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  • 36 minutes ago

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00:00इधर यह पेड़ गिरा हुआ है इसकी जड़ उखड़ गई यह ऐसे लेट गया लेकिन उसके बाद भी यह इसने अपनी ऐसे शाखाएं उपर फियक रखी है और यह
00:17खड़ी हो गया पूरा गिर जाने बाद भी पूरा गिर जाने के बाद भी यह एसे खणा हो गया मित्टी मित्टी जीना जात कि मित्टी में ही प्राण है
00:34मिट्टी की ही जो जीने की इच्छा है वो समझ लीजिए कि
00:41वरिक्ष बनकर खड़ी हो जाती है या जीव बनकर फ्राणी बनकर खड़ी हो जाती है
00:48जब तक ऐसे देख रही है तो हम क्या देते हैं कि मिट्टी है पर ऐसे देख रहे हैं तो हम कहेंगे कि
00:56चेतन है और हैं लेकिन दोनों एक ही एक के बिना दूसरा संभव नहीं है जब एक के बिना दूसरा संभव नहीं हो तो दोनों को एक वाना जाना चाहिए
01:04अगर आपको हो वी तो क्या मरने के बाद जीगन समाप्त हो जाता है तो उसका एक बड़ा मज़िदार उत्तर दिया जा सकता
01:11यह उतनी पत्तियां के लिए है इधर यह पेड़ गिरा हुआ है
01:24यह पेड़ जो है यह भी जा रहा है
01:33मिट्टी में और इसी मिट्टी से पेड़क फिर से खड़ा हो जा रहा है
01:52तो यह इसको देखे इसकी जड़ उखड़ गई यह ऐसे लेट गया लेकर उसके बाद भी यह इसने
02:00अपनी ऐसे शाखाएं उपर फियक रखी है और यह खड़ा ही हो गया
02:08पूरा गिर जाने के बाद भी पूरा गिर जाने के बाद भी यह ऐसे खड़ा हो गया
02:14अब मिट्टी मिट्टी जीना चाहती है मिट्टी में ही प्राण है हमाज रह ना मिट्टी माने मेटीरियल जो कुछ भी भौतिक है उसी में प्राण वो जीना चाहती है
02:32कुछ इसके भीतर अलग से नहीं आ गया है जो मिट्टी में है वही इसमें है और मिट्टी की ही जो जीने की इच्छा है वो समझ लीजिए कि
02:55नहीं कर दीयों जयते हैं प्रक्रती माने जो दिख रहा है निचर
03:11श्क्रक्रतय अगजू इसको देख रहा है
03:25तो उसको देखने वाला और वो जो दिखाई दे रहा है वो दूनो एक दूसरे से अलग हैं ही नहीं
03:38वो और ये एक हैं और मि्टी के भीतर भी ये जिसको हम छेतन बोलते हैं
03:46और वो जिसको हम जड़ बोलते हैं वो एक दूसरे में समाय हुए है
03:50जब तक हमें ऐसे दिखाई देती है कि यह मिट्टी है तो हम उसको बोल देते हैं कि जड़ है
03:56और जब हमें ऐसे दिखाई देती है कि रिक्षय या जीव है तो हम क्या देते हैं कि चेतन है
04:03जब तक ऐसे देख रही है तो हम क्या देते हैं कि मिट्टी है पर ऐसे देख रहे हैं तो हम कहेंगे कि चेतन है और है लेकिन दोनों एक ही एक के बिना दूसरा संभव नहीं है जब एक के बिना दूसरा संभव नहीं है जब एक के बिना दूसरा संभव नहीं हो तो दोनों को �
04:33वैसे ही the sear and the scene, drishya और drishta भी आविभाज्य है, inseparable है, इनको अलग नहीं करा जा सकता है
04:44ये एक हैं दोलों, तो फिर अहंकार क्या है, फिर अहंकार क्या है, फिर अहंकार क्या है
05:03फिर अहंकार जायो भी मिट्टी है नहीं और अहंकार और मिट्टी बिलकुल अलग अलग चीजे नहीं है
05:33मिट्टी में से ही वो चेतन निकल रहा है, तो जिसको हम अहंकार क्याते हैं, मेरा होना
05:42वो यह ही है
05:44यह भ्रांती है, जो separation रहता है
05:53जड़ और चेतन का conscious और
05:58अनकॉंशियस का
06:02सेंटियंट और इंसेंटियंट का
06:06जो हम भेड बनाते हैं न, इन दोनों
06:12जो एकत तो है, वो समझ रहे हैं, अगर वो समझ गए तो जिन्दगी बदल जाती है
06:20क्योंकि यही मूल अविद्या है, यही सबसे बड़ा ज्यान है, यह सोचना है
06:27कि मैं और मिट्टी अलग-अलग हैं, कि मैं और मिट्टी अलग-अलग हैं
06:33असल में मैं कहना बुरा नहीं है, अहंकार में अपने आप में कोई दिक्कत नहीं है
06:39यह जो सेपरेटेड इगो है, ना दो सेपरेटेड सेल्फ, जो बोलता है मैं और मिट्टी अलग-अलग हैं, वो होता है दोश, वो होता है दुख, हंकार ठीक है, मैं हूँ पर मैं मिट्टी से अलग नहीं हूँ, अब ठीक है, अब कोई समस्या नहीं, अगर ऐसा हंकार है, जो
07:09मैं कहता था कि पहले अलग है अब मैं कहता हूं अलग नहीं है तो ज्ञान माने कुछ जो मैं सोचा करता था उसको मैंने भटा दिया
07:20अंकार और मिटटी का देखिए दो तरह से रिष्टा निकल रहा है आईये
07:29मा और बैटे का भी निकल रहा है। मा और बैटे का भी रिष्टा एक शरीर और चेतना साथ-साथ चलते हैं।
07:48शरीर और चेतना साथ साथ चलते हैं
07:54इक अर्थ में शरीर चेतना की मा ऩहा है
07:58शरीर बन शुरू करता है।
08:00फिर हम कहते हैं कि वो चैतन ने हुआ
08:13या तो एक यह रिष्ता हो गया मिट्टी और रहनकार के बीच में
08:16कि शरीर को माँ है। और दूसरा रिष्टा होता है वह होता है इस अप्रmacा, सधरनवाला प्रेमी людям् घयन संसारी प्रेमी उता है।
08:40रिष्टा होता है, कि मुझे इसको भोग लेना है, जैसे कि बच्चा जब पैदा हो रहा है, तो शरीर उसकी माँ है, तो अहंकार की माँ है शरीर, पहले शरीर आता है, फिर अहंकार आता है, लेकिन यही बच्चा जब खुड़ा बड़ा हो जाता है, तो इसका अहंकार कहता ह
09:10जो अभी बेटा बनके निकला था शरीर का, यही हंकार अब कहता है कि मुझे अब दूसरे शरीरों का भोगता प्रेमी होना है, तो शुरुआत होती है कि मैं बच्चा हूं प्रक्रति का, प्रक्रति मन अभी मैं जो शरीर है, जड़ पदार था
09:40तो शुरुआत इससे होती है कि मैं बच्चा हूं प्रक्रति का, और तो शरीर आया, मान लीजे, गर्भ में शरीर आया, तो अब शरीर मा है और अहंकार उसका बच्चा है, शरीर मा है, अहंकार उसका बच्चा है,
10:10शरीर पहले आया अहंकार से हम कहते हैं बाद में आया अब यही जब थोड़ा बड़ा हो जाएगा 20 साल बाद
10:18तो यही अहंकार कहेगा कि मुझे शरीर को भोगना है तो वही शरीर जो पहले मा था
10:26मा था वही शरीर जो पहले हंकार के लिए मा था वही शरीर अभ अहंकार के लिए क्या बन जाएगा प्रेमी या प्रेमिका एसी प्रेमिका जिसको भोगना चाहता है तो यह दो तरह के रिष्टे होते हैं और यह दोनों ही जो रिष्टे होते हैं यह अज्ञान के रिष्टे है
10:56कि यहांना आहनकार कहता है, में शरीर रूपी मा कधर मृद्वी हुं। वह गलत समझ रहे ह्॥। तुम बेटे नहीं हो।
11:07दुएलिटी में कोई किसी का बेटा बेटा नहीं होता है, बेटा होने का तो मतलब होता है कि एक पहले आया एक बाद में, बाप पहले आया बेटा बाद में आया, बेटा बाद में आया, डुएलिटी के दोनों छोर एक साथ हाते हैं, तो कोई बेटा अगरा नहीं हो सकता हो,
11:37तो जो पहली भांते होती है वो यह है कि शरीर अहंकार की मा है यह भी गलत ही है रिष्टा और जो दूसरा अज्ञान होता है वो यह होता है कि अहंकार शरीर का भोगता है
11:55तो मा से जो रिष्टा है वो भी गलत है और पेमिका से जो उसका रिष्टा है वो भी गलत है क्योंकि दोनों में ही एक सेपरेशन प्रिजियूम किया जा रहा है तो उनों में ही माना जा रहा है कि हैं तो हम अलग-अलग हैं तो हम अलग-अलग मा पहले आई फिर मैं आया तो ह
12:25मिलेग इस फूमिटा मिलेगी, मैं वे इसको भूगूंगा तो मुझे कोुछा कुछ पूनता मिलेघी।
12:31यह दोनों भी ग़लत हमान।
12:34तो रिश्टा है, रिश्टा जो कि मिती और रोफह देख से और शंडाले है,
12:39कि शरीर और अहंकार एक हैं, अलग-अलग ही नहीं, और शरीर और अहंकार को एक देखने कार्थ होता है, कि अब मैं अहंकार वन के नहीं देख रहा हूँ, मैं शरीर और अहंकार दोनों को देख रहा हूँ, तो मैं अहंकार का भी दृष्टा हो गया, आम तोर पे दृष्टा
13:09तो वो हम हैं वो हमारा सुभाव है सिर्फ उसको नहीं देखना उसको देखने वाले को भी साथ में उसको देख लेना और अगर हम सुभाव में नहीं जिएंगे तो भारी समस्य आती है जिसका नहीं दुख है
13:37क्या समस्य आती है?
13:41समस्य यह आती है कि हम इन दोनों को अलग समझते रहेंगे लगातार अलग समझते रहेंगे
13:46हमको लगेगा जिए शरीर से भिन कोई चीज है अंकार
13:50और उसी अग्यान का जबरदस्त रूप इस लोकधर्मिक भ्रांती में देखने को मिलता है
14:00कि शरीर से हट कर कोई जीवात्मा जैसी चीज है यह फिलोसोफिकल एरर है
14:07यह न न समझने का परिणाम है
14:12कि शरीर अलग है जीवात्मा अलग है फिर बाबा जी लोग बाते करते हैं
14:16इस बाते हैं अन उसमें अची शक्तिया आ जाते हैं जो शरीर से हटकर हैEE
14:31और ये सारी बातें एक philosophical misunderstanding का या misinterpretation का या ignorance का ज्यान का नतीज़ा हैं
14:39आप समझी नहीं रहे हो आपको जड़ और चेतन का संबंध ही नहीं समझ पाए
14:43आप समझी नहीं पाए कि चेतन और जड़ जहां भी होंगे इकठे एक साथ होंगे
14:47और अगर दोनों एक साथ होंगे तो द्रिश और द्रिश्टा भी एक है और ये समझते ही आप इस भ्रह्म से आजाद हो जाते हो कि ये जो द्रिश्यमान प्रक्रति है इसको भोग कर मुझे किसी भी तरह की संतुष्टी मिल सकती है
15:03क्योंकि वो जो है वो आप ही हो वो और आप एक हो वो वो शरीर और शरीर के भीतर से मैं बोलने वाला दो अलग अलग नहीं है तो इसलिए जब शरीर जलता है तो शरीर जो मैं वगएरा बोल रहा होता है वो चीज भी समापतो जाती है
15:24झात न शरीर के भीतर कोई खास बचा हुआ है मैं बोलने वाला और नहीं शरीर के जल जाने के बाद कोई खास बचता है
15:38यहां, वो जो राख है न जो शरीर जलने के बाद बशती है, राख, वो राख हभी भी जीवित है, अगर आप को हो वी तो क्या मरने के बाद जीवन समाप्त हो जाता है, तो उसका एक बड़ा मज़ेदार उत्तर दिया जा सकता है, जो कि बिलकुल सही होगा, गहरा उत्तर हो�
16:08लेकिन इस्ता मतरब यह नहीं है कि निकल करके इधर उदर घूम हो गए
16:13देखिए क्लाइमेट चेंज और जीवात्मा का सिध्धान्त ये दोनों बिलकुल एक बात है
16:20क्लाइमेट चेंज भी यही कहता है कि मैं दुनिया को भोग लूँगा तो तृप्ति मिल जाएगी माने मैं दुनिया से अलग हूँ
16:26क्लाइमेट चेंज भी एक तरह से जीवात्मा के सिध्धान्त का ही सबसे बुरा नतीजा है
16:31मैं अलग हूँ ना दुनिया से तो मैं भोगूँगा मैं भोगूँगा मैं चेतन हूँ दुनिया जड़ है मैं दुनिया को भोगूँगा और यही बात जीवात्मा की है कि जीव अलग है और जीव के भीतर एक अलग से कोई आत्मा वगरे बैठी हुई है
16:47तो दुनिया की सारी जो बुराइया हैं, दुनिया में सारे जो दुख हैं, वो इस एक मिस इंटर्पेटिशन से आते हैं, कि बॉड़ी और इगो अलग-अलग चीज है, कि बॉड़ी में सोल जैसा कुछ होता है, यही मैनकाइंड की सफरिंग है, यही क्लाइमेट चेंज है, �
17:17सोल नाम की चीज को हटाते, जो आपको प्रक्रति समझा दे की प्रक्रति क्या चीज है, द्रिश्य और द्रिश्टा को एक साथ प्रक्रति जानना है, द्रिश्य नहीं है प्रक्रति, द्रिश्य और द्रिश्टा मिलकर जो हैं उसे प्रक्रति बोलते हैं, यह बात अगर लो�
17:47मुप्ते, छिलिवों गरा
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