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00:00संसारी साधू, दोनों की हस्ती एक साथ तो सच हो नहीं सकती।
00:04जब संसारी अपने ही नरक में बिल्कुल पिसने को हो रहा होता है,
00:09तो थोड़ी बहुत राहत तो उसको साधू के संसर्ग से ही मिलती है।
00:12तो सादू को मार भी नहीं सकता, काम की चीज़ है भाई सादू, तो फिर संसारी ने अपना और सादू का एक बड़ा विशेश रिष्टा बना लिया है, क्या?
00:19शत्षत नमन, नमन करा जाता है, लेकिन एक बैर भी बना कर रखा जाता है, ऐसा भयानक बैर, कि तुम्हारे घर में अगर तुम्हारा बच्चा बुद्धत्यों की तरफ बढ़ने लगे, तुम बच्चे से कहोगे जान ले लूँगा तेरी, चोर बन जा, कसाई बन जा, कु�
00:49उनकी जान है, कि तुम्हारे पूरे विरोध के बाद भी, वो जीत गए, अब जब वो जीत गए हैं, तो क्या दिखाना है, हम उनके साथ ही थे, मुर्खता भरे, नादानी भरे, अपने सिध्धान छोड़ दीजिए, कि अच्छे आदमी को सम्मान औगरा मिलता है, या कि आ
01:19सत्य प्रियता की दुश्मन होती है, और सम्मान आपको मिल ही तब तक सकता है, जब तक आप सत्य का अपमान करते रहें
01:36कोई दिन कोई मौका ऐसा नहीं होता, शायद कोई पल ऐसा नहीं होता,
01:49जब यही सवाल किसी ने किसी रूप में हमारे सामने नहों, यह ठीक कि वो ठीक,
02:00इधर उचित, उधर सही, है ना, पकड़ूं कि छोड़ूं, खरी दूं कि न खरी दूं, बेच दूं या रख लूं,
02:16यही तो जी उनके प्रश्ण होते, जितने भी प्रश्ण होते हैं, आप उनको देखेंगे, तो वो सब बहुत आसानी से देखेगा,
02:27एक ही बात कह रहे हैं, क्या सही है, क्या सही है, ठीक क्या है,
02:37अब मैं, आम आजमी, अहम, कैसे निर्धारित करता है, कि क्या सही है, क्यों निर्धारित तो हम करी लेते हैं,
02:58हमने का यह सवाल हमारे सामने हर समय हर पल रहता है,
03:08मुझे कदम कदम पर चौराहे मिलते हैं, बाहें पैलाए, कदम कदम पर चौराहे हैं, तो पता तो करना है,
03:18किदर को जाना है
03:20कैसे हम पता करते हैं
03:23अहम
03:27चुकि
03:30अपना नहीं है
03:39मौलिक नहीं है
03:41निजी नहीं है
03:48इसलिए उसका
03:54कोई भी निरने भी
03:57ना मौलिक होता
03:59ना निजी होता ना आत्मिक होता
04:01हलाकि पूछता हूए
04:07मेरे लिए क्या सही है
04:09मैंने पूछा
04:12मैंने पूछा
04:15मेरे लिए क्या सही है
04:17यह पूछा ना वहीं जो मैं है जिसने पूछा यह तो बस एक
04:28संच्य है एक जमाव है
04:38कि जैसे इस मेज पर कुछ धूल यहां से गिरी कुछ धूल वहां से गिरी
04:46आप अपने कपड़े पहनते हैं धूते हैं दो दिन बाद
04:54क्या आप बता सकते हैं कि उसमें से जो गंदगी निकल रही है वो कहां की है
05:00नहीं बता सकते हैं आप कपड़े धूते हैं वाशिंग मशीन हो गयरा हम उसमें अपने कपड़े डाले
05:11और उसके बाद जो उसमें पानी बचता है, वो निर्मल सुच्छ जलत होता नहीं
05:18और ऐसा भी नहीं कि उसमें रिटर्जेंट मात्र बचता है
05:22गाड़े रंका हो जाता है, दिखाई देता है, मिट्टी है
05:28बताओ कहां की है, कहां की है, पता नहीं, हर जगह की है
05:37किसी जगह को नहीं कह सकते कि वहां की तो बिल्कुल भी नहीं है
05:44हमें पता ही नहीं कहां की है
05:46वास्तों में अगर पता होता तो कपड़ा गंदा ही नहीं होता
05:50साफ साफ हमें पता हो
05:54कि कहां की गंदगी आ करके हमारे उपर बैठनी है
05:59तो हम गंदे ही क्यों हों, पता होता, तो गंदी को बैठने ही नहीं देते, तो हंकार का निरमान ही अचेतन में होता है, नहीं पता इसलिए उनिर्मित हो गया, पता होता तो वो आता ही नहीं, यह बड़ी विचितर चीज है, मैं,
06:23ये बिहोशी में पैदा होता है
06:40मैंसे पूछा जाए अपने मा बाप बताओ
06:42उसको यही कियाना चाहिए
06:47बाप का नाम बिहोश मा का नाम अचेत
06:53और उसका कोई नहीं है
06:57अब वो है नहीं
07:00धूल की तरह एक संचे मात रहे
07:04लिए फिर भी वो पूछता है मेरे लिए क्या सही है
07:09और वो इस प्रशन का उत्तर भी दे लेता है
07:15वो गहता है मैं जानता हूँ मेरे लिए क्या सही है
07:18अगर आपके सामने दिन में सो बार ये सवाल आता है
07:30क्या करूं क्या ना करूं
07:31तो 95 बार तो कोई तकलीफ होती ही नहीं
07:34इतनी कम तकलीफ होती है कि ये भी नहीं पता चलता है
07:37कि ऐसा सवाल आया था
07:38सवाल का होना भी तब पता चलता है ना
07:43जब जवाब थोड़ा कठिन हो
07:44जिस सवाल का जवाब एकदम साफ हो सामने हो
07:49वो सवाल पता चलेगा क्या
07:50पता चलता है
07:54आप गाड़ी चला रहे हो वैसे तो
08:00लगातार आपके सामने सवाल है ही
08:05सीधी रखो दाए रखो बाए रखो
08:07कितनी गति रखो
08:08कौन सा गियर रख़ू
08:10रइसा लगता है क्या कि गाड़ी चला रहे है
08:15तो एक के बाद एक प्रश्णों का उत्तर देना पड़ रहा है
08:18नहीं लगता
08:18क्योंकि हमारे देखे हमें जवाब पता है
08:23जब जवाब बहुत आसान होता है तो सवाल ही नहीं पता लगता
08:26तो हमें पता भी नहीं लगता कि जवाब पूछ रही है
08:36क्योंकि हमारे पास तैयार जवाब पहले से रखे है
08:42वो जवाब कहां से आए
08:48अंकार बोलता है मेरे पास है
08:52पर तुम्हारे पास तु बेटा तुम ही नहीं हो
08:55तुम्हारे पास तु तुम्हारी ही अपनी कोई निजी मौलक आत्मिक सत्ता नहीं है
09:02तो तुम्हारे पास ये उत्तर कहां से आए
09:04अरे बोलो तो जिसके पास आत्मा नहीं उसके उत्तर कैसे
09:09और नाराज हो जाएगा
09:11तुम्हार दूरी बना के सवाल पूछिएगा
09:25ये भी नहीं पता चलता कि सवाल
09:27पूछे जा रहे हैं सवाल बाद में
09:29पूछा जाता है तेरे पास जवाब
09:31पहले से तयार रखा है
09:33तो एक तो ये बात है कि तेरे पास
09:35सब सवालों के
09:37जवाब तयार रखे है
09:38और दूसरी बात ये है कि तेरे पास
09:41जवाब देने के लिए कोई आत्मिक बिंदो है ही नहीं तेरे भीतर कोई है ही नहीं जो जवाब दे सके तो तु जवाब देता कहां से है कैसे दे लेता है
09:53पिर लिए जवाब जदातर बड़े आसान है कुछी सावलों में ठकता है बस
10:02और दिन में काथ दो दफ़े ही तो होता है जब आप कहते हैं आप करूं क्या
10:08यह ऐसा होता है कि पगपग पर ठीठकते हो ऐसा तो नहीं होता है
10:13सब ठीक बढ़ी है हाँ पता है ये भी पता है वो भी पता है
10:17कैसे पता है
10:19अहम माने वो जिसे कुछ नहीं पता है पर भरोसा जिसे है कि उसे सब कुछ पता है
10:25कुछ भी पता चलने की शुरुवात होती है अपना पता चलने से
10:32उसे अपना ही नहीं पता तो दूसरे मुद्दों के बारे में उसे बस जूठा भरोसा है कि उसको पता है
10:40और इस जूठे भरोसे के भी शुरुआत होती है अपने बारे में न जानने से
10:52मैं हूँ यही एक जूठा भरोसा है न
10:55क्या हो कुछ नहीं
11:02इस दम्भ में घूमते रहते हो कि तुम्हारे विचार, तुम्हारी कामना है, तुम्हारी निर्ड़ा है, तुम्हारी इच्छा है
11:13और अतीज से लेकर आज तक के विद्वानों ने बार बार बोला कि तुम्हारी इच्छा जैसा कुछ है नहीं
11:28तुम इतने बंधे हुए हो, इतने अचेत हो कि तुम्हारे लिए फ्री विल शब्द का कोई अर्थी नहीं है
11:35तुम्हारा तो सब कुछ ही तैशुदा है, डिटर्मिनिस्टिक है, पूर्ण रिधारित है
11:45ऐसा नहीं कि यह अनिवार रहे है कि तुम्हें एक तैशुदा जिंदगी जीनी है
11:50पर बेहुशी में और क्या होगा, एक पत्थर जैसे हो, जो गते कर रहा है
12:05पत्थर क्या गते करेगा, ये बात पत्थर से पूछ कर नहीं जानी जाती
12:15पत्थर क्या गते करेगा, ये जानने के लिए उस आदमी को देखा जाता है, जो पत्थर को लात मारने वाला है
12:20पठर जैसे है तो जो पठर एक पड़ा उसे आगे पूछ रहे हैं जी बताए आगे का क्या आपका कारिकरम है
12:32कही ये एक से दो कभ होने वाले हैं
12:40उस से मत पूछो ये उस ताकत से पूछो जिसके हाथ में हथोड़ा है
12:44वो बताएगी कि ये एक से दो कब होंगे
12:48अभी पड़ेगा फट से दो हो जाएंगे
12:52वो पत्थर से पूछ रहे हो पत्थर भी हें हें करके बता रहे
12:56देखिए हमारा तो ऐसा है
12:57कि भविश्य के बारे में हम भहुत सोच समझ कर फैसला करते हैं
13:04फिलहाल हम यहां अचल समाध्य में बैठे हैं
13:09न्यूटन मुस्कुरा रहे हैं बोल रहे हैं कुछ भी नहीं है
13:12लॉफ इनर्शिया है
13:15जब तक कि जी लात नहीं पड़ रही तब तक यहां पड़े हैं
13:19अदावा क्या है
13:23ये तो हमारी स्वेच्छा है
13:26फ्री विल है कि हम यहां पड़े हैं
13:29अचल है अटल है
13:32महान है
13:36कुछ नहीं हो
13:40अचेत हो निश्प्रान हो इसलिए पड़े हुए हो
13:42पहुचा है रही है पाती
13:52बहुत इस पर प्रयोग हुए है और आपको बहुत रोचक लगेगा
13:55जैसे जैसे
13:59विज्ञान की शंता बढ़ती जा रही है
14:02और अब तो AI के साथ
14:03और आसान होता जा रहा है
14:06और और रोचक प्रयोग होते जा रहे है
14:08और जटल प्रयोग होते जा रहे है
14:10पहले तो प्रयोग होते थे तो उसमें बस यह देखा जाता था
14:18कि क्या
14:25व्यक्ति का response, stimulus से निर्धारित होता है, और इतना अगर पता चल गया, कि हाँ होता है, तो हम क्या देते थे यह देखो, इसका मतलब मामला जो है, वो deterministic है, पहले से ही, उसका आर्थ यही होता था, कि तुम्हारे भीतर, आत्म जैसा कुछ नहीं है, जो बाहर का उतेजक तत्त
14:55जब पैवलाव का नाम आपने सुना होगा, जब पैवलाव ने अपना प्रसिद्ध प्रयोक करा, कुत्तों को ले करके, क्या प्रयोक था पैवलाव का? प्रूसी वैग्यानिक थे, उन्होंने कुत्ते को लिया, और उसको जब खाना देते, तभी घंटी वचती, खाना घं�
15:25खाने के कारण उसके लार भहती, अब कुत्तों की लार खूब भहती है, तो वो देखा जा सकता है, उन्होंने कुत्ते पाले हो जानते होंगा, पता जल जाता है, लार भह रही है, तो खाना आता कुत्ते की लार भहती, तभी घंटी भी बचती, तो ये बात ऐसा लगे, जै
15:55आठ दस बार खाना दिया, घंटी बजाए, फिर का खाना हटाओ, खाली घंटी बजाओ, लार बह रही है अभी भी, बड़ी गजब बात हो गई, इसका मतलब लार का भोजन से कोई रिष्टा ही नहीं है, इसका मतलब लार का भोजन से कोई रिष्टा नहीं है,
16:13घंटी मालिक हो गई है
16:19घंटी तया कर रही है कि लार बहेगी
16:25आप ये तक भी नहीं क्या सकते
16:27कि आप अपने शरीर के चलाये चलते हो
16:30देखो शरीर किसके चलाये चल रहा है
16:32प्रकृते ने ऐसी तो व्यवस्था नहीं करी थी
16:37आदमी की लार बहेगी, या कुत्ते की लार बहेगी, घंटी सुनके, प्रकृते ने करी थी, पर देखो ऐसी व्यूस्था भी करी जा सकती है, कि आपकी लार बहरे है घंटी सुनकरके, तो जब पेवलव ने प्रयोक कर लिया, तो लोगों को बड़ा धक्का लगा कि ये क्या ह
17:07वो इन्सानों पर कैसे किया गया?
17:10कि बच्चे लिए गए
17:11बच्चे लिए गए
17:14और जैसे स्कूल में बच्चे बैठते हैं
17:18ऐसे मैं बैठा हुआ हूँ
17:20और नीचे घुटना है,
17:21अपना घुटना उचुटना देख नहीं सकते
17:22ऐसे बैठे हैं, ये रही मेज
17:25और नीचे घुटना है दिखाई तो देनी रहा अपना घुटना
17:27बच्चे लिए गए और नीचे उनके घुटनों पर
17:33थोड़ा एक हाथवडा लकडी का
17:37वो मारा गया
17:39जब लकडी का हाथवडा पड़ता है तो
17:41अपने सुना है नीजर्क रियक्शन
17:43घुटने पे थोड़ा सा भी कुछ पड़े
17:46तो घुटना एक दब ऐसे चेहुकता है
17:48और ठीक जब घुटना मारा पे मारा जा रहा है
17:51तो सामने एक बत्ती जल रही है
17:52उधर हथोड़ा पड़ना है घुटने पे और सामने
17:57बत्ती जलनी है
17:59तो ऐसा पांत-दस बार किया गया
18:01और फिर हतोड़ा रोक दिया गया
18:04सिर्फ बत्य जलाई गई
18:05और बच्चे उछलने लगे
18:07उधर बत्य जलती इदर बच्चा उछलता
18:14अभी सुनो और आगे की बात
18:16बच्चों को बता दिया गया
18:18बेटा कोई हतोडा नहीं है
18:20आराम से बैठो
18:22बत्ती जलती बच्चा अभी भी उछलता
18:25खुत्ते को तो बताया भी नहीं जा सकता था न
18:29बच्चे को बता दिया गया
18:32मनें चेतना हमारी ऐसी बंधन में है
18:38कि साधारण ज्यान भी उसको मुक्त नहीं कर सकता
18:42बच्चे को बता दिया गया है अब ग्यान दे दिया गया है
18:50साधारण ग्यान कैसा ग्यान साधारण माने बाहरी ग्यान
18:53अब इद्या बाहरी ग्यान दे भी दिया गया कि बटा
18:57चिंता मत करो सिर्फ लाइट जल रही है था हैमर्स आर आफ
19:00वो तो भी आप बैठे हैं वहां बत्ती जली नहीं कि
19:04ये पूरी प्रयोगों की एक्षिंग खला थी
19:13उसको मैं जोड़ करके एक में बता रहा हूँ जैसे एक हो
19:17पर उसका सार यही था
19:19कोई बच्चा बोले
19:30पुछे अगे गया कि तू उछला क्यों और बच्चा बोले
19:34मैंने टैक किया
19:37मेरा फैसला है
19:39तो अब ये बात यतनी जूठी लगेगी न
19:41क्योंकि प्रयोग से प्रमानित कर दिया गया है कि बात एकदम जूठी है
19:45एकदम जूठी है
19:47लेकिन वही बच्चा बड़ा हो जाएगा अपनी जिन्दगी के फैसले करेगा
19:52और बार बार दावा करेगा कि मैं सोचता हूँ
19:56मैं जाचता हूँ मैं तौलता हूँ
19:59मैं अपने हिसाब से फैसले करता हूँ
20:02तो हम कहेंगे ये तो सहाब उसका अधिकार है
20:06ये उसकी निजी जिन्दगी है
20:09ये उसकी स्वेच्छा है
20:11Freedom to this, freedom to that
20:15Freedom to hop
20:18For no reason at all
20:21और अभी बच्चा है तो वो
20:27हसेगा
20:29बच्चों के साथ जब ये हो तो बच्चे हसे
20:32ये बत्ती जली
20:35और बच्चे उछल पड़े बाकि उसे देखके हस रहे है
20:37जो उछल रहा हो खुद भी हस रहा है
20:39फिर इसी चीज़ को जब बहुत देर तक किया गया तो उछलना
20:43बंद हो गया
20:44बच्चे खुद भी हैं से
20:48कि ये देखो ही क्या हो रहा है
20:49हमें तो बता दिया गया है कि कोई हैमर नहीं है
20:52और फिर भी है मुछल रहे है
20:53जब आप बड़े हो जाते हो तो आप हसना भी बंद कर देते हो
20:58जब बड़े हो जाते हो और आपको आपकी मुर्खता प्रदरशिद करी जाती है तो बुरा लगता है
21:09कौन है हमारा मालिक हम हैं ही नहीं तो हमारा मालिक कौन होगा
21:13वो सब ताकतें जिनसे हमारे भ्रम का, हमारे होने के भ्रम का निर्मान हुआ है, वही ताकतें हमारी मालिक हैं
21:27हमारी अपनी कोई निजी सत्ता नहीं है
21:31अध्यात्म आपको बहतरी देने के लिए नहीं होता
21:46अध्यात्म वास्तव में आपको अस्तित्त देने के लिए होता है
21:51अध्यात्म से पहले आप होते ही नहीं हो
21:53किसी प्रक्रण में एक बार मैंने कहा था
21:59गुरू आपको ग्यान नहीं देता
22:05गुरू आपको पैदा करता है
22:07वो आपको जन्म देता है
22:09गुरू आपको ग्यान नहीं देता
22:13वो आपको जन्म देता है
22:14हम होते ही नहीं हम है ही नहीं
22:17ठीक वैसे जैसे एक पत्थर को ये कहने का कोई हक नहीं है
22:22कि वो है
22:22वैसे ही आम इंसान को भी ये कहने का कोई हक नहीं है कि वो है
22:27हम बिलकुल पत्थर समान ही है
22:30बस पत्थर कोई ब्रह्म नहीं होता कि उसके पास स्वेच्छा है
22:44क्योंकि पत्थर के बंधन एकदम ही स्थूल है
22:52पत्थर अगर पड़ा हुआ है
22:55तो गति करेगा ही नहीं
22:58जब तो क्यों से लात न पड़ेगी या कोई उठा के न फिके
23:04मनुष्य अगर पड़ा हुआ हो तो गति कर लेगा
23:07आप पड़े हो आपके वगल में एक पत्थर पड़ा हुआ है
23:09पत्थर पड़ो ही रहेगा आप उठके चल दोगे
23:11हमारे वंधन सुक्श में हम चूक ही उठके
23:15चल देते हैं तो हमें लगता है कि हमारे
23:17पास कोई निजी सत्ता है आत्मा है
23:20भीतर कोई एजनसी है
23:23कोई तो है भीतर जो इस शरीर
23:27को चला रहा है और हमारी
23:29जिन्दगी के फैसले कर रहा है
23:30क्योंकि देखो पत्थर तो उठके
23:33नहीं चल पाया ना पर मैं उठकर
23:35के चल दिया
23:37तो निश्यत रूप से मेरे भीतर कोई है
23:39माने कि मैं और पत्थर अलग-अलग है
23:41नहीं
23:43आप उठकर चल तो दिये
23:44इसका
23:46मतलब ये भी तो हो सकता है
23:49कि आप
23:51और पत्थर बिलकुल एक जैसे हो
23:53बस पत्थर
23:55को चलाने वाला
23:56बाहरी उसका मालिक
23:59बाहर ही होता है
24:00और आपको
24:03चलाने वाला बाहरी आपका
24:05मालिक आपके भीतर घुसकर
24:07बैठा होता है
24:08कैसा नहीं हो सकता
24:10कि ऐसा नहीं हो सकता
24:13तो हमारे बंधन
24:15सूक्ष में है
24:17चूंकि सूक्ष में हैं
24:19आँखों को नहीं दिखाई देते
24:20तो हमें ये भ्रह्म हो जाता है
24:23कि हम चैतन्य है
24:24ऐसा जबरदस्त भ्रह्म हो जाता है
24:29कि हम चैतन्य है
24:30कि हम मानने लग जाते हैं
24:32देखो शरीर को देखते हैं तो देखता है जड़ है पर दावा तो यही है कि हम चैतन्य हैं तो उस दावे कुस्थापित करने के लिए हम कहते हैं ये जड़ होगा कहो भीतर कोई बैठा है जो चैतन्य है और जो भीतर चैतन्य बैठा उसको हम क्या नाम देते हैं मैं जीवात्
25:02हम अपने आपको ये साबित करना चाहते हैं, कि हम पत्थर समान नहीं है, हमारे भीतर कोई बैठा है, जिसके पास स्वामित तो है, सत्ता है, प्रीडम है, एजन्सी है,
25:18जो स्वतंत्र है, किसी अन्ने का गुलाम नहीं है, जिसके पास मैं कहपाने का अधिकार है,
25:32जो दूसरों से अप्रभावेत हो करके, असम्बंधित हो करके भी जी सकता है, चल सकता है, उठ सकता है, सो सकता है, हम अपने आपको ये जताना चाहते हैं,
25:49पत्थर भला है उसे ये सब अपने आपको जताना नहीं पड़ता उसका मामला विलकुल साफ है पत्थर हूँ पड़ा हुआ हूँ लाथ पड़ेगी चल दूँगा
25:59हमारे बंधन सब भीतरी हो गए है
26:05तो हम अपने आपको दोखा देने में बड़े माहिर हैं पहला दोखा तो यही है कि हम हैं और उसके बाद एक के बाद एक यह मैंने सोचा यह मैंने किया मैंने छोड़ा मैंने उठाया मैंने प्यार किया
26:19पलाने से मुझे बहुत नफरत है
26:23न तुम्हारा प्यार तुम्हारा न तुम्हारी नफरत तुम्हारी
26:27कुछ भी तुम्हारा नहीं है
26:29तुम्हारी बाद
26:35लाल दल के लोग पीले दल के लोगों से बड़ी नफरत करते थे
26:44और इस विशे पर बहुत सारे बड़े रोचक नाटक लिखे गए हैं कुछ हिल में भी बनी है
26:53कुछ नहीं करना है बस ये दिखा देना है कि दो समुदाएं हैं दो दल हैं दो लोग हैं
27:00वो एक दूसरे से बड़ी नफरत करते हैं
27:03और जो लाल दल वालों का नेता है मुखिया है
27:07बिल्कुल जब दोनों के बीच जंग छड़ने ही वाली है
27:14तो उसको पता चलता है कि वो तो पीला है
27:18वो अस्पतायल में नर्स ने गड़वड कर दी थी
27:25करन की कहानी याद आ रही है
27:31अब गजब उसकी किंग करते हुए भी मुड़ता
27:44प्लासिकल डिलेमा
27:47मैं ये हूँ कि मैं वो हूँ
27:49ओ फट गया भीतर से
27:53दो फाड हो गए उसके
27:55मैं ये हूँ कि मैं वो हूँ
27:58मैं कौन हूँ
28:01गाओं में कोई आता है किसी घर में उस घर की बड़ी दुरतशा है
28:09पुराने रईस हैं पर अब सब कुछ बरबाद हो चुका है
28:13वो आता है और घर को बिलकुल ठीक कर देता है
28:19तरीके तरीके सहारे देता है घर की अदासी में खुशी ले आ देता है और फिर एक दिन पता चलता है कि ये तो चोर है चोरी की नियत से आया था हाँ नियत से चोरी की आया था पर यहां पर आकर
28:39कुछ अच्छा कर गया
28:41समझ में नहीं आता
28:43ये ये है कि ये वो है
28:44हम है कौन
28:45इसके प्रते अब सद्भावना रखें
28:48या इसको पुलिस को दे दें
28:49इसको अपना माने
28:53या शत्रू
28:53क्योंकि हमारा जो कुछ भी है
29:01सायोगिक है
29:03सायोग से कोई आ गया था
29:08और सायोग से ही
29:09ये सूचना भी आ गई
29:10कि जो आया है
29:12वो चोर है
29:14तब कुछ सायोगिक है
29:17ये सायोग ही हमारा मालिक है
29:38सायोग ने हमें नाम दे दिया
29:40सायोग ने हमें शरीर दे दिया
29:42सायोग ने मानने ताएं दे दी
29:45कुछ ऐसा नहीं है
29:48जो में सायोग से नहीं मिला है
29:51यहां जितने बैठे हो सब के सब
29:55काली आखों वाले हो
29:58बड़ा प्यार है आपको
30:02काले रंग से
30:03क्या चुनाव किया है सबने
30:06कजरा रहे कजरा रहे
30:08तेरे काले गाले नहीं है
30:11कैसे काली आखे कहां से ले आए सब
30:14कैसे कैसे
30:17पॉम भरा था
30:21कैसे मिली ये काली आखे
30:25सब के सब
30:29एक भी अपवाद नहीं
30:31कैसे किया
30:33कजब हो या
30:38कैसे किया
30:42किया ही नहीं
30:44एक सज्जन है उनको
30:57अपने पॉरुष पर बड़ा अभिमान नहीं क्याते हैं
31:00पुरुष ही तो प्रत्वी की शान होता है
31:08एक दीदी है उनको अपने इस्तरी होने का बड़ा है
31:11वो गहती है इस्तरी ही तो माता होती है
31:14इस्तरी प्रत्वी है इस्तरी नहीं तो कोई नहीं है
31:16आपने भी फार्म भरा था
31:22कुछ ऐसा बता दो जो आपके जीवन में
31:31साई होगे इतना हो
31:33कुछ बता दो
31:37इसी लिए अहंकार को करता कहा जाता है
31:47और इसी लिए करत्रत्व को
31:48बड़ा जूट और बड़ी बिमारी माना जाता है
31:51अहंकार वो जिसे लगता है कि वो कर रहा है
31:56वो सोच रहा है वो फैसला कर रहा है
31:57वगरा वगरा
31:58उस दिन बारिश ना हुई होती
32:08तो रात को टैक्सी मिलना इतना मुश्किल नहीं होता
32:16ठीक
32:18और बारिश क्यों हुई उस दिन रात को
32:23क्योंकि पूरी दुनिया ने मिल करके कारवन एमेशन करकर के
32:29क्लाइमेट चेंज कर रखा है
32:30पूरी दुनिया ने मिल के
32:32तो अक्टूबर के महीने में भी बारिश हो रही है रात में
32:36तो बारिश होई और ऐसी बारिश होई कि पानी वानी भर गया
32:40टैक्सी इन ही चल रही है
32:43क्लाइमेट चेंज ना हुआ होता तो बारिश नहीं हुए होती
32:47बारिश नहीं हुए होती तो इतना पानी न भरा होता
32:50पानी न भरा होता तो टैक्सी मिल जाती
32:53अब टैक्सी नहीं मिली
32:56तो धनियाने लिफ्ट लेली
33:00वही लिफ्ट नुन्नु बन गई
33:10यात्रा लंबी थी
33:18बताओ नुन्नु का मा कौन बाप कौन
33:29और कैसे होता है ऐसे ही तो होता है
33:41शुरुआत ही सही हो गए
33:46ये जो सब बैठे हैं हम लोग कुरसियों पर
33:54हमारी तो शुरुआत ही सही हो गए
33:59कोई गहन चेतना
34:05कि सोचे समझे सचेत निरणयों से
34:11ये शरीर थोड़ी आया है
34:13ये भी संयोग से ही आ गया है
34:15जो संयोग से आता है
34:27वो आत्मा से बहुत खबराता है
34:32क्यों घबराता है आत्मा तो अच्छी बात है
34:41आत्मा आत्मा हम करते रहते हैं कहते हैं आत्मा ही परम सकते हैं
34:47संयोग आत्मा से क्यों घबराता है
34:49क्योंकि सईयोक के हिसाब से वही आत्मा था
34:53मैं घूम रहा हूँ यहाँ पे नाम क्या है तुम्हारा कलंदर
35:02और जितने लोग हैं सब माने बैठे हैं कि मेरा नाम है
35:05कलंदर यह रहे कलंदर कलंदर
35:11अर तभी एक आ जाता है भीतर
35:13मस्त
35:14वह मस्त कलंदर
35:18ऐसा मस्त है कि पक्का है कि अगर यह कह रहा है कि यह कलंदर है तो यही होगा
35:24मेरे जैसा नहीं हो सकता
35:28मुझे उससे समस्या होगी न
35:32अब मस्त कलंदर से क्यों किसी को समस्या हो
35:35हुनी यह नहीं चाहिए
35:37समस्या होगी लेकिन अगर आप खुद कलंदर बने बैठें तो
35:41तो कि उसके आते ही आप पकड़े गए
35:44रासफाश हो गया कि आज तक आपने जूट बोला था
35:51अहम आत्मा बन कर बैठता है
35:54कुछ नहीं है उसमें पर मैं मैं मैं चल लाता है
35:59मेरा ये मेरा वो ऐसा वैसा मुझे ये अच्छा लगता है खाने मुझे वो नहीं लगता है खाने में
36:15जो पूरी रिसर्च हो रही है
36:18डियने फिर जीन्स और जो पूरा जनूम लिखा जा रहा है
36:25समाम देश बहुत कोशिश कर रहे हैं कि वो कमर्शलाइज नहोने पाए
36:32कोई कमर्शियल एंटिटीज
36:36उस पर कबजा न करने पाए
36:40अगर आपकी जनेटिक सामगरी
36:50जो आपके जीन्स के भीतर आपकी हस्ती की पूरी किदाब है
36:53वो किसी के हाथ लग जाए
36:55उसके लिए बहुत आसान हो जाएगा
37:00आपको कुछ भी बेच देना
37:03उसे साफ पता है
37:04कि आपको क्या दिखा दिया जाएगा तो आप ले लोगे
37:07और आप ले लोगे ये कहके कि आपको पसंद आया
37:10लेकिन जो आपको पसंद आना है
37:13वो आपके जन्म के समय ही आपकी एक-एक कोशिका के नाभिक में लिखा होता है
37:20एकदम ठगे जा सकते हो
37:30अभी जैसे होता है ना कि
37:35आपका जितना ओनलाइन कॉंटेट है
37:43उसको गूगल अगयरा पढ़ लेते हैं और फिर उसके अनुसार आपको विग्यापन दिखाना शुरू कर दिया जाता है
37:48उधारण के लिए आप पाओ कि आपने जाकर के सर्च करा है
37:55तू बी एच के फ्लैट
37:59या नीले रंग की जीन्स
38:02तो आपको बड़ा ताज्यूब होगा आपने उधर सर्च करा
38:07और इधर उधर तमाम तरफ से आपके पास जीन्स ही जीन्स के विग्यापनाने शुरू हो गए
38:12सिर्फ इमेल में ही नहीं
38:14हर तरफ से ये कैसे हुआ
38:16उन्हें सब पता है
38:18वो एक बार आपके बारे में पता कर लें
38:20उसके बाद आपको घेरना बहुत असान हो जाता है
38:24और आपके बारे में जो चीज
38:28पता करने पर आपकी कुंडली ही खुल गई
38:33वही असली कुंडली है वो कुंडली नहीं है जो ये लोग बनाते हैं जोती ही और असली कुंडली है जनूम
38:38एक बार वो खुल गई
38:41तो फिर तो आप बची ही नहीं सकते
38:46जो कुछ आपको भी नहीं पता है कि आपको पसंद है
38:50वो उनको पता है कि आपको पसंद है, वो आपके सामने लाएंगे, आप मजबूर होकर खरीदेंगे
38:56इससे बड़ी गुलामी क्या हो सकती है
38:58जो खुश्बू आपने कभी सुंग ही नहीं
39:02वो जान जाएंगे कि ये खुश्बू है, इसको सुंगा दो
39:04ये आदमी तुमारे पीछे-पीछे चलेगा कुत्ते की तरह
39:07दो महिलाता बिल्कूल पीछे-पीछे चलेगा, पस इससे ये खुश्बू सुंगा दो
39:11और आपको वो खुश्बू बता दी जाएगी
39:17और आप आ जाओगे
39:18और आप ये नहीं कहोगे कि मैं इस खुश्बू का दीवाना हो गया, गुलाम हो गया
39:24आप कहोगे ये तो मेरा फैसला है
39:27हमारी गुलामी इतनी गहरी है पर हम अपने आपको कहते हैं हम है
39:35मैं कुछ हूँ, मैं जीवात्मा हूँ
39:39जब वास्तविक कोई ऐसा आ जाता है
39:45जो संयोंगों के चलाई नहीं चल रहा
39:49तो जैसे आत्मा ही खड़ी हो गई सामने
39:54अहम आत्मा से बहुत खबर आता है
39:57कहता है अगर वो असली है
40:01तो प्रमानित हो गया कि मैं तो नकली हूँ
40:09भीड में चल रहा था हंकार हजारों लाखों एक जैसे थे
40:12वो सब चुकी एक जैसे थे तो सब एक दूसरे को प्रमान पत्र दे रहे थे
40:17तू भी असली तू भी असली तू भी असली तू भी असली
40:20सलमा सलीम आपस में शादी करने बैठे
40:26मौल भी पूछ रहा है
40:27वो भी बोल रहा है कुबूल है
40:29जैसे दोनों के पास
40:33सुच्छा का अधिकार हो यह बोलने का
40:35भी कुबूल है की नहीं है
40:39तुम बोल के दिखादो नहीं कुबूल है
40:41दिखाओ
40:45तो सब यही माने बैठे हैं कि हम तो
40:50अपने हिसाब से चल रहे हैं
40:53और चुकि इन्हों नहीं बोला कबूल उन्हों नहीं बोला
40:57तो दोनों को लगा कि इधर भी free will है और इधर भी है
41:05ऐसे हजारों लाखों लोग भी एक साथ हों
41:07तो भी उनकी जान निकल जाती है
41:12जब बुद्ध कृष्ण कभीर जैसा कोई उनके सामने आता है
41:24उसकी जिन्दगी उसकी हस्ती आत्मा का प्रमान होती है
41:28और अगर आत्मा वैसी है जैसी उस व्यक्ति की जिन्दगी में परिलक्षित हो रही है
41:39तो फिर तुम कौन हो
41:41क्योंकि तुम तो कल तक अपने आपको बोल रहे थे मैं ही आत्मा हूँ
41:46पर आत्मा का अगर दर्शन करना हो तो कृष्णों को देखना पड़ता है
41:56मुक्त पुरुष की आरसी
42:01साधू की ही देह
42:03मुक्ति क्या होती है बोलते है
42:06वैसे तो बात अगम्मे की है
42:09सोचने समझने देखने की है यह नहीं
42:12अलग है
42:13पर फिर भी अगर तुमको इशारा पाना हो के मुक्ति क्या होती है
42:17तो सादू की देह देख लो
42:18माने जीता जाकता सादू देख लो
42:20इसको मुक्तिव होते है
42:21इशारा मिल जाएगा कुछ ये नहीं कि वही चीज है
42:24अब बड़ा बुरा लगता है
42:29एक हजार खड़े हों मिल करके
42:32और सबने एक दूसरे वो प्रमानित कर रखा हो
42:36कि तू भी आजाद मैं भी आजाद
42:37एक करोड ऐसे खड़े हों
42:42और उनके सामने एक बुद्धा आ जाए
42:46तो उस एक ने इन एक करोडों को जूटा साबित कर दिया
42:51एक करोड पांच करोड दस करोड
42:53सब जूटे साबित हो गए बड़ा बुरा लगता है
42:56जो बाते इनके लिए अन्यवारे थी उसके लिए मजाख है
43:04जो लक्षमण रेखाएं इनके लिए अलंग है थी
43:12उन रेखाओं को उसने कब का मिटा दिया
43:22ये सब चार पैर पे चलने वाले
43:24और इन्होंने एक दूसरे को समझा रखा था कि
43:29चार ही पैर तो जीवन है
43:32वो दो पैरों पर खड़ा है
43:34वो उचा हो गया है वो आकाश की तरफ देख रहा है
43:37आकाश की और उठी उसकी निगाह प्रमान होती है
43:46इस बात का कि धर्ती पर लोटना जरूरी नहीं है
43:49एक अकेला काफी होता है हम कह रहे हैं करोणों को जूटा साबित करने के लिए
43:56बड़ा बुरा लगता है जब इतना बुरा लगता है तो फिर लोग कहें कबीर बौराना
44:02क्योंकि अगर वो बौरे नहीं है तो तुम बौरे हो
44:18तुम्हारा और उनका होना एक साथ नहीं चल सकता
44:26कर दो
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