया अब तुम चाहे मुझे पहचानो पहचानो आधर दो मुल्य दो प्रेम दो ना दो वो तुम्हारे उपर है
00:43:57समझ में आ रही यह बात है
00:43:59इधर उधर दोड मत लगाईए कि मैं जैसा हूँ ऐसे ही रहूं और चीजों को पकड़ू छोड़ू उससे नहीं होगा
00:44:13बात चीजों की नहीं है बात फिर से बोलो मानने ताउं की है
00:44:17बात विशय की नहीं है, बात विशया सक्ति की है, भने धारणा क्या है, विचार क्या है
00:44:38इसको पकड़ने छोड़ने दे कुछ नहीं मिल जाएगा, छूटी दी चीज है वस्तु है ये वस्तु, वस्तु, वस्तु, वस्तु
00:44:45इधर जो बने बैठे हो उसका परीक्षन करना जरूरी है
00:44:50उसके परीक्षन के लिए हमने क्या बोला कैसे होता उसका परीक्षन
00:44:55देखो कि जिंदगी में अनुभव क्या हो रहे हैं अनुभव ही बता रहा है
00:44:59आम आदमी हम सब सुबह से शाम तक कम से कम दस्बीर बार तो रोज धोखा खाते हैं
00:45:10छोटे बड़े दुख पाते हैं पाते हैं कि नहीं कभी क्रोध आता है कभी जटका लगता है कभी कुछ होता है
00:45:19होता है न यह सब किस बात की निशानिया है कि तथ्य तुम्हारी धारणा से मेल नहीं खा रहा है नहीं तो न दुख होता न क्रोध होता न धोखा होता
00:45:33और जहां कहीं भी तत्थे तुम्हारी धारणा से मेल नहीं खा रहा है इमंदारी का तकाजा है धारणा से कहो
00:45:43तू जुठी है तू जा अभी अभी जिन्दगी के तत्थे ने कुछ और साबित कर दिया तू जूट साबित कर दिया तू जा
00:45:53बता रही है समझ में हैं
00:45:59आप भीतर से बिल्कुल जुन्नुलाल बनकर बैठे हो अब बाहर से बड़े त्यागी बन गए हो उससे कुछ नहीं होगा
00:46:15लिगोटी धारियों पर क्या वेंग कर गए देखो बूल रहे हैं कि
00:46:19कौपी इंधारी होने पर भी आत्मस्त होना दुरलब है क्योंकि बात इसकी ही नहीं कि तुमने बहुत कपड़े पैने या कम कपड़े पैने बात इसकी है कि तुम बने क्या बैठे हो
00:46:36बात इसकी है कि तुम बने क्या बैठे हो बिलकुल ऐसा जरा सा कौपी धारन करने वाला भी भीतर से महा अग्यानी हो सकता है
00:46:51और बहुत सारे कपड़े धारन करने वाला भी महा अग्यानी हो सकता है
00:46:55तुमने विशयों के साथ क्या अपना एक अनुशासन बना रखा है
00:47:05धारणा बना रखी है लीक परंपरा बना रखी है उससे कुछ नहीं साबित हो जाता है
00:47:12आगे त्याग और ग्रहन के द्वैत से परे मैं आनंद में स्थित हूं
00:47:23इसका त्याग किसका ग्रहन विशयों का
00:47:28न विशयों को त्यागने में रुची न विशयों के ग्रहन में रुची
00:47:32विशय सब मेरे लिए खेलने की वस्तुएं हैं
00:47:38क्योंकि विशयों को ले करके मेरे पास कोई आशा है ही नहीं
00:47:49विशय से आशा हटा दी तो विशय अब क्या रहे गया बस वस्तु रहे गया ये भी वस्तु है ये भी वस्तु है ये भी वस्तु है लहर आई तो पकड़ लेंगे लहर नहीं आई तो नहीं पकड़ेंगे कोई कारण पूछे कारण कुछ नहीं है कारण तो स्वार्त जन्नित ह
00:48:19अंदरूनी कारण कोई गहरा कारण नहीं है हुमारे पास गहरे कारण होते हैं समझना
00:48:27तुम जा रहे हो बैठ गए हो पिक्चर देखने के लिए वहां जा करके इतना सारा खरीद लाए खाने को
00:48:34कारण यह है कि जिन्दगी बेराउनक थी तो पिक्चर देखने आये थे
00:48:43और पिक्चर बेराउनक निकली तो पॉपकॉर्ण चबाने लगे और सारा पॉपकॉर्ण चबाने के बाद भी भीतर राउनक आने पाई हुमारे पास गहरे कारण होते हैं विशयों से आ सकते किये और बिचारा पॉपकॉर्ण वो तुमें क्या राउनक दे सकता है और जिन्�
00:49:13ज्यादा तर लोग चाहे परेटन करने जाएं चाहे पिक्चर देखने जाएं चाहे ब्याह करने जाएं चाहे शर्ट खरीदने जाएं चाहे कुछ करने जाएं
00:49:25शर्ट वो तन के लिए नहीं खरीदते खाना वो तन के लिए नहीं खाते
00:49:29वो जो कुछ कर रहे होते हैं वो आत्मिक शांति के लिए कर रहे होते हैं और वो मिल नहीं सकती यह बड़ा गहरा कारण हो गया आप सब विशयों से यह चाह रहे हो यह भीख वांग रहे हो कि आ करके मुझे आत्मिक तुरुप्ति दे दो और वो कोई विशय दे नहीं सकता न
00:49:59न पैसा न पदवी, कोई भी विशय तुम्हें आत्मिक शान्ति दे नहीं सकता, तो अज्ञानी जब रिष्टा बनाता है तो उसके पास बड़े गहरे कारण होते हैं, क्या गहरा कारण?
00:50:15यह जो विशय आ रहा है यह आत्मा बन जाएगा, यह जो विशय आ रहा है यह मुझे पूर्णता दे देगा, अंकार माने अपूर्णता, अंकार माने जो अधूरा बन कर बैठा है, अधूरा पन क्या है उसकी?
00:50:30अंकार के पास माने ता क्यला वह कुछ नहीं होता, जानता हूँ कुछ नहीं है, बस मानता है बहुत सारी बाते हैं, तो आपके पास बहुत गहरे कारण होते हैं, किसी भी विशय की ओर बढ़ने के, ले दे करके वो गहरा कारण एक है, क्या?
00:50:46जिस विशय की ओर जा रहा हूँ, ये मुझे पूरा कर देगा, जो मुक्त पुरुष है, ज्यानी है, उसका खेल दूसरा है, वो सब विशयों से खेल सकता है, उसे किसी विशय से ही उम्मीद नहीं है, कि ये मुझे पूरा कर देगा, आशा नहीं है, और आप कोई विशय ब
00:51:16हाँ यह हो सकता है कि आशा शामिल थी आपको पता नहीं था पर पता चल सकता है उसके लिए तरीके होते हैं
00:51:22आपने सिंदगी में किसी विशह से रिष्टा बनाया है बिना आशा रखे
00:51:27और आशा वो सदा यही होती है कि जो भीतर हंकार है
00:51:33मचल रहा है जैसे बच्चे हो जमीन पर लोट रहा है चिल बिला रहा है और उसे कुछ भी दे दो त्रिप्त तो होई नीरा
00:51:45किसी विशह की और जाओ छुपी हुई आशा गेहरा कारण यही रहता है कि इससे मुझे त्रिप्ते मिल जाएगी
00:51:56आप क्या किसी को दो रुपए भी दे सकते हैं बेना उमीद रखें बुलिए
00:52:02बुलिए
00:52:15आप कार में बैठे हैं लालवत्ती पर रुख गई
00:52:19बिखारी आया ठीक
00:52:24आप ने उसको 10 रुपए दे दिये और आप अपना अपने मुबाइल में लग गए या साथ में उससे बात करने लग गए
00:52:36आपको ऐसा लगेगा कि आपके पात कोई आशा नहीं थी आपने बस यूही बिखारी को 10 रुपए दे दिये आशा थोड़ी थी मैंने तो बस यूही इससे 10 रुपए दे दिये
00:52:47ऐसा लगता है लगा है कि बस दे दिये मुक्त हो गया है ना चलिए प्रियोग करते हैं वैचारिक प्रियोग आपने जिस बिखारी को 10 रुपए दिये हैं वो 10 रुपए ले के आपको गाली दे दे कैसा लगेगा
00:53:06कैसा लगेगा बुरा लगेगा एक बिखारी था उसको आपने पैसे नहीं दिये उसने गाली दे दी
00:53:19ज्यादा बुरा कब लगेगा
00:53:28चाहिए जब पैसे ले बुरा लगेगा देखो 10 रुपए देने में भी आशा थी ना
00:53:33आपको पता नहीं था पर 10 रुपए देने में भी आशा थी
00:53:37जिसको आपने कुछ नहीं दिया वो गाली दे गया कई बार होता है
00:53:41वो आते हैं खटखट आते हैं आप कुछ ना दें तो गरी आके आगे बढ़ जाते हैं
00:53:44आपको बुरा नहीं लगता
00:53:45पर जिसको आप दे दें वो पैसा ले ले फिर गाली दे दे आपको बड़ा बुरा लग जाएगा
00:53:5110 रुपए देने में भी आशा थी कि अब इसने पैसे पाए हैं तो थोड़ी कृतग्यता मानेगा
00:53:58थोड़ा हैसान मानेगा नहीं माना उल्टे गाली दे गया बुरा लग गया
00:54:01यह आम आत्मी के जिंदगी है वो भीतर से इतना रिक्त है वो सबसे बड़ा बिखारी खुद है
00:54:09कि वो हर विशय से यही चाह रहा होता है कि तू मुझे तुरुपति दे जा
00:54:16चोटे से चोटे विशय से भी दस रुपई से भी बिखारी से भी वो भीतर इतना बड़ा बिखारी बैठा है कि वो सड़क के बिखारी से भी भीख मांग रहा होता है
00:54:28और मुक्त होने का अर्थ होता है तुम बड़े से बड़े विशय से रिष्टा बना सकते हो
00:54:34और दुनिया को ऐसा लगेगा कि अरे वाह
00:54:37हमें तो छोटे-छोटे विश्यों की भी पाबंदी है
00:54:41ये जाकर कि इतने बड़े विश्य से रिष्टा बना आए
00:54:45हाँ वो बना लेगा क्योंकि उसे उस विश्य से कोई आत्मिक आशा नहीं है
00:54:48उसके लिए विश्य क्या है खेलने की वस्तु मात्र है
00:54:53तुम्हारे लिए छोटा सा विश्य भी बड़ी गंभीर बात हो जाती है
00:54:58अग्यानी के लिए बड़े से बड़ा विश्य भी खेलने की बात है
00:55:06तो इसलिए तुम्हारे लिए छोटी सी चीज भी हो
00:55:09यहां कहा जा रहा है चाहे वो तुम्हारी लंगोटी का कपड़ा भी हो वो भी तुम्हारे लिए बंधन रहेगा क्योंकि तुम वहां भी कुछ न कुछ जोड़े बैठे हो हिसाब
00:55:20जनक यहां पर है अब तेरह अध्या आया गया जनक को भी आप ज्यानि ज्यानि के लिए पूरा समराज्य भी ओ
00:55:34तुम्हाराज्य का शासन कर रहा उसे फर्क नहीं पड़ता ज्यानि साथू बन के घूम रहा है संत बन के घूमरा पहा है वो तब ve बंधन में है
00:55:50वो कुछ भी बन ले लोगों के लिए अपने से और बड़े जो अज्ञानी होंगे उनके सामने वो बड़ा त्यागी बन जाएगा देखो सब कुछ त्याग दिया है बस ऐसे ही बैठ गए है सब त्याग के बैठ गए है परंदर की बात यह है कि वो अभी बद्ध ही है बंध ह
00:56:20बड़ा रिष्टा बना लिया इतना बड़ा सामराज्य है या यह है वो है या इतनी लुभावनी चीज है उसके बाद भी मुक्त है क्यों क्योंकि मुक्ति का संबंद विशे से नहीं है मुक्ति का संबंद तुम्हारे अंकार की दशा से है तुम कितनी माननेता पाले बैठ
00:56:50उससे बड़ा आत्मगाती कोई हो सकता है
00:56:54जो विश्यों से आशा रखे
00:56:58जैसे रेत से कोई कहे कि मेरी प्यास बुझा दो
00:57:07रेत प्यास बुझा नहीं सकती है और इससे ज्यादा बुरी बाती है कि तुम प्यासे हो भी नहीं
00:57:14प्यास तुम्हारी मान्यता मात्र है
00:57:18कितनी अजीब बात है ना यह
00:57:20पहली बात तो
00:57:21तुम प्यासे हो नहीं
00:57:24और दूसरी बात अपनी प्यास बुजाने कहा गए हो
00:57:26रेतों के पास
00:57:28न वो प्यास बुजा सकते
00:57:33न तुम्हें प्यास लगी है
00:57:36और कारोबार पूरा चल रहा है
00:57:38और लुटे जा रहे हो
00:57:39यह धूरी बात है कि जगत तुम्हें कुछ दे नहीं सकता
00:57:46पूरी बात यह है कि जगत न तुम्हें कुछ दे सकता है
00:57:49न तुम्हें कुछ चाहिए है
00:57:50इसके बाद भी तुम जगत के गुलाम हो
00:57:54तारी बात समझे हो है
00:57:59आगे करें
00:58:05द्वायत के दुख से मैं परे हूँ, मैं आनंद में हूँ, यथा सुखम, द्वायत माने स्वयम के अतरिक्त कुछ भी देख लेना, चाहे छोटा विशे चाहे बड़ा विशे,
00:58:21आत्मा के अतरिक्त किसी के भी होने को सच मान लेना द्वायत कहलाता है, वो छोटा विशे भी हो सकता है, बाकी सब बस प्रतीत होता है, है नहीं,
00:58:44वह छोटी से छोटी चीज घास का तिनका हो सकती है
00:58:47और बड़ी से बड़ी चीज तुम कह सकते हो
00:58:49कि यह सबसे बड़ा जो मेरा सुष्टि करता है वो है
00:58:52तुम्हारे अतरिकत कोई भी अगर है
00:58:54तो तुम द्वैत में भशे हुए हो और तुम दुखपा होगे
00:58:56हाए तुम्हारे अत्रिक्त एक गहास का तिनका है चाहाhst
00:59:02कोई बहुत बड़ा है हो के तुम किसी को मानाब
00:59:10हुई priests हुआ हिए आरी है प्दोने कोई रोग से आशा लगा
00:59:21हो गय पराना खेल शुरू हो गया है अब
00:59:25अब खुद को नहीं देखोगे, अब तुम्हारी अतरिक्त जो है उसको देखोगे, फसे काहो भीतर, देखोगे किधर को? बाहर, और लुक धर्म की यही सबसे विशैली बात है, वो तुमको लगातार मजबूर करता है बाहर को देखने को, बाहर को देखते रहो, किसी नंहीं
00:59:55झाल झाल
Recommended
13:32
1:21
1:18
1:19
1:22
1:02
1:18
Be the first to comment