झारखंड के धनबाद के टुंडी का आदिवासी बहुल्य गांव जमखोर. जो आजादी के इतने साल भी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहा है. पहाड़ी पर बसे गांव को जोड़ने के लिए सड़क तक नहीं हैं. करीब दो किलोमीटर ऊबड़-खाबड़ पथरीले रस्ते और नाले को पारकर लोग आते जाते हैं. इस गांव में कोई अपनी लड़की की शादी भी नहीं करना चाहता. इस गांव में अगर कोई बीमार पड़ जाए तो खाट पर लाद कर अस्पताल ले जाना पड़ता है. कई बार तो मरीज रास्ते में ही दम तोड़ देता है. सबसे बड़ी परेशानी बच्चों को होती है. पैदल और बड़ी मुश्किल से साइकिल चला कर स्कूल पहुंच पाते हैं. गांव की महिलाएं बताती हैं कि यहां पानी की किल्लत रहती है. हैंडपंप तो है लेकिन पानी नहीं देता. जब कुआं सूख जाता है. झरिया का पानी लाकर प्यास बुझानी पड़ती है. ये कहानी सिर्फ जमखोर गांव की नहीं है. टुंडी प्रखंड के मछियारा पंचायत में दर्जनों गांव हैं, जो इस तरह की सुविधाओं से महरूम हैं. जब इसको लेकर जिम्मेदारों से बात की गई, तो ग्राम सभा बुलाने की बात कही.
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