00:00रावन वो नहीं जिसके दस सर थे, जिसके ही दस सर है वही रावन, दस सरों कार समझते हो, रावन को देखो न, महा ग्यानी है, शिव के सामने जो वो है, क्या वही वो सीता के सामने है, राम वो जिसके एक सर, रावन वो जिसके अनेक सर, बज़दार बात यह है कि रावन के द
00:30जिनके अपने ही रावन नुमा हजार सर हैं, इसलिए हमें रावन को मारने में बड़ा मजा आता है, हर साल मारते हैं, मार मार करके हर्शित हो जाते हैं, कि मर तो ये सकता नहीं, काश की दशहरे का तीर भीतर को चलता, तो जब हम रावन को मारते हैं, तो हम रावन होके ही मारत
01:00जिसके दस सर वही रावण
01:20रावण वो नहीं जिसके दस सर थे
01:28जिसके ही दस सर है वही रावण
01:32और हम में से कोई ऐसा नहीं है जिसके
01:3510, 150, 6,841 सर नहों
01:40दस सरों कार समझते हो
01:45एक नहों पाना
01:48चित का खंडित अवस्था में रहना
01:52मन पर तमाम तरीके के प्रभावों का होना
02:01और हर प्रभाव एक हस्ती बन जाता है
02:06वो अपनी एक दुनिया बना लेता है
02:08वो एक सर एक चहरा बन जाता है
02:12इसी लिए हम एक नहीं होते हैं
02:20रावण को देखो न
02:22महा ग्यानी है शिव के सामने जो वो है
02:26क्या वही वो सीता के सामने है
02:28राम वो जिसके एक सर
02:38रावण वो जिसके अनेक सर
02:42दस की संख्या को संखेतिक समझना
02:48दस माने दस ही नहीं
02:50नौ माने भी दस, आठ माने भी दस
02:52छे माने भी दस और छे हजार माने भी दस
02:55एक से ज्यादा हुआ नहीं कि दस अनेक
03:00जो ही अलग-अलग मौकों पे अलग-अलग हो जाता हो वही रावण है
03:13मज़दार बात यह है कि रावण के दस सरों में एक भी सर रावण का नहीं है
03:18क्योंकि जिसके दस सर होते हैं उसका अपना तो कोई सर होता ही नहीं
03:24उसके तो दसों सर प्रक्रत के होते हैं समाज के होते हैं परिस्थितियों के होते हैं
03:37वो किसी का नहीं हो पाता जो अपना ही नहीं है जिसके पास अपना ही सर नहीं है वो किसी का क्या हो पाएगा
03:48एक मौका आता है वो एक केंद्र से संचालित होता है दूसरा मौका आता है उसका केंद्र ही बदल जाता है वो किसी और केंद्र संचालित होने लग जाता है उसके पास अंगिनत केंद्र है हर केंद्र के पीछे एक इतिहास है हर केंद्र के पीछे एक दुरगटना है एक प्र�
04:18आकरशन के केंदर से चल रहा है, कभी उग्यान के केंदर से चल रहा है, कभी उग्रणा के केंदर से चल रहा है, कभी लोग केंदर से, कभी संदेह केंदर से,
04:32जितने भी हमारे केंद्र होते हैं
04:40वो सब हमारे रावण होने के देवतक होते हैं
04:43राम वो जिसका कोई केंद्र ही नहीं है
04:49जो मुक्त आकाश का हो गया
04:51यहां एक वृत्त खीच दिया जाए आपसे कहा जाए
04:57इसका केंदर निर्भारित कर दीजिए, आप उंगली रख देंगे, यहाँ पर, आप इस मेश का भी केंदर बता सकते हैं, आकाश केंदर आप नहीं बता पाएंगे, आकाश में तो तुम जहाँ पर हो, वही पर केंदर है, अनन्थ है,
05:12राम वो जो जहां का है वही का है
05:18अनंत्ता में तत्येक बिंदु केंद्र होता है
05:24राम वो जो सदास्व केंद्रित है जो जहां पर है वही पर केंद्र आ जाता है
05:31रावण वो जिसके अनिक केंद्र है और वो किसी भी केंद्र के प्रतिपूनतया समर्पित नहीं है
05:43इस केंद्र पर है तो वो खीच रहा है उस केंद्र पर है तो वो खीच रहा है इसी कारण वो केंद्र केंद्र भटकता है
05:52घर घर भटकता है, मन मन भटकता है, जो मन मन भटके, जो घर घर भटके, इसके भीतर विचारों का लगातार संघर्ष चलता रहे मुरावण, काश की दशहरे का तीर भीतर को चलता,
06:16असल में रावण की पहचान ही यही है, कि उसके सारे तीर बाहर को चलते हैं, तो जब हम रावण को मारते हैं, तो हम रावण होके ही मारते हैं,
06:35रावण तो वो है, जो पहले स्वयम मिट गया, जो अभी खुद ना मिटा हो, वो रावण को नहीं मिटा पाएगा,
06:46रावण के ही तल पर रावण से बैर करना असंभव है, राम यदि रावण से जीतते आएं हैं, तो उसकी वज़े बस यही है, कि वो रावण के सामने से नहीं, रावण के उपर से युद्ध करते हैं,
07:04रावन की सामने जो है वो तो रावन से हारेगा, जो रावन तुल्ले ही है वो रावन से कैसे जीतेगा, जिसे दस सिर वाले को हराना हो, उसे पहले अपना सिर कटाना होगा, जिसका अपना कोई सिर नहीं, अब वो हजार सिरो वाले से जीत लेगा,
07:26हम वो हैं जिनके अपने ही रावण नुमा हजार सर हैं
07:36इसलिए हमें रावण को मारने में बड़ा मज़ा आता है
07:41हर साल मारते हैं
07:45मार मार करके हर्शित हो जाते हैं
07:50कि मर तो ये सकता नहीं
07:52असल में ये बड़े गर्व की बात होती है
07:59कि जान बहुत है पठे में
08:02हर साल मारा जाता है और लौट के आ जाता है
08:08फिर तो आत्मा हुआ रावण अमर है
08:13हमें अमरता का और तो कुछ पता नहीं
08:20सच तो ये है कि हमारा हैंकार
08:23रावण कोही कभी भी पूरा नमरता देख करके
08:29मन ही मन मुस्कुरा लेता है
08:32कहता है जैसे ये कभी नहीं मर रहा न
08:35वैसे ही मरोगे तुम भी नहीं
08:39आत्मा अमर है तो माया भी तो अमर है
08:42कौन मार पाया आज तक माया को
08:45अब अमरता के लिए
08:50आत्मा होना ज़रा टेड़ी खीर है
08:53महा कई तरीके के झंजट ये छोड़ो येiled करो वह करो
09:05कै रूप नहीं चलेगा रंग नहीं चलेगा विषन नहीं चलेगा
09:08विकार नहीं चलेगा अरे अमर ही होना है न आएक प्छला दरवाजा है
09:16माया का माया को भी कौन मार सका आज तक जब तक संसार है
09:22तब तक माया रहेगी
09:23तो हम उस रूप में फिर अमर हो गाना चाहते हैं
09:25कभी विचार गिया आपने
09:33हर साल मारते हो
09:34कभी मार ही दो
09:35कि अब गया
09:38अब इसका श्राद्ध हो सकता है
09:40पर दुबारा मारने की दरूरत नहीं पड़ सकती
09:43हमने श्राद्ध करते तो किसी को देखा नहीं
09:46मरा होता तो
09:49अरे चौथा छटा तेरह वाँ कुछ तो मनाते
09:55कुछ नहीं होता
09:56वो फिर खड़ा हो जाता है
09:58उतने ही बड़ा और हम ही खड़ा करते है
10:13आंतरिक विभाजन का ही नाम रावण है
10:18और सत्य के अतरिक्त आत्मा के अतरिक्त जो कुछ है वो विभाजित है
10:28जहां विभाजन है वहां आप चैन नहीं पा सकते
10:33उपनिशद कहते हैं नालपे सुखम
10:38अलप में सुख नहीं मिलेगा
10:41फिर्फ जो बड़ा है अनन्त है
10:46सुख वही है योवै भूमा तत सुखम
10:50जहां दस है वहां दस में से हर खंड छोटा तो होगा ही ना
11:01अनन्त होता तो दस कैसे होते दस अनन्त ताइं तो होती नहीं
11:04छोटे होके जीना खंडित होके जीना दीवारों के बीच जीना प्रभावों में जीना
11:19इसी का नाम है रावण
11:22शांत होकर जीना
11:32विराठ होकर के आकाश होकर के जीना इसका नाम है राव
11:41जहां छुद्रता है हीनता है दाइरे हैं वहीं समझ लीजी राक्षा स्वास करता है
11:53वही पर आपकी सारी व्याधियां हैं
12:02जिसने अपने आपको छोटा जाना वही रावण हो गया
12:10जिसने अपने भीतर किसी कमी को तवज्जो दी वही रावण हो गया
12:21जो इस भावना में जीने लग गया कि भूखा हूं और प्यासा हूं
12:27और अभी सल्तनत और बढ़ानी है और अभी रनिवास में एक सीता और जोड़नी है
12:35और अभी एक दुश्मन और फटह करना है वही रावण हो गया
12:42जो ही आंतरिक रूप से छोटा हो करके यूँ डर गया
12:55कि सद्वचन से मूँ फेर ले और जो राम का नाम ले उसे देश निकाला दे दे उसे अपने से दूर कर दे वही रावण हो गया
13:10कि बातारी संग्ज है कि अभी जैसे प्रस अपनी फूशन है कि एक बंदाए वह चेंज नहीं हो रहा अरकरश्मिती में वह से बना हुआ है
13:35एक जैसे आप कहरें राम एक बना हुआ है वह से बना हुआ है उसको पहले तो बहुत
13:40तो अपने वह कोई जरूवत ही नहीं थी पर आपको जरूवत भी तो भी वह से वह है अपनी दरब से कुछ और चाहिए पना हाना चोड़ा है
13:48उखिससे कुछ लेनी रहा, कुछ बात ने जारा, माह ने रहा, फुल शोटा ही समझ रहा अपने आपको, तो दुनिया रहती ही, हकड कितना रहा है, किस बदूर रहता है, फिर नहीं बोल रहा, ये इगो कितनी है, ये है हो,
13:59गावण वो जिसे दुनिया के बोलने से फर्क पड़ता हो।
14:09और मैं निवेदन कर रहा हूं कि मैं उतना ही बोल रहा हूं जितना मैं बोल रहा हूं।
14:18मेरी बात में अपनी बात जोड़ करके मेरे सामने न रखा करें।
14:23मैंने कब कहा कि आदमी कभी बदले ना।
14:29मैंने कहा आप किस केंद्र से संचालित हो रहे हैं यह जरूरी है।
14:36रावण वो जो कभी भै केंद्र से संचालित हो रहा है।
14:39कभी संदे केंद्र से कभी राग कभी द्वेश कभी क्रोध कभी गर्व।
14:48राम वो जिनके केंद्र में सिर्फ एक मौन है, खालीपन, स्थिर्ता, जहां कुछ भी पहुचता नहीं, जिसे कुछ भी गंदा नहीं कर सकता,
15:03रावन वो जिसने एक ऐसी जहा को अपना केंद्र बना लिया है, जिसे गंदा करना आसान है, कि कुई आया और जरा व्यंग कर गया, तो चोट लग गई, आपने केंद्र एक ऐसी जहा को बना दिया था, जो इतनी सतही है, कि उस तक समाज की दूसरों की चोट पहुच जाती है
15:33कि जैसे प्रत्वी का गर्ब जहां पे आपकी खुर्पी और कुदाल और मशीने पहुच ही नहीं सकती यह आपका केंद्र इतना उंचा होना चाहिए
15:50कि जैसे आकाश की गहराई कि जिसको आपका विचार भीन नाप सकता हो कि जिस पर कोई पत्थर उचा ले तो पत्थर वापस यहां करके गिरेगा आप तक नहीं पहुचेगा आप इतने गहरे बैठे हो कि वहाँ तक कोई चोट कोई पत्थर कोई उलाहना कोई उपहास पहु�
16:20तुम्हें जो करना है कर लो, तुम मुझे जितना परिशान करना चाहते हो कर लो, तुम मुझे खरोचे तो मार सकते हो, तुम मुझे लहू-लुहान तो कर सकते हो, पर तुम मेरे केंदर तक नहीं पहुंच सकते हो, तुम्हारी पहुंच से बहुत दूर है, दुनिया क्या कहे
16:50इसे हमें इससे कोई लेना देना है नहीं, जो मन में आए कहते रहो, जैसे तुम उपर-उपर से कह देते हो वैसे ही मुपर-उपर से ले लेंगे, पर तुम्हारी कही बात को हम अपनी आत्मा नहीं बनने देंगे, अपना केंद्र नहीं बनने देंगे, हम अपने हृदय को न
17:20हो गया सो राम और जो ऐसा न हुआ उसके पास राम और रावन के बीच का कोई
17:27विकल्प नहीं है जो राम नहीं सो रावन तो यह न सोचिएगा कि राम से
17:35बच करके आप मध्यवर्ती कुछ हो सकते हैं कि राम तो नहीं है
17:41पर रावण भी नहीं है तो क्या है आप जी हम रावण हैं नहीं यह चलेगा नहीं
17:49या ध्यात में खिछड़ी होती नहीं या तो राम नहीं तो रावण
18:04सत्य नहीं तो माया जागरती नहीं तो हंदकार समरपण नहीं तो हंदकार
18:22और बड़ा मेहनत का काम है रावण होना तकिया तक पता नहीं किस तकनीक से बनता होगा
18:32करवट लेने की दुश्वारियां समझे और यदि आप स्त्री हैं तो रावण की पत्नी होने
18:43की तकलीफ सोचिए दस सर हैं उससे कहीं सहज है राम हो जाना
18:54आपको मेहनत करने में कुछ विशेश आनन्द है क्या दाड़ी बनाते बनाते आदा दिन बीच जाएगा
19:05और खर्चे सोचिए आप
19:14आप खर्चे सोचिए, हैं, हमारे भी तो खर्चे इसलिए होते हैं, एक सर की एक मांग होती हैं, पूरी करो, दूसरे सर की दूसरी मांगा जाती है, तीसरे सर की तीसरी मांगा जाती है, अब मुश्किले हैं, अब महनते हैं, अब खर्चे.
Be the first to comment