01:19विर्या की नदी बनकर गोलोक से मृत्री लोक की यात्रा किये है उसमें
01:26अब उसे अपने उद्गम की और जाना
01:29आज वो प्रेम के विरुद्ध एक धारा है
01:34उसे प्रेम की देवी राधा बनना होगा
01:44किन्तु यह होगा कैसे काना
01:49मनुष्य के रूप में जन्मी है न दव
01:53तो उस शरीर की सीमाओं से बंदी हुई
01:56भै, क्रोद, हीर्शा, काम, मोह
02:03इन सब अशुद्धियों से बादित है वोदा
02:06इस यात्रा में राधा को उन अशुद्धियों को स्वयम से दूर करना होगा
02:12इस पार से उस पार आना होगा
02:16और राधा की ये परिवर्तन यात्रा आरंभ होने वाली है और इस यात्रा की नईया भी मैं ही हूँ
02:29कि वय या भी मैं है
02:32मैं ही उसका साधन हूँ और मैं ही उसका साध्य भी
02:38तिर ये भी बताई दोकान की राधा की ये महायात्रा
02:44आरंब कहां से होगी?
02:50उस भाव से जो हर नई आत्रा से पूर्वा हमें घेर लेता
02:54भै, ये भै ही तो है दाव जो मनुष्य को जीते जी मार देता
03:01हमें हमारी पहचान में सबसे बड़ी बादा है ये भै
03:07और राधा को अपनी इस महायात्रा का आरंब
03:14भै के अंत से करना होगा
03:18तो भै से अभै की ओर जब जाएगी राधा
03:22तभी दूर होगी क्रिश्न के मार की पहली बादा
03:44तो तो तो थोड़े दिन और रुक जाओ मित जब तक निवास के लिए कोई नया इस्तान सुने श्चितना हो जाए
04:00थोड़े दिन और रुक जाओ मित जब तक निवास के लिए कोई नया इस्तान सुने श्चितना हो जाए
04:14सारे गोकुल को लेकर कहां कहां बठको गये विर्जबान जी बिल्कुल ठीक क्या रहे हैं हमें से कोई भी नहीं चाता कि आप लोग यहां से जाए मेरी मानिये तो कम से कम टिपावली तक रुक जाहिए
04:28यशोदा काकी समझाइए ननन्द काका को रुक जाहिए ना
04:34कि वैसे र्याधा का तर्क उचित है महीं है कि वो वा मुझे भी ऐसा ही लगा है कि हम हम कुछ दिन के लिए रुक ही जाते हैं
04:58कब तक छल करोगे कृष्ण एक दिन और सही उसके पश्चात बरसाने में एक शंड नहीं रुकने दूंगे तुम्हें
05:18जटी लेगा कि आपने कुछ कहा नहीं मैंने अभी तक कुछ कहा नहीं
05:30आपने सच में कुछ नहीं कहा नहीं क्या हो गया मेरे कानों को आज कल लग कुछ कुछ सुना ही दीता है मुझे
05:55मां मैं मंदर जा रही है जाओ जाओ
06:14भगवान सुना है आपने दोश को दन नहीं देते जो हुआ उसमें नंद काका या शोदा काकी और गोकलवासियों का कोई दोश नहीं है
06:28फिर क्यों उने कश्ट मिल रहा है मेरी केवल आपसे इतनी प्रार्थना है कि नंद काका या शोदा काकी रोहिनी काकी दाओ और समस्त गोकलवासियों की रक्षा करना
06:40नजाने वो क्रिशन यहाँ अब एक दुन रुक कर क्या खेल खेलना चाता है
06:45जब से यहाँ आया है सबके जीवन में हल्चल मचा दिया उसने
06:49मचाती हूँ यहाँ से चला जाए
06:52खिन्दूस के कारण गोकलवासियों पर कश्ट मत होने देना
06:57सक्खी की इच्छा मेरे लिए आदेश
07:05किंतु केवल प्रार्थना से काम नहीं चलेगा
07:29मेरी सक्खी को स्वयम मेरा साथ देना होगा
07:32गोलोक से गोकल और गोकल से यहाँ आने का कारण तुम बनी हो
07:37तो अब बरसाना से कहा जाओ इसका निमित भी तुमें ही बनना होगा
08:02सुनो राधा राधा बात तो सुनो कि मुझे कुछ महतुपूर्ण बात करनी है
08:09तुमारा मौन सहने से श्रेष्ट है में तुमारा क्रोधी सहने
08:22तुमारी मेठी वार्णी तो सुनाई देती है उसमें
08:26अब राधा राधा बात तो सुनो
08:56मैं प्रयास कर रहा हूँ कि स्वयम अपने मामा का अंच ना करूँ
09:00और आप है मामा श्री के आकाश्वानी को सत्य करनी की शीगरता में
09:08अंच कर दो बकासूर नश्ट कर दो उस किष्ण को
09:13अपनी पूरी शक्ती लगादा बकासूर
09:17और बन जाओ मेरे काल का काल
09:22वैसे आपने इसे भीज कर उचित ही किया है मामा श्री
09:28अब बकासूर के उप्योग मैं राधा को उसके कंतव्य तक पहुचाने में करूँगा
09:42राधा कृष्ण के बीज की पहली बाधा पार करने में
09:49यह क्या हो रहा है मेरा संतुलन स्वयम ही कैसे बदल रहा है
10:11राधा की पहली बादा दोर करने निकला
10:37यहां तो इतनी सारी बाद आया गए
10:43राधा
10:45झाल झाल
11:15तुम ये कहां ले आये मुझे और मेरा हाथ केसे पकड़ा तुमने
11:45जो मुझे ने क्या बोल रहे हूं तुम्हें सुना दे रहे हैं कैसे मुझे जा रहे हूं
11:55कर ले कि मेरे ऊगे हो क्या किसने थे सक एप मुझे हां इस यह स्कुरा ज़ार हैं वू है आज पूरे दिन में तुमने मुझे पहली बार कुछ
12:15किन्तु मैं मैं तो केवल तुम्हारी सहायता इतनी बार कहा है मेरी सहायता मत किया करो
12:27तुम नहीं होते तो सब चुब होता
12:29तुम हो इसलिए मैं इस घरे बन में हती हूँ
12:33अचा राधर सुनो जिस मार्च से तुम जा रही हों
12:47उस मार्च पर वह सूर हमारी प्रतिक्षा कर दो रहा है को आधी
12:56अब कोमल कन्याओं का भक्षण असुरों को बहुत भाता है, रुख जा
13:03मैं इस दर को साधे यहां नहीं रुख सकती
13:17मुझे माधा पितों को मेरी आविश्कता है
13:21मुझे जाना होगा
13:25सोच लो यदि तुम अभी वन से बाहर निकली तो वो आसुर तुमारे प्राण ले लेगा
13:31यहां तुम्हारे साथ जीने से श्रेश कि मैं वहां जाकर अपनों की साथ मरूँ
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