- 3 months ago
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00:00कमलापूर के करीब एक अच्छा गाउझ था और उसका नाम अबयापली था। वो गाउझ इडली के लिए प्रसद था। जो भी उस गाउझ से गुजरता था वो जरूर एक प्लेट इडली तो खाके जाता था। और उन प्रसद इडली को बनाने वाले थे चंद्राया और उस
00:30एक दिन एक आदमी इडली खाने आता है, मेरे पास पैसे नहीं है, बाद में दे दूंगा आपको, ऐसे कैसे होगा, पहले पैसे दे कर यहां से जाओ, ठीक है, आप चले जाएए, अगली बार जब इस तरफ आएंगे, तो दीजेगा, आप अगर ऐसे ही करेंगे, तो आखिर म
01:00तो वो मुफ्त में उनको इडली खिलाता था, चंद्रया और जोती रोज आए हुए पैसों को बचाते थे, एक रात वो ऐसे बात करते हैं, देखे, ये पैसे हमारे मेहनत के हैं, अगर आप इसे ऐसे ही दान करते रहेंगे, तो आखिर में हमारे लिए कुछ नहीं बचेगा
01:30स्यादा मत सोचो, सोजाओ
01:32सुबा होते ही दोनों उनके अपने अपने काम में व्यस्थ हो जाते हैं, इडली बनाना और आए हुए पैसों को बचाना
01:40दिन उनके ऐसे ही बीत रहे थे, जब अचानक एक रात को चंद्रया के घर में चोर उनके सारे पैसे चोरी कर लेता है
01:48जोती सुबा उठती है, वो जरूरत होने के कारण पैसों के पास जाती है
01:53मगर वहाँ सब कुछ खाली रहता है, बस उसे समझ आता है कि किसी ने सब कुछ चोरी कर लिया
02:00दुखी होकर वो अपने पती के पास जाती है
02:03देखिए ना हमारे मेहनत के पैसे पूरा चुराए गए
02:07तुम निराश मत हो जोती, कोई ने, हम फिर से महनत करके पैसों को बचाएंगे
02:14आप नहीं सुधरेंगे, ऐसे गुस्से में कहके वहाँ से चले जाती है
02:18सुबह होते ही वो उनके काम में लग जाते हैं, लेकिन जोती उसी बात को लेकर निराश होती है
02:25और काम करती है
02:27उस दिन कोई भी उनके दुकान नहीं आते हैं
02:30सिर्फ एक बूड़ी और भूकी औरत आती है
02:33जिसको चंद्रया खाना देकर बेचता है
02:36हमारा अब तक बोनी भी नहीं हुआ है
02:40और आपने इस औरत को मुफ्त में खाना दे दिया
02:43इसी कारण मैं कह रही हूँ कि हमारे लिए अंत में कुछ नहीं बचेगा
02:47और तो और अब हमारे पास तो पैसे भी नहीं है
02:51ऐसे बात करी रही थी कि ग्राहक आना शुरू हो गए
02:54और जोती सब को इडली देना शुरू करती है
02:57कुछ समय बाद एक बुड़ा आदमी बैल काड़ी में चावल की बोरियां लेकर उसी तरफ से जा रहा था
03:04वहां की इडली खाने उनके दुकान जाता है
03:07मुझे इडली चाहिए
03:10लेट दस का है
03:12मेरे पास अभी पैसे नहीं है
03:15अगली बार जब इस तरफ आऊंगा
03:18तो पक्का दे दूँगा
03:19अब मुझे बहुत भूग लग रही है
03:22पैसे नहीं है तो इडली नहीं मिलेगा
03:24चोती ये कैसा परताव है
03:27पड़ों से क्या ऐसे ही बात किया जाता है
03:29आप बैठिये
03:31मैं इडली लेके आता हूँ
03:32ठीक है बेटा
03:34इडली को प्लेट में रखके
03:36उस आदमी को देता है
03:38दादा आप बुरा मत मानिये
03:41उसे ठीक से बात करना नहीं आता है
03:43इतने में
03:45वो पोरा इडली खतम कर देता है
03:47कोई बात नहीं बेटा
03:49तुम्हारे बारे में मैंने सुना है, तुम्हारी अच्छाई देख, मैं तुम्हें एक तौफा देना चाता हूँ, देने के लिए मेरे पास ज्यादा कुछ नहीं होने के कारण, मैं तुम्हें ये चावल का एक बोरी दे रहा हूँ, मुश्किलों में इसका इस्तमाल करना, य
04:19मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा।
04:21देखो उस बूड़े आदमी ने हमें क्या दिया।
04:24एक चावल की बोरी और वो भी मुफ्त में।
04:28आगर हम अच्छे हैं तो सभी हमारा अच्छा ही चाहेंगे।
04:32जोती उस बोरी को देख बहुत खुश होती है।
04:35कुछ दिन बाद बारिश का मौसम आता है।
04:38और इसी कारण उनका व्यापार अच्छा नहीं चलता है।
04:42उन्हें नहीं समझाता है कि क्या करें।
04:45और इसलिए घर पे बैठते हैं।
04:48उस आदमी ने कहा था कि कश्टों में इस बोरी का इस्तिमाल करना।
04:52और अब सिर्फ ये बोरी ही बचा है।
04:55इडली खाने के लिए चावल को आटा बनाके इडली डालते हैं।
05:00लेकिन इडली की जगा सोने को देख दोनों आश्यर चकित हो जाते हैं।
05:04उन्हें वो सब चादूई लगता है।
05:07देखा जोती तुमने इस चावल को उस दिन वो बूड़े आदमी ने दिया है।
05:12और तुम बुरा मानगी कि मैंने उन्हें मुफ्त में इडली दिया है।
05:15हाँ जी, हम जब एक बार किसी की मदद करते हैं, तो वो किसी न किसी रूप में हमारे पास लोटकर आ ही जाता है।
05:24उस बूड़े आदमी के रूप में भगवान आये थे हमारे पास।
05:27उन्हें तो मैंने बाद में या उससे पहले कभी नहीं देखा।
05:31उसके बाद चंदरया अमीर बन जाता है।
05:34उसके बावजूत पती-पत्नी दोनों इडली डालते हुए, जरूरत मंदों की मदद करते हुए, भूकों को इडली मुफ्त में देते हुए, खुश रहते हैं।
05:45हमारी सहायता और अच्छाई कोई न कोई रूप में हमारे पास वापस आ ही जाता है।
06:15मोहन का तब्यत खराब होने पर वो कोई भी काम नहीं कर पाता था। और ऐसे उसके लिए अपने परिवार का खर्चा संभालना बहुत मुश्किल होता था। और इस बात का मोहन को बहुत चिंता होती है।
06:29एक दिन नवनीत अपने पता को चिंतत देखता है।
06:35पापा हमेशा चिंतत रहते हैं। आज मुझे उनके पास जाके पूछना ही होगा कि उन्हें कौन सा बात इतना चिंता दे रही है।
06:44पापा, आप किस बारे में सोचकर इतना दुखी हो रहे हैं।
06:48नवनीत, इतने दिन मैं महनत करके पैसे कमाता था।
06:54इसलिए हम कोई भी चिंता के बिना आराम से जीते थे।
06:58पर अब मेरी तब्यद बिकरती चा रही है बेटा।
07:02और इसके कारण मुझे चिंता है कि अब आगे घर कैसे चलाएंगे।
07:07पापा, आपकी तब्यद तो वैसे ही खराब है।
07:11आप ये सब मत सोचे, आप बस आराम कीजे।
07:14मेरे पिताजी उनके तब्यद बिगरने पर भी घर के बारे में ही सोच रहे हैं।
07:20अब मुझे ही कुछ करना होगा और घर की जिम्मेदारी लेना होगा।
07:24ऐसे सोचता है।
07:26हाँ, पापा ने मुझे थोड़ी पैसे दिये थे ना।
07:29मैं पहले ये देखता हूँ कि कितने पैसे है मेरे पास।
07:33और फिर सोचता हूँ कि उससे कौन सा व्यापार कर सकता हूँ।
07:38ऐसे सोचकर वो जाके देखता है कि उसके पास कितने पैसे हैं।
07:43अरे, मेरे पास तो सिफ 10 रुपय है।
07:46इनके साथ मैं कौन सा व्यापार शुरू कर सकता हूँ।
07:49उन 10 रूपियों के साथ वो बाजार जाता है और वहां सारे दुकानों को देखता है एक दुकान में निम्बो उनको बिक्ते देखता है मेरे पास के पैसों के साथ निम्बो के अलावा और कुछ नहीं मिलेगा इसलिए मैं निम्बो ही खरीद के बेचूंगा ऐसे सोचके निम
08:19और दुकानदार उसे दस निम्बू देता है नवनीत उन निम्बूं को बेचना शुरू कर देता है निम्बू निम्बू ताजा ताजा निम्बू आखरी दस निम्बू ले लो जी ले लो एक निम्बू का कितना होगा दो रुपए का एक निम्बू इतना दाम क्यों बगल �
08:49है तुमारे पास के नीम्बू दे दो ऐसे नीम्बू बेच के उससे आये हुए पैसों से वापस और नीम्बू को खरीदता है
08:59और दिन पूरा मेहनत करके कमाई हुए पैसों को लेकर खुशी-खुशी गर जाता है
09:05पापा आप अपसे घर की जिम्मदारी का चिन्ता ना ले और उन्हें सब कुछ कहता है
09:22नवनीत तुम्हारी बात सुनकर मुझे बहुत खुशी हो रही है बेटा तुरोड निश्य से हम कुछ भी हासिल कर सकते हैं
09:31ऐसे हर रोज नवनीत निम्बों को खरीद के बेचता था
09:36कुछ दिन बाद कम लोग उसके पास निम्बो खरीदने लगे
09:40जिसकी वज़े से उसके पास निम्बो बचने लगे
09:44और इसलिए वो दुकानदार के पास कम निम्बो खरीदता था
09:49ताकि बचे हुए नीम्बों के साथ उन्हें अगले दिन पेच सके
09:55एक दिन ऐसे ही नीम्बो खरीदने जाता है
09:59एक नीम्बो का गुच्छा दिजे बाई सब
10:01व्यापार के शुरुआत में ज्यादा नीम्बो खरीदते थे
10:04कुछ दिनों से कम हो गया है
10:07नबनीत बिना कुछ बोले वहां से चला जाता है
10:19उन्होंने ये पूछा कि क्या मैं कम से कम कुछ दिन व्यापार चला पाऊंगा
10:24मुझे अब उनहीं के पास से नीम्बो खरीद के उनके सामने ही व्यापार को आगे बढ़ाना होगा
10:32और ऐसे सोचकर अपने नीम्बू बेचता है उस दिन के नीम्बू बेचकर घर जाते वक्त रस्ते में देखता है कि एक दुकान में बहुत भीड़ है पास जाके देखने पर पता चलता है कि वो एक जूस का दुकान है
10:47अगर मैं भी इन नीमबूओं का रस बनाके कम दाम पे बेचूंगा तो मेरे ही पास सब लोग आएंगे खरीदने
10:55उसके सोच के अनुसार वो अगले दिन से खरीदे हुए नीमबूओं में आधे नीमबू को रस बनाकर और बागी नीमबूओं को ऐसे ही बेचने लगा
11:06नीम्बू का सिर्फ पांच रुपै लेलो भाय साब लेलो ऐसे जोर से चिलाता है
11:12बहुत कम दाम पे नीम्बू का रस बेचने के कारण उसके पास पहुत लोग आकर पीते हैं
11:19और नीम्बू भी सारे उसके पास खतम हो जाते थे
11:23दुकांदार के पास ज्यादा नीम्बू को खरीदने लगा और उन सारों को बेच देता था
11:31और वैसे ही उसके व्यापार में भी अच्छा लाबाने लगा
11:35ऐसे उसने अपना खुद का दुकान शुरू किया और उसमें सहायकों को भी काम पे लगाया
11:42एक दिन नीम्बू के दुकान को जाता है
11:45आपके दुकान में सारे नीम्बू खरीदना है मुझे
11:48एक समय था जब तुमने मेरे पास सिर्फ 10 नीम्बू खरीद के प्यापार चुरू किया था
11:55अब तो तुम्हारा खुद का एक दुकान है
11:58वार
11:59आपको याद है आपने एक बार मुझसे पूछा अगर मैं कुछ और दिन इस व्यापार को चला पाऊंगा
12:06मुझे उस बात का बहुत पुरा लगा मगर उसी बात ने मुझे प्रेरिद भी किया
12:12और नुकसान होने के बावजूद हार नहीं मानकर बहुत महनत करके यहां तक आया हूँ
12:18जब कुछ करने का दुरुड निश्चे होता है तो कुछ भी कर पाओगे बिटा
12:24बहुत लोग तुमसे कहेंगे की नहीं हो पाएगा
12:28पर उन बातों का बुरा ना मानकर उनको दिखाने की कोशिश करेंगे तो सफलता जरूर मिलेगी
12:36माकर बहुत लोग इस बात को नहीं समझते हैं
12:40वो लोगों के कहा का बुरा मानते हैं और निरुच साहित हो जाते हैं
12:45और काम करना भी रोक देते हैं
12:48और ऐसे दुकानदार नवनीत का अभिनंदन करता है।
12:52नवनीत के सोच के अनुसार व्यापार के अच्छा चलने पर अपने मा बाप का पहुत अच्छा ख्याल रखता है।
13:00तो इस कहानी का नैतिक क्या है बच्चों।
13:02दूसरों के कहे बातों का बुरा ना मानकर अगर दुर्णिश्य से फैसला लेकर महनत करोगे तो हर हाल में सफलता मिलेगी।
13:12बहुत समय पहले एक गाव में रमया और चानकी नाम के पति-पत्नी रहते थे।
13:28उनके दो बेटे थे महेंद्रा और महावीर।
13:32पताजी महेंद्र को बहुत पसंद करते थे और उनकी मा महावीर को बहुत पसंद करती थी।
13:38महेंद्रा पहुत ही मासूम था पर महावीर बहुत स्वारती था।
13:44वो सोचता था कि वो अपने भाई से ज्यादा होश्यार है।
13:48रमया खेती करके अपने परिवार का देखबाल करता था।
13:54एक दिन रमया अपने दोनों बच्चों के लिए नय कपड़े खरीत के लाता है।
14:00पहले अपने पसंदिदा बड़े बेटे को कपड़े देता है और फिर अपने छोटे बेटे को कपड़े देता है पर महवीर को अपने बड़े भाईया के कपड़े अच्छे लगते हैं
14:12पिता जी मुझे भाईया को दिये हुए कपड़े अच्छे लगे, मुझे वही चाहिए।
14:18महेंद्र को अपने छोटे भाईया से बहुत प्यार था, इसलिए वो अपने कपड़े उसको देने का सोचता है।
14:25पिता जी महावीर को मेरे कपड़े अच्छे लगे तो उसे को लेने दीजिये, मैं उसके कपड़े ले लोंगा।
14:33महावीर के पसंदीदा कपड़े मिलने पर वो खुश हुआ।
14:37ऐसे ही कुछ सालों में महेंद्रा और महावीर तोनों बड़े हो जाते हैं।
14:43और रमाया को दृष्टी की समस्या आ जाती है, जिसकी वज़े से काम नहीं कर पाता था और घर पे ही रहता था।
14:51मेरी पत्नी को हमारा छोटा बेटा बहुत पसंद है।
14:55तो मेरे जाने के बाद वो मेरे नाम की सारी संपत्ति उसके नाम कर देगी।
15:01इससे पहले मुझे ही संपत्ति सारा उन दोनों के बीच में बटवारा करना होगा।
15:08महेंद्रा, महावीर, जी पता जी।
15:12मैं आज मेरे संपत्ति को तुम दोनों के नाम करना चाता हूं।
15:18जाओ, जाके संपत्ति के कागज लेके आओ।
15:22मेरे बड़े भईया को मुझे पूरा भरोसा है।
15:27कुछ भी करके सारा संपत्ति मुझे अपने नाम करवाना होगा।
15:32भईया, आपको कैसी ये श्रमा।
15:35आप वही पताजे के पास रहिए।
15:38मैं लेके आता हूं कागज।
15:40ठीक है, जो तेरी मर्जी।
15:43महवीर अपनी स्वार्थी बुद्ति से
15:47अपने भईया के साथ पयार बरी भाते करके
15:50चालाकी से सारी संपति अपने नाम करवाके लेके जाता है।
15:54पता जी, आपके इच्छा क्या अनुसार
16:01मैंने आपके संपतिて को बराबरी से हम दोनों में बटवाया है।
16:06ये महावीर तो मतलबी इंसान है, प्यार का नाटक करके सारी संपत्ति उसके नाम करवा लिया होगा, पर ये महेंद्र को अपने भाई पे पूरा भरोसा है, महेंद्रा जरा अपने भाई के लाए हुए कांग्जों पे जो लिखा है वो पढ़ के सुनाना बेटा,
16:25पिता जी जैसे अपने चाहा महावीर ने वैसे ही किया, अब वापस पढ़ के सुनाने की क्या जरूरत है, मुझे अपने भाई पे पूरा भरोसा है, ठीक है बेटा, तुम्हारी मर्जी, ऐसे कहके रमाया संपत्ति के कांग्जों पे बिना कुछ सोचे अपना हस्ताक्षर कर �
16:55मालिक मैं हूँ, क्या कह रहे हो तुम महावीर, भाया मुझे पूरा विश्वास करके सारी संपत्ति के कांग्जों पे पिता जी के कहने पर भी बिना पड़े उनकी हस्ताक्षर करवा के सारी संपत्ति मेरे नाम करवा दिया आपने, मुझे यकीन नहीं हो रहा है कि संपत्त
17:25बुरा मत मानिये पता जी, मुझे तुम दोनों संपत्ति से बहुत बढ़कर हो। महावीर संपत्ति के कागज लेके अपने मा को पिन बताये वहां से चला जाता है। बड़े प्यार और लाड से बढ़ा किया था उसको मैंने और मुझे एक भी बात ना बताके वो संपत्ति
17:55महेंद्रा अकेले महनत करके पैसे कमाके अपने माता पिता की देखपाल करते खुश रहता था। महावीर अपने पिताजी के दिये हुए संपत्ति से व्यापार शुरू करके उस संपत्ति को दुगना करने की सोच में पढ़ जाता है।
18:16ज्यादा पैसे कमाने के लिए कौन सा व्यापार शुरू करना चाहिए इस सोच में पढ़ जाता है।
18:24हाँ ठीक चावल व्यापार शुरू करूंगा मैं चावल की जरूरत तो सब को है। ये सोच कर वो चावल की थेलियों को खरीदने जाता है।
18:36एक चावल के थेली कितने का है। इस चावल का थेली का दाम आने वाले साल में दो कुना बढ़ जाएगा।
18:44लेकिन कम तो नहीं होगा अगर इसके पास मैं सारे चावल के थैली खरीद के अगले साल बेचूंगा तो मेरा संपत्ती दुग ना हो जाएगा
18:56अरे भाई साब कुछ बोले बिना क्या सोच रहे हो आप क्या सच में चावल के थैली का अदम अगले साल दो गुना बढ़ जाएगा
19:05हाँ भाई साब सच में इस किसम का चावल आपको बाजार में आसानी से नहीं मिलेगा
19:13अच्छा तो मुझे आपके दुकान के सारे चावल के थैली बेच दीचे
19:19ऐसे कहकर महावीर उन सारी थैलियों को खरीद के एक दुकान भी खरीद के उसमें रख देता है
19:27अगले साल आकर उन थैलियों को बेच कर अपना संपत्ती दुगना करने की सोचता है
19:36जैसे उस दुकानदार ने कहा था वैसे ही थैलियों का दाम दो गुना बढ़ जाता है और उस दुकान में सहायोकों को भी काम पे लगा देता है महावीर
19:48महवीर के दुकान के अलावा कही और उस तरह का चावल आसानी से ना मिल पाने के वज़े से बहुत लोग वहां से खरीते थे
19:58मगर चावल के थैलियों को ठीक तरसे नहीं रख पाने के वज़े से चावल का गुनवत्ता गिर जाता है
20:08और अक्सर चावल खराब भी हो जाता था और खरीदर सारे थैलियों को वापस दुकान ले के आते थे
20:16इतना महेंगा चावल का थैली खरीद रहे हैं और उसमें कीरे भरे हैं ये क्या है जी आप अपना थैली ले लो और मुझे मेरा पैसे लोटा दो
20:25हाँ हाँ हमारे भी थैलिया ले लो और हमको हमारे पैसे लोटा दो
20:31सारे खरीदार के चिलाने पे महावीर डर जाता है और थैलिया लेकर उनको उनके पैसे लोटा देता है
20:39सोचता है कि बाकी के थैलिया तो बिकेंगे पर देखने पर पता चलता है कि वो भी वैसे ही है
20:46ये देख महावीर दुखी होता है, ये सब मेरे स्वार्थ के वज़े से हुआ है, अगर तब ही मैं इन थैलियों को बेच देता तो ये स्तिथी नहीं आती, कम से कम मेरा ये तकलीफ बाटने के लिए भी कोई नहीं है, मा, पिताजी और भाईया को धोका देकर जो संपति लाया
21:16नहीं होते हैं, और वो अकेला पढ़ जाता है, तूसरी तरफ उसके बड़े भाईया निस्वार्थ के वज़े से खुशी-खुशी जी रहे होते हैं, व्यापार में लाप आने के कारण अपने माता-पिता की अच्छी देखबाल करता है, महावीर को अपने गल्ती के एसास
21:46जानकी बहुत खुश होती है, महावीर उसकी दुखी कहानी सुनाकर माफी मांगता है, परिवार वाले ये सुनकर खुश होते हैं कि महावीर को अपने गल्त स्वभाव का एसास होता है, और उसे खुशी-खुशी स्वीकार करते हैं, और वे सब हमेशा के लिए खुश रहत
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