00:00सुवर्नपूर नामक राज में सुब्रमन येशाश्य नामक एक पंडत रहता था, वो उसके बीवी जानकी और उसके चोटे बच्चों के साद एक चोटे गर में रहता था
00:12वो पंडित उसके परिवार का देखबाल ना करने के कारण बहुत दुखी रहता था
00:18और उसी समय में पंडित की बीवी का सेहत ठीक ना होने के कारण वो बिस्दर पे ही रहती थी
00:25अपनी बीवी को अस्पताल लेकर जांच करवाने की भी पैसे नहीं थे उस पंडित के पास
00:32और इसलिए वो हमेशा दुखी रहता था
00:35आखिरकार अपनी बीवी की जांच करवाने के लिए भी मैं उसे अस्पताल नहीं ले जा पा रहा हूँ
00:42उसके भी पैसे नहीं है मेरे पास, ये कौन सी दुरबाग्य है मेरा।
00:46ऐसे दुखी होते हुए उसी निराश में वो उसकी बाधाओं को कविता के रूप में बदल कर उन्हें लिखता था।
00:54और तभी उसके बच्चे भूप के मारे एक कोनी में बैटकर रो रहे थे।
01:00एक तरफ उसकी बिमार बीवी और दूसरी तरफ उसके बूखे बच्चे। इन दोनों की देखबाल ना कर पाने के कारण वो बहुत ही दुखी हो रहा था।
01:10हाई भगवान अगर मैं काम कर रहा होता तो ये स्तिथी नहीं आती। मेरे काम ना करने के कारण ही मेरे परिवार को इतना दुर भाग्य देखना पड़ रहा है।
01:22और बहुत कुछ भुकतना पड़ रहा है
01:25अगर मेरे पास काम होता या नौकरी होती
01:29तो हम सब कितने खुश रहते
01:30इस समस्या का मुझे कोई ना कोई हल निकालना ही होगा
01:35ऐसे वो पंडित सोच में पड़ जाता है
01:38अगर किसी को बताये बिना
01:40मैं मदद मांगने के लिए
01:42इस राज्य के राजा के पास जाओंगा तो
01:45उन्हें मैं अपना समस्या समझा कर
01:47उनसे मदद मांग पाओंगा
01:49लेकिन मुफ्त की सहायता मुझे नहीं चाहिए
01:52मैं उनके लिए कुछ काम करूंगा
01:55तब वो मुझे अगर ये तौफे में दे तो ठीक है पर ऐसा मैं क्या करूं जिससे राजा खुश हो जाए अरी हाँ मैं उनकी प्रशंसा करूंगा उनके बारे में अच्छे अच्छे कविताये और बहुत अच्छे गाने लिखूंगा और उनकी सामने गाऊंगा और वो कवित
02:25तो चाहे वो मांग पाऊंगा ये फैसला करके वो पंडित राजा के पास जाता है राजा के पास जाकर उसके फैसले के अनुसार ही वो राजा की बहुत अच्छी प्रशंसा करता है कभी कविता से और फिर कभी गाने से उनकी बहुत सारा प्रशंसा और उनकी कीर्थी के बा
02:55इतना उन्चा नैं किसी ने लिखा है और ना ही किसी ने मेरे सामने इतनी मेरी प्रशंसा की है
03:03मुझे ये सब सुनकर बहुत खुशी हुई हां राझा आपकी प्रशंसा किसी ने अब तक इतनी अच्छी तरय से नहीं किया है
03:13सुब्रमन्य सास्त्री मेरे साथ ही यहां मौजुद सारी लोगों को तुमने बहुत खुश किया है तुम्हारी प्रशंसा से हम सब का मन प्रसन्न हुआ है
03:25मांगों तुम क्या चाते हो अब मुझे ऐसा कुछ मांगना होगा जिससे मेरी बीवी और बच्चे हमेशा के लिए खुश रहे यह सोचते हुए उसे कुछ ही दूर में शत्रंच की बिसात पर बड़े करीने से व्यवस्थित सिक्के दिखते हैं
03:45दयालो राजा एक बार आप उस शत्रंच की बिसात को जरा देखिए उस शत्रंच के पहले वर्ग में एक दाना और दूसरे में दो ऐसे आने वाले हर वर्ग के लिए चावल के दाने को दुगना किया जाए
04:05ऐसे आखिर में जितना भी चावल मिलता है वो ही मैं आपका तौफा समझ कर स्विकार करना चाहूंगा
04:13ये क्या चावल की दाने मांग रहा है लगता है बेवकूफ है इसे तो कुछ नहीं पता इसलिए राजा जी से ये सिर्फ दाना मांग रहा है
04:26हम् सुब्रमन्यम सास्त्री क्या तुम सोच समझ कर ये सब पूछ रहे हो तुम्हें मैं सोना मोती चांदी जेवर कितना सारा दे सकता हूँ
04:39पर तुम मुझे चावल के दाने ही मांग रहे हो राजा जी मुझे सिर्फ चावल की दाने बस है और कुछ नहीं चाहिए
04:49ठीक है तुम्हारी मर्जी कौन है वहाँ वहाँ मौझूद शत्रंच की बिसात को यहाँ लाओ जी राजा जी
05:00और तब राजा के सेवक उस शत्रंच के बिसात को राजा के पास ले कर जाते हैं
05:07सेवको हमारे इस पंडित सुब्रमन्यम सास्त्री के च्छा के प्रकार तुम लोग एक चावल के दाने को पहले वर्ग में और दूसरे वर्ग से उसको दुगना करते आखरी तक जाओ
05:21और इसी शत्रंच के बिसात पे वो करो जी राजा जी सेवक सारे चावल के दाने को एक एक वर्ग में लगाना शुरू करते हैं
05:31तो पहले वर्ग में एक, दूसरे वर्ग में दो, तीसरे वर्ग में चार दाने, चौथे वर्ग में 16, पांचवी वर्ग में 35, छटी वर्ग में 4, साथ, ऐसे लगाते जाते हैं।
05:45जब तक दसवी वर्ग पे पहुंचते हैं उसका गिंती 512 हो जाता है और ऐसे 20 वी वर्ग पे 5,288 दाने गिंते हैं ये देख राजय सबा में मौजुद सब भी आश्चर चकित हो जाते हैं और राजा के सेवकों को एक एक दाना को ऐसे गिंते हुए देख वो चौंग जाते ह
06:15यानी 32 वर्ग पे पहुंचते हैं तो संख्या 2 करोड के उपर हो जाता है और उसके बाद आखिर तक पहुंचते हुए उन दानों की संख्या कुछ लाखों करोडों तक जाती है और उसके कारण उस राज के राजा को उनका पूरा जायदात सुब्रमन्य सास्त्री पंडित क
06:45बना दिया अब इसका इच्छा पूरा करना है तो मुझे अपना जायदात किसके हवाले करना होगा क्योंकि सबके सामने सभा में मैंने उसको यह वच्चन दिया है मैंने कभी यह नहीं सोचा कि एक दाने के कारण मुझे अपना जायदात पूरा किसी और के हवाले करने की स्
07:15हमने तो सोचा है कि ये बेवकूफ है और इसने तो राजा से सिर्फ दाने मांगे हैं पर आखिर में राजा से उनके राज्य को ही ले लिया इसने अरे हां तुम सही कह रहे हो राजा तो ये कभी सोचा भी नहीं होंगे
07:33उसके बाद सुब्रमनी सास्त्री राजा के दिये हुए चावल के दानों को खुशी से उसके घर ले जाकर उसकी बीवी का इलाज करवाता है और उसके बच्चों को बहुत सारा खाना खिलाता है उसके बाद वो पंडित उसके परिवार के साथ बहुत खुशी से जीता है
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