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00:00:00आप क्याते हो ना भीतर ऐसा चल रहा है, मुझे अंदर से भाव आ रहा था
00:00:04पता है कि फलानी बाद ठीक है पर पता नहीं, मानने का मन नहीं कर रहा
00:00:08यह जो पता नहीं क्यों है ना, यही अहंकार की आश्रेस थली है
00:00:14यहीं छुपा हुआ है
00:00:15आप अक्सर देखिएगा किसी ने कोई बड़ी भारी गलती गरदी होगी
00:00:19बार बार समझाने पर भी वो पुरानी ही गलती हैं दोहरा राय वेकते
00:00:22आप उसे पूछेंगे तुमने क्यों किया, वो जवाब नहीं देगा
00:00:25बहुत भ्यानक सादिश होती है, खुद को बचानी की
00:00:28नई दिखा सकते कि disappears
00:00:30नई दिखा सकते कि बहिज़त है
00:00:32तुमारे कुटिल होने का प्रमान है
00:00:35वध्यान्त चुपी बरदाष्ट नहीं करता
00:00:38वध्यान्त कहता है, मुख खोलो थाकि पोल खुले
00:00:41पोल नहीं खुलेगी तो तुम्हारे बंधन भी नहीं खुलेगे
00:00:44बोल तो मेरे इश्ट मेरे भीतर विराजे हैं
00:00:48और यही वैदिक रिशी वहां मौजूद हों
00:00:49तो आपको तुरुन पकड़ लेंगे और भीतर माने क्या
00:00:53आप कहोगे भीतर भीतर माने आत्मा
00:00:56कहेंगे भीतर आत्मा नहीं होती
00:00:58तो आप पुछोगे फिर भीतर क्या होता है
00:01:00भीतर अंतह करण है
00:01:01और उसके चार हिस्से
00:01:03मन, बुद्ध, चित, अहंकार
00:01:05आज श्री कृष्ण उसमें से एक हिस्से की बात कर रहे हैं
00:01:07चित्त की
00:01:08परमुपलब्धि की
00:01:20योग की
00:01:24जीवन मुक्ति की
00:01:27बड़ी अनूठी परिभाशा
00:01:32अंतह करण
00:01:43चतुष्टे
00:01:46आप जानते होंगे
00:01:53बहुत बार मैंने चर्चा करी है
00:01:55जिसको हम
00:01:59भीतरी बोलते हैं
00:02:03उस भीतर के ख्षेत्र को
00:02:11बेदान्त चार में विभक्त करता है
00:02:16आप क्याते हो ना भीतर ऐसा चल रहा है
00:02:21मुझे अंदर से भावा रहा था
00:02:28अपने भीतर देखो
00:02:34इस तरह के शब्दों का भाशा का हम अकसर करते हैं न प्रयोग
00:02:39तो विदान्त का काम रहता है
00:02:44किसी भी बात को
00:02:47धुंधला
00:02:49असपश्ट
00:02:52दियर्थी
00:02:55वेग
00:02:59न रहने देना
00:03:02क्योंकि जहां कहीं भी धुंधल का है
00:03:06कोहरा है
00:03:09वहाँ ही आहंकार को सुविधा हो जाती है
00:03:18वो
00:03:24अपनी सुरक्षा अपने स्वार्थ के लिए फिर
00:03:28अपने अनुसार
00:03:30कोई भी अर्थ रच सकता है
00:03:34कोई बात बोली गई
00:03:37चुकि उस बात का
00:03:42बिलकुल पैने पन से परिभाशित कोई अर्थ नहीं था
00:03:48तो हंकार ने फाइदा उठाया और अपने अनुसार
00:03:52अर्थ रच लिया
00:03:55तो इसलिए दर्शन में
00:04:00सब दर्शनों में और वेदान्त में
00:04:05बहुत सटीक स्पष्ट परिभाशाओं पर बड़ा जोर है
00:04:15आप अचारे शंकर के पास जाएंगे
00:04:23आत्मबोध उनकी कृति में या तत्तोबोध में
00:04:28वो एक के बाद एक
00:04:30जितने भी अध्यात्म संबंधित शब्द होते हैं
00:04:36उनको लेते जाते हैं और उनकी परिभाशा देते जाते हैं
00:04:42तो वहां जो शैली ही है इस तरह की ही है
00:04:51कि शद्धा माने क्या तो उत्तर आ जाएगा शद्धा माने ये
00:04:54विवेक माने क्या उत्तर आ जाएगा विवेक माने ये
00:04:57वैराग्य माने क्या उत्तर आ जाएगा वैराग्य माने ये
00:05:00और लंबा चोड़ा उत्तर नहीं
00:05:02क्योंकि जहां उत्तर
00:05:05लंबा चोड़ा है
00:05:07वहां ही उस लंबे चोड़े
00:05:11क्षेत्र में हंकार को कहीं छुपने
00:05:13की जगा मिल जानी है
00:05:14तो एकदम
00:05:18लगुतम
00:05:20अर्थ दिये जाते हैं
00:05:25अतिसंक्षिप्त परिभाशाएं दी जाती
00:05:28ठीक है
00:05:32वजह समझ लीजेगा
00:05:36जहां कहीं भी फिर कहराऊं धुन्द है
00:05:39वहां जान लीजेगा कि
00:05:42अहंकार को आश्रे है
00:05:43जब भी
00:05:45आप अपनी स्थित्य को
00:05:49कुछ इस तरह बताएं किसी को
00:05:51कि नहीं मुझे
00:05:53पता है कि फलानी बाद ठीक है
00:05:57पर पता नहीं क्यूं
00:05:59मानने का मन नहीं कर रहा
00:06:02तो इसमें ये जो पता नहीं क्यूं है न
00:06:07यही
00:06:10अहंकार की आश्रे स्थली है
00:06:14यहीं छुपा हुआ है
00:06:15सब पता है
00:06:18पर वो एक धुदली जगह बनाता है
00:06:21अंधेरे की असपश्टता की
00:06:24अज्यान की
00:06:26और वहीं पर बैठ करके वो
00:06:29अपने सारे काम कर लेता है
00:06:34वो बात को सीधा नहीं रहने देगा
00:06:36वो बात को बिलकुल
00:06:38रेखी ये नहीं रहने देगा
00:06:40तारकिक नहीं रहने देगा
00:06:41आप अक्सर देखिएगा
00:06:44किसी ने कोई बड़ी भारी गलती कर दी होगी
00:06:46बार बार समझाने पर भी
00:06:50वो पुरानी गलती हैं दोरा राय वेक्ते
00:06:52आप उससे पूछेंगे तुमने क्यों किया
00:06:54वो जवाब नहीं देगा
00:06:55जवाब क्यों नहीं देगा
00:06:58क्योंकि जब तक जवाब नहीं दिया है
00:07:00तब तक भीतर दो-चार विकल्ब बने रह सकते हैं
00:07:06अगर जवाब दे दिया
00:07:07अगर मुद्दे पर रोचनी पड़ गई
00:07:11तो जूट को कटना बड़ेगा
00:07:15अहंकार अंधेरे कोनों की तलाश में रहता है
00:07:20जहां आवाज उठानी चाहिए
00:07:25वहाँ पर अहंकार मौन की पीछे चुकता है
00:07:29मैं ठीक कह रहा हूं या नहीं
00:07:35अगर हां कह दिया
00:07:40तो अगर मैं ठीक कह रहा हूं
00:07:45तो मानो और जीओ
00:07:49अगर ना कह दिया
00:07:51मैंने पूछा मैं ठीक कह रहा हूं कि नहीं
00:07:53अगर हां कह दिया तो मानो और जीओ और अगर ना कह रहे हो
00:07:57तो अपना तर्क बताओ
00:08:00प्रश्न करो अपनी बात रखो
00:08:04तुम्हें पता है कि अपना तर्क रखोगे बात रखोगे तो बात जूटी साबित हो जाएगी तर्क कट जाएगा
00:08:13तो तुम क्या करोगे मैं सही क्या रहा हूं या नहीं
00:08:25कि बुल्शन में सही क्या रहा हूं कि नहीं
00:08:29हाँ भी खतरनाक है और ना भी खतरनाक है
00:08:34सुरक्षित जगह कौन सी है एक पशुवत मूख मौन ज़ते कहते हैं न भैस के आगे बीना बाजे भैस खड़ी पगुराए जवाब ही नहीं देना उसने
00:08:53अब भैस के आगे बीन बजा होगे तो वूँए कहेंगी क्या बात है यह कहेंगी क्या ठीक नहीं लग रहा है इसको ऐसे करीज़े उसको नहां है नना है वो खड़ी-्खड़ी क्या करे जो पगुराती रहेगी जो भैस का काम है वही अहंकार करता है वो भी तो एक पशुख �
00:09:23जताएं होती हैं जिनको हम कई बार रुमानी जामा पहना देते हैं जिनको कई बार हम एक भावनात्मक मुकता मान लेते हैं वहां कुछ भावनात्मक और नहीं है
00:09:38वहाँ बस बात यह है कि इस पश्ट जानबूज करके करा नहीं जा रहा है क्योंकि इस पश्टता अंकार को खा जाएगी तो इसलिए जानबूज करके चीज को
00:09:50द्वियर्थी रखा जा रहा है
00:09:54हम अरी बात समझे हैं और उसको ऐसे कह देते हैं कि नहीं पर हर बात इतनी सपश्ट थोड़ी होती है या हर बात शब्दों में व्यक्त थोड़ी हो सकती है देखो समझो अच्छे से बहुत
00:10:11सत्य शब्दों में व्यक्त नहीं हो सकता और मात्र सत्य ही शब्दों में व्यक्त नहीं हो सकता
00:10:23सत्य के अलावा सब कुछ शब्दों में व्यक्त हो सकता और होना चाहिए
00:10:27अनिर्वचनिय मात्र सत्य है अव्यक्त मात्र सत्य के लिए प्रयोक्त होता है
00:10:41भाशातीत, शब्दातीत, कालातीत, मनातीत ये सब मात्र सत्य होता है
00:10:54बाकी सब कुछ तो मन का विशेह ही है
00:10:57लिकिन सोचो अगर मात्र सत्य ही
00:11:02अनिर्वचनी होता है
00:11:12तो तुमने अगर किसी अपने छोटे से टुच्चे से मसले को लेकर के कह दिया
00:11:22कि इसको लफजों में बया नहीं कर सकते
00:11:25ये दिल की बाते हैं पारो
00:11:28ये शब्दों में नहीं समझाई जाती
00:11:32तो तुमने क्या करा है
00:11:34फिर से दोहराता हूँ
00:11:37मात्र सत्य ही शब्दों में व्यक्त नहीं हो सकता
00:11:40और तुम एक टुच्ची सी चीज ले आया
00:11:42और उसको लेकर कह रहा हूँ कि
00:11:43इसको समझाने के लिए मेरे पास अलफाज नहीं है
00:11:46शायराना अंदाज
00:11:48तो तुमने क्या कहा
00:11:51ये जो मैं छोटी दी चीज लेके आया हूँ ना
00:11:57ये इतनी उची चीज है कि यही सत्य है परम सत्य है
00:12:00और यही तो हंकार की चाल है ना अपुनिच आत्मा है
00:12:07अरे भाई एक ही जगह मौन रह जाना होता है
00:12:13बाकी सब जगह तो वाणी सुनाई दे
00:12:18बाकी जगहों पर चुप हो तो तुम बहुत गड़वड आदमी हो
00:12:22बहुत कुटेल आदमी हो
00:12:23कट उपनिशद में हम साथ हैं और केन उपनिशद है
00:12:32सब क्या बोलते हैं किसके पास वाणी नहीं पहुँच पाती
00:12:36मात्र सत्य के पास नहीं पहुँच पाती
00:12:40या यह कहा है कि जुन्नू के अर्मानों के पास भी वाणी नहीं पहुँच पाती
00:12:46और धनिया के जजबातों के पास भी वाणी नहीं पहुँच पाती
00:12:52ऐसा कहा है क्या तो जब ये सब बातें आती है
00:12:55तो फिर होट क्यों सिल लेते हो
00:12:56क्यों मूँ बंद कर लेते हो
00:12:59ये जो मूँ बंद करना और होट सिलना
00:13:05और चुप रह जाना है
00:13:06ये साज़ेश होती है
00:13:09ये साज़ेश होती है
00:13:11बहुत भ्यानक साज़ेश होती है
00:13:13खुद को बचाने की
00:13:14फिर कह रहा हूं
00:13:20मताओ मैं ठीक कह रहा हूं
00:13:22न हाँ बोलोगे न न
00:13:25हाँ बोलोगे
00:13:26तो जीना पड़ेगा
00:13:28न बोलोगे तो जूजना पड़ेगा
00:13:31मुझ से
00:13:32न जीना चाहते न जूजना चाहते
00:13:37मुर्दा पड़ा रहना चाहते हो
00:13:39इसलिए मैं पूछता हूँ बताओ मैं ठीक कह रहा हूँ
00:13:41अरे मैं ऐसे नहीं पूछता
00:13:45मैं पूछता हूँ समझ में आ रही ये बात
00:13:47न हाँ बोलोगे न ना बोलोगे
00:13:51हाँ बोलोगे तो बेइमानी हो जाएगी
00:13:55क्योंकि अगर समझ में आई है तो जीओ
00:13:57और ना बोलोगे तो कुटाई हो जाएगी
00:14:02ना ये दिखा सकते कि बेइमान है ना ये दिखा सकते कि बेइज़त है
00:14:11हाँ बोलोगे तो बेइमानी है
00:14:14और ना बोलोगे तो खुलेआम अभी बेजज़ती हो जाएगी
00:14:20यह बेईमान है यह बेज़त है
00:14:23तो बढ़ियां एक रास्ता निकलता है
00:14:26वेदान चुप़ी परदाश्ट नहीं करता
00:14:31क्याता है चुप्पी सिर्फ एक जगह शोभा देती है
00:14:34सिर्फ एक जगह
00:14:36और वो ऐसा है कि उसके सामने जब तुम ही नहीं बचोगे तो तुम्हारी आवास कैसे बचेगी
00:14:43उसके अलावा कहीं चुप मत हो जाना, बात करो
00:14:47पर हमने, हमारी संस्कृत ने, भारत ने बड़ा गलत चलन चला दिया
00:14:58हम बहुत ज़्यादा चुप रहने लगे
00:15:01और याद रखना तुम जहाँ चुप हो गए तुमने उस जगह को सत्य का नाम दे दिया
00:15:07ये तो तुमने बड़ा अपने साथ अनर्थ कर लिया न
00:15:11चुप तो सिर्फ उसके सामने होना है
00:15:15जो प्रीमी कभी हुए हैं
00:15:31सूफियों की तरफ से
00:15:32उन्होंने कभी कभी अपने आहलाद में ऐसे भी कहा है कि बोलू कैसे
00:15:41तेरे आलिंगन ने तेरे चुम्बन ने मेरे होट सिल दिये हैं बोलू कैसे
00:15:47चुप बस वहां हुआ जाता है जहां पर वो परम प्रियतम मिल जाता है
00:15:51बाकी जगह तो बोलना होता हो बाकी जगह अगर नहीं बोल रहे तो अपने ही खिलाफ तुम साजिश कर रहे हो
00:16:00तुम्हारी चुपी तुम्हारे सज्जन होने का या सदगुणी होने का या संसकारी होने का सुभूत नहीं है
00:16:16तुम्हारी चुपी तुम्हारे कुटिल होने का प्रमान है
00:16:24कि जैसे कालिदास को कहा गया था कि चुप रहना
00:16:27राजकुमारी के सामने कहानी लिखना खोज करके कम्यूनिटी में राजकुमारी नाम अभी ध्यान नहीं मुझको अरे बड़ी नक्चड़ी
00:16:42पूरी दुनिया उसके पीछे लगिए ब्याह करो ब्याह करो बोले वह वड़ी विदुशी वो बोले यह जितने तुम लेकर के आते वह सब जुन्नू हैं इनसे नहीं करती मैं व्याब शादी ब्याब
00:16:56और एक से एक उसके सामने वीर और अमीर और विद्वान लाए गए वो सब को नकार देती बुलती हटाओ यह सब
00:17:05मुझे करना ही नहीं लोग पीछे पड़े कि किसी से तो कर ले
00:17:14लड़की कोहारी हो तो बड़ी समस्या हो जाती है पूरी दुनिया को किसी से तो कर ले पर कर तो उसको अपनी विद्वत्ता पर भरोसा तो बोली कि जो मुझे
00:17:27शास्त्रार्थ में हरा देगा कर लूँगी ब्या जाओ ले आओ खोज के कोई ऐसा जो हराई दे मुझे शास्त्रार्थ में तो सब
00:17:37कि उससे परेशान थे कहा करें कि बड़ी नक्चड़ी है और चोट लगी हुई थी क्योंकि सब को उसने नकार रखा था
00:17:47कि सबको ऐसे बोलती थी हैं तुम भी नहीं तुम भी नहीं रिजेक्टेड रिजेक्टेड अस्वीकार हटो कोड़ा ले आए तो यह सब गुट बनाकर निकले उन्होंने शड्यंत्र करा बोले सबसे जो मूरक आदमियों उसको खोचते हैं
00:18:02कहते हैं कि गए तो यह मिले महराज हमारे यह जिस डाल पर बैठे थे पेण पर उसी को काट रहे थे
00:18:14इसे को काट रहे थे और काट भी गलत तरफ से रहे थे यह नहीं कि तने की तरफ बैठे और आगे काट रहे हो यह डाल पर इसे कार रहे थे इन्हों सब
00:18:28ने देखा नीजे से बोले थे जिसको खोज रहे थे मिल गया कर बहुत सूदर राज기도 है
00:18:43हमारा हमसे कोई नहीं करता हम प्रसिद्ध है अपनी मूर्गता के लिए कोई आती नहीं हमारे पास बोले ऐक काम करने चुप रहोगे
00:18:54कि शुप मुल्शन क्या चुप ठीक है चुप रहोगे और चुप रहने से तुम्हारा काम हो जाएगा
00:19:01कि अच्छि चुप रहना है और पूछेगी तो जवाब कैसे देना है बूले कुछ नहीं जावाब हो आप कुछ भी इशारा कर देना हम मों बैठेंगे हम कहेंगे कि तुम महाविद्वान हो
00:19:14और सत्य में स्थापित रहते हो और सत्य में तो वानी अवरुद्ध हो जाती है तुम कुछ बोलते हैं नहीं तुम बस इशारे करते हो तुम्हारे इशारों का अर्थ हम बता देंगे
00:19:24बोले इशारे कैसे करने बोले तुम यही करना वस के ऐसे कभी एक उंगली दिखाना कभी यंगउठा दिखाना कभी ताली वजाना तुम आगे कहानी आप पढ़ लिजेगा पर वो ऐसे ही है कि वहां गए वह आयए बैठे उनको बताएं कि बोलते नहीं है
00:19:42तो राजकुमारी गोली ठीक है संकेतों में जवाब सुन लेंगे तो राजकुमारी पूछती है जीवन क्या है तो यह उसको ऐसे देख रहे हैं चुप
00:19:53और जितने वो सब बैठे हुए थे जो पराजित थे राजकुमारी से अर्चड़े हुए थे वो सब लगे वाँ वाँ वाँ ताली बजाने साधुवाद साधुवाद
00:20:04तो राजमारी ने बोला मतलब बोले अरे कह रहे हैं जीवन द्वायत है तभी तो जीवन में इतना दुख है
00:20:13तो वो पुछती है तो बढ़ियां बोल रहे हैं कि जीवन द्वायत है तभी जीवन में दुख है
00:20:22तो पुछती है फिर इस दुख से मुक्ते का रास्ता क्या है
00:20:26उकालदा से उदर देखते हैं और ऐसे
00:20:28फिर लोगों न तालियां वो पीट दी गार एक घजब हो गया
00:20:32इतना महान ऐसा तो हमने आज तक देखा ही नहीं
00:20:35तो राजकुमारी ने पूछा ही क्या है
00:20:37वो लिए हो कह रहे हैं दुख से मुक्ती अद्वायत है
00:20:40तो इस तरह करके हो जो भी पूछती गई
00:20:44अभी तो मैंने आज इमन गणत बोल दिया आप
00:20:46पढ़ लीजेगा तो जो भी पूछती गई अपना कुछ बोलते गए
00:20:50और इनका ब्या हो गया
00:20:54ब्याह के बाद अभी ये मिलने गए उससे तो बाहर से जा रहा था उट
00:21:02तो उट को देखके बोलते हैं उट्र उट्र संस्कृत
00:21:09उट को संस्कृत में क्या बोलते हैं उष्ट्र ये बोल रहे हैं उट्र उट्र
00:21:15राजगुमारी ने अपना माथा पीट लिया मुली ये तो गलत हो गया मेरे साथ जहासे में आ गई ये तो उट रहे है बहुत लोगों ने भारत में इस कहानी से बड़ी गहरी सीख लिये
00:21:34क्या सीख लिये चुप रहो जब तक चुप रहोगे तब तक तुम्हारी मूर्खता और तुम्हारा अंकार छुपा रहेगा
00:21:46और जहां मूँ खोला तहां पोल भी खुलेगी
00:21:50आरी बात समझ गए विदानत कहता है मूँ खोलो ताकि पोल खुले
00:21:58पोल नहीं खुलेगी तो तुम्हारे बंधन भी नहीं खुलेंगे
00:22:20जो भी बात है उसको जैसा भी तुम समझते हो व्यक्त करो
00:22:28चुप मत रह जाओ और जो लोग बहुत चुप रहते हो कम बोलते हो
00:22:35वो अपने आपको संसकारी नहीं हंकारी समझें
00:22:44यह तुम्हारा हंकार है जो मौन की आड में नाचरा है
00:22:58बात करो न जो भी मुद्दाय सामने लाओ न अगर सही होगा तो पुष्टी हो जाएगी
00:23:08और अगर तुम गलत होगे ब्रह्म होगा तो तुर्टी सुधार होगा
00:23:22बोलो
00:23:24तो यह सब बातें जिनको हम कहते हैं अपनी आम जबान में और उनके अर्थों को
00:23:38हम
00:23:40साफ करते नहीं
00:23:44इनको विदान्त ने
00:23:46और खासकर भाषे करते समय अचारे शंकर ने
00:23:53एकदम सुक्ष्मता से इस पश्ट कराया है
00:23:58वो कहते हैं कि
00:23:59कोई भी हवा हवाई बात नहीं चलेगी
00:24:03जब आप
00:24:04किसी शब्द का प्रयोक कर रहे हैं
00:24:07तो उसका बहुत खास विशिष्ट अर्थ होना चाहिए
00:24:12यह नहीं कि
00:24:15आप उसमें अपने भाव डाल रहे हैं
00:24:17तो उसका एक अर्थ हो गया, दूसरा ढाल रहा है
00:24:19दूसरे का दूसरा अर्थ हो गया, तीसरे का तीसरा
00:24:21एक शब्द
00:24:23का अर्थ उसकी
00:24:27परिभाशा निर्धारित करेगी
00:24:29और जो उसकी परिभाशा है
00:24:31वो एक होनी चाहिए
00:24:33वैश्वेक होनी चाहिए
00:24:34रटिगत नहीं हो सकती
00:24:37वस्तुगत होनी चाहिए
00:24:40तो जब हम कहते हैं भीतर भीतर भीतर
00:24:47भीतर ऐसा हो रहा है भीतर ऐसा हो रहा है
00:24:49तो उसको
00:24:52पकड लेते हैं रिशे, और बोलते हैं भीतर माने क्या, ऐसे नहीं चलेगा, कुछ भी बोल देते हैं, बोलते हो, जो मेरे इश्ट, मेरे भीतर विराजें हैं, चलता है की नहीं, धार्मिक लोगों में इस तरह है, कप्रपंज खूब चलता है, और जब चलता है तो बाकी लो�
00:25:22तो आपको तुरुन पकड़ लेंगे, वो बोलेंगे भीतर माने क्या, भीतर माने क्या, आप कहोगे भीतर, भीतर माने आत्मा, एक दम ऐसे कान पकड़ लेंगे, और मरोड़न देंगे,
00:25:40कहेंगे भीतर आत्मा नहीं होती
00:25:44तो आप पुछोगे फिर भीतर क्या होता है
00:25:46कुछ-कुछ तो होता है न रिशी जी
00:25:48तुम नहीं समझोगे रिशू
00:25:52कुछ-कुछ होता है
00:25:54वो कहेंगे हाँ कुछ-कुछ होता है
00:26:00पर जो होता है वो आत्मा नहीं होती
00:26:01तो आप पुछोगे क्या होता है
00:26:03तो उन्होंने कहा अंतह करण
00:26:06जब भी आपके भीतर कुछ होता है
00:26:09सबसे महत्वपूर्ण बाद
00:26:11आत्मा में कुछ नहीं होता
00:26:12मेरी आत्मा में खुजली हो रही है
00:26:16आत्मा को दस्त लगे है
00:26:18आत्मा में दाग लगे है
00:26:20आत्मा कुल बुला रही है
00:26:23आत्मा उत्तेजित है
00:26:26आत्मा रो रही है
00:26:27आत्मा निकल भागी
00:26:29F.I.R करो
00:26:30आत्मा में कभी कुछ नहीं होता
00:26:35भीतर जो कुछ होता है वो अंताकरण में होता है
00:26:37अंताकरण पर अभियम आते हैं
00:26:39पहले ही समझना बहुत जरूरी है
00:26:40आत्मा नहीं है भीतर
00:26:41तो फिर हम चलते फिरते बात करते कैसे हैं
00:26:55और आदमी जब मर जाता है
00:26:56तो बताओ फिर उसमें से क्या निकल जाता है
00:26:59शरीर तो यहीं रहता है ना
00:27:01पर आदमी मर जाता है तो चलता नहीं बात नहीं करता
00:27:04खाता पीता नहीं सांस नहीं लेता
00:27:05तो कुछ निकली तो जाता होगा भीतर से
00:27:08बुद्धु इस आचारे को इत्ता भी नहीं पता
00:27:10कित्ता बुद्धु है
00:27:15कित्ता बुद्धु है
00:27:19इसको इत्ता भी नहीं पता
00:27:21कुछ होगा भीतर
00:27:26तभी तो नहीं तो एक आदमी खड़ा है
00:27:29अभी ओ मर गया
00:27:30शरीर तो वही है, कुछ निकल गया होगा
00:27:32तब ही तो
00:27:35दुनिया का जो सबसे बड़ा जूट है
00:27:40जिसने दुनिया को सबसे बड़ा कश्ट दिया
00:27:42और हर बंधन के मूल में वही जूट है
00:27:44उसका नाम है जीवात्मा
00:27:46उसी जीवात्मा के लिए शब्द है अहंकार
00:27:50यह दोनों एक हैं, बिलकول एक हैं
00:27:51जीवात्मा और हंकार
00:27:52जिसको तुम मानते हो के है पर है नहीं
00:27:56और धोकों में धोका ये है कि तुमने
00:28:01जीवात्मा कोई प्रचारित कर दिया
00:28:04आत्मा उच्चतम वेदिक सत्य है
00:28:07और जीवात्मा दुनिया का सबसे बड़ा जूट है
00:28:10कुछ नहीं है भीतर
00:28:13नहीं पर वो तो तुमने बताये ही नहीं
00:28:15अले बुद्धुलाल
00:28:16कि जो मल जाता है उसके भीतल चे क्या निकल जाता है बताओ बताओ
00:28:23एक पुल है
00:28:27एक पुल है
00:28:29बढ़िया काम कर रहा था लोहे का पुल
00:28:34धीरे धीरे धीरे
00:28:39उसमें जंग लगता गया लगता गया लगता गया
00:28:44बहार से वो लगभग वैसे ही दिख रहा था
00:28:49उसमें दिखाई देने लग जाता था कि
00:28:52सुर्ख लाल रंग का जंग प्रतीत हो रहा है
00:28:56उसकी सतह से कुछ उधाड रहा है
00:28:58वरना बहुत दूर से देखो तो पुल वैसे ही दิखता था जैसे
00:29:0245-40 साल पहले पुराना वो दिखाई देता था
00:29:06अभी भी वैसे ही तहां पास जाके देखो
00:29:08तो देखता था कि इसकी खाल पर जुरियां पड़ रही है इस पुल की
00:29:12वो जंग है जो उसको लगता जा रहा है और पूरे तरीके से एक रासायनिक क्रिया है एक क्यमिकल प्रोसेस है पुल धीरे धीरे बदलता जा रहा था
00:29:24किस दिन से बदलना शुरू हुआ था?
00:29:27जिस दिन से पुल बना था ठीक, उसी दिन से उसके अणूओं में जंग लगनी शुरू हो गई थी, पर पता नहीं चलती थी.
00:29:35वो जंग धीरी-दीरे बढ़ती गई, बढ़ती गई, एक दिन पुल ढह जाता है, बताओ पुल के भीतर से कुछ निकल गया है क्या, एक रासाइन एक क्रिया थी, हो गई, समाप्त हो गया सब, कुछ निकल थोड़ी गया उस पुल के भीतर से, या निकल गया है, ठीक इसी तर
00:30:05में होती है जब कोशिका विभाजित होती एक तो काइदे से उसे वो सारी की सारी
00:30:13सूचना के आगे वाली कोशिकाओं को अपनी संतान कोशिकाओं को दे देनी चाहिए और देती भी है
00:30:21पर कुछ परिस्थितियों में और एक समय के बाद ये बात आपकी शारेदिक संगरचना में नहीं थे
00:30:31शुरुआत से नहीं थे आप पैदा होते हो तभी आपकी कोशिका को ये भी पता होता है
00:30:36कि इतने बरस की उम्र के बाद मुझे अपनी सारी जैनिटिक सूचना आने वाली संतानों को नहीं देनी है
00:30:5430-30 की उम्र तक जो ये प्रक्रिया है सूचना की अग्रेशन की वो चलती रहती है कोई समस्या नहीं होती उसके बाद जो नई कोशिकाएं पैदा होती है वो पुरानी कोशिकाओं से थोड़ी भिन्न होती है थोड़ी कमजोर होती है और ये बात आपकी शारिरिक संगर्चना म
00:31:24उसने आपको पैदा ही ऐसा करा है उसने आपको पैदा ही करा है मरने के लिए आप जिस दिन पैदा होते हो उसी दिन आपकी कोशिकाओं में लिखा होता है कि इतनी उम्र के बाद से धीरे धीरे धीरे धीरे जंग लगना शुरू हो जाए जितनी आपकी उम्र बढ़ती जा�
00:31:54का लॉस होता जाता है तो इसलिए आपका शरीर फिर वैसे नहीं चल सकता जैसे पहले चलता था
00:32:04है एक तरह का जंग ही मान लो इसको शरीर का और फिर एक बिन्दु आता है जब फुल इतना कमजोर हो जाता है कि गिरी जाता है उसी तरीके से एक
00:32:15बिंदो आता है जब शरीर भी इतना कमजोर हो जाता है गिरी जाता है ना पुल के भीतर से कुछ निकल भागा है ना शरीर के भीतर से कुछ निकल भागा है एक केमिकल प्रोसेस चल रहा था बस
00:32:25और यह कोई नई बात नहीं है भगवद गीता में श्री कृष्ण कहते हैं कि अहंकार प्रक्रतिकाही एक तत्व है अहंकार जैसे शरीर है वैसे यह हंकार है प्रक्रतिकाही एक तत्व है जैसे मिट्टी है वैसे यह हंकार और कुछ नहीं है वो उसका संबंध शरीर से ही है इ
00:32:55कि शरीर की ही उसको एक अभिव्यक्ति मान लो
00:33:03शरीर जब तक एक खास इस्थित में है
00:33:08तो उससे एक प्रतीत हो सकती है जिसको कहते हैं अहंकार
00:33:16उसमें कुछ भी शरीर से इतर नहीं है
00:33:23उसमें कुछ भी परा भौतिक नहीं है वो पूरी तरह भौतिक है
00:33:28वो भूतों की ही पैदाईश है
00:33:30ठीक वैसे जैसे पुल की ताकत पुल में कहीं बाहर से नहीं आती
00:33:37पुल के धाचे का परिणाम होती है पुल की ताकत होती है न
00:33:42और जब वो धाचा कमजोर पड़ जाता है तो ताकत एक मुकाम पर आकर शून्य भी हो जाती है
00:33:49अहंकार को ऐसे ही समझे लो कि तुम्हारा यह जो शारीरिक धाचा है
00:33:52इस शारीरिक धाचे की एक उत्पत्य है वो
00:33:57बिल्कल शारीरिक है
00:34:04और शारीरिक धाचा जब तक तक तुम्हारा ठीक चलता है तब तक उसकी प्रतीते होती रहती है
00:34:11और जैसे ऐसे तुम्हारा शारीरिक धाचा
00:34:14बदलने लगता है बिगडने लगता है
00:34:18एक बिंदो आता है जब तुम बिलकुल ऐसे ढहकर गिर जाते हो जैसे एक बिंदो आता है जब पुल ढहकर अचानक गिर जाता है
00:34:28और पुल का गिरना ज़रूरी नहीं है कि लंबी उम्र के बाद हो पुल पर बम गिरा दो तो दो साल पुराना पुल भी गिर सकता है
00:34:36वैसे इंसान पर बम गिरा दो
00:34:38तो 20 साल का इंसान भी मर सकता है
00:34:40पर बम ना गिराओ
00:34:41तो पुल भी चलेगा 70-80 साल
00:34:44और इंसान भी चलेगा 70-80 साल
00:34:46पुल के पास ताकत होती है
00:34:52पुल के धाचे के पास
00:34:54एक गुण होता है जिसको आप बोलोगे
00:34:56ताकत और इंसान के धाचे में एक गुण होता है जिसको आप कहोगे अहंकार
00:35:01वो धाचे से भिन नहीं है जरावी
00:35:04इसका अर्थ है कि धाचा गया तो
00:35:07वो गुण भी गया ठीक वैसे जैसे पुल के गिरने के बाद
00:35:12ताकत शेष नहीं रह जाती उसी तरीके से शरीर के गिरने के बाद
00:35:17कोई जीवात्मा नहीं शेष रह जाती
00:35:18जीवात्मा को अगर तुम्हें मानना भी है अहंकार जीवात्मा माने अहंकार
00:35:25उसको तुम्हें अगर मानना भी है तो वो सिर्फ तब तक है जब तक शरीर है
00:35:30ठीक वैसे जैसे पुल में ताकत तभी तक है जब तक पुल है जिस दिन पुल नहीं तो ताकत बचेगी क्या ऐसा थोड़ी है कि पुल जब गिर जाता है तो उसकी ताकत हवा में उड़ जाती है और अब वो किसी दूसरी पुलिया के गर्ब में घुस करके नए पुल को जन्म
00:36:00नहीं है लोग पूछते हैं आत्मा भीतर नहीं है तो कहां है आत्मा स्थान से अतीत है तुम ऐसे पूछरो जैसे आत्मा कोई
00:36:12लोग पुछते वड़ी मासूमित से, आचारे जी आपनी ये तो बोल दिया, कि शरीर में नहीं आत्मा, अले पल छलील में नहीं तो कहां है, देखा बुधु ही निकले, छलील में नहीं तो क्या कटोले में है, किता बुधु है जै आचाले, ये सब जो तुम्हें दिखाई �
00:36:42भूम रही है उसे नहीं जाना जा सकता है वो अनन्थ है उसकी कोई सीमाएं नहीं है उसको कहीं रखा नहीं जा सकता है उसकी कोई परिभाशा नहीं है उसके बारे में सोचे नहीं जा सकता है उसकी कलपना नहीं की जा सकती उसे आत्मा बोलते हैं तो यह तुम क्या पूछ रह
00:37:12पुत्री आयामी स्पेस है इसमें कहीं नहीं है और इसी लिए इसको माया बोला जाता है क्योंकि आत्मा सत्य है और यह माया है माया तो है यह नहीं आत्मा मात्र है
00:37:29अब यह सुनने में कठिनाई हो रही है इसी कठिनाई से बचने के लिए लोग धर्मियों ने सस्ता फार्मूला निकाला बोले आत्मा एक चडिया है जो यहां रहती है और मरते समय उपर से उड़ जाती है और उसके उपर उसके करमों का सारा बोज होता है तो पुर्ण्यात्म
00:37:59और इस तरह से चक्र चलता रहता है यह निकाल दिया यह बाल कथा यह परी कथा मुनरंजन के लिए ठीक है पर इसका सत्य से दर्शन से वेदांत से कोई संबंध नहीं है तो भीतर क्या है अंतः करन और अंतः करन के चार हिस्से मन बुद्ध चित अहंकार भीतर आत्मा नह
00:38:29बुद्ध चित अहंकार आज श्री कृष्ण उसमें से एक हिस्से की बात कर रहे हैं चित की
00:38:34चित तक पहुँचने के लिए जरूरी है कि अंताकरण को समझो अंताकरण तक पहुचने के लिए जरूरी है कि जानो कि भीतर आत्मा नहीं है
00:38:44क्योंकि भीतर अगर आत्मा है तो अंतहकरण का प्रशनी नहीं पैदा होता
00:38:48भीतर आत्मा नहीं अंतहकरण है
00:38:53मन बुद्ध चित्त्यां का मन क्या है?
00:38:58संशय, संकल्प, विकल्प के पिंड को मन कहते हैं
00:39:07इसको मैंने आप के लिए आसान करके कह दिया है कि
00:39:10आहम के इर्द गिर्द जो मुहला बसा होता है
00:39:12विशयों का पूरा जमघट
00:39:14उसको मन कहते हैं
00:39:16पर जो शास्त्री परिभाशा है कि
00:39:18जिसके बड़े विचार
00:39:20उठते रहते हैं
00:39:22जिसको बहुत सारे
00:39:23विकल्प दिखाई देते रहते हैं
00:39:25जो संशय करता है
00:39:29उसको कहते हैं मन
00:39:31इस तरह से मन की परिभाशा
00:39:33बुद्धि
00:39:36जो निरणय लेती है
00:39:38जो कारणता निरधारित करती है
00:39:44उसको कहते हैं बुद्धि
00:39:45अंकार
00:39:47मैं भाव को अंकार कहते हैं
00:39:51चित जो आज के श्लोक का विशय है
00:39:59सारी स्मृतियों और संसकारों के भंडार ग्रह को चित कहते हैं
00:40:12सारी स्मृतियों और संसकारों के भंडार ग्रह को चित कहते हैं
00:40:17जहां आपके सारे अनुभाव सारी यादें
00:40:20सब जा करके
00:40:23भंडारित रहता है
00:40:25संग्रहीत रहता है
00:40:29वहां संग्रह भी है और वहीं से फिर जब बुद्ध अतीत से कोई सामगरी मांगती है तो सामगरी की आपूर्ती हो जाती है उसे चित कहते हैं तो चित क्या है भंडारग्र है
00:40:44अतीत का और सारे शारीरिक संसकारों का उसको ऐसे भी कह सकते हो कि सब अनुभवों यादों सामाजिक संसकारों और शारीरिक संसकारों के संग्रह को चित कहते हैं
00:41:14आरी बात समझ भाएं
00:41:35बड़ी गजब की बात कह रहे हैं श्री कृष्णा योग की माने जीवन मुक्ति की परिभाशा दे रहे हैं
00:41:48कि अब श्लोक आपके लिए पढ़ रहा हूं शठा ध्या ठारवा श्लोक
00:41:53जब चित संयमित होकर आत्मा में स्थित रहे चित संयमित है और आत्मा में स्थित रहे तो वो निस्प्रह हो जाता है और युक्त कहलाता है योग में स्थित कहलाता है
00:42:12ले ले ले तो इनके लिए संयुक्त शब्द है इस्प्रिहा
00:42:42ठीक है तो चित जब आत्मा में इस्थित रहता है श्री कृष्ण कह रहे हैं तो उसको कहते हैं योग चित चित जब आत्मा में इस्थित रहता है
00:43:00बात गंभीर हो रही यह समझो चित क्या है अंता करण में श्री कृष्ण ने अंकार को नहीं उठाया है किसको उठा रहे हैं और पतंजली ने भी यही करा था
00:43:17इकदम आरंभ में ही योग सूत्र में क्या परिभाशा देते हैं योग की कि चित की वृत्त के निरोध को योग कहते हैं हंकार नहीं लिया चित लिया अंता करण में तो चित भी है हंकार भी है यह भी कह सकते थे कि हंकार के ही शमन को योग कहते हैं वो भी ठीक होता
00:43:37पर दर्शन का काम है सिर्फ ठीक से संतुष्ट न हो जाना
00:43:43बात को ठीक से आगे बढ़ा कर सटीक बना देना
00:43:46ठीक से आगे बढ़ा कर एकदम ठीक बना देना
00:43:53ठीक से ज्यादा ठीक बना देना
00:43:56आडिवत
00:43:59अब हालंकि आप देखोगे तो अलग-अलग जगों पर अब जैसे इस्थित प्रग्य या इस्थित धी जब कहते हैं श्री कृष्ण तो आप बुद्धी की बात कर रहे हैं कि बुद्ध आत्मा में इस्थित है तो वो फिर जीवन मुक्त है तो अंतह करण में से आप कभी अह
00:44:29आज किसको ले करके कह रहे हैं और मन को लेके तो कहा ही जाता है कि जिसका मन परम में लग गया वो मुक्त हो गया तो हर तरीके से कहा जाता है मन अगर लग गया आत्मा में तो भी उसको कहते हैं कि मुक्त है बुद्धी लग गई तो भी इस्थित धी और अंकार तो है ही कि
00:44:59अहम को आत्मस्थ करना है आज कह रहे हैं चित को आत्मस्थ करना योग है चित को आत्मस्थ करना योग है और गूढ बात है कि चित को आत्मस्थ करना योग है चित क्या है संग्रह पुराना गोदाम
00:45:17पुराना गुदाम जिसमें क्या भरे हुए हैं?
00:45:24आपकी सब स्मृतियां अनुभव
00:45:26सामाजिक ही नहीं शारिरिक संस्कार भी भरे हुए हैं
00:45:30उसे बोलते हैं चित
00:45:31यह जो है इसको आत्मा के हवाले जिसने कर दिया
00:45:37मने जिसने ले जाकर के इसको समर्पित कर दिया
00:45:43सत्य को वो हुआ योगी और वही हो पाएगा निस्प्रफ
00:45:49नहीं तो नहीं हो पाओगे
00:45:53बड़ी मनोवज्ञानिक बात है
00:45:56अहंकार को चलाने वाला तो उसका अतीत, स्मृतियां और संसकार ही होते हैं न?
00:46:06अहंकार को तुम कैसे नमित करोगे जब तक तुम अपने संसकारों को बहुत महत्तो देते हो
00:46:14कैसे करोगे?
00:46:21श्री कृष्ण कहा रहे हैं जो अपने संसकारों को सत्य को समर्पित करने को तयार नहीं वो कभी युक्त नहीं हो पाएगा
00:46:32युक्त माने मुक्त
00:46:33जो अपने संसकारों को लिए लिए सोचेगा
00:46:40कि मुक्त हो जाऊं
00:46:44बुद्धु बना रहा है खुद को
00:46:48और आप सब लोग गीता यात्रा में साथ हैं
00:46:54और बहुत लोगों के तो तीन वर्ष से भी अधिक हो रहे हैं
00:47:03कई लोग तो अब चार वर्ष पूरे कर रहे होंगे
00:47:07करने वाले होंगे कुछ महीनों में
00:47:12अगर कहीं पर कुछ अटक रहा है न तो यही
00:47:21लोक धर्म में संसकारों को बड़ी बात माना जाता है
00:47:29संसकारों को बिलकुल सत्य के समतुल्य ही रख देते हैं
00:47:33और श्री कृष्ण आप से कह रहे हैं कि चित को और चित माने संसकार
00:47:41कि चित को माने संसकारों को आत्मस्त करे बिना
00:47:47मुक्ति संभव नहीं है आप भी सब यहीं पर फस रहे हैं आप सूचते होंगे कहते हैं कि सब
00:47:55सब ठीक है फिर क्या अटक रही है कि आप अभी तक देख नहीं पारे कि एक चीज जिसको आप बहुत अच्छा मानते हो वह गडवड़ है वह संसकार
00:48:06कंडिशनिंग के लिए शास्त्रिय शब्द है संसकार जिसने संसकार को पकड़ रखा है वह अभी प्रभावित है अनुकूलित है
00:48:29कंडिशन्ड है उसके उपर जगत की चाप पड़ी हुई है अंग्रेजी में संसकारों को मालू में क्या बोलते हैं इंप्रेशन्स
00:48:50अभी चाप पड़ी हुई है और जिसके उपर अभी जगत की चाप पड़ी हुई है वो मुक्त कैसे होगा
00:48:59जगत की छाप माने गंदगी की छाप
00:49:01गंदगी छपी हुई है भी आपके उपर
00:49:06तो आप निर्मल के दौर कैसे जाओगे
00:49:11मैली चादर ओढ़ के कैसे
00:49:19दौर तुम्हारे आओ
00:49:24यहां गा रहे हैं
00:49:26तो उन्हें पता तो है कम से कम की समस्या यह है
00:49:29कि मेरी चादर मैली है
00:49:31और चादर को जो मैला कर दे उसको ही संसकार कहते हैं
00:49:36आप कहेंगे संसकारों का यह अर्थ तो नहीं होता
00:49:43संसकारों का वास्तविक अर्थ होना चाहिए
00:49:47जो चादर के मैलेपन को हटा दे
00:49:49पर जो चादर के मैलेपन को हटाता है
00:49:52वो फिर चित्व में कभी भी संग्रहीत नहीं होता
00:49:56ठीक वैसे जैसे आपकी साड़ी अगर मैली है
00:49:58आप साबुन से उसको रगडते है
00:50:01तो क्या साबुन साड़ी में लगा रह जाता है
00:50:06क्या साबुन छपा रह जाता है
00:50:09तो अगर संसकार असली होता तो गंदगी के साथ स्वयम भी बह गया होता
00:50:16साबुन आता है गंदगी हटाता है और स्वयम भी बह जाता है पर हमारे संसकार बह नहीं जाते हैं
00:50:22हमारे संसकार हमारे भीतर पढ़े रहते हैं हम कहते हैं मैं संसकारित हूं और इस बात में गर्व अनुभाव करते हैं कि आपके भीतर संसकार बैठे हुए हैं अगर आपके भीतर संसकार बैठे हुए हैं तो फिर वो साबुन नहीं है वो गंदगी है जो साबुन का रूप ले
00:50:52जब सोने की सफाई की जाती है सोने में से गंदगी हटाई जाती है उसको भी कहते हैं कि अब सोना संसकारित किया जा रहा है आग से निकालते हैं सोने को और कुछ द्रव्यों से निकालते हैं सोने को उसको भी यही कहते हैं कि सोना अभी संसकारित किया जा रहा है सोने को आग स
00:51:22और हम बहुत खुश होते हैं कि देखो हम तो अपने संस्कारों पर चलते हैं।
00:51:25जो संस्कार तुमारे भीतर बैट गया हो वही तो बंधन है और उसी से मुक्ति की बाद गीता कर रही है।
00:51:31बास्तविक संस्कार आएगा,
00:51:41मिटाएगा और मिट जाएगा।
00:51:45रुकेगा नहीं, टिकेगा नहीं, बैठेगा नहीं, संग्रहीत नहीं होगा।
00:51:54तो जब तक तुम्हारे भीतर पाप पुन्य की अउधारणा बैठी रहेगी।
00:52:17कि मुझे सिखाया गया है कि ऐसी बात पाप है, ऐसी बात पुन्य है।
00:52:22श्री कृष्ण कहा रहे हैं, तुम्हारे लिए न योग है, न युक्ति न मुक्ति।
00:52:28और आप जाएंगे अश्टावक्र के पास, या आप जाएंगे रिशीदत्तात्रिये के पास, अउधूद गीता में, और तो बार बार यही बात है, कि सबसे बड़ा बंधन तुम्हारी पाप पुन्य की अउधारणा है।
00:52:46और लोग के धर्म में बार बार आप यही पाऊगे, बाबा जी लगे हुए हैं, फलाना काम पाप है, फलाना काम पूर्णे हैं, फलाना काम पाप है, फलाना काम पूर्णे हैं, ये विशह अच्छा है, ये विशह बुरा है, ये पकड़ो, ये छोड़ो, ये सब बालक स्तर
00:53:16ये सब बंधन है ये जो मान के बैठे हो पहले से कि ये अच्छा है ये बुरा है
00:53:20सिर्फ चेतना का उर्धोगमन अच्छा है
00:53:26और अधोगमन बुरा है बाकी कुछ नाच्छा है ना बुरा है
00:53:32चेतना तै करेगी किस दिशा जाना है
00:53:35ना अच्छी दिशा जाना है ना बुरी दिशा से बचना है
00:53:40चेतना की उचाईयां निर्धारित कर देती है
00:53:43स्वयमी किधर को बढ़ना है जिधर को बढ़ना है उधर को बढ़ो
00:53:46क्या पाप क्या पुर्णने किसके लिए
00:53:48स्मृते और संसकार
00:53:52ये एक ही बात
00:53:54संसकार ही भीतर बैठ जाते हैं स्मृति बनकर
00:53:59और जितनी पुरानी स्मृतियां होती है
00:54:02वो आपके संसकार बन जाती है
00:54:04कोई चीज ऐसे नहीं हो सकती
00:54:07जो आपके भीतर स्मृति बनकर बैठी है
00:54:09पर उसने आपको प्रभावित न कर दिया
00:54:11प्रभावित कर दिया, माने संस्कारित कर दिया
00:54:13अनुभाव स्मृति बनते हैं
00:54:27स्मृति संस्कार बन जाती है
00:54:29और ये सब के सब
00:54:30किस डब्बे में बैठे रहते हैं
00:54:33चित्त के डब्बे में
00:54:34मुक्त की पहचान ये है
00:54:39कि वो अनुभवों से गुजरता जाता है
00:54:41उन्हें स्मृतिस्थ करने की
00:54:43उसको कोई जरूरत नहीं पड़ती
00:54:45कुछ याद रह गया तो
00:54:47रह गया नहीं तो ठीक
00:54:49शरीर है कुछ बाते याद रखेगा
00:54:54याद रख ली तो रखली नहीं तो थुम्ः आगे बड़ गयें
00:54:57आप उससे बार-बार पूछा एक फिर क्या हुआ था तब क्या हुआ था ऐसा
00:55:01क्या हुआ था तो उसको कठिनाई हो जाएगी हो उसको याद ही नहीं आएगा
00:55:06लाधी नहीं आएगा अभी तो मुश्किल से आएगा उसको जोर लगाना पड़ेगा
00:55:19और जो बंधन में हैं हंकारी है उसकी खास पहचान क्या है वो यादों में जीता है वो स्मृतियों में जीता है
00:55:25अतीत उसके लिए बहुत बड़ी बात होती है वो जैसा पात साल पहले था समझे लीज़े आज भी वैसा ही रह जाता है क्योंकि अतीत उसके लिए बड़ी बात है न वो बदलने नहीं पाता
00:55:37और जो बदल नहीं सकता वो सत्य के साथ नहीं हो सकता
00:55:45क्योंकि प्रक्रति में निरंतर बदलाओ है
00:55:49आत्मस्त होने के लिए प्रक्रतिस्त होना जरूरी है
00:55:52आप बदल नहीं रहे तो आप प्रक्रति के ही साथ नहीं हो
00:55:56जो प्रक्रते के साथ नहीं है वो सत्ते के साथ कैसे हो लेगा
00:55:58जो काल के साथ बदल नहीं रहा वो काल में ही कालातीत खोजने का प्रयास कर रहा है
00:56:08समझना
00:56:10काल माने लगातार बदला हो रहा है ठीक और आप कहरें नहीं नहीं
00:56:17नहीं, समय भरने बदल रहा हो पर हम नहीं बदलेंगे, या हम फलानी चीज नहीं बदलेंगे, अपने कपड़े लगते नहीं बदलेंगे, अपने तोर तरीके नहीं बदलेंगे, अपनी भाशा नहीं बदलेंगे, हम नहीं बदलेंगे, जो ना बदले उसको क्या बोलते हैं,
00:56:47जो बदल सकता है अगर तुम उसको बदलने से रोक रहे हो तो आशे समझो तुम कह रहे हो ये सब कुछ जो परिवर्तन शील है मैं इसमें ही परिवर्तनिये को कहीं
00:57:00स्थापित कर दूँगा ये कैसे हो सकता है ये क्या कर रहे हो
00:57:05मतलब जो सचमुच अपरिवर्तनिये हैं उससे तुम्हें इतना डर लगता है कि तुम परिवर्तन की धारा की किसी लहर को पकड़कर उसको नाम दे रहे हो अपरिवर्तनिये का
00:57:22सत्य से तुम्हें इतना डर लगता है कि तुम असत्य की धारा में ही किसी बूंद को पकड़कर कह रहे हो यही सत्य है
00:57:31तुम तो सत्य द्रोही हो
00:57:37जो बदलने से मना करे
00:57:42और कहें कि हम तो ऐसे ही चलेंगे जैसे
00:57:46पात सव हदार साल पहले काम चलता था वैसे ही चलाना है
00:57:50ये आदमी सत्य के प्रति बड़ी इस्प्रिहा रखता है
00:57:55सत्य का द्रोही है ये
00:57:56आरी बात समझें है
00:58:07हाँ बोल दिया तुमने
00:58:10कामना और संस्कार का भी रिष्टा समझना क्योंकि यहां पर
00:58:31सर्व कामेभ्यो कहरें निस्प्रह सर्व कामेभ्यो सब कामनाओं से निस्प्रह होकर
00:58:37आपके बास कामना आती कहां से है क्या आपने प्रक्रिया पर गौर करा है आपको कोई कामना कैसे उठती आपको कैसे पता आपको कोई चीज चाहिए
00:58:47आप कह रहे हो मुझे फलानी चीज चाहिए आपको कैसे पता वो चीज आपको चाहिए
00:58:53अतीत से
00:58:56अतीत में कभी हो चीज आपको मिली थी आपके काम आई थी तो आपको लग रहा है कि मैं उसी अनुभव को धोरा लूँ
00:59:05यही कर रहे हो न आप
00:59:07या कि किसी ने आ करके बता दिया है कि फलानी चीज मिल जाए तो बहुत जीवन में मज़ा आ जाता है तो आप लगे हुए हो कि यह चीज मैं पालूँ
00:59:18तो सारी कामना है कहां से आती है
00:59:20संसकारों से
00:59:23तो चित को आत्मस्त करे बिना कामना से मुक्ति नहीं हो सकते निश्काम नहीं हो सकते आप
00:59:31क्योंकि कोई भी कामना नई नहीं होती
00:59:35सारी कामना स्मृतियों और संस्कारों से आ रही होती है
00:59:39वरना आपको कोई कामना
00:59:41कोई विशय
00:59:42क्यासे आकर्षित करेगा बताओ तो कैसे करेगा
00:59:46उसको लेकर आपके पास कोई धारणा होनी चाहिए
00:59:52उस विशय को लेकर
00:59:53उस विशय को लेकर आपके पास अधीत कोई अनुभा होना चाहिए
00:59:56या कोई कही सुनी बात होनी चाहिए
00:59:58तभी वो विश्य आपको अकर्षित कर सकता है
01:00:01आपके मन में उस विश्य की एक पूरवर्ति छवे होनी चाहिए
01:00:08जो संस्कारों से मुक्त हो गया है
01:00:26वो कामनाओं से भी मुक्त होगा
01:00:30क्योंकि सारी कामनाईं भविश्य की ओर इशारा करती है
01:00:36मुझे आगे मिल जाए ऐसी चीज़
01:00:37कामना तुरं तो पूरी नहीं होती ही न समयलेगी
01:00:39भली थोड़ा समयले
01:00:41तो कामनाओं का नाता भविश्य से है
01:00:45और भविश्य
01:00:48अज्ञान के चलते अतीत की प्रतिछवि मात्र होता है
01:00:55आपके अतीत के जो अनुभव होते हैं उसी के अनुसार आप अपनी भविश्य का निर्मान करना जाते हो
01:01:01कुछ आप कभी नया नहीं चाहते भविश्य में
01:01:03अतीत ही भविश्य का निर्धाता होता है
01:01:06माने संसकार ही भविष्य को तै करते हैं और भविष्य माने कामना सारे संसकारों से ही आपकी कामनाएं तै होती हैं
01:01:15कोई नई कामना नहीं होती कोई मौलिक कामना नहीं होती
01:01:20जैसे आपके अतीत के अनुभव होते हैं स्मृतियां होते हैं और संसकार होते हैं उसी से आपकी कामनाई तै हो जाती है
01:01:27माने आपका अतीत ही आपके भविश्य का निर्धारण कर देता है और यह कितनी गड़ड़ बात है कुछ नया होई नीरा
01:01:34कामनाओं के नाम पर हम बस अतीत का पुनरचक्रण चाहते हैं
01:01:39हम बहुत खुश हो जाते हैं
01:01:42यह पीछे जो हुआ था वही दुबारा हो जाए हम बहुत खुश हो जाएंगे
01:01:45या पीछे जो हुआ था उसके आधार पर हम उसी के दोहराव से बच जाएंगे हम बहुत खुश हो जाएंगे पीछे कहीं चोट लगी थी तो अब बस हम इस तरह से जी रहे हैं भविश ऐसा चाहते हैं कि पीछे वाली चोट दुबारा न लगे ले दे करके जो पीछे हुआ �
01:02:15जाना हुआ, सोचा हुआ, जीया हुआ, आखों देखा, कानों सुना, अनुभाव किया हुआ, कुछ भी सत्य नहीं है
01:02:41और जब वो सत्य नहीं है तो उसे ढोने की कोई जरूरत नहीं है
01:02:46जो अतीत को और संसकारों को ढोरा है, वो कभी आकाश नहीं पाएगा, बड़ा बोज है, कभी मुक्त नहीं हो पाएगा
01:03:11पाएगा
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