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हिंदी लेखन में आपबीती कैसे बन जाती है साह‍ित्य? लेखिका जूवी शर्मा और लेखक प्रभात रंजन से जानें

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00:00मैं चुकि रोज किताबे पढ़ता हूँ तो मुझे लगता है कि हमारे घर की बात है और मैं घर के लोगों से बात कर रहा हूँ
00:06तो कभी भी जो हमारी बादचीत है वो साक्षातकार की सहली में नहीं होती है
00:13बादचित की शैली में होती है
00:15और शायद या ही
00:17कारण था कि
00:19साहित या आज तक के
00:21की ओर से
00:23जो आत्मकथाओं
00:25और संस्मर्णों पे या जीवनियों
00:27पे संबंधित कारिक्रम
00:29थे उन में बादचित का
00:31दाईत्व मुझे सौंपा
00:33गया तो सबसे
00:35पहले तो प्रभाद जी और जुभी स्वर्मा
00:37दोनों का अभिनंदन
00:38बहुत बहुत धन्यवाद सर आपका
00:41और
00:42मैं इन दोनों अतितियों
00:45के बारे में बात करने से पहले
00:47मैं पहले इनका परचय दे देता हूँ
00:49प्रभाद जी
00:51बहुत ही सक्रिय
00:53साहित्य सेवी है
00:55एक प्राध्यापक है
00:58और
00:59दिल्ली विश्व विद्याला में प्राध्यापक
01:01रहने के दोरान भीच आहित्य में
01:03जो कुछ भी लिखा जा रहा है
01:04दुनिया भर की साहित्य के
01:07बारे में जो लिखा जा रहा है
01:08उन पर सतत नजर रखते हैं
01:11इसके अलावा उनके बारे में टिपडियां करते हैं, नई प्रतिभाएं हैं, उनको प्रत्साहित करते हैं, और एक ऐसे व्यक्ति हैं, जो गंभीर साहितिया और लोकप्रिय साहितिय के अंतर को बाटने की जो कोशिसे हैं, उसको द्वस्त करने का प्रयास करते हैं, और इनका म
01:41भार प्रकट करता हूँ कई बार मैं हो सकता है प्रभात बोलों क्योंकि वो मुझे बड़े भाई का स्निह देते हैं तो इसलिए इस बात के लिए मुझे छमा किया जाए ये कहीं से मेरा गर्व नहीं है जो भी सर्मा जी है जो भी की एक किताब अबुली की डाइरी अभी आई
02:11रखा था कि मैं जब ये लेखी का मिलेंगी तो सबसे पहले यही पूछूंगा कि इसमें कल्पना का कितना अंश है और अभी जब आज ये साहितियाज के समझ पर आने से पहले मेरी मुलाकात हुई तो उस समय मैंने इनसे यही पहला प्रस्ण यही पूछा था कि उसमें कित
02:41जो आपविती है वो हाल के दिनों में हाल के वर्षों में बहुत सारी आत्मकताइं आई हैं जीवनिया आई हैं और जो किस्से कहनिया आ रहे हैं उनके बारे में भी है कि सामानने तोर पर
02:55यह माना जाता है कि उपन्यासिक कृटियों में भी रचनाकार अपने ही अनुभाओं को अपने जीवन संसार को रचता है और प्रदर्शित करता है।
03:05प्रभाद जी की पुस्तक खिसाग्राम, पालतू, बुहेमीन जो इन्होंने अपने गुरु जी पर लिखा था।
03:14और इसके अलावा एक पुस्तक हिंदी मिडियम टाइट। यह तीनों पुस्तकें दर असल खुद प्रभाद की जीवन यात्रा को उनके अनुभाओं को प्रतिबिम्बित करती हैं और रिफ्लेक्ट करती हैं और इसी लिए जो भी शर्मा के साथ इस सत्र में लक्षमान यादो
03:44तो सबसे पहला प्रभाद से ही सुड़ू करूंगा यह लिखने की यात्रा में जब दुनिया भर के लिखन को पढ़ रहे थे आप तब अपनी जब सुरुवात की तो वह संस्मर्णा संस्मर्णात्मक क्यों रहा है यह इससे पहले मैं कहानी सुना देता हूं अर्जंटीना
04:14तो यह पहुआ उन से पूछा गया कि ए बता searching कॉम फों से वान से वह घ्या यह आ गया तुम कॉझ भी सुरुआ गया ए उन से पूछा गया यह बताओ कि तुम कॉन हो सेख्सपिर से मानल 규े हमारे याह रहा हो गये तो जो भी स्वार्णे होंगे तो पूछा गया तो पू�
04:44तो लेखक जो भी लिख रहा होता है अन्तता अपने आपको ही लिख रहा होता है और यापने अच्छा कहा कि मैंने संस्मर्णों और इस सिक्कों शुरुवात की तो इसका भी यह है कि
04:53मनोहर शाम जोशी का मैं स्विष्ष रहा है जो घर कम गांविर से विज्ञान अपने जीवन से जोड़ दे को अपने हर कहानीं को हर उपन्यास को फिल्मे लिखनगी दारावाई को सब में कुछ अपने जीवन को जोड़ देते थे मैंने वही शैली पकडि कि अपने अन्भव
05:23लिखने पर प्रभाद घृता है अपनी हर बात लिख सकता है चाहे जिस रूप में लिखें चाहे हैं आपना ही रहा होता है बहुत अच्छे डंग से प्रभाद जी मेरे प्रस्न का उत्तर दिया जूबी के पास आऊं उससे पहले मैं इस कारेक्रम हिंदी लेखन में आप बित
05:53मुझे ही करना पड़े गया तो एक इंट्रोड़क्टर ही कह सकते हैं कि बिशाय क्या है उसके बारे में मैं लिखता हूं तो इसके सत्र के बारे में जो लिख रहा था और मैं पढ़ना चाहूंगा कि हिंदी लेखन में आप बीती शब्द सुनते ही मन में एक खास तरह की गं�
06:23शिपा कर रखे गए राजों का पिटारा यह वह वह विधा है जहां लेखक अपनी त्वचा उतार कर रख देता है बिना किसी मेकप के ना यहां कालपनिक नायक है न कोई हिरोई सिर्फ मै है उसकी कमजोरियां उसकी च्छाएं उसकी हार उसकी चोटी-चोटी जीते हैं यह
06:53अब तक कभी कही नहीं गई शायद यही वजह है कि आज हिंदी का जो पाठक वर्ग है वह आत्मकथाओं आप बितियों संस्मर्णों और डायरीयों को जीवनियों को अपने से जोड़ कर देख रहा है और बहुत तेजी से पढ़ रहा है अगर मैं कहूं कि उपन्यास के काल
07:23कि यह डायरीयों आत्मकथाओं आप बितियों का दौर है तो कोई गलत नहीं होगा शायद प्रभात मुझसे सहमत होंगे क्योंकि वह बहुपठित रचनाकार आलोचक के रूप में भी ख्यात हैं इसकी वजह हिया है कि यहां मनुष्य जो है अब देवता नहीं रह गया है �
07:53कही जानी थी आप से मेरा प्रस्म यह है कि यह जो जूवी की डायरी अब बोली की डायरी है जूवी की डायरी जिसको मैं कह रहा हूँ
08:02अब बोली की डायरी क्यों कहा जब आत्मकथाओं तो यह जूवी की डायरी क्यों नहीं हुए
08:10मैंने शुरू तो जुवी से ही किया था लेकिन फिर मुझे लगा किसी ने कहा कि किसी को आपत्ती हो सकती है
08:20इतना सत्य लिखना और बहुत डर था मुझे कि इसे कोई पढ़ेगा कि नहीं पढ़ेगा किस तरह से लेगा
08:29तो फिर मैंने अबोली नाम रख दिया और अबोली का अर्थ तो ही जो अबोल रह गया
08:37अबोली एक फूल है जो घाव भरने में काम आता है
08:41और इसलिए मुझे ये सार्थक लगा इसका नाम कि जो इस डायरी की नाइका है
08:50जो नाइका तो नहीं कह सकती जो ये डायरी लिख रही है उसका नाम मैं अबोली लिए इसलिए मैंने जूवी शर्मा नहीं लिखा
08:57इतना सब कुछ आपने कहा डर था की लोग पढ़ें ना मुझे तो लगता है की डूसरे तरह का डर होगा की ये जो जूभी शर्मा है जो अपनी कहानी लिख रही है वह अब भी उसी घर में है
09:11हाँ सर मैं उसी घर में हू और उनी लोगों के बीच में हूँ
09:14मुझे यह डर था कि कहीं कोई यह नहीं कहँ दे कि विक्टिम काड प्ले कर रही है लेकिन इसलिए मैंने आपको कहा ना शत्थ प्रतिषत सत्य है बगार कोई कपूल कलपनाओं के मैंने वो लिखा जब मैंने पहले रिखा कोविड कि फर्स्ट वेव में मैंने लिखा तो सर्�
09:44पहले यही किताब लाना चाहती थी, अबोली की डायरी, फिर मैंने इसे दुबारा लिखा, क्योंकि मेरी एक हमेशा से आदत रही कि मेडिकल फाइल, डॉक्टरों की जितनी रिपोर्ट्स हैं, और जितनी भी डायरी हैं, मैंने कभी डिस्कार्ड ही नहीं किया, मैंने, तो उस
10:14बाल बच गई मैं, बाल बच गई मैं, बाल बच गई मैं, अब देखिये हम आप बीती की बात कर रहे हैं, तो मैं जो प्रस्टन लिखा था, उनमें से साहिद ही मैं कुछ पूछ पाँँ, नहीं जी, आप बड़े भाई की तरह पूछिए, जैसे हम साहितिक बात चीत करते �
10:44पुछ तक ला रहे थे, और अभी तक पुछ तक न केवल साहितिके जिग्यासियों में नए छात्रों के बीच भी बहुत प्रभावी रूप से स्थापी थे, उसमें बहुत सारी बातें ऐसी भी हैं, जो दूसरे साहितिकारों से जुड़ी हुई हैं, और जिनको कहते हैं कि
11:14मिला कि मैं ऐसी भी बातें जो अपरी हो जो, क्योंकि मनोहर स्याम जोसी जी को लेके उनसे जुड़े लोगों को तो कह सकते थे, वो लोग बराबर के लोग थे, लेकिन आपकी पीड़ी में आप चुके उनके सुछ से थे, तो आपको तो भाय होना चाहिए, क्योंकि उस समय
11:44इस दोर में मनोहर स्याम जोशी निर्मल बर्मा जैसे तमाम बड़े लेखक क्रिष्ण बल देव बाएद, कितने नामलू सारे बड़े लेखक होते थे, और मैं उन जमाबडों में गुसा रहता था, किसी कारण से, मैं लेखक से पहले संपादक था, पत्रकार, किसी ने किसी
12:14और उसमें वैलिडेशन मुझे किसका चाहिए था, उनके परिवार का, मैंने अधर निये, उनकी पत्नी भगवती जोशी जी है, मेरी टीचर भी रही है, पढ़ाती थी हिंदी, तो उनको मैंने किताब पढ़वा ही, मैंने का, अगर ये पास कर देंगी, इस किताब की सारी �
12:44करते थे, ईसने में भूखे भी, पूखे मा जाडंते थे, मैंने एस बहुत जावी जाते थे, मैंने इस दिलिखा लेकिन उसमें बने कुछ और बाते हैं जिसमें एक दिन उनने मुझे बुलाया, मैंने ऑइमने अगdi तो फॉर ठाही स्पह बिधंग रहा जो ए और वह तक
13:14इस में लिखा है कि शराफ पी रहे थे हैं वो शराव उन्होंने कभीजीवन में पी नहीटिए ये प्रसंग मुझे लगता है कि तुमने घड़ दिया है तुम उनके शिष्यो उन्हीं की तरह कहा यह जानते हो ये प्रसंग घड़ दिया कि नहीं और रिल्ल-देक्व उन्हों
13:44जूट बोज सकते हैं, तो फिर चलो.
13:46मैं मालेती हैं, पीते होंगे, जब तुम भी खह रहे हैं, तो पीते होंगे.
13:50लेकिन ऐसे और तमाम प्रसंगते, इनको उनों नहीं चुप लेगन, इस पर उनों नहीं टोका गी शराव,
13:55जबकि उनी के घर में शराब पीते थे, लेकों की शराब की महफिन, लेकि उनको लगा कि मेरे पती के निदन के बाद, ये सब बात थे ठीक है, ये बात नहीं जानी चाहिए.
14:03प्रभात उस किसाग्राम और हिंदी मीडियम टाइट प्याओं से पहले मैं पालतू से एक कोई ऐसा संसमार जो जिसके चलते आपको बहुत आलोचना भी जहलनी पड़ी थी, ये तो उनके घर की बात है, मैं चाहूंगा एक कोई ऐसा प्रशंग और बता दें, ताकि जो नई �
14:33बातों को लिख रहा था, तो मैंने पीएजडी गाइड जो मेरे दिली इनुवस्टी में तो बहुत बड़े विद्वान टीवी मीडिया के सबसे बड़े श्रशक्य माने जाते थे, वही भी है, सुधिष पचोहरी उनका नाम हो मेरे गुरू थे, गुरू है, मैं थे, क्या
15:03बड़ी मत बनना और तमाम उनके लेखन की कमियां बताते रहते थे, लेकिन जब मैं लिखने आया, तो मुझे वह प्रसंग बड़े अच्छे लगे किस तरह से शोध किया जाता है, किस तरह से उतारा अधनिक्ता को लेकर उनोंने किया, और किस तरह से उनके पूरे लेखन म
15:33अधनिक्राओं वो तो मेरे अपने गुरू है, जीवी थे, इसी दिली विष्वी दाले में, वो तब एक्टिंग वाई शांसर थे, दिली विष्वी दाले के महाँ पढ़ाता था, और उनोंने उस समय कुछ नहीं बात लेकिन उनोंने जब मिला में उनसे किसी कारण से तो �
16:03ठीक है, ऐसी ही हम देखिए किस्थों की बाते करेंगे, इसी अंदाज में बात करेंगे, चूकि ये एक अच्छी बात है कि प्रभात से जब हम बात करेंगे तो हँसेंगे, जुवी के पास जब भी मैं आउँगा तो अबोली की, अबोली का दर्द जो है, कहीं ने कहीं, ब
16:33हर पन्ने पे दर्द है और कोई इतना दर्द पीकर जी कैसे सकता है या प्रस्ण उठता है जो भी मेरा प्रस्ण भी यही है कि वह कौन सी ताकत थी जिन इस सितियों में ने आपको जिंदा रखा
16:51मेरे बच्चे स अब मेरे बच्चे और मुझे वह इतना प्यार करते हैं मैंने कहीं पढ़ा था कि प्रेम लटता है कि वह किसी और रूप में लटता है सारी तकलीफ हें सारे कर्ष्ट डिप्रेशन और साथ जो भी कठिनाय आई लेकिन उनका प्रेम सबसे भारी था मेरी बेट
17:21प्रवाद रंजन सर और आपके साथ बैटी हूं मैं कि मुझे लगता है यह मैंने डाइरी लिखते समय मैंने फर्स्ट लाइन में लिखा है यह अंधेरे और उजाले की यात्रा है और ऐसा मुझे उमीद है अभी भी उमीद रखती हूं मैं कि एक दिन अंधेरा खतम हो जाए�
17:51है और निश्यत रोप से मैं जो लोग इस कारिक्रम को देख रहे हैं अगर आप अभुली की डाइरी पढ़ेंगे तो सायद मेरी बात से सहमत होंगे
18:01ऐसी क्या बाध्यता है हिंदू भारतिये परिवारों की भारतिये संस्कारों की कि एक लड़की इतना अत्याचार सह कर भी उस पारिवारी का परिवेश से बिद्रोह नहीं कर पाती छूट नहीं पाती
18:25सर हमारी brain mapping की हुई है हमें सबसे पहले यही सिखाया जाता है कि तुम्हें चुप रहना है तुम्हें आवाज नहीं उठानी है तुम्हें लड़ाई नहीं करनी है तुम्हें बहस नहीं करनी है और सबसे पहली बात तुम्हें सवाल नहीं पूछने है तुम तुमारा जो है
18:55पिर एसे अंजाम फिर अबोली जनम लेती है।
19:00कुई ये सद्यों से चला रहा है।
19:03यह इसिखाया कि तुमको आवाज नहीं करने हैं।
19:04कि तुमको आवास नहीं करने हैं।
19:06सवाल नहीं है।
19:08है तुमको ऐसे ही जीना है।
19:11चाहे तुम्हारा ससुराल हो, चाहे वो तुम्हारा माइका हो,
19:14अगर आप सवाल करेंगे, तो आप कटगरे में खड़े हो जाएंगे.
19:17वो कते ही बरदाश्ट नहीं कर सकते हैं हमारे सवाल.
19:19लेकिन अब बोली लिखने के बात भी कुछ बदला?
19:22हाँ सर, मन शांत हो गया मेरा, अब पीस, डाइरी में अभी भी लिखती हूँ, लेकिन ये तो आफ्टर एफेक्स है.
19:36परिवेस में कोई बदलाव नहीं हुआ?
19:38नहीं, दवाईया चालू है, और मुझे विने सर ने भी सबसे पहले जब ये लिखा, मैंने उन्हें जब पांडुली भी बेजी तो उन्होंने पूछा कि, यह जैसे आपने मुझे आज पूछा कि यह उपन्यास है कि डाइरी? मैंने कहां सर डाइरी?
19:53अब बहुत चीज़े उसमें दरसल आश्यरे चकित करती हैं, उस पर बात करते हैं, यह प्रभात आपने जब यह हिंदी मिडियम किसाग्राम से पहले आते हैं, हिंदी मिडियम टाइट पे, ठीक है, हिंदी मिडियम टाइट तो सुने थे, हिंदी मिडियम टाइट जो कहने क
20:23संस्मार्णों की बात है और वो किताब जो लोग देख रहे हैं हर हिंदी भासी जो भी यूपी बिहार से आया हुआ है राजस्तान से आया हुआ है जारखंड 36 गड़ से आया हुआ है उत्राखंड से आया हुआ है दिल्ली के परिवेश में जब वो आता है तो पहली बार वो �
20:53आपकी किताब उस तरह के जितने भी बच्चे हैं जिस तरह जो यूपा हैं उनको एक तरह का अंदर से साहस भरने की कोशिश करती है और बहुत दबंगई से बताती है कि देखो भाई यह हिंदी मिलियम टाइप नहीं है यह हिंदी मिलियम टाइट है ठीक है तो मैं चाहू�
21:23सेकुआ हैं और विखिषकर हिंदी भास ही परिवेश आते हैं हिंदी माध्यमों से पड़े वह हैं उनके अंदर यह बहुत दबाव होता है कि मैं ऑंग्रेजी बूल रहा है कैसा बूल रहा हूं बोल पाता हूं कि नहीं बोल पाता हूं और अंग्रेजी के लोग तो निशि
21:53आज भी नंबर बन कॉलेज है वहां पढ़ने आया तो बाहर वालों के लिए तो मैं था कि में हिंदू कॉलेज में पढ़ता था लेकिन जो वहां की भाषा थी अब तो बहुत बदलाव हो गया लेकिन उस समय जो भाषा थी अप अंग्रेजी अगर आपको नहीं आती है तो आ
22:23अच्छा अपने क्लास में करना वह सब तो ठीक है आप करना है मैं करता था उस सब में कोई कमी नहीं थी लेकिन जो कमी यह थी कि मैं उस भाषा में समवाद नहीं कर पाता था जो समय हंदू कॉले उसके सामने सेंटर स्टीफेंस कॉले साई दो बड़े कॉलेजों का जो डर
22:53सब्सक्राइब लेकिन हम इसलिए नहीं कर पाया हो वहां के मन्ज़ पर हम इसलिए नहीं कुछ कर पांकद मरें पास बहु病 ह offers अन्दर बग�त डर्व औरहेट एं एचमटी का किस्साः होताय शुरू होताय कर दोस्ता जो खाहर बात की बात है में अचलोす का फौलेज का यह
23:23तो मैं भी वहाँ था, तो महाँ बहुत सारे हिंदी के लोग, हिंदी अधिकारी और इस तरह के लोगों को गुलाया गया था उस समारो में या उस पार्टी में जो भी कह लीजे, तो मेरे उस दोस्त ने का कि ओ प्रभाद, जो, there are so many HMTs are here, so go and handle them, you can handle them better,
23:40तो मुझे लगा कि यारी, अभी भी मुझे HMT ही समझता है, सब कुछ हो गया, मैं बड़ा पत्रकार था उस समय, तो मुझे लगा कि एक मानसिक्ता है, जो नहीं बदलती, हमें देखते हैं उनको हमारी भाशा यादाने लगती है, ये समाज में हम धर्म के आधार पर, जाती क
24:10क्यांटि हैं ये समझते हैं और उसके अधार पर हम बेद बहाव करते हैं, और ये हमारे शिक्षा पड़्ती ने अ faced कर दिए, मेरे अपना ही उजारन बताता हूं कि मेरी किताब
24:20मेरी किताब किसा ग्राम का अपने नाम लिया किसा ग्राम अभी अंग्रेजी अन्वाद उसके एक अंग्रेजी के लिए खक निया को यह उसका अंग्रेजी संसकरन अंग्रेजी अन्वाद बाजार में आ रहा है तो मेरी बेटी ने का जो लेडिस ग्राम कॉलेज पढ़ती है �
24:50माने जाते उसी टाइप का जो मेरा अंदर भाव था टेकनलोजी ने सबसे आदा उसको बदला है और इस तरह के साहित तक जैसे मंचों ने बदला है कि हिंदी बोलने वाले भी अच्छा बोल सकते हैं उनको भी लोग सुन सकते हैं तो यह जो है मुझे लागा कि हम टाइप नह
25:20अपने आप को इंदी मीडियम टाइप के रूप में नहीं देखता हूं मुझे कोई मेरी बासा के कारण और मुझे भेदवाव नहीं जेलना पड़ता है यह बदलाव सिर्फ मेरे लिए नहीं हुआ होगा यह बदलाव समाज की उस मानसिक्ता में समाज के उस सोच में बदल
25:50अपने आपको देखने लगे
25:52निश्यत रूप से मैं इस बात पर पर से सहुमत हूं प्रभात की यह हिंदी की ताकत ही है कि मैं बडाबर इस बाभी हूं महसुद्ध भी करता हूं
26:03साहित तक में जब भी हम मैं आप जानते हैं किताबों के बारे में बात करता हूं और सापताहिक साक्षातकार का जो कारिकरम है तो अंग्रेजी का कोई भी बड़ा लिखक
26:14मैं कोई भी बड़ा लिखक कह रहा हूँ जो बहुत सारे ऐसे लिखक जो हिंदी में बात भी नहीं कर पाते हैं वो भी इस बात के लिए प्रयास करते हैं उनकी एजेंसियां प्रयास करती हैं चोकि आप जानते हैं कि अंग्रेजी किताबों में उनकी पबलिसिटी का एक बड�
26:44रही एक बात ओर इसमें मैं जोड़ूँगा कि पहले जो हिंदी के लेक्कों का ये बहुत बड़ा आकांख्शा होती थी बहुत बड़ी कि हमारी किताब अंग्रेजी में किसी दिन आ जाये और हम तुनिया वर में जाने जायें ये आकांख्शा इस समय अंग्रेजी में लि
27:14बाजर है जो अब लोगों को समझ में लगा कि इस भाशा के पास आज परचेजिंग पावर विया इनके
27:20पास खरीदने की छमता भी है और यह भाशा भाशी लोग देश बदल देश के कि IL्मा बदल सकते हैं यह बाजार बदल सकते हैं इनके इनके बाशा में आए बिना
27:30हमारा कोई हम बहुत बड़ी आवादी तक नहीं पहुंच सकते हैं अंग्रेजी में सोच आई हैं अंग्रेजी के लेकों में कि हम हिंदी में आएंगे तो हम जादा लोगों तक पहुंचेंगे
27:38जुवी आपने अबुली की डाइरी में एक वाक्य लिखा है कि मिट्टी के देह से बना मनुश्य जब पश्यताप की अगनी में जोलस्ता है तो उसके कर्म की स्विकारुक्ति के मार्ग भी स्वैंग प्रशस्त हो जाते हैं
27:57क्या आशे है इसका मतलब मेरे कहने का थे कि मिट्टी के आपको माइक पास रखनी होगी हमें हमारे पस्चाताप हमारे हमारे कर्म ये मिट्टी के देह से हुए है न अच्छे बुरे जो भी हुआ है जो भी जिया मैंने इसी देह से जिया और उसके परिणाम भी हमें भूग
28:27तो पस्चाताप आपको क्यों हो, क्योंकि आप तो विक्टिम से दो हैं..
28:31नई सर, हमारे हम और अरतों को भी पस्चाताप करने होते है
28:56इहंकर आया, मेरे मन में गुस्सा आया,
28:58तो मुझे उस बाद का तकलीफ है,
28:59मैं उसको बालimon करना जाती हूं कि
29:03हाँम उससे गल्ती हुई,
29:05और मैं खाली इतना ही चाहती हूं कि
29:06जो भी गल्ती कुरता है, अगर हम उससे एसेट कर लें,
29:09हम खाली मान भर लें,
29:11पूरी किताब इस बारे में कि खाली आप एक बार मान लेजिए कि आपने गल्ती की
29:15उसको आप accept तो करिए आप वो एहंकार हमारा आड़े आ जाता है उस मिट्टी के दे के आगे
29:22और हम अनथ तक हमारा शरीर खत्म हो जाता है लेकिन हम ये नहीं मानना चाहे हैं कि हमसे गल्ती होए
29:29नहीं लेकिन छुभी जो है मरला में अवुली जो है किताब की जो नाइका है वू एक जग़ा इपनी अवसाद की स्थितियों से दवा खा रही होती है
29:44चीजे हो रही होती हैं और फिर वो social media पे chatting में फस्ती है और फिर किसी से के संपर्क में आती है और फिर
29:52digital कुछ नहीं होता है digital खाली money अच्छी लगती है तो उसके लिए भी वो अभ्यक्ति भी उसको
30:02नहीं हो ठिक्ट करता है दोखार देता है तो मैं ये जानना चालते हूं कि उस लड़की को किसी भी लड़की को आज की जो आज की
30:15श्युक्षै न भुगत पाएं या आप ये मानती है कि जो जैन जी है उसको भी भुगतना हो और आगी
30:22बदलावन नहीं हो रहा है, सहीं में बदलावन नहीं हो रहा है, बिल्कुल नहीं हो रहा है, और मैंने ये किताब आने के बाद से, मैंने जितनी भी ओरते हैं, मुझसे जितनी भी लड़कियां बात की, वो सोशन की बात तो बाद में करते हैं, पहले वो ये कहते हैं, कि तो हम
30:52और जैन्जी हो
30:55चाहे मेरी उम्र की हो
30:56चाहे जब से शोशल प्लाइटफॉर्म आया
30:58वो हमें आकरशित तो बहुत करता है
31:00कि हाँ सब अच्छा अच्छा है
31:02लेकिन उसमें फसने के परिणाम तो भुगत नहीं पड़ता है
31:04जो भी एक कोई संस्मरण
31:06जो इसको बता पाएं
31:08और जिसको बताते समय आप रोई नहीं
31:10हाला कि क्योंकि मैं
31:12जब कह रहा हूँ ये बात तो
31:13बहुत सारी बाते मेरे दिमाग मिलें
31:16हाला कि आपके सबसे पहले तो मैं
31:17आपके साहस को
31:19निश्चित रूप से उसका
31:22अभिनंदन भी करता हूँ
31:23और ये एक बहुत बड़ी बात है
31:26कि आप उसी परिवेस में हैं
31:29और एक ऐसी लड़की
31:31जिसको ये भी नहीं पता है
31:33कि वो कब जिंदा रहेगी
31:34कि मार दी जाएगी या मर जाएगी
31:36वो खुद आत्मात्या करने की भी
31:39सोचती है बच्चों के लिए नहीं करती है
31:41मैं कुछ-कुछ
31:43कहानियों के हिंट दे रहा हूं उसके अंदर
31:45कई बार आउसाद में जाती है
31:48अभी दवा खा रहे हैं
31:49फिर भी अपनी बात को जब लिखती है
31:51तो इतना खुले पन से लिखती है
31:53कि उसमें
31:55कहीं भी कुछ भी छुपाया नहीं गया है
31:57मतलब
31:58लडकियों के जीवन में
32:01किशोर होते हैं बच्पन
32:03उसके बाद उसको एक लड़की
32:05होते हुए दूसरी लड़की के लिए
32:07क्या कहा जाता है ये सब कुछ भी है
32:09मैं चाहूंगा कोई एक संस्वनाट छोटा सा किसा
32:11मैं सर
32:12मैं वो किताब में ये लिख नहीं पाई हूँ
32:15जो मैं आपको बता रही है
32:16मैं
32:18कोकिला बेनमवारी में
32:20डॉक्टर डीन क्रियाडो वहाँ पे
32:22साइकेटरिस्ट है
32:24आस्ट्रेलिया
32:26ज्यादा तर वो रहते हैं
32:27उनका बहुत कम होता है इंडिया विजिट
32:29और बहुत मुश्किल से अपांडमेंट मिला था मियर को
32:32तो
32:33उन्होंने सारी बात सुनके
32:36मुझे बोला कि
32:37ये नंबर है
32:38इफ ये वांट टू सुसाइड
32:41आप इस नंबर पर कॉल कर लीजिए
32:43मैं कुछ नहीं बोली उन्हें
32:47मैं लगातार रो रही थी
32:48डॉक्टर साब का फोन पड़ा था
32:51उनकी डेस्ट पर
32:53और मैंने बोला
32:55मैं मिस्ट कॉल कर सकती हूँ गया
32:57मैं
32:59मैं फोन लगाना चाहती थी
33:03उनके फोन से कि कोई फोन उठा ले मेरा
33:06मैं किसी का हेलो सुन लू
33:08मुझे कोई प्यार से बाद कर ले
33:10और फिर मैं वहां से आ गई
33:14उन्होंने
33:15भी यही बोला कि
33:17आप इनको दवाईया हाथ न मत दिजी
33:21ज़्यादा जिन्दा नहीं रह पाएंगी
33:22मैं डारी लिखते वक्त
33:25खुद कितने ही चीज मैं लिखनी पाई
33:27क्योंकि नहीं लिखना असान था
33:30पढ़ना तो मेरे लिए भी बहुत मुश्किल हो जाता है
33:33मुझे इतना प्यार मिला इस किताब से
33:35मुझे उमीद नहीं थी कि लोग इसे पढ़ेंगी
33:37मुझे डर था क्योंकि इतनी
33:39अफसाद भरी किताब है कौन पढ़ेगा
33:41नहीं लेकिन उस
33:43जिंदगी के अंधेरों में उमीद की
33:45कीरण हो है वह उमीद की कीरण
33:47खुद आपका जीवन है इसलिए
33:49जो भी हमारे कारिक्रम को देख रहे हैं
33:52मैं सभी को कहूंगा कि
33:53अबोली की डायरी जरूर खरीद कर पढ़ें
33:56साइट कहीं ने कहीं आपको
33:58हम लोग जो सोचते हैं कि
34:00हमारे जीवन में बहुत दुख है
34:01तो जब वो किताब पढ़ेंगे तो आपका यह
34:04ब्रहम तूटेगा
34:05किस्ट ग्राम से कोई एक किस्ट सुना ते क्योंकर यह जो घड़ी है वो मुझे रही है हम लोगों को समय चुकई पहले सत्रवा के लोग लगातार समय खाते चलेए चले गए हैं
34:15तो हमें समय कम मिला है
34:16तो मैं चाहूँगा कि एक किस्सा चुकि मैं मंच पे हूँ और कारिक्रम के दाहित्व के तहत एक जम्मिदारी मुझ पर है कि मैं सत्रों को टाइम से खतम करा हूँ यह यह मेरा जिम्मा है तो मेरा सत्र व्हुत्स सुना देता हूं उसमे बहुत सारे एक ऐसे शहर की कहानी है �
34:46एक दिन दंगल हार के वो आया तो उसने हनमान जी की मूर्ती तोड़ दी ती और फिर वो भाग गया था ये बात मेरे अंदर अटा गई मैंने सुचा कहानी में लिख देता हूं मैंने लिख दिया बहुत इनों बाद मेरे पास एक किताब जाहिर है जहां का मैं हूं आन लोग म
35:16बताया me तो बिए ज़ना जाने है किसी गाहों का तो आधमी था मैंने अचा अच्छा तो बताईए मुझे वैलिए बोट अटा ना था कि कि दो साल पहले वह कॉस्टम्स काम करते थे और दो साल पहले निट्पे
35:30तो मैस्टी जान में जाह नहीं मुझे लगा कुछ अड़ा नहीं मैं आपको बताना थो आपने कानी लिखी लिकिया थो
35:41आपके नहीं को था कि कभ pestan Dengal जिदेगी ही नहीं थे
35:44लेकिन उसने कहा कि नहीं, ये नाम और किसी का था ही नहीं, तो मैं यह भी होता है कि सच में पकड़े जाते हैं, जब आप तो आप समझ नहीं पाते कि आप क्या करें, तो टाइम्स अप घड़ी दिखा रही है, हमारे पास अउसर नहीं है, लेकिन समवाद का यह सिलसिला लग
36:14उनहीं को सुनेंगे जो लिख रहे हैं, पढ़ रहे हैं, बाकी मन्चों पर कलास, अंस्कृती, और मनरंजन से संबंधित चीजे चलती रहती हैं, अगर गंभीर साहित्य और किताबों के बारे में जानना चाहते हैं, तो साहित्य तक के मन्च पर रहे हैं, साहित्य आज तक म
36:44के लिए ही बनाया गया है बहुत बहुता भार
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