00:00दे रही हूँ अरे दे रही हूँ दे रही हूँ जो वंदे मात्रम की जो क्रोनोलजी है वो भी आप समझेए जो असली क्रोनोलजी है
00:101875 में महाकवी बनकिम चंद्र चत्तो पाध्या ने इस गीत के पहले दो अंतरे लिखे
00:19जो आज हमारे राश्टर गीत घोशित हुए हैं
00:25मतलब जो घोशित हुए थे और जिसको हम आज अपना राश्टर गीत कहलाते हैं
00:30ये पहले दो अंतरे लिखे
00:321882 में साथ साल बाद उनका एक उपन्यास प्रकाशित हुआ आनंद मठ
00:41उस उपन्यास में यही कविता उन्होंने प्रकाशित की लेकिन इसमें चार अंतरे जोड़ दिये
00:491896 में कॉंग्रेस के अधिवेशन में गुरुदेव रबिंदरनाथ टगौर ने पहली बार ये गीत गाया
01:011905 में बंगाल के विवाजन के खिलाफ अंदोलन के समय
01:08बंदे मातरम जनता की एकता की गुहार बनकर गली गली से उठा
01:13गुरुदेव रबिंदरनाथ टगौर जैसे महान स्वत अंतरता सेनानी इस गीत को खुद गाते हुए बंगाल की सड़कों पे उतरे
01:22विद्यारतियों से लेकर किसानों तक व्यापारियों से लेकर वकीलों तक हर कोई ये गीत गाने लगा
01:31इस गीत की शक्ति को समझे ब्रिटिश सामराजर इसको सुनकर कापता था
01:37और हमारे देशवासी इसको सुनकर वे मन बनाते थे वे हिम्मत बनाते थे कि इस भयंकर सामराजर के खिलाफ सत्य और रहंसा के नैटिक हस्तियारों को लेकर शहीद होने की तैयारी करते थे
01:53ये गीत मात्रिभूमी के लिए मर मिटने की भावना को जगाता है
01:58इस गीत की शक्ती ये है इस गीत का हमारे देश से जुडाव ये है लेकिन 1930 के दशक में हमारे देश में जब सामप्रडाइक राजनीती उभरी तब ये गीत विवादित होने लगा
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