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Bhagavad Gita Shloka 21–30 Explanation | आत्मा का अमर रहस्य | Hare Krishna Bhakti Vibes

भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है। यह शाश्वत, अजर और अमर है। शरीर बदलना केवल कपड़े बदलने जैसा है। इन श्लोकों (2.21–2.30) में श्रीकृष्ण आत्मा के अमर स्वरूप और जीवन-मृत्यु के वास्तविक अर्थ को स्पष्ट करते हैं।
जो इस ज्ञान को समझ लेता है, वह शोक, मोह और भय से मुक्त हो जाता है।

In Bhagavad Gita verses 2.21–2.30, Lord Krishna explains the eternal nature of the soul — it is unborn, undying, and indestructible. Death is merely the change of the body, not the end of existence.
Through this divine wisdom, one realizes the truth of life and death, attaining peace beyond fear and sorrow.

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Bhagavad Gita Explanation
Bhagavad Gita Chapter 2
Bhagavad Gita Shloka 21 to 30
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Spiritual Wisdom of Gita
Meaning of life and death in Gita

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Transcript
00:00इस खंड में भगवान श्री कृष्ण आत्मा के वास्तविक स्वरूप को स्पष्ट करते हैं।
00:18वे अर्जुन को समझाते हैं कि मृत्यू केवल शरीर की है, आत्मा न तो जन लेती है, न मरती है।
00:25शोक, मोह और भय तब तक ही टिकते हैं, जब तक हम शरीर को ही सब कुछ मानते हैं।
00:33इस ज्यान से जीवन, मृत्यू और युद्ध की सच्चाई का बोध होता है।
00:38अगर यह विडियो आपके जीवन में कोई मूल्य जोडता है, तो कृप्या लाइक, शेयर और कमेट करें।
00:45जय श्री कृष्णा।
00:47श्लोक दो दशमलव दो एक, वेदाविनाशिन नित्य य एनम्जमव्ययम।
00:54कथन सब पुरुशय पार्थ कंधात्यती हंती कम।
00:58द्याख्या, हे पार्थ, जो यह जानता है कि आत्मा नाश रहित, शाश्वत, अजन्मा और अविनाशी है, वह कैसे किसी की हत्या कर सकता है या किसी को मरवा सकता है।
01:12यहां भगवान श्री कृष्ण यह स्पष्ट करते हैं कि आत्मा न तो किसी को मारती है और न मारी जा सकती है
01:19वह अनादी, नित्य और अविनाशी है
01:23शरीर का नाश हो सकता है लेकिन आत्मा का नहीं
01:28श्लोक 2.22 वासासी जीरनानी यथा विहाई नवानी ग्रहनाती नरोप्राणी तथा शरीरानी विहाई जीरना न्यानी सन्याती नवानी देही
01:44जैसे मनुष्य पुराने कपड़ों को त्याग कर नए कपड़े पहनता है, वैसे ही आत्मा पुराने शरीरों को छोड़ कर नए शरीरों को धारण करती है
01:56यह एक अत्यंत सुन्दर उपमा है, कपड़े बदलने जैसी प्रक्रिया है शरीर का त्यार
02:02मृत्यू कोई अंत नहीं है, बल्कि आत्मा की यात्रा का एक चरण है
02:08शलोक दो दशमलव दो तीन
02:11नैने छिंदंती शस्त्राने नैने देहती बावकर
02:15न चैने गलेध्यनत्यापो न शोश्यती मारुतर
02:20व्याख्या
02:21इस आत्मा को न तो शस्त्र काट सकते हैं, न अगने जला सकती है, न जल गीला कर सकता है, और न वायू सुखा सकती है
02:30यह शलोक आत्मा की अमर्ता, अक्षोनता और तत्व स्वरूप को दर्शाता है
02:37आत्मा भौतिक तत्वों से परे है
02:40अच्छे द्योय मदाह्योय मकले द्योशोश्य एवचर
02:45नित्या सर्वगत है स्थानोर चलोय सनात्न
02:48व्याख्या
02:50यह आत्मा न तो काटी जा सकती है, न जलाई जा सकती है, न गीली की जा सकती है, और न सुखाई जा सकती है
02:59यह शाश्वत, सर्वव्यापी, अचल और सनातन है
03:04यह शलोक दर्शाता है कि आत्मा न केवल अमर है
03:09बल्कि वह हर जगह विद्यमान है, स्थिर है, लेकिन चेतन है
03:13शलोक 2.25
03:17अव्यक्तोयम चिंत्योयम विकार्योयम उच्छते
03:21ब्याख्या, आत्मा अव्यक्त, अचिंत्य और अप्रिवर्तनिय है
03:30इसलिए है अर्जुन, इसे जानकर तुँ शोक नहीं करना चाहिए
03:36भगवान यहां अर्जुन को यह समझा रहे हैं
03:40कि आत्मा की वास्तविक प्रकृती को समझने वाला व्यक्ति कभी शोक नहीं करता
03:45शलोक 2.26
03:48अथचैना नित्यजातम नित्यवा मन्यसिम्रितम
03:52तथापित्वा महाबाहो नैन शोचितुमरहसी
03:56व्याख्या
03:58हे महाबाहो
04:00यदि तु आत्मा को जन्म लेने और मरने वाला भी मानता है
04:04तब भी तुझे शोक नहीं करना चाहिए
04:07यहां कृष्ण यह कह रहे हैं
04:10कि भले ही कोई पुनरजन्म के सिध्धान्त को नमाने
04:13तब भी मृत्यू स्वाभाविक है
04:15और उस पर शोक व्यर्थ है
04:17जो जन्म लेता है उसकी मृत्यू निश्चित है
04:34और जो मरता है उसका जन्म भी निश्चित है
04:37आथ जिसे रोका नहीं जा सकता उस पर शोक करना व्यर्थ है
04:42यह श्लोक जीवन की चक्रवात प्रकृती को उजागर करता है
04:48जन्म और मृत्यू की यह यात्रा निरंतर है
04:51श्लोक 2.28
04:54अव्यक्तादीनी भूतानी व्यक्तमध्यानी भारत
04:58अव्यक्तनिधना नियेव तत्र का परिदेवना
05:02व्याख्या
05:04के भारत
05:05सभी प्राणी जन्म से पूर्व अव्यक्त होते हैं
05:09जन्म के बाद प्रकट होते हैं
05:11और मृत्यू के बाद पुन्ह अव्यक्त हो जाते हैं
05:15तो फिर किस बात का शोक?
05:18श्रीकृष्न इस श्लोक में कहते हैं
05:20कि जीवन का आरंभ और अंत दोनों ही रहस्य हैं
05:23केवल बीच का भाग दिखता है।
05:53कोई उसे जान नहीं पाता। यहां आत्मा इतनी रहस्यमय है कि उसका यथार्थ ज्यान अत्यंत दुरलब है। केवल अनुभव ही इसका सच्चा बोध करा सकता है।
06:23सदा अवध्य मार न सकने योग्य है।
06:27आथ किसी प्राणी के लिए शोक करना उचित नहीं।
06:31यह अंतिम शलोक आत्मा की अमर्ता पर एक बार फिर बल देता है और शोक से मुक्त होने की प्रेणा देता है।
06:39इन दस शलोकों में भगवान श्री कृष्ण आत्मा के ज्यान को अत्यंत गूर और सारगर्भित धंग से प्रस्तुत करते हैं।
06:48वे यह बताना चाहते हैं कि आत्मा अजर्थ, अमर और अविनाशी है।
06:54केवल शरीर नश्ट होता है, आत्मा नहीं।
06:58जो यह आत्मज्यान प्राप्त कर लेता है, वह संसार के मोह और मृत्यू के भैसे मुक्त हो जाता है।
07:06अर्जुन को युध से डरने की आवश्चक्ता नहीं है, क्योंकि आत्माओं की मृत्यू नहीं होती, केवल शरीर बदलते हैं।
07:14क्योंकि आत्माइड़ चेज एल्ग कर दोगिगैं, क्योंकि आत्माइ़ खेपीं है, शरीर नहीं है जात्माइ़ है।
07:17झाल नहीं है जोग्दाग्त के वह संसे प्रुछ़ग प्लेगर मृत्यूंकि टीपक्ता हैं।
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