Day 35 – Arjuna’s Compassion Before the War | Mission Bhagavad Gita | श्रीमद्भगवद्गीता श्लोक दिवस 35 (अध्याय 1, श्लोक 34)
Hare Krishna dosto! In this verse of Bhagavad Gita (Chapter 1, Verse 34), Arjuna’s heart trembles with compassion. He sees before him not enemies — but his gurus, elders, and loved ones. This moment reflects the deep human conflict between duty and emotion.
अर्जुन कहता है — “हे कृष्ण! इनसे मेरा युद्ध कैसे हो सकता है?” ये श्लोक अर्जुन के करुणा और मोह का प्रतीक है। युद्धभूमि में खड़ा अर्जुन, अपने परिजनों को देखकर विचलित हो जाता है। यह हमें सिखाता है कि जीवन में धर्म निभाना आसान नहीं, पर यही आत्मा की परीक्षा है।
रोज़ सुनिए श्रीमद्भगवद्गीता के दिव्य श्लोक — और अपने जीवन को ज्ञान और शांति के मार्ग पर ले जाएँ। जय श्रीकृष्णा!
00:00हरे कृष्ण दोस्तो, मिशन भगवत गीता श्लोक दिवस 35, अध्याए एक, श्लोक 34, आचार्या पित्रह पुत्रास्तत्यव जब पिताम हा, मातुलाय श्वशुराय पौत्राय शालाय संबंधी नस्तत्हा, भावार्थ, हे कृष्ण, इनसे मेरा युद्ध कैसे हो सकता है, �
00:30पौत्र, पौत्र और रिष्टेदार है, क्या मैं इन अपनों से युद्ध कर सकता हूँ, ये केवल दुश्मन नहीं, ये वो लोग है जिनके साथ मैंने जीवन बिताया है, कैसे मैं इने मार सकता हूँ, मुझे तो इनसे युद्ध करने का विचार ही कामपने लगा है, ये
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