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  • 8 hours ago
साह‍ित्य आजतक 2025: कवि माधव कौशिक, ओम निश्चल, नीतीश्वर कुमार और संगीत रागी से सुनें उनकी बेहतरीन कव‍िताएं

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00:00सबसे पहले मैं चाहता हूँ कि आप माइक थर में मैं जिने आमंत्रित करना जारू पहले उनके बारे में आपको बता दूँ दिल्ली विश्व विद्याले के प्रोफेसर संगीत कुमार रागी आप इनसे बिलकुल इन्हें जानते हैं आप इन्हें टीवी चैनल्स पर चर्च
00:30इन्होंने लोग प्रकाशन भारतिय राजनेती और भारतिय राजनेतिक चिंतन का अध्यापन किया है जन संख्यकिय परिवर्तन जाती है संगर्ष और राष्ट्रवाद उनके शोत का क्षेत्र हैं लेकिन आज हम सर को एक कवी के रूप में देखने जा रहे हैं तो जोड़
01:00मुझे किनारे रखा गया था तो मैंने सुचा मुझे अंतिम जब आपको अंतिम में बोलना हो और एक आएक आपके सामने रख दिया जाए कि आपको अभी ही बोलना हो
01:26तो दुविदा हो जाती है बड़ी क्योंकि मन अब तक नहीं बना पाया ता मुझे लगा था नितिस्वार बड़े लोग इधर शुरुवात करेंगे उसके बाद में अंतिम जो है स्वास्ति वाचन के लिए हमको बुलाया जाएगा
01:40लेकिन आपको दो तीन पिछली बार जो कविता है मैंने सुनाया था वो मैं नहीं सुनाओंगा
02:00कुछ नई कविता हैं सुनाओंगा और कुछ नई अभी जो लिखी है उन कविताओं में से आपको कुछ सुनाओंगा
02:17मुझे पता है कि आप सब उस पीडा से गुजरे होंगे और यदी गुजरे होंगे तो आप तालियों से आवाज जरूर हम तक पहुँचाईएगा
02:29मैं आपके मन की बात कह रहा हूँ
02:32बिना प्रेम की गहराई में उत्रे तुम क्या जानोगे
02:38रात रात जागे रहना और बिना आशु निकले रोना
02:48क्या बात है
02:49बिना प्रेम की गहराई में उत्रे तुम क्या जानोगे
02:53रात रात जागे रहना और बिना आंसु निकले रहोना
02:57पूछने वाले हाल पूछते यह सब क्या है तुम्हे हुआ
03:01पूछने वाले हाल पूछते यह सब क्या है तुम्हे हुआ
03:06जी करता है उन्हें जिड़क दो
03:08क्या तुमको लेना देना
03:10क्या तुमको लेना
03:11लंबी कविता है
03:14तो मैं इसलिए पूरा नहीं सुनाओंगा
03:17ताकि फिर आप मेरी किताब नहीं आप पढ़ेंगे
03:20तो मैं अपना मार्केटिंग स्वेम करूँगा
03:23क्योंकि हमारे प्रकासक के दि मार्केटिंग नहीं करते हैं
03:25यही जगा बच्चु यह
03:26तुम जीत गए मैं हार गया
03:30बाजी मैं समझ नहीं पाया
03:37अपनों से उलज नहीं पाया
03:41जीते जीते यह मार गया
03:43तुम जीत गए मैं हार गया
03:45सबध्वस्त हुए सपने अनंद
03:48बंजर बन गया सारा बसंद
03:53चंचल नदिका जो धार गया
03:56तुम जीत गए मैं हार गया
03:58क्या बात है
03:58तेरा मिलना और चुप रहना
04:02तेरा मिलना और चुप रहना
04:05आसु का आँखों में सिखना
04:07भीतर भीतर यह मार गया
04:10तुम जीत गए मैं हार गया
04:12वाह, क्या बात है
04:14रिष्टों का ऐसे बिखर जाना
04:16रिष्टों का ऐसे बिखर जाना
04:19चलते चलते
04:20बिशड जाना
04:22सपनों का ऐसा मर जाना
04:24जैसे कोई लौट बहार गया
04:26मैं जीत तुम जीत गये
04:28मैं हार गया
04:29क्या बात है
04:30एक
04:33एक और एक
04:37यह आसकल ऐसी कहता है
04:39लिखी नहीं जाती है
04:40लेकिन मैं पढ़ दे रहा हूँ
04:42आओ दो छनमिल बात करें
04:45आप जड़ा इमेजिन किजिएगा
04:47आओ दो छनमिल बात करें
04:50तारों से कर
04:52अपना परिचे
04:53तारों से कर अपना परिचे
04:56सशकी राती में जो तिर मैं
04:58दुक्की रजनी को मात करें
05:00आवो दो छनमिल बात करें
05:02यह आपको थोड़ा पीछे
05:05जो है
05:07वो रहश्यवाद की तरफ लेकर के
05:10आपको जाता है
05:11आवो दो छनमिल बात करें
05:14तारों से कर अपना परिचे ससकीरासी में
05:17जो तिर मैं दुक्की रजनी को मात करें
05:20आवो दो छनमिल बात करें
05:22चंचन जीवन का बिथित ताप
05:25चंचन जीवन का बिथित ताप
05:27सुख गई तुचा है आप आप
05:29गीले अधरों से गात करें
05:31आओ दो चन मिल बात करें
05:33क्या बात है
05:34हम स्नेह अंक में
05:37मगन गंद सुर्विद कर दें
05:39हर चंद चंद
05:40हम स्नेह अंक में
05:41मगन गंध सुर्वित कर दें हर चंद चंद आंखों आंखों में प्रात करें
05:46आओ दो चंद मिल बात करें
05:48क्या बात है बहुत सुंदर
05:49पावन रस्में हो समाधिस्थ
05:52धोती अनभुतियां दिब दिब
05:56परचे अपना इतिहास करें
05:59धरती साक्ची आकास करें
06:01आओ दो छनमिल बात करें
06:03आप अंदागा लगा है कि कोई प्रेमी और प्रेमी का
06:05एकांत में
06:07चांदनी रात में बैठा हुआ और एक दूसरे
06:09से बात कर रहा हो तो कैसे बात करेगा
06:11मैंने उसी का जिक्र
06:13किया है उसी के
06:15दृष्टिकोर में ध्यान रखके हुआ है
06:17एक और एक छोड़ी कविता सुनाता हूँ
06:21तुम बुलाए जारे
06:23वाए ना आए ये उनकी मर्जी
06:25तुम बुलाए जारे
06:28वाए ना आए ये उनकी मर्जी
06:30पहले जोडे वही
06:31खुद से तोडे वही वक्त बोजिल है
06:33कुछ तो गुन गुनाए जारे
06:35वो सुने ना सुने
06:36ये उनकी मर्जी
06:38आह में भी जिना
06:41खुश नसीबी ही है
06:42आह में भी जिना खुश नसीबी ही है
06:46गम अंधेरे में पीने
06:47से बढ़ता है दर्द
06:48दिल जलाए जारे वो मिले ना मिले
06:51ये उनकी मर्जी
06:51क्या बात है, बहुत सुंदर, धैर्ज रखो जरा, धैर्ज रखो जरा, सब्र तोड़ो नहीं, कुछ पल का जीवन ज्यादा सोचो नहीं, याद में बस उन्हें बस बसाये जारे, वो मिले ना मिले, यह उनकी मर्जी, सीचना मत छोड़ो, हक है यह तेरा, फुल खिले ना खिल
07:21एक जीवन्स के जो भी परिदिश है, उस पर आप जरा सा दिखिएगा, अंदर अंदर घुट जाओगे, बाहर जरा तहल कर देखो, खुली हवा में जोजी नेका सुख बंधन में कहां मिलेगा,
07:46खुली हवा में जोजी नेका सुख बंधन में कहां मिलेगा, खूटे से जकड़े विवेक में गंध चंदन का कहां मिलेगा, खोल किवाडे रख कर देखो, खुली हवा में चल कर देखो, चका चौन्द की दुनिया में जब पाउँ संभाले नहीं संभलते, पीड़ा दर्�
08:16चलते हो अपने गुमान में, जिस गुरूर का चादर ओड़े चलते हो अपने गुमान में, चनिक बहुत है, आयो उसकी दूर रहो चाया से, उसकी बहुत खुजी होगी सच तुम को इससे जरा निकल कर देखो, मुक्त करो खुद को बंधन से, मुक्त अगर हो ना जीवन से
08:46प्रवाह को बहने दो जैसे बहता है, मत्रो को अपने प्रवाह को बहने दो जैसे बहता है, घटने दो जैसे घटता है, दहने दो जैसे कुछ लाता है, तुम असीम तुम में अनंत है, इसी बाव में भाकर देखो, नाचो खुल कर मन करता है, गाओ कुदो जी करता है, कहने
09:16पैरो के टू टेपा पड़से, खून निकलते नहीं देखे हो
09:21पैरों के ठुटेपा पड़ से वस्त्रवीन कंकाल बनन को धीली तुटा उम्र से पाले
09:27मोल पसीने कासम जोगे कड़ी धूप में चल कर देखो
09:30खुले पाउं निकल कर देखो
09:32खुले पाउं निकल कर देखो
09:34पर तो जोरदार तालिया होनी चाहे क्या रचना है वाह बहुत सुन्दर एक छोटी सी कविता है यादों के तपते मरवस्तल पर जाने कितनी दूर चला हूं
09:49सूरज का सब ताप जेलते अपनों का अविशाप जेलते उम्मीदों से आस लगाए सपनों की पगडंडियों पर भोर होने तक कही रोज चला हूं यादों के तपते मरवस्तल पर जाने कितनी दूर चला हूं
10:03उड़ने की आसा में सब कुछ छोड़ चाड़ यहां तक आया दिल्ली पहुंचा उड़ने की आसा में सब कुछ छोड़ चाड़ यहां तक आया तुमको पाने की एक छामे था जो भी वह लुटा गवाया बिर्थ गया सब उद्यम मेरा अपनों से मैं रोज चला हूं
10:19ब्यर्थ गया सब उद्द्यम मेरा अपनों से मैं रोज चला पाओं के छलनी होने तक चलने की तो कोशिस की थी
10:27सब कुछ दाव लगा कर मैंने उसे रोकने की कोशिस की
10:34एक अचांदक आंधी आई और बहा ले गया सभी कुछ
10:42मैंने था जो यहा कर से उड़ा ले गया आंधी होला जितना सूरज मुझे जलाता उससे ज़्यादा याद जलाती
10:53धूप तो सालू मुम्किन है यह बारी उससे और जलाती
11:01तेरे ना होने का मतलब चारो और अंधेरा फैला तुम जब पास नहीं होते तब
11:07सब कुछ लगता है मतमेला तुम जब पास नहीं होते तब सब कुछ लगता है मतमेला वावाव बहुत संदर बहुत संदर क्या बात है
11:15एक
11:17कितना देर और बोल सकता हूँ
11:31एक नई जो कुछ लिके हैं और अभी हमें आदेश मिला कि आप पड़ सकते हैं तो इसलिए
11:45ठहरे हुए पानी में नहाने का मजा क्या
11:57ठहरे हुए पानी में नहाने का मजा क्या
12:01उत्री हुए जवानी में रजानी का मजा क्या
12:04डूबना ही है तो डूबना गहरे में जरा जाकर
12:08डूबना ही है तो डूबो जरा गहरे में जाकर
12:12उत्री हुए लहर में पानी का मजा क्या
12:15इसक है तो करो जरा इरहार भी खुलके
12:22क्या जाता है कहने में कि यह प्यार है तुम से
12:25दूसरों गैरों की कहानी में कहानी का मजा क्या
12:29लहरों पर न तेरे वो जवानी का मजा क्या
12:32मिलना जरा फुर्शत से खुल के बात करेंगे
12:37होना न होना साथ ते हम साथ करेंगे
12:40कुछ वक्त बिता कर जरा मेरे पास तो बैठो, कुछ वक्त बिता कर जरा मेरे पास तो बैठो, दूर दूर रहके हम शे पशाम आनी कमा जा क्या, दूरूर हमसे ने,
12:51जिन्दगी अपनी दाओ पर लगाया है, दोस्ती से ज़्यादा दूस्मनी कमाया है, इश्क के फेर में भड़ा भटका बहुत हूँ, दिल ने नुक्षान बहुत उठाया है,
13:16दिल ने नुक्षान बहुत उठाया है, एक दो लाइन पढ़कर के, मुख तक पढ़कर के, मैं बैठता था हूँ,
13:29मैंने तुम से किनारा कर लिया है, अब अपने आपको ये किजिए गा, और जो जो दुखी आत्मा होंगे, वो सोचेंगे,
13:40मैंने तुम से किनारा कर लिया है, कोई दूसरा सहारा कर लिया है,
14:10हिसारा कर लिया है बहुत सुंदर और ये एक पर दिल कहां ठहरता है ये तो नितिश्वर के लिए है
14:26क्योंकि नितिश्वर ने कहा था है कि आज मैं तुम पर बहुत बोलूँगा तो मैंने सोझा
14:35अटैक ही डिफेंस का सबसे पहला पहली सीड़ी है तो मैंने का एक पर दिल कहां ठहरता है बादलों की तरह उमड़ता फिरता है बहुत चाहता हूं अगर रुखता ही नहीं
14:51मन कहीं से कहीं विचरता है जिन्दगी भी कितनी अजीब है जिन्दगी भी कितनी अजीब है चाहता हूं नहीं वह मिलता है
15:03जिन्दगी भी कितनी अजीब है
15:05चाहता हूँ जो
15:07वो न मिलता है
15:08जिसे पसंद हूँ वो पसंद नहीं
15:11और जो है नहीं उसी पे मरता है
15:13जो है नहीं उसी पे मरता है
15:15बहुत बहुत धन्यवाद
15:16एक बाद फिर से जोरदार तालिया हो जाएं
15:19क्या सुन्दर रचना है आपने सुनी तो अटाक हुआ है तो इस मैदान में जो सामने वाले व्यक्ति हैं वो भी तैयारी के साथ आए हैं उन्हें भी मौका मिलना चाहिए और अब मैं आप मंत्रित करना चाहूँगा नितीश्वर कुमार जी को जो कि भारतिय सिविल सेवा के �
15:49गीत संगीत में बच्पन से रुची जो किताबों की दुनिया के साथ साथ चलती रही पुराने और नए को जोडने का नितीश्वर जी का अपना अग अन्दाज है अमीर खुसरो हो रूमी हो कुमार उनकी गीतों अलफाज को आज के नौजवानों की सोच से जोड देते हैं
16:19कुछ गीत सुना गया और उसने मुझे उकेर दिया कि मैं कुछ बाते कहूं प्रेम की बात वो कर रहे थे संगीत और प्रेम जब शुरुवात होती है तो दिल जो है शरीर तो बच्चा होता है बुड़ा होता है जवान होता है दिल हमेसा बच्चा होता है
16:45और इसकी खुबसूरती इतनी अच्छी होती है कि शुरुवाती दौर में जब आप इश्क करते हैं, महबबत करते हैं, प्यार करते हैं, प्रेम करते हैं, तो संगीत जो कह रहा था कि हम बुलाएं तो तुम आओ नाओ, इस तरह की बाते होती हैं, बट धीरे धीरे जब आप �
17:15की तरफ जाते हैं, और वही फिर सुफीजम हो जाता है, जो भक्ती के नाम से हमारे हिंदू माइथलोजी में जाना गया, और इसलाम की माइथलोजी में सुफीजम के नाम से जाना गया, तो मैं आपको छोटी-छोटी चीजे, दो-तीन सुनाने की कोशिस करूँगा, समय ल�
17:45जान बुच के कोई नहीं उठा रहा है, अच्छा, तो देखिए, मैं दो चीजे आपको दिखाऊंगा, एक जो हमारी नई पीडी जो है, सिगरेट से जुड़ी हुई होती है, तो सिगरेट में भी रोमांस होता है, साहिर लुद्यानवी साब ने बहुत पहले लिखा था कि
18:15कुछ सिगरेट और रोमांस दिखाई नहीं दिया है, तो मैं आपको एक मुखडा सुनाऊंगा, और एक अंतरा सुनाऊंगा, फिर उसके बाद कृष्ण पर आऊंगा, जहां रोमांस होता है, और वो प्रेम जो आपको जोड़ता है दिबिता से, सर्वशक्तिमान से, तो कह
18:45जिये जाता हूं, तेरी सांसों को समंदर सा पिये जाता हूं, एक वावा कर रहा है, तो हाथ ताली बजाओ ना, तो मुझे भी मज़ा आएगा ना, कि आप हमारी बात समझ रहा है, एक सिक्रेट है, तो तुझको जिये जाता हूं, तेरी सांसों को समंदर सा पिये जाता हू
19:15हूँ तेरी सांसों को समंदर सा पिये जाता हूँ एक अंतरा और सुनाओंगा फिर क्रिश्न प्याओंगा कहते हैं कि बर्फ सी छूती है मुझे और फिसल जाती है जो लोग बर्फ वाले प्रदेशों में गए होंगे या रहते होंगे चाहे कश्मीर में ये बाइद वे ये क�
19:45तो कहते हैं कि बर्फ सी छूती है मुझे और फिसल जाती है थोड़ी ही देर सही सिहरन तू दे जाती है पिर से पाने को तुझे कस में निगल जाता हूँ
20:13पिर से पाने को तुझे कस में निगल जाता हूँ सांस मेरी है पर तुझ में बिखर जाता हूँ
20:20एक सिगरेट है तू तुझको जिये जाता हूँ तेरी सांसों को समंदर सा पिये जाता हूँ
20:29कस पे कस होट पे धर के उंगलियां चलती है
20:32धुआ है धोखाए भाई इस सोच के डर जाता हूँ
20:35बहुत नन्वाद अब इसके आगे की पंकिया मैं नहीं सुनाओंगा
20:39अब कृष्ण की तरफ चलता हूँ चुक उदर प्रेम रोमैंस दिब्विता रहसवाद भक्ती बहुत चीज़े उदर है
20:45जो कृष्ण का व्यक्तित्व था अब ये ये जो संदर्भ है ये संगीत की तरफ है
20:51एक बार नारज जी को ये समझनी की इक्षा हुई कि कृष्ण जी एक हजार गोपियों के साथ कैसे रहते हैं
21:00तो वो पहुँचे एक बार जहां कृष्ण रहते थे और वो अलग-अलग घरों में गए
21:08तो उन्हों देखा कि कहीं कृष्ण जी भक्ति की बात कर रहे हैं तो कहीं धर्म की बात कर रहे हैं
21:14कहीं मोक्ष की बात कर रहे हैं और कहीं काम की बात कर रहे हैं
21:18अब इसमें लंबी चीजें चोड़ी बहुत देर तक व्याखान हो सकता है
21:23मैं संदर्व को छोटा करता हूँ
21:25मूल यह है कि
21:27अपने वृत्ति को
21:28अपने काम को
21:29अपनी आक्टिविटी को
21:31आप इश्वर से जिस रूप में जोड़ देंगे
21:34चाहे काम हो चाहे क्रोध हो
21:35चाहे धर्म हो चाहे मुक्ष हो
21:37इश्वर अपने आप आप से जुड़ आता
21:39यही यूनिटी है यही सुफिजन है
21:41यही सुफिजम है
21:43भक्तिकाल में यही बात होती थी
21:45और इसलामिक माथलोजी में भी यही बात होती है
21:47जो सुफिजम की बात होती है
21:49अब आते हैं
21:51और क्रिश्ण के बारे में चर्चा कहते हैं,
21:55क्रिश्ण के जो व्यक्तित्व है,
21:57अभी कितना टाइम है मेरे पास?
22:00चार पास मेरे तो क्रिश्ण को अनेको नाम दिये गए
22:07और क्रिश्ण के जो अलग-अलग नाम दिये गए,
22:10वो सब उनके कारियों के कारण दिये गए
22:13जो जो उन्होंने
22:15activity perform की जो चीजें
22:17उन्होंने इस लोक में
22:19कि उन सब के कारण
22:21उनको कुछ नाम दिये गए
22:22और कृष्ण
22:23नाम इसलिए था कि उनको काले थे
22:27लेकिन काले पन में
22:29भी सौंदर था आकरशन था
22:31और उस आकरशन को जब राधा
22:32और बाकी लोगों को समझ में आया
22:34तो उनको फिर unity
22:36unison
22:37जो एकात्म है उनको महसूस हुआ
22:40और वो दिब्व के साथ जुड़ गए
22:43तो इसी
22:44गीत में जो मैं आपको सुनाने जा रहा हूं
22:47इसमें वो बाते आये
22:48कृष्ण के नाम को चरितार्थ करने वाली बाते मैं कहूंगा
22:51तो कहते हैं
22:53कृष्ण है तो निराले
22:57कुछ अधूरे और काले
23:01कृष्ण है तो निराले
23:06कुछ अधूरे और काले
23:09मिली राधा
23:11तो फिर
23:12प्रेम पूरा हुआ
23:16कृष्ण है तो निराले कुछ अधूरे और काले मिली राधा तो फिर प्रेम पूरा हुआ
23:30लगी राधा की धुन बजी बसरी तननुम शाम मोहन मन मोहन कहाने लगे
23:42कृष्ण है तो निराले कुछ अधूरे और काले मिली राधा तो फिर प्रेम पूरा हुआ
24:05लगी राधा की धुन बजी बसरी तननुम लगी राधा की धुन बजी बसरी तननुम
24:18शाम मोहन मन मोहन कहाने लगे लगी राधा की धुन तो इस संदर्व में क्रिश्ण कैसे काले थे पहली प्यंक्तिमन यही गहा है और राधा की जब धुन लगी
24:37तो वो कैसे आकरशक हुए, कैसे मोहन बने, कैसे मन मोहन बने
24:41और पूर्णता फिर राधा को उसी से मिली, कृष्ण तो पूरे पहले से थे
24:45लेकिन जब तक राधा के साथ उनका संगम नहीं हुआ था
24:49तब तक वो दिविता के हसास वहां की लोगों को नहीं हुआ था
24:53आई एगे सुनाओं जी जी समय सीमई था इसलिए मैं कई राक्षावासों को उन्होंने यहां निप्टाया था, कृष्ण ने अपने चरीत्र में कही राक्षावसों को उन्हों निप्टाया था
25:10एक भौमा सुर राक्षस था
25:12तो उसका एक चेला था, मूर था
25:14जो कंस था, उन्होंने भी
25:16एक केसी जो दैट्य था, राक्षस था
25:18उसको भी भेजा था कृर्ष्ण को मारने
25:20के लिए, इन सबको कृर्ष्ण
25:22ने निप्टाया था, तो उसमें
25:24कहते हैं, भौम के
25:26मुर मरे
25:27कंस केसी
25:31मरे
25:32कृष्ण मुरारी और
25:34केशो कहाने
25:37लगे
25:37मुर को मारे तो मुरारी कहनाने लगे
25:40और जब केस कुमारा केस राक्षस को
25:42तो केशो कहलाने लगे
25:44तो कहते हैं कि
25:45भौम के मुर मरे
25:47कंस केसो
25:50मरे
25:51कृष्ण मुरारी और केशो
25:54कहाने लगे, वनमे विच्रन करे, गोपियों मन हरे, कृष्ण गोविन्द बनवारी, कहाने लगे,
26:08लगी राधा कि धुन बजी बसुरी तननुम, स्याम मोहन मन मोहन कहाने लगे,
26:25कहाने लगे, लगी राधा कि धुन बजी बसुरी तननुम, कृष्ण मोहन मन मोहन कहाने लगे, लगी राधा कि धुन बहुत धन्यवाद, एक और अंत्रा है, और इसमें जो रुमान्स है, वो देखिए, रुमान्स से फिर कृष्ण का नाम कहां पहुंचता है?
26:55कहते हैं, कि रास रंग वो रचे, दैते मधु को वधे, इसमें से फिर दो नाम निकले हैं, रास रंग को रचे, दैते मधु को वधे, किष्ण माधव और नागर कहाने लगे,
27:20और जो रास रचाया तो नागर कहाने लगे, रास रंग वो रचे, दैते मधु को वधे, किष्ण माधव और नागर कहाने लगे,
27:50और दुखों से मुक्त कर रहे हैं, पाप को हरते हैं, तो मनोहर और हरी यहां से निकला है,
27:56तो कहते हैं कि पाप सब को हरे, मुक्त दुख से करे, वो हरी और मनोहर कहाने लगे,
28:09लगी राधा कि धुन, बजी बसुरी तननुम, लगी राधा कि धुन, बजी बसुरी तननुम,
28:20शाम मोहन मन मोहन कहाने लगे, कृष्ण है तो निराले, कुछ अधूरे और काले,
28:32लगी राधा कि धुन, बजी बसुरी तननुम, लगी राधा कि धुन, लगी राधा कि धुन, बजी बसुरी तननुम, लगी राधा कि धुन,
28:40जोरदार तालिया एक बार पर से, बहुत धन्वार, बहुत धन्यवार, बहुत धन्यवार,
28:43मेरी आवाज बंद कर देते हैं
28:49हमारा सौभा क्या है सर कि आप हमारे इस मंच पर आया
28:52और क्या शांदार आपने सुनाया
28:54और मैं अब अगले महमान को आमंतरित करना चाहूंगा
28:56जो की है डॉक्टर ओम, निशल, कवी, आलोचक
29:00और एक सधे हुवे गीतकार
29:01उनकी उलिखनिये कृतियों में शामिल है
29:04शब्द सक्रिये है, मेरा दुख सिरहाने रख दो
29:07ये जीवन खिल खिलाएगा किसे दिन
29:09कोई मेरे भीतर जैसे धुन में गाए
29:12वा ये मन आशार का बादल हुआ है
29:15और हाल ही में प्रकाशित तुम्हें मीर के एक मिस्रे से
29:31बादल और भाशा की खावियादी गद्यक्रितियां भी उनके लेखन संसार में शामिल है
29:36आप आचारे राम चंद्रशुक्ल अलोचना पुरस्कार जशन अदब शान हिंदी खिताब
29:42अग्ये भाशा सेतु सम्मान, कल्यान मन लोढ़ा, साहित्या सम्मान, गंगदेव सम्मान, राम स्वरुप चतुरवेदी, आलोचना सम्मान अदी, अनेक सम्मानों से विभूशित है
29:52और सर के आवाज मुझे बहुत पसंदा रचनाएं भी
29:54साहित्यास तक के विराट अनुस्ठान को नमन और राजियों जो इसके एंकर हैं संचाले के उनके विकल कविमन के लिए आज का कावी पार्ट मैं समर्कुत करता हूँ
30:11कुछ गजलें
30:15मुझे में नादानियां बची हैं भी
30:20मुझे में नादानियां बची हैं भी
30:22कुस तो किलकारियां बची हैं भी
30:25मुझे में नादानियां बची हैं भी
30:27कुस तो किलकारियां बची हैं भी
30:30फूल होंगे तुम्हारे गमले में
30:33फूल होंगे तुम्हारे गमले में
30:35मुझे में भी क्यारियां बची हैं भी
30:39शेर देखें कि ऐ दरखतों सुनो नसोना भी
30:43कहते हैं आरियां बची हैं भी
30:51भीड से वो घिरा तो है लेकिन
30:56उसमें तनहाईयां बची है भी
30:58भीड से वो घिरा तो है लेकिन
31:01उसमें तनहाईयां बची है भी
31:03तुम उसकी सादगी पे मत जाना
31:07तुम उसकी सादगी पे मत जाना
31:09उसमें खुदारियां बची है भी
31:10और अंतिम शेर है कि राख जनता को मत समझ लेना
31:20राख जनता को मत समझ लेना
31:23उसमें चिनगारियां बची हैं उसमें चिनगारियां बची हैं भी
31:27मुझे में नादानियां बची हैं भी कुस तो किलकारियां बची हैं भी
31:31और एक गजल देखें कि जो घजल गोई हो तो अच्छा है रूबरू कोई हो तो अच्छा है
31:41जो घजल गोई हो तो अच्छा है
31:44रूबरूख कोई हो तो अच्छा है
31:47खेत खाली नहीं अच्छे लगते
31:49खेत खाली नहीं अच्छे लगते
31:51घर फसल बोई हो तो अच्छा है
31:53घर फसल बोई हो तो अच्छा है
31:56खेत खाली नहीं अच्छे लगते
31:58शेर देखें कि कैसे कविरा सुनाएगा साखी, कैसे कविरा सुनाएगा साखी, पास में लोई हो तो अच्छा है, मत करो शोर जाग जाएगी, मत करो शोर जाग जाएगी, वेदना सोई हो तो अच्छा है, और दर्मिया कोई भी शंशे न रहे, जो साफगोई हो तो अच्छा ह
32:28कि ये कुद्रत को मैंने कुछ लिखा है कि वो कैसी यजब दास्तान लिख रहा है राजु भाई वो कैसी यजब दास्तान लिख रहा है अभी खेत में बालियां लिख रहा है कभी उसकी महफिल में जाके तो देखो फिजा में कहीं तितलियां लिख रहा है क्या बात है कभी उ
32:58जब दास्ता लिख रहा है अभी खेत में बालियां लिख रहा है शेर देखें कि धरा धुल उठी आस्मा भी मगन है धरा धुल उठी आस्मा भी मगन है वो नभ में अभी बिजलियां लिख रहा है वो नभ में अभी बिजलियां लिख रहा है कोई सांज लोटेंगे अभी पक
33:28बजी घंटियां कितने चेहरे ये खुश हैं, कोई इस तरह चुटियां लिख रहा है, वो कैसी यजब दास्ता लिख रहा है, अभी खेत में बालियां लिख रहा है, और एक असुल देखें के, तुम्हारी दिल लगी भी कम नहोगी, तो ये दीवानगी भी कम नहोगी,
33:51पकड़ लो हाथ मेरा और देखो, मेरी आवारगी भी कम नहोगी, तुम्हारी आँख में आसू जो आए, मेरे भीतर नमी भी कम नहोगी,
34:19मेरे भीतर नमी भी कम नहोगी, तुम्हारे साथ चलना हो कहीं पर, तु ये ख्वाहिश कभी भी कम नहोगी,
34:34करोगे आचमन गर्शदमन से, नवाजश में नदी भी कम नहोगी, तु ये दिवानगी भी कम नहोगी,
34:51और कुछ तोड़े सक्त शेर सुनाते हैं,
34:55नुकीली बर्शियां थी और हम थे,
35:25लड़ी थी रेलगाडी जिस जगह पर, शिसकती पट्रियां थी और हम थे,
35:33गुजरते किस तरह फाकों के वे दिन, लटकती रसियां थी और हम थे,
35:43हरे बागान सम्मु कट रहे थे, कुलाडी यारियां थी और हम थे,
35:50वो नकसल कहके मारे जा रहे थे
35:54बरस्ती गोलियां थी और हम थे
35:59और शेर देखें कि हम अपने वक्त के थे मसकरे खुद
36:02सदन में तालियां थी और हम थे
36:07लगी थी गुलिष्टा में आग जस दिन
36:12सुलकती तीलियां थी और हम थे
36:14और आकरी शेर है के, आकरी शेर से पहले के नशे मन, नशे में डूबा हुआ था, कनकती प्यालिया थी और हम थे, वो जेबों में खजाने भर रहे थे, बस उनकी ठैलिया थी और हम थे, और आकरी गजल,
36:37बड़े बड़े हुकाम विके हैं
36:41चाहे लगे छदाम विके हैं
36:46सत्ता की खातिर देखो तो
36:55कितने नमक हराम विके हैं
37:01हर युग में होता आया है
37:05कितने पूर विराम विके हैं
37:18कवियों के तेवर जब गोपी ने
37:31नाच नचाया जब गोपी ने
37:33अरे वाँ क्या बात है
37:36नाच नचाया जब गोपी ने
37:38बड़े बड़े घंशाम भी के है
37:40हुशन इश्क की बलिवेदी पर
37:42कितने यहाँ निजाम भी के है
37:44शहन शाह की इस नगरी में
37:46गुपचुप बहुत गुलाम भी के है
37:49सत्ता ऐसी शै है यारो
37:51सत्ता ऐसी शे है यारो
37:54सारे दक्षन वाम विके हैं
37:55सत्ता ऐसी शे है यारो
37:57सारे दक्षन वाम विके हैं
38:00निर्बल की तो फिर क्या कहिए
38:01बड़े बलराम विके हैं
38:03निर्बल की तो फिर क्या कहिए
38:06बड़े बलराम विके हैं
38:08और समय बहुत कम है
38:10मैं अपराद भाव से एक गीत का गुन-गुनाना चाहता हूँ ताकि शीरशक सार्थक हो गीत गाता हूँ मैं गुन-गुनाता हूँ मैं
38:19तुम हवा बनकर तुम हवा बनकर सुबह बनकर कली बनकर
38:34हवा बनकर, सुबह बनकर, कली बनकर
38:41मेरे आंगन में महका कर, कभी तो चांदनी बनकर
38:51हवा बनकर, सुबह बनकर, कली बनकर
38:57मेरे आंगन में महका कर
39:02कभी तो चांदनी बनकर
39:06हवा बनकर
39:08मेरे मन की गली में चले आना
39:19मन कहे जब मेरे बच्चे से दिल को दुलराना
39:27दिल कहे जब मेरे लबजों में ढल जाना
39:33सुबह की प्रार्थना बनकर
39:37मेरी इच्चा को छू लेना
39:41कभी तो रागिनी बनकर
39:46मेरे आंगन में महका कर
39:50कभी तो चांदनी बनकर
39:53हवा बनकर सुबह बनकर
39:57कली बनकर
39:59आखरी बन्द है
40:00तुम्हारे बिन अधूरा है
40:04हमारी कामना का घर
40:08के हर मौसम बरसता है
40:20तुम्हारी याद का निर्जर
40:24कभी तो पकड़ लेना
40:28तुम मेरी ए उंगलियां बूरी
40:31कभी तो लोट आना
40:35इस सुब्वन में कामिनी बनकर
40:38हवा बनकर
40:40सुबह बनकर
40:42कली बनकर
40:44मेरे आंगन में महका कर
40:49कभी तो चांदनी बनकर
40:53हवा बनकर
40:54सुबह बनकर
40:56कली बनकर
40:58शुक्या
40:59और अब हम सुनने जा रहे हैं
41:05माधव कौशक जी को
41:07जो साहित यग आदमी के अध्यक्ष हैं
41:09और विभिन्य विधाव में
41:1040 से जादा पुस्तकें
41:12आपके प्रकाशित हो चुके हैं और अनेक पुरसकारों से
41:14सम्मानित हैं अब हम आपको सुनेंगे
41:16बहुत बहुत धन्यवाद भाई नमस्कार
41:24बिना किसी
41:26खास भूमी का के
41:28मेरे सामने युवा पीड़ी बैठी है
41:30मैं उन्ही को संबोधित होके
41:33दोचार गजलों के शेर सुना रहा हूँ
41:36हम सब छोटे छोटे कस्वों से
41:39गाउं से आए और शेरों में आके
41:42शेरों के ही हो गए
41:45और ये युवा पीड़ी के नाम है शेर
41:48के लहू को और भी ज़्यादा सियाह मत करना
41:55लहू को और भी ज़्यादा सियाह मत करना
41:59शेर के वास्ते कस्वे तबाह मत करना
42:04लहू को और भी ज़्यादा सियाह मत करना
42:09शेर के वास्ते कस्वे तबाह मत करना
42:14मुसाफिरों के मुकदर में राहतें कैसी
42:19किसी भी मोड पर मनजिल की चाह मत करना
42:27किसी भी मोड पर मनजिल की चाह मत करना
42:36और शेर देखिए कि नहीं तो वक्त भी समझेगा आपको बुजदिल
42:42नहीं तो वक्त भी समझेगा आपको बुजदिल
42:47जलेगा जिस्म मगर मुँसे आहमत करना
42:51नहीं तो वक्त भी समझेगा आपको बुजदिल
42:55जलेगा जिस्म मगर मुँसे आहमत करना
43:00और ये शेर देखिए कि कलम हो सर या जुबां को तराश दे दुनिया
43:06कलम हो सर या जुबाँ को तराज दे दुनिया किसी भी हाल में नीची निगाह मत करना
43:14क्या बात है बहुत सुनगा है
43:16कलम हो सर या जुबाँ को तराज दे दुनिया किसी भी हाल में नीची निगाह मत करना
43:23और जला सको तो जला दो चिराग आंधी में
43:27जला सको तो जला दो चिराग आंधी में
43:32जरासी बात पर सपनों का दाह मत करना
43:35क्या बात है जला सको तो जला दो चराग आंधी में
43:42जरासी बात पर सपनों का दाह मत करना
43:46और ये शेर देखिए, कि जमाने वाले महबत को जो कहें सो कहें, जमाने वाले महबत को जो कहें सो कहें, इसे गुनाह समझ कर गुनाह मत करना।
44:12आखरी शेर देखिये के उजाला भीख में मिलता तो सारे ले आते उजाला भीख में मिलता तो सारे ले आते अंधेरी रात से जूटा निबाह मत करना
44:43ए गजल के और दो चार सेर देखिए नई P.D के नाम वो जो काम करती है कि बसे काम यही बार-बार करता था भावर के बीच से दर्या को पार करता था
45:02बसे काम यही बार बार करता था बावर के बीच से दरिया को पार करता था
45:11और उसी की पीछ पर उबरे निशान जखमों के जो हर लड़ाई में पीछे से वार करता था
45:23बहुत सुन्दर उसी की पीछ पर उबरे निशान जखमों के जो हर लड़ाई में पीछे से वार करता था
45:34और हवा ने छीन लिया अब तो धूप का जादू नहीं तो पेड़ भी पत्तों से प्यार करता था
45:45हवा ने छीन लिया अब तो धूप का जादू नहीं तो पेड़ भी पत्तों से प्यार करता था
45:56और ये शेर देखिए के सुना है वक्त ने उसको बना दिया पत्थर रागी साब को ये शेर खास तोर पे
46:05सुना है वक्त ने उसको बना दिया पत्थर जो रोज वक्त को भी संगसार करता था
46:23और उसी की पीठफर और एक शेर जवान पीड़ी के नाम के अजीब शक्स था खुदल विदा कहा लेकिन हर एक शाम मेरा इंतजार करता था
46:40अजीब शक्स था खुदल विदा कहा लेकिन हर एक शाम मेरा इंतजार करता था भावर के बीच से दरिया को पार करता था भाई टाइम बहुत हो बता दे ना भाई एक गजल के और अच्छी रचनाओं के लिए तो यार मैं सारा टाइम दे सकता था एक गजल के और दो चार �
47:10हम सब की तरफ से के दिल में हर दम चुबने वाला काटा सही सलामत दे आंखें दे या मत दे लेकिन सपना सही सलामत दे
47:40लेकिन सपना सही सलामत दे और शेर देखिए कि हमें युद्ध आतंक भूख से मारी धरती बक्षी है आने वाली पीड़ी को तो दुनिया सही सलामत दे
48:10और ये शेर देखिए कि दावा है मैं एक दिन उसको दरिया करके छोड़ूँगा खुली हतेली पर आसु का कत्रा सही सलामत दे और आधी और अधूरी हस्रत
48:40कब तक जिन्दा रखेगी आधी और अधूरी हस्रत कब तक जिन्दा रखेगी कागज पर ही दे पर घर का नक्षा सही सलामत दे आधी और अधूरी हस्रत
48:54अधूरी हस्रत कब तक जिन्दा रखेगी कागज पर ही दे पर घर का नक्षा सही सलामत दे और ये आखरी शेर युवापीडी की आइडेंटिटी के नाम
49:16के भीड भरी दुनिया में सब की अलग अलग पहचान तो हो इसलिए हर एक इनसा को चेहरा सही सलामत दे आखें दे या मद दे लेकिन
49:46सपना सही सलामत दे या बात है बहुत बहुत धन्यवाद मित्रो एक सेगिन आज एक किताब का मेरे कविता से गीत संग रहे का अभी विमोचन हो उसका मैं सिर्फ पहला पहला गीत एक मिनट भी नहीं लगाऊंगा पढ़ रहा हूं और ये हम सब के साथ होता है फिर बजी घ
50:16गंटी मबाइल फोन की अब हथेली में सभी समवेदनाएं धस रही है अब हथेली में सभी समवेदनाएं धस रही है शक्तियां बाजार की अपना शिकंजा कस रही है अब जरूरत ही नहीं वाचालता को मोन की फिर बजी घंटी मबाइल फोन की बात को वाँ वर जनाओं की �
50:46है और सेम сп के जर्ये भावनाये बह रही है वरजनाओं की चटाने रेट बनकर डह रही
50:55है और सेमज के जर्ये भावनाये बह रही है जिन्दगी परियाय बनकर रह गई
51:03पिर बजी घंटी मोबाईल फोन की
51:07और यह एम देखिए
51:09कि आदमी बोना हुआ
51:11पर हो गये टावर बड़े
51:13आदमी बोना हुआ
51:15पर हो गए टावर बड़े
51:17दूसरें के पाउंपर
51:20जैसे जमूरे हो खड़ें
51:22अब नहीं मिलती
51:24चाया यहां सागोन की
51:27फिर बजी घंटी मुबाइल फोन की धन्यवाद जैन बहुत सुन्दर और सर की सी पुस्तक का बिमोचन भी उनम चाते जल्दी से वो पुस्तक जो है
51:35यह यह पुस्तक मैंने भाई ओम निश्चल को सबर्वित की है तो पहली प्रतीन को देते हुए मैं भी गोर्वान में तन्भव कराओं
52:05यह मन आशार का बादल है यह को पुस्तक है और यह पुस्तक जल्मग्द है और यह मन आशार का बादल हुआ है गजल संग्रह उपलब्द है आप चाहें पुले सकते हैं
52:35कि यह मन आशार का बादल हुआ है सर्भासर्टर्स की पेशकर्श
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