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RadhaKrishn Moorchhit huyin Radha राधाकृष्ण #radhakrishna #starbharat EPISODE-35

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Transcript
00:00है सुटिक है
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00:30कि अजय करने करें नहीं, कि अजय करने कर दो कर दो करें दो, तुम्हें पर सकता नहीं, कि अजय को प्रस पहले बिखरी थी,
00:59एक गलट तुम्हारे, मेरे हाथों उसका सम्वारण।
01:08अभीशेश,
01:13सब कुछ है मृन्दावन का खेम भी, कृष्न का प्रेम भी,
01:20निती भी है, रिती भी,
01:26पर जो कृष्न को पूरा करे,
01:30तुम्हारी वसमेटियाना,
01:35अभीशेश,
01:59क्या सकी, स्वयम ही धर्ती पर गुलोग देखने की कामना की, और जब वो कामना पूरी हुए, आखे बन करने.
02:13लोग प्रेम में बाधा के लिए असुरों का प्रयोग करते हैं.
02:16मैंने असुर का उप्योग प्रेम की प्रसनिता के लिए किया और तुम हो की मुर्चित हो गई.
02:28खीक है, कोई बात नहीं, तुम विश्राम कर, जब तक तुमारी निद्रा भंग होती है, मैं इस असुर का भीमान भंग करके आंता हूँ.
02:40पुरंदावन निर्मान की बहुत बहुत शुपकाम, राधाक्रिष्ट, राधे राधे, अब राधे राधे कहा है, तो किसी की तो मुक्ती निश्चित है धर.
03:10आओ, बकासुर, जिस प्रयोजन से मामा श्री ने भेजा है, उसे साथने का प्रयास करो.
03:26मेरा प्रयोजन पूर्ण होगा, क्रेष्ण. आज तुम्हारा आंत निश्चित है, क्रेष्ण.
03:33मेरान, नहीं बकासुर, आज तुम्हारी मुक्ती निश्चित है, राधे, राधे.
04:03मेरा प्रयोजत कीन बहिता है, राधे.
04:33भासु लेला!
04:35लासु लेला!
04:47लुुुुुुुुुुुुर लाँ!!
05:03प्रभू, आपके करकमलों सिम्रित्यू तो मुक्ति थी ही, आपके ओर राधा के संग दर्शन से मुक्ष का मार्ग भी खुल गया, जये राधा कृष्क में!
05:33जये राधा कृष्क में!
05:40वो देख वाएं!
05:51उस पगूली का मृत्त दे!
05:53तुम्हारी लीला अध्फुत है कान, बकासुर का अंतु भी कर दिया और राधा के संग व्रुंदावन का स्रजन भी!
06:04ये बल्राम उस बगुले को तेखकर इतना प्रसनिक हो रहा है!
06:11जमा करना मामा श्री आज जो उपहार बेज रहा हो उसके परश्याद भोजन नहीं कर पाएंगे या!
06:41ये तो बकासुर है इसकी ऐसी दशा अर्थात बकासुर जैसे शक्ति शालिय और भहनक जीप को भी क्रिष्ण ने मार डाला महाराज!
07:01कहीं उसने जो मुझे चेतावनी उस दिन दी थी वो सत्य तो नहीं कहीं वो आपको
07:11आप समझ रहे हैंना महाराज मैं? मैं क्या
07:21रादो! क्रेष्ण! रादो! क्रेष्ण! रादो! क्रेष्ण!
07:30क्रेष्ण! रादा! रादा! यहां वो दोनों तो देखने रहे हैं! कहीं उस असुर ने मरने से पूर्व रादा और क्रेष्ण का अंत तो नहीं कर दिया!
07:52तुबाराद तो सास कैसे हुआ यह कहने का!
07:58मेरी रादा कुछ नहीं हो सकता! तो जहां पर भी होगी सुरक्षित होगी! समझे तूम!
08:06मेरी तो मेरी अच्छ!
08:10आये! फिर एंसा!
08:16भाई! आपका भाई और चंता अपने स्थान पर उचित है!
08:20पर क्या करें? यह भी तो निश्चित है ना?
08:24कि राधाय यदि क्रिष्ण के साथ है तो भला उसे क्या हो सकता है?
08:28वो तो सुरक्षित होगी ना?
08:30क्यों है?
08:32मैं उच्छित कह रहा हूँ ना?
08:37वो!
08:42वो क्रिष्ण!
08:44जो स्वायम अपनी रक्षा करने में असमार्थ हो,
08:46वो मेरी राधा की रक्षा क्या करेगा?
08:48राधा की रक्षा केवल मैं ही कर सकता!
08:52अच्छा!
08:54बहुत बड़े-बड़े बोल बोल रहे हो है?
08:58भूल गया?
09:01अभी कुछी शणोपूर
09:03तुम्हारे प्राणों की रक्षा भी मैं नहीं की!
09:05अन्यथा वो बगुला कपका निगल चुका होता थो?
09:09इसील व्यक्ति को वचन अपनी मर्यादा से आधिक बड़े नहीं बोलने चाहिए
09:15अन्यथा उसके कर्म और उसके वचन दोनों का ही मोल समापत हो जानता है
09:21हाँ हाँ ये ठीक कह रहे
09:24बस
09:25हो गया?
09:26देल ही अपनी टिपणी सबने
09:28अब जाओ
09:29जाओ
09:31चारो दिशाओं में फैल कर राधा को ढूंडो जाओ
10:01जाओ
10:17अरे अरे राधा चिंतित मत हो वो असुर चला गया है
10:23मैं
10:24मैं यहां के से आई
10:26और वो बंजर धरती
10:29चानक से इतनी सुन्दर
10:31और अरे भरी कैसे हो गई थी
10:35और वह
10:37मगुला
10:39तुम मेरी प्रांग लेने ही वाला था
10:41चानक का लुपतो के
10:43वो तुम इतनी जोर से चीखी रहा था
10:45उस असुर को लगा कि उस से अधिक विशाल असूर तो नहीं आ गया
10:49वो बिचरा डरके भाग गया
10:51यू भास कजब नहीं है क्रिष्ण
10:55अचान
10:57कहां गया वो बगुला
10:59तुम स्वयम सोचो
11:01तुम स्वयम सोचो
11:03तुम ये तो नहीं तुम थाना चाह रहा हो कि
11:19तुमने अपनी माय से उस विशाल काई बगुले को पंगादियो
11:25और उसी माया से सुन्दरवन बना दिया
11:30मैंने कुछ नहीं कहा जो कहा तुमने कहा है
11:38वहा नहीं हम यहा है आयन
11:55तुम एसे अभी नहीं करके मुझे दुराने का प्रैस मत करूँ तुम्हारा उसी उकारना और उसका उससे मेहाना ही तेवलेक सही हुग मातर तुमने कुछ नहीं कर सकता
12:25अच्छा तो थोड़ा बल अपनी स्मरिती पर डाल। स्मरंड करू जब वो विशाल वरिक्ष तुम पर गिर रहा था वो किस पर टिका था
12:40अब थोड़ा और स्मरंड करू जब हम भाग रहे थे तो मेरी हातों की गतिको
12:55किसे चित्रकार की बाती चल रहे हैं जैसे इस प्रकृती का सजीव चित्रेंग कर रहा हूं
13:01और यदि मेरे बुलावे पे उस असुर का आना केवल सही योग था
13:19है कि तो यह क्या है है कि अब आभास हुआ है मेरे सामर्थ्य का
13:45हम और तुम सोच रिती कि तुम मुझे बरसाना से बाहर जाने पर विवाश कर दो
13:50नहीं
13:54मैं बरसाना में एक विशेश उद्देश से आया हूं राधा और जब तक वो उद्देश पूर्ण नहीं होता मैं यहां से नहीं जाओंगा
14:05आ वो बगुला मेरे ही संकेत पर यहां पर आया ताकि जब मैं अपनी शक्तियों का प्रयोग कर इस बंजर को हरा करूं तो किसी को अंश्यमात रानुमान भी नहों कि यह मैंने किया
14:18मैं भले ही बरसाना में ना रहूं कि इन्टू बरसाना मेरी पहुत से बाहर नहीं होगा और एक दिन
14:30एक दिन मैं बरसाना को वश्च में करके रहूंगा
14:48ठीक बच्छक बच्ति कोॉ रहूंगा
14:53लोगी सूंगा
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