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कैसे हुई किस्सों की बयानी की दुनिया में शुरुआत? मशहूर राइटर प्रो. खालिद जावेद से खास बातचीत
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00:00नमस्कार आप साहित्या आज तक के आखिरी तीसरा दिन है और साहित्या तक के मंच पर हैं प्रोफेसर खालिद जाविद साथ के साथ मैं हूँ जैप्रकास पांडे
00:22और खालिद साथ से बात करने के लिए जब चैन किया जा रहा है था कि कौन बात करेगा तो मुझे ये जिम्मेदारी सौंपी गई
00:35उसकी बहुत सारी वज़े हैं मुझसे जो बड़े लोग हैं संस्थान में उन्होंने बहुत खुजबीन करने के बाद ये पाया
00:45कि शायद प्रोफेसर खालिद जावेद से बात करने के लिए मैं इसलिए उपयुक्त हूँ क्योंकि मैं रोज किताबे पढ़ता हूँ
00:55खालिट साब का परिचय जो उन्हें जानते हैं, उन्हें देने की जरुरत नहीं और जो उन्हें नहीं जानते, उन्हें जानना चाहिए।
01:04और आज की पीढ़ी को इसलिए भी जानना चाहिए कि जो अंतरराष्ट्री फलक है कथा साहित्य का, कथा संसार का, जिसमें बिम्ब, प्रतिमान, प्रतीक का जो प्रयोग है, उन्हें अनूठे ढंग से खालिद साहब ने अपनी कृतियों में रच दिया.
01:28और उर्दू का कथा संसार, जिन लोगों से सम्रिध होता है, और हमारे जैसे लोग जो पढ़ने की कोशिश करते हैं, कि हम समझ पाएं, जान पाएं, कुछ नया जान पाएं, वो कई बार उलच जाते हैं.
01:44अकादमिक परिचय बहुत बड़ा हो सकता है, पुरिसकार, जैसी भी पुरिसकार एक जो सरवाधिक राजश्री का साहितिक पुरिसकार है, वो आपको मिल चुका है, उसका अंग्रेजी अनुवाद, जो तरजुमा जिसको कहते हैं, किताबे बहुत सारी हैं,
02:14और उसे इस तरह से लिख सकता है, कि उसे पढ़ते समय, आप उसके प्रवाह से अपने को मुक्त नहीं कर पाते, खाली साब माप करेंगे, क्योंकि मैं उर्दू में मेरा हाथ बहुत तंग है, और हिंदी में मैं जो बोलूँगा, वो पता नहीं क्या-क्या बोलूँगा, ल
02:44कैसे हुई, यह बात आप से हजारों बार पूछी गई होगी, लेकिन चुकि यह साहित्य तक का मंच है, और मैं साहित्य तक का संपादक हूँ, रोज पिछले तीन, चार, पांच वर्सों से, यह कारे करम डिस्टल मीडिया पे चल रहा है, हमारी जो साहित्य आज तक की करता
03:14की, तो चैनल तो पर हम रोज यह काम कर रहे हैं, लेकिन सन्योग या दुर्योग जो भी रहा हो, ऐसा आउसर नहीं बना कि हम आप से मुलाकात नहीं हो पाई हमारी, दुर्योग मतलब उस आउसर को का रहा हूँ, जो पांच साल बाद आया है, और सन्योग उसको की हम लोग स
03:44अंधेरा है और उसको भी इतनी खुबसूरती से आप बया कर देते हैं, कि पाठा को नहीं में उलच जाता है, इसके शुरुवात कैसे हैं?
03:54जी, जी.
03:58इसके साथ ही रहता तो ठीक है, आप इसको नहीं करना है.
04:03Thank you.
04:04बहुत शुक्रिया आपने मेरे बारे में बड़ी अच्छी बातें की ही, वो भी की ही, जिनके लाइक नहीं हूँ, मैं.
04:16अरे ऐसी बात नहीं, आप भूसे के बहुत लाइक ऐसा.
04:19आपने कहा कि शुरुआत कैसे हुई तो शुरुआत तो जैसे होश समाला, वैसे हो गई.
04:27शुरुआत शुरुआत थोड़ा बाद में हुई, लेकिन एसास की दुनिया में जो, जो एक खास, एक खास अन्वेदना, किसी चीज़ की, अब वो ही सबसे खास होती है, देखी, मैं ये मानता हूँ के लेखक जो होता है, वो अपने समाज का सबसे हसास फर्द होता है, इस
04:57बनाएं नहीं जा सकते, मैंनेजर्स और बाउन डॉक्टर्स और बाउन, बड़ राइटर और पोईट्स और नोट मेड़, ये और बाउन, अब ये और बात कि कभी कभी वो बाउन होने के बावजूद जो है, वो इस्पाइल्ड जीनियस होके निकल जाएं, या कोई और र
05:27दर्शन शास से मेरी दिल्चस्पी बहुत थी और मैंने साइंस से गिरुजेशन किया है, लेकिन साइंस से गिरुजेशन करने के बाद, बाद ही मुझे ये लगा कि इसका और दर्शन का ताल, चुकर जब मैंने, जब मैंने कौन्टम फिजिक्स पढ़ा, चुके मैं फिजि
05:57मैं आप कह नहीं सकते हो ये बड़े अध्यात्मिक किसम के थवाल थे जो मुझे लेगे तो मैंने वो छोड़के और फिर दर्शन शास में एमे किया फिर उसी को आगे बढ़ाया फिर वहीं पर मैंने पांच साल तक दर्शन शास पढ़ाया और मुझे ये मैसूस हुआ कि साहि
06:27आइडिया अफ दा एक्जिस्टेंशलिजम आइडिया आफ दा इंटिलेक्शलिजम बड़ा तरह के आइडियाज होते हैं यही आइडियाज जब इनसानी जिंदगी पे जुड़ जाते हैं तो ये इंप्रेशन्स की सेकल ले लेते हैं यानि वो जो के सिर्फ अमूर्त वि�
06:57तो जाहर है कि बदा की जब मैंने फिलासिप पड़ी तो बहुत अनोगी फिलासofee है बदा की आप बदा को अगर ले एंगे बुठ को तो सारी फिलासी से उस बद फ़ो इंडियान फिलासी बिलासिफि में जो छे स्कूल है इसमें जैन बी नियाइ दरशन जियाए वाशय �
07:27तो ये चीज बहुत पहले से
07:30मतलब चली आ रही थी और ये भी लगा मुझे कि साहित और दर्शन
07:33मतलब एक ही नदी के दो किनारे हैं
07:37अब मैं किसी एक जगा ठहर नहीं पाया
07:41मतलब कभी दर्शन से बैता हुआ साहित के किनारे पर आ जाता हूँ
07:46वो भी मेरा पूरा घर नहीं होता
07:48मुझे वहां से बैता हुआ और फिर दर्शन के किनारे आ जाता हूँ
07:52वो भी घर नहीं होता शायद घर है नहीं कोई
07:54मैं बैता रहता हूँ दोनों किनारों के बीच
07:57तो मुझे को ऐसे लगता है
07:59खालिद साब आपके लेखन पर लगातार इस बात की चप भी आपके लेखन की चर्चा होती है
08:06अलग अलग तरह के विचार लोगों के सामने उपसीत होते हैं
08:11लेकिन मेरे जैसे जो आप कहेंगे अलपक ये लोग हैं
08:17अरे ऐसा मत कही है
08:18ये मानते हैं मुझे ये लगता है कि कहीं ने कहीं आध्यात्म, दर्सन, जीवन, मृत्यू के जो आध्यात्मिक सवाल है
08:30वह आपके उपन्यासों का मूल स्वर है
08:33जबकि जो लोग आपको अकादमिक रूप से पढ़ते हैं
08:37वह ये कहते हैं कि रूसी साहित्य और जो पशिम का साहित्य है
08:43उनका असर आपके उपर ज्यादा पड़ा है
08:46मुझे लगता है कि साहिद आपकी जब जीवनी या आपकी जीवन का गाथा
08:52या आपके बारे में ó पकारिईर के बारे में जब आकादमिक चीजें पढ़ी जाती है
08:56तो जिन लोगों के बारे में आपने अलग-अलग शाक्षातकार दिया
09:00उनसे आपको जोड़कर देखा जाता है
09:02मैं चाहता हूँ कि आपका अपना मानना क्या है
09:07मैं जो सोच रहा हूँ और जो दूसरे आलोचक सोच रहे हैं जिन्होंने आपके उपर सोध किया है और जो काम किया है यह भारती ये दर्शन है या पाश्यात ये दर्शन है या दोनों का मिला जुला कहीं प्रभाव हो नहीं देखिए पाश्यात दर्शन तो बिलकुल नहीं ह
09:37अपना रहेगा लेकिन खिल्कियां दरूर रखोंगा उसमें ताके मनला हवा आती रहे दर उधर की तो आप कह सकते हैं कि अच्छा कोई भी राइटर जो होता है वो बिल्कुल बंद कमरे में तो बैटके लिखनी सकता आज का दोर है और फिर मैं साहित को तो मैं ये समझता हू
10:07हो सकता है कि फिलिंग का या भावनाओं का जो एक्सपरेशन होता हो उसके इजहार का जो तरीखा होता हो वो थोड़ा अलग हो लेकि मेरा इजहार के तरीखों से कोई लेना देना नहीं है जो बन्यादी तोर पे मैं जानता हूं कि इनसान को दुख होता है वो रोता है वो �
10:37आप ये समझें कि ये इंडिया में होता है बाहर नहीं होता मैंने जो प्रेम का सो रूप है वो जैसा मैंने यहां पाया है वैसे ही मैंने बाहर पाया है अभी मैं पैरिस गया हुआ था आठ दिन मैं मैं वहां रहके आया वहां कुछ इंटरव्यूज हुए मैंने वहां की जिं
11:07इनको हो तो हटाना पड़ेगा हमको
11:09अंदर जो है वो एक ही है मानव
11:10फिर भी मैं ये कहना चाहता हूँ
11:13कि आपने इंडिया फिलासिफी की बात की
11:16तो महातना बुद्ध ने तो सारी दुनिया को
11:18दुख का सबख पढ़ाया है
11:20तो मेरे याँ तो दुख की मिट्टी से
11:23सारी चीज़ें अभी ये इतना मशूर हो गया है
11:25कि वो सारी चीज़ें मशूर है
11:26दूसरी चीज़ ये है कि
11:28जैसे अद्वेतवाद है
11:31तो ये जो इलूजन और रियलिटी का जो फर्क है
11:34अगर आप देखेंगे तो मेरी कहानियों में बहुत है
11:37मतलब कहां सुपन है
11:39और कहां भिर्म है
11:40और कहां वास्तेविक्ता है
11:41ये बिलर्ड हो जाती है
11:43ये जो सीमाए है
11:44तो ये तो पूरा अगर हम शंकराचारिय
11:47ये हम रावनचारियों को पढ़ डालें
11:49उनका अगर हम अद्वेद बाद पढ़ डाले
11:51और सांप और वो मतलब रसी का
11:53जो उनका बहुत ही मशूर
11:54एक उनका मैटरफर है जिसको वो इस्तिमाल करते हैं
11:58तो वो सारी चीज़ें यहां पे मौजूद है
12:00दूसरी बात ही अगर आप अस्तित वाद की बात करते हैं
12:04तो अस्तित वाद कोई वेस्टन फिलासोफी नहीं है
12:06वो वेस्टन फिलासोफी होता है एक एक स्कूल
12:09एक वो स्कूल आफ थार्ट की तरह
12:11फर्स वर्ल्ड वार और सेकंड वर्ल्ड वार के बीट में पनपा
12:15और जिससे हमने मशूर कर दिया
12:17एलबियर कामू को
12:19सार्त को
12:20मारले पॉंती को
12:23इन लोगों को हमने मशूर कर दिया
12:24लेकिन अगर हम देखें कि हमारे यां तो उपनिशिदों में
12:27जितना जादा अस्तितवाद हमारे उपनिशिदों में इतना तो कहीं है ही नहीं
12:31खास तोर से कठो उपनिशिद अगर आप लोग पढ़ें इशो उपनिशिद पढ़ें अगर आप
12:35या शोतर शोतर उपनिशिद पढ़ें मिर्तियों के बारे में लगातार सवाल है
12:39बार बार वो पूछते हैं उनसे के वो ये कैसा जीवन है जिसके विरिश को मिर्ति रूपी कुलाडी बार बार काट देती है और ये बार बार उखता है ये कौन सा विरिश है इस तरह के जो प्रिशन है वो भारती दर्शन के अंदर मौजूद है जो अस्तिदवाद या योग
13:09को लेके जो बात है कौन सा समय है हम किस समय की बात कर रहा है एक वो समय जो के मेरे मन में चल ला है एक वो समय जो के बाहर चल ला है एक मैथेमेटिकल समय है और एक स्पिरूचल समय है और एक जमीन के भूमने का समय है ऐसे जो सवालात है बहां देखिए उस से असर लेके बोर
13:39इसलिए कहते हैं अगर अपना लिट्रे कर पढ़ लिया होता तो कभी नहीं कहते हैं बहुत अच्छी बात खाली साब एक जगा आपने लिखा कि ब्याकरण की किताब में मैंने काल के तीनों रूपों में स्वैंग को तलास किया और हर रूप में स्वैंग को अनुपस्थित प
14:09जाकर पूरी होगी अब ये देखी तलाश ही सबसे बड़ी चीज होती है पता नहीं लगता है कोई मनजिल गोई चीज नहीं है रास्ते हैं ये वो रास्ते हैं अस्तित के रास्ते हैं जो कभी खत्म नहीं होंगे हमको ये लगता है कि एक दिन मनजिल आईगी लेकिन वो जो
14:39तलास करने वाली बात कि मिर्तिव को मैं ये मानता हूं कि
14:43वो जीवन का फुल स्टाप नहीं है या अगर जीवन का अगर कोई एक वाक है जो के लिखा गया है अगर जिंदिगी एक जुमला है और हमने उसको लिखा है
14:52तो मिर्तियू उसका फुल स्टाप नहीं है
14:57मिर्तियू कामा है
14:59कामा लगाईए और पिर आगे बढ़िए
15:02मैं नहीं लिखूंगा कोई और लिखेगा
15:05हर लिखा का लिखा हुआ ओपिन एंडिड होता है
15:09कोई टेक्स ऐसा नहीं है जो अपने आप में बिलकुल कम्पलीट हो जाए
15:13तो मिर्तियू भी
15:15मतलब चलने वाली चीज़ है जिन्दगी के साथ साथ चलने वाली चीज़ है
15:20जिस दिन पैदा होते हैं उस दिन मिर्तियू साथ में पैदा हो जाती है
15:23उसी दिन साथ में दोनों का जनव होता है
15:25लेकिन मनाते हैं हम उसको कहीं बहुत आगे जाके है
15:29खालिज साब भी आपको नहीं लगता कि आप जो धार्मिक विजार हैं पूरी दुनिया में
15:39हिंदु धर्म दर्शन को छोड़ के जहां पूर्णर्जर्म की परिकल्पना है लगातार जीवन और निरंतर चलता रहता है मौक्ष की प्राप्ति से पहले तक
15:50तो कहीं न कहीं दुनिया के बड़े धर्मों के विचारों का जो उनका मूल स्वर है
15:56उसका अतिक्रमण कर रहे हैं अपने लेखन से जब आप ये कह रहे हैं कि मृत्यू जो है वह एक कामा है
16:02जी मैं और मैं ये नहीं कह रहा हूँ देखिए हमारी या उर्दू लिट्रेचर में हमारे शायरों ने
16:09इसको बहुत बार बरता है मतलब मीर ने बरता है और गालियू ने बरता है मौत एक मानगी का वक्वा है यानि आगे चलेंगे दम लेके थोड़ी देर का ठहराओ है
16:24देखिए ये सारी लब ये जो बैसे हैं ये इतनी यूनिवर्सल हैं कि ये धर्म तक ही टिक्यू नहीं है बलके हर्म धर्म की परिदी पे जो दार्शनिक विचार होते हैं या जो थिंकिंग वाइस होती है ये उसमें आ रहे हैं सवाल
16:40मित्यू के, जीवन के, अस्तित के वारे में कहा जाता है कि ये अपने अंदर से उभरते रहने की एक लगतार कोशिश है और ये कहते हैं कि चेतना है लेकिन चेतना एक धलान है और आप अपनी और आप चेतने की धलान पे खड़े नहीं हो सकते आपको फौरान फिसल नहों�
17:10उनका तो पूरा दर्शन में जो है वो एक पूरा चैप्टर उनका छड़िक बात पे है
17:15कि सब कुछ जो है वो एक छड़ है
17:17अब युनान में फिलास्टर पैदा होता है उनके पचास साल बाद
17:21हिरोकलोटस और हिलोकलोटस इसी बात को ऐसे कहता है
17:25यू कांट टेक बार ट्वाइस इन दा सेम रिवर
17:27तुम एक ही नद्दी में दो बार नहीं ना सकते चूकर उतनी दिर में पानी बदल जाता है
17:31तो ये तो बुद्ध बोलना है वहां पे
17:33अच्छा मुझे यह नहीं लगता है कि बुद्ध वहां तक पहुंच गया थै
17:38बुद्धिミ, उसका उन्होंने असल लिया होगा
17:41मेरा मानना यह है कि दुनिया के अंदर कहीं ना कहीं
17:45आपको एक जैसे विचार वाले लोग कभी न कभी मिलते जरूर है
17:49मिलेंगे जरूर हो आपका मुगदर है
17:50जीवन में ही मिलेंगे वो आपको
17:52एक जैसे सोचने, अब कभी भी मिलें वो, वो सकता है आखरी सांस पे मिलें, लेकि आपकी तरह का कोई आदमी, आपके जहन का, आपके टेमप्रेमेंट का, आपकी तरह का कोई आत्मा कह लीजे, वो मिलेगी जरूर, चूँके वो परमात्मा ने एक अकेला आपको नहीं बनाय
18:22और कुछ कंबिनेशन्स करते रहते हैं, और अपना एक लैंग्वेज का खेल खेलते रहते हैं, और इसी लैंग्वेज के अंदर मेरी फीलिंग इसलिए होती है, जो मैंने का, कि हर जमाने में मैंने आपको तलाश किया, कि मेरी जबान की जो सीमाएं हैं, वो ही मेरे ही वु�
18:52पूछूं कि खालिच साब के उपर किस दर्शन का सबसे अधिक क्योंकि बार-बार आप बुद्ध की बात कर रहे हैं अगर्शन सास्त के प्रध्याप अब वह आपका विश्य रहा है और
19:04प्रभावित है, और उर्दू साहित, हिंदी साहित, पाशात्य साहित, रसियन साहित, मतलब जो कुछ भी लिखा गया है, आप लगातार पिछला है, कई दशक बाज रहे हैं, बलकि लिख भी रहे हैं, तो बहुत ध्वनीत हो रहा हैं, लेकिन अगर मैं पूछूं कि आप किस �
19:34से उन सब का समुच्या है
19:36मैं एक तो मुझे
19:40ये बड़ी खुशी हो रही है आप से बात करके
19:42कि आपके जो सवालात हैं मुझसे आज
19:44सवालात है या जो बाचीट है
19:46वो बहुत डिफरेंट है
19:47क्योंकि पिछले दो तीन साल से लगाता है
19:50बार ऐसी चीज़े चल नहीं है मेरे साथ
19:52तो लोग साहित को लेकि
19:54आईसोलेशन में सवाल मुझसे करते हैं
19:56ब्रेक इट में रख देते हैं लिट्रेचर को कहीं
19:58या भाजशाओ को कहीं आपने
20:00चुए कि बार बार
20:01मेरी आप मुझे मेरी मेरी पहली
20:04मुझे मुझे आपको पढ़ते हुए भी महसूस होता रहा है
20:17और मुझे ये पहले से दिमाग में था मेरे कि
20:20जब भी मैं आपको पकड़ूँगा
20:21आपको पूछूँगा जरूरी ये सवाल की
20:23मुझे
20:24मैं जिस तरह से
20:28आलोचरक आपको
20:30बहुत ही रुक्ष ढंग से
20:31मैं कहूँगा
20:33मुझे छमा करेंगे जो भी लोग
20:35खाली साब पर लिखे हैं निश्चित रूप से
20:37उनकी मुभबत है तभी उन्होंने
20:39लिखा है लेकिन मुझे हमेशा
20:42आपकी किताबों को
20:43पढ़ते हुए भी और जो
20:45आप बताते हैं आपसे
20:47अभी बात्चित में मुझे आप
20:49दार्शनिक ज्यादा लगते हैं
20:51बजाए इसके कि ये कहा जाए कि
20:53प्रोफेसर खालिद जावे दूर्दू के
20:55बड़े साही त्यकार हैं कताकार है
20:57ये बहुत छोटा करता है आपको
20:59कहीं ने कहीं मुझे लगता है
21:00आप उससे कहीं बड़े हैं
21:02अब ये तो नहीं जानता लेकिन
21:04मैंने का जब मैंने दर्शन शाथ पढ़ा था
21:06जब मैंने फिलासोफी पढ़ी थी
21:08तो और जब मैंने फिलासोफी
21:11पढ़ाई थी उसको आज
21:12छोड़े हुए तीस साल हो रहा है तो ये वो जमाना है जब आतिश जवान था तो फिलासफी मैंने जवानी में पढ़ी या पढ़ाई जी वो सासा चलती आई और अब बुड़ापे में साहित मेरे पीछे पढ़ गया अपने एक मतलब एक आक्टोपस की तरह तो अब मेरी सम�
21:42जवाब दिया आपको कि वो दोनों पानी मिला लो थोड़ा सा आवे हयाज जो है उसको जहर में मिला लो और सोचो कि क्या बनती है कोई चीज तो इसलिए मेरी चीजों में आपको लगता हो गया भई बड़े आप बहुत डार्क है बड़ा डिस्टोपियन लिट्रेचर है य
22:12किस दर्शन से तो एक तो बुद्ध से नैचरली बुद्धिज्म से सबसे ज़ादा लेकिन ये देखिए ये जो मतासिर होना होता है ये साहित में ऐसे नहीं आता है कि एजिट हमने उठा के बुद्ध की फिलोसफी या बुद्ध के दर्शन को उठा के रख दिया और कोई �
22:42पर वहम लेक होकम में अपने देख हैं राइटिंग में अगर वही अदब में आ गया तो उसकी दरूरत क्या है फिर तो अदीब का का मुशी का का मुझाएगा फिर तो मुझी की तरह वह मकानों के काउग़ात की कितावत करता पिलेगा रिजिटि लिखेगा वह फिर लेका
23:12रह गए या बगार सही नहीं लगा है वो नहीं बनाईए तो आप ऐसा मनाईए कि वो जो मजमूआ है पूरा वो जो दर्शन है वो साहित में घुल मिल जाए जैसे दूद में पानी मिल जाता है पता कहा लगता है दूद का पानी मिला हुआ तो नहीं लगता ना रंगीन नहीं
23:42ही है या जो किताबों में जो नाम दे दे के यह आता है जैसे रैशनलिजम अभी मैंने बात की एग्जिस्टेंशलिजम आइडियलिजम इस तरह की चीज़ या यह कहना चाहिए के प्रेग्मेटिजम अगर उनको पढ़के मैंने उसको भाना पहली चीज़ तो स्टोरी टैलिं
24:12यह जो दुनिया है पूरी जो काइना था इसमें आपको किसने रोका है शेक्सपियर शेक्सपियर के बारे में यह कहा जादा था पहले आज ते पंद्रह बीस साल पहले कि उसने कोई दस हजार या आठ हजार आप बताएंगी यहां बैटी है कि उसमें वर्ट कॉइंड की है
24:42लेकिं बात की रिसर्च ने जो इधर हुई है मतलब यह जो मेटा किटीजिजम है उसमें यह पता चलाए कि वह वर्ट तो थे अरड लेडी कॉईन नहीं कियें लेकिन वह साहिज से बाहर की दुनिया में थे जासे कुछ ला में थे कुछ मेडिकल साइंस में थे कुछ कहीं �
25:12यहां बैठा हुआ सिर्फ और सिर्फ जो हूँ वो एक किसी राइटर को पढ़ ला हूँ यह चार राइटर को पढ़ ला हूँ यह चार थौट पढ़ ला हूँ तो यह एक अतकच्छा पन होगा और जिसको कहते हैं के लिटिल नालिज इस डैंजरस थी नीम हकीम खत्रा जान �
25:42मेरे यह आ जाता है क्योंकि उसके लिए हमें किसी सार्थ और कामू की जरूरत नहीं है उसके लिए इनसान का होना जरूरी है इनसान जिसके सीने में दिल हो तो अगर दिल है उसके पास दिमाग से अलग तो अस्टित वाद को जानने के लिए सार्थ और कामू की महांता के ब
26:12सार्थ ने किताब लिखी being and nothingness लेकिन जब सार्थ ने अपना नाविल लिखा नासिया या पुरा कामूं का मिताफ सिसीफस उनकी academy book है लेकिन जब वो लिखते हैं fall, जब वो लिखते हैं stranger, जब वो लिखते हैं plague, बात तब ही बनती है, बात दर्शनिक लेखा जोगा करने से ब
26:42विकासियात रहे, जब कि उल्टी विकासियात रहे, बहुत अच्छी है ना, यह कहा भी जाता है ना, कि an old man is a child, तो अगर आप फिर से मासूं होना चाहते हैं, तो आपको बुड़ा होना पड़ेगा, वन्ना वो आप अपने बच्पन में बड़े मासूं थे, फिर जैसे ज
27:12आपके अंदर से वो खुजबू आने लगे, उतना बुड़ा होने के बाद, जो के एक पुराने पेड़ से आती है, या एक पुरानी किताब से आती है, तो वो बहुत ही पवित्र चीज़ होती है, तो उस पवित्रता को सलाम करने से मतलब था मेरा.
27:28तो इसलिए अब खालिद साथ अपनी किताब में गंदो का इतना अनुठा प्रयोग करते हैं, तो मुझे पता है अनुठा है के नहीं, आइड़ों बस करता हूँ, यह कुछ हो जाता है, यह बावर्ची खाना के प्रतीक, जिस तरह के घर के, जिन कोनों के तरफ, सामान्य त
27:58प्रतिश्ठापित करते हैं, बलकि आप यह बताते हैं कि वह कितनी महतुपूर्ण जगह हैं, आपको इस तरह के प्रयोग या ऐसे कोने अतरों पर लिखने की आवश्यक्ता कैसे समझाई, और आपने इतने विस्तार से उसका वर्णन, उन्हें मानवी रूप कैसे दे दिया
28:28आठक जो है, वो अपने घरों में जहाकने लगता है, उन्हें पढ़ते हुए, देखे, दो बाते हैं, एक तो राइटर अपनी क्रेटिव प्रयासिस के बारे में कुछ जानता नहीं है, वो इतना अनकॉंशेस होती है, या इतनी सबकॉंशेस होती है, इतना आपके अच्यत
28:58बिल्कुल एक डिफरेंट चीज होती, क्योंकि फिर मैं सोच समझ के लिख रहा होता, इसका तो मुझे पता ही नहीं चला ना कुछ, कोई चीज अपील कर रही है, कोई खास सन्वेदना उसको देखके पिरकट हो रही है, बाद में जैसे परिंदे हैं, पक्षी हैं, पक्षी
29:28पक्षी नहीं पता सकता, मुझे लगता है कि एक जैनियन राइटर अगर होगा, एक असली राइटर अगर होगा, तो अपनी रचनें के पिर्ति वो उतना ही अन्भिग होगा, बड़ा अन्नोन होगा, अगर वो होगा और वरना तो मैं नहीं कह सकता, लेकिन ये के ये चीज
29:58पक्षी तो तलाश करना होगा ना, उस इस पेस की तलाश भी मुझे हमेशा रहती है, कि वो वर्जिन सौयल कौन सी है, जहां पर अभी तक फसल नहीं चली, वो मिट्टी कौन सी है, जो कि जरखेज है, मगर उस मिट्टी पर हल नहीं चलाया गया है, है ना, मतलब अब उसको
30:28अगर आप मतलब लेखक हैं, तो आपको जिल्लत उठानी पड़ती है, आपको दुख उठाना पड़ते हैं, यूकि आपको हर तरह के एंगिल से देखना पड़ता है चीरों को, आपको सड़क पे पड़ी हुआ, जो कीचल का लुथड़ा है, उसको भी अपने से ज़्याद
30:58मैंने लिखा है, कि ड्राइंग रूम में लगी हुई बंदूख भी इतनी खतरनाक नहीं हो सकती, यूकि वो तो सिर्फ एक फैशन में लगाई गई गई हैं, यूकि उसमें गोली भी नहीं होती, वो तो लगी हुई है, बाप दादा ने कभी शेयर का शिकार किया था तो, �
31:28सिल बट्रा, और पिसी हुई मिर्चें, यह यह सब जो रखी हुई हैं, यह यह तो बड़ा वाइलेंस है इसके अंदर, टू मच वाइलेंस, और इन में कितना वाइलेंस है, और कोई भी ऐसा मौका हो सकता है, कि यह बहुत खतनाक हदियार बन जाएं, अब तो नहीं होता है
31:58मतलब सारी सासों और सारी बगों से माफी मांगते हुए कहता हूँ कि बार्चे खाने में जलाया गया, उनको किछीन में जलाया गया
32:08कालिद साब आप जब कह रहे थे तो मुझे, आप आपने यह भी कहा है कि वो सबसे खतरनाक जगह इस लिहाद से भी है, और इतनी खतरनाक जगह से जो इनसान है वो इसके लिए बहुत अच्छी चीजे बन के पक के आती हैं, लेकिन इस्तरियां वहाँ पर बहुत ही बहुत
32:38एक्सेप्शन हर जगह हैं, जैसे मेरे जैसे राइटर एक दो होंगे, मेरे जैसे राइटर नहीं होंगे, तो मैं कोई हर महिला के लिए बात नहीं कर रहा हूँ, लेकिन जो जॉइन फैमिली सिस्टम था, अब तो नुकलर फैमिली सिस्टम है ना, तो अब वो बात नहीं है
33:08मतलब वो चार भाईयों में बड़वारा हो रहा है घर का जाधात का
33:14तो आके हमसे कह रहे हैं वो
33:16कि अब वो भई वो अपना अपना हिस्सा हमारे
33:20मतलब बाबुजी ने चारों को हिस्सा दे दिया अपने लोग अलग अलग रह रहे हैं
33:24तो सबके अपने-पने कमरे एकी घर में रहे हैं। यह भी कहीं रह रहे हैं। 08. culturally-מर
33:37में चाहरों लोग अच्छे साथ एक परोसी की तरह रहे हैं। भाईयों की तरह कां रहा है। अगर किछीन ही तो परोसी
33:47है ना आप चूंकि उसके भी तो अलग ही होते हैं ना एक एक मकान होती ही दीवार में यह जॉइंट फैमिली सिस्टम की बात कर रहा हूं लेकिन चूंकि वो खत्म अच्छा मेरा यह जो नाविल है यह इसको आप जो सन्यूक परिवार की एक सोचलाजिकल
34:01स्टडी के तोर पे भी पढ़ सकते हैं चूंकि वो सारी चीज़ें 1960 और 1970 तक 75 तक आते आते खत्म हो जाती हैं तो आज तो किचिन है तब तो किचिन नहीं होता था ना बार्च खाना होता था और उसमें सारे जगड़े इसी वज़ा से होते थे इसलिए मैंने नाविल में लि�
34:31मिलक लडा करते थे देश लडा करते थे घर के अंदर जतनी लडाई यां होती हैं इसी को लेके पहले से English पहले ऌ�ी सा Pharise tua साथ चाहिए
34:44कोई तो अब तो आपको कहीं नहीं लेके अपना सिल बट्टा आपको और पर बोर चाने की चीरु साब पान की खैर है
34:59उसमें मैंने यह야지्टिक गजिट के दर यहीं लोगों को पहुचा दिया उपर
35:04यह उपर पहुंचा ने की इतनी जल्दी क्यों है जितनी जल्दी पहुंच था कि
35:10जहां से आए हुआ। बही वो जो किरन है जल्द से जल्द से
35:14घुरस्क से जाद मुले जो भटकी हुई है क्या करें पार्मात्म से अत्मा गितनी
35:19जल्दी मिले बहुत यहां पर सिवाय आत्मा के दूशित होने क्या
35:23हूँ खालिट साब जिस समय जिस मेर में जीवन के प्रति इतना मोह हो उस
35:29उस दौर में आप मौट की बातें करते हैं या उस सत्ती से मिलने की बात करें इस मंच पे भी कर रहे हैं और आपकी किताबों में भी भार भार ध्वानीत होता है।
35:59है और जो ये मौत की किताब है पूरा नाविल मेरा जो आजकल का भी फिर से वैसलेंड वालों ने इंगलीश में चाब भी आज़ बातचीत बहुत हो रही है उसके उपर तो मैं तो बार बार कहता हूं कि इसमें कहीं मिर्तियू का नाम एक जगा इस्तिमाल हुआ है तिर एक ज
36:29लिख दिया तो जो सफरिंग सापको दिख रही है जो यह आप जो देख रहे हैं यह हूमें डिके यह हूमें बोडी डिके यह सफरिंग मैं तो सफरिंग की बात कर रहा हूं यहां पर वो वाला दुख भी नहीं कह रहा हूं बुद्ध वाला दुख तो है वो तो बड़ा व
36:59जो जिन्देगी से डरते हैं दरसल वही मौट से डरते हैं दूसरी बात मैंने मौट को कहीं पर रॉमांटिसाइज नहीं किया बना यह भी तो होता है ना कि आज से पहले विक्टोरियन एज में जो डैथ को जो था वह इतना रॉमांटिसाइज किया जाता था तौमाम अंग्र
37:29एक ही सिक्के के दो पहलू कहे और मिर्तियों में फना हो जाना महबत का फना हो जाना इसको सूफियों से भी जोड़ सकते हैं आप जो सूफियों की हैं जो फना हो जाना है तो मैंने कहा ना कि वो मिर्तियों उस तरह से मिर्तियों नहीं है कि बिलकुल कोई मौत तो आपको मिले
37:59क्योंकि मौत तो बड़े सुकून की बात भी होता क्ती थी सुकून की बात कहीं कर नहीं रहा हूं एक क्यास है एक इंतिशार फैला हुआ है और दूसरी बात ये कि जब सारी दुनिया में डीजे बजरा हो और डीजे का दमाना हो तो आपको खामोशी से किसी कोने में ख़ड़
38:29सुरीली होगी खालिच साब यह दुनिया में इतनी अराज़कता है हर तरफ जिस डिस्ट्रेक्शन की बात कर रहे हैं पारिवारिक परिवेश समाज राष्ट्र सीमाएं एक तरफ बहुत तेजी से हम बहुत इकतावादी बन रहे हैं चीजों को कब्जा करने की बात आ रहे है
38:59यात्राओं की बात कर रहें हैं आपने पापुलर सहिति की जो आपके
39:08शुरुआत होती है पढ़ाई की उसमें आपने कहा है कि कुछ चीजे चोड़नी पड़ती हैं समय के साथ हम अपने को rectify करते हैं
39:17मेरा कहना मेरा प्रस्म ये है कि ये जो भी परीत विचार धारा हैं जिन पर लगातार आप चलते रहते हैं इसकी ताकत कहां सिपाते आई हैं
39:45समय तो आप अदल रहे होते हैं तो आप एक पत्थर की तरह आप एक इस्टेटक मतलब एक मिल्कूल
39:50इस्टेटिक्स तो है नहीं आपके अंदर कोई कि आप रुके खड़े होगा मैंने चूंके पॉपलर लिटेचर बहुत बढ़ा है और उसकी वज़ा
39:57यह है कि मैंने साथ साल की हाँ साथ साल की अमर लिखने शुरू कर दिया था और नाइन्थ नाइन्थ नहीं मतलब मैं नौ साल की अमर में एज में मेरी एक कहानी चप भी गई थी जो यह मिलाप एक अखबार निकला करता था देली से मिलाप और परताब दोनों का आफिस बरा�
40:27सार्त और कामू तो पढ़ नहीं रहा था तो जैसे जैसे चीज़े आगे बढ़ती चले गाई तो मैंने गुर्शननन्दा और रानू और किश्न गौपाल आबिद और मनोज और गुरुदत और राजवश को भी पढ़ा और मैंने सफी को भी पढ़ा जो आज भी मुझे बह
40:57रेखता में इमने सफी के बारे में डिसकेशन भी है लेकिन ये कि तब जो मैं इमने सफी को पढ़ता था तब मैं कुसी और चीज़ से लुटवंदोज होता था लेकिन आज जब मैं इमने सफी को पढ़ता हूं तो कुछ और चीज़े हैं जिनसे मैं लुटवंदोज होता ह
41:27को पसंद करते थे तो वह गालिप को पसंद करने की कुछ दूसरे कारण थे।
41:31लेकिन आज जब हम गालिप को पसंद कर रहे होते हैं तो उसके दूसरे कारण है इसलिए ये कहा जाता है कि
41:36जो साहित कभी बंगली का आखरी मकान नहीं होता
41:39वो पुरा का पुरा
41:41हाँ बंगली का आखरी मकान थोड़ी है
41:43वो जहां आपको डगता है कि बंगली है
41:46वहां से एक खड़ की और खुलती है
41:47अब हमारे गालिब कुछ और हो गए हैं
41:50अब हमारे गालिब कुछ और हमारे इबने सफी कुछ और हो गए है
41:54और अब हमारे मार्कीज मिलान कुंडेरा कुछ और हो गए है
41:58जो हमने 25 साल पड़े थे उससे पहले
42:00अब हमारे निर्मल वर्मा कुछ और हो गए है
42:02मेरे बहुत पसंदी दराइट है निर्मा गरमा
42:04उनका जिक्र बगार कि ये बात
42:06बनती नहीं है आगे मेरे बहुत पसंदी
42:08दराइट है आपके
42:10लेखन में और आपकी
42:12भाषा में जो प्रवाः है
42:14उसका श्रे आप
42:16किसको देते हैं
42:18वो अपने को देता हूँ
42:19मैं बिल्कु सच्चा ही की
42:23वो अपने को देता हूँ
42:25चुकि सब कोई पढ़ने के बावजूद
42:26आप देखिए कि
42:28कोई एक शब्द
42:31भी कोई शब्द नहीं मनलब
42:32शब्द तो खैर किसी का भी हो सकता है
42:34लेगि एक सेंट्रेंस को ये नहीं सावित
42:36कर सकता है कि
42:37ये फला के स्टैल की कापी है
42:39जिस दिन कहे देंगे उस दिन लिखना चोड़ दूँगा
42:42किस तरह से आपके लिखने की
42:44प्रक्रिया क्या है
42:45वो कौन सा
42:47विंदू होता है जहां से
42:49आप किसी उपन्यास या कहानी
42:52कथा
42:53कि शुरुआत करते हैं
42:55थे बस वो कोई एक
42:56एक दन कोई
42:59अजीब सा हिसास होता है
43:01और भीविल में चलते हुए भी होता है
43:04उसके लिए किसी वीरान जगा की
43:06किसी बाग की
43:08किसी पार की
43:09किसी लैर्वेरी की तो बिल्कुL भी जरुट नहीं होती है
43:11जा रहे हैं किसी की खमीस का
43:14कोई कालर हिला, कोई रंग
43:17उसकी खमीस का माँ जीज़े
43:18नीले कलर की शर्ट है
43:20और उस नीले कलर से पता नहीं कहा पहुँच जाते हैं
43:23तो पता नहीं कैसा लगता ए
43:28किसी को चलते देखा
43:29और उसकी चाल ने क्योई बरसों पुरानी
43:32किसी चाल की याद दिला दी
43:44जो होता है वो एक प्रेत के हाथ में होता है फिर हमारे हाथ में नहीं होता है पहला सेंटेंज लिखने में मुश्किल होती है मैं हमेशे दोपैर में लिखता हूँ मेरा जो लिखने में टाइम है वो दोपैर में जब आपको अपनी परचाई भी ना नदर आए बारा बजे आ�
44:14रात में, सुबह, किसी भी वक्त हो सकता है
44:17लेकिन पहला सेंटेंस मुझे कोई याद नहीं
44:19पहला बलके पहला है कि राभ पहला पेज
44:21जो मैंने दोपैर के अलावा कभी लिखा हो
44:23मैं दोपैर में लिखता हूँ
44:24और दोपैर भी होना चाहिए गर्मियों की
44:26क्योंकि जाड़ों की दोपैर दोपैर ना हो के
44:28दोपैर का एक धोका है
44:29इलूजन दोपैर हो गर्मियों की
44:32जब लू चलती हो बहुत बुरी तरह से
44:34लू हूक रही हो
44:35सलकों पे वीरामी हो
44:37धूल सी उड़ती हो
44:38तब लिखिये आप
44:40बैटके अंदर कहीं
44:41खालित साब आपकी
44:44किताबों का
44:46सिर्शक बड़ा ही
44:48अलहदा है
44:50किताबे लिखने के बाद
44:53इनका सिर्शक तलास्ते हैं
44:56उसमें कितना वक्त लगाते हैं
44:57जो इतने अनुठे
45:00और
45:00अलगते रहके
45:03और सीधे दिलों के अंदर
45:06उतरने वाले
45:07निमत खाने का पहले ही आगिया था
45:13एक दो पेज़ लगा था
45:14इसका तो
45:15ताइटल निमत खाना ही रखना है
45:17मौती किताब में थोड़ा टाइम लगा था
45:19मौती किताब नहीं रख रहे थे
45:21थोड़ा सा उस जमाने में
45:232011 में लिखी थी तो कुछ
45:24डाउट भी हो रहा था, कुछ रीडर से डर रहे थे, कुछ आलोचों को से डर रहा था मैं
45:29यह क्या वही मौत की किताब, क्या नाम होगा, बड़ी मनूस सी किताब होगी
45:33लेकि फिर मैंने लगा कि ऐसे तो कोई आर्ट कभी, कभी गिरो नहीं कर सकता
45:38ना तो पेंटिंग में गिरो करेगा, ना म्यूजिक में गिरो करेगा, जब तक उसमें कोई एक्सप्रिमेंट नहीं होगा
45:43तो थोड़ा सा डिस्टर्ब भी तो किये जाना चाहिए, तो मैंने पिर मौत की किताब नाम रखा
45:47और मज़े की बात यह है कि मौत की किताब को जो अर्दू में जिसने च्छापा वो पब्लिशर ने उसके शुरुआत की थी
45:55अर्शिया पब्लिकेशन ने तो उसने उससे पहले कोई भी किताब च्छापी नहीं थी
46:00तो लोगों ने उससे ये कहा कि तुम यह कौन सी किताब पहले च्छाप रहो मौती किताब
46:05मगर वो चुकि हमारा दोस्त भी था उसने किताब च्छापी फिर उसका आयाईसी में बहुत बड़ा लंबे उसके उपर वो उसको लांच किया
46:13और उसके बाद वो मौती किताब उसके लिए ऐसी जिन्दी की किताब थाबित हुई
46:18कि आज उससे बड़ा उर्दू का कोई पब्लेशन इंडिया में नहीं है अर्शिया पब्लिकेशन
46:23वो किताब इतनी बड़ी है उसका श्रेय आपको जाता है
46:28सब सबको मेरे रीडर्स को जाता है मेरे मतलए इतना सा रहा उसके उपर पूरा पूरा उसकी आलोचना में बलके उससे इतनी घिर्णा भी की गई कि बिहार के एक रिसाले नहीं
46:41इसमें पूरा एक 500-300 पेच का एक पूरा अपना नमबर निकाल दिया
46:46जिसमें जितनी इंगालियां दी जा सकती, थी मौत टी किताब को उतनी दी गई
46:50मगर बॉंबे के एक रिसाले ने, 300-400 पेच का उसके फैवर में निकाल दिया
46:56उसके बाद तो वो चलता रहा है चलता रहा है चलता रहा है तो वो वाकी जिन्दी की किताब उसके लिए तो थाबित हुई ही है
47:03तो कभी कभी देखिए नाम से कुछ होता नहीं है ना नाम यही है ना बतल शैक्सपिर ने कहा था नाम में क्या रखा है
47:09लेकिन नाम के असरात तो पढ़ते हैं अब वो कैसे पढ़ते हैं
47:13अगर मैं ये कहा जाता है कि अगर आप सपने में कुछ देख रहे होते हैं
47:19तो जादातर सपने में अगर ये पूछें कि क्या देखा तो लोग हमारे हैं तो यही बताते हैं
47:24हिंदु धर में भी यही है और इसलाम में भी यह है कि उसका उल्टा होता है
47:27जैसे किसी बीमार को अगर हम बहुत लंबे बीमार को हम सपने में ठीक होता हुआ देखें
47:33कि वो बिस्तर से उटके चल ला है तो उसकी मिर्तियू की खबर आ जाती है एक दो दिन
47:38और किसी जिन्दा को अगर हम मरते हुँ देखें सपने में तो कहते हैं इसकी उमर बढ़ गई
47:44इसकी आयू बढ़ गई हो सकता है कि यह मौत की किताब जो है वो एक ऐसे सपने में मैंने लिखी है
47:50जिसके बारे में मुझे पता नहीं है
47:52कि वो जिन्दी की किताब साबित हो रही है
47:54खालिज साब ये सपने की बात आई
47:57और चुकि आपके लेखन पर जब भी बात करेंगे
48:01सपने और यथारत एक दूसरे के बीच गुते हुए है
48:07जबकि सपने तो याद भी नहीं रहते हैं जगने के बाद
48:13उसी को तो पकड़ना होता है
48:15वो बिल्कुल निकल जाते हैं हाथ से बिल्कुल वो पानी की तरह होते हैं
48:20उनको कुछ स्याद रह जाते हैं कुछ सुराग दे जाते हैं
48:24उनको पकड़ना पड़ता है
48:25और एक तो वो सपना हुआ जो आप नीन में देख रहे हैं
48:28और एक वो सपना भी है कि जहां जो वास्ते विक्ता है या जो रियलिटी है
48:34उसका और भिर्म भिर्म जो आपको हो रहे हैं
48:38और भिर्म एक ऐसी चीज़ है
48:39इलूजन जो कोई बहुत दूर की बात नहीं है
48:42यह तो साइन्स से साबित है
48:43हम लोग हाई स्कूल के अंदर साइन्स में पढ़ते थे
48:45कि पानी में रखी हुई शीशे की छड़ कुछ टेड़ी नदर आती है
48:49तो वो कहते थे कि जो
48:52रेफ्रेक्शन आफ दा लाइट
48:54या पिरकाश के अबवर्तन की वज़ा से
48:56एसा होता है
48:56तो वहीं हमने समझे लिया था कि
48:59illusion कोई चीज होती होगी
49:02या रेगिस्तान तो अब ये जो
49:03illusion है क्या ये रेलिटि नहीं है
49:05बात यह है कि
49:06मैंने जितनी देर उस illusion को
49:09जीया उतनी देर तो वो मेरी
49:11reality थी या जितनी देर
49:13मैं एक मिराज और एक सुराब मुझे लगा कि
49:15मैं रेगिस्तान में जा रहा हूँ और सामने
49:17पानी है बहले ही वो पानी नहीं था लेकिन
49:19जितनी देर तक मैंने उसको पानी समझ के
49:21दोका खाया वो मेरी अपनी वास्तिविक्ता
49:23तो थी ना तो मैं तो उसे लिखोंगा यह बराबर आप
49:32से बात्चित के दोरान मेरे दिमाग में एक प्रस्ण घूमता
49:35रहा कि यह जो आपके दिमाग में यह क्यों नहीं आए कि मैं कभी
49:40बन जाओं क्योंकि आप प्रतीकों को देख कर मुझे लग रहा है यह लोग हमें बात करने नहीं
49:45देंगे साइद साउंड इस तरह से तो जी तो मेरा हमारा टाइम तो पांच तिन चार मिनट बचा था लेकिन
49:55हम पहले समाप्त कर देंगे अगर यह लोग हमें ऐसे करेंगे तो मैं केवल ही एक सवाल कि जब आप देखने के साथ कथाएं लिख सकते हैं तो आपके दिमाग में यह नहीं आ है कि मैं कभी कभी बनूं और कवीता लिखूँ
50:06नहीं वो कोई फर्ख थोड़ी है उसमें जो हम लिख रहे हैं वो भी कवीता ही है लंबी कवीता हैं समझे लीजिए आज तो सारी दुनिया में जो है वो मैं बताओं बड़े मज़े की बात के काफका की और बोर्खेस की कुछ कहानियों को अब जो नहोंने एक बाहर के पर�
50:36काफ़ी नहीं है मेरी चीज में उसमें एक तरह की पोईटिक्स है चूंकि कवीता भई बहुत बड़ी चीज है बहुत उस दर्जे में कहां आ सकता हूं तो जहर रिकवाल साब होते तो भी उनको मैं पहुंचा हूंगा आपकी बात बड़ी चीज है यह और बात के मैंने कव
51:06और रिसालों में चपी लेकिन बाद में मैंने देखा है कि यह उस तरह से मेरा मैदान नहीं है क्योंकि कोई आदमी फुटवाल खेलता है कोई आदमी किर्किट खेलता है और कोई कवड़ी खेलता है तो सबकी अपनी अपनी पीछ है तो मुझे लगा यह मेरी पीछ नहीं है
51:36संसक भी हैं और युवा जो लिख रहे हैं आज के समय में और विशेश कर उर्दो साहित्य में जो युवाओं की गती है उनको क्या संदेश देना चाहेंगे और साहित्य पर जो सोसल मीडिया का जो प्रभाव पड़ा है वह अच्छा है या बुरा है आप उसे किस रूप में �
52:06पन्नों की शकल में है वह आधुनिक्ता के प्रभाव में बचा रहेगा या वह डिज्टल एज की भेट चड़ जाएगा देखिए नया तो जो भी लिखा जा रहा है उनके लिए मैं कोई संदेश नहीं है संदेश बहुत बड़ी बात है जो लोग कोशिश कर रहे हैं मैं ज
52:36हो रही है ऐसा कुछ नहीं है अपने आसपास के संसार को देखें गोर से और उस संसार से अपना एक रिष्टा बनाने की कोशिश अगर वो करेंगे तो वहीं से उनकी लेक नहीं आएगी फैशन में ना लिखें यह ना है कि तुम लिख रहा हो तो हम भी लिख सकते हैं सोशल
53:06होती थी उनके एडिटर्शिप की उससे आजाद हुआ है आदमी अपनी चीज लिख सकता है लेकिन इसने एक एक तरह की इमिजरिसी पैदा की है तातकालिता पैदा की है कि वो पानी के बुलबुले की तरह चला भी जाता है मुझे लगता है कि जो पक्की रोशनाई में छ�
53:36लेकिन उसके अंदर इतनी तेजी और इतनी जल्दी होती है कि इतनी जल्दी तो कोई शायरी हो या कोई साही तो ऐसा होता नहीं बिल्कुल इतनी जल्दी नहीं किया जा सकता को यानि यह होता है आज कि अगर कोई आज मेरी किताब आई है और मैंने उसको दी किसी को तो द�
54:06जोग और सूप योग दोनों ही होते रहते हैं तो इसको बिलेक इंड वाइट में दो नहीं देखा जाते हैं खालिज साब बहुत बहुत आभार आपका साहित आज तक के मंच पर आने के लिए आप से बातचित करके मुझे बहुत आनंद आया और मैं समझता हूं कि यह सिलसिल
54:36बरकरार रहे जब तक उस दूसरी यातरा पर हम निकल नहीं जाते हम मेंसे कोई एक बहुत बहुत शुक्रिया आपका मुझे बहुत अच्छा लगा आप से बात करके और साहित आज तक का तो शुक्रिया है ही और राइटर किसी एक खास जबान का कभी होता नहीं है जी है न
55:06लेकिन अगर आप गैराई से देखेंगे तो इनसानों की जिंदी का लेखा जोका कहने वाला अगर गूंगा रहे के भी कुछ सोच के और
55:13बाडी लेंग्वेश ही कुछ अगर पिरकट करना चाहे तो वो भी मैं ही होंगा पिर
55:19बहुत बहुत आभार आपका धन्यवाद
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