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00:00:00आप मिठाई की दुगान पर जाते हो
00:00:01आपको मिठाईयां दिखती है
00:00:03आप हलवाई से बोलते हो भाई जरा चकाना
00:00:06तो थोड़ी सी मिठाई आपको दे देता है
00:00:08और आप उसका क्या करते हो फिर
00:00:09अनुभव
00:00:10आपने कितनी बार कहा है कि ये जो मिठाई है
00:00:13जरा इसके बारे में बताना
00:00:14कभी भी पूछा है ये बनी किसी से
00:00:17वहाँ पे खड़े हो के बोलते हैं वो आली दे ना वो आली
00:00:19हाँ वो जो हरी हरी सी है
00:00:20क्या आपने कभी पूछा कि ये हरा रंग जो तुमने इसमें डाला है
00:00:24ये क्या चीज़ है
00:00:24पतियां मसल कर आया है
00:00:26यहोली का बचा हुआ गुलाल था
00:00:27ज्यादा सवाल पूछ लिये तो जरूर कुछ ऐसा पता चल जाएगा
00:00:30कि फिर मिठाई खा नहीं पाऊगे
00:00:31मिठाई सामने बढ़ियां रखी इंतजार कर रही है
00:00:34और तुम कहरो चलो पहले इसको जान लेते हैं जल्दी क्या है
00:00:37अहम अपनी बेहोशी के कारण हमेशा हडवडी में रहता है
00:00:40अंतपर आनी की
00:00:41बढ़े जरूरत मन थे और बाजार में गए दुकान बंद हो रही थी
00:00:45उसे हाथ पाँ जोड़ रहे और यारे थोड़ा सा खोल दो यार एक चीज लेनी है
00:00:48अब उसके बाद वहाँ घुस करके क्या मोलभाव करोगे
00:00:51गरजमंद मत बना लो
00:00:53कि दुनिया कोई चीज तुम्हारी हो रुचा ले
00:00:55और जट से मजबूर हो जाओ उसको लपकने के लिए
00:00:58जगत खुली किताब है
00:01:00हमें इस से सीखना है
00:01:02किताब को खुला ही रहने दो
00:01:04इतनी जल्दी और इतनी जोर से किताब
00:01:07बंद मत करो
00:01:08सर्फ इसलिए कि किसी चीज़ ने सुख दे दिया
00:01:10जल्दी से मत बोल तो सुन्दर है
00:01:12हम हम
00:01:22दुनिया की ओर देखते हैं
00:01:28जगत संसार प्रकृति की ओर
00:01:34हमेशा मैं बन कर
00:01:40अभी देखने के लिए नहीं
00:01:48अभी जानने समझने के लिए नहीं
00:01:54हमेशा अपने आपको
00:02:03बनाने बचाने
00:02:08बढ़ाने के लिए
00:02:16सामने सच मुझ क्या है
00:02:18इस से हमें प्रयोजन नहीं होता
00:02:21हमें वास्ता बस इतने से होता है
00:02:28के सामने जो कुछ भी है
00:02:30उस से हमारी स्वार्थ सिद्ध होगी के नहीं होगी
00:02:37नहीं होगी नहीं यह पता है के
00:02:44सामने जो है वो क्या है
00:02:46नहीं यह पता है के सामने जो है
00:02:49उसका हमारे उपर
00:02:52सच मुझ असर क्या हो रहा है
00:02:58हमें बस ये भाव होना चाहिए, जो कुछ भी था सामने विशह प्रकृति में, उसके संपर्क से, उसके भोग से, हमें सुखद अनुभव हुआ है,
00:03:19कोई खाने का सामान होता है सामने, आपको बहुत कम संभावना है कि पता होगा कि वास्तव में, उसमें क्या-क्या तत्तो है, इन-किन चीजों से बना है, सचमुच कब बना था,
00:03:49तो जो सामने पदार्थ रखा है, हमें उसका नहीं ग्यान, उससे भी कम ग्यान है हमें इस बात का कि वो पदार्थ क्या करता है, जब वो इस शरीर के भीतर आ जाता है,
00:04:03क्योंकि जब तक सामने है, तब तक तो फिर भी आँखों से दिख रहा है,
00:04:12अगर कुछ उसमें सडन वगेरा है, तो थोड़ी समभाव ना है, कि आँखें पकड़ ले की सडा हुआ है,
00:04:22इतनी तो गनीमत रहती है, लेकिन एक बार वो आपने खा लिया, पेट के भीतर आ गया, उसके बाद अब पेट में क्या हो रहा है, ये तो एगदम यह नहीं पता चलता,
00:04:34अमामला इदम ही बिगड़ जाए और पेट कराहने लगे, तो लग बात है, अनिथा तो आपने खा लिया, भोग यहा,
00:04:47ना हमें ये पता है कि जो सामने रखा था, उसका अथार्थ क्या है, ना हमें ये पता है कि हमने उसको भोग लिया, तो भोगने का परिणाम क्या है,
00:05:04ये अनुभव रहा, ये सुख का रहा
00:05:06इतना हमारे लिए पर्याप्त होता है
00:05:08ना उधर का ग्यान
00:05:12ना उधर का ग्यान
00:05:15ना इधर का ग्यान
00:05:16हमारे लिए पर्याप्त है बस
00:05:21सुख का क्षणिक अनुभव
00:05:25वो जो सामने था उसके पीछे पूरी एक प्रक्रिया थी
00:05:30आपके सामने जब रखा हुआ है
00:05:34वो एक पदार्थ नहीं, वो एक प्रक्रिया है
00:05:36उस प्रक्रिया से मन भखें हम नहीं जानते कि वो
00:05:41क्या वस्तु है, कहां से आई, कैसे बनती है, क्या चीज़ है, कुछ नहीं पता
00:05:44आपके भीतर जब वो चला जाता है
00:05:48तो वहाँ भी पूरी एक प्रक्रिया होती है
00:05:50उस प्रक्रिया से भी अवन भिग गये है
00:05:52लेकिन इन दोनों प्रक्रियाओं के मध्धे
00:05:58जो दोख्षण का सुख होता है
00:06:00हम उतने को पर्यापत मान लेते हैं
00:06:05ठीक है उस सुख मिल गया ना
00:06:07तो चलेगा
00:06:08ये हम है
00:06:10ये अहम है
00:06:11ये स्वयम को जानता नहीं
00:06:23ये संसार को भी जानता नहीं
00:06:27लेकिन इस बेहोशी में
00:06:33इतनी चेतना इसके पास फिर भी है
00:06:36कि सुख का और दुख का अनभाव कर ले
00:06:39जानने के लिए ग्यान के लिए
00:06:43उची अधिक चेतना चाहिए
00:06:45उतनी इसके पास है नहीं
00:06:47और जैसे कोई आदमी
00:06:51अर्ध मूर्चित भी पढ़ाओ
00:06:53और उसको सुई चुभाओ
00:06:56तो अपनी बाहां को जटक देगा
00:07:00कई बार तो मूर्चा कितनी गहरी है
00:07:04ये जानने के लिए ही जो व्यक्तिपड़ा है मूर्चे
00:07:10तो उसकी बाह में उंगली खुसेडी जाती है
00:07:14या उसको थोड़ा सा चिकोटी काट करके परखा जाता है
00:07:20कितनी इसकी गहरी बेहोशी है
00:07:24तो अंध अहंकार मृत नहीं है पूरे तरीके से
00:07:32सूखी लकड़ी ही नहीं हो गया
00:07:36पर बेहोशी उसकी गहरी है
00:07:40बेहोशी गहरी है तो सुख दुख का अनुभाव कर लेता है
00:07:46पर विवेक की क्षमता नहीं है
00:07:52जानने के लिए ज्ञान के लिए जितनी चेतना चाहिए
00:08:01उतनी चेतना से वो इनकार कर देता है
00:08:07जैसे एक पशू हो
00:08:17उसको आप एक
00:08:21शांदार मूर्ते दिखाएं
00:08:27या चित्र दिखाएं
00:08:30या जबरदस्त नृत्य दिखाएं
00:08:35उसको कोई सुख नहीं आने वाला
00:08:38उसको बेचितरी लगेगा
00:08:41क्योंकि नृत्य या कला
00:08:46या किसी उंची पुस्तक
00:08:48से आनन्द पाने के लिए
00:08:51आप में भी आनन्द लायक खोश
00:08:54आनन्द जितनी चेतना होनी चाहिए ना
00:08:57किसी मेज के उपर आप भगवत गीता रख दें
00:09:03तो उससे मेज आहलादित नहीं हो जाती
00:09:05भगवत गीता तो भगवत गीता है
00:09:09लेकिन मेज के पास वो चेतना ही नहीं
00:09:13कि भगवत गीता से आनन्द पा सके
00:09:15भले ही भगवत गीता
00:09:16मेज के एकदम उपर रख दी है
00:09:19सब शलोक उस मेज
00:09:24से भवतिक संपर्क में आ गए
00:09:28लेकिन मेज को कुछ नहीं मिलेगा
00:09:32आनन्द के अनुभूते हो सके
00:09:35इसके लिए मात्र गीता का होना पर्याप्त नहीं है
00:09:38इसके लिए अनुभूकता में भी
00:09:45उची चेतना का होना जरूरी है
00:09:54पशु के सामने आपने नित्त दिखा दिया
00:09:56उसे कोई सुख नहीं मिला
00:09:57हाँ पशु को आप दो रूटी या उसका जो भोजन है उडाल दीजिए उसको सुख मिल जाता है
00:10:02अंकार ऐसा होता है
00:10:04पशुटी चेतना
00:10:06सुख दुख कानुभू कर लेता है वो
00:10:11पर ज्यान से जो मिल सकता था आनंद वो उसको नहीं मिलता है क्योंकि ज्यान लायक उसमें नहीं है चेतना
00:10:17सुख दुख लायक होश है उसमें
00:10:21सुख दुख कानुभू बेहोश लोग भी कर लेते हैं
00:10:29जो लोग गहरे नशे में हैं वो भी कर लेते हैं
00:10:33और पशु भी कर लेते हैं
00:10:35जो गहरे अज्ञान में हैं वो भी कर लेते हैं
00:10:39सुख दुख कानभा सबको हो जाता है
00:10:40तो अहंकार फिर अपनी सीमित चेतना के कारण
00:10:45ज्ञान अज्ञान पर नहीं चलता है
00:10:48वो सुख दुख पर चलता है
00:10:50अंकार दुनिया में जो भेद करता है
00:10:57क्या अच्छा है क्या बुरा है क्या पकड़ूं क्या छोड़ूं
00:11:01क्या मेरा क्या परया इत्यादी
00:11:05अंकार जितने भी निर्णे लेता है जितने भी भेद करता है
00:11:10उसका कारण उसका आधार ज्ञान नहीं होता उसका आधार अनुभव होता है
00:11:19अनुभव मानने क्या इससे यदि मुझे सुखद अनुभव होगा तो मैं इसको चुनलूँगा
00:11:27और इससे मुझे दुखद अनुभव होगा तो इसको नहीं चुनलूँगा
00:11:30भले ही सामने जो खाने के लिए रखा हुआ था
00:11:35वो भीतर जा करके कितनी भी समस्या कर दे
00:11:39पर अगर उससे सुखद अनुभव हो रहा है तो मैं उसको चुन लूँगा
00:11:43और भले ही कोई विशय ऐसा है
00:11:49जो भीतर जा करके बहुत लाव देगा बरा कल्यान करेगा
00:11:57पर अगर वो सुखद अनुभव नहीं देने वाला विशय है तो मैं उसको ठुकरा दूँगा
00:12:02ये आहम के निर्णेयों का आधार रहता है
00:12:07हित नहीं सुख
00:12:12हित नहीं सुख
00:12:27और ये तो बिलकुल अलग-अलग आयाम है
00:12:31सुख का आयाम और हित का आयाम
00:12:35खेल कुछ ऐसा है कि बहुत कम
00:12:43ऐसा पाया जाता है कि जहां आपका हित है
00:12:48वहीं आपको सुख हो
00:12:50आम तोर पर
00:12:55इन दोनों में
00:13:01ज्यादा साजेदारी होती नहीं
00:13:04फित अलग चलता है
00:13:08और सुख
00:13:10अलग चलता है
00:13:11और अहम क्या होता है
00:13:16बिहोश
00:13:18बिहोशी में हित का पता चले ही नहीं सकता
00:13:21अहम की जो प्राकृतिक स्थिति है
00:13:25उसमें उसे अपने हित का पता चले ही नहीं सकता
00:13:28क्योंकि हित का पता लगाने के लिए
00:13:31ग्यान चाहिए
00:13:33और ग्यान मांगता है उंची चेतना
00:13:37ग्यान मांगता है ध्यान
00:13:39ध्यान दो तो ग्यान होता है
00:13:40उतना ध्यान अगर अहम के पास होता
00:13:49तो अहम अहम ही क्यों रहता
00:13:51वही ध्यान उसने अपने उपर न दे लिया होता
00:13:54उठाने ही लिया होता अपने आपको
00:13:57तो अहम के होने का मतलब ही होता है ध्यान के अनुपस्थिते
00:14:09और ध्यान के अनुपस्थित में हित जाना जाही नहीं सकता
00:14:20हाँ सुख एकदम जमीनी चीज है पाशविक चीज है
00:14:39उसका अनुभव हो जाएगा सुख तो सपनों में भी मिल जाता है ना सपनों में चेतना कितनी होती है आपके पास
00:14:46पर सुख तो सपनों में भी मिल जाता है
00:14:52तो अहम छोटी चेतना से जुड़ा होता है
00:14:58और छोटी चेतना से जुड़ना उसकी मजबूरी है अगर उसको जिन्दा रहना है
00:15:02चेतना ज्यादा बढ़ गई तो अहम खुद ही ढह जाएगा
00:15:06और छोटी चेतना रखने के फिर मजबूरी ये हो जाती है आगे
00:15:15कि अब आपके सब निर्णेओं का आधार सुख होगा
00:15:20हित नहीं
00:15:29तो इसी लिए हम अनुभाव वादी बन जाते हैं
00:15:33हम अनुभाव पर चलते हैं बोध पर नहीं
00:15:39आप मिठाई की दुगान पर जाते हो
00:15:44आपको मिठाईयां दिखती हैं आप हलवाई से बोलते हो भाई जरा चखाना
00:15:50ठीक यही करते हो न
00:15:52भाई जरा चखाना
00:15:56तो थोड़ी सी मिठाई आपको दे देता है
00:15:58और आप उसका क्या करते हो फिर
00:15:59अनुभव
00:16:00हम अनुभववादी हो गए है
00:16:02आपने कितनी बार कहा है कि ये जो मिठाई है
00:16:05अब जरा इसके बारे में बताना
00:16:09बोध दो
00:16:11हम बोध वादी नहीं हैं
00:16:12मिठाई देखकर आपने ही पूछते
00:16:14बताओ किस चीज से बनी है
00:16:17जिस चीज से बनी है खुछ उसका प्रमाण बतादो
00:16:19कितनी देर पहले बनी है
00:16:20जो जो पदार्थ है जरा उनकी सूची दिखाओ
00:16:25कहां से तुमने मंगवाई थे
00:16:27वो भी बतादो
00:16:27और इन में से जिन पदार्थों के बारे
00:16:31मुझे पता नहीं
00:16:33उसकी थोड़ी जानकारी दो मुझको
00:16:35ऐसा कभी करा है आपने
00:16:37किसी मिठाई की दुकान पर
00:16:38करा है क्या
00:16:41कभी भी पूछा है ये बनी किस चीज से
00:16:44कभी पूछा है
00:16:47लेकिन एक काम जरूर करा है
00:16:50भाई जरा
00:16:50ये अहम की मजबूरी है
00:16:54वो अक्षम है वो असमर्थ है
00:17:00बोध की दिशा में
00:17:02उसे बोध हो जी नहीं सकता
00:17:03बोध लायक होशी नहीं है उसके पास
00:17:07तो फिर वो वो करता है जो कर सकता है
00:17:10वो क्या करता है
00:17:11वो स्वाद ले सकता है वो चख सकता है माने वो अनुभाव कर सकता है
00:17:15तो वो लगा हाँ यह चखाना अच्छा वो भी चखाओ वो भी चखाओ
00:17:18जैसे चख चख के पता चल जा रहा हो कि सच्चाई क्या है
00:17:22पर हम अपनी नदर में यही मान लेते हैं चक चक करके अनुभाव करकर के हमें सच्चाई पता लग गई है
00:17:29तो वो अपने फिर अनुभाव को सत्य मानता और अनुभाव को सत्य मानने का अर्थ है अपनी बेहुशी को ही सत्य मान लेना
00:17:37इसी आधार पर अगर कोई रासायने कोई केमिस्ट चलने लगे
00:17:48कोई रिफायन शास्त्री चलने लगे
00:17:50तो वो सारे केमिकल्स को क्या कर रहा होगा
00:17:54चखर रहा होगा
00:18:00पर वो क्या करता है
00:18:02वो उन्हें परक्षता है
00:18:03ये अंतर है आम आदमी में और वैज्ञानिक में
00:18:06वैज्ञानिक परकता है आम आदमी चकता है
00:18:08आम आदमी को भेज दिया जाए प्रयोक्षाला में
00:18:12तो प्रटेशियम साइनाइट भी चक कि देखेगा इसका
00:18:14मामला कैसा है
00:18:16क्या ये जानने योग प्रशन नहीं है
00:18:21कितने saturated fats हैं
00:18:25कई बारे तो हम मिठाई खरीद लेते हैं
00:18:29उसका नाम भी नहीं पता होता
00:18:31और छोड़ी है कि कोई उचा ग्यान हो मिठाई के बारे में
00:18:34हमें उसके नाम तक का ग्यान नहीं होता
00:18:36हुआ है ऐसा कि नहीं हुआ है
00:18:38वहाँ पे खड़े हो के बोलते हैं
00:18:41वहाली देना वहाली वहाली
00:18:43नाम से भी नहीं बता पाऊगे
00:18:45और कौन से मिठाई बता है इशारा करते हो
00:18:46नहीं नहीं वह नहीं उसके उपर वाली
00:18:48हाँ वो जो हरी हरी सी है
00:18:51अब वो हरी क्यों है क्योंकि
00:18:5615 अगस्त के आसपास आप गए हो खरीदने
00:18:58तो उसने मिठाई का तिरंगा बना दिया है
00:18:59क्या आपने कभी पूछा कि
00:19:02यह हरा रंग जो तुमने इसमें डाला है
00:19:04यह क्या चीज है
00:19:05यह बर्फी हरी कैसे हो गई
00:19:10हरा रंग कहीं से तो डाला होगा
00:19:16ना हरा रंग कहां से आ रहा है
00:19:17पतियां मसल कर आया है
00:19:18या होली का बचा हुआ गुलाल था
00:19:22कभी पुछा है क्या है नहीं पुछा है ना
00:19:28पूछिएगा भी नहीं
00:19:31खलवाई रूठ जाएगा
00:19:33दुकाने बंद हो जाएंगी अगर राकों ने सवाल करने शुरू कर दिये तो
00:19:48आपको जो डबाबन दवाईयां भी दी जाती हैं भी दिवाले आ रही है आप मिठाईयां लेने जाओगे
00:19:55कहा तो बिल्कु सही था
00:20:04उनमें कहीं लिखा होता है कि अंदर क्या क्या है
00:20:13कहीं लिखा होता है
00:20:16अब पहले से तैशुदा आपको एक packet मिल जाता है इतना बताज जाता है इतने किलो का है
00:20:27एक ही मिठाई है वो एक के हाँ पर एक नाम से भिक रही होती है दूसरे के हाँ दूसरे नाम से भिक रही होती है ये जगे उस पर भोपाली कुछ लिख दिया दूसरे पर लहोरी लिख दिया आप खडीद लेते हो
00:20:42पोड़ा साबी होश होता तो पुछते ना कि भाई भोपाल और लाहौर कोई अगल बगल एक कस्बे तो है नहीं
00:20:51यह ऐसे कैसे हो गया कि चीज यहां की थी तुमारे यहां पर बगल की दुकान में कहीं और की हो गई
00:20:56कहीं ऐसा तो नहीं कि दोनों गप्प मार रहे हो
00:20:59लेकिन हम ऐसा कोई सवाल नहीं पूछेंगे क्योंकि मिठाई स्वादिष्ट है
00:21:07हमारा स्वार्थ पूरा हो रहा है
00:21:12जब तक मिठाई स्वादिष्ट है यह जानना न सिर्फ गैर जरूरी है बलकि खतरनाक है कि उस मिठाई के पीछे क्या है
00:21:23पहली बात तो जानने की कोशिश क्यों करें
00:21:27जितनी देर में जानें उत्ती देर मिठाई
00:21:30अंदर खाना लें, गप करो, सवाल पूछ रहे हो
00:21:34सामने मिठाई रखी है, सीधे अंदर करो
00:21:36और दूसरी बात ज्यादा सवाल पूछ लिए
00:21:39तो जरूर कुछ ऐसा पता चल जाएगा कि फिर मिठाई खा नहीं पाऊगे
00:21:42इसलिए सवाल जादा करो मत
00:21:45ये अहम है
00:21:48सुख मिल रहा है तो सब बढ़िया है
00:21:51बहुत बढ़िया है, बहुत बढ़िया है, क्यों बढ़िया है
00:21:55सुख मिला और सुख माने सु आर्थ
00:21:57सुख माने सु आर्थ, और कुछ नहीं
00:22:00तो अहम के पास इतनी चेतना ही नहीं होती
00:22:05कि बोध के आधार पे जीवन के निर्णाय करे
00:22:08वो सुख के आधार पे करता है, सुख माने अनुभव, सुख माने सु आर्थ
00:22:12हम अनुभवों पर चलते हैं
00:22:13और सब अनुभव स्वार्थ आधारेत होते हैं
00:22:16आपको कुछ अच्छा लग गया
00:22:18इसका एक ही अर्थ होता है
00:22:19उसमें आपका स्वार्थ कहीं न कहीं पूरा हुआ है
00:22:22साथरन चितना की बात हो रही है
00:22:36मैं हाँ पर बुद्धों और कृष्णों की बात नहीं कर रहा हूँ
00:22:40वो यदि कुछ कहें कि उत्तम है श्रेष्ठ है तो अलग बात होती है
00:22:45पर अगर हम कहें कि कुछ उत्तम है बढ़िया है श्रेष्ठ है
00:22:49तो उसका यही अर्थ है कि उससे हमारी स्वार्थ सिद्धे हुई है
00:22:53और कोई अर्थ नहीं
00:22:56यही बात आज लाउद्सू कह रहे हैं कि सौंदर पर भी लागू होती है
00:23:02आप अगर किसी भी विशे को सौंदर बोल रहे हो
00:23:13तो एक ही आशे है उससे आपका स्वार्थ पूरा हो रहा है और कुछ भी नहीं
00:23:21और जहां आपका स्वार्थ नहीं पूरा होगा
00:23:26वहां आप कह दोगे कि कुरूपता है या असउंदर रहे है
00:23:31तो इसलिए जो व्यक्त एक चीज को सुंदर घोशित कर रहा है
00:23:48निश्चित ही वो किसी दूसरी चीज को अब असुंदर भी घोशित करेगा
00:23:53लेकिन आप सुंदर बोलो की असुंदर
00:24:03पहली विक्रती, पहली कुरूपता तो अहंकार स्वयम ही है
00:24:11तो आप जिसको सुंदर बोलते हो
00:24:14वहां भी असुंदरता है और जिसको आपने असुंदर बोल दिया वहां भी है
00:24:21क्योंकि ये जो असुन्दरता है ये तो अहम की दृष्टि में ही है
00:24:27कुछ सुन्दर क्यों लग गया क्योंकि सुख दे रहा है
00:24:40सुन्दर इसले थोड़ी लगा है कि उसको जान लिया है समझ लिया है
00:24:44अब पाया है कि वो मन को जीवन को उठाएगा चेतना को मुक्त करेगा
00:24:52इसलिए थोड़ी सुन्दर लगा है
00:24:53अहम प्रक्रति से पैदा होता है
00:25:10और समाज द्वारा बिगाड़ा जाता है
00:25:27प्रक्रति से पैदा होता है वो मात्र शरीर से ही संबंधित एक तत्यों की तरह
00:25:35यह शरीर पैदा हुआ और शरीर के साथ ही अहम भी पैदा हो गया
00:25:41प्रक्रति की ओर से देखें तो यह कहना गलत नहीं होगा
00:25:49कि शरीर तत्तो ही अहम तत्तो है
00:25:54क्योंकि ऐसा कभी देखा नहीं गया
00:25:59कि शरीर पैदा हुआ है और अहम पैदा नहीं हुआ
00:26:02और जो दो चीजें एक साथ ही पाई जाती हो हमेशा
00:26:06उनको एक ही कहने में कोई बुराई नहीं
00:26:08प्रक्रतिकी और से, पैदाईश की और से
00:26:11पैदा तो ये दोनों हमेशा एक साथ ही होते हैं
00:26:14तो इनको एक भी कहा जा सकता है
00:26:16कुछ हद तक
00:26:18पूरी तरह क्यों नहीं कहा जा सकता
00:26:20क्योंकि एक इस्थित ऐसी आ सकती है
00:26:23और आनी चाहिए
00:26:24जब एक
00:26:27पूरी तरह विक्सेत और वैसक शरीर तो रहे
00:26:32पर अहम
00:26:34बिलकुल परिशोधित हो गया हो
00:26:36शान्त हो गया हो
00:26:37गलकर बिलकुल छोटा हो गया हो
00:26:40तो ऐसा फिर हो सकता है कि शरीर तो इतना बड़ा भारी घूम रहा है
00:26:45वैसक आदमी है
00:26:50इतना बड़ा उसका शरीर लेकिन अहम
00:26:53इतना छोटा
00:26:54वो करा जा सकता है वो होना चाहिए
00:26:56लेकिन वो आगे की बात है
00:26:58जब हम शरीर के जन्म की बात करें
00:27:01तो हम कह रहे हैं कि बिलकुल ऐसा कह सकते है
00:27:03कि शरीर और अहम एक ही बात है
00:27:05क्योंकि जन्म के समय तो दोनों का जन्म एकठे ही होता है
00:27:08और दोनों साथ-साथ रहे भी आते हैं
00:27:12तो ये जो अहम है
00:27:18ये चुकि शरीर के साथ ही पैदा होता है
00:27:22ये शरीर को ही मैं बोलता है
00:27:24मैं कौन हूँ मैं शरीर हूँ
00:27:26तो इसका ये दायत तो होता ही नहीं है
00:27:29कि ये जाने, समझे, ग्यान, बोध, मुक्त, इत्यादी
00:27:33कोई दाइद तो नहीं होता प्रक्रति ने उसे किसके साथ पैदा करा है तो उसको जिम्मदारी भी यही दे कर भेजा है भाई तुम शरीर की रक्षा कर देना है जैसे वो शरीर का पहरेदार बनके पैदा हुआ है
00:27:45जैसे वो पैदा ही हुआ है शरीर का पहरेदार बन के
00:27:53आप उसको कहें कि आओ तुम उपनिशद पढ़ लो वो कहें पहले अपना जो मुख्य काम है वो तो पूरा कर लो
00:28:00मुख्य काम क्या है देखना शरीर को सुरक्षा मिली दारा पानी मिला की नहीं बढ़ियां बिस्तर मिला की नहीं और सुख सुविधा का सब काम मिला की नहीं वो पहले यह सब देखेगा यह सब देखने के बात अगर उसको कोई गुझाईश होगी तो उपनिशद की तरफ आ�
00:28:30शरीर के लिए और अच्छे भोजन का इंदाम कर सकता हूं और शरीर माने यहीं नहीं होता कि खाल या कुछ यह जो भीतर मन बैठा यह भी सुक्ष्म शरीर ही है उप्रतिस परधा परिग्रहन संचे यह सब भी शारिरिक ही वृत्तियां है शरीर माने बस यहीं नहीं कि खान
00:29:00पैसा इकठा करना वो भी शारिरिक वृत्ति ही है अपने कुनबे कभीले में होड में सबसे आगे निकल जाना वो भी शारिरिक वृत्ति ही है तो हम इन सब चीजों का ख्याल रखने के लिए शरीर के साथ ही पैदा होता है
00:29:15मैं कह रहा हूँ हम
00:29:19अगर ये भी कह दें कि
00:29:22शरीर ही अहम है
00:29:23कम से कम
00:29:25जन्म के साथ
00:29:27तो ये बात भी बहुत गलत नहीं होगी
00:29:29शास्त्री दृष्टि से ऐसा नहीं कहा जाना चाहिए
00:29:34ये अनुचित है
00:29:34पर समझने के लिए कह रहा हूँ
00:29:37आपके
00:29:39तो शरीर तो
00:29:41हम तो ये सब अपना करने में लगा रहता है
00:29:44हमने कहा प्रक्टर ते उसको जन्म देती है
00:29:46और समाज उसको बिगाड़ता है
00:29:47और उसके बाद समाज
00:29:50उसको और ज्यादा जिम्मेदारियां दे देता है
00:29:55प्रक्टर ते नहीं क्या जिम्मेदारी दे के भेजी थी
00:29:56ये तुम शरीर की रक्षा करो
00:30:00अब समाज कहता है देखो ये तुम्हारा शरीर है ना ये जिसके साथ तुम आए हो
00:30:06वो कई चीजों से जुड़ा हुआ है
00:30:10उदारण के लिए वो एक पुरुष का शरीर है या वो एक इस्तरी का शरीर है
00:30:19तो तुम्हें सिर्फ इस्तरी की ही या पुरुष की रक्षा नहीं करनी है तुम्हें पौरुष और इस्तरीतो की रक्षा करनी है
00:30:27अब सिर्फ शरीर की रक्षा करना एक बात है पर जो इस्तरीतो की परिभाशा है उसकी रक्षा करना हो और आगे की बात हो गई
00:30:36वो एक अतरिक थिम्मेदारी हो गई
00:30:39इस तरीके शरीर की रक्षा करनी है ठीक है
00:30:42अब इस तरीत्तु की रक्षा करनी है
00:30:44अब भारती है संदर्व में इस तरीत्तु की रक्षा करना मतलब हो गया
00:30:48कि उसके लज्जा की भी रक्षा करो
00:30:50और उसके कौमार्य की रक्षा करो
00:30:53और पचास बाते
00:30:55तो अब हंकार उन बातों से भी जोड़ जाता है
00:30:58कहता है इनका भी तो ख्याल रखना है
00:30:59वैसे ही पौरुष की रक्षा करनी है
00:31:02तो उसके मान की रक्षा करो
00:31:04उसकी प्रसिद्ध की रक्षा करो
00:31:10जीवन में और समाज में उसको कई प्रकार की जीत मिलनी चाहिए
00:31:17उसका प्रबंध करो अब ये सब भी हंकार पे सम्मेदारी आ जाती है
00:31:21इसी तरीके से ये जो देह है न ये देह सिर्फ बचा कर क्या करोगे हंकार
00:31:27अब ये समाज पट्टी पढ़ा रहा है
00:31:28ये देह एक मुसल्मान की देह है नहीं हिंदू की देह है इसाई की देह है
00:31:33तो अब तुमको जिस धर्म की देह है उस धर्म की भी रक्षा करनी है
00:31:42क्योंकि उस धर्म की इक्षति हुई तो देह की इक्षति हुई
00:31:46तो अहंकार की अब जिम्मेदारियां बढ़ती जा रही है
00:31:50सौ तरीके के कर्तवे अब अहंकार पर लदते जा रहे हैं
00:31:57और इस सारे के सारे जो कर्तवे अहंकार पर आए है
00:31:59ये सब बेहोशी में आ रहे है
00:32:01समाज ये थोड़ी कर रहा है कि हम को समझा रहा है
00:32:05वो उसको सिर्फ बता रहा है और जता रहा है कि तुम्हें ये करना है ये तुम्हारे करतवे है
00:32:13उसको समझा थोड़ी रहा है तुम हो कौन उसको बस बता रहा है अब तुम्हें ऐसा करना है अब तुम्हें ये करना है
00:32:18और अगर तुम ये सब करोगे तो हम तुमें सुख देंगे
00:32:23हम तुमको सुख देंगे
00:32:27तो हम इस तरह सुख वादी अनुभाव वादी होता जाता है
00:32:35और और और ज्यादा बेहोश होता जाता है
00:32:38उसको जहां जहां कहीं पर
00:32:44अंधी अपनी कामनाओं की पूर्ती होती दिखती है
00:32:47वहाँ वो कह देता है सौंदर्रे है
00:32:49और उसकी बिहोशी उसे ये जानने भी नहीं देती
00:32:55कि जहां कहीं तुमने सौंदर्रे देखा है
00:33:00अगर गौर से देखते तो तुम्हें पता चलता
00:33:02कि वहाँ तुम्हारी स्वार्थ सिद्धे हो रही है कुछ न कुछ
00:33:06नहीं तो तुमको वहाँ सौंदर दिखाई नहीं दे सकता था
00:33:10पारी बात समझे
00:33:25लाउद्जू कर रहे हैं
00:33:30ये बहुत असुंदर बात है कि तुम्हें कुछ सुंदर दिखाई दे रहा है
00:33:38जब लोग एक चीज में खुबसूरती देखते हैं दूसरी चीज बचसूरत हो जाती है
00:33:46जब लोग एक चीज को अच्छा मानते हैं दूसरी चीज बुरी हो जाती है
00:33:49तुमने जो अच्छे और बुरे सुन्दर और असुन्दर का भेद करा है
00:33:58वो भेद ही अपने आप में असुन्दर और बुरा है
00:34:02उस भेद का आधार ही अहंकार है
00:34:07जिसको आपने सुन्दर कह दिया वो सुन्दर नहीं
00:34:14जिसको आपने कुरूप कह दिया वो कुरूप नहीं
00:34:19इसका अर्थिय नहीं कि जिसको आप सुन्दर कह रहे हो वो कुरूप है और जिसको आप कुरूप कह रहे हो वो सुन्दर है
00:34:27ऐसा कोई विप्रीतता का भी रिष्टा नहीं है
00:34:31बस बात इतनी है कि आप जानते ही नहीं
00:34:38एक अंधेरी बेहोशी है
00:34:52उसमें कुछ आ करके आपको सुखद लग जाता है
00:35:01वही आपके लिए अच्छा भला और सुन्दर हो जाता है
00:35:09हमारा नियम चलता है कि सुख ही सुन्दर रहे
00:35:21सारी हमारी परिभाशाएं अनुभूत इगत होती है
00:35:25वही आँख जो एक जगह सुन्दर कल्पित कर लेती है
00:35:36वही दूसरी जगह सुन्दर का अभाव देख लेती है
00:35:40चाहे आपने सुन्दर कल्पित किया हो
00:35:43मुद्दा ये है कि दोनों कल्पनाएं मात रहे
00:35:49सक्चाई दोनों में ही नहीं है
00:35:51एक जगह आप खुबसूरती खड़ी कर लेते हो
00:35:55दूसरी जगह बदसूरती खड़ी कर लेते हो
00:35:58दोनों को ही आपने खड़ा करा है
00:36:00खुबसूरती और बदसूरती में यथार्थ कहीं नहीं है
00:36:04वो आपका काम है आपकी कलाकारी है
00:36:07ये सुन्दर है वो असुन्दर है
00:36:12ये दोनों बातें बोलने वाला खुद पहली बदसूरती है
00:36:30सुन्दर है ये बात ये
00:36:42दस्टेज की बात करते हैं लाउट सूरती ग्यानी
00:36:58संत
00:37:00उसका उध्देश ठपा लगाना नहीं होता
00:37:06उसका उध्देश नहीं होता कि
00:37:09जा करके एक नाम चिपका दूँगा लेबल की तरह
00:37:15ये अच्छा है ये बुरा है
00:37:18उसका उध्देश होता है जानना
00:37:25मैं जगत की और देखता हूं
00:37:27जानने के लिए
00:37:29जूट भी का अगर जानने की तलवार आपके पास है
00:37:51तो जगत का जूट काटेगी लेकिन आज मजबूर हो जाएंगे वो
00:37:54आपका अपना जूट भी काटेगी
00:37:59तो आप ये नहीं कर सकते कि मुझे जगत को तो जानना है बिना सोयम को जाने
00:38:04जगत के साथ हमारा मैं का संबंध नहीं होता, आहम का संबंध नहीं होता
00:38:18तो जगत को जानना थोड़ा कम कश्टप्रद होता है
00:38:29सबसे ज़्यादा कश्ट होता है खुद को जानने में
00:38:35हम खुद को एक ब्लैक बॉक्स बने रहना चाहते हैं
00:38:47हम चाहते हैं कि मैं बना रहूं एक अंधेरा डबा जो कभी खुल नहीं सकता
00:38:54और अगर वैसा आपको बना रहना है तो जगत को भी आपको जानने से इनकार करना पड़ेगा
00:39:06उधर अन्यथा जानेंगे तो इधर भी जानना पड़ेगा
00:39:11ग्यानी कार्थ है आत्म ग्यानी वह जगत को इसी लिए जान पाता है क्योंकि उसे स्वयम को जानने से कोई भय नहीं है
00:39:36वो दुनिया की सच्चाई को इसी लिए सीधे सीधे देख पाने की हिम्मत कर पाता है
00:39:55क्योंकि सबसे पहले वो अपनी सच्चाई से घबराता नहीं है
00:39:59तो फिर वो दुनिया को इस तरह नहीं देखता
00:40:07कि जल्दी से इस पर ठपा लगा दो खुब सूरत का इस पर ठपा लगा दो
00:40:12कि ये बेकार है कि वेर्थ है
00:40:14नहीं वो सुखदाई है ये दुखदाई है वो अच्छा है ये पुरा है वो ऐसे नहीं करता
00:40:22ये करना छोटी चेतना की निशानी है
00:40:28ये करना उस चेतना की निशानी है जो जानने की महनत नहीं करना चाहती
00:40:35जो जानने की जहमत नहीं उठाना चाहती
00:40:39ठपा लगाना सस्ता काम है न
00:40:42कुछ दिखा इंद्रियों को पहली ही नजर में वो भागया बोलदो सुन्दर
00:40:53जानने में समय अश्रम लगता है
00:40:59ध्यान बड़ी महनत का काम है
00:41:04ध्यान छोटी मूटी चीज नहीं होती
00:41:05ध्यान उर्जा मांगता है
00:41:08ध्यान अनुशासन मांगता है
00:41:12मन छितराने को हमेशा तयार होता है
00:41:18ध्यान का अर्थ होता है
00:41:20कि गुरुत्वाकर्शन हो आपके केंद्र में
00:41:24जो सब छितराई हुई चीजों को अपनी और खीच ले
00:41:27कौन महनत करे जानने की
00:41:38सब पर जल्दी जल्दी
00:41:40ठपा लगाते चलो
00:41:42ग्यानी की ऐसी मनशा नहीं होती कि ठपा ही लगाते चलो
00:41:47वो कहता है पता कर लेते हैं
00:41:51जल्दी क्या है
00:41:53हम बोलता है जल्दी पता नहीं है किस बात की है
00:41:57नहीं पता किस बात की जल्दी है
00:42:01भोगने की जल्दी है भाई
00:42:05मिठाई सामने बढ़ियां रखी इंतजार कर रही है
00:42:09और तुम कहरो चलो पहले इसको जान लेते हैं
00:42:11जल्दी क्या है
00:42:12कितने ना समझ हो
00:42:14नहीं जानते क्या जल्दी है
00:42:15आउसर भीत न जाए
00:42:18सामने अभी माल रखा हुआ है
00:42:22वेंजन बन किया है
00:42:23गर्मा गरम उसमें से भाप उड़ रही है
00:42:25तुम कहरें इसको जानेंगे
00:42:27जब तक जानोगे मामला कैसा हो जाएगा
00:42:29ठंडा पड़ जाएगा
00:42:31किसी ने सामने लाके रख दिया है
00:42:35बोल रहें बिलकुल ये ताजा फलों का रस है
00:42:37जब तक उसको जानोगे
00:42:42तब तक वो जो भी चीज थी
00:42:44वो कुछ और बन सकती है
00:42:46या वो चीज अपने आपको
00:42:50जिस रूप में दिखाना चाहती थी
00:42:52वो रूप ढल सकता है
00:42:54उसका कोई दूसरा रूप
00:42:57या असली रूप सामने आ सकता है
00:42:58यही जल्दी है
00:43:02जानते नहीं जल्दी क्या है
00:43:04ज्यानी कहता है देखो
00:43:07भोग की अकुलाहट तुमको है
00:43:10हमको नहीं
00:43:12हमें क्यों नहीं है
00:43:13क्योंकि हम खुद को जान गए है
00:43:16भोग छोटी चीज है
00:43:21भोग से ज्यादा बड़ी चीज कुछ और है
00:43:24वो हमने गाठ बांध ली है
00:43:26तो हम इतनी हणवड़ी में नहीं रहते भोगने की
00:43:30हमें जान लेने दो
00:43:31खपा नहीं लगाना है
00:43:35और जब ग्यानी
00:43:38जानने निकलता है
00:43:41तो जानने की प्रक्रिया में
00:43:48सदा जो उभर कर सामने आता है
00:43:52वो सकते ही है
00:43:53नहीं फर्क पड़ता कि कौन सा विशय है
00:43:56आप जिसको जानने निकले हो
00:43:58विशय हटा दीजिए
00:44:01जानना जरूरी है
00:44:02विशय कुछ भी हो
00:44:05रवया जानने का होना चाहिए
00:44:11और जानने का
00:44:18दुश्मन बनती है हडबड़ी
00:44:25हडबड़ी करती है नामकरण
00:44:30हडबड़ी लगाती है ठपे
00:44:37ग्यानी कहता है समझने दो
00:44:52हर विशय हर अनुभव
00:44:59उसके लिए एक आउसर बन जाता है
00:45:02वो जहां भी होता है जिस भी इस थित्य में होता है
00:45:06वो डूपता है कहता है यही सब कुछ तो जो सामने है
00:45:12यही तो आउसर है इसी को तो जान लेना है
00:45:15और मान लेने का मतलब होता है
00:45:20किताब बंद कर देना
00:45:22प्रकरण समात
00:45:26निशकर्ष निकाल लिया
00:45:31अंत आ गया
00:45:35ठपा लग गया
00:45:38मुद्दा खत्म हो गया
00:45:41जगत खुली किताब है
00:45:46हमें इस सीखना है
00:45:48किताब को खुला ही रहने दो
00:45:50इतनी जल्दी और इतनी जोर से
00:45:54किताब बंद मत करो
00:45:57सिर्फ इसलिए कि किसी चीज़ ने सुख दे दिया
00:46:01जल्दी से मत बोल दो सुन्दर है
00:46:02हमने तो नहीं सुना सत्यम सुखम सुन्दरम
00:46:09या सुना है कभी
00:46:12और सिर्फ इसलिए कि कोई चीज़ दुख दे रही है उसके भी किताब बंद मत कर दो
00:46:21थोड़ा निकट जाओ थोड़ी मेहनत करो
00:46:24शब्द बारीक है पर ध्यान दे के पढ़ो
00:46:32सब समझ में आएगा
00:46:34तो जब यहां सुंदर्ता होती है तो बाहर जल्दी ही घोशनाई नहीं कर देनी पड़ती
00:46:44नाम नहीं चिपका देने पड़ते कि अच्छा या बुरा कि प्रिय कि अप्रिय कि अपना कि पराया
00:46:51जब यहां सुंदर्ता होती है
00:46:56तो उस सुंदर्ता के प्रकाश में
00:46:59पूरा विश्व किताब की तरह पढ़ने में आ जाता है
00:47:04किताब है उस पर अपनी ही रोश्नी पढ़ रही है
00:47:06अब आप पढ़ सकते हो
00:47:07और जगत की किताब में कहीं कोई बहुत
00:47:15हिंसक अध्याय भी आ गया हो तो किताब खराब हो गई क्या
00:47:19आपके महा काव्य है रमायन है महा भारत है
00:47:25उनमें एक से एक विकृतियां भी क्या आपको देखने को नहीं मिलती है
00:47:32कैसे कैसे राक्षस हैं क्या क्या वहाँ पर कृत्ते चल रहे हैं
00:47:36एक भाई ने दूसरे भाई का सामराज जशीन लिया है
00:47:39एक भाई दूसरे को बंधक बना के बैठा हुआ है
00:47:43राक्षस राज जा करके सीता को हर लाया है
00:47:50ये सब है न तो हाँ इतनी सारी बातें लिखी हुई है
00:47:56इन बातों से क्या वो पुस्तके मलिन हो गई
00:48:00तो जगत की पुस्तक भी ऐसी है वहाँ पर हो सकता है बहुत कुछ ऐसा चल रहा हो
00:48:05जिसमें हिंसा हो, कुरूरता हो, अनीत हो, अन्याय हो
00:48:10लेकिन इससे वो पुस्तक नहीं खराब हो गई
00:48:13आप उसको पढ़िए
00:48:16महाभारत में एक के बाद एक नजाने कितने युद्ध है
00:48:23रावायन से तो कहीं ही ज़्यादा
00:48:24पर जिने सीखना है, वो महाभारत से खूब सीखते है
00:48:31उसी महाभारत में भगवद गीता भी है
00:48:34यह कह देना है कि अध्याए में तो रख्तपात ही रख्तपात है
00:48:42क्या खुन खचर इसका हाथ काट दिया, उसका सर काट दिया
00:48:45उसने उसका अपहरण कर लिया, फिर हत्या कर दी
00:48:47ऐसे छोड़ देते हैं, क्या नहीं
00:48:49क्या करना है?
00:48:51उसको पढ़ना है उसको सीखना है और आप नहीं सीख सकते अगर आपने अध्याई ही बंद कर दिया है
00:48:57और अहम अपनी बेहोशी के कारण हमेशा हडवडी में रहता है अंतपर आनी की
00:49:05उसे निशकर्ष चाहिए उसे कॉंक्लूजन चाहिए
00:49:08जैसे कोई अनाडी हो उसे आप किसी जटे लिया अंतर के बारे में कुछ समझा रहे हों
00:49:19उसे समझ में तो आई नहीं रहा है वो अनाडी है उसमझना भी नहीं चाहा रहा
00:49:24तो जल्दी से बोलता है भाई यह सब बाते बंद करो यह बताओ कौन सा बटन दबा दें
00:49:31तो इसमें से संगीत सुनाई देगा उसको उस पूरी व्यवस्था से सिर्फ अपने लिए क्या उगाहना है सुख
00:49:41उसको जानना नहीं है उसको बस सुख़ दनुभव चाहिए
00:49:45और आप और कहेंगे नहीं पहले समझ दो यह पूरी बात क्या है वो कहेगा लेक्चर देना बंद करो
00:49:51बताओ इसमें समोसा कहां से निकलेगा
00:49:55यह हुआ आपके साथ
00:49:58आप किसी को किसी चीज के बारे में कुछ बता रहे हो तो कहीं यह सब हटाओ
00:50:02यह बताओ इसका इस्तिमाल कैसे करना है
00:50:04इस्तिमाल माने उपभोग
00:50:06उपभोग माने सुक अनुभव
00:50:09कोई में जानना ही नहीं है
00:50:11हम सब यहां बैठे हैं मुबाइल फोन के
00:50:16इस्तिमाल में सबकी इतनी रुची रहती है
00:50:18पर अभी अगर हम कहादे हैं कि
00:50:21तीन गहंटे तक आज हम
00:50:22चर्चा करेंगे कि यह मुबाइल फोन काम
00:50:25कैसे करता है
00:50:26तो कई लोग यहां से निकल जाएंगे और बाहर
00:50:29जाके अपने मुबाइल फोन पर ही मुनरंजन करना
00:50:31शुरू कर देंगे
00:50:31क्योंकि आपको मुबाइल फोन
00:50:35को जानना नहीं है
00:50:36आपको उसको सिर्फ
00:50:38भूगना है
00:50:39तो इस कितनी विचित्र बात होगी
00:50:42कि ठीक उस समय है जब आपको
00:50:44मुबाइल फोन के बारे में समझाया जा रहा होगा
00:50:46आप मुबाइल फोन पर ही अपना
00:50:48मुरंजन करने लग जाएंगे आप कहेंगे पता नहीं
00:50:50क्या बता रही है यह सब छोड़ो
00:50:51इंस्टाग्राम खोलो
00:50:52ज्यानी जानना चाहता है
00:51:00कहीं किसी का जन्म हो रहा हो
00:51:06वो उसको ना अच्छा बोलेगो ना बुरा ना शुब ना शुब
00:51:10वो कहेगा यह क्या हुआ है मुझे समझने दो
00:51:13कहीं लाश जल रही है उसको भी ना वो शुब बोलेगा ना शुब वो कहेगा
00:51:17क्या हुआ है मुझे समझने दो
00:51:18सौंदर ग्यानी के भीतर निवास करता है
00:51:29मुक्ति में ही सौंदर ग्यानी के भीतर निवास करता है
00:51:35इसलिए उसे जगत में एक चीज़ को सुन्दर और दूसरे को असुन्दर घोशित करने की कोई जरूरत पड़ती ही नहीं है
00:51:42वो ये कैसे कह देगा
00:51:45कि महाभारत में
00:51:52जहां भीश में सब छोटे छोटे बच्चों को कौर्वों को पांडवों को अपने साथ खिला रहे हैं
00:52:01और वातसल है और मृदलता है और थोड़ा हास से विनोध है
00:52:09वो प्रकरन तो बड़ा सुन्दर है
00:52:12और उसके थोड़ी ही देर बाद
00:52:16जब लक्षाग्रह है जब जला के मारने की कोशिश की जा रही है पन्डवों को
00:52:20तो वो बेकार की बात है नहीं
00:52:22करेगा ही तो समूची किताब है हमें पूरी पढ़नी है
00:52:28और उस पूरी किताब में
00:52:30से सत्य उभर कराता है जब हम
00:52:34बोध की दृष्टे से उस किताब को पढ़ते हैं
00:52:37वो किसी चीज़ को अच्छा और किसी चीज़ को बुरा नहीं बोल देगा
00:52:41आप किसी ज्यानी को नहीं पाएंगे
00:52:44कहते हुए कि महाभारत के कुछ अध्याय अच्छे हैं
00:52:46और कुछ अध्याय बुरे हैं
00:52:48कुद बात पूरी जाननी है
00:52:59और अच्छाई टब है जब दुनिया में अच्छे बुरे का स्वार्थगत भेद करना बंद कर दो
00:53:10और सुन्दर रे तब है जब दुनिया में सुन्दर असुन्दर का बेहोश भेद करना बंद कर दो
00:53:23अध्याय जी अध्याय जी शुरुवात में आप नानी कुछिश कर रहे थे कि
00:53:35जाए कि मतलब जो अगलिनेस होती है वह कैसे जर्म लेती है कि आपको सुन्दर जाए असा लग रहा था कि अगलिनेस और दूसरा जाथा वह वो बुटनेस पेजिए दो एक वड़ास आइड में सेपरेट है मतलब दौनों अलगलाग समय में जन्म लेती हैंगे लग पहले �
00:54:05कि अगलिनेस को भी जर्म दे दिया मतलब उसी इंस्टेंस में तो मतलब यह सोचना सही है गया
00:54:33रही गलत की बात नहीं है आपके पास एक शमता ही नहीं होती है कि एक ही पल में दो विपरीत विशयों का ध्यान कर सकें
00:54:45जब आप एक चीज को सुन्दर बता रहे हो तो निश्यत रूप से दूसरी चीज को आपने असुन्दर घोशित कर दिया है पर वो घोशना अभी अभिव्यक्त नहीं हुई है
00:54:55क्योंकि वो जो दूसरी चीज अभी आपके सामने है ही नहीं और एक साथ दो चीजों को जिसमें से एक प्रकट हो और एक अभी गुप्त हो
00:55:05अपने ध्यान में रखने की आपके पास शमता नहीं होती है
00:55:08उधारण के लिए लाल फल आपके सामने आया है और आप कहरे हो लाल फल बहुत अच्छा है लाल फल बहुत अच्छा है
00:55:18कैसा होता है कि जब आप अपने आपको घोशित कर रहे होते हो लाल फल से बढ़िया तो कुछ होता ही नहीं
00:55:24तब ही आप अपने आपको ये भी बोल दो
00:55:25कि हरा, पीला, नीला, बैंगुनी, जामुनी
00:55:29ये जितने फल होते हैं, ये सब अच्छे नहीं होते
00:55:31क्या ऐसा करते हो आप
00:55:32जिस पल में लाल फल आपके सामने हैं
00:55:36आप तो लाल फल का ही ध्यान कर पाते हो
00:55:39और कह देते हो ये बहुत सुंदर है
00:55:40हाँ, उसको सुंदर कहने की प्रक्रिया में
00:55:44आपने प्रसुप्त रूप से
00:55:46पैसिव रूप से
00:55:49बाकी सब को अब सुंदर कहने की तैयारी कर ली है
00:55:53जब वो सामने आएंगे तब आप बोल दोगे वो असुंदर है
00:55:56पर इस शड़ में तो आपके सामने एक ही चीज़ है उसी ने आपका पूरा ध्यान पकड़ रखा है
00:56:00हमें एक शम्ता होती ही कि हमारे सामने दो विपरीत चीज़े होती है
00:56:04और हम दोनों को बराबर का ध्यान दे पाते हैं
00:56:07तो ये तो बहुत उची बात होती है
00:56:08हमें तो जब पकड़ता है विशह तो एक ही विशह पकड़ता है
00:56:11उसका नतीजा ये होता है कि उसका जब विपरीत आपके सामने आता है
00:56:18तो आप मजबूर हो आते हो उसको परीत नाम देने के लिए
00:56:22आज आपने बोल दिया लाल से अच्छा कुछ नहीं होता
00:56:26उसका नतीजा ये होगा कि एक घंटे बाद जब आपके सामने हरा आएगा
00:56:31तो आप बोलोगे हरा कुरूप है
00:56:33पर जब आप कह रहे हो लाल से अच्छा कुछ नहीं होता
00:56:36उस पल में आप थोड़ी अपने आपको गिना रहे हो
00:56:38ये अच्छा लाल अच्छा होता है तो बाकी जितने रंगों के नाम लिख सकता हूँ
00:56:42अठारा नाम, बीस नाम, पचीस नाम ये सब कुरूप हो गए
00:56:45ऐसा करा है क्या कभी
00:56:46उस पल में तो बस लाल का ध्यान करते हो
00:56:49तो आप जानो
00:57:08अगर ये याद आ सके ना, स्मृति से भी
00:57:14कि जो भाव अभी लाल के लिए रख रहे है
00:57:17वो कभी पीले के लिए भी रखा था
00:57:19वो कभी नीले के लिए भी रखा था
00:57:23तो भी बच जाओगे
00:57:24और किसी तरह ये कर सको कि एकी क्षण में
00:57:30जिस ठीक उस शण में जब लाल भहुत प्यारा लग रहा है
00:57:32उसी शण में पीला
00:57:34और नीला भी अपने सामने रख सको
00:57:37तो भी बचने की कुछ समभाव ना हो जाएगी
00:57:39पर प्रक्रते ऐसे सायोग देती नहीं है
00:57:42एक बार में तो एक ही चीज सामने आती है न
00:57:44और वो चीज हमें पूरे तरीके से जकड लेती है
00:57:48और अगर सुख का वो दे रही है अनुभाव
00:57:50तो बस बात वहीं समाप्त हो जाती है निश्करश निकल गया
00:57:53ये लाल चीज है ये सुख दे रही है
00:57:55यही सरुशेष्ट है
00:57:57अब भ्यास कर लो कि सामने से कुछ सुख दे रहा हो या सुख का विपरीद दे रहा हो
00:58:27पुड़ी देर को रुख जाओ और उस रुखने के क्षण में पर्खो
00:58:32सारी बात करी न अंत में आके लर्निंग की पर्खो प्रयोग करो
00:58:39और परखना प्रयोग करना अगर बहुत रूखी बात लग रही हो तो हमने कहा
00:58:43खेलो
00:58:44भोग आपको बुढ़ा बना देता है
00:58:52बहुत गंभीर
00:58:55और जिसकी द्रिष्टी परीक्षक की होती है
00:59:06जो खोजी है
00:59:11उसमें सदा एक तरह का बचपना बना रहता है
00:59:15क्योंकि उसके हाथ में आप ये दोगे
00:59:18तो गंभीरता से ये नहीं कहएगा रहे ये तो कितनी बापरे
00:59:23वो ऐसे कहएगा
00:59:32उसे परखना है उसकी द्रिष्टी खोजी किये
00:59:36मुझे घर में डाट पड़ी थी
00:59:40मैं छोटा था
00:59:41मैं कुछ पढ़ रहा हूँ
00:59:43आवश्यक नहीं गीता ही हो
00:59:45कुछ भी और हो सकता है
00:59:46मैं खाते खाते ही पढ़ता रहता था
00:59:52तो लोगों ने देखा
00:59:54उन्होंने डाट लगा
00:59:54यह बोले कि यह अच्छी उची किताबें है
00:59:57और तुम खाने के एक हाथ से खा रहे हो
00:59:59दूसरे हाथ से पन्ना पलट रहे हो
01:00:00तुम कर के आरो कई बर जिस हाथ से खाते हो
01:00:02उसी से पन्ना पलट देते हो
01:00:03मैं नहीं कह रहा हूँ ऐसा करना चाहिए
01:00:06लेकिन यह बात है
01:00:24फिर पन्ना पलट लेना
01:00:26अब बैठे हैं यह खाने भी बैठे हैं तो
01:00:28देखते जा रहे हैं
01:00:29वो
01:00:33पाश्चाते दर्शन की
01:00:38किताब हो सकती है कोई अंग्रेजी में
01:00:40फिलोसफी किताब हो सकती है
01:00:41या वो उपनिशद भी हो सकते है
01:00:44समझना है
01:00:51समझना है बात क्या है
01:00:52ले दे करके
01:01:00कुल इतना है कि भीतर
01:01:02से अपने आपको इतना
01:01:05गरजमंद
01:01:09गरजमंद मत बना लो
01:01:12कि दुनिया कोई चीज तुम्हारी और उचा ले
01:01:15और जट से मजबूर हो जाओ
01:01:16उसको लपकने के लिए
01:01:21कि जैसे बड़े जरूरत
01:01:24मंद थे और बाजार में गए
01:01:26दुकान बंद हो रही थी
01:01:27नौ बजे का उसका बंद होने का समय आप पहुंचे ही
01:01:29सवा नौ बजे पूरा दुकान बंद कर चुका था
01:01:32तो उससे हाथ पाउं जोड़ रहे और यारे थोड़ा सा
01:01:34खोल दो यारे एक चीज ले नहीं है
01:01:35बड़ी जरूरत है
01:01:36अब उसके बाद वहाँ घुस करके क्या मोलभाव करोगे
01:01:40क्या बोलोगे ये ब्रांड नहीं चाहिए दूसरा ब्रांड दो
01:01:43तो अपने आपको इतना कभी
01:01:46जरूरत मंद गरजमंद मत बनाओ
01:01:48कि जब वो बना लोगे तो दुनिया फिर जो कुछ भी देगी उसको
01:01:53लपकना पड़ेगा इतने गरजमंद बन के जाओ जो भी देदेगा वही शिरोधार रहे फिर
01:01:59हमेशा अपने आपको इस इस्थिति में रखो
01:02:04कि कम से कम थोड़ी देर के लिए तो मैं ठुकरा सकता हूँ
01:02:08वही बोल रहा हूँ रुक जाओ
01:02:09कम से कम थोड़ी देर के लिए तो ठुकरा दो
01:02:11नहीं पूरी तरह ठुकरा सकते तो इतनी तो अपनी थोड़ी एक
01:02:15आन बान कुछ होनी चाहिए न
01:02:17ये थोड़ी कि ऐसे उच्छाला और जैसे कुत्ते होते हैं उनकी और उच्छालो लोगों को बड़ा मज़ा आता है तो वो हवा में उच्छल उच्छल के कैच करते हैं
01:02:24देखा है वो ये नहीं इंतजार करते हैं कि नीचे गिरने भी पाए खास तोर पर अगर दो तीन हो कुत्ते
01:02:30तो आप वहाँ जाईए ऐसे रोटी का आधा टुकड़ा उच्छाल दीजिए तो तीनों फिर आपस में होड लगाते हो और ऐसे हवा में उच्छल उच्छल के मूँ में लेते हैं
01:02:40कुत्ता थोड़ी बन जाना है कि संसार ने कुछ उच्छाल दिया और जल्दी से उसको लपकने को मूँ खोल दिया
01:02:46हमें कोई दुश्मनी भी नहीं है संसार से संसार से तो हमारा प्रेम है भाई संसार ही तो वो खुली किताब है जिसको पढ़ना है हमको
01:02:55अपनी किताब से कोई दुश्मन ही करता है
01:02:58लेकिन किताब है
01:03:01उसको चाट नहीं जाना है
01:03:05किताब को क्या करते हैं पढ़ते हैं
01:03:12ये थोड़ी करते हैं कि किताब का पन्ना फाड़ा
01:03:14उस पे समोसा रखा
01:03:16और समोसे पे डाला गीला छोला
01:03:19और चट कर गए
01:03:22अब बाकी जो छोला था वो किसमे सोख लिया, कागज ने, तो फिर कागज को भी चूसा
01:03:30करते हैं भाई, लोग ये भी करते है, पुराने समय में होता था आप रेलवे प्रेटफॉर्म पे जाओ, तो पूड़ी आलू देता था, काई पे रखके, अख़वार पे रखके
01:03:48लोग पूड़ी आलू अंदर करते थे, उसका अधगबार को भी पूरा वसूल ना है
01:03:56उस्याही टॉक्सिक होती है, लोग भी अंदर जाती है
01:04:10जहां दिखाई दे कि कोई लल्चा रहा है, वहाँ तो खास तौर पर एकदम सतर्क हो जाओ
01:04:18एक तो होता है, चले जा रहे थे, चले जा रहे थे, पेड़ पर फल लटका दिख गया
01:04:30और एक दूसरी चीज होती है, कोई आपके दर्वाजे आ करके आपको ऐसे गोल-गोल लाल-लाल फल दिखा रहा है
01:04:42वहाँ तो अत्रिक्त सतर्कता चाहिए, ये क्या है, ये तो सीधे-सीधे आक्रमन हुआ है हम पर भाई
01:04:49हम पर भाई, हमारे घर में घुस करके ललचाय जा रहा है हमको, पेड़ पे फल था वो एक बात, वहाँ ये भी हो सकता है कि हम सहज भोग कर भी लेते शायद, लेकिन अगर कोई हमें प्रैत्न पूरवग, योजना पूरवग ललचा रहा है, तो वहाँ तो बिलकुल भी नह
01:05:19सवाल पूछेंगे, बहुत सवाल पूछेंगे, और उन सवालों को पूछने में हमने भी पहले से मन नहीं बना रखा है कि उस चीज को सुईकार करना ही नहीं है, सुईकार करेंगे, लेकिन पहले तो हमारे प्रश्न पार करा दो, सब कुछ ठीक लगेगा, तो कोई समस्या �
01:05:49नहीं पढ़ता, आपने जाना, सब जान लिया, सब जान लिया, जानने के बाद फल का पता चला कि अच्छा है, स्वाधिष्ट भी है, और पौश्टिक भी है, तो कौन रोकरा है, फल खाने के लिए ही होता है भाई, फल उठाओ, मस्त खाओ,
01:06:00यह बाजार है, यह आप ही के जैसा है, जैसा आप स्वार्थ पे चलते हो, वो भी स्वार्थ पे चलता है, वो यूँ ही नहीं आपको आमंतरित करेगा,
01:06:21यहाँ प्रेमी बहुत कम है, आपको कृष्ण आमंतरित करें, वो एक बात होती है, भगवद गीता और क्या है, श्री कृष्ण का बहुत बड़ा आमंतरण पत्र है भगवद गीता, आओ, पर भगवद गीता अनूठी है भाई, उसकी हम नहीं बात कर सकते,
01:06:39संसार जब भी आमंतरित करेगा, वो वही है कि चुहेदानी का उसने मूँ खोल दिया है, आओ, आओ, आमंतरण है, आओ, वेलकम, तो आमंतरण को आक्रमण मानना,
01:06:53और आक्रमण का जवाब क्या है, पलटवार, नहीं, जिग्यासा, संसार की ओर से हिंसा हुई है, आप भी हिंसा कर दोगे, पलट करके, तो बराबर की बेहोशी हो गई, उनकी ओर से जब हिंसा हो, आपकी ओर से उत्तर जाएगा, जिग्यासा के रूप में, आपने मुझे ब
01:07:23बताईए, सबसे संदर तरीका है ये बात शुरू करने का, हाई हलो नहीं, क्या, जी बताईए, मैं सुन रहा हूँ, कोई कुछ बोले, कितना संदर जवाब है है, मैं सुन रहा हूँ, मैं सुन रहा हूँ, आधे आकरमण कारी तो खुदी वहीं पर ढेर हो जाएगे, जैसे ह
01:07:53बेहोशी के खिलाफ ये बड़ा
01:07:55दमदार शब्द होता है
01:07:57क्या? लिसिनिंग
01:07:59वो बोल रहा है, कुछ भी कर रहा है
01:08:01वो अपना पूरा जाल प्रपंच आपके उपर फैला रहा है
01:08:04और आपने क्या बोल दिया?
01:08:06या फिर I am seeing
01:08:07Yes, I am seeing
01:08:08Proceed
01:08:09पसीने छूड़ जाते हैं
01:08:12जैसे कोई किसी के कान में ये शब्द पढ़ते है
01:08:14कि सामने वाला देख भी रहा है और
01:08:16सुन भी रहा है
01:08:17अब तुम क्या जाल साजी करोगे?
01:08:24तो हर आकरमन का जवाब क्या है?
01:08:27मेरी चेतना
01:08:27उसके लावा वैसे भी मेरा साथी है कौन?
01:08:31तो मैं पूछूँगा
01:08:34चेतना का क्या सभाव है?
01:08:36बोध
01:08:37जिग्यासा
01:08:38जिग्यासा माध्यम है बोध सभाव
01:08:40बोध तक पहुँचने के लिए
01:08:42जो चाहिए उसे बोलते हैं
01:08:44जिग्यासा
01:08:44तो किसी ने मुझ पर
01:08:48आमंतरन के रूप में आकरमन भी कर दिया
01:08:52तो ऐसा नहीं के उससे मेरे मन में कड़वा हट आ गई है
01:08:55तुम कुछ भी करो
01:08:56मैं तो बहुत शांती से बस कहूँगा
01:08:59जी, समझाईए
01:09:00क्या?
01:09:03जी, समझा दीजिए
01:09:04समझा दीजिए
01:09:09हम गुलाम हैं आपके
01:09:11बस आप हमें
01:09:12समझा दीजिए
01:09:14और सचमुच गुलाम है, कोई ताना नहीं मार रहे है
01:09:16हम सेवा करेंगे आपकी
01:09:18बस आप हमें समझा दीजिए
01:09:20और कोई सचमुच समझा दे तो कर भी दो सेवा
01:09:26क्यों नहीं?
01:09:28पर कोई ऐसा मिले तो हो
01:09:30जो सचमुच जिग्यासा शमित कर सके
01:09:33यहां तो
01:09:34जिग्यासा सुनके
01:09:36भग जाएंगे
01:09:38दुकान पर जाओ
01:09:41माल को ले के ज़्यादा जिग्यासा कर दो
01:09:42वो दूसरे ग्रह की और चल जेता है
01:09:44बलकि वो चाहता है कि आप
01:09:46थोड़ा हटी जाओ, क्योंकि आपके सवाल
01:09:48सुनके दूसरे ग्रह को खटका हो जाएगा
01:09:50ज़्यादा सवाल कर रहा है यार इसको निकालो
01:09:54नहीं जी
01:09:55आप बगल वाली में देख लीजिए
01:10:09स्कूल कॉलेज के बहुत सारे शिक्षक होते हैं
01:10:11वो बुरा मान जाते हैं उन्से सवाल पूछ दो तो
01:10:13वो एकदम कहीं गाओं कमई का स्कूलो तो पीट भी देते हैं
01:10:21गुनाह यह था कि उसने पूछ लिया
01:10:24कि समझा तो दो क्या कर रहा हो यह
01:10:27ब्लाक बोर्ड पर
01:10:29पिट गए
01:10:31जग्यासा बड़ी धारदार चीज है
01:10:37पूछ लिया करो
01:10:39वही सब आकरमनों का जवाब है
01:10:43तो सब आकरमनों का प्रेमपूर्ण जवाब है
01:10:46क्योंकि साब हमें समझाने की प्रक्रिया में हो सकता है
01:10:50आप खुद भी समझ जाएं
01:10:51या आपको ये समझ में आ जाए कि आप नहीं समझते
01:10:55तो भी ठीक है
01:10:57कुछ रिजहा रहा हो उसको प्रेम मत मानना
01:11:03उसको हिंसा जानना
01:11:05रिजहा रहा है कुछ लुभा रहा है कुछ तो ऐसा लगता है कि देखो
01:11:14वो हमारे प्रति कितनी सद्भावना रखता है
01:11:16हमको रिजहाने को कितना आतूर है
01:11:19वो शिकारी है
01:11:21यह हिंसा की तयारी है
01:11:25चुईया
01:11:29खुबसूरत वो
01:11:32चूहे दानी है
01:11:35रिजहा रही है
01:11:37होम स्वीट होम
01:11:39चूहे दानी के दरवाजे पर रटका दिया है
01:11:42और चुईया बिलकुल ऐसे गदगद हुई जा रही है
01:11:45हम
01:11:51हम
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