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00:00विश्णु और शिव दोनों के कोप से उत्पन्न हुई हैं यहाँ पर महादुर्गा उसको नारी का रूप देने के लिए सब देवता अपनी अपनी ओर से समुचिती योगदान करते हैं
00:13अंग मिलते हैं, शस्त्र मिलते हैं, अलंकार मिलते हैं तो इस प्रकार फिर तेजोमई नारी है वो एक सुन्दर भी और भयानक भी रूप प्राप्त कर लेती है और फिर यह प्रकट होते ही पीभत से अटहास करती है पूरी दुनिया काप उठती है उस गटहास से और बहुत क
00:43और कौन इसपष्ट हो रहा है हमारी वो वृत्ति जो पूरी प्रकृति को खा जाना चाहती है अवरात्ति इसलिए है त्यागे तुम साल भर जिस तरह का उभोकता वाज चलाते हो यह जो शोर शराबा हुडदंग जो हम नौदॉरगा पर देख रहे हैं और प्रकृति का शो�
01:13इसका महत तो इतना बताया गया है कि अगर आप पूरे ग्रंथ का पाठ नहीं कर पाते हैं किसी कारण में समय का भाव या कुछ और तो सिर्फ आप दूसरे चरित्र का पाठ कर लें उतना भी परियाप्त हो जाता है
01:31और जो दूसरा चरित्र है उसमें देवी का राजसिक रूप हमारे सामने आता है पहले में वो तामसिक महाकाली थी अब वो राजसिक महालक्षमी है
01:50और वही महालक्षमी दूसरे चरित्र में दुर्गा बनकर प्रकट हो रही है और महिशासुर वध का पूरा वृतानत है
02:04इसलिए दुर्गा को महिशासोर मर्दिनी भी कहते हैं
02:10और दूसरे चरित्र का महत तो इतना है कि पूरे ग्रंथ को ही दुर्गा का नाम दिया गया है
02:17दुर्गा सब्चती
02:18तो क्या होता है भई दूसरे चरित्र में
02:24एक बड़ी लंबी चोडी लड़ाई से आरंभ होता है सो वर्ष तक लड़ाई चल रही है किसके किसके बीच में महिशा असुर नाम का एक दैत्थ हो गया था
02:35और सौ सालों तक उसने सब देवताओं से लड़ाई करी और जीत किया
02:42जीत कर क्या किया
02:44ये सब देवता जो है प्रकृति प्रकृतिक शक्तियों के प्रतनिधी होते हैं
02:50तो उसने प्रकृति से उसकी विवस्था चीन ली
02:54चंद्रमा से चंद्रमा का अधिकार छीन लिया तो उसको कथा ऐसे कहती है कि चंद्रदेव के अधिकार उसने छीन लिये
03:04अगनी जिस विवस्थित रूप से प्रक्रत में उदित और प्रवाहित होती है उसने उसमें भी बाधा डाल दी तो उसने अगनी के भी सहज अधिकारों का हनन कर दिया
03:21तो अगनी देव को भी कथा ऐसे कहती है कि महिशासुर ने उनके स्थान से हटा दिया इसी तरीके से सूर्य वरुण मित्र और इंद्र जो सब देवताओं के राजा है इन सब के अधिकार महिशासुर ने छीन लिए आशे क्या है अब ये कोई एतिहासिक घटना तो है नहीं ऐ
03:51और वायू से वायू के अधिकार और जल से जल के अधिकार चीने थे ऐसा तो एतिहासिक बात तो हो नहीं रही है जो बात हो रही है वो इतिहास से कहीं आगे कि और इतिहास से बहुत उंची बात है वो आशे ये है कि जब अहंकार बहुत बढ़ने लग जाता है बढ़े वह
04:21एंकार जब भूद बढ़ जाता है तो वह प्रकृतिका शोशन करना शुरू कर देता और प्रकृतिकी सारी विवस्था को छिन भिन नष्ट-भ्रष्ट कर देता है जो कुछ जैसे
04:32चलना चाहिए वैसे नहीं चलता हुँ वनों से वनों का धिकार छीण लेगा पक्षियों
04:51चाहिए वह विवस्था उसने नश्र कर दी बदल दी तो यह बता और बात हो रही है कि एक राक्षास था जो पूरी प्रक्रति पर चड़ राठा और उसने प्रक्रति के पूरे तंत्र को अव्यवस्थित कर दिया यह बात किसी एक समय पर घटी थी आज घट रही है घटना ऐ
05:21पुरान वो नहीं है, जो कभी किसी समय कहे गए, पुरान वो है, जो लगातार कहे जा रहे हैं, क्योंकि वो बात बहुत पुरानी है, पुरान माने, पुराना, जो चीज बहुत पुरानी माने, वो किस में बैठी हुई है, प्रक्रते में बैठी हुई, सबसे पुरानी क्या है
05:51आते हैं तो पुरान शब्द का मतलब है पुराना लेकिन वास्ताव में पुरान में वो बात कही गई है जो कभी पुरानी नहीं होगी हर जो नया बच्चा पैदा होगा वो पुरानी ही वृत्तियां लेके पैदा होगा न तो हर जो नया बच्चा पैदा हो रहा है पुरान उ
06:21करी गई है और तुम तीसरे चरितर पर आऊगे ना तुम्हें अचंभा होगा जब सब राक्षासों को संघार हो जाता है कि कहा जाता है कि प्रक्रति अपनी सुचार हुए वस्था पर वापस आ गई
06:34कि नदियों का पानी साफ हो गया कि आसमान से धुआ छट गया सूरज चांद तारे ग्रह सब अपनी अपनी कक्षा में वापस आ गए वह सब कुछ जैसा होना चाहिए प्रत्वी पर और ब्रहमांड में बिल्कुल वैसा ही हो गया कि कहानी बता तब की थी आज की है
06:58और आज ही लोग है ना जो पूरी प्रत्वी को एक संसाधन की तरह दुरुप्युक्त करना चाहते हैं जो कहरें इसको पूरा खालो इसको पूरा खालो फिर जाकी किसी दूसरे ग्रह को खाना शुरू कर दो
07:13था मिषया सूर की बात हो रही है दूसरे चरिती में डुर्गा सब्शती के वह तब का था या आज का है पून है
07:23हर वो व्यक्ति जो पशूओं को पक्षियों को नश्ट करेते रहा है कर झाल जब बतें इतनी साली प्रजातियों के विलोब का कारण बन रहा है कि निदी जिसने खराब और दूरित कर दी में हन्- में जिसने सब प्रदूशन ही भर दिया
07:45तापमान बिगाड़ दिया हिम्शिखरों को गला दिया हर वो व्यक्ति महिशास हो रहा है और उसकी बात हो रही है इस दूसरे चरित्र में
08:04तो सौ साल तक लंबी रडाई चलती है और जैसा होना था बुराई ही ज्यादा जीतती है और ज्यादा बार और ज्यादा असानी से जीतती है अवह इंद्र इत्यादे सारे देउता पदच्युत्यूत हो गए इनका जो है सिंगहासन छीन लिया गया
08:30तो यह सब रोते भी लखते जाते हैं बरहमा जी को पकड़ते हैं बोलते हमें ले चली आगे और उपर देवताओं के पास
08:40तो कथा कहती है कि इनको विश्णु और शिव जी के सम्मुक खड़ा किया गया और इन्होंने आप भीती सुनाई
08:46कि हमारे साथ तो बहुत बुरा हो गया जो देवताओं के साथ बुरा हो रहा है वास्ताओं किसके साथ बुरा हो रहा है देवता किसके प्रतीक है प्राक्रतिक शक्तियों के तो देवतार हो रहे हैं माने प्रक्रति बिलख रही है तो प्रक्रति बिलखते हुए विश्णु औ
09:16है और उसको नारी का रूप देने के लिए सब देवता अपनी अपनी और से समुचित
09:25योगदान करते हैं देवताओं से ही उस नारी को अंग मिलते हैं शस्त्र मिलते हैं अलंकार
09:34मिलते हैं अभूशन मिलते हैं तो इस प्रकार फिर वो जो तेजो मई नारी है वो एक सुन्दर भी और भयानक
09:48भी रूप प्राप्त कर लेती है जिसके पास वो सब कुछ है जो सुन्दर से सुन्दर और अकरशक से
09:58करशक है और साथ ही साथ दुष्टों के लिए वो एक भयानक छवी है और फिर यह जो नारी है महादेवी
10:14कि यह प्रकट होते ही वीभत सा अटहास करती है और पूरी दुनिया कहा पुठती है उसके अटहास से और बहुत कुपत है
10:25अब यहाँ भी समझना प्रतीक कहां तक जाता है आपके पास जो भी अच्छे से अच्छा बुरे से बुरा हो प्रक्रति प्रदत्त जो कुछ भी प्रक्रति ने आपको बंधन स्वरूप दिया हो या
10:39मान लीज़ेकी भेट सरूप दिया है हम सब को मिला तो है बहूत कुछ प्रक्रते ना करो तो क्या है बंधन
10:47उसका सही उपयोग करो तो क्या है उपहार यह संसाधन
10:51तो क्रोध भी है आपके पास
10:54तो क्रोध का भी
10:56इस्तिमाल किसलिए करना है
10:58राक्षासों से लड़ने के लिए
10:59विश्णु और शिव
11:02दोनों के कोप से
11:04उत्पन्न हुई है
11:06यहाँ पर महाधुरगा
11:08और फिर सब देव था
11:12उनके पास जो कुछ भी प्राक्रतिक था और उच्चतम था
11:15जो कुछ भी ओदे सकते थे अच्छे से अच्छा
11:17वो उन्होंने देवी को दे दिया है कि यह लो
11:19धनुश एक से लो
11:22तेज एक से लो
11:24आखें एक से लो
11:26बल एक से लो
11:27अलंकार किसी और से लो
11:30तो इस तरह से करके
11:34आपके पास
11:35जो कुछ भी मिला है आपको
11:37जन्म से जीवन से
11:39संसाधन के रूप में उसको इकठा करिए
11:41और फिर उसका क्या उपयोग करिए
11:45अधर्म से लड़ने के लिए
11:47ये दूसरे चरित्र में
11:49आरंब में ही हमको सीख मिल जाती है
11:51यहां तक की करोध का भी
11:53सही इस्तिमाल कर लेना है
11:55देवी को तो आप
11:56प्रथम मध्याय से ले करके
11:58आखरी चरित्र तक
12:01लगातार कुपित ही पाते हैं
12:03करोध में भी बुराई नहीं है
12:05क्योंकि देखिए
12:05सतो गुण हो या तमो गुण
12:09करोध हो
12:11या शील
12:12हैं तो यह सब ले देकर
12:14प्रक्रतिक यही गुण न
12:16क्या किसी गुण को सतगुण
12:18बोलोगे क्या किसी गुण को अब गुण बोलोगे
12:20तो जानने वालों
12:22ने समझाया है
12:23कि
12:25सतगुण की परिभाशा
12:28यह नहीं है
12:29कि कौन सा गुण
12:31दिखने में
12:34सुनने में व्योहार में मीठा प्रतीत हो रहा है तुम अपने बुरे से बुरे दिखाई देने वाले गुण को यदि धर्म की सेवा में अर्पित कर पाओ तो वो सदगुण है और कौन सा गुण फिर अवगुण हुआ तुम्हें मानलो भूत ग्यान मिला हुआ है तुम्हें �
13:04तो वो अवगुण है बुरे से बुरा गुण भी यह दिल लग गया है धर्म की सेवा में तो सदगुण है और अच्छे से उच्छे से उच्छा गुण भी लग गया है अधर्म की सेवा में तो अवगुण है गुण अवगुण की वास्तविक परिभाशा और उनका भेद �
13:34सद्गुण नहीं होते वो सद्गुण तभी है जब धर्म की सेवा में लगें और क्रोध भी सदा अवगुण नहीं होता
13:41स्वें सप्टशती हमको पढ़ा रही है कि क्रोध का उपयोग यदि कर पाओ महिशासुर जैसों का यदि मरदन करने के लिए
13:52तो क्रोध का भी तुमने सही उपयोग कर लिया अब क्रोध भी सद्गुण है भारत ने इस बात को समझा है भारत ने अंतर प्रकृति के मध्य नहीं स्थापित करा कभी पश्चिम नहीं ये करा है और जो लोग संस्कृत है वो भी करती है मानलो प्रकृति ने तुमको एक प�
14:22प३ काई और तुम्हारे बीतर प्रक्रति ने तमाम व्रित्या और गुण के आं मन उनके वी दोफाड देता कि इसमें कोछ अच्छा।
14:34सद कुछ अपकर, जानने वाले कहते हैं यह पूरा थाल है जो सद है, इससे बाहर का है। इसके भीतर सद गुण अपकर करके तुम्हें क्या मिलेगा रहतो इसके भीतर ही गए
14:48भारत ने कायमी प्रक्रति में जो कुछ भी है उसको एक जानो और प्रक्रति से परे जो है उसको सत्य आत्मा जानो
14:56प्रकृति के भीतर जो कुछ भी है उसका उपयोग तुमने आत्मा तक माने सत्य तक माने मुक्ति तक जाने के लिए कर लिया तो जो कुछ भी था प्रकृति के भीतर वो काम आ गया तुम्हारे वो साथी हो गया तुम्हारा उसको सत्य जान लेना और प्रकृति के भीतर जो क�
15:26उसी के भोग में लग गए तो फिर अवगुण ही हैं समझ रहे हुगा तो फिर देवी का और महिशासुर का बड़ा लंबा चोड़ा संग्राम चलता है और बड़े विस्तार से संग्राम के विविध पक्षों का फिर वर्णन आता है उसमें एक बात समझने वाली है
15:53महिशासुर अलग अलग पशुओं का रूप बडलता है कभी हाथी बनता है भैसा बनता है शेर बनता है क्या दर्शाय जा रहा है
16:05पशुता हमारे भीतर की वही महिशासुर है जितने दुनिया के पशो हैं हमारे भीतर वैठे हुए है उन्हीं का वद करना है जो बाहर के पशो है उनका नहीं वद करना है देवी के नाम पे पशों की बली मचड़ा देना बाहर वाले
16:24महिशासुर ही पशु है और महिशासुर कौन है हमारी वो वृत्ति जो प्रक्रति का शोशन करना चाहती है
16:31माने हम खुद हम में से प्रत्येक व्यक्ति प्रक्रति के शोशन की इच्छा रखता है
16:35ना हमने करा भी आज भी करे जा रहे हैं प्रतेकपल कर रहे हम ही महिशासुर है बली देनी है तो अपने भीतर के पशु की देनी है और जरूर देनी है उसकी बली बाहर का बकरा मत काट देना उसने कुछ नहीं बिगाड़ा है जो बाहर का बकरा काटे उसका नाम महिशासुर ह
17:05को काट रहे हो तो महिशासुर तो तुम सोम हो तुम सोच रहे हो तुम दीवी के भग तो नहीं तुम देवी के शत्र हो तुम महिशासुर हो जो देवी को महासरपन करें वो देवी का शत्र हुआ ना देवी का शत्र कौन था महिशासुर महिशासुर की क्या पहचान थी वह प
17:35रहे हो में देवी का भक्त हो कहां से भक्त हो भाई जो पशुवों की हत्या करें वो देवी का भक्त कैसे हो सकता है
17:42तो फिर ऐसे करते करते लंबे चोड़े युद्ध के बाद महिशासुर का वद्ध होता है
17:55महिशासुर का वद्ध होता है सब देवता लोग आ करके फिर देवी की इस्तुति करते हैं और देवी पूछती है कि इच्छा बताओ क्या चाहिए तो बोलते हैं जो कुछ चाहिए था हो तो आपने दे दिया अब और क्या मांगेंगे लेकिन इतना हमको आप भरुसा दे दी�
18:25मुझे साफ मन से पुकारोगे अपने निकट पाओगे तुमारी साहिता के लिए मैं उपलब्द रहूंगी और ऐसा बोलके फिर दूसरे चरितर का समापन हो जाता है तो यह है कुल कहानी दूसरे चरिती की बात समझ में आई जो कल हमने चर्चा करी थी मैं इसको उससे थो�
18:55नवरात की तरफ भागने वाली वृत्ति है वही महिशा सोरे और नवरात्रे का जो पूरा एक्तिवार है शायद उसको और उसका बद करने के लिए हम उसका इस्तेमाल करना चाहिए तागे तुम साल भर जिस तरह का उभोकता वाज चलाते हो और प्रकृतिका शोशन करते हो
19:25तो नवरात्री बिल्कुल अलग तरीके से मनाई जाती है यह जो शोर शराबा हुड़दंग हम देखते हैं यह नहीं होता यह तो सब महिशा सुर की करतूत है जो हम नौद और गाह पर देख रहे हैं
19:39साथ्व में इसमें एक चीज और दिख रहा था उस विशे पर आपने बहुत बात नहीं करी पर जब ग्रंथ में इसका व्रतान देखते हैं तो काफी विस्तृत रूप सदिय रखा है किस तरह से देवी ने महिशा सुर का वद किया उस पर बहुत सारे श्लोक है उसमें इव
20:09पर किस तरह से मारा उसके ऊपर ब्हुत बस्तार से बाते हैं ढम आते हैं और यह को ऐसे मारा इस को ऐसे मारा अँजल अब इख रहा था कि अभारत में होने लग गया है कि कही नग जब लोगों के इंडर दुबारा से पुराना की कहानियों की तरफ रफ रुची जाग गई
20:39और दिमा पाल अस्तर है यह जी जो सब आप उसी चलनी की तरह वैवहार करेती है क्या करती चटी कि करती है कि कंकड़ को अपने पास रोक लेती है और जो काम की चीज होती है
20:56उसको छन जाने देती है काम के चीज गवा देती है कंकड को अपने पास रोक लेती है तो आम जन्मानस ऐसा ही वेवहार कर रहा है अब वो पुराणों की तरफ देख भी रहा है तो यह जानने के लिए उसमें कौन-कौन से अस्त्रों का वर्णन है उसमें कौन-कौन से राक्�
21:26कितना महान राय अतीज से हमारे यहां पर इतने इतने प्रकार के अस्त्र रहें यह न्यूक्लियर वेपन्स कोई आज का विश्कार थोड़े हैं देखो हमारे पास कब से थे इस प्रकार हम अपने हंकार की तुष्टी और पोशन कर लेंगे और हम सोचेंगे हम धार्मिक हो �
21:56क्योंकि शायद लोग इस बात को पकड़ी निवारें कि पुरान मनरंजन के लिए हैं भी नहीं वह एक कथा एक सीख आप से कहना जा रहे हैं जिसका आपके जीवन में एक उप्योगिता है पुरानों में ऐसा काफी कुछ है जो मनरंजक भी है पर वहां इसलिए मौजूद ह
22:26जो लोग विदान्त के सूत्रों को सुक्ष्मता से नहीं पकड़ पा रहें उनके लिए कथाओं के तोर पर विदान्त का सार क्रस्तुत करने का प्रयास है पुरान लेकिन जब आप एक सूक्ष्म सिधान्त को उस थूल कथा के तौर पर बताते हो तो आपको फिर उस कथामे
22:56जैसे कि बच्चे को पूशक तत्यों देने के लिए ऊसको फूशन में थोड़ा बी मिला की दिया गया वो जो मसाला है
23:04वो कोई केंद्री वात थोड़ी तो पुराणों के जो पारिधिक तत्यों हैं जो भाहरी तत्यों हैं वह बहुत मौञूद हैं
23:17पर उनका पुराणों में मौझूद होना एक तरीके से जो पुराण कार हैं उनकी विवश्टा है क्योंकि यदे उन तत्तों को नहीं डालोगे जैसे यही कि जो पूरी लड़ाई है उसका इतना सजीव विवरण बड़े विस्तार से देना इस अस्तर से ऐसे मारा फिर ऐसा ह�
23:47प्यास हाई वैसे तब भी रहता था तो लोगों को उसमें थोड़ा सा ऐसा हिस्सा दिया गया है यह काफी बड़ा ऐसा हिस्सा दिया गया है जो आकरशित करके रखें ठीक अब यह आपकी अपनी बुद्धिमत्ता पर है और आप में बोध के लिए कितना प्रेम है इस पर �
24:17कि तो बिल्कुल हो सकता है कि जो दुर का सब्शदी है उसका मुख्या करशन बहुत लोगों के लिए बीच में रहे कि जो एक पूरा व्रितानता है महिशा सुर्क के बद का पर रिशियों ने तरकीब लगा कर शुरुवातों से प्रशन से करी इसकी कल आप बात कर रहे हैं
24:47कि विवश्ता का प्रतीक और प्रमान है जो उच्चतम बात थी वो तो कह दी गई ना वेदान्त में उपनिशदों में और गीता में और ब्रह्म सूत्र में कह दी गई जो उच्चतम बात है पर वो उच्चतम बात आम आदमी के पल्ले ही नहीं पड़ रही है तो विवश हो
25:17सम्मत नहीं है रिशियों को एक प्रकार का समझोता करना पड़ा कि चलो हम थोड़ा पीछे हटे जाते हैं चलो जो शुद्धतम बात है हम उसमें थोड़ा मिश्रण करें देते हैं
25:31लेकिन फिर भी आधियदूरी सही जो उची बात है वो तुम्हारे कान में पड़े तो
25:40सिध्धान्त के माध्यम से नहीं एक महावाक्य की तरह नहीं तो एक कथा की तरह ही सही
25:48यह उन्होंने अपने प्रेम की वजह से करा यह उनका प्रेम था कि उन्होंने बौराणिक साहित्ते दिया हमें
26:03अब हमारा क्या करतव्य है उन्होंने तो अपना प्रेम दर्शा दिया अब हमें क्या करना है हमें यह करना है कि उसमें से जो बात
26:10सारगर्भित है उसको रख लें और जो बात बिना महत्त की है या कम महत्त की है
26:18या बाहरी है
26:20उसको किनारे करें
26:23पर हम उल्टे लोग है
26:25जो केंद्री यह बाद है
26:28जो सार है
26:31उस पर नहमारा ध्यान है
26:35ना उसको पानी की हमारी कोई इच्छा है
26:38पुरान हमारे लिए क्या है?
26:42मनु रंजन है
26:43कहानी सुनो और कहानी करस लो
26:46काणी किधर को इशारा कर रही है
26:49वो समझने की कोशिशी मत करो
26:51पुराणों का
26:56सुन्दर से सुन्दर अर्थ
26:58हम पुराणों की बात यहां क्यों कर रहे हैं
27:00क्योंकि दुर्गा सब्षती जो ग्रंत है
27:03वो पुराणों का ही हिस्सा है
27:06नवदुरगा त्योहार के केंदर में दुरगा सब्शती है और दुरगा सब्शती एक मारकंडे पुरान का हिस्सा है
27:14इसलिए हम पुरानों की बात कर रहे हैं भी
27:36सही अर्थ पुरानों का तभी निकलेगा जब आप विदानत के ग्याता हो पुरानों का काम है आप में एक ललक पैदा कर देना जो आपको विदानत की और ले जाए
27:55अगर आप विदानत के ग्याता हो तब तो पुरान आपके सामने एक्तम खुली किताब हो जाएंगे
28:03एक एक एक शब्द एक एक श्लोक एक घटना अपने पीछे के रहस्य को खोलती चलेगी
28:15एक एक शब्द परदा नहीं बनेगा कुंजी बन जाएगा और अगर विदान्त नहीं आपके पास जोतों शब्दैंफ वह परदा बन जाने शब्द दोनों काम कर सकता है छुपा भी
28:36सकता है, दिखा भी सकता है, परदा भी बन सकता है, और कुझी भी, विदान नहीं पता तो पुरान नहीं समझ में आएगे, अब यहां बात फस जाती है, पुरान तो है ही उनके लिए जिनको विदान नहीं समझ में आता था, तो फिर बात यह है कि मन तो साफ रखो, उदेश �
29:06और जो बाते समझ में आने लगें उनको और विस्तार में जानने की ललक रहे और जैसे ही वो ललक बढ़ेगी वैसे ही अपने आप चले जाओगे उपनिशदों और गीता की और पुरान इसी लिए हैं ताकि आपको उपनिशदों और गीता की और भेज सकें पर वैसा होता नह
29:36और आप भागवत पुरान पढ़ते रहेगा गीता की और नहीं गए, तो पहली बात भागवत पुरान का उद्देश पूरा नहीं हुआ, क्योंकि भागवत पुरान इसी लिए है, सारे पुरान इसी लिए है कि आप विदान्त की और जा सको, तो भागवत पुरान का उद्द
30:06पुरान को समझने के लिए भागवत पुरान को समझने के लिए गीता समझ में आनी चाहिए और भागवत पुरान का उद्देश यह है कि आप में गीता के प्रते प्रेम जागरत हो जाए और आपको अच्छा यह कथा अच्छी थी अब मुझे गीता की और जाना है वैसा हो न
30:36कोई दोश नहीं है
30:37हमारी नियत ही खराब हो
30:40तो कोई रिशिक
30:42कोई आउतार क्या कर लेंगे बैचारे
30:44क्रिश्न भी क्या कर सकते हैं
30:48दुर्योधन जब लड़ने को ही तयार है
30:50जिसे नहीं सुलना
30:54नहीं समझना
30:55उसका तो
30:58कौन सहायक हो सकता है
31:06हमारे निजी जीवन का मतलब ही एक सामाजी विवस्ता हो जाए
31:20कि मैं एक बेटा हूं, मैं एक पती हूं, मैं एक भाई हूं
31:25औ मेरे ये उने कड़वे हैं
31:27तो उसमें धर्म की वज़े से कोई मेरे भीतर कोई बदलाव आ सके
31:32या कोई ऐसा चेंज आ सके जिसे मेरे जीवन भेटर हो सके उसकी गुण जाई शायद बचती नहीं है क्योंकि फिर आपको वो जो पॉसिबिलिटी ऑफ चेंज या पॉसिबिलिटी ऑफ ग्रोथ है वो दिखनी शायद बंद हो जाती है तो आपको लगता ही नहीं कि शायद न�
32:02चुके हो आप पूरा समर्पड कर चुके हो किसी गलत इकाई के सामने आप का चुके हो जंदगी चल रही चलेगी त्योहार इसलिए थोड़ी आएं कि जीवन परिवर्थे तो यह तो इसलिए आए हैं ताकि जीवन में थोड़ा मनरंजा ना जाए और त्योहारों के बाद �
32:32को इस बात की कलपना तक नहीं है चाहत तो अलग बात है कि उसों कलपना तक नहीं है कि जैसा जीवन जी रहा उससे भिन भी कोई जीवन हो सकता है हां तरक्की हर वेक्ति करना चाहता है बदलाव हर वेक्ति चाहता है पर अपने दाइरे के भीतर है मूल रूप से बिलकुल �
33:02लेकिन फिर भी हर आदमी जैसा उसका जीवन है लगभग वैसे ही जीवन को आगे चलाना भी चाहता है
33:09बस वह यह चाहता है कि अभी जिस गटे से उसकी गाड़ी चल रही है ज्यादा गटे से चलने लगे है पर उस अड़क नहीं बदलना चाहता
33:17वो गहरा अभी दुपहिया वहान में चलता हूँ चार पहिया में चलूँ पर उस अड़क नहीं बदलेगा
33:23उसको जाना वही है जहां वो सदा से जा रहा था उसकी मंजिल वही है जो सदा से थी
33:31या कहतो मन्जिल ही वदलती है तो इस तरीके से कि जहां पहले पहुँचना था उसे थोड़ा आगे पहुँचना था उसे एक अलग आयाम में बिलकुल कोई भिन
33:38मन्जिल हो सकती है
33:41इसकी न उसे चाहत है न कल्पना
33:48तो फिर त्योहारों को वो कैसे ले एक आयामगत परिवर्तन के सूचक के तौर पर नहीं ले पाता वो जैसी उसकी चक्की चल रही है उसी चक्की में त्योहार को भी पीस देता है
34:06विपाटन के बीच में त्योहार बचाना कोई हम चलती जाकी देख़र दिया कभी रही जब सब कुछ अपने जीवन के द्वायत की चक्की में पीस देना तो यहार आते हैं वो भी द्वायत की चक्की में पिस जाते हैं
34:21तुरों के दिनों में परेतन पार हुटल पाना मुश्किल है अफ कि ट्रेन में टिकेट नहीं मिलता हवाई ज्यास में टिकट नहीं मिलता
34:36आगा गीडी बीर हो जाती है है मन्रंजन की सब जगों पर तो त्योहार किया सडे गले जीवन
34:47को थोड़ा सा अवकाश मिल जाता है ताकि वो सड़ा गला जीवन फिर से चालू हो जाए अवकाश के बाद
34:58और मैं इसको और थोड़ा करीब से देख रहा हूं तो मुझे याद भी आ रहा है कि जिस नवरातर के दिन जो होते हैं वो समानने तौर पर जिस तरा ग्रहनिया मनाती है वो उसमें अवरत रखती है तो चाहे उन्हें उसकी मार में बात ना पता हो पर कहीं न कहीं एक सईयम र
35:28स्वाखो भोगो भोगो देखते नहीं ओ बाजार कितना सक्रिय हो जाता है तेहारों के आते ही फूर नी छूट लगी
35:37है फूरानी डील फूलाना आफर भाजार भर जाते हैं थर्म खॉALIए बाजार भरे हुए हं पंडाल पे पंडान लगे हुए हैं हमारी सांसा रिक्ता
35:58और विभत्स रूप लेकर के खुला नंगा नाच नाचती है। ऐसा तो हमने अपने त्योहारों को बना दिया है।
36:18यही जो हमारे भीतर केंद्र है जो पूरी दुनिया को खा जाना चाहता है।
36:26जिसकी भूख कभी शान्त नहीं होती जो कहता है जो कुछ भी है लाओ लाओ लाओ परोसो परोसो परोसो मैं खाओंगा मैं भोगूंगा।
36:34इसी को महिशासुर कहते है त्योहार महिशासुर के वध के लिए है त्योहार महिशासुर को भोग लगाने के लिए नहीं है
36:46हम जैसी नवदुर्गा मना रहे हैं उसमें हम महिशासुर को भोग लगा रहे हैं
36:54देवी की तो उपेक्षा ही हो रही है, देवी का अनादर है और महिशा सुर को भोग और चड़ावा और आदर और प्रेम, महिशा सुर को बिलकुल रिदय में बैठा लो, बाहर बाहर सा ये दिखाओ जैसे देवी के पुजारी हो,
37:09महिशा सुर को ने स्पष्ठ हो रहा है न, हमारी वो वृत्ति जो पूरी प्रकृति को खा जाना चाहती है, मुर्गी किसलिए मैं खा जाओ, अंडा किसलिए मैं खा जाओ, जंगल किसलिए मैं काट दू,
37:25गरे जो कुछ भी है, पूरी प्रक ट्रकृति परो, किसलिए ताकि मैं खूब खाओ, खाओ, काओ, मुझे भी खाओ, मन से भी खाओ, मुझे और चाहिए, जो लगा तार कहा रहा है मुझे और चाहिए, और चाहिए, वही महिशा सुर है,
37:42पर जिस तरह जो दूसरा तुटिये चरित्र है इसमें आपने क्रोध की उपर बात करी थी कि चाहे वो क्रोध भी क्यों ना हो पर यदि तुमसे धर्म की ओर एदी लगा दो तो वो भी परस एक सद्गुण ही है आप उसे तरह में देख रहा हूं कि कही ना कहीं समाज की यह ग
38:12आप बात थी जो दूसरा जो दूसरा चुरू हुआ उसकी शुरू आटी चुरू आटी चाहँ दूनों में 24,000 क्रोड की शेल ली तो यह बहुत निवस्पेर में चाहँ चाहँ चीज की तरह तो अब यह जो जो गठीश इसको लेगा सकता है इसको किसी तरह से नाम की ज़�
38:42तो हम प्रयास कर रहे हैं कि अब देवी का नाम लेते हैं तो देवी के मर्म से परिच्चित हो जाओ वो ला रहे हैं लोगों के सामें यह जो पूरी रिकॉर्डिंग हो रही है लोगों तक जाएगी ने लगे हुए हैं सत कैमरे तो लोग देखेंगे ना फिर आप इसका कोर
39:12हमें में अगर समकालीन भाशा में और समकालीन संदर्भों और सरोकारों के साथ लिखी जाएं सबच्चती तो उसमें ऐसे होगा कि दुनिया भर कि मुर्गे बकरे गाएं भैसें जीव जंतु कीट पतंगे वन पौधे नदियां जहरने यह सब गए हाथ जोड करके
39:40देवी बचाओ देवी बचाओ तो फिर देवी ने वद किया देवी ने किसका वद किया फिर देवी ने यह जो आंजन है इसका वद किया तब महिशासुर एक था
39:53आज महिशासुर रक्त बीज की तरह 800 करोड है दुनिया का प्रत्य व्यक्ते जो प्रक्रति को भोगरा है प्रक्रति के प्रत्य निर्दय है कुरूर है वो महिशासुर है तो आज यदि लिखी जाये दुर्गा सब्शती तो उसमें देवी यह जो आम जन है इसका संगहार कर
40:23महिशासुर है आम आदमी ही तो महिशासुर है आज पहले तो एक दैत था आज उस दैत ने करोड़ों रूप ले लिए हैं सडक पर चलता फिरता आम आदमी ही तो है महिशासुर दिवी इनी सब को मारेंगी
40:42मनुष्य है महिशासुर मनुष्य है इस टृत्वी का राक्षस मनुष्य है इस धरा का रोग
41:03मनुष्य केली प्रजाति है जिसने जड़ चेतन सब प्रजातियों को जीवों को विशयों को बरबाद करके रख दिया है
41:33देवी कुपित है बहुत कुपित है देवी प्रक्रति का स्वरूप है प्रक्रति की मां है और प्रक्रति की प्रतनिधिवी है
41:56देवी के इन सब छोटे छोटे बच्चों के साथ तुम जो कर रहे हो रोज आदमी के खाने के लिए
42:05रोज करोडों नहीं अरबों जीव मारे जा रहे हैं रोज रोज प्रति दिन देवी बहुत कुपित है
42:14और आप नौदुर्गा इत्यादी के नाम पर जो कर रहे हो उससे तो उनके कोप और रोश में और व्रिध्य होती है
42:33प्रिध्य होती है
43:03जिन्होंने मा को सच मुझ समझा है
43:08ऐसे भक्त जो ज्ञान से भी परिपून थे
43:16जैसे श्री राम कृष्ण परम हंस
43:19आज वो यदे नवदुर्गा का ये रूप देखते
43:23जिस प्रकार आम आदमी नवदुर्गा मना रहा है
43:26रो पढ़ते
43:27राम कृष्ण रो पढ़ते
43:56अभी इसमें और भी
43:57दो चार बहुत महत्वपूर्ण और रोचक पक्षें
44:01उनकी चर्चाब आगे तीसरे अध्याय में करते हैं
44:07चलिए
44:09जिस झाल इसमें और रोचक पक्षें
44:20झाल इसमें और रोचक पक्षें
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