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00:00:00शुम्भन शुम्भन आमके अभी ये जो दो भाई हैं इनका उपद्रव चल रहा है आजकर तो देखते हैं कि एक अतिस उंदर स्त्री है वो परवत पर अकेले गूम रही है दास ने बताया कि दुनिया की सब उची से उची चीजें आपके पास हैं देवी स्वैम कहते हैं अ�
00:00:30अब रक्तभीज आता है वर्दान था उसको कि उसके खून की एक बूंद भी जहां गिरती है वहां से एक नया रक्तभीज माने एक नया राक्षस पैदा हो जाएगा काली देवी अब आविरभूत होती है वहां पर आपने देखा होगा उनके हाथ में क्या है एक खपर है औ
00:01:00और पिछले चरित्र का और पिछले अध्याय का अंत किसके वद पर हुआ था महिशासर के वद पर हुआ था तो महिशासर का वद हो गया था हर्थी उत्वा लोग प्रसन्द हो गये थे और देवताओं ने फिर आकरके
00:01:26एक स्वर में देवी की आराधना करी थी
00:01:28और आभारवेक्त करा था
00:01:30और देवी ने कूछा था
00:01:34क्या चाहिए भाई
00:01:35तुन्होंने कहा था अभी तो जो कुछ चाहिए था
00:01:38वो मिल ही गया
00:01:40हाँ इतना जरूर दे दीजिए
00:01:42कि आगे कभी आपकी आवश्यक्ता पड़ेगी
00:01:45आपको स्मरण करेंगे तो आप सहायता आवश्य करेंगी
00:01:48तो देवी ने कहा था
00:01:50ठीक तथास्त
00:01:51तो जैसा देवताओं का हाल है
00:01:56जैसा देवत्तों का चलन है
00:02:00बहुत दिन तक देवताओं का
00:02:03सुख चैन और स्वर्ग चला नहीं
00:02:04उनको फिर से आ गए
00:02:09दूसरे दैत
00:02:10सताने
00:02:13और इस बार देवताओं ने अपना राजपाट
00:02:17और अधिकार
00:02:18किनके हाथों खोया
00:02:21तीसरे अध्याए
00:02:25कि जो केंदरी दैत है
00:02:31अधर्म की जो केंदरी ये सत्ता है
00:02:37उसका नाम है शुम्भ और निशुम्भ
00:02:41बड़ा विस्तरत चरितर है ये
00:02:45तीसरा चरितर है, अभी मैंने तीसरा अध्याए बोल दिया था
00:02:50और
00:02:51पांचमें अध्याय से लेके ते रहें तक जाता है
00:02:56तो इसमें शुम्ब निशुम्ब के अतिरिक्त और न जाने कितने उपद्रवी दैत्ते और राक्षसों का उलेख आएगा
00:03:05जहां संभव होगा हम उनकी चर्चा कर देंगे
00:03:09पर सब की बात करना बहुत आवश्यक नहीं है
00:03:15सब्तशती की जो किंद्री ये विश्यवस्तो है हम उस पर ज्यादा ध्यान देंगे
00:03:20तो पहली बात तो ये कि अभी अभी तो देवताओं को अभय किया गया था महिशासुर से
00:03:30ये फिर क्यों हो गया क्यों अपना राजपाट गवा बैठे ये पहला विचारनी प्रशन है क्यों हो गया बताओं ये शायद जिसे आपने कल समझाया था कि जो माया है उनका बुद्धी पर प्रभाव जो होता है वो ऐसा भी हो सकता है कि आप उनके आगे नमित हो जाएं �
00:04:00थोड़े एंकारी हो जाते हैं आपको लगता है कि आप ही आखरी सत्ता है तो शायद इसी जुगत में की सनातन बोध ने ने देवत्तों को आखरी माना सुख को माना ही नहीं ना स्वर्ग को माना
00:04:19देवता बस एक अर्थ में बहतर है दानवों से एक ही अर्थ में बहतर है अन्यथा देवों और दानवों में समानताएं ही ज्यादा हैं किस अर्थ में बहतर है कि देवता जब पीटे जाते हैं
00:04:42अपना वैभव और एश्वर गमाते हैं तो फिर सीधे जाकर के श्री हरी के चरणों में लोट जाते हैं
00:04:52दानव ऐसा नहीं करते हालां कि दानवों उन्हें भी तप करा है और कभी शिव की कभी विश्णों की भक्ति करी है
00:05:03इसके बहुत उल्लेख आते हैं लेकिन फिर भी देवों की आस्था ज्यादा है ब्रह्मा विश्णों महेश्ट्र पुटी में बस यहीं अंतर दोनों में अन्य था यह दोनों ही
00:05:15अपनी अपनी सीमाओं में और अपने अपने गुणों में बंधे हुए हैं
00:05:23और जो कुछ भी गुणों में आबद्ध होगा उसके कभी नय कभी अन्त आएगेगा उसी मित होगा प्रक्रत्य में सबकुछ सीमित है
00:05:36देवता भी प्रक्रती के भीतर है Prak कया दानव भी प्रक्रते की भीतर है
00:05:41ठीक वैसे जैसे दानुवों का राज सदा नहीं चल सकता वैसी देवों का वह नहीं चल सकता
00:05:48और इसलिए मैं कह रहा था कि सनातन में देवत तो आखिरी बात नहीं है
00:05:56ग vídeos पही देवियता और दानुवियता न दोनों से मुक्त आखिरी बात आख
00:06:02स्वर्ग सबसे उनची चीज नहीं है, स्वर्ग से भी जो पार निकल गया, जो स्वर्ग और भोग की आकांक्षा से
00:06:11मुक्त हो गया, वो सबसे उत्तम है, तो देवता चुंकि प्रक्रती की विवस्था के अंतरगत ही है, इसलिए उन में भी वो सब गोड़ोश हैं,
00:06:24जो प्रकृति में पाए जाते हैं कहीं भी अन्य था तो इसी लिए उन्हें कितनी भी बार बचाया जाए सहारा दिया जाए
00:06:33वो बार-बार दुख को प्राप्त होते ही हैं जो कोई स्वर्ग का सुख भोगेगा उसे काल चक्र में
00:06:48दुख और पराजय और यातना यह भी भोगने ही पड़ेंगे और वही चीज देवताओं के साथ भी होती है बार-बार
00:06:58तो खैर अब शुरुवात होती है तीसरे चरित्र की तो तीसरे चरित्र का उद्गाटन कैसे होता है
00:07:10परदा उठता है और हम पाते हैं कि देवता लोग सब पहुंचे हुए हैं हिमाले पर और वहां गंगा किनारे देवता लोग देवी की स्तुति और स्मरण कर रहे हैं
00:07:29और क्या कह रहे हैं जो कह रहे हैं वो बड़ा अर्थपूर्ण है उसमें सीखने को बहुत कुछ है समझना
00:07:42कह रहे हैं कि हम उस देवी की आराधना करते हैं जो सब जीवों के भीतर शक्ति बनकर वास करती है
00:07:52हम उस देवी की आराधना करते हैं जो सब के भीतर बुद्ध बनकर वास करती है जो स्मृति बनकर वास करती है
00:08:00इसी शंखला में और इनी शब्दों में देवी को देवता दर्जनों बार संबोधित करते हैं
00:08:14कभी कहते हैं वो शांति बनकर वास करती है कांति बनकर वास करती है क्षांति बनकर वास करती है क्षांति माने शमा
00:08:26भ्रांति बनकर वी वास करती है भ्रांति माने भ्रम
00:08:30ब्रह अ laughs 3 शिपन करवास करती है स्मृति बनकर वास करती है तुछ स्अधस बनकर वास कर तीए वित्र सु आ
00:08:38भी बनकर वास करती है अब इस Music कर दिये टरीकूं से हो सक्ता था संभव वह देवी को संभोह करते
00:08:51और इस प्रकार वो देवी का स्थवन करते हैं अब इसमें प्रश्न है मिरायक इतने तरीकों से देवी को स्मरण करने
00:09:02से क्या संकेत मिलता है हमें क्योंकि देखो भाई दुर्गा सब्तशती हैं बात पौराणिक है वहां जो कुछ भी कहा जा रहा होगा उसमें निहित जो संकेते करते हैं उसको पकड़ना बहुत जरूरी होता है
00:09:19गोब तो देबता ये भी तो कह सकते थे कि यह पर आयाए और देवी की अशक्ति की उपासना करते नहीं पर्याप्थ होता इतने भीं भींaterी को संबोध्वकु करते
00:09:32है देवी को कि क्या इस वज़े से कि हम अपने जीवन में जो अलग-अलग परिस्थितियां देखते हैं वह में उसमें देवी बार बार याद आती रहें उनका स्वारण जो ऐसे समझो देवी माने प्रक्रते
00:09:49जो कुछ भी प्रक्रते में नहीं है मैंने तुरंट उसे किसका असथान दे दिया प्रक्रते से अलग प्रक्रते की अतरिक्त तो एक ही चीज
00:10:19श्रेणी में रखा जाए ताकि कहीं भूलवश मैं किसी को भी सत्य ना मान बैठूं तो इसलिए जो कुछ भी संभव हो सकता था जितना देवताओं को याद आया
00:10:32जितनी बातें भी कल्पित की जा सकती है या ध्रिश्यमान हो सकती है
00:10:38जिन भी वस्तूओं का स्थूल चाहे सूक्ष्म विशयों का मन विचार कर सकता है उन सब को जैसे सूची बर्ध करके कह दिया जा रहा है कि देवी ये तुम ही हो
00:10:55तुम ही हो देवी
00:10:59जो अन बन कर उगती हो
00:11:02और तुम ही हो देवी
00:11:03जो जीवों में एक शुधा बन कर वास करती हो
00:11:06ये सब तुम ही हो
00:11:09क्योंकि अगर मैंने याद नहीं किया
00:11:12और अगर मैंने साफ साफ बोला नहीं
00:11:15सुईकार नहीं किया कि
00:11:16अन प्रक्रत ही है
00:11:19तो गड़बड हो जाएगी
00:11:21मैं कहीं अन्न को सत्य न समझने लग जाओं
00:11:23बड़ी भारी भोतिकता हो जाएगी
00:11:27पदार्थवाद हो जाएगा
00:11:28तो इस
00:11:31समूचे ब्रहमांड को
00:11:33और इसके अंतरगत
00:11:35सभी वस्तुओं और विश्यों को
00:11:37एक करके देउता कह रहे हैं
00:11:39जो कुछ भी सब तुम्ही हो नर तुम्ही हो
00:11:41नारी तुम्ही हो
00:11:43हाथी तुम्ही हो चीटी तुम्ही हो
00:11:45परबत तुम्ही हो
00:11:47नदी तुम्ही हो
00:11:49सूरज तुम्ही हो चान तुम्ही हो
00:11:53मेरी
00:11:55हीनता भी तुम्ही हो
00:11:57मेरी वृद्ध भी तुम्ही हो
00:11:59तुम्ही स्मर्ण कराती हो
00:12:01तुम्ही भुला देती हो
00:12:03जो कुछ भी हो रहा है देवी
00:12:06वो तुम्ही तुम हो
00:12:08तुम्हारे अतरिक तो कुछ नहीं है
00:12:10यह बढ़ी उची वात
00:12:12नुची बात इसलिए
00:12:15कि अगर तुम
00:12:16इस पूरे जगत को
00:12:19एक साथ
00:12:23इकठे ही प्रकृत नहीं जान लोगे
00:12:25तो तुम जगत के ही
00:12:27एक हिस्से को फिर सत्य समझें लगोगे
00:12:29जैसे सामने मेज रखी है
00:12:33यह इसका
00:12:35पूरा जो है
00:12:37शेत्र है ऊपर सत्ह
00:12:39मुझे इस पूरे के पूरे को जानना है
00:12:45कि यह मेज की ही सत्ह है
00:12:46अगर मैंने इस में से थोड़ा भी हिस्सा छोड़ दिया
00:12:50और उस थोड़े से हिस्से को छोड़के
00:12:53मैंने बाकी सारे हिस्से को
00:12:55इंगित करके कहा
00:12:57कि यह मेज की सत्ह है
00:12:58तो छोड़ा हुआ हिस्सा मेरे हिसाब से क्या हो गया
00:13:01वो मेज नहीं है जबकि है वो
00:13:03और मैं उसे मेजना मानके नजाने क्या मानन लूँगा
00:13:06ये भूल नहीं होने चाहिए और ये भूल पूरी दुनिया के दर्शनोंने करी ए
00:13:11उन्होंने किसी विचार को ही सत्य मान लिया है
00:13:17इस मामले में जो सनातन धारा है वो बिलकुल अलग है
00:13:23कि जो कुछ बी काल के प्रवा में है जो कुछ भी प्रक्रति के अंतर्गत है कि वो सब एक जानों वो कभी उठा था कभी गिरेगा कभी आया था कभी जाएगा
00:13:36भारत अकेला राज इसने भी माना है कि ये स्वर्ग नर्क भी मिट जाने हैं प्रले में इनका भी नाश हो जाना है
00:13:48ये जो सब देवता घूम रहे हैं इनकी भी मृत्य होनी है ये भी कोई अजार अमर नहीं है एक दिन ये भी नहीं रहेंगे
00:13:57ये कहकर के हमने बड़ी परिपक्वता धर्शाई है हमने कह दिया है कि हमने जो भी छविया निर्मित कर लिए भले यों देवताओं की क्यों ना हो वो भी सत्य नहीं
00:14:11क्योंकि तुमने अपने द्वारा निर्मित एक छवी को यह सत्यमान लिया तुम नजाने कौन कौन सी नई नई आकरशक छवियां रचते रहोगे उन्हें सत्यमानते रहोगे उन्हें पूजते रहोगे और अपने लिए दुख का निर्मान करते रहोगे
00:14:24ने समूचा मानसक्षेत्र लिया मेज की पूरी सत्ह मेज की सत्ह क्या मान रहे हैं मन का पूरा विचारक्षेत्र और पूरे कोई कठा करके उसको एक नाम दे दिया
00:14:42पूरे को एक धागे से बान दिया
00:14:45समुचे ब्रह्मांड को जैसे एक धागे से बान दिया हो
00:14:49और उसको क्या नाम दे दिया
00:14:50प्रक्रतिक या देवी
00:14:52और फिर उसके सामने सर जुका दिया
00:14:53क्योंकि हैं तो हम भी उसके अंदर ही न
00:14:57उसके अंदर है
00:14:59और सर इसलिए जुका रहे हैं कि देवी मुक्ते भी तुम ही दोगी, यह और परिपकता का लक्षन है, मानलिया की माया है, मानलिया की मिथ्या है, लेकिन हम जैसे जी रहे हमारे लिए तो नहीं है माया, हमें तो यही सही लगता है, हमें सच्चा लगता है यह सब कुछ हम जिस
00:15:29तो उससे मुक्ते भी चाहिए तो उसी का इस्तिमाल करना होगा देवी की माया से मुक्ते चाहिए तो देवी से ही मुक्ते मांगो
00:15:40यह देवी तुम ही माया हो तुम ही मुक्ते हो माया से तुमने हमें गरसित करी रखा है अब मुक्ते का वर्भी देदो
00:15:48तो इस प्रकार देवता सब देवी की अराधना करते हैं और ये बड़े प्रचलित मंत्र हैं
00:16:03यादेवी सर्वभूतेशु शक्तिरूपेन संस्थिता सुना होगा तो इसी क्रम में और बहुत सारे मंत्र
00:16:11ये मंत्र दुर्गा सब्षती से हाथ हैं, ये सब देवता उट्र खड़े हुए हैं और फिर से आबदा ना � owned तुंशा भ़े और देवी से गवार मार तक और तरीके से देवी का आवां कर रहे
00:16:25तो यह सब्मंत्र वहां से आते हैं, बुध्धिर उपद संस्तिताँ शक्ते रूप्द संस्तिता अक्षोधार ऊपडी यहां पर कई चरणों में प्रकट होती है, तो पारोदी देवी
00:16:53कहते हैं वहां जहां दियोता हिमालय में गंगा के ना रहे आराधना कर रहे थे देवी की वहीं पे वो इस्नान करने के लिए आई
00:17:02वही देवी तो देवी है देवी एक ही है अलग अलग नामों से है वही देवी है महिशासुरवद के उपरांत जिनकी इस्तुति हुई थी और तब इस्तुति करी थी फिर भुला दिया था जब भुला दिया था तो राजपार्ट गवा दिया था तो देवी आही और देखा कि
00:17:32यहां हिमाले पर वियाबान में खड़े हो करके प्रार्थना कर रहे हो कौन हो तुम लोग जैसे जानती ना हो तो देवता बोले रहे हम समय के मुसीवत के मारे हुए हैं यह नए राक्षास पैदे हो गए उपद्रवी इन्होंने सब लूट लाट लिया
00:17:49तो फिर कहानी ऐसे है कि पारथी जी की देह से पहले शिवा देवी निकलती हैं फिर उसमय से अंबिका देवी आविर भूत होती हैं
00:18:08और Ambika Devi के बारे में है की वो शुब्रा है बिलकुल शुब्रवर्णा
00:18:13मने गुरी, तो जो पारती जी का गोरापन है वो एक
00:18:19देवी के रूप में प्रकट हो जाता है तो पारती जी है
00:18:24वोकाली रह जाती है जब उक अलग नाम दे देते हैं
00:18:29कालिका और पहाड़ों में उनकी कलिका देवी के नाम से फिर पूजा होती है तो खेर अब जो देवी प्रकट हुई हो को ने अंबा और अंबा देवी कैसी है शुब्रा और अपूर सुंदरी और वहीं विच्ण करने लग गई पहाड़ों में देवी एक ही है यह अलग-अल�
00:18:59उसको समर्पित है तो अंबा देवी वहाँ विच्रण करने लग गई तो शुम्भन शुम्भन आम के अभी यह जो दो भाई है दैखते अब इनका उपद्रव चल रहा है आजकल वही महिशासुर के वनिशज है बाप दादा मारे गए लेकिन जो उपद्रव है वो नहीं मा
00:19:29इनके दो घूम रहे हैं सेवक भृत्य और यथा राजा ता था प्रजा जैसे ये दोनों शुम्ब निशुम्ब लंपट हैं बिलकुल भोगी वैसे ही उन्होंने सब रखे होंगे अपने करमचारी भी तो ये दोनों भी वैसे ही है तो ये देखते हैं कि एक अतिस उंदर स्
00:19:59आवेश में ये आवेश में आ गए और जाकरके अपने इन्होंने राजा को भी उतना ही आवेश दिला दिया
00:20:09राजा भी उत्तेजित दास ने बताया कि दुनिया की सब उंची से उंची चीज़ें आपके पास है
00:20:18वो आपने इन्दर का है रावथ हाथी पकड़ा हुआ है वो आपके पास है आपने चंद्रमा को पकड़ लिया है आपके पास कामदेणों हैं और आपके पास कलबरिक्ष है
00:20:30है और आपने फलाने राजा को मार करके उस से फलाना मुती
00:20:33रखा हुआ है और आप गए थे और फलाना समराच था उसकी सबसे
00:20:38वड़ी तल्वार भी आप छीन लाये थे वो भी आप के पास है और यह महल
00:20:42है बड़े-बड़े सोने चांदी हीरे से जगमगाते हुए ये भी आपके पास हैं ये सब आपके पास हैं तो रोजवा पूर सुन्दर ही हूँ आपके पास क्यों नहीं हो तो फिर कमी रह गई आपके हैं और ये सुनना नहीं है कि राजा महराज हो गई उत्तेजित वह ले ज
00:21:12कि राजा तुम्हें बुला रहे हैं अपने हां तो बिलकुल गदगद हो जाएगी और प्रसंद हो करके खुदी चली आएगी इन्होंने जाके जैसे ही बताया कि बुला रहे हैं तो लिए अरे वहा ये तो मेरे स्वभागे की बात है कि मुझे इन दोनों जैसे प्रतापी �
00:21:42क्या बोले यही कि जो मुझे युद्ध में हरा देगा मैं तो उसी को पतिस्विकार करूंगी तो दूतों को करोधा गया बोले अरे इतने बड़े प्रतापी युद्धा जिन्होंने स्वरगनरक और सारे लोग जीत रखे हैं ये तुझ से युद्ध करने आएं गया भी ब
00:22:12अपना एक छोटा मोटा पहले को युद्धा भेजा कि भई नारी है उसको क्या कोई छोटा मोटा भी ऐसे ही पकड़ के खींच लाएगा तो कहते हैं कि आए तो देवी ने बस कस्वर करा जोर से वो इतने में ही मर गया
00:22:25अब उसके इतने प्राण निकल गए तो यह दोनों बिल्कुल होफ में आकर के भगे भैवीतों के राजा से बोले हो तो मर गया उसको तो फिर अपना एक और भेजा धुम्र नोचन नाम का सेना पती कि तुम जाओ अभी थोड़ा
00:22:54नहीं ऑपर के तल गयोधा इसको भेजा कि जाओ उसको ले कर की आओ तो समझो कि ऐसे हमारे होते हैं विवह�řा प्रस्ताओ отвеч अब जब जिसको भेजा गया उसको कहा गया कि है कि
00:23:13बल पूर्वग लेके आना, बाल पकड़कर जोटा पकड़कर घसीटते हुए लेके आना और उसके आसपास कोई खड़ा हो, तो उसको मार देना चाहे वो यक्षो गंधर वो कोई हो, हम कौन है, जिनोंने इंद्र को जीत लिया है, त्रिभवन को जीत लिया है, और हमारे प्र
00:23:43ये इशारा कि धर को कर रही है, देवी प्रतीक किसका है, प्रक्रते का प्रतीक, और प्रक्रते को ये जो राक्षस है, ये क्या करना चाहते है, भोगना चाहते है, कोई प्रेम तो हो नहीं गया उन्हें देवी से, तो राक्षस की परिभाशा में आ मिल गई, जो प्रक्रते
00:24:13भी डालेंगे तो साफ साफ कहते हैं कि इनको बचाने के लिए नर देव यक्ष दंदर्व कि नर कोई खड़ा हो उसकी हर्त्या कर देना
00:24:20और सहज मान जाए तो ठीक है नहीं तो घसीट के ले आना
00:24:29अग्यानी के या धर्मी के प्रेम प्रस्ताव ऐसे ही होते हैं हम सब का अधिकांश लोगों का प्रेम ऐसा ही होता है
00:24:40उसने मिठास अभी तक है, जब तक स्वार्थ सिद्ध हो रही है। जो तुम चाह रहे हो, वो सामने वाले
00:24:48से मिल गया तो प्रियम है। नहीं मिल रहा तो कटथ़ा आ जाएगी। नहीं मिल
00:24:53रहा और अगर ताकत चला सकते हैं, दूसरे पर तो ताकत चला देंगे।
00:24:58अक्सर हम पाते हैं कि संबंधों में एक प्रकार का संतुलन होता है, एक स्थायत तो होता है, कोई पक्ष दूसरे पर जबरदस्ती नहीं कर रहा होता, ताकत नहीं चला रहा होता, उसकी वज़ाई ये नहीं होती है कि दोनों में प्रेम है, उसकी वज़ाई ये होती है कि दोन
00:25:28जो कोई सत्य के सामने नमित नहीं है जिस किसी में देवी माने प्रक्रति के प्रते सद्भा और आस्था नहीं है वो राक्षास ही है न वो जी किसलिए रहा है वो जी ही रहा है बस प्रक्रति के दोहन और शोशन के लिए जैसे कि हर आम आदमी आज जी रहा है पिछली बार हमन
00:25:58कितने महिशासुर गिनें, तब तो महिशासुर एक था जिससे आम जनता संतब्त थी, आज महिशासुर ने ऐसी घिनावनी और अकाट्टे चाल चलिये, कि उसने हर आदमी को महिशासुर बना दिया, महिशासुर कौन है?
00:26:19परिफाशा दोरा रहें, तीसरी चौथी बार, जो कोई सत्य के सामने जुखता नहों, और शान्ति पाने के लिए प्रक्रति का उत्पीडन करता हो, क्योंकि शान्ति दो जगए से मिल सकती है, तो सत्य के सामने जुख जाओ, तो शान्ति मिल जाएगी, और अगर तुम्हें श
00:26:49आम आदमी राक्षा से, सहाज में आ रही है, और इसलिए इस दुनिया में प्रेम हमें दिखाई नहीं पड़ता, जो प्रेम हमें दिखाई भी पड़ता है, वो उसी कोटिका होता है, जैसा यहां पर अभी तुम पा रहे हो, शुम्ब निशुम्ब का प्रेम प्रस्ताव, �
00:27:19बस हमने अपने आपको धोखा दे रखा है, जो हमारे भीतर की पशुता है, दरिंदगी है, और जो हमारा भोगी और बलातकारी मन है, उसको हमने जरा सम्मानी है, और सुन्दर आभूशन जैसे शब्द पहना दिये हैं,
00:27:45हमने जहासा देने वाली परिभाशाएं गढ़ ली है, हम प्यारे दिखाई देने वाले विशेशन ले आते हैं,
00:28:02हम वासना को स्निह का नाम दे देते हैं, हम बंधन को कर्तव का नाम दे देते हैं,
00:28:11हम इंद्रियगत आकरशन को प्रेम का नाम दे देते हैं,
00:28:18हम बल प्रयोग को प्रणय निवेदन का नाम दे देते हैं,
00:28:27हम खरीद फरोख्त को लेन देन को क्रेविक क्रेव को प्रेम योग का नाम दे देते हैं,
00:28:45दो प्रेमी हैं, वो आपस में आके मिल गए हैं, हुआ क्या है सच मुच्छ? एक समझाता, एक व्यापारिक अनुबंध हुआ है, तो यह करके हम अपने आपको जहांसा दिये रहते हैं,
00:29:03ताकि हमें पता ना चलने पाए कि हम राक्षास लोग हैं, जो हम कर रहे हैं, अगर उसको हम सीधे सपाट नंगे शब्दों में अभिव्यक्त कर दें, तो बड़ी कुरूप और गंदी सच्चाई सामने आ जाएगी ना, उससे हमारे सम्मान और रहंकार को ठेस पहुँचे�
00:29:33उसे आभूशित कर दिया है, कि करो गंदगी, उसको नाम अच्छा सा दे दो, जैसे शादियों में होता है न, कि नहीं जी हमें तो कुछ नहीं चाहिए, बस शादी ऐसी हो कि दोनों परिवारों का सम्मान जो है, वो बना रहे हैं,
00:30:01सीधे सीधे मूँ से बोलो न, पैसा खोर हो, लड़का वेचने आये हो, पर वैसे बोल देंगे तो गंदगी मच जाएगी, तो फिर इस तरीके से बोला जाता है, छद मभाशा में, यूफिमिस्टिक लेंगवज में, बस शादी ऐसी हो कि दोनों परिवारों की इजद बच
00:30:31चाहिए, ये शुम्ब निशुम्ब सब उसी तरफ के हैं, हमें कुछ नहीं चाहिए,
00:30:38जैसे इरशियों ने उसी समय पर देख लिया हो, कि भविश्य में भी क्या होने वाला है, क्योंकि उपर-उपर से चीज़ें बदलती हैं, भीतर-भीतर कहां कुछ बदलता है,
00:31:01शोषण की हमारी वृत्ति तब भी थी, आज भी है, मूरक हम तब भी थे, आज भी है, कुल मिलाकिय जो चीज़ें हमें तब आकर्शित करती थी, वह आज भी करती हैं,
00:31:20बस उनका स्वरूप, आकार, प्रकार, चेहरा बदल गया है, रंगरोगन बदल गया है, नाम बदल गए है, भीतर ही भीतर, न जकत बदला है, न जीव बदला है,
00:31:31संसार भी वैसा ही है और अहंकार भी वैसा ही है तो आज जो कुछ हो रहा है एक तरीके से पहले भी हो रहा था जब पुराण रचे गए थे उन्होंने फिर भविश्य भी नहीं देखा उन्होंने बस वर्तमान देख लिया जो वर्तमान को देख लेता है वो भविश्य दृष
00:32:01भविश्य को भी जान जाता है, यही बात हम यहां पर पा रहे हैं, तो धूम्र नोचन अपने मालिकों की आज्या पर आता है, और देवी के हाथों जान को आता है,
00:32:26अब इसके बाद शुम्र ने शुम्र को बड़ा करोध तो अपने चंड मुंड नाम के दो बड़े नायक भेजते हैं, और ना जाने कितने अन्य प्रकार के फिर देते उसरों के नाम आते हैं, कि इस कुल के देते जाएं, उस कुल के राक्षाच जाएं, अपनी बड़ी बड�
00:32:56फ्सieur पर पूरे विस्तार से करी थी कि शर्चा पर हम ने मुस्त क्रकाशित करी थी और रिख्स स्थ भी तो उस में हमने फिर एक एक श्लोक
00:33:06को ले करके इन सुरों के नामों की और इनके सह विस्तारों की सर्चा करी hai
00:33:11अभी के लिए इतना ही पर्याप्त है कि चंड मुंड मारे जाते हैं और चंड मुंड को मारने के कारण ही देवी का एक नाम है चामुंडा
00:33:23ठीक है इसके बाद बारी आती है रक्तबीज की
00:33:31अब रक्तबीज आता है ये जबरदस्त लड़ा का जब रक्तबीज आता है तो रक्तबीज का सामना करने के लिए
00:33:42सब देवता लोग और विश्णु भी और शिव भी मिल करके अपनी जो शक्तियां हैं और अपने जो अस्त्र हैं
00:33:58वो देवी को अर्पित करते हैं और देवी के शरीर से भी अन्य कई शक्तियां और देवियां प्रकट हो करके
00:34:14असरों से युद्ध करना शुरू कर देती हैं और बहुत सारे गण माने स्यानिक मात्र गण प्रकट हो जाते हैं वो भी युद्ध करते हैं
00:34:25और ये सब जो शक्तियां प्रकट होती हैं इनके भी सब के अलग-अलग नाम बताए गए हैं
00:34:32कौमारी शक्ति, शिवा, महेश्वरी, एंद्री
00:34:37अब रक्तवीज आता है, रक्तवीज का जो किस्सा है वो सारगर्भित है
00:34:44वहाँ बात कुछ गहरी है, रक्तवीज के बारे में क्या है
00:34:48कि उसको शक्ति प्राप्त थी या वर्दान था उसको कि उसके खून की एक बूंद भी जहां गिरती है
00:34:55वहाँ से एक नया रक्तवीज, मानि एक नया राक्षस पैदा हो जाएगा
00:34:59तो देवी की जो शक्तियां आई जाके रक्तवीज से भिड़ जाती है और एंद्री या शिवा कोई जा करके उस पर प्रहार करती है तो उसका शरीर कटता है तो खून गिरता है और उसमें से और बहुत सारे रक्तवीज खड़े हो जाते हैं
00:35:19अब जो है एक विशेश वृतान ताता है जिसका भारतिय लोक मानस पर बड़ा गहरा असर रहा है चाप पड़ गई है बिलकुल काली देवी अब आविर्भूत होती है
00:35:44अबिका के ही शरीर से काली प्रकट होती है और काली के जितने मंदिर होंगे वहाँ पर आपने देखा होगा उनके हाथ में क्या है एक खपर है ठीक
00:36:04और उसमें रक्त है और वो रक्त पी रही है तो वो सारी जो किमवदंती है वो आ रही है
00:36:13सब्चती से और रक्त पीज से तो इतने सारे जब रक्त पीज पैदा हो जाते हैं तो काली कहती है
00:36:22कि एक ही तरीका है तो मारो इसको जहां इसका खून गिरेगा मैं खून पी जाओंगी
00:36:27और जब मेरे मुह में भी खून गिरेगा तो वहां रखतवीज प्यदा हों गए और मिरे मुह के भीतरी उनको मैं खा जाऊंगी
00:36:35तो काली जो मास खाती है वो ऐसा होता है वो रख्तभीजों kan मास होता है
00:36:43तीसरे ही चरित्र में एक जगह पर साफ-साफ वर्णे थे की काली
00:36:49अभी कुछी महीने फहले एक बहस भी छिडि़ी थी
00:36:55बड़ा विवाद उठा था
00:36:57कि काली तो भई मास खाती है
00:37:02और शराब पीती है
00:37:03काली कौन सा मास खाती है
00:37:04काली रक्तवीजों का मास खाती है
00:37:06काली के नाम पर
00:37:08मासाहार को उचे ठहराना
00:37:11मूर्खता भी है
00:37:13हिंसा भी है, कपट है
00:37:15काली जो मास खा रही है
00:37:18और आक्षसों का मास खा रही है
00:37:19रक्तवीज का मास है
00:37:21और काली जो मदिरा पी रही है
00:37:24सब्शती साथ साथ बताती है
00:37:27कि असुरों का रक्त ही मद है
00:37:30असुरों का जो रक्त है वही मदिरा है
00:37:33ये नहीं कि वो बाजार से आके मदिरा पी रही है
00:37:36अभी नौदुर्गा के दिनों में शराब की विक्री बहुत बढ़ जाती है
00:37:40और ये जितने पीने के शौकीन है
00:37:45शायद ये अपने आपको यही तर्क देते होंगे
00:37:48कि जब मा पीती हैं काली मा पीती हैं
00:37:50तो हम क्यों नहीं पी सकते अभी तो काली मा के दिन चल रहे हैं
00:37:54काली मा पीती हैं असरों का रक्त
00:37:57और तुम हो कायर आदमी
00:38:02और कायर क्या कर रहा है
00:38:06वो अधर्मियों का पापियों का रक्त तो पी नहीं सकता
00:38:13तो वो काली के नाम पर शराब पी रहा है
00:38:16और काली की पूजा करने अलों ने खूब कराया, काली के नाम पर मदिरा पी है
00:38:20काली का पूजन कर रहे हो, कम से कम एक प्रतिशत तो काली मा जैसे हो जाओ
00:38:26तब तो पूजा की कुछ सार्थक्ता मानी जाए, है ना
00:38:31तो ये बहुत दूर तक बात जाती जो रख्तवीज की है देख रहो क्या किया जाता है आम तोर पे जो घृणित होता है जो पापी होता है जो शत्रू है तुम्हारा उसको तुम मारके दूर फेक देते हो
00:38:45लेकिन भारतिय जनश्रुति में और दोनों पौराणे की कहानिया है दो बड़े सशक्त प्रतीक आते हैं जिन्होंने जो घृणित था कुट्सित था त्याज्य था उसको मारके फेक नहीं दिया उसको अपने भीतर पी लिया
00:39:11एक तो ये काली का वृत जो रक्त बीज का रक्त सारा पी जाती है और दूसरा महादेव शेव की बात
00:39:21जो सागर मन्थन के उपरांत जो हलाहल विश निकलता है जिसको कोई कहीं रखनी पारा होता
00:39:35जो इतना तीक्षण होता है कि पूरी दुनिया को नश्ट करे दे रहा होता है उसको लेकर के अपने गले में बैठा लेते हैं पी जाते हैं तो ये बात बड़ी दूर तक जाती है
00:39:53प्रतीक कई तलों वाला है इसमें आप उगेड़ते चलेंगे तो एक के बाद एक बात खुलेगी
00:40:03कि दित्व कोई भी कर सकता है कि जो बुरा था उसको दूर फेक दिया अच्छी बात है करना भी चाहिए
00:40:13कि बुरे को अनुमती दे दो की बुरा तुम्हारे उपर च् falling
00:40:17है कि तुम्हें भी बुरा बना दे वो इससे अच्छा यह है कि बुराई को स्वयम से दूर फेक दो हम कहते हैं ना कि बुरी संगत से बचो वह अच्छी बात लेकिन बुरी संगत से और बुराई से और पाप से
00:40:35निपटने का एक और बड़ा विरल अद्बुद और सबसे उंचा तरीका होता है जो सबके काम का नहीं होता है आम आदमी के लिए तो इतना ही परयाप्त है कि बुराई से दूर हो जाए
00:40:48जो उच्छतम है जो शेष्ठतम है जो सबसे सशक्त है वो क्या करता है वो बुराई को गले लगा लेता है ये काम आम आदमी नहीं कर सकता
00:41:09आम आदमी बुराई को गले लगाएगा तो बुराई आम आदमी को बुरा बना देगी आम आदमी जहर पिएगा तो जहर उसे खा जाएगा शिव जब विशपान करते हैं तो वो विश की विशता को समाप्त कर देते हैं काली जब रक्तपान करती हैं तो नए रक्तबीज वो �
00:41:39भारत ने ये इस्थिति भी जानी है कि तुम ऐसे भी हो सकते हो और ऐसा तुम क्यों नहीं हो पा रहे हो के दिखाओ ना
00:41:52कि बुराई से भी तुम्हें दूर नहीं जाना पड़े तुम बुराई को पचा जाओ ऐसे हो जाओ
00:41:58लेकिन ये जो उच्चतम आदर्श है ये सिर्फ बिरलो के लिए है आम आदमी है करने लग गया कि काली ने रक्त पिया था रक्त बीज का तो हम भी रक्त पियेंगे तो बड़ा उपद्रव हो जाएगा ये आदर्श आम आदमी के लिए नहीं है लेकिन फिर भी आदर्श महत्
00:42:28भी घातक नहीं है कि आपको बचे बचे घूमना पड़ेगा एक दिन यदि आप साधना करते रहें आप ऐसी स्थिति पर आ सकते हैं जहां पर बड़े से बड़ा विश्वी आपके ऊपर प्रभावहीन हो जाएगा जहां पर बड़े से बड़ा राक्षस भी आपके भीतर जा
00:42:58कि रक्तबीज की कहानी इतनी प्रचलित हुई पूरी सब्चती से जो दो चार बातें जो दो चार उलेक सबसे ज्यादा प्रचलित हुए हैं उनमें एक रक्तबीज का है
00:43:15कौन है रक्तबीज रक्तबीज वो है जिसको यदि पचाया नहीं तो अपनी संख्या में गुणोत्तर वृद्धि करता रहेगा उसको मारने का एक ही तरीका उसे पचा दाओ उसे मारोगे तो बढ़ जाएगा
00:43:34मारोगे तो बढ़ेगा पचाओगे तो समाप्त हो जाएगा मारना भी कोई छोटी बात नहीं है आम आदमी तो मार भी नहीं पाता आद आदमी तो मारा जाता है
00:43:45तो मारना कोई छोटी बात नहीं है, पहले मारना ही सीख लो, पहले जो बुरा है उसको दूर करना ही सीख लो, लेकिन जब और आगे बढ़ोगे जीवन में तो पाओगे कि दूर करने से बात बनने ही रही है, कई बार जिसको दूर करते हो वो दूर हो करके और शक्तिशाली हो
00:44:15बुरे आदमी की संकत नहीं कर रहे तो मुंसे दूर छोड़ देते हो तुमसे दूर है कि वो और क्या हो जाएगा और ज्यादा बुरा हो जाएगा ना तो ऐसे तो संसारें बुराई बढ़ती ही चली जाएगी तो फिर साधुता का प्रमाण यह होता है कि जिसको बुरा देख
00:44:45विवेक सिखना पड़ता है ना विवेक माने क्या होता है किसको पास रखना है किसको पास नहीं रखना है लेकिन एक स्थित आती है साधुता की या उचाई की या शुद्धता की आंतरिक जब विवेक की आवशक्ता नहीं रहती है यह आप कहते हो कम एजिवार यह सुना है
00:45:15इसने जीवन भर शुद्धता का बड़ा अभ्यास करा होता है
00:45:21वो कहता है कि जीवन भर उसने यही कहा होता है
00:45:25कि जो सुपात रहूंगे और जो उच्छे लोग होंगे
00:45:28मैं तो सिर्फ उन से बात करूँगा शिक्षा भी मैं उन्हीं को दूँगा
00:45:30पिर उसके मृत्यों की घड़ी आ जाती है
00:45:32अब मरना है
00:45:33तो मरने से बस सोड़ी देर पहले वो उठता है
00:45:37अपनी मृत्यों शहिया से और बादार में आ जाता है
00:45:41और बुलता है जो जैसा है आओ सब आओ
00:45:44सब से बात करूँगा
00:45:46तो एक चोर आ जाता है उसके पास, एक जुवारी आ जाता है, उसके पास यहीं लोग खाली होते हैं
00:45:51आप सड़क पे जाके बुलाओ के जो जहां है आ जाओ
00:45:54तो जो लो लोग काम धंदों में लगे होंगे, दफ्तरों में होंगे, कुछ कर रहे होंगे थो आ नहीं हाँगे
00:45:59यही आ जाएंगे जो अपना मुवाली घूम रहे हैं, भेरोजगार
00:46:08और वो ऐसों को ही ग्यान दे करके, बिल्कुल प्रकाशित कर देता है
00:46:13ये लेकिन अंतिम बात है, ये मौत से बिलकुल पहले की बात है, माने मुक्ते की दशा की बात है ये, तो ये चीज मुक्त को ही शोभा देती है, कि वो फिर पचा ही जाए, पचा ही जाए, वहाँ तक आना चाहिए सब को, हर आदमी अगर गंदगी से बचता रहेगा,
00:46:36तो जगत बहुत गंदा हो जाएगा, इसी क्रम में मुझे धूमी ले आदाते हैं, अभी कुछ दिन पहले भी मैंने उद्रत किया था,
00:46:51कि जो आदमी अपना हाथ मेला होने से डरता है, वो एक नहीं, ग्यारह काईरों की मौत मरता है,
00:47:01काली से जैसे प्रेरणा लेकर ही धूमिलने ये बात कही हो,
00:47:12अपनी और से वो धार्मिक आदमी नहीं थे, लेकिन ये जो बात कह रहे हैं वो, ये बात है तो बड़ी धार्मी की,
00:47:23धर्म की उचाईयों की बात है ये बिलकुल,
00:47:28तो काली उस शुच्टावादी मानसिक्ता के लिए नहीं है,
00:47:36जो व्यक्तिगत मुक्ति, व्यक्तिगत साफ सफाई, और व्यक्तिगत शुद्ध में विश्वास रखती है,
00:47:47काली तो वो हैं, शक्ति वो हैं, और शिव वो हैं,
00:47:54कि जो जग के दूशन हैं, वो शिव के आभूशन हैं, और शिव से ही काली आविर्भूत हैं,
00:48:12ठीक, तो शिवत तो किसी में आ रहा है, ये तभी मानना, जब वो जग के दूशन को अपना आभूशन मना ले,
00:48:20दुनिया से जितने परित्यक्त हों, उनको करें सब आओ,
00:48:26और तुम तो एक साप बुला लिया है, अब साप को एपने घर में रखना चाहता है,
00:48:31साप किसी किया निकले तो क्या करा रहा है, अरे अरे अरे आईए महराज, आईए, रसोई में आईए, खाईए, पीजिए, फिर बिस्तर पे विराजिए, सोएंगे, क्या करेंगे, बताइए, पंखा तेज कर देंगे, आपके लिए,
00:48:40कंबल उड़ेंग, ऐसे होता है, साप दिखते ही धार्मिक से धार्मिक आदमी क्या करेगा, भगाओ, साप वो है जिसको सब भगाना चाहते हैं, भले ही आप उसको धार्मिक स्थान देते हों, और पूजा भी कर लेते हों, लेकिन घर से तो भगाई देते हैं, साप को शिव
00:49:10पर होन्के साथ कौन लगे हुए सब भूत प्रेत यह सब दुनिया से निकाले उए लोग है
00:49:27प्रतीक समझी एगा जिनका कोई नहीं नहीं है उनके है और पशु है कुश्चिध के पास नंदी हैं दुनिया पशूं के साथ भी क्या बरताओ
00:49:38करती हैं जानते ही हैं आज भी गौवंश के साथ क्या बरताव हो रहा है हम सडकों पर देख लेते हैं श्रीव ने का बैठो मेरे पास बैठो कि दुनिया जिसके साथ भी अत्याचार करें दुनिया से जो भी बहुश्कृत हो
00:49:53मेरे पास आज यह भाव समझना यह वही भाव है जिसका राणों नीलकंट है जैसे गले में यहां जहर है ना वैसी आसपास भूत प्रेत ना तुम जहर पी सकते और ना तुम भूत प्रेत अब भूत प्रेत का मतलब यह नहीं कि भूत प्रेत होते हैं और वहां भूत प्रेत �
00:50:23जो जहां मिल जाए वहाँ ने डंडा लेके भगाया ही जाएगा जिनसे पूरी दुनिया डरती है
00:50:27शिव उनको अपना साथी अनुचर दास गण बनाए हुए है
00:50:35मादारी समझ बना और दुनिया जिन चीजों को महत्तो देती है शिव के लिए महत्तोहीन है
00:50:44क्या करें वाँ बैठे हुए है आसन तक ठीक से नहीं है
00:50:53पत्थरों पर बैठें और महल तो छोड़ दो साधारन घर तक नहीं है
00:51:03कपड़ों के नाम पर क्या है छाल
00:51:11यह समश्टिगत हो जाने की पराकाश्था है
00:51:25यह वयक्तिक सत्ता का वित्गत अहंकार का पूर्ण लोप है
00:51:35मैं निर्विकल्प हो गया
00:51:40जो कुछ है सवस्वीकार है
00:51:46सर्वग्राह सर्वस्वीकार
00:51:51इनके प्रति मेरी करुणा ही यह है कि इनको अपने पास बैठा लूँ एक ज़िए पर सब्चति कहती है देवता जाकर के देवी से कह रहे हैं कि देवी हम जान गए पी पिछले चरित्र में बात है कि देवी हम जान गए हैं कि तुम यह जो राक्षास्ण को भी मारती हो यह
00:52:21तुम्हारे खडग से मारे जाकरके इनकी मृत्य पवित्र हो जाती है और यह स्वर्ग को प्राप्त करते हैं तो रक्तबीज को समाप्त ना करो तो अपने लिए और मुसीबत ही तयार करेगा ना तो काली उसे समाप्त करती है अपने इस शरीर का हिस्सा बना करके आ तेरा र
00:52:51इतना प्रेम होता है किया किसी में आम तोर पर तेरी सारी कुटसा अब मेरी हो गई तू तो नक से लेकर के शिख तक विकारों से भरा हुआ था ना तेरे सारे विकार मैंने अपना लिये और मैं इतनी शुद्ध हूं कि तेरे सब विकार अपना के भी मैं निर्विकार ही रह
00:53:21अब दूर से देखो के तो लगया कि रख्टवीज का वध किया।
00:53:25लिकिन जिनके पास देखने के लिए भीतरी आखें भी हैं।
00:53:30उन्हें कुछ और भी दिखाई देता है।
00:53:32वध तो क्या ही किया। उसे पूरा सुईकार कर लिया।
00:53:35उसे अपने में मिला लिया।
00:53:38अभी अपने मिलाना वैसा ही नहीं है।
00:53:40जैसे शेर हिरन को अपने मिला लेता है।
00:53:42तो कुतर्क मत करने लग जाना कि ऐसे तो शेर भी हिरन को इतना प्रेम करता है।
00:53:46तो कहता है आ तेरा शरीर मेरा शरीर बन जाएगा।
00:53:48यहां बात बहुत अलग है।
00:53:51बाद बिलकुल दूसरी शेर को अपनि भूक शान्त करनी है, काली अपनी भूक नहीं शान्त कर रही है
00:53:58शेर प्रकृति के कारण वध कर रहा है, काली धर्म के लिए वध कर रही है
00:54:09शेर वहोष है, अचेतन है, वो प्रकृति दौरा संचाले ते क यंत्र भर है
00:54:15वो इसलिए हिरन के पीछे दोड़ रहा है
00:54:18काली
00:54:20चैतन्य है
00:54:22वो इसलिए एक घोर युद्ध में संग लगन है
00:54:27तो दोनों बातों में बड़ा अंतर है
00:54:29तो
00:54:32ऐसे करके फिर रक्तभीज का भी वद होता है
00:54:36और उसके बाद आते हैं फिर अब लड़ाई के लिए
00:54:38कौन स्वयम शुम्भ निशुम्भ
00:54:42अचारे जी इस से पहले मेरे पास एक प्रश्न था
00:54:46अभी तक जो पुरी चड़चा हुए है उसमें
00:54:48आपने बहुत खुबशूरती से जितने भी प्रतीक है
00:54:52वो किस तरह से हमारे जीवन में ही एक बदलाव आई
00:54:55उसकी ओर एक इशारा कर रहा है पर अपने जैसे एक समुद्र मंथन की काहनी की बात करी जहां पर एक प्रक्रण यह आता है कि
00:55:02शिव जी हला हल जो विश होता है उसको अपने गले में रख लेता है कोई विक्ति यदि इस ही जो चीज थी अपने गले में विश रख लिया इसको यदी संकेतिक ना समझ कर इसका जीवन पर प्रभाव फुड़ना चाहिए उसको ना देखकर उसको इस तरह दिखाने लगे
00:55:32में सांकेतिक हैं इनको स्थूल मत बना दो क्या बोलना चारे हो कि शिव का शरीर विशेश है उन्होंने कुछ साधना या योग करके अपना शरीर ऐसा बना लिया है कि उस पर विश्का प्रभाव नहीं पड़ता यह मुर्खता पूर्ण बात है यह हमने एक बहुत उंचे �
00:56:02इस एक ऐसे प्रवल योगी है जिन पर विश्का प्रभाव नहीं पड़ता नहीं । नहीं यह बात नहीं है लाइस भी उस्पउशरिर एक फोड़ें थैं
00:56:11शिव कोई शरीर है क्या शिव कोई व्यक्ति है क्या
00:56:15शिव सनातन बुद्धिका सनातन बोध से उठा प्रबलतम प्रतीक है
00:56:30शिव कोई जीव थोड़े हैं हमारी तुमारी तरह कि एक व्यक्ति हैं वहां केलाश परवत पर विचरन कर रहा है
00:56:35यह हम कैसी विर्थ की बात कर रहे हैं
00:56:37यह अनादर है शिव का ऐसे बोलना
00:56:39ऐसे नहीं बोलना चाहिए
00:56:40शिव बोध मात रहें
00:56:48आचारे शंकर ने
00:56:51क्या कहा था
00:56:53निर्वान शटकम में
00:56:55महां से तुम्हें पता चलेगा शिव कौन है
00:56:57यह ने कहा
00:56:59ना मैं आख हूँ
00:57:05वह एक के बाद एक जहां
00:57:08चाह रग आते हैं
00:57:11छहो हो शारीरिक भातिक वरगों को नकաरते हैं
00:57:14कि मैं यह भी नहीं हूं
00:57:15सबकुछ नकारने के बाद
00:57:18चहों बार अंस्त में क्या बोलते हैं
00:57:21मैं शिव हूँ
00:57:21जब आप शिव कौन है
00:57:25जो कुछ नहीं हो शिव है
00:57:26जिसके आखों से देख नहीं सकते, जिसके बाद शरीर नहीं है, जो मन और बुद्धि से परे है, जिसकी कलपना भी नहीं किया सकती, जो पाप पुन्ने से परे है, जो धर्म धर्म से परे है, जिसकी कोई जाती नहीं है, जिसका कोई लिंग नहीं है, वो शिव है, वो है शि�
00:57:56कोई जीव ही शिव हो, हम आप जीव होते हैं, हम आप निचले तल के प्राणी हैं, शिव नहीं जीव हैं, शिवो हम बोलने का अधिकार सिर्फ उसको है, जो जीव से संबंधित, सब वस्तु विशयों को मिथ्या जानकर नकारना शुरू कर दे, मात्र वो शिव है, तो फिर श
00:58:26सत्य और आत्मा के लिए एक अन्य नाम है शिव ठीक है जब मैं शिव कह रहा हूं तो उससे मेरा आशे बिलकुल ऐसा नहीं है जैसे कि सच मुझ कोई आतिहासिक चरित्र हुआ था शिव नाम का ना बिलकुल भी नहीं इसका मतलब तो फिर ऐसा हुआ कि शिव जी को योगी बो
00:58:56योग तो वो करता है ना जो वियोग में होता है शिव योगस्थ है योगस्थ बोल तो फिर भी ठीक आत्मा के लिए एक और नाम होता है योगस्थ
00:59:14कि जिसके दो टुकड़े नहीं है जो युक्त है वो आत्मा है वो तो फिर भी ठीक है पर कहोगी योगी है और योग कर रहे हैं ये तो बड़ी अभद्रता हो गए यह से कहना
00:59:29आगे बढ़ें
00:59:44जैसे यह जैसे कि आप बोल रहे थे कि रखत बीच के बारे में बता रहे थे आप बता रहे थे लिए
01:00:14तो जैसे हमारे रीजिन लेक तेलंगाना में है रवाद में बोनालू करके एक फेस्टिवल होती है जिसमें मांकाली के मंदिर के अंदर बली देते हैं जैसे पशु के मुर्गा हो या बक्रियों उसका जो बली ऐसे भी देते कि वो जो देवी आती उनके ओपर देवी चड�
01:00:44मुसे ही यहां पर गर्दन पकड़कर कीच के और उसका रक्त पीना ऐसा कुछ करते हैं उसकी गर्दन में सीधे दाट लागे हाँ पीदे मुर्गे का हाँ मुर्गे का डिरेक्ली तो जैसे आप बोल रहे थे कि यह पुरान लुग
01:01:03कुछ बातें ऐसी होती है जिनके जिनके सामने में आवाक रह जाता हूँ मेरे पास कोई जवाब नहीं होता एक स्तर की बात हो तो उस पर कुछ बोला भी जाए अब यह जो तुम बता रहे हो इसका मैं जवाब क्या दूँ
01:01:24कहां काली कहां काली की गरिमा काली जैसा सुन्दर और गहरा प्रतीक और कहां काली के नाम पर ये वीभत सु कुरूरता
01:01:42पहली बात तो ये बात कितनी कितनी कुरूर है और हिंसक है और असब्य है और दूसरी बात इस बात से आप नाम किसका जोड़ रहे हैं मा काली का ये अक्षम में हो गया
01:02:06प्रकृतिका प्रतीक है काली और आप प्रकृतिके ही ये नन्ने मुन्ने बच्चों को ला करके जिन्दा जीव की गर्दन में दात गड़ा के उसका खून पी रहे हो और कह रहे हो इससे काली प्रसंद हो जाएंगी इससे काली प्रसंद होंगी
01:02:28मैं बड़ा प्रियास किया करता हूँ
01:02:34कि सहीत रहूँ
01:02:37पर ये एक चीज है
01:02:40जिसके सामने मुझे क्रोध आई जाता है
01:02:42अब सिर्फ उस पर अत्याचार इसलिए कर पा रहे हूँ
01:02:49क्योंकि यो छोटा है और कमजोर है ठीक
01:02:52अभी दूसरे ग्रह से आप से कहीं ज्यादा शक्ति संपन कोई एलियन आजाए
01:03:00और वो भी जानवर जैसा ही दिखता हूँ
01:03:03हमें तो अपने अलावा सब जानवर ही लगते हमी हैं बस अकेले
01:03:08और वोगी जामर जैसा इसा कोई ले ना जाओ समें शक्ति लेकिन बहुत ज्यादा और बुद्धि बहुत ज्यादा हो, तुम उसके साथ ये कर पाओगे, यह सब कुछ भी नहीं यह, बस यह है कि कमजोर मिला, उसको खाजाओ, जामरों जो कमजोर मिला, उसको खाजाओ, इंस
01:03:39और कोड में खाज ये कि इस सब को धारमिक्ता का नाम दे दो.
01:03:45कि ये तो जी साहब धर्म में लिखा इसलिए हम करते हैं.
01:03:48ये भी मत बोलो कि ये तुम्हारे भीतर का जानूर तमसे करवा रहा है.
01:03:52ये सब तुम्हारी पाशोित्ता का उपद्रऊ है.
01:03:54इसके साथ क्यों काली का नाम जोड़ रहे हो काली तो इस पूरे जगत की मा है उनके बच्चों के साथ तुम ये दुराचार कर रहे हो
01:04:07मा प्रसंद होगी इससे
01:04:10उपर से इसमें बात यह कहते हैं कि मेरे उपर पहले देवी उतरी और उसके नहीं ने करवाया यह
01:04:24देवी ने रक्त बीज का रक्त पिया था मुर्गे का रक्त थोड़ी पिया था
01:04:31प्रक्रति को तो वो भचाना चाहती है तुम प्रक्रति का
01:04:38नाश कर रहे हो देवी के नाम पर यह देवी के प्रतिक कितने अपमान की
01:04:42बात है कौन से मंदिर बता रहे थे बेगु सराय में ना बिहार में
01:04:53बेगु सराय में बहुत पुराना मंदिर है देवी का ही दुर्गा मंदिर है और उसमें पांच सो हजार साल पुरानी परंपरा थी कि वहाँ पर इन दिनों में जीव की बली दी जाती थी
01:05:13और इस साल हुआ है कि मंदिर के प्रबंधन ने तै करा है कि नहीं फल सबजियां गन्ना इस तरह की कुछ चीजें हैं यह हम अर्पित कर देंगे यह बली हो गई जीव हत्या नहीं करेंगे
01:05:33और यह बात और पहले भी हो चुकी इससे पहले भी बहुत सारे और मंदिर रहें बड़े मंदिर भी रहें जिन्होंने स्वीकारा है कि जीव हत्या करना बली देना पिछड़े पन की अज्ञान की अहंकार की कुरूरता की निशानी है ऐसी कोई भी परंपरा चाहे कितनी भी
01:06:03जिनमें पहले बड़े जानवर भी कटते थे उन्होंने के दिया नहीं यहां पर अब बली नहीं चलेगी और मैं समझता हूं आने वाले समय में लगभग सभी मंदिरों में भारत के जहां अभी भी बली जैसा दुश्कृत्य होता है पशु बली जैसा वहां यह सब बंद हो
01:06:33करती से आता है ने कि नहीं कुछ गलत कर रहा है तो अगा नहीं रहता कुछ विरोध उठेगा अहंकार तो करता ही आई सा उसी गलती겠다
01:06:42कुछ समय तक अड़ा रहेगा लेकिन फिर देर सब अपनी गलती मान लेता है यही वजय है कि हिंदु धर्म में बहुत सारे सुधार कारेक्रम संभव हो पाए
01:06:54स है और हिंदु ने उन सुधारों को स्विकार्वी कर लिया भले वड़े लगे राजा रामाह對 सब श्रू करो तो राम हंवेर सवयल अंसर शुति समय गांधी जिर है जैनती की उप लक्षपर अभी कालीती गांधि जैनती तो
01:07:17बाबा साब हम बेट कर जोती बाब फुले सबको स्वीकार करा विरोध किया लेकिन स्वीकार करा
01:07:30कि हम मानते हैं गलति है हम स्वीकार करते हैं तो मुझे आशा है कि यह जो पशुबली को यह पैसे तो बहुत हद
01:07:41तक बंद हो चुका है गौर्णमेंट ने भी बैन कर रखा है लेकिन फिर भी जहां चोरी शुपय भी चल रहा है वहां बंद होगा इतना ही नहीं मैं तो यह आशा रखता हूं प्रार्धना करता हूं कि सनातनी होने का एक दिन
01:08:00यह अर्थ ही बन जाएगा और प्रमाण बन जाएगा कि आप किसी भी जीव को जानते बूझते नुकसान नहीं पहुचाते अज्ञान में और प्रक्रतिवश प्रारब्धवश कोई जीव आपके हाथों मारा गया उसमें तो आप कुछ कर नहीं सकते क्योंकि आपने कोई चु
01:08:30कर और नन्हें कोई जीवान हुँ रहे हो मेरे बैठने कारण मर गए पिसकर उसका मैं कुछ कर नहीं सकता हालां कि मैं कोशिश करूँगा कि वह भी न्यूंतम हो जाए चीटी भी नमरे लेकिन फिर भी चीटियां तो शायद मरी जाए मैं यह भी चाहूंगा कि पेड़ पौ
01:09:00हानी पहुचाना जानते बूचते जहां विकल्प मौजूद है और आप हानी का चुनाओ करते हैं एकदम गलत है बिल्कुल अधर्म की बात है और अगर शून्ने नहीं कर सकता अपने हाथों हो रही हिंसा को तो कम से कम न्यूनतम जरूर कर दूँगा यह सनातनी होने की पह
01:09:30कि शरीर के निर्वाह के लिए कुछ तो आपको खाने ही पड़ेगा लेकिन उस खाने पीने के चैन में भी सनातनी ध्यान रखेगा कि जो कम से कम हिंसा हो सकती है वो हो थोड़ी भी हिंसा हो रही है तो पाप है पाप की गठरी और बड़ी क्यों करनी है पहले ही पाप की ग�
01:10:00इसमें क्या कहा जा सकता है?
01:10:07तो फिर जे बली क्या होता है?
01:10:11बली की चर्चा तो खूब कर चुके हैं, कैमरे के पीछे थे तो तुमने पूरा सुना ही होगा
01:10:15बली माने क्या है? वो जो कुछ भी तुम्हारे भीतर है जो रखने लायक नहीं है
01:10:20इसको त्याग दो यही बली है
01:10:22यही बली है
01:10:23अब तुमने पूछ लिया है तो एक ऐसी बात को लेक करे देता हूं
01:10:26जो अभी आगे आती पर अभी पता देता हूं
01:10:29तो यह जो दोनों जने हैं दिनकी जिग्यासा से इस पूरे प्रक्रण का आरंब होता है
01:10:39कौन है राजा सुरत और वैश्य है समाधी नाम से यही दोनों आए दोनों परिशान है तो इनहीं की परिशानी दूर करने लिए रिशी इनको मा के विवारे में विस्तार से बता
01:10:51बता रहे हैं तो अंत में ये दोनों साधना करते हैं फिर मा की और सब्चति कहती है कि
01:10:59इस साधना में इन्होंने प्रोक्षित बली में अपने रक्त का उपयोग करा प्रोक्षित व्य वह होता है जिसकी बली दी जाती है
01:11:10तो इन दोनों ने अपने ही शरीर की बली दी
01:11:15शरीर की बली कैसे दी
01:11:16गरंथ हमें बता रहा है कि दोनों ने खाना पीना बिलकुल कम कर दिया
01:11:20ये होती है बली
01:11:22ये मास्क की बली है
01:11:25किसके मास्क की बली दी जा रही है
01:11:26अपने ही मास्क की काट के भी नहीं
01:11:29दोनों ने अपना देह भाव कम करने के लिए अपना खाना पीना कम कर दिया और इसी को ग्रंथ कहता है कि दोनों ने अपने ही शरीद की बली दे दी दोनों ने अपने मास की बली दी यह होती है बली जो चीज तुम अकार और पकड़े बैठे हो जिस चीज से तुमने बहुत म
01:11:59क्या है अपना हंकार और हंकार को सबसे प्यारा क्या है पहली चीज तुम्हारा शरीर तुम यही तो कहते हो मैं हंकार हूं और हंकार कहता है मैं देह हूं तुम कहते हो मैं हूं हंकार मेरा अहम अहम अहम अपना परिचे जब भी देते हो तो शुरुआत अहम शब्द से करते हो
01:12:29या अपने देहभाव की, इसमें जानवर कहां से आ गया बीच में, वो भी नन्हा, बेजुबान, उसको पता भी नहीं है, उसकी आँखों की तडब देखो, वो अपने परफड़ पड़ा रहा है, वो जीना चाहता है, उसने कुछ नहीं विगाड़ा था, तुम उसको ला करक
01:12:59आसकती बैठा लिये, जिससे लिप्त हो गए वो वेर्थ ही, उसको त्यागना ही बली है, और ये बात गरंथ बार बार जोर जोर से कहते हैं, दोरा दोरा के चिला के कहते हैं, कि बली की सही परिभाशा है, लेकिन इनसान ने बली के नाम पर जानवरों काटना शुरू कर दि
01:13:29चलो ठीक है, जब सबसे पहले दिन आपसे इस विशे में चड़शा शुरू ही थी, तो मैंने आपसे चीज पूछी थी कि क्यों ऐसा हुआ कि जब गरंथ इतनी साधारन बात कर रहा है, तो लोग गरंथ से दूर क्यों चले गए तो शायद उसका एक जो वजह है वो ये भी
01:13:59बहुत सारे लोगों ने वैदिक रिचाओं को उठा करके अब ये सिद्ध करनी कोशिश किये कि वेदों में भी तो मासाहार का उलेख है, एक लगभग एक घंटे की मैंने चर्चा करी थी अभी 2-3 महीने पहले ही, वो रिकॉर्ड भी हुई थी, जिसमें मैंने जितने क्रं�
01:14:29पशुओं को मतमारना इसका नाम बली नहीं है, और वास्तविक बली क्या है, ये भी ग्रंथों से उध्रत करके समझाया था, इस मामले में गायतरी शक्तिपीठ के श्री राम शर्माचारे जी है, उन्होंने एक छोटी सी पुस्तिका है, पशुबली नाम से ही, सबसे पहले
01:14:59अधर्म है तो अधर्म क्या, इस ही तरह का, ढूनों के यूट्यूब पर तो मिल जाएगा, तो उस वीडियो को देख लो, या ये जो पशुबली नाम की किताब है, इसको पढ़ लो, तो उस वीडियो से भी जादा उस किताब में तुमको उलेख मिलेंगे, कि किस किस तरीक
01:15:29पर हमारे ग्रंथ, जीव हत्या को निशिद्ध करते हैं, और इनसान इतना नालायग हो गया है, कि अपनी जबान के स्वाद को जायस ठहराने के लिए ग्रंथों का ही सहरा ले रहा है, लोग आचकल निकले हुए हैं बताने के लिए कि देखे साहब आप तो ये भी खाते थे
01:15:59कृक्तियां कर रहे हैं, जानबूज करके, तो अब खुद ये दोनों आ जाते हैं, भाई, शुम्ब निशुम्ब, रक्तवीज का संगार हो गया, अब ये दोनों आ जाते हैं,
01:16:29जैसा होना ही था, दोनों मारे जाते हैं, तो इस पर भी एक पूरा ध्याई समर्पित है कि दोनों किस प्रकार से उद्ध करते हैं, कौन से शस्त्रों का प्रयोग करते हैं, फिर फरसा भेचते हैं, फिर खडग मारते हैं, फिर ये, फिर वो, अंत लेकिन वही होता है, जो हो
01:16:59उमरे नदिया साफ हो गई सूर्य की प्रभा निखर कर सामने आ गई हवा शीतल हो गई पहाडों की और वनों की जो दुरुदशा थी वो ठीक हो गई यह तुम देख रहे हो इशारा किधर को है यह सीधे सीधे जो आज जलवाई परिवर्तन है क्लाइमेट चेंज उसकी बात �
01:17:29आज जो आदमी यह जो आज का इंसान है जो राक्षस बना हुआ है इसने हवा खराब कर दिये नदी खराब कर दिये समुद्र खराब कर दिया है सारे जानवर मार दिये सारे जंगल काट दिये
01:17:40और इस राक्षास को जब तुम हटा दोगे
01:17:45तो सूरज की रोशनी भी अच्छी हो जाएगी
01:17:48चांद तारे साफ दिखाई देंगे
01:17:50नदियां साफ हो जाएगी
01:17:52जो नदियां विलुप्त हो गई हो फिर बहने लगेंगी
01:17:55जो वन तुमने उजार दिये हैं
01:17:59वो फिर हरे हो जाएंगे
01:18:00अज़ो प्रजातियां विलुप्ती हो गई जीवों की
01:18:03अब वो तो वापस नहीं आने की
01:18:04लेकिन देख रहे हो कि
01:18:07शुम शुम क्या कर रहे थे
01:18:08उनके जाने के बाद यदे
01:18:11प्रकृती ठीक हो गई
01:18:12तो माने वो दोनों राक्षस कर क्या रहे थे वो प्रक्रति ही तो बर्बाद कर रहे थे तो राक्षस कौन है फिर जो प्रक्रति को बर्बाद करे यह भी तो कह सकती चपती ना कि यह दोनों राक्षस मर गए तो देवता हर्शित हो गए और दुनिया भर के जो मनुष्य थे उ
01:18:42जो बर्फ थी जो बर्बाद हो गई तो बर्फ ठीक हो गई हवा ठीक हो गई जो गंदगी प्रदूशन फैला हुआ तो प्रदूशन मिट गया जैसे आज जो हम पर्यावरण की शति कर रहे हैं वो रिशियों ने बहुत पहले देख लिया हो और जैसे राक्षास की पहचानी �
01:19:12पर क्या होता है अब यह सब बता दिया मिधा मुनी ने तो राजा और वैष यह दोनों को बाद समझ में आ गई
01:19:25कि हमारी जो समस्य आ हमें दूख और बंदन है वह माकी प�rati मां मानी प्रकृति के प्रकृति मां ने यहीजो सब कुछ है इस
01:19:40और फिर साधना करते हैं, मा की साधना करते हैं, मा की साधना ही आत्मग्यान की साधना ही, क्योंकि आत्मग्यान में किसको जाना जाता है, यही अपनी पूरी विवस्था को, आत्मग्यान में आत्मा नहीं जानी जाती है, आत्मा तो अग्ये होती है, तो मा की साधना करते हैं,
01:20:10बात अभी पूरी समझ में आई नहीं है, वो बोलते है मेरा राज छिन गया, राज दिला दो वापस, जो चाहोगे मिलेगा, जो मुझसे जो मांगेगा, मैं उसको बो दे देती हूं, ये बात और किस ने कही है, श्री कृष्णे कही है, तो मा भी यही कहती है, तुम जो मांग
01:20:40मुची चीज है किसका कितना दाम लगाना चाहिए, जानते हैं, दुनियादारी में राजा से आगे है, वैशे बोलते हैं, नहीं भाई, दुबारा उसी दुनिया में दिल नहीं लगाना है, मैं आना सक्त हुआ, मुझे मुक्ति दो मा, मुझे मुक्ति दो, अब मा यहां क्य
01:21:10बहुमूल ये प्रतीकों की दुर्गा सब्चती
01:21:15देवी कहती है ठीक है तुम्हें मुक्ते चाहिए तो मैं तुम्हें ग्यान देती हूँ
01:21:21देवी भी यह नहीं कहती है कि तुम्हें मुक्ते चाहिए तो मैं तुम्हें ततकाल मुक्ते दे सकती हूँ वर्दान में
01:21:26देवी है कि भी वह � Alg THE पहले ऑन जाओ कर पहले घ्यान चाहिए,
01:21:31मैं तुम्हें ग्यान देती हूं इसे थर्म मुग्ती मिलेगी।
01:21:35और फिर वायश्य मुग्ति को प्राप्त होते हैं।
01:21:43जो लोग सोचते हैं कि ज्यान के एतिर्प्ट किसी भी मार्ग से मुक्ति मिल सकती है.
01:21:48उनके लिए अन्तमे सवग है.
01:21:51आप अपने आपको मत बोलिये ज्यान मारगी.
01:21:56आप कहिए मैं तो शाक्तपंति हूँ.
01:21:58या मैं तो भक्त हूँ देवी की भक्ति करता हूँ ग्यान का मेरा क्या है
01:22:02देवी भी यही कहेंगी कि मुक्ति तो ग्यान से ही मिलेगी
01:22:06मेरे पास भी आओगे
01:22:08तो मुक्ति के लिए तो मैं तुम्हें कहूंगी ग्यान लो
01:22:10ग्यान के तरिक नहीं मुक्ति
01:22:13आत्मा का सुभाव बोध है
01:22:21और जीव का मूल बंध जूटा ग्यान है
01:22:27जब हमारी मूल पीडा ही यही है
01:22:31कि हमने जूटा ग्यान पकड़ रखा है
01:22:32तो सच्चे ग्यान की अतरिक्त मुक्ति आपको कहां से मिल जानी है
01:22:36तो इस तरह से करके दुर्गा सप्षती की समात्ते होती है
01:22:44आप सब को सच्ची नवदुर्गा की शुफ कामनाए
01:23:06आप सच्ची नवदुर्गा की शुफ कामनाए
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