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00:00किसी भी और मत संप्रदाय मजहब के देवाले में चले जाएं
00:04वो आपको हमारे मंदिरों से संभावना है ज्यादा ही साफ मिलेगा
00:08और वारानसी शायद दुनिया कसब से पुराना नगर है
00:13हमें नाज है वारानसी पर भोले बाबा की नगरी है
00:16और जा कर देखो गंदगी
00:17दुनिया में किसी देश में इतनी गंदी नगी आपको नहीं मिलेंगी
00:26भारत में परवतों की जो दुरदशा है ये आपको दुनिया में कहीं न मिले
00:31हम रिशकेश से आगे जाया करते थे शिविर के लिए
00:34तो एक बार मैंने वहां लड़ाई देखी
00:35किस बात पर लड़ाई हो रही थी जानते हो
00:37वो धाबे का मालिक कह रहा है
00:39यार तुम सब यहां खुले में पेशाब कर रहे हो
00:42मेरे लोग नहीं रुकेंगे बद्गू के मारे
00:43मैंने का इसकी बात तो सही है
00:45पर वो इतनी सी बात पर नहीं कुपित था
00:47वो बोला कि यह बस हमेशा रुकती है
00:49मुझे पता है कि तुम लोग उतरो के पिशाब करोगे
00:51तो मैंने यहां पर लाइन से
00:536 तुम्हारे लिए बनवा दिये मूत्रा ले
00:55यहां कर लिया करो
00:56तो मैंने देखा हो 6 के 6 खाली थे
00:58अब तो बात रोचक हो गई
01:00कई लोगों को आपने देखा होगा वो
01:02चलते चलते बिना बात के थूखते रहते हैं
01:04वो में कुछ नहीं होता तो भी थूखते रहते हैं
01:06अनल्ड है यह धरा क्यों है
01:08यह प्रत्वी है केसे लिए कि हम इस पर मूझते हैं
01:10नमच्प आचारी
01:16काफी बुलंदो
01:20सर्ड मेरा नाम करें मेर में
01:24दस महीने से गीता सत्रों से जुड़ा हूँ
01:26हमने भी बात करीती शुरुआत में
01:30साफ सफाई की तो लोगदर में बाहरी साफ सफाई
01:34पॉल्श्त या रहा है कि बहुत चलती है
01:36लेकिन अपन देखते है है जो मंदिर है जो टेञत है
01:40और टेर्थ वो जाने वालेज्ग रस्ते है हुँ वोस हो सब बहुत गंदे रहते हैं
01:45और यह पहाणी रस्तो पर भी जो बहुत रहते हैं
01:48उनकी वज़े से उनको गंड़ा करने की वज़े से वाप लेंड श्लाइड और यह समस्य वे बढ़ती जा रही है तो यह अपना मन कैसा है जो मन दिर्पोवे से बोगने का साथ ने मन वन यह सब मत बनाओ मन की परिभाशा क्या हो बताई है ना तो मन कैसा है अब मेरे साथ हो �
02:18हम स्वार्थ के कीड़े हैं बोलो हम स्वार्थ के कीड़े हैं और लोकधर्म मने स्वार्थ की ही पूजा ठीक लोकधर्मी हमेशा किसमें लगा रहता है मनों कामना पूरी हो जाए वगएरा वगएरा मने स्वार्थ की पूजा ठीक ठीक
02:46स्वार्थ
02:49माने मेरा जो अर्थ है
02:51माने मेरी जो कामना है
02:53वो पूरी हो जाए
02:55ठीक है
02:55सीमित, सब कुछ सीमित
02:59मुझे अपनी कामना
03:01पूरी करनी है, ये स्वार्थ है
03:03अपनी, अपने तक सीमित
03:07दूसरों की कामना भी नहीं पूरी करनी है
03:09मुझे कामना भी बस अपनी पूरी करनी है तो एक तो कामना मामला गडबड और दूसरे कामना भी स्वयम तक सीमित
03:19तो जहां सीमित कामना होती है स्वयम तक सीमित कामना होती है वहां स्वयम की जिम्मेदारी भी सीमित होती है
03:28मेरी जिम्मेदारी बस मेरी अपनी कामना पूरे करने तक है
03:35उसके आगे मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं है भाई
03:37मतलब क्या है मेरे घर का मंदिर होगा वो साफ मिलेगा आपको
03:42जाओ और किसी के घर का मंदिर गंदा दिखा दो
03:47क्योंकि वो मेरा स्वेम का है
03:50और लोकधर माने सब कुछ सीमित रखना है, अपना अपना देखो, या मेरी अपनी काम ना है, वो पूरी हो जाए, दुनिया जले तो जले, सब मरे तो मरे, मेरी अपनी शुचिता, सुच्छता का मुझे खयाल रखना है, दुनिया गंदी है तो होती रहे, स्वार्थ, मेरे घ
04:20लोक धर्म जो हिंदूओं का लोक धर्म है उससे ज्यादा शायद ही कोई महत तो देता हो बार बार सफाई सफाई सफाई और दुनिया में आप किसी भी और मत संप्रदाय मजहब के देवाले में चले जाएं वो आपको हमारे मंदरों से संभावना है ज्यादा ही साफ मिलेगा
04:50गुरुद्वारा, चर्च, मस्जिद कहीं चले जाएं आप
04:59बॉद्ध मंदिर, जैन मंदिर
05:04पार्सी मंदिर
05:11क्यों? क्योंकि लोक धर्म ने हिंदू धर्म को
05:19जितना अपनी गिरफ्त में लिया, उतना किसी और को नहीं, वहाँ भी लोक धर्म खूब चलता है, बाकी जगों पर भी
05:24पर हमारे यहां जो हमने करडाला, वो तो कोई करगनी दिखा पया
05:28हमने लोक धर्म को जिन बुलंदियों पर पहुचाया है, माने हमने वास्तविक धर्म
05:35कि जो बरबादी और जो अपमान करा है, उतना तो कोई भी नहीं कर पाया
05:39तो इसलिए आप पाओगे कि हमारे पूजास्तल, हमारे देवाले सबसे गंदे रहते हैं
05:48लेकिन ये बात आप घरों के अंदर नहीं पाओगे, घरों में सफाई रहेगी, घर में अगर मंदिर है तो एकदम साफ मिलेगा
05:52क्योंकि लोगधर्म का अर्थ ही है, स्व अर्थ, माने सीमित अर्थ, मुझे अपना देखना है
05:59और जब कामना अपनी पूरी करनी होती है, सीमित, तो जिम्मेदारी भी अपनी होती है, सीमित
06:06कोई और क्या कर रहा है वो मेरी दिम्मेदारी थोड़ी है
06:08मुझे तो साब अपना देखना है
06:10मुझे स्वर्ग मिल जाए, मुझे मोक्ष मिल जाए
06:11मुझे अपना देखना है
06:14मैं अगले चनम में कुछ गरबर ना मिल जाओ
06:16मैं दान भी किसी को दू
06:18तो इसलिए कि मुझे पुन्ने मिल जाए
06:20मैं किसी को अगर मरने से बचाऊं भी
06:24तो इसलिए कि मुझे पाप ना लग जाए
06:26सब कुछ स्वयम तक सीमित
06:30तो अपनी जिम्मेदारी भी सीमित
06:31फिर मैं क्यों
06:35इस बात की फिक्र करूं कि
06:38कि दुनिया गंदी हो रही है
06:40कि मुहला गंदा पड़ा हुआ है
06:43क्या फर्क पड़ता है
06:47कि मैं जाकर के
06:49अपने मोक्ष अपने उध्धार के लिए
06:51गंगा में डुपकी मार रहा हूं
06:53और गंगा को गंदा कर रहा हूं
06:54य Interview
06:55ये काम हमी लोगों ने करके दिखाया है
06:58मुझे मेरा मोक्ष मिल जाए तो मिल जाए
07:00उसके लिए मैं गंगा को मा कहता हूँ
07:02मा मैली हो तो होती रहे
07:04दुनिया में किसी देश में इतनी गंदी नदियां आपको नहीं मिलेंगी
07:10और लोगधर्मियों ने नदियों को मा बोला
07:15ये भी किसी और देश में नहीं मिलेगा आपको
07:18भारत में परवतों की जो दुरदशा है
07:22ये आपको दुनिया में कहीं न मिले
07:25लेकिन हमने अपने परवतों को देवस्थल बोला
07:30देव भूमी बोला
07:32ये भी आपको कहीं नहीं मिलेगा
07:35क्योंकि हर काम स्वार्थ हे तो है
07:41लोक धर्म का अर्थी है स्वार्थ के लिए दर्म
07:43और ये कितनी ज्यादा दुखध बात है
07:49क्योंकि हमारे पास मैं बार बार बार गाया करता हूं
07:52सर्वोच्य दर्शन है
07:53और यह जो सर्वोच्च दर्शन है आधर्श रूप में यही हमारे धर्मों की आधार्शिला होना चाहिए
08:02बहुत बहुत उचा धर्म होना चाहिए लेकिन हमने उस आस्मान जैसी उचाई को बिलकुल लाकर के जमीन पर भी नहीं पाताल में पटक दिया
08:12कोई दिखा रहा था मुझे कहीं कोई सर्वे हुआ है या किसी ने जाकर के विक्तिगत तोर पर ही लोगों से बार-बार सवाल पूछे
08:26और पूछने दुनिया में सबसे गंदा देश कौन सा है और ज्यादा तर लोग विदेशी उसे सवाल पूछे आ रहे हैं अलग-अलग देशों के लोगों से सवाल पूछे आ रहे हैं कि दुनिया में सबसे गंदा देश कौन सा है और ज्यादा तर लोग कह रहे हैं इंडिय
08:56वो इतने गंदे नहीं है, हमने माता वैसे सिर्फ नदियों को नहीं बोला है, हमने गाय को भी बोला है,
09:08और गाय पर अत्याचार और बीफ का निर्यात इसमें भारत बहुत आगे है,
09:19अत्याचार हम सिर्फ कोई मारने में थोड़ी करते हैं, उससे ज़्यादा बड़ा अत्याचार होता है जब जन्म दिया जाता है,
09:35गौवन्ष को जन्म ही कैसे दिया जाता है, ये बात बहुत छुपा कर रखी जाती है,
09:39दुधारू जितने पशु हैं, वो 90 फीद सीद से ज्यादा, 90 प्रतिशत से ज्यादा,
09:55वो कृत्रिम गर्बाधान से पैदा होते हैं, वो कोई खुद थोड़ी पैदा हो रहे हैं, जबरदस्ती पैदा किया जाता है, ताकि आप दूध पियो, और फिर उनका मास बिके,
10:09लोग कहते हैं, दूध नहीं पियेंगे, तो इन सब का क्या होगा,
10:12दूध नहीं पियोगे, तो पैदा नहीं होंगे, ये होगा, वो जबरदस्ती पैदा किये जाते हैं, और बहुत अमानवी तरीके से पैदा किये जाते हैं, बड़े कुरूर तरीके से पैदा किये जाते हैं, ये प्रशनाता है, बड़े अकड़ के साथ कहते हैं, कि अगर हम
10:42तो प्राकृतिक नहीं है, वो 90 फीसदी समझो लगभग जैसे फैक्टरी में पैदा किये गए हैं, तुम्हारे भोग के लिए,
11:00पर नहीं हमारा स्वार्थ जोड़ा हुआ है और हमने उसमें धार्मिक कोण भी जोड़ दिया है दूद के साथ,
11:06तो किसी और का क्या होता है, मुझे क्या फर्क पड़ता है, मुझे तो मेरी व्यक्तिगत मुक्ते की परवाह है,
11:15मुझे मोक्ष मिल जाए, मुझे पुर्णे मिल जाए, मैं जागर के ये कराया,
11:18या मेरा स्वास्थे बना रहे या मेरी परंपरा बनी रहे
11:21इसके लिए मैं ये कर लूँगा बाकी जो किसी का होता है सो हो
11:24मुझे क्या फर्क पड़ता है
11:27और जबकि वास्तविक अध्यात्म
11:33कि बिलकुल केंद्र में ये बात है कि जब तक
11:37तुम्हारे सरोकार सीमित है
11:40जब तक तुम दूसरे की पीड़ा नहीं समझ सकते
11:48जब तक तुम दूसरे की मुक्ति के लिए प्रयासरत नहीं हो सकते
11:53तब तक तुम कहां से धार्मिक हो गए
11:58जो सिर्फ अपने कल्यान के लिए सोच रहा है उससे बड़ा अधर्मी कोई है
12:05धर्म होता है कि
12:10मुझे दुनिया की सबसे उची वस्तु भी मिल रही हो
12:17परम मुक्ति के दर्वाजे खुल गए हो मेरे लिए
12:23मैं तो भी ठुकरा दूँगा
12:27क्योंकि अभी मैं दूसरों को पीड़ा में देख रहा हूँ
12:30ये धर्म होता है
12:31मेरी जरूरत वहाँ
12:38मुक्ति के आस्मानों में नहीं है
12:41बड़ा स्वार्थी हो जाऊंगा अगर
12:44चुच्चा आप अकेले व्यक्तिगत मुक्ति लेकर उड़ जाऊंगा
12:48मेरी जरूरत वहाँ नहीं है
12:49मेरी जरूरत यहाँ जमीन पर है
12:51जहाँ पीड़ा है बंधन है
12:53दुख है अग्यान है
12:55मेरी जरूरत यहाँ है
12:56मैं नहीं जाऊंगा वहाँ
12:57मैं जमीन पर रहूंगा
12:59ये सब जो तड़प रहे हैं
13:00इनके साथ मैं खुद भी तडपूँगा
13:02ये सब जो बंधन में हैं
13:05इनकी खातिर में सोयंभी बंधन सुईकार कर लूँगा
13:07ये धर्म होता है
13:10खुद साफ स्वक्ष होकर रहे आना धर्म नहीं होता
13:21तेरे घर की सफाई करने के लिए
13:24ये तेरे घर की गंदगी में घुसूँगा
13:26और जब गंदगी में घुसो तो तुम्हारे उपर भी कुछ मैल तो लग जाएगी न
13:31हाँ तो तुझे साफ करने की खातिर मुझे खुद मैला होना सुईकार है
13:35ये धर्म होता है
13:38गाड़ियां चला रहे हैं
13:43तो खिड़की खोल करके सडकों पर चिप्स और पानी की बोतल और सब तरीके का प्लास्टिक फेंक रहे हैं
13:57चाए वो कितनी भी खुबसूरत सडक क्यों ना हो
14:00चाए वो कितनी भी साफ जगह क्यों ना हो
14:03उसको गंदा करना ही करना है
14:07अपने घर को ऐसे थोड़ी गंदा करते हैं
14:12सारजनी जगह है तो कर देंगे क्योंकि वो हमारी जिम्मेदारी में नहीं आती
14:15मेरी जिम्मेदारी तो वोस अपने लिए है
14:18अपने घर को कौन गंदा रखता है
14:26अपने कमरे को, अपने कपड़ों को कौन गंदा रखता है
14:29मैंने रेलवेज में देखा
14:40येसी में वो बिछाने के लिए
14:45चादर दे देते हैं, उड़ने के लिए भी
14:48लंबी दूरी की आत्रा एक देवी जी
14:54कि कई छोटे छोटे बालक उनको लेकर क्यों चड़ी हुई है
14:59उनमें से दो चार इतनी छोटे उन्होंने वहीं पर
15:03टट्टी पेशाप कर दी
15:05अभी कई घंटे बाकी थे
15:08मनजिल आने में, देवी जी ने वही जो वो रेलवे ने दिया हुआ था
15:13सफेद रंग का होता है वो, उसको लेकर के
15:16फर्ष साफ कर दिया
15:19और जो बाकी के मुसाफिर थे वो भी
15:23आपत्ती कर रहे थे
15:24ने ने ने सफाई करने पर नहीं जब बद्बू आ रही थी तो आपत्ती कर रहे थे बाकी आत्री
15:29उन्हें भी बड़ी रहात मिली कि चलो सफाई हो गई
15:32रेल्वे की चादर है भाई, कर दो साफ
15:37मेरे घर की थोड़ी है
15:50और फिर हम कहते हैं कि हम देश भक्त है
15:52और ऐसे ही लोग होते हैं
15:54जो ज्यादा देश भक्ती के नारे लगाते हैं
15:59पान खाकर सरकारी अस्पतालों
16:02इस सीड़ियों पर थूकने वाले
16:04ये बड़े देश भक्त है
16:06बिना समझ की अंधी भक्ते
16:18इसी ने खराब कराय धर्म को
16:24अगर ज्यान नहीं है
16:28तो भक्ते अंध भक्ते हो जाती है
16:30ज्यान नहीं है
16:34तो भक्ते अंध विश्वास बन जाती है
16:37ग्यान असंभव है बिना प्रेम के
16:51और भक्ती असंभव है बिना ग्यान के
16:58यह जो बिना ग्यान की भक्ते है जो बस माननेताओं कहानियों स्वार्थों पर चलती है
17:07बड़ी गड़वड करी
17:12कही लोगों को आपने देखा होगा वो चलते चलते बिना बाद के थूकते रहते हैं
17:34वो में कुछ नहीं होता तो भी थूकते रहते है
17:36जबीन पर नहीं थूक रहा है
17:41यह पूरी दुनिया पर थूक रहा है
17:44यह कह रहा है कि अपने मजे के लिए
17:49मुझे कहीं भी थूकना पड़े मैं थूकूँगा
17:53मेरे मन में शून्य सम्मान है
17:59अपने स्वार्थों के अलावा किसी भी और चीज़ के लिए
18:11इशावास्य उपनिशद है
18:14इशावास्यम इदम सर्वम
18:17परम सत्ता का जिधर देखो उधर वास्य
18:25तुम किसके उपर थूक रहे हो
18:32तुम इशावास्य पर थूक रहे हो
18:36और उपनिशद आगे कहते हैं
18:49पूर्णमिदा पूर्णमिदम
18:50ये वो
18:53जो कुछ भी तुम देख सकते हो
18:56कि नहीं देख सकते हो
18:57सोच सकते हो कि नहीं सोच सकते हो
18:58सब पूर्ण नहीं है
19:00तुम किसके उपर थूक रहे हो
19:03परहंकार यही है
19:19मैं हूँ
19:22और अपने उपभोग के लिए
19:26अपने स्वारत के लिए
19:27मैं किसी के उपर भी थूक सकता हूँ
19:30हम
19:39रिश्केश से आगे जाया करते थे
19:46शिविर के लिए
19:46तो उसमें रास्ते में एक पढ़ता है
19:52जिल्मिल ढ़ाबा
19:53दस साल पहले की बातों की
19:56उसमें रुका करते थे
19:59तो एक बार मैंने हुआ लडाई देखी
20:03रात के दो बज़े की बात होगी
20:07देर रात निकलते थे सब काम
20:09हम निप्टा करके बारा एक बज़े निकलते थे और
20:12सुबह छह साथ आठ बज़े एकदम
20:14सुबह सुबह पहुँच जाया करते थे तो वही दो तीन बज़े की बात होगी
20:19लडाई हो रहे लडाई किस बात पर हो रही है समझो
20:24महा बस आकर रुकी
20:27बस वालों ने अपने ढावे औगेरा निश्चित कर रखे ओते हैं कि यहाँ बस रोखते हैं बस वाल रुकी
20:34तो उसमें से निकल करके
20:38लोग पिशाप करने लग गए
20:40तो अब लड़ाई की आवाज आई
20:47कहीं कुछ धूम धड़ाका हो रहा हो
20:51मेरी रूचिन जगे
20:52ऐसा कैसे हो सकता है
20:54मैं गया मैंने का देखूं क्या है
20:55सिर्फ लड़ाई ही रहे हैं
20:58अभी मारपीट क्यों नहीं शुरू गई
20:59तो
21:03किस बात पर लड़ाई हो रही थी जानते हो
21:07वो धावे का मालिक कह रहा है
21:11कि यार तुम सब यहां
21:14खुले में पेशाब कर रहे हो
21:15और पूरी बस भरके उतरी है
21:17और सब तुम खुले में कर रहे हो
21:18मेरे यह लोग नहीं रुकेंगे बद्दू के मारे
21:20मैंने का इसकी बात तो सही है
21:25पर वो इतनी सी बात पर नहीं कुपित था
21:29वो बोला कि यह बस हमेशा रुकती है
21:32मुझे पता है कि तुम लोग उतरो के पिशाब करोगे
21:34तो मैंने यहां पर
21:37लाइन से
21:38छे तुम्हारे लिए बनवा दिये हैं मूत्रा ले
21:41यहां कर लिया करो
21:43तो मैंने देखा हो छे के छे खाली थे
21:46तो अब तो बात रोचक हो गई कि छे खाली है
21:52तो यह सब जाकर कि खुले में क्यों पिशाब कर रहे हैं
21:55और वो जो मालिक था वहां का
21:57मालिक रहा है मैनेजर जो भी रहा होगा
21:58वो तडपा जाए
21:59कर खुले में यहां कर रहा हो तुम
22:03जब हाथा भाई की नौबत आगई तो उनमें से एक बोलता है
22:11बोलता है देख भाई
22:14हमारी तो खुले में ही उतरती है
22:17बोलड़ा यह सब कमरा बंद कर रखा है और यह सब है
22:24ऐसे में हमारी उतरती ही नहीं
22:26जब तक कुछ बढ़ियां खुली साफ जगए ना हो हम मूत्ते ही नहीं
22:32ये है
22:35कि सामने उपलब्द भी है शोचाले तो भी वहां नहीं जाएंगे
22:40जहां लोग खाना खा रहे हैं उनके
22:44बस बीस हाथ बगल में जाकर के वो खुले में पिशाप कर रहा है
22:48और वहां महिलाएं भी मौझूद है वो भी खा पी रही है और हम अंग पदर्शन का इल्जाम अक्सर स्त्रियों पर लगाते है
22:55वो तो फिर भी कुछ बाहर बाहर के अंग पदर्शित करती होंगी जो भी कोई हाइवे पर कभी चला है
23:02उसने तो पुरुषों के सारे यंग देख लिए होंगे
23:06आनंद है ये धरा क्यों है ये प्रत्वी है किसलिए
23:21कि हम इस पर मूते हैं और किसलिए है तुम बेकार में ये सब लेटरीन और बनवा रहे हो
23:32भारत सरकार ने कारिकरम चलाया कि खुले में शौच नहीं होगी
23:37है और वह कारिकरम सफल हो के भी विफल है क्योंगि तुम बनवा भी दो तो भी कहते कहते जब तक
23:45हम देश दुनिया देखते हुए
23:48और जब तक देश दुनिया हमें न देखे
23:52तब तक उपलब्धी कैसे होगी सुबह की
23:55कि दो-चार महिलाई निकल रही हो
23:58अचानक उनकी नजर पड़ जाए
23:59वो बिलकुल जिजक जाएं, लजा जाएं
24:03हड़ बड़ा जाएं, धर उधर भागें
24:05कि ये क्या सुबह की शुरुआत
24:08पुराने जानवर के साथ
24:12मुझे मौ जानी चाहिए, बस
24:23मालू में तुम दूसरों को
24:27तकलीफ देने में क्यों नहीं हिचक चाते हो
24:29क्योंकि तुम्हें अपनी तकलीफ का अंदाजा
24:33नहीं है, तुम अपने प्रत्य
24:34समवेदना ही न हो चुके हो
24:37जो अपने दुख से परिचित हो जाता है, वो कभी
24:40दूसरों को दुख नहीं देगा
24:41नहीं दे सकता
24:43जो अपने प्रत्य जितना
24:46असमवेदन शील रहता है वो दूसरों को उतना दुख देता है
24:49ज्यानियों ने कहा है जाके पाउन फटी बिवाई सोका जाने पीर पर आई
24:56अर्थ समझो
24:57जब अपने दुख का एहसास होता है तभी दूसरे के दुख का एहसास होता है
25:05और हमेंसे जादातर लोगों की समस्या ये है कि हमें अपने ही दुख का एसास नहीं है
25:10ये आत्म ग्यान का अभाव है
25:12तुम जानते ही नहीं कि तुम कितनी तकलीफ में हो
25:15तुम्हें अपनी हालत का पता ही नहीं है
25:21तुम दुनिया से बाद में सबसे पहले स्वयम से बेखबर हो
25:28और धर्म होता ही इसी लिए है ताकि सबसे पहले तुम्हें तुम्हारी खबर लगे
25:36धर्म दुनिया भर की उलजलूल हरकते करने का नाम नहीं होता
25:40धर्म आइने में स्वयम को साफसाफ देखने का नाम होता है
25:44जो स्वयम को देखेगा कहेगा मैं कितना गंदा हूँ
25:50दुख जिसके भीतर से उठेगा
25:54वो यह नहीं कर पाएगा
25:56कि मैं गंदा हूँ और यह मुझे बुरा लग रहा है
25:58तो अब मैं जाकर कि किसी और को भी गंदा कर दू
26:00वो कहेगा नहीं रहने दू
26:01धर्म
26:06का पालना
26:08रहा है ये जो मेरा देश
26:11इसे धर्म की आज बहुत जरूरत है
26:15सबसे ज्यादा कमी
26:21हमारे ही प्यारे भारत को है
26:24अभी धर्म की
26:25धर्म के नाम पर न जाने हमने क्या-क्या शुरू कर दिया
26:29और जो अपने आपको धार्मिक
26:35बोलता दिखाई दे
26:36सबसे पहले इसको जान लेना कि यही है
26:38जिसने धर्म को विक्रत बर्बाद कर रखा है
26:41यही है असलिया धार्मिक
26:55बनारस से मेरा नाता रहा है
27:00कई बार हमारा छिविर लगा बनारस में
27:04मेरे पिता जी छोटा भाई सब ब्यच्ची उसे हैं
27:12सूखा गोबर गीला गोबर पतली गलिया उन्हीं गलियों के साथ
27:36पानी की निकासी भी वो पानी भी गंदा है
27:39और वारणसी शायद दुनिया का सबसे पुराना नगर है
27:47हमें नाज है वारणसी पर
27:51शिव मुझे बहुत प्रेय हैं और भोले बाबा की नगरी है
28:01और जाकर देखो गंदगी
28:09और उन्हीं पतली पतली गलियों में सामने कोई भरोसा नहीं है कि गाय तो गाय सांड भी आ सकता है
28:18तो कहते हैं कि जिसको मुक्ति चाहिए वो काशी आके मरे
28:28हम कौन सी व्यक्तिगत मुक्ति की बात कर रहे हैं
28:35काशी में मुक्ति तब मिलेगी न जब पूरे शहर के लिए काशी को पहले साफ कर दिया जाए ये होगी
28:44काशी में आकर मरने से थोड़ी मुक्ति मिलेगी काशी आओ जब जब आन हो शरीर से सबल हो तब आओ और सफाई करो
28:53व्यक्तिगत मुक्ति का लोब छोड़ो सारोजनिक हित की बात करो ये मुक्ति है क्योंकि व्यक्तिगत तो मातर अहंकार होता है
29:02और मुक्तिकार्थी होता है अहंकार से मुक्ति, माने व्यक्तिगत से मुक्ति
29:06जो व्यक्तिगत मुक्ति के लिए काशी आ रहा है वो चाहे किसी घाट पर जल ले, उसे नहीं मिलनी मुक्ति
29:12आओ काशी सफाई करो, तब मुक्ति मिल सकती है
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