राजस्थान के जयपुर के मनिहारों का रास्ता...जहां की लाख की चुड़िया और कड़े देश ही नहीं विदेशों तक में प्रसिद्ध हैं. तंग गली से जब आप होकर गुजरेंगे तो दोनों तरफ चूड़ियों की दुकानें नजर आएंगी. इन दुकानों में कारीगर सुबह दस बजे से रात दस बजे तक काम करते नजर आ जाएंगे. देर रात तक यहां चहल पहल रहती है. यहां के कारीगर कई पीढ़ियों से इस काम को करते आ रहे हैं.18 नवंबर 1727 को आमेर रियासत के महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने जयपुर शहर की नींव रखी थी. तब उन्होंने अलग-अलग कलाओं में निपुण कारीगरों को यहां लाकर बसाया. मनिहारों को त्रिपोलिया गेट के पास इस गली में जगह मिली. तब से मनिहारी समाज चुड़ी की इस विरासत को संजोए हुए हैं.होली पर खेले जाने वाले गुलाल गोटे भी मनिहार समाज के लोग तैयार करते हैं. रियासत काल में राज परिवार के लोग होली खेलने में इसका इस्तेमाल करते थे. आज के दौर में शादियों में मेहंदी और हल्दी की रस्मों में इसका चलन बढ़ गया है.मनिहारो की गली में आज भी पारंपरिक तरीके से ही लाख की चूड़ियां बनाई जाती है. मशीनरी का बिल्कुल भी प्रयोग नहीं होता है. कारीगर कोयले की भट्टी पर प्राकृतिक लाख को पिघलाकर इन रंग बिरगी चूड़ियों को बनाते हैं. यहां आने वाले पर्यटक इन चूड़ियों को खूब पसंद करते हैं.
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