भावार्थ: हे मधुसूदन! भले ही ये मुझे मारने को तैयार क्यों न हों, फिर भी मैं इन्हें मारना नहीं चाहता। अगर इसके बदले मुझे तीनों लोकों का राज्य भी मिले, तो भी मैं इस युद्ध के लिए तैयार नहीं हूँ।
यह अर्जुन का मोह है — जहाँ भावनाएँ कर्तव्य पर भारी पड़ती हैं। लेकिन गीता सिखाती है: “कर्तव्य के समय भावनाओं से नहीं, धर्म से निर्णय लो।”
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हर दिन गीता – हर दिन आत्मा का उत्थान। जय श्रीकृष्ण! जय धर्म की विजय!
00:00मिशन भगवद गीता श्लोक दिवस 36, अध्याएं 1, श्लोक 35, एतान हन्तु मिच्छामीक घनतोपी मधुसूदन, अपी त्रेलो के राज्यस्य हितो की नूम मही करते, भावार्थ, हे मधुसूदन, ये मुझे मारने को क्यों न तैयार हो, फिर भी मैं इन्हें मारना नहीं च
00:30हे मधुसूदन, ये सामने खड़े मेरे बंधु है, भले ही ये मुझे मारने को तैयार क्यों न हो, फिर भी मैं इन्हें मारना नहीं चाहता, अगर इस युद्ध के बदले मुझे तीनों लोकों का सामराज्य भी मिले, तो भी मैं इसे नहीं चाहता, तो केवल धर्ती के रा
01:00समय भावनाओं से नहीं, धर्म से निर्ने लो, क्या आपने कभी ऐसा द्वंद्व महसूस किया है, कमेंट में लिखें, जै श्री कृष्णा
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