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00:00Why didn't BR Ambedkar choose atheism over buddhism?
00:30आप रिग्रेसिव टेट्स
01:00आपनी ताकत जगाएंगे, आपना वजूद जगाएंगे, आत्मबल, और यह जो आंतरिक जागरती होती है, इसी को मालू में क्या बोलते हैं?
01:11Hello sir, my name is Piyush from Girodi Mal College. Sir, my question is that, as you said, Dr. BR Ambedkar has adopted buddhism. So sir, my question is that,
01:26why didn't BR Ambedkar choose atheism over buddhism? And sir, as we know that buddhism is not connected with any religion. So, and sir, what is the reason behind Dr. BR Ambedkar choosing a religious path over a non-religious one? Thank you.
01:42हमने इस पर अभी बात करी थी थोड़ी सी, देखो, कोई भी गहरा व्यक्ते, धार्मिक होगा ही होगा, ये बात हमें अटपटी इसरे लगती हो कि धर्म का मतलब हमने बना लिया है, कूदफान, जो देखते हो मुर्खता हैं तमाम तरीके की,
02:06सडकों में, पंडालों में, ये जो बहुत तरह के दुनिया भर में रस्मोरिवास चलते हैं और उनके नाम पर जो हिंसा चलती है, मुर्खता चलती है, उन सब चीजों ने धर्म का नाम खीच लिया है, लगभग मोनोपोलाइज कर लिया है, तो इसलिए हमें अजीब लगता
02:36यही क्यों नहीं कह दिया, अपने सब उन्याई हैं उसे, कि साब आप लोगों को किसी को धर्म की कोई जरूरत है ही नहीं, उन्होंने क्यों ये कहा कि नहीं, मैं बौध होने जा रहा हूं, क्यों कहा, क्योंकि इनसान को धर्म की जरूरत है, हाँ, धर्म के नाम पर जो नोट
03:06ठीक है लेकिन जो असली धर्म है नोटांकी वाला धर्म नहीं असली धर्म, उसकी तो हमें जरूरत हैं न बड़ी नाजूक चीज़ होती है।
03:21वो असली धर्म ये नहीं होता कि हम यहांपर कुछ-कुछ श्लोकों की बात करें या आयतों की बात करें या Veterans ले आएं या
03:30कुछ भी और ले आएं और किस्से कहानियों में हम एक दूसरे कमनरंजन करने लगें यह नहीं होता असली धार में कोई आपको प्रती क्या चेहन दिखाएगा नहीं आपको पकड़ में आएगा नहीं नकली धार मिक्ता के तो बंधे बंधाये तैशुदा लक्षन होते हैं तो
04:00आप तुरंद बोल दोगे क्रिश्यानिटी क्योंकि उनके बंधे बंधाये लक्षन होते हैं वास्तविक धार मिक्ता इतनी सीधी इतनी इतनी प्यारी चीज होती है उसमें यह सब करने नहीं होता प्रपंच की यह लक्षन वो लक्षन होश में जीने को धार मिक्ता कहते हैं
04:30क्योंकि अगर होश माने होता है धर्म तो धर्म अगर छोड़ोगे तो मैंने क्या छोड़ दिया होश छोड़ दिया तो इसलिए देखो धर्म की बुनियाद कोई सपने बाद नहीं होती कि बैट करके आप कहरे हो मैं सो रहा था एक सपने भगवान ने दर्शन दिये उन्होंन
05:00होता है बहुत धर्म सशक्त है क्यों कि बहुत दर्शन सशक्त है
05:05सोज में आरी यह बत फिलोसफी से किसको इंकार हो सकता है भई
05:11उस फिलोसफी को जो समझने लग गया वो धर्मिक हो गया आपने आप
05:16और दर्शन के बिना जो धर्म चलता है उसमें पाखंड के लावा और क्या मिलेगा
05:23अब आम अदमी आपके चारों तरफ जिस धर्म का पालन कर रहा है उसमें आपको कहीं कोई धर्शन दिखाई देता है गया
05:32अब समझ में आ रहा है कि धर्म की इतनी दुरगती क्यों है
05:35और धर्म के नाम पर इतना अन्याय स्वार्थ क्यों चलता रहा इतने दिनों तक
05:41समझ में आ रहा है
05:43जिन्हें नालाइकी करनी होती है जिनके नियस्त स्वार्थ होते हैं
05:49वो पहला काम ये करते हैं
05:51कि धर्म को दर्शन से काट कर
05:54परंपरा से जोड़ देते हैं
05:56ये अच्छे समझिए
05:56किसी भी धार्मे क्रिया में
06:01कर्म कांड में
06:02रस्मुरिवाज में भाग लेने से पहले
06:04ये अपने आप से पूछा करिए
06:06ये जो मुझे करने को कहा जा रहा है
06:09या ये जो सदियों से चला आ रहा है
06:11इसके नीचे कोई philosophy है
06:14philosophy है चलो ठीक
06:17philosophy नहीं है बस ये कहा जा रहा है
06:20ऐसा ही होता है
06:20सब करते हैं तुम भी करो
06:22अरे हमारे पुर्खे पागल थे क्या कि ये सब करते थे
06:252000 साल से हो रहा है तुम्ही एक नए नए होशी आ रहा है हो इस तरह की बाते जहां हो जा रही हो तुरन तस्वीक आ रहे करें तो यह धर्म नहीं है
06:36सुझ में आरी बात तो यह तो सर्विदित है एक दम स्पश्ट है कि इनसान को धर्म चाहिए
06:45हमारे पास सवाल होते हैं हमारे पास गहरे सवाल होते हैं हमें धोखा मिलता है में चोट लगती है में दर्द होता है अफसोस होता है हम जानना चाहते हैं फिर कि सचाई क्या है जो चीज़ हमें आज सच लग रही थी उसने हमें धोखा दे दिया ना किस किसको सिंदगी में कही
07:15अब समझ में आ रही है बाद वियोगी होगा पहला कभी आहा से उपजा होगा कान निकल कर आखों से चुप चाप भई होगी कविता अंजान
07:23मैं उपनिशतों पर भी एक बात कर रहा तो मैंने का तहीं जितने रिश्य हैं न यह सब बहुत घायल लोग है
07:32ना से उठता है उपनिशतों जब तक जिंदगी में दबरदस धोखा नहीं मिलाओ चोट न मिलियो
07:38आपके अर्मान आपकी माननेताएं आपके सपने आशाएं ये सब बगदम भरभरा के तूटे नाओ किसी ने लात ना मार दियो
07:47तब तक सचाई के लिए चाहत उठती ही नहीं है कि अगर इससे मुझे धोखा मिला तो ये भरम रहा होगा न अगर ये भरम है तो फिर सत्य क्या है
07:58उस सत्य को उद्घाटित करने को धर्म कहते हैं मात्र वही धर्म है
08:05तो जब मात्र वही धर्म है तो हर आदमी को सही अर्थ में धार्मी तो हुना पड़ेगा
08:19लेकिन साथ ही साथ धर्म जितनी उची चीज है उतनी ही ज्यादा गंदी वी चीज है धर्म से ज्यादा सड़ी हुई चीज दूसरी नहीं है
08:29धर्म जब स्वार्थ का नकाब बन जाए धर्म जब शोशक प्रताओं परमपराओं को बढ़ाने का जरिया बन जाए तो धर्म से ज़ादा गिरी हुई चीज नहीं है
08:48धर्म जब आदमी के हाँ का खिलोना बन जाए तो ऐसे धर्म को दुतकार देना चाहिए
08:53लेकिन यही धर्म यह धर्म नहीं धर्म ही है जो इनसान की जिन्दगी को जीने लायक भी बनाता है
09:02उची खोज न्यूटन की हम बात करते हैं बार बार वार वो जो सेब है वो पॉपलर कल्चर में एक दम घुस चुका है
09:14न्यूटन फिलोसफर थे सबसे पहले न्यूटन एक धर्म एक आदमी थे
09:22फिलोसफी ही तो धर्म बनती है न फिलोसफी मने क्या होता है
09:29love for
09:31love for truth
09:33love for truth
09:35love for truth
09:37और यही जो love for truth है
09:39love for truth not love for tradition
09:41यही जो love for truth है
09:44इसका नाम धर्म होता है
09:45तो यह तो सहथ सी बात है कि
09:47डॉक्टर मेडकर ने यह नहीं कहा कि
09:48तुम लोग धर्म वगएरा छोड़ी दो
09:50उन्होंने कहा बौद धर्म की तरफ चलेंगे
09:53क्योंकि
09:59बहुत धर्म में जबरदस तरीके से मौजूद हैं और जो सब मैल है वो हां मौजूद नहीं हैं
10:09तो उन्होंने बहुत खोज करके ऐसे नहीं कि उन्होंने अचाना की कहा दिया था कि बहुत बन जाओ
10:19उन्होंने Christianity को भी टटोला था इसलाम की तरफ भी जाकर के जाश्मड़ताल करी थी पर नहीं नहीं इस तो भी वन अफ इंडिक रिलिजिंस
10:33तो सिख मत की और कुछ समय के लिए आकरिश्ट हुए जैनों को भी उन्होंने टटोला
10:41अंतत्त उन्होंने वो जो पूरी लिस्ट थी उसमें से हटाते हटाते उन्होंने उंगली रखी यह है यह है तीक है क्योंकि बहुत धर्म तो पूरा ही जिग्यासा का धर्म है
10:58एकदम ही जिग्यासा का धर्म है मनुष्य की कलपनाओं के लिए रूड़ियों के लिए वहां एकदम ही कोई जगह नहीं है
11:07और यही कलपनाएं थी रूड़ियां थी जिन्होंने भारत में इतने बड़े तबके को बरबाग कर रखा था
11:18इतने बड़े तबके को नहीं पूरे भारत देश को ही
11:2845-50 प्रतिशत शुद्र जो आज OBC कहलाते हैं और लगभग 20 प्रतिशत अस्प्रिश्य
11:40अंटचिबल जिनको आज हम SCST कहते हैं तो कितना हो गया यह
11:48सत्तर तो यही हो गया बाकी 30 कोई बच थोड़ी गए हैं
11:53बाकी 30 में जिनको आज आप जनरल केटेगरी बोलते हो कास्ट हिंदू सवर्ण
12:00सवर्ण वो तो कुल मिला करके 12-14 प्रतिशत होंगे
12:10जो बाकी हैं वो भी बच नहीं गहें उन्हें आदी तो महिलाएं हैं
12:14तो यह भी कहना है कि भारत में बड़े तब्के का शोषण हुआ
12:20बड़े तब्के का नहीं शोषण हुआ
12:22पूरे भारत वर्ष का ही शोषण हो गया
12:25बच्छा कौन?
12:28सत्तर प्रतिशत वैसे निकल गए
12:32पचास प्रतिशत महिलाएं होती है सब वर्गों में
12:36तो उनको और अभी उसमें थोड़ा जोड़ो
12:38तो बचा कौन? यह भी मत कहो
12:42कि जो सवर्ण है वो तो बच गया उदारण के लिए जो ब्रहमिन मेल है वो बच गया
12:47वो भी नहीं बचे कारण बताता हूं
12:50जो दूसरे परत्याचार करता है उसने अपने उपर भी कर लिया
12:54जो दूसरे का शोषण करता है उसका हो गया
12:58अपना भी उसका शोशन हो गया
13:01भारत इतने दिनों तक जो प्राभव में रहा इतने तरीके की हारे मिली युद्ध के मैदानों में
13:10साइंस, टेकनोलजी, इनोवेशन हो नहीं पाए
13:14वो क्या वज़े थी?
13:18क्या वज़े थी? यही सब तो था
13:21जब, जब, जब, जब, रिलिजिन गिरता है, डिकलाइन होता है
13:28तो पूरा समाज ही बरबाद हो जाता है
13:31तो मैं यह भी नहीं कहुँगा कि एक बड़े तबके का शोशन हुआ
13:35भारत वर्ष को ही बरबाद कर दिया
13:38जो धर्म के साथ हमने खिलवाड करा है उसने
13:41ठीक है, साथ ही साथ
13:44धर्म की गंदगी छोड़नी है
13:47धर्म नहीं छोड़ देना है, अंग्रेजी में इसको कहते हैं
13:50डू नोट थ्रो दे बेवी आउट विद बाथ वाटर
13:53डॉक्टर अंबेड कर
13:57मृत्यों की रात से
14:01मृत्य की रात को भी क्या कर रहे थे
14:06वो धर्म पर किताब लिख रहे थे
14:10वो धर्म पर ही किताब लिख रहे थे
14:14और उन्हें बड़ी हड़ बड़ी थी कि इसको पूरा कर दें
14:17तब यह बहुत खराबती दिख रहा था कि यह जाने वाले हैं
14:20पहले जाने थे पहले इसको पूरा कर दें
14:22उनकी मृत्एओं के बादके किताब प्रकाशित हूए
14:25भे मैं किस किताब की बाद कर रहा हूँ
14:26जब उद्धा और इंड इस रिरिजिए
14:30उल पोई
14:31पुलिटिकल किताब नहीं लख रहे थे
14:33एकुनॉमिक्स में उनकी डिग्री इस थे
14:37इकनोमिक्स में भी नहीं लिख रहे थे, वो किस पर लिख रहे थे, धर्म पर लिख रहे थे, धर्म इतनी ज़रूरी चीज़ है।
15:07ज़िख रहे नहीं एकना रहे थे, बिख रहे थे, विख रहे रहे है।
15:37तो छोड़िये कि कोई धार्मिक गरंथ सुईकार करने योग्य है या नहीं है
15:47ये कुश्चन बाद का है और आपको थोड़ी देर में दिखाई देगा कि ये प्रश्ण बहुत जरूरी भी नहीं है
15:54जरूरी प्रश्ण ये है कि आप जिसको धार्मिक गरंथ बोल रहे हो धार्मिक है भी या नहीं है
16:00मनुस्मृति धर्म शास्त्र है और यहां पर धर्म से आश्य है वो धर्म नहीं जिसके आम अभी तक बात कर रहे थे
16:11ये धर्म शास्त्र थे जो समाज में कैसे व्यवस्था चलनी है नियम काईदा क्या होना है ये उसके रहे लिखे गए थे
16:19ठीक है और जितना भी भारतिय साहित्य है पुराना उसमें ये स्मृति के अंतरगत आता है
16:31जो धार में एक साहित्य है पुरा पारंपरिक उसकी दो श्रेणिया होती है एक शुति और एक स्मृति शुति माने वो जो केंद्रिय है
16:47जहां पर आपको वो बाते मिलेंगी जो टाइमलेस है टाइमलेस है शुति में भी ऐसी बाते मिलेंगी जो टाइमलेस नहीं है
16:55लेकिन जो eternal बात है जो कि अगर 4000 साल पहले कही गई थी आज भी उपयोगी है वो बातें कहां मिलनी है शुति में और जो दूसरा वर्ग होता है जिनको आप ग्रंथ बोल देते हो वो कहलाता है वर्ग स्मृति के नाम से
17:17और स्मृति माने मातर मनू स्मृति नहीं होता इस्मृति माने उसमें आपके पुरान भी आगए आपके जो महाकाब्य हैं वो भी आगए हाँ हाँ सारे जितने दर्शन हैं वो भी आगए नीति शास्तर भी आगए घर्म शास्तर भी आगए तो ये सब उधर आजाते हैं
17:36स्मृत्य परिभाशा से ही वो चीज है जो इनसान ने लिखी है
17:44किसी एक काल में लिखी है
17:48किसी मनुष्य ने अपनी सीमित सोच से लिखी है
17:52जो कहीं पर लागू हो करके हो सकता है कोई लाब दे दे
17:56हो सकता है कोई लाब न दे हानी भी दे दे
17:59इस स्मृति वो चीज ही नहीं है
18:03जिसको केंद्रिय गंभीरता से लिया जाए
18:07अब किसी समय पर समाज की क्या विवस्था थी
18:13उसके लिए किसी ने क्या लिख दिया
18:15वो बात आज प्रासंगिक ही नहीं है
18:17उसको आप एक religious text बोल ही नहीं सकते
18:21उसको क्या लेना देना आपके बहाँ साथ सम्विधान है
18:27मनुस्मृति एक प्रकार का सम्विधान है
18:31कई स्मृतियां है
18:32मनुस्मृति अकेली नहीं है
18:34और जितनी स्मृतियां है न
18:35उनमें मनुस्मृति सबसे प्रचलित स्मृति भी नहीं है
18:38और भी स्मृतियां थे
18:39और मनुस्मृतिय अगर एक प्रकार का
18:42सम्विधान होता था
18:44तो सम्विधान का इतिहास में
18:46हमें ऐसा भी सबूत नहीं मिलता है
18:48कि बहुत पालन हुआ है
18:50क्योंकि इतने सारे राजा थे
18:52और लगातार सब बदलता रहता था
18:55समय भी बदल रहा है राजे रजवाडे भी बदल रहे हैं
18:58वो अपने अपने नियम कायदे बनाते थे
19:00मनुस्मृति अधिक से अधिक एक रेफरेंस टेक्स्ट था
19:05जिसका कभी किसी ने कुछ उदाहरन ले लिया होगा
19:10उससे सलाह ले ली होगी तो अलग बात है
19:13मनुस्मृति को जैसा का तैसा तो एक नियम के तौर पर
19:18एक समविधान या विवस्था के तौर पर कभी लागू भी नहीं किया गया
19:22वो तो जब अंग्रेज आए और अंग्रेजों ने कहा कि
19:26अच्छा मुसल्मानों के पास तो शरीया है अब उन्हों नियम बनाने थे
19:29अंग्रेज जो थे सिस्टम बिल्डर्स थे
19:33तो उनको जब अपना एक कोडिफाइड लॉव सिस्टम बनाना है
19:38तो उन्हों ने का यहां से तो शरीया है
19:40हिंदूओं को क्या उठाएं
19:41तो बहुत सारे विकल्ब थे
19:44लेकिन जो विकल्ब उनको सुझा वो यह था कि मनुस्मृति उठा लो
19:48तो वहां से मनुस्मृति ज्यादा
19:51फोकस में आ गई
19:52नहीं तो मनुस्मृति अपने आप में
19:55एक बहुत पेरिफेरल
19:57बहुत पारिधिक किताब है
19:59उसको तो आप ये भी नहीं
20:04मनुस्मृति से आप थोड़ी पूछोगे
20:05कि मैं कौन हूँ मैं पैदा किसले हूँ
20:07मुझे क्या करना है और आप ही सवाल अगर पूछोगे
20:09तो मनुस्मृति पता है क्या जवाब देदेगी
20:11मनुस्मृति कहेगी
20:13input वर्णा
20:14input age
20:17and input gender
20:19ये तीन input ले करके
20:22मनुस्मृति आपको सारे जवाब देदेगी
20:23ये कोई बात है
20:24आप से आपका वर्ण पूछ लेगी
20:28वर्ण बता दो
20:32उम्र बता दो
20:33उम्रत से क्या निर्थारित हो जाता है
20:35आश्रम
20:36और gender बता दो
20:38इन तीन चीज़ों से सब पक्का हो गया
20:41कि आपको क्या करना है
20:42ये जवाब आपको उपनिशत थोड़ी देने वाले है
20:45अगर अगर इतना सस्ता है
20:51जीवन के मुलभूत प्रश्णों का जवाब
20:53तब तो हो गया चल गया काम
20:58कि मैं कहीं जाकर के पूछूँ
21:00कि मेरी जान जा रही मैं समझ में नहीं आ रहा है
21:03जिंदगी कैसी हो क travels कैसा हो
21:06मैं क्या बस खाने पिने और बच्चे पैदा करके मर जाने के लिए हूँ
21:12मेरे घर में सब लोग ये काम करते रहे हैं
21:16क्या मैं वही काम करने के लिए हूँ
21:18और ये बहुत गहरे सवाल है, existential, angst टूटती है इन सवालों से, दर्द होता है इन सवालों से, आप ये सवाल लेकर के गए हो, और वो कह रहा है, input, world, age, gender, और वहां से आपको एक रटा-रटाया जवाब दे दिया है, वो जवाब किसी काम का होगा,
21:37बात सुझ मैं आ रही है, इसमें कुछ नहीं है, irrelevant text है, बज़ रहो बात को, अब वेदों पर आते हैं, वेद और उपनिशद ये शुति कहलाते हैं, वेद और उपनिशद शुति कहलाते हैं, उसमें वेदों में भी हिस्से हैं,
22:03वेदों में वैसे तो चार हिस्से आप कहोगे, पर उनको मैं दो करे देता हूँ, संगिता आती है, फिर ब्राह्मन वाला हिस्सा आता है, ब्राह्मन मने, जहां पर बताया जाता है, अलग-अलग सब जो देवता हैं, और जो यग्ये के विधि-विधानियों कैसे हैं, अरण
22:33एक हिस्सा मान लो कर्मकांड का, और दूसरा हिस्सा मान लो दרशन का, हाँ, यान और दर्शन, दर्शन का हिस्सा आता है, अब शुत्य की परिभाशा ही यही है, कि जो टाइमलेस है, कि समय बदलता जाएगा, पर यहां कोई ऐसी बात कही है, जो हर समय आपके काम आनी है, �
23:03अंदू धर्म वास्तव में बाकी सब सर्कम्स्टेंशियल है पेरिफेरल है और टाइम बाउंड है जिसका जब समय बीट गया हो तो उसको भी बीट जाना चाहिए था पर हमने उसको बीटने नहीं दिया
23:15बात समझ मैं आ रही है और उप्रिशदों का विरोध किसी ने नहीं करा है डॉक्टर अंबेड कर भी बलकि आप रिडल से हिंदुईजम पढ़ोगे तो वहां वो चकित है वो कह रहे हैं कि उपनिशत तो मुझे ऐसा दिखाई दे रहा है कि बाकी जो सब कुछ चलता रहा है �
23:45एक चैप्टर लिखा है जिसका बाद में शीर्शक करा गया हाओ दा उपनिशद वेजड़ वार अगेंस दा वेदाज
23:53पर यह जो उपनिशद है ना विदान्त विदान्त मतलब the highest point that that realization
24:04can reach विद माने जानना और अंत माने एकदम निशकर शिखर चोटी कल्मिनेशन विदान्त मात्र वही हिंदू धर्म है
24:17बाकी सब इंसानी खोपड़े की उपज़ और इंसानी खोपड़े का क्या है तुम कुछ भी कल्पना कर लो हर गाओं में प्रथा परंपरा पदलती रहती है लोगों ने बनाई है उसमें कोई eternity थोड़ी है उसमें कुछ transcendental थोड़ी है
24:32आप सब अलग-अलग जगों से आते होंगे यह सब दिल्ली के ही हो आप लोग के इधर के सब रस्म और रिवाद एक जैसे हैं तो should we call them as eternal, transcendental, कुछ नहीं है उसमें
24:46आप उसको अगर बचाना भी चाहो तो हर 50 साल में हो सब बदल जाता है हर 50 साल सब बदल जाता है आज की आप उदारण के लिए जहांकियां वगेरा देख लो और 50 साल पहले ही कैसे निकलती थी हो देख लो सब बदल रहा लगतार उसमें कुछ भी ऐसा नहीं है जो आज आ�
25:16होता है एक शब्ध नित्य .नित्य माने जो काला तीत हो जो
25:21टाइम बाund ना हो जो हमेशा काम आए और जो आपको भी ऐसी दिशा में ले जाए
25:29जो time बाउंड़ ना हो इसी को सिक्छोंने कहा अकाल त्त्तव काल
25:37अगे का तक्त्तो क्योंकि काल में तो जो चीजें काल मनें दुनिया, घो की, जो की प्रोड़क्ट आफ टाइम है कि पैदा हुई है अभी आई एकल बीछ जाएगी
25:48यह जो products of time and space हैं जिन्होंने खोज करी जिन्होंने experiments करे उन्होंने देखा कि यह जो products हैं यह हमें संतुष्ट नहीं कर पाते
25:57तो उन्होंने कहा कि हमें कुछ ऐसा दो which is beyond human mind क्योंकि human mind deals in time
26:03तो हमें कुछ चाहिए which is beyond the human mind, beyond time
26:09जो उसकी बात करें सिर्फ उसको धर्म बोलते हैं
26:13प्रजाने में नाड़ा लाल रंग का डालना है हरे रंग का डालना है यह थोड़ी धर्म होता है
26:24सुबह उठते वक्त पहले बाएं पैर में चपल पहननी है कि दाएं पैर में पहननी है यह थोड़ी धर्म होता है
26:31उस तरफ को मूँ करके बांग देनी है
26:36या उधर को मूँ करके
26:37प्रेयर पूजा क्या करना है
26:39ये थोड़ी धर्म होता है
26:41इसका क्या लेना देना है धर्म से
26:42रियल रिलिजिन
26:47है जासालिड फिलोसोफिकल फांडेशन
26:49समझ में आ रही है बात ही है
26:55सवाल किनका था तो आपने पूछा ना कि क्या
27:00को एक्जिस्ट कर सकते है एक ही टेक्स्ट में तो वो
27:04को एक्जिस्टेंस भी नहीं है उसी टेक्स्ट में बहुत
27:08क्लियरली डिमार्केटेड है कि कर्म कांड कि धर है और
27:12ग्यान मीमान सा कि धर है बहुत क्लियर है
27:15यहां पे जो पर्षन हो रहे हैं उसके इसाब से अगर मैं कहूं कि मनुस्मृति को जलाए बीना भी हम आलोचन के थ्रू उसे
27:39हम उसके आलोचन कर सकते हैं जिससे की जो बेद भाव है वो हमारे सामने आ सके लोग आजकर कहते हैं कि सात्वना जैसी सात्वना या दया करुना इन सब हो के बात करते हैं लेकिन
28:02अगर हम उनके सक्ति, उनकी हिम्मत, इन सब बातों की बाते करें, तो ज्यादा बहतर होगा.
28:13इस दो अलग अलग एक तो मनुस्मृति दहन के बारे में, और दूसरा दलितों के प्रति लोगों का जो रवीया रहता है, यह दो अलग बलग बाते हैं, दोनों में आपने कोई रिष्टा आपने देखा है, जैसे हम देखते हैं कि मनुस्मृति को जला दिया जाता है, क्यों �
28:43बहुत लोग जला रहे हैं जहां कहीं भी जलाया जाता है यह जलाया गया था
29:12वो एक symbolic act of protest था बस symbolism था उसमें ठीक है बाकी यह तो पागलपनी है कि आप किताबे ले करके उनको जला रहे हो आप बुक स्टोर में आते हो हर तरह किताबे होती है आपने चार किताबे खरीदी बाकी आपको पसंद नहीं थी तो आप चार किताबे खरीद के बाहर निकलते नि
29:42कभी चली थी दुनिया और ऐसे कभी कोई बात कही गई थी ठीक है तो मुझे नहीं लगता है कि जलाने में किसी की भी रुची है जब कभी यह करा गया वो लगभग ऐसा ही था जैसे गांधी जी ने विदेशी कपड़ों की होली जलाई अब इसका मतलब यह थोड़ी था कि
30:12सिगनिफाइंग सम्थें प्रतिकात्मक था ठीक है तो किताबें जलाना तो वैसे भी अच्छा नहीं होता भले ही उस किताब में कुछ भी लिखा हो किताब जलाना को अच्छी बात नहीं है हमको तक्षिला नालंदा याद है न हम आज भी रोते हैं क्योंकि वहां क्या हु�
30:42किसी की बात है बिल्कुल आपने ठीक कहा कि आप उस पर टीका टिपड़ी आलोचना जो भी करना है वो कर लीजिए जलाना में तो क्या रख़ा है
30:52दूसरी बात आपने क्या कही कि दलितों के प्रति लोगों का जो रुख है वो
30:58लोग कहते हैं कि उनके लिए दया करुणा जैसे सब्दों का प्रियोग करते हैं लेकिन अगर हम उसके अलग हम उसके हिम्मत की उसके ताकत की है
31:10समझ यह समझ गया ठीक है देखो किसी पर दया करना बड़ा असान होता और बड़ी नैतिक बात होती है उसमें आप बन जाते हो और शेष्ट यह बिचारा बुरी हालत में था और मैंने इस पर दया कर दी
31:27तो इसकी बुरी हालत का सारा इल्जाम भी इसके उपर रहा पहली बात और दूसरे मैं अभी यहां पर हूँ तो दया करके मैं यहां और हो गया अपनी नजर में कम से कम और जमाने की नजर में भी दया अकसर दिखा दिखा गर करी आती है यह ना तो दया तो बड़ी सस्ती �
31:57इसका इमानदारी से ना कोई विशलेशन है, ना मैं उसको कोई इस इस्थित से उबरने का इस्थाई समाधान दे रहा हूँ, यह ऐसा है जैसे जाड़े में करीमों को कंबल वांट दिये, या कहीं को जाके भंडारा लगा दिया, इससे उसको रोज की रोटी थोड़ी मिल जा
32:27जिम्मेदारी है शब्द, दिया से हटकर जिम्मेदारी, जिम्मेदारी शब्द में मुझे यह मानना पड़ेगा कि उसकी जो दुरदशा है और मेरी अभी जो दशा है, इसमें आपस में कुछ रिश्टा है, कि अगर वो नीचे बैठा है और मैं उपर बैठा हूँ, तो य
32:57तो वहाँ सब आए हुए थे, सब फर्स समिस्टर नए नए सब स्टूडेंट्स, सब बहुत खुश, और उस खुशी में कहीं न कहीं गर्म भी था कि हमने जेई क्रैक कर लिया, मुश्किल होता था टॉप, वन परसेंटाइल से भी कम को एड्मिशन मिलता था, तो सब खु�
33:27तो कुछ आखड़ा निकल के आया, कुछ लाख का, मतला पता नहीं कितना था, दो लाख, कुछ तीन लाख, चार लाख, ऐसे ही था, और उस में से करीब, दो हजार लोग चैनित हुए थे, एक प्रतिशत या एक प्रतिशत से कम, मैंने गाँ अच्छा और भारत में, ऐसे कि
33:57साइंस के साथ, तो एस्टिमेट करा, तो वो आखड़ा आया, पांच साथ दोना ज्यादा, हमने का, और भारत में ऐसे कितने युवा होंगे, जो उम्र के आधार पर जिन्हें, अभी बारहवी में होना चाहिए था, पर वो एजुकेशनल प्रोसेस में ही नहीं है, वो ड्र
34:27इसलिए हम दो हजार लोग अंदर हैं, और सीटे इतनी ही रहती, दो हजार, और देने वाले अगर पचास लाग होते, तो क्या हम सब अंदर होते, तो माने हमारा जो एड्मिशन हुआ है, उसका श्रे उन 48 लाग लोगों को देना चाहिए, जिन्होंने जे ही लिखाईने, हम
34:57इनको शिक्षा नहीं थी, कि वो बारहवी भी लिख पाएं या जेही का फॉर्म भर पाएं, समझ में आरही यह बात ही है, यह बिल्कुल एक दूसरा तरीका है, उसको देखने का, अब मैं दया नहीं करूँगा, अब मैं उसे उसका हक दूँगा, समझ में आरही बात, लेक
35:27हैं, इसलिए यह ऐसा भी धराशाई है, इसकी अपनी कुछ कमियां हैं, गल्तियां हैं, जिस वजय से इसकी हालत बहुत खराब है, तो मैं दया करके ऐसे, हाँ ले, सौ रुपे ले, और सौ रुपे लेके मेरे करतवे की इतिश्री हो गई, और इतने ही नहीं हुआ, मैं अ�
35:57संभव नहीं हो पाता, उन सब लोगों के बिना जो यहां नीचे बैठे हुए हैं, और जरूरी नहीं है कि इस कुरसी पर बैठने की काविलियत मेरी ही हो, बिल्कुल हो सकता है कि यह सब जो नीचे बैठे हुए हैं, इनको सही मौके मिले होते, सही परवरिश, सही शिक्षा
36:27का दया से आगे है अधिकार, अधिकार से भी आगे एक और चीज होती है, और तहीं बताओंगा जब सुनने को तयार हो, बताओं, उसको करुणा बोलते हैं, आपने दया करुणा को एक में बोल दिया थो, गलत कर दिया था, करुणा बिल्कुल दूसरी चीज होती है, करु�
36:57मैं समझ रहा हूँ
36:58कि अगर वो नीचे है
37:01तो वो नीचे है
37:02इसमें किसी नगीजी तरीके से
37:05मेरा भी योगदान है
37:06मैं अपनी दिम्हदारी समझ रहा हूँ
37:07मैं अथा संभव करूँगा
37:08ये तो हुआ अधिकार देना
37:11और करुणा कहती है
37:13कि उसके भीतर
37:16जो कमजोरी बैठ गई है
37:19उसको हटाना है
37:23वो आर्थिक नहीं है कमजोरी
37:26वो शेक्षणिक नहीं है कमजोरी
37:28वो मानसिक है कमजोरी
37:32वो हटाना है
37:33उसने अपनी अवनति का बीज
37:38अपनी छाती में गाड़ लिया है
37:40उसको ही बाहर निकालना पड़ेगा
37:43और उसको बाहर निकाले बिना
37:45अगर बाहर से उसको तरक्की मिल भी गई
37:48तो उसको चैन नहीं मिलेगा
37:52उसकी भीतरी कोई तरक्की नहीं हो पाएगी
37:54यह करुणा है
37:55दया बाहर-बाहर से कुछ दे देती है
37:59थोड़ा भूद
37:59अधिकार में आप उसको वो देते हो
38:13तुम भी इंसान हो
38:15तुम्हें मेरी जरुद पढ़नी ही क्यों चाहिए
38:18हम दोनों इसी मिट्टी से उठे हैं
38:22इसी हवा में सांस लेते हैं
38:25दोनों एक ही प्रजातिके हैं
38:28तुम्हारी यह जो दुरदशा है
38:31यह दुरदशा रहे ही क्यों
38:34क्यों न तुम ही ऐसे हो जाओ
38:36कि तुमको आगे कभी किसी की मदद की जरूरत ना पड़े
38:39ये करोणा है
38:40क्यों न तुम ऐसे हो जाओ
38:42कि तुम्हें आगे अब किसी की मदद की जरूरत ना पड़े
38:45तुम देख लो
38:47कि तुम्हारे ही भीतर अपना ही कितना सामर्थ है
38:50ताकि तुम न तो विवस्था से जाओ किसी प्रकार का सहारा मांगने
38:57न दूसरों के आगे जाओ हाथ पहलाने
38:59न तुम अपने आपको कहो कि मैं तो शोशित हूँ, विक्टिम हूँ
39:03तुम इन सब बातों से आगे निकल जाओ, तुम कहो, वाओ गात्याचार
39:06हम परवा नहीं करते
39:10पीछे कहा था शोड़ो, हम पीछे से आगे निकल के दिखा देंगे
39:15और उसका मज़ा कुछ और होता है
39:18समझारी बात, उसकी ताकत समझो
39:21जैसे आप किसी बच्चे के साथ जब रेस लगाते हो, कही बार करते हो न
39:26यहां से वहां तक जाना है, मैं यहां से शुरू करूँआ, तु यहां से शुरू कर
39:30मैं पीछे हूँ तुझसे, लेकिन फिर भी वहां तक तुझसे पहले पहुँच के दिखा सकता हो
39:35पहुंच पाओ ना पहुंच पाओ यह जो बात है यह बात जलवे की है कि हैं पीछे पर भिखारी थोड़े ही है हमें नहीं चाहिए किसी का दान पात्र
39:57हम अपनी ताकत जगाएंगे हम अपना वजूद जगाएंगे आत्मबल और यह जो अंतरिक जागरते होती है इसी को मालूम है क्या बोलते हैं धर्म
40:14धर्म ही वह चीज है जो आपको पूरी दुनिया से लड़ने की ठाकत दे देता है हम धर्मी वह चीज है जो कहता है सचाही की सामने झुकूंगा और कहीं यह सर जुकेगा नहीं मेरा एक चीज है बस जिसके आगे
40:31बस एक चीज है जिसके आगे मौन हो जाता हूं सर जुका देता हूं क्या है सकत्य है
40:42इस चत्च के आगे फिर मैं जूट को नहीं कड़ा करता कि नहीं है भाने ना-ना शच जब सामने आता है तो चुप हो जाते हैं
40:49बाकि ये दुनिया के लोग और इनकी व्यवस्थाएं और इनकी परंपराएं और इनकी ताकत मेरी जूती से
41:00तो ये जो आंतरिक सशक्तिकरन है तो ये जानता हूं मेरे साथ हुआ पीछे जो भी हुआ पर भीतर से मैं दीनहीन नहीं हो गया
41:18बीतर से मैं किसी पर आश्रित नहीं हूँ
41:21मैं अपने आप वो कमजोर नहीं समझता
41:23मेरे बीतर कोई हीन भावना नहीं आ गई है
41:25मैं दूसरी योगी और ऐसे लालाईत होकर नहीं देखता
41:29कि अरे वो कितने अच्छे हैं
41:30श्रेष्ट हैं ऐसे हैं वैसे हैं
41:32जी हाँ
41:33और ये कोई जूटा घमंड नहीं है
41:35ये सिर्फ एक सुईकार है
41:39कि मैं आज भलाई जमीन पर हूँ
41:41पर आस्मान की संभावना मुझ में है
41:44अपने पोटेंशियल का सुईकार है ये
41:46ये खोखला घमंड नहीं है
41:48और जब आप अपने potential को सुईकार करते हो
41:51तो फिर उस potential को
41:52materialize करने की
41:54जिम्मेदारी भी सुईकार कर लेते हो
41:56एक बार आपने कह दिया कि
41:58आस्मान तक जाने की
41:59मुझे में है संभावना
42:01तो फिर आप पाते हो कि आप अपने पर भी
42:03खुलने लग गए हो जिम्मेदारी आगई है
42:06आस्मान की इतनी बात करी है
42:08तो अब परो में भी जान दिखाओ
42:10उड़के जाओ
42:11ये काम करुणा करके दिखाती है
42:33आस्मान की
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