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  • 6 weeks ago

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00:00ये बात है 1996 की जब चाइना के दूर दराज इलाके में आर्केलोजिस को एक ऐसा पेरमिट बना मिला जो असल में टेड़ लाक साल पुराना कदीम लोगों का बनाया हुआ अलेक्ट्रिक पावर ब्लांड था
00:14जैम टीवी की वीडियोज में एक बार फिर से खुशाम दीद
00:16नाजरीन ये बात हमारी सोच से बढ़कर है कि अलेक्ट्रिक करंट ही जब 17th सेंचरी में इन्वेंट हुआ था तो फिर लाकों साल पहले कोई अलेक्ट्रिक पावर प्लांड कैसे बना सकता है
00:28ये ऐसा ही है जैसे पेटरोल की इन्वेंशन से पहले कोई गाड़ी बना ले या फिर टेलीफोन की इन्वेंशन से पहले स्मार्टफोन
00:36आज हम चाइना में हुई दो ऐसी डिसकवरीज के बारे में जानेंगे जो पॉसिबल तो सिर्फ आज की दुनिया में है पर असल में इनको हजारों साल पहले बनाया गया था
00:46सबसे पहले हम बात करेंगे तिब्बत की
00:49तिबिटन प्लेटो हमालियास के नौर्थ में बाके चाइना का एक आटोनॉमस रीजन है
00:54यहां दुनिया के उंचे तरीन पहाड है इसी वज़ा से अक्सर इसको दुनिया की चछत यानी रूफ आफ दी वर्ल भी कहा जाता है
01:011937 में तिब्बत के पहाडों पर एक आर्केयोलोजिकल एक्सपेडिशन हुआ था जिसको आर्केयोलोजिस्ट चीपू टाई लीड कर रहे थे
01:10उनको वहाँ एक गार के अंदर से 716 ग्रेनाइट की डिसक परामद हुई जिन में से ज्यादा तर गार के अंदर दफन हुई पड़ी थी
01:19हर डिसक का डायामिटर 9 इंच था ये 1 इंच मोटी और उनके ठीक सेंटर में 1 इंच का परफेक्ट सुराख हो रखा था
01:29इन डिसक की सफाई करने पर मालूम पड़ा कि इनके किनारों पर कुछ ना समझ आने वाले करेक्टर्स लिखे हुए हैं पत्थरों पर कावड हुए करेक्टर्स करीब 12,000 साल पहले लिखे गए थे
01:41पर आर्केलोजिस्ट के लिए सिर्फ ये डिसक ही हैरत का बाइस नहीं बनी उनको गार के अंदर स्टार्स का एक एडवांस्ट मैप भी बना हुआ दिखा और कुछ चोटी साइस की कबरें भी जिनके अंदर इनसानों जैसे चोटे चोटे स्केलेटन्स दफन थे पर उनके स
02:11बीस सालों तक मेहनत करने के बाद जब ये कुथी सुलज ना सकी तो ये पत्थर प्रोफेसर सुम अम नोई के हवाले कर दिये गए प्रोफेसर ने इन पर चार साल तक रिसर्च की तिबिटन प्लैटो में रहने वाले कबीलों से मदद मागी और आखिर कार वो इन करेक्टर
02:41क्रेश के दुरान इसमें बच जाने वाली मखलूक के बारे में भी बताया गया था जिनका नाम कबीले वालों ने ड्रोपा मेंचन किया हुआ था
02:50इन 716 डिस्क में ये भी लिखा था कि पहले हम डर के मारे घार में चुप गए लेकिन फिर हमें महसूस हुआ कि आसमान से आने वाले ड्रोपा किसी गलत इंटेंशन से यहां नहीं आए
03:02वो वापस नहीं जा पाए और यहीं बसना शुरू हो गए
03:06सुम उम नोई ने अपनी ये रिसर्च 1962 में पब्लिश की लेकिन इस पर किसी ने ज्यादा अटेंशन नहीं दी
03:13छे सालों के बाद यही कहानी दुबारा से फैलना शुरू हुई लेकिन इस बार सोवियत यूनियन में
03:19सोवियत साइंटिस्ट ने इन डिस्क पर जब रिसर्च की तो इन में कुबाल्ट और दूसरे मेटल्स की कौन्टिटी काफी ज्यादा पाई गई
03:27जो दुनिया में पाए जाने वाले सबसे सخت मेटल्स है
03:31ग्रिफाइट में मुझूद इन तमाम मेटल्स की वज़ा से डिस्क की नेचर भी काफी सخت थी
03:36और 12,000 साल पहले इस्तमाल होने वाले टूल्स की मदद से इन पर कार्विंग्स करना पॉसिबल नहीं था
03:43इसके बाद इन स्टोन डिस्क को चाइना के बैंपू म्यूजियम में रख दिया गया
03:491974 में एक आस्ट्रेलियन इंजिनियर ने ये म्यूजियम विजिट किया तो उनको स्टोन के बारे में इन्फॉर्मेशन देने से मना कर दिया गया
03:58और फिर 1994 में दो जर्मन साइंटिस्ट ने जब ये डिस्क देखने के लिए इस म्यूजियम को विजिट किया तो उनको बताया गया कि चाइनीज गवर्मेंट की तरफ से इन डिस्क को डिस्ट्रॉय कर दिया गया है।
04:11लेकिन सबसे important सवाल अभी तक वहीं था कि 12,000 साल पहले अगर इन स्टोन्स पर लिखी गई कहानी वाकई सही से डिकोड हुई थी तो फिर बच जाने वाले ड्रोपा का क्या हुआ।
04:231937 में जब इन स्टोन्स की डिसकोवरी हुई थी उसके एक साल के बाद यानि 1938 में तिबबत के इस एरिया में एक सर्वे हुआ था।
04:34यहां दो कबीले बसते थे जिनकी नसलों को एंथरोपालिजिस्ट ने यहां बसने वाले दूसरे चाइनीज, मेंगोल और तिबिटन कबीलों से काफी मुखतलिफ पाया।
04:44इनकी इसकेन यलो, सर जरूरत से बड़े और इनके जिसम पर काफी कम बाल थे।
04:50जबके इनका कद तीन फुट छे इंच से लेकर मैकसिमम चार फुट साथ इंच रिकॉर्ड किया गया।
04:57लगबग उतना ही जितना गार के अंदर मिले स्केलेटन्स का था।
05:01तो अब सवाल उठता है कि क्या ये 12,000 साल पहले बच जाने वाले ड्रोपा की ही नसल तो नहीं है।
05:08आज भी एक कभिला नौधरन टिविटन प्लेटो में रहता है जिनको ड्रोपा तो नहीं बलके ड्रोपा कहा जाता है।
05:16पर इन लोगों की हाइट नौर्मल इनसानों जैसी है।
05:19ड्रोपा स्टोन डिस्क आज दुनिया के किसी भी म्यूजियम में मौजूद नहीं है।
05:24बेशक इन पर हुई कारविंग्स और ड्रोपा की कहानी का कोई सबूत नहीं है लेकिन 12,000 साल पहले इतने सخت पत्तर पर
05:46अब बात करते हैं चाइना में ही की जाने वाली एक दूसरी डिसकवरी की।
05:511996 में चाइनीज आर्कियोलोजिस को डेड़ लाक साल पुराना एक ऐसा पेरमिड नुमा पहाड मिला जिसके अंदर मौजूद एविडेंस ये इशारा देते हैं कि ये उस वक्त का अलेक्ट्रिक पावर प्लांट था।
06:05जी हाँ चाइना की किंग हाई प्रोविंस में लेक टूसू के साउथ में माउंट बाइगॉंग नामी पहाड है।
06:12इस पहाड के अंदर एक गार है जहां आर्कियोलोजिस ने ये हैरान कर देने वाली डिसकवरी की।
06:18गार के अंदर लोहे के बहुत सारे टुकडे मिटी में बिखरे हुए थे और कुछ अजीब शकल के पत्थर भी पड़े हुए दिखाई दिये।
06:26ना सिर्फ इतना कहानी में टुष्ट तब आया जब उनको लोहे के पाइपस नजर आये जो पहाड के अंदर जा रहे थे।
06:34मालूम पड़ा के ये गार ये गेव कोई नेचरल नहीं है बलके इसको किसी ने बनाया है।
06:40और ये पहाड भी असल में पहाड नहीं बलके एक पेरमिड है जो वक्त के साथ साथ अब अपनी ओरिजनल हालत में नहीं रहा।
06:48शुरुआत में तो ये सारा मनजर बहुत ही कनफ्यूजिंग लग रहा था।
06:52साइंटिस जितना माउंट बाइगॉंग के बारे में जानने की कोशिश करते उतने ही नए सवालात का पहाड खड़ा हो जाता।
06:59बीजिंग इंस्टिटूट आफ जियोलाजी ने जब यहां लोहे के पाइपस पर रिसर्च की तो मालूम पड़ा के इनको पांच दस नहीं बलके डेड़ लाक साल पहले बनाया गया था।
07:11यहां मुख्तलिफ साइस के पाइपस थे जिनमें ज्यादातर का डायामिटर 18 एंच था जबके कुछ पाइप चावल के दाने जितने चोटे भी थे और कुछ इतने बड़े के इनसान भी उसमें से गुजर सकता है।
07:24साइसदानों को ये समझ नहीं आ रहा था कि आइरन एज से भी लाकों साल पहले ये पाइपस कैसे बनाये गए थे। इनको किसने और क्यूं बनाया था।
07:35इन पाइपस का यहां पर कोई खास मकसद तो नजर नहीं आ रहा था।
07:39जड़के 260 फीट दूर टूसू लेक में भी कुछ ऐसे ही पाइपस देखे गए। ये पाइपस लेक के पानी के लेवल के नीचे और उपर दोनों जगा पर देखे गए।
07:50कुछ रिसर्चर्स का मानना है कि ये पाइपस शायद पेरमिट के अंदर पानी पंप करने के लिए डाले गए थे।
07:57पाइपस पर मजीद रिसर्च करने से मालूम पड़ा कि इनके अंदर 30% जंग लगा हुआ था जो इस थियोरी को साबित करता है कि इसके अंदर से पानी को ही गजारा जाता था।
08:08अब क्योंके टूसू एक साल्ट लेक है इसी वजा से एक थियोरी इशारा देती है कि ये पाइपस अलेक्ट्रोलिसिस के लिए इस्तमाल किये जाते थे।
08:17Electrolisis उस प्रोसेस को कहते हैं जब पानी में से electric current को गुजारा जाता है जिस से पानी के molecules oxygen और hydrogen में तूट जाते हैं।
08:27इस प्रोसेस में अगर नमक डाल दिया जाए तो Electrolisis का प्रोसेस काफी तेज हो जाता है।
08:33क्योंके salt water ज्यादा अच्छा conductor है और टूसू लेक में अलरेडी नमक वाला पानी है।
08:40Electrolisis के जरीए से अलग होने वाला hydrogen बहुत काम आ सकता है।
08:45सबसे बढ़कर ये एक fuel के तोर पे भी काम कर सकता है।
08:49इसके इलावा pipes के अंदर silicon dioxide भी मिला जो के normally cords के अंदर होता है।
09:03के उपर अगर pressure डाला जाए तो ये electricity generate करता है। इसको piezoelectric effect कहते हैं।
09:10Experts का खयाल है कि 18 इंच मोटे pipe में से जितना पानी गुजरता होगा उसके वजन से cords electricity generate करता था।
09:19याद रहे कि Egypt के pyramids भी इसी तरहां पानी के एक बहुत बड़े aquifer के उपर बने हुए हैं।
09:27घीजा pyramids में भी कई जगा से cords और metal के pipes मिल चुके हैं।
09:32Famous scientist Nikola Tesla ने भी इनही असूलों की बन्याद पर Warden Cliff Tower बनाया था।
09:38इस कदीम तरीके को इस्तामाल करते हुए Tesla का मानना था कि वो free electricity generate करके उसको दुनिया के किसी भी कोने में भीज सकते हैं।
09:48लेकिन जब Tesla अपने project को complete करने के बहुत करीब थे तो investors ने उनका साथ छोड़ कर oil में invest कर दिया।
09:57माउंट बाइगांग के pipes में जो quick line मिला था ये basically पानी के साथ react करके heat produce करता है पर जब इसमें से पानी निकाला जाए तो ये वापस अपनी original हालत में आ जाता है।
10:10यानि माउंट बाइगांग में एक electricity plant होने के सारे सबूत मुझूद थे इसमें मुझूद pipes पानी pump करने के लिए cords जो के electricity बनाता था ये electricity पानी में से hydrogen और oxygen को electrolysis के जरीए अलग करती थी
10:28कोई कलाइम जो के पानी के साथ मिलकर pressure generate करता था ये pressure cords पर मजीद pressure डालता और ज्यादा से ज्यादा electricity पैदा हो सकती थी।
10:39इन सारी बातों से और माउंट बाइगॉंग में मौझूद डेड़ लाक साल पुराने metal pipe से ये अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि दुनिया में बहुत पहले इनसानों की जो civilization बस्ती थी उनके तौर तरीके और उनकी engineering techniques काफी advance थी जो अब इतिहास में ही कहीं खो च�
11:09अली शांदार वीडियो में
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