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  • 2 days ago
"इस कहानी में एक अनोखी सीख छुपी है जो आपके जीवन को बदल सकती है! यह कहानी न केवल बच्चों के लिए बल्कि बड़ों के लिए भी एक प्रेरणा साबित होगी। अगर आपको नैतिक कहानियाँ (Moral Stories), प्रेरणादायक कहानियाँ (Inspirational Stories) और हिंदी लघु कथाएँ (Short Stories in Hindi) पसंद हैं, तो यह वीडियो आपके लिए है। पूरी कहानी देखें और अपने विचार हमें कमेंट में बताएं!


🔹 वीडियो की खास बातें:
✅ सुंदर एनीमेशन और इमोशनल कहानी
✅ हर उम्र के लिए अनुकूल
✅ सीखने और समझने योग्य नैतिकता

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Transcript
00:00बाप रे जेठानी जी बोरी का बिस्तर पांश मिनट में कितनी बोरी तरीके से शरीर काटने लगा
00:05पता चले रात भर इस बोरी बिस्तर पर सोना सुबा तक हमें भारी पड़ जाए और पूरे शरीर में खाज खुजली मच जाए
00:11दोनों अब डबल करके बिस्तर पर अपनी साड़ी बिचा देती है
00:22पहले के तुलना में अब तो बिस्तर कुछ नरम मुलायम सा लग रहा है ऐसा करो कावेरी तुम अपनी साड़ी मत बिचाओ इसे ओढ़ लेंगे
00:28पर जेठानी जी इस पतली सी साड़ी में ठंड थोड़ी बाग जाएगी तो ठीक है फिर जिस तरह हमने इस बोरी से बिस्तर का जुगार लगाया है रजाई का भी जुगार बिचा लेते हैं साड़ी के उपर पाच्छे बोरे साट लेते हैं
00:41दोनों साड़ी के ऊपर से कुछ बोरों को साट कर सो जाती हैं जिससे दोनों को थोड़ी बहुत गर्माहट का एसास होता है
00:50वैसे ये बोरी की रजाई तो काफी ज्यादा मातरा में गर्माहट पैदा कर रही है
00:54हाँ लेकिन ये असली रजाई जितनी गर्माहट नहीं कर सकती
00:57वैसे देखा जाए तो जितना लंबा चोड़ा मारा ससुराल है
01:00उसके हिसाब से तो ओड़ने के लिए 20-25 फीट रजाई बनवानी पड़ेगी तब जाकर बाद बनेगी
01:05लेकिन जब हमारे पतियों से 5-6 फीट की हलकी रजाई भी नहीं खरीदी जा रही तो इतनी मोटी भारी रजाई वो कहां से भरवा पाएंगे
01:14क्योंकि घर में कमाने वाले कम खाने वाले ज़्यादा है फिर मकान का किराया लग देना पड़ता है जब घरचाई इतना ज़्यादा है तो रजाई कहां से लेंगे चलिए सो जाईए सुबह खाना पीना भी बनाना होगा
01:25दोनों बहुके अलग बिस्तर लगा कर सोने के बाद भी ससुराल वालों के बीच रजाई की खीचतानी रात भर चलती है यूँ ही ठन में कुकुड़ते हुए सुबह हो जाती है
01:34देखा लग गई ना सर्दी इसलिए कहती हूँ रात को भी स्वेटर पहन कर ही सोया करो मैं अभी काड़ा बना देती हूँ पी ले ना
01:45बुझको ने भी ना कड़वाजा काड़ा इस अच्छा एक न्यू रजाई खरीद लो ना मम्मी ब्लीज
01:50नेहा को नई रजाई खरीदने की जिद करते देखकर सर्दा हताशा से भर जाती है
01:55नेहा बेटी तुम तो मेरी समझतार बच्ची हो ना ऐसे जिद नहीं करते और वैसे भी हमारे घर में एक रजाई तो पहले से ही सोने के लिए
02:03मौनू बेटा अभी तुम स्कूल जाओ रही बात रजाई की तुम्हारे लिए नरम मुलायम रजाई बना दूँगी
02:20नई रजाई के बात से मौनू खुश होकर स्कूल चला जाता है तब ही कुंती कहती है
02:30मा जी मनूहर जी ने बोला है उनकी फैक्टरी में काफी जादा कपड़ों के कतरन निकल रखे है
02:49तो मैंने घर पर लाने को कहा था कि कुछ कतरन से हम सर्दी के मोटे मोटे बिस्तर बना लेंगे और बच्चों के लिए गुदड़ी वाली रजाई बना देंगे
02:56अच्छा ठीक है बहु जैसे गरीबों के नसीब में ये गुदड़ी वाली रजाई में ठंड काटना लिखा है
03:02गरम गरम मुलायम रजाई में सोना तो बस हमीरों के भागे में होता है
03:06ऐसा कहते हुए कुंती की बातों में गरीबी दुख और टूटा मन दिख रहा था
03:11चाही कहा भावी हम दोनों ने भी सारी जिन्दगी दुख और गरीबी ही काटी है
03:15और बेचारी हमारी बहुएं और पोते पोती भी गरीबी देख रहे
03:19सरिता बहु यह रजाई ले जाकर थोड़ा धूप में डाल दो
03:22सरिता रजाई उठाकर आंगन में लागर सूख ने डाल देती है
03:26तब ही रजाई जगा जगा से फटी होने के चलते काफी सारी रूई आंगन में फैल जाती है
03:30बगल में ही नीलम अपने बच्चे को धूब में लिटा कर तेल लगा रही होती है
03:34जी ठानी जी फिर से रजाई कहीं से फट गई है रूई बाहर निकल रही है
03:39तब ही कावेरी रजाई के फटे हिस्से को देखकर गरीवी से कुड़ कुड़ करने लगती है
03:44इस बार तो रजाई जरूरत से जाधा ही फट गई है
03:47हरे अब तो इस रजाई के चितरे हो गए हैं पता नहीं कब तक इस जादर जितनी पतली रजाई को चलाना पड़ेगा
03:53कावेरी अभी ऐसा कह रही होती है कि तब ही सामने के घर में रहने वाली अमीर परिदी
03:58अपनी बालकनी में आकर रजाई फैलाने लगती है
04:01रजाई देखने में बहुत ही मकमली, महंगी और नई लग रही थी
04:05दोनों अभी पड़ोसन के रजाई को देखकर बाते कर रही होती है
04:21कि तब ही परीदी बड़बडाने लगती है
04:23तुम दोनों को सबसबस कोई काम दंदर नहीं है क्या, जो आँखे जमा कर नौन्चुप मेरी नईनी रजाई को घूरे जा रही हो
04:30परीदी बहर हम तो केवल ऐसे ही बस देख रहे थे, आपकी रजाई का कलर काफी फैंसी और रजाई की लेंथ भी काफी जादा है
04:37क्योंकि मैंने इस्पेशली ओडर देकर 15 फीट की लेंथ की रजाई बनवाई है, काफी सौफ्ट और मुलायम है, ये रजाई प्योर कपास की है
04:46तब ही जिजकते हुए सरिता परिधी से पूछती है
05:16अपनी महंगी रजाई पर घमंड खाते हुए परिधी कावेरी सरिता नेलम को नीचा दिखाकर अंदर चली जाती है, तब ही कुंती और शोभा आंगन में आती है
05:24बाहु तुम लग किसलिए इससे पास्ची तरफती हो, थोड़ी अमीर क्या है खुद पर ऐसे गमंड दिखाती है जैसे कही की करोड़ पती हो
05:31पर माजी पडोसन नी बाप तो सच ही बोली थी, अब इस रजाई की ऐसी हालत कूड़ी दान में फीकने वाली हो गई, मगर हम फिर भी ओड रहे हैं, अब तो इस रजाई को बाहर सुखाने में भी शरम सी लगती, देखिए बागी सब की बैलकिनी में कितनी चम-चमाती र�
06:01इतनी ठंड बरी मौसम में खुले में रहते हैं, दुनिया में किसी की जिन्दगी एक जैसी नहीं है, अगर कोई हमसे जादा अमीर है तो कोई हमसे जादा गरीब भी है, और हमेशा जिन्दगी जीने के लिए अपने से गरीब को देखकर चलना चाहिए
06:13शोबा की बातों में समाज के दबे कुछले गरीब बर्क का दो टाइम की रोटी कपड़ा जोड़ने का संगर्श साफ दिख रहा था, समाज का एक कटाक्ष सच ये भी है कि जमाने में गरीब चोट़ को और जादा चोटा किया जाता है, इसी तरह से कुछ दिन बीच जाते
06:43कब कभी चड़ रही है, इतना खराब सर्दी का मौसम होगा तो काम पर कैसे जाएंगे, विकास भाई अगर ठन देखकर घर में बैठ जाएंगे, अजी भूलिएगा मत लेते आएगा ताकि हम गरम बिस्तर बना सके क्योंकि सर्दी अभी और बढ़ेगी, तीनों ठन में ठि
07:13हा, सच में, आज तो सर्दी से, शरीर से हर रहा है, ऐसे मौसम में तो रईस लोग घर में रजाईयों में बैठ कर रोटी खाते हैं, पर हम जैसे रोज की कमाने खाने वाले का क्या आधार है, हमको तो कमाने निकलना ही पड़ता है
07:27कुछी देर में तीनों कामते कामते हो, उसमें भीग य वस्ता में कार खाने में आते हैं, जहां बाकी मजदूर समय से पहले आकर काम कर रहे थे, और कार खाने का से, मोटा राम, हीटर की गरम हवा में गरम-गरम गाजर का हल्वा खारा है
07:39अरे वावावावावा, बड़िया लजीज गाजर का हलवा बनाया है, ठंड के मौसम में इतना गरमा गरम गाजर का हलवा तो पेट भर कर खाने वाला नाश्ता है
07:49राम राम मुटा राम सेट
07:52सेट, माफ करना, आज आने में थोड़ा लेट हो गया, लेकिन रास्ते पर काफी जादा धुन्द चाया हुआ था, इसलिए देर हो गई
08:06अरे तुम तेनों ने रोज रोज लेट आने का धंदा पानी लगा दिया है, तुमारी देखा देखी कल को बाकी मजदूर भी लेट आएंगे, तो हो गया कार खाने का बेड़ा गर्क
08:14सेट, तुम जब देखो गाली गलोज पर क्यों दारू हो जाते हो, माना हम लेट आते हैं लेकिन काम तो पूरा करके जाते हैं न
08:23अरे एक तो चोरी उपर से सीना जोरी, एक तो लेट आता है उपर से अकड़ के दिखाता है, अरे मनोहत, समझा ले अपने भाई को
08:30सेट, आप गोशा मत करो, आइंदा से हम लेट नहीं आएंगे, टाइम पर आएंगे
08:37कुछी देर में तीनों कपड़ों का माल तयार करते हैं, देखते देखते छुटी का टाइम हो जाता है
08:42सेट, हमारे हिस्से का काम पूरा हमने कर लिया है, अब हम घर जा सकते हैं क्या
08:48अरे काम तुम तीनों पूरी महनतों शिद्दत से करते हो, तुम्हारी इसी चीज़ से मैं खुश रहता हूँ
08:54बस, देड़ से मत आया करो, मुझे भी तुम्हें बार-बार बोलना अच्छा नहीं लगता
08:58हम समझ रहे हैं सेट जी, वैसे भी जो फैक्टरी से वेस्ट कपड़े की कतरन निकली है, उसे हम घर ले जाए
09:06तीनों सारे कपड़े के नरम कतरन को बड़ी सी बोरी में डाल कर अपने साथ घर ले आते हैं, जहां बच्चे रजाई ओड़ने को लेकर छीना चानी कर रहे थे
09:21और सोनों के बच्चे पूरी रजाई खुद दबाकर बैठा वचे मुझको भी रजाई दे, नहीं मैं नहीं दूँगा, मैंने पहले ओड़ी थी रजाई, जैसे रजाई तुन्हें खरी दे क्यों चुपचाप से रजाई मुझको भी दे दे मैं चाड़ा लगा दूँगी
09:51तो घर का खर्चा कैसे चलेगा, थोड़ी दूर ही जाना है, चल लेते हैं
09:57भाईया कम से कम स्वेटर तो पहन कर जाईए आप तीनों
10:01बहन स्वेटर भी तो पहनने लाइक नहीं बचा, इतने सारे छेद हो गए हैं कि ठंडी हावा लगती है
10:06बेटा मैं तो कहती हूँ थोड़ा कोहरा कट जाने दो, तब आराम से जाना, अगर ठंड लग गई तो मसीबत हो जाएगी
10:12पेटा, तेरी मा सही कह रही है, थोड़ी दिर रजाई में आकर बैट जाओ, तब तक के लिए मौसम खुल जाएगा
10:18तब तक बहु रोटी पानी बना लेगी तो गरम गरम खा कर चले जाना
10:22हरी हर के बोलने पर तीनों रजाई में बैट जाते हैं, मगर रजाई ओड़ ओड़ कर चादर जितनी पतली हो चुकी थी
10:29ये रजाई भी बस नाम की रह गई है, ठंड तो इसमें भागती ही नहीं है
10:33मगर बेटा इस ठंड में थोड़ा तो सोने का सहारा देता ही है
10:37सरदी की वज़ा से मुझको भी खेट की कटाई का काम नहीं मिल ला
10:41वरना थोड़े पैसे बन जाते, तो एक कंबल खरीद कर ले आता
10:44रजाई भरवाना तो बस में नहीं, रुई का ताम इतना जादा बढ़ गया है
10:49कि हम जैसे दो टाइम की रोटी कमाने खाने वाले के लिए तो रजाई खरीदना खुआ भी बन गई है
10:54कुंती, तुम जब देखो मुझ पर ही राशन पानी लेकर क्यों शुरू हो जाती हो
11:11जबकि तुम को पता है कि मेरा पत्री का ओपरीशन हो रखा है
11:14जादा भार उठाना मना है, वरना सुरेंदर के साथ बेलदारी की काम पर जाता तो कहीं से भी 100-200 लोपे लेकर आता
11:21खाली सोचने से नहीं होता, करने से होता, इतने मर्द होने के बावजूद एक नई रजाई खरीदने के लिए भी सोचना पड़ रहा है
11:27सच में दो-चार दिनों से मौसम कुछ ज्यादा ही चेंज हो गया, किसी तरह हल्की फुलकी सर्दी में तो इस पतली रजाई में उड़कर काम चल जाता था
11:45लेकिन कल से कितनी जादा करकड़ा कर सर्दी पड़ रही है, रात तो मेरी ठन में कापते कापते ही निकल गई, मुझे तो रजाई जरा सी भी नहीं मिली थी
11:53देवरानी जी हम लोग इस रजाई को कितने सालों से उड़ते आ रहे हैं, इसलिए रजाई पुरानी होकर सिकुड कर सिंगल चादर जितनी छोटी हो गई है, उपर से बिचारे हमारे पतियों की भी इतनी आमदनी भी नहीं है, कि वो घर का खर्च के बाद रजाई ले आए
12:23तेर के लिए बना कर रख दो, तो बरफ जितना ठंडा हो जाता है कि गले से निगला भी नहीं जाता, और नेक के लिए नरम गरम रजाई ना सही, गरम गरम रोटी तो खाने को नसीबी हो गई, इसी से थोड़ी बहुत शरीर में गरमा हटा गई, काम पर जाया जा सकता है, �
12:53मैं देख रही हूँ, आजकल तेरी बदमाशी बहुत जादा बढ़ गई है, एक रजाई थी उसको भी फार दिया, अदाती कान पकड़ को सो रही है, लगे मैं जान पूछ कर रजाई नहीं बहारी, मा इसमें सोनों की गलती नहीं है, ये रजाई बिलकुल अंदर से सड़ �
13:23बढ़ कर सोता है, जिसे सुबा तक सब के शरीर में खुझली होने लगती है, लगता है रात को बोरी ओड़ कर सोने से ही बच्चों को खुझली लग गई है, बच्चों की नाजग होती है, जल्दी से खाना पीना बना कर हम रजाई बनाना शुरू कर देगे, दूब भी हलक
13:53पाएगी कुछी देर में खाना पीना बनाने के बाद तीनों फटी रजाई को बाहर लाती हैं और उसके अंदर से रूई को निकाल कर उसे थापी से धुनने लगती हैं ये देखकर पड़ोसन गायतरी शार्दा आती है तो
14:04अरे अरे तुम तीनों पुरानी रूई को क्यों धुन रही हो रजाई बनाने का काम शुरू कर दिया है क्या गर बैठे बैठे नहीं नहीं आंटी वो हमारी रजाई फट गई है तो बस उसी की रूई से दुबारा से दूसरी रजाई तेयार कर रहे हैं मागर ये रूई तो �
14:34ले ले ना आंटी जेगर चादर आप हमें अभी दे देती तो हम सोच रहे थे थोड़ी जादा फिट की लंबी रजाई बना लेते हैं हाँ हाँ सरीता बहु क्यों नहीं चलो अभी चल कर ले आओ
14:44सर्ता शार्दा के साथ उसके घर जाती है जहां वो अपने मैट साइज गद्दे के डबल बेट से जादा लंबे चोड़े साइज की सारी चादर कपड़े भी देती है जिसे लेकर सर्ता घर आती है पड़ोसन गाईत्री भी कहती है
14:57वैसे मैंने भी कुछ पुरानी रजाई ऐसे ही तै करके रखी है जो कि मैं ओड़ने में इस्तेमाल नहीं करती तो अगर चाहिए हो तो ले आना
15:05हाँ हाँ क्यों नहीं आंटी अब दे दीजेगा उसकी रूई से मारा काम बन जाएगा
15:10वैसे तो कुंती का परिवार बहुत ही गरीब था लेकिन पड़ोसियों के साथ उनका सभाव काफी जादा अच्छा था
15:15इसलिए पड़ोसी जहां तक हो सके उनकी मदद किया करते थे
15:18अब तीनों बहुएं चादर को जोड़ जोड़ कर उसे सिलना शुरू करती हैं
15:22शाम गुज़रते गुज़रते वो 40-50 फीट जितना लंबा चोड़ा कपड़ा तयार कर लेती है
15:27आज तो पूरा दिन ठंड में सुई चला चला कर में तो हाथ जिन जिना से गए हैं
15:32हाँ मगर खुशी इस बात किये कि हमने एक ही दिन में अपनी सौ फीट लंबी रजाई का काफी काम निकाल लिया
15:37वैसे अब उस पढ़ना शुरू होगी चलो सारा सामान उठाकर अंदर चलते हैं
15:42शाम की धूब जाते ही ठंडी ठंडी हावास अंसनाती देख कर तीनों गरीब बहु अपनी रजाई का काम वहीं खतम करके अब घर के अंदर आती हैं और पूरा परिवार रात में खाना खाता है
15:53अरे खाना खाते ही मेरा तो तन बदन बिलकुल बरफ जितना ठंडा हो गया है बहु जली से बिस्तर कर दे और रजाई कहां है दिख नहीं रही
16:03अरे अब भी रजाई बनकर तयार नहीं हुई बस तीनों ने खोल सिला है तो चार दिन लगेगा
16:08हरे इतनी भी क्या 100 फीट की लंबी रजाई बना रही हो तुम लोग जो बनी नहीं रही आज फिर से ठंड में सिकुड कर सोना पड़ेगा
16:16कुछी देर में बहुएं बिस्तर कर देती है और पूरा परिवार उसे 50 फीट लंबे चादर को ही लपीट कर सो जाता है जिसे आज पूरा परिवार आराम से उस चादर में सो जाता है
16:26किसी का भी शरीर खुलता नहीं है अगले दिन सर्दी की वज़ा से धूप नहीं निकलती तो तीनों बहु को अब आंगन में कहर बरसाती ठंड में ही रजाई का बाकी का काम बढ़ाना पड़ता है
16:36फिल हाल के लिए जितनी रूई है उसे भर कर देखते है तीनों थर्थराती हुए रजाई के खोल के अंदर रूई डालना शुरू करती है मगर वो आधी रहती है
16:54इतनी सी रूई तो हमारी आधी रजाई भी नहीं भर पाई रजाई अगर पतली बनेगी तो जादा गर्महार नहीं करेगा हमें भारी रजाई बनाने के लिए कुछ जुगार करना पड़ेगा
17:03तबी तीनों एक दरी वाले को जाते देखती हैं जिसके पास काफी सारे उनी कपड़े होते हैं
17:10दरी बनवारो दरी कपड़े और चादर की दरी बनवारो
17:14इस दरी वाले के पास कितने उनी कपड़े हैं इससे हमारा काम बन सकता है
17:18अरे ओ दरी वाले भाईया रुकना जरा
17:20हाँ बहन जी बोलो दरी बनवानी है
17:24भाईया हमें दरी नहीं बनवानी बलकि उनी कपड़े चाहिए
17:28कैसे रुपे किलो बेचोगे
17:29अरे बहन जी आपको चाहिए तो फ्री में रख लो
17:32ऐसे उनी कपड़ों का तो मेरे पास बंडार है
17:35अब तीनों उनी कपड़े ले लेती हैं
17:37और अब उसे उन वाले स्वेटर, शॉल के उन उधेड कर रजाई में डालती है
17:42जिससे रजाई कुछ इस्तर तक और भरती है
17:44अभी हमें कुछ और मुलायम कपड़े का तरन चाहिए होंगा
17:50तभी हमारी 100 फिट की लंबी रजाई मोटी नरम नरम बनेगी
17:53मुझे याद आया जब हम जंगल में लकडी बीनने जाते थे
17:56तो वहाँ पर कपास की तरह का ही एक बन पौदा होता है
17:59उससे काम बन जाएगा
18:00सर्ता की जुगार पर दोनों भी सेमत होती है
18:04अगले दिन ठन में अब तीनों जंगल आती है
18:06जहां आदे से जादा जंगल का भाग उसका पास जैसे दिखने वाले
18:09बनवारी से भरा हुआ था
18:11जिसे तोड़कर वो घर लाती है
18:13जिसके बाद वो अब रजाई को पूरी तरीके से भर कर
18:16उसे पर मोटे मोटे धागे चला कर
18:18बहुती बढ़िया सुन्दर सौ फीट की लंबी रजाई तयार करती है
18:22जिसे पूरा परिवार रात में गर्माई में सोता है
18:24आहाँ
18:26आज ये सौफिट की लंबी रजाई तो खुलने से ही पूरे घर में गर्माहट सी भर गई
18:31आज नीन बढ़िया बढ़िया पड़ेगी
18:33हब तो मैं भी आराम से काफी रजाई अपने नीचे दबा कर सोती हूँ
18:38आखिर ये रजाई सौफिट की लंबी जो है
18:40आखिर में पूरा सस्राल सौफिट लंबी रजाई में ही बैटकर गर्मा गरम खाना खाता है
18:45और गर्माहट में चैन सकून से सोता है
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