Bhagavad Gita Chapter 1 | Shlok 1 to 10 Explained | Hare Krishna Bhakti Vibes
हरे कृष्ण 🙏 स्वागत है Hare Krishna Bhakti Vibes चैनल पर।
इस वीडियो में हम भगवद गीता के प्रथम अध्याय के श्लोक 1 से 10 का गहन अध्ययन करेंगे। हर श्लोक का अर्थ, संदर्भ और आधुनिक जीवन में उसकी प्रासंगिकता को सरल भाषा में समझाया गया है।
👉 भगवद गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला है। 👉 इसमें धर्म, कर्म, भक्ति और ज्ञान का अद्भुत संगम है। 👉 इन श्लोकों से हमें मिलता है नेतृत्व, आत्मविश्वास और धर्म के पथ पर चलने का मार्गदर्शन।
📌 आने वाले वीडियो में हम इसी तरह पूरे 700 श्लोकों को विस्तार से कवर करेंगे। अगर आपको यह वीडियो उपयोगी लगे, तो Like | Share | Follow करें और Stars भेजकर हमें समर्थन दें।
00:00हरे कृष्णा दोस्तों, हरे कृष्णा भक्ती वाइब्स में आपका स्वागत है।
00:07भगवद गीता केवल एक ग्रंथ नहीं, बलकि जीवन को सही दिशा दिखाने वाला अमूले ज्यान है।
00:14इसमें कुल 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं।
00:19जह संबाद महाभारत के युद्ध भूमी कुरुक्षेत्र में श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच हुआ था, जहां अर्जुन के संशय को श्रीकृष्ण ने दूर कर उसे धर्म, कर्म, भक्ती और ज्यान का अध्भुत उकदेश दिया।
00:33भगवद गीता केवल अर्जुन के लिए नहीं, बलकि हम सभी के जीवन के हर संधर्ष के लिए मार्ग दर्शन है।
00:41इस वीडियो में हम भगवद गीता के पहले अध्याय के प्रथम 10 श्लोकों को विस्तार से समझेंगे।
00:48हर श्लोक का अर्थ, संधर्भ और उसकी आध्वनिक जीवन में उप्योगिता को सरल और गेहन भाशा में जानेंगे।
00:56आगे आने वाले वीडियो में हम इसी तरहे पूरी भगवद गीता को गहराई से कवर करेंगे।
01:03इस यात्रा में हमारा उद्देश्य सिर्फ शाब्दिक अर्थ नहीं, बलकी जीवन में उतारने योग्य ज्यान को पाना है।
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01:20शलोक एक, धृत्राष्ट्र उवाच, धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे संवेता युयुत्सवह, माम काह पांडवाश्चैव किन कुर्वत संजय, व्याख्या, अंधे राजा धृत्राष्ट्र युद्ध का आखों देखा हाल जानना चाहते हैं।
01:39वे पूचते हैं, हे संजय, धर्मभूमी कुरुक्षेत्र में मेरे पुत्रों और पांडवों ने युद्ध की इच्छा से एकत्र होकर क्या किया।
01:49यह श्लोक हमें बताता है कि परिस्थिती चाहे जितनी भी विकट हो, धर्मक्षेत्र यानी नैतिक्ता का स्थान हमेशा सबसे महत्वपूर्ण होता है।
02:00यह प्रश्न धृत्राष्ट्र के मन में छिपे मोह और पक्षपात को भी प्रकट करता है।
02:06श्लोक दो
02:07संजय उवाच
02:09द्रिष्टवातु पांडवानी का व्यूध दुर्योधन स्तदा
02:13आचार्य मुक संग में राजा वचन मबरवीग
02:17व्याख्या
02:18संजय कहते हैं कि पांडवों की सेना को युद्ध के लिए सुव्यवस्थित देखकर दुर्योधन घबराता है
02:25और अपने गुरु द्रोनाचार्य के पास जाकर कुछ कहता है
02:29जब शत्रु शक्तिशाली दिखता है तब कमजोर हृदय डर जाता है
02:35यह दुर्योधन के अंदर छिपी हुई चिन्ता को क्रकट करता है
02:40श्लोक ती
02:42ग्यूधा दुर्योधन द्रोनाचार्य से कहता है गुरु देखिए पांडु पुत्रों की विशाल सेना को
02:59जो आपके ही शिश्य दुरुपद पुत्र धृष्ट द्युम्न द्वारा व्यवस्थित की गई है
03:04कभी कभी अपने ही शिश्य हमारे विरुद्ध खड़े हो सकते हैं यह संसार का स्वभाव है
03:11यह श्लोक गुरुओं और शिश्यों के बीच के जटिल रिष्टों की जलक भी देता है
03:17श्लोक चार
03:20अत्रशूरा महेश्वासा भीमार्जुन समायुधी
03:23युद्धानों विराटश्च दुरुपद्ष्ट महारत है
03:27ग्याख्या
03:29दुर्योधन बताता है कि पांडवों की सेना मेभीम अर्जुन जैसे महान धनुर्धर और महारती मौजूद है
03:37साथ में युद्धान विराट और दुरुपद भी है
03:40सच्ची शक्ती केवल संख्या में नहीं
03:43योग्य और निष्ठावान योध्धाओं में होती है
03:46यह श्लोक हमें बताता है कि नेत्रित्व में अच्छे योध्धाओं का होना कितना जरूरी है
03:53श्लोक पांच
03:56ध्रिष्ट केटुष्चे किताना काशिराजश्च वीर्यवान
04:00पुरुजित कुंति भोजश्च शैब्यश्च नर्पुंगवः
04:04व्याख्या
04:05दुर्योधन आगे गिनाता है ध्रिष्ट केतु, चेकितान, पराक्रमी काशिराज, पुरुजित, कुंतिभोज और शैब्यत सभी महान योध्धा है
04:15जब नेत्रित्व स्पष्ठ होता है तो महान आत्माय स्वेच्छा से उस उद्देश में साथ देती है
04:23यह श्लोक एक जुप्ता और नेत्रित्व की महिमा को दर्शाता है
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