"इस कहानी में एक अनोखी सीख छुपी है जो आपके जीवन को बदल सकती है! यह कहानी न केवल बच्चों के लिए बल्कि बड़ों के लिए भी एक प्रेरणा साबित होगी। अगर आपको नैतिक कहानियाँ (Moral Stories), प्रेरणादायक कहानियाँ (Inspirational Stories) और हिंदी लघु कथाएँ (Short Stories in Hindi) पसंद हैं, तो यह वीडियो आपके लिए है। पूरी कहानी देखें और अपने विचार हमें कमेंट में बताएं!
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00:00अरे चलो चलो जल्दी जल्दी से ट्रक के अंदर फलों की बोरी रखवाओ
00:03तभी पसीने में तर बतर बुढ़ा शंकर पीट पर पके आम की बोरी उठा कर ला रहा होता है
00:08तभी उसे जोर से चकर आ जाता है जिससे फल का कट्टा छूट जाता है
00:13अरे पिता जी आप ठीक तो है
00:19अहां घिलेश मैं ठीक हूँ
00:24बड़ी बेजोड की कर्मी है ना इसलिए माथा चक्रा गया
00:28तबी फलो के बगीचे के मालिक मोटा सेट दोनों को खरी खोटी सुनाना चानू कर देता है
00:34किसी ने ठीकी कहा है कि इस दुनिया में हर पैसे वाले
01:04गरीब की मजबूरी का फाइदा उठाने के लिए बैठे है
01:07शंकर अखिलेश का परिवार भी आर्थे गरीबी से जूज रहा था
01:10जिसके चलते वो गर्मियों के मौसम में मोटा सेट के ठंडे फलो के बगीचे में
01:14सौर रुपे की दिन दिहाडी पर काम करते थे
01:17दुखी मन से दोनों दिहाडी लेके घर आते हैं
01:19मकान के अंदर कहर बरसाती गर्मी में दो बेटी, बहु, पोता, पोती, सास, पसीने पसीने थे
01:25जी आ गया आप बाब बेटे हाथ मु धोलो
01:28बाबु जी, अखिलेश जी, खाना लगा दू
01:31अजी बस भी करो, क्यों बेचारी बहु को जाड़ कर बोल रहे हो, खाली पेट में दाना खिलाने का इतना एहसान मत जताओ
01:54हर एक गरीब परिवार में कलेश लड़ाई जगडे, सारी फसाद की जड़, पैसे की तंगी होती है
02:13शंकर के घराने के हालात भी ऐसे ही थे, जहां खुशहाली जरा भी नहीं थी, सबको जगड़ते देखकर आंसु भरी आँखों से, पोता सौरप कहता है
02:21मा, पिता जी, दादर, रादी जी, आप लोग जगड़ा मत कीजी, चुप हो जाए, मेरा सर दुख रहा है
02:29पूरा परिवार खामोश होकर बैट जाता है कि कुछ देर बाद
02:32बाओ जी, कान अप परोसूं?
02:36आ, दो रोटी डाल कर ले आ
02:39सविता पूरे परिवार को पेठे की सबजी रोटी परोस्ती है, सबजी मार कर खा रहे थे
02:44जबकि अडोसी परोसी की मेज पर, खाने के अलावा गर्मी के सीजन के ठंडे, फल, पके, आ, मनाना, सेब, संतरा, अंगूर, सब का फूरूट, चाट, जूस मौजूद था
02:54वहीं काशी बड़ी बेटी पूनम को रोटी पूछने का इशारा करती है, बाओ जी, अखिलेश भईया, रोटी दूँआ आपको, नहीं, रहने दे, रहने दे छोटी, पेट भर गया, इतना स्वादिष्ट सबजी रोटी खा कर, ये काशी फल में गुर डाल कर सबजी बना
03:24काशी भगवान के लिए मुझसे जगडा मत करो, मेरे लिए तुम आधे दर्जन केले मंगा दिया करो, मैं उसी से पेट भर के रोटी खा लूँगा
03:31और अभी तो बाजार में हर ठेले पर माल्दे आम बिक रहे हैं, कभी आम खरीद लाया करो, मैं तो आम रोटी शौक से खा लेता हूँ
03:40अखिलेश भहिया बाजार में गर्मी के सीजन के ठंडे फल बड़ी ही महंगे भाव बिक रहे हैं, दशेरी आम 200 रुपे किलो, माल्दे उससे भी महंगी अनार 400 रुपे के पार और केले 80 के दर्जन
03:51फलों का इतना महंगा रेट सुनकर दोनों बाप बेटे का कलेजा मुह को आ जाता है
03:54अब इतनी बे जोड की गर्मी भी तो पढ़ रही है कि ज्यादा तर फल भागवानी में ही जुलस जा रहे हैं
04:04तो फल तो महंगे विकेंगे हम जैसे गरी परिवार के नसीब में ही फल खाना नहीं लिखा
04:08बस रोटी भाद खा कर गुजारा लिखा है
04:10इसी तरह बिचारे गरी परिवार वालों का गर्मी के मौसम में रोखा सूखा खा कर गुजर चल रहा था
04:17वही मोटा सेट फलों के बगीचे में गद्दी वाली कुर्सी पर फल खा रहा था
04:21तभी कड़कडाती गर्मी में एक कमजोर बुढ़िया जिसका कूबर निकला था
04:35हुआती है सेट ओ सेट एक आदा फल देदो बहुत भूक लगी है भगवान तुम्हारे बगीचे में बरकत देगा मकी चूस सेट बुढ़िया को दुद्कार देता है अवे ओ कूबर बुढ़िया चल खेसा क्यांसे भिकमांगिन कहीं की अरे अम्मा तुम ठीक तो हो अरे से�
05:05टुकड़ों पर पल कर मुझको आखे दिखाता है अपने बगीचे से एक साबुत फल तो क्या एक फाड़ी भी नहीं दूँगा
05:10अम्मा ऐसा करो आप ये रोटी खालो आपका पेट भर जाएगा तो हमारा भी भर जाएगा
05:17दोनों अपना निवाला बुढ़िया को खिला देते हैं अब वो भूखी बुढ़िया हर दन बगीचे में भोजन करने आती थी कि फिर एक दिन
05:24नेहा सौरब तुम दोनों का हाथ लाल क्यों पड़ा है पिता जी आज हमारी टीचर ने हमको स्केल से बारा था क्योंकि हम मिनी लंच ब्रेक के लिए फ़ल लेकर नहीं जाते बाकी सब बच्चे फ़ल वाला चार्ट बना कर लाते हैं
05:37गरीबी के कारण ऐसी दुर्दशा देखकर सबका दिल निकलाता है अगले दिन दोनों बाप बेटे पेड़ से चूकर गिरे आमों को चुनने लगते हैं
05:59अगलेश देख ये आम और अम्रूद तो गिर कर चिपक गए है इसे घर ले चलते हैं
06:04वैसे भी पिता जी ये सेट के काम के नहीं है
06:07दोनों फल को भरने लगते हैं तबी सेट धमक जाता है
06:10मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि तुम दोनों बाप बेटे इतने नमक हराम निकलोगे
06:15अरे जिस ठाली में खाते हो उसी में छेट करते हो
06:17निकल जाओ यहां से और आज के बाद काम पर मताना
06:20पर सेट हमारी बात तो सुनो
06:22दोनों मू लटका कर घर आते हैं जहां पूरा परिवार मकान के बाहर धूप में खड़े उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे
06:28तुम सब इतनी धूप में बाहर क्यों कड़े हो
06:30हजी पिछले दो महीने का किराया ना भरने के चकर में वो कानदार ने घर खाली करवा लिया
06:36सारी मुसीबत एक साथ आनी थी
06:38हमें भी मोटा सेट ने काम से निकाल दिया है
06:41और हमारी तंखा भी मार ली
06:42जेम में एक पोठी कोड़ी नहीं है
06:44कहां लेके जाए तुम्हें
06:46बिचारा गरीब परिवार भीशण गर्मी में दरदर भटकने लगता है
06:49तबी सब लोग ठंडा बाजार से गुजरते हैं
06:52जहां ठंडे फलो की चाट आमरस फलो का शेक बिक रहा था
06:56पिता जी मुझे मा सम्मे का जूस पीना है बिला दो ना
06:59बिटा पिता जी के पास पैसे नहीं
07:02आँखों में आसू और पैरों में छाले लिए सब एक अनोखे से फल वाले बागवानी में आते हैं
07:07अरे छमा कीजिये लेकिन एक केवाल एक लाख में मैं अपने बगीचों को नहीं बेच सकता बड़ा घाटा खाना पड़ेगा
07:15ठीक है भाई तुमारी मर्जी चलता हूँ मैं
07:18बगीचे की मालिक को चिंता में देख पूरा परिवार वहां आता है
07:22भाई साहब क्या बात है आप बड़े परिशान दिखाई दे रहे है
07:26अरे आदरसल मैं इस फल के बगीचों को बेचने के लिए शहर से आया था
07:33जो इस बागवानी की रखवाली और सिंचारी करता था वो भी शहर पस गया
07:37मालिक बागवान गरीब परिवार को सौप कर चला जाता है
07:51सारे पेड फल देने वाले थे लेकिन सब पर कीड़े लगे थे
07:55काने फल उगते थे तभी एक दिन पेड से अंगूर का गुच्छा तूट कर गिरता है
07:59जिसे पूरा परिवार खाने लगा था तभी वही कुबड़ी आती है
08:02अरे तम इस बगी चे में बस गये थोड़े फल खिला तो भूख लगी है
08:08क्यों नहीं अम्मा इसे आप खाली जे मैं आपको चुन कर देती हूँ क्योंकि इसमें काने अंगूर भी है
08:13अथा गरीबी में भी सविता आदर भाव से उन्हें फल चुन कर खिलाती है तभी बुढ़िया देवी बन जाती है
08:18काशी सविता अथा गरीबी में भी तम्हारे घराने ने इमान नहीं खोया
08:25बलकी भूखे का पेट भरा मागो जो भी मनोरत हो तुम्हारी
08:30तभी तुकुर तुकुर देखते हुए सौरप कहता है
08:33धरती मादा अमारे परज रहने के लिए पक्का घर नहीं है
08:36क्या आप हमको एक फल वाला घर दोगी जिसमें रसीले रसीले फल लगे हो
08:40और जो सबसे सुन्दर हो जैसे काटूर में होता है
08:43अवश्य पुत्र
09:00काशी मैं तुम्हारे परिवार और तुम्हारे आने वाली तीन पुष्टों को ये वर्दान देती हूं
09:15कि तुम इस फलो के जादूई बगीचे में फूलोगे फलोगे और बढ़ोगे
09:21तुम्हारे पेडों पर बारा मासा फलो गेंगे
09:25इतने के साद धर्तिमाता गायब हो जाती है
09:28काश इस जादूई फल वाले घर की तरह हम सब को पहनने के लिए नैने कपड़े भी मिल जाते
09:34पूरम जैसे ही अच्छा करती है पलक जपकते पूरे परिवार के फटे जूते कपड़े जादूई फल वाले खुबसूरत कपड़ों में बदल जाते हैं
09:41खाना मांगने पर सामने लजीज फल वाला खाना आ जाता है
09:44सब खोशी से दावत खाते हैं और दोनों बाब बेटे बाजार में जादूई फलों को सस्ते में बेचते हैं ताकि गरीब परिवार फल खरीद गर खा सके
09:53इस तरह वह गरीब परिवार जादूई फल के बगीचे में बस जाता है
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