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  • 6/16/2025

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Transcript
00:00एक लंब है समय पहले सुभधरपुरम नामक एक गाउं में सुभाश नामक एक आदमी उसके माता पिता के साथ रहता था।
00:10वो दोनों बहुत महनत करके सुभाश को थोड़ा पड़ाते हैं।
00:15और सुभाश भी उसके माता पिता के महलत के बारे में सोचकर मुझे भी कोई काम करके उन दोनों का सहारा बनना होगा।
00:22ऐसे सोचता है। इसी कारण वो नौकरी ढूने उस गाउं के बाजार को जाता है।
00:30ऐसे वो दो दिन मार्केट में जान पहचान के लोगों को काम के लिए पूचता है। लेकिन सभी ना ही कहते हैं। तब वो आखिर में व्यास की व्यापार कर रहे एक बुड़े आदमी से काम के लिए पूचता है।
00:44क्यों दादा मुझे तुम्हारे दुकान में कोई काम मिलेगा क्या। मेरा छोटा सा व्यापार है बेटा। तुम्हें देने के लिए मेरे पास कोई काम नहीं है।
00:54हाँ, दो दिन से घूम रहा हूँ दादा, कोई काम नहीं मिल रहा है, इसलिए तुमसे पूछा मैंने, ऐसे दुख में कहता है, यहाँ काम करने से बहतर तुम कोई व्यापार कर लो बेटा, मेरे पास व्यापार करने के पैसे कहां से आएंगे दादा, उतने पैसे ही होते तो म
01:24रखता हूं वो पैसे मैं तुम्हें दूंगा उससे तुम कोई व्यापार शुरू कर लो लेकिन सिर्फ एक शरत में तुम्हारे कमाई के लाप से थोड़ा हिस्सा मुझे बे मिलना जाहिए तब ही दूंगा ऐसे कहता है
01:37तुम मेरी इतनी मदद कर रहे हो तो मैं हिस्सा क्यूं नहीं दूंगा दादा अपसे तुम भी हमारे घर आकर हमारे साथ रहो दादा अगर तुम्हें एतराज नहो तो
01:49ठीक है बेटा मैं तुझे पैसे दे दूंगा उन पैसों से तुम्हें कौन सा व्यापार करना है इसका फैसला करो
01:58ठीक है दादा ये कहकर वो वहां से अपने घर चले जाता है उस रात बहुत सोचने के बाद वो फैसला करता है कि उसे पानी पूरी का व्यापार करना है
02:08अगली सुबर सुबाश बाजा जाकर उस बूड़े व्यापारी से ऐसे कहता है
02:16दादा मैंने पानी पूरी का व्यापार करने का फैसला लिया है
02:20ठीक है बेटा तुम्हारी मर्जी ये लो तुम्हारे निवेश के पैसे
02:25इसे अच्छा व्यापार करो, कहता है वो बूड़ा व्यापारी
02:30ऐसे अगले ही दिन पानीपूरी का दुकार लगाता है सुबश
02:35और क्यूंकि उस बाजार पूरे में कहीं भी पानीपूरी का दुकार नहीं था
02:39छोटा हो या बड़ा सब ही सुबाश के ही दुकान आते थे
02:43वहाँ उसी मार्केट में सुबब या नामक एक उधार देने वाला व्यापारी था
02:48उसको इस बात का नास था कि उससे पैसे लिए बना
02:52उस पूरी बाजार में किसी ने भी कोई व्यापार शुरू नहीं किया
02:56वो हमेशा यही सोचता था कि इस सारे बाजार में सबको मेरे ही पास आना होगा
03:01हां इसलिए वो हर रोज उस बाजार में मौजुद हर दुकान में जाकर
03:05उसका हफ्ता लेकर उस दुकान में जो पसंद आये वो मुफ्त में ले लेता था
03:11उसने एक भी बार किसी भी चीज के पैसे नहीं दिये थी
03:14दूसरी तरफ उससे पैसे लिए दिना खुद का व्यापार शुरू करके
03:23सुबाश का व्यापार अच्छे से चलना देख सुबवया को बिल्कुल पसंद नहीं आता है
03:29और इतना ही नहीं सुबवया को पानी पूरी खाने का बहुत मन था
03:33लेकिन सबसे जैसे वो मुफ्त में लेता है वैसे वो सुबाश से नहीं ले पाता
03:38इसलिए उसे जाने में दिक्कत होती थी
03:40इसलिए वो सोचते रहता है
03:42कि कैसे करें
03:46तब उसे एक उपाय सोचता है
03:48वो सोचता है कि अगर इस सुबाश के दुकान में
03:52कोई भी चीज खो गया
03:54तो उसे खरीदने के लिए पैसे लेने तो वो मेरे ही पास आएगा
03:58तब मैं उसे पैसे देखकर वापस में जितना मान चाहे उतना पाने पुरी खापाऊंगा
04:04ये फैसला करके वो रात में सब के दुकान बंद करने तक वही रहकर
04:10सुबाश के दुकान से रसोई के सारे चीजे चुरा लेता है
04:14अगले दिन जब सुबाश अपने दुकान खोलता है तो वो देखता है कि रसोई में सामगरी पुरा गायब है
04:22अरे रे खाना बनाने के सामगरी कहा है अजो अब क्या करें
04:28वो ऐसे परेशान रहता है जब वहाँ बुड़ा व्यापारी आता है
04:32बात जानकर हाँ अब चिंता करके कोई फैदा नहीं बेटा पहले ये सोचो कि सामगरी कहां से लाया जाए ऐसे कहते हैं
04:42व्यापार शुरू करके कुछ ही दिन हुए है दादा इसलिए मैंने कोई पैसे नहीं बचाए अब क्या करूं मैं
04:48ठीक तबी सुपया वहां पहुँचकर कहता है इतनी सीवत अब जो गया वो गया उसके लिए अब चिंता की क्या जरूरत है
05:00वो सामागरी खरीदने के पैसे मैं दे दूंगा बस जल्दी अपना गाम शुरू कर लो ऐसे कहता है
05:06सुबया के बारे में जाने बिना सुबाश उस बुड़े व्यापारी के कहने से पहले ही
05:13बहुत धन्यवाद साब सही समय पर मेरी सहायता कर रहे हैं आप ऐसे कहता है
05:18फिर सुबया सुबाश को पैसे दे के वहां से चले जाता है
05:23ये क्या है बेटा आगे पीछे सोचे बेना तुमने बस सुबह से पैसे ले लिया
05:29क्या हुआ दादा मैंने क्या गलती कर दिया
05:33हमारा व्यापार तो ठीच चल रहा है न तो बस उसका उधार जल दी चुका दूँगा
05:38ऐसे कहता है सुबाश तुम्हें सुबया के बारे में कुछ नहीं पता
05:43उसके पास एक बार उधार जो ले लिया हमेशा हमेशा के लिए पैसे लोटाते ही रहना पड़ेगा
05:49इतना ही नहीं उसको अगर हमारे दुकान में कोई भी चीज पसंद आ गया
05:54चाहे वो कोई भी चीज हो वो मुफ्त में ले लेता है
05:57इस सारे बाजार में मैंने सोचा सिर्फ तुम हो जो उसके मूँ नहीं लगे
06:02लेकिन आज तुम भी उसके जाल में फस गये
06:05हरे रे हां क्या पर मुझे पता नहीं चला कि मैं क्या करू दादा
06:10पैसे दे रहा था तुम मैंने सोचा कि सहायता कर रहा था
06:13हां चलो कोई नहीं जो होगा सो होगा देखा जाएगा जल्दी काम शुरू करो पिटा
06:22ऐसे वो दोनों अपने अपने व्यापार शुरू करते हैं
06:26शाम होने पर सुबभया सुबाश के पास आकर
06:30एक प्लेट पानी पुरी दो ऐसे कहता है
06:34तब सुबाश उसे एक प्लेट पानी पुरी देता है
06:36उसके खाने के बाद एक और प्लेट पूचता है
06:39और उसके बाद एक और प्लेट और एक और प्लेट खाकर
06:43कहता है आज के जितने पैसे तुझे मुझे देने हैं उसमें आधा पानी पुरी का बिल समझ कर बाकी आधा दे दो
06:53ऐसे कहता है ये सुनकर सुबाश चौंक जाता है अब कुछ नहीं कह पाता है इसलिए वो बाकी के पैसे सुबवया को उधार के पैसे समझ कर दे देता है
07:04ऐसे ही हर रोज चार प्लेट पानी पुरी खाकर उसके रोज के मेहनत के पैसे ले कर जाता था
07:12इस कारण सुबश को समझ में नहीं आता है कि वो कितना कमा रहा है और कितना गवा रहा है
07:20अगर ऐसे ही चलता गया तो मैं उधार के पैसे कभी नहीं चुका पाऊंगा और आगे नहीं बढ़ पाऊंगा
07:30नदी के किनारे एक पेड़ के नीचे बैठ जाता है वहीं से गुजर रहे एक सादू उसे देख उसके पास आकर कहते हैं
07:38क्या हुआ बेटा इतने चिंतत बैटे हो सब ठीक है तब जो कुछ भी हुआ सुबाश उन्हें समझाता है इतना ही ये कहकर उनके बैग से एक प्लेट निकाल कर उसे सुबाश को देकर ऐसे कहते हैं
07:55ये एक माया प्लेट है इसमें जो भी डालो एक के बाद एक एक के बाद एक आते ही रहेगा लेकिन ये एक ही बार काम करेगा तुम अपने तेज दमाग से इसका सही उपयोग करो और अपने आप अपने मुसीबत का हल ढूंडो
08:13ऐसे कहते हैं बहुत बहुत धन्यवाद स्वामी ये कहकर वो दोनों वहां से अपने अपने रस्ते पकड़ते हैं अगले दिन सुबाश हमेशा की तरह अपना दुकान चलाते रहता है सुबाश एक बलेट पानी पुरी दे दो बेटा ऐसे कहता है जी सब अभी दे दूगा �
08:43पलेट में मैं जितने पानी पुरी देता हूँ उतना आपको छोड़े बिना पूरा खाना होगा अगर आप खा पाए तो मैं हर रोज आपको दुगने हफते के पैसे और दुगना पानी पुरी दूँगा और अगर आप नहीं खतम कर पाए तो मेरे से ही नहीं इस बाजार म
09:13पानीपुरी रहेंगे, ज्यादा से ज्यादा 10 ही रहेंगे, खाके प्लेट फेक भी दूँगा, हैं, ठीक है सुबाश, मुझे ये शर्ट मंदूर है, दो वो पानीपुरी का प्लेट, ये लो साब, ये खाओ, ये कहके वो प्लेट देता है, सुबह्या जितना भी खाये, उस �
09:43खाने के बाद भी पानी पूरी के प्लेट में सारे पानी पूरी वैसे के वैसे ही रहते हैं
09:50इसे कहकर वो अपने पेट पे हात रखकर अपने आपको खींचते हुए उसके घर पहुंचता है
10:05ये देख उस बाजार में सारी दुकानदार सुबाश की शुक्रियादा करते हैं कि उसके वज़े से उनके मुसीबतों का हल मिल गया और सुबाश अपने मन में सादू का धन्यवाद करता है

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