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00:00:00एक के बाद एक बाजार आपके सामने माल खड़ा करता जाता है
00:00:05आपका दिल तूटता है तो आपको समझ पाएं
00:00:09उससे पहले ही आपके सामने चार पांच और लुभावनी चीज़ें आ जाती हैं
00:00:12कोई बात में यहां सफलता मिली तो अब यह कर लो
00:00:14आजकल यूथ यूवा जो हैं एंजाइटी, डिप्रेशन, ओवर्थिंकिंग से जूज रहे हैं
00:00:20बाहर से देखने पर ऐसा लगता है ठीक चल रहा है पर भीतर भीतर बेशैनी खलती रहती और गिल्ट होता है
00:00:25वीकेंड पर कहीं चले जाओ, मॉल में चले जाओ, खापी लो, घूम फिर लो, कुछ खरीद लो
00:00:30जितने बड़े और अकर्शक ये बाजार आज हैं उतने मनुष्य के इतिहास में कभी नहीं रहे
00:00:37इतना डिप्रेशन है, एंग्जाइटी है, जबकि आज आम तोर पे लोगों के पास इतना पैसा है, इतना पुरानी पीडियों के पास तो नहीं होता था
00:00:44जितनी आपके पास आज टेक्नोलजी है, इतनी पुरानी पीडियों के पास तो नहीं थी
00:00:47लेकिन आज जितनी mental illness है, वो भी परानी फिडियों में नहीं थी, कारण कुछ दिखाई देना शुरू हो रहा है, ये कैसे हो गया, समय सारा चाहां चला गया, उर्जा सारी कहां चली गया
00:00:58प्रणाम अचार जी, मेरा नाम रजनी गुपता है, मैं राइपूर से आई हूं, 36 गड़ से, मेरा प्रशना है कि आजकल यूथ यूवा जो है, anxiety, depression, overthinking से जूज रहे हैं, मतलब बहार से देखने पर ऐसा लगता है, ठीक चल रहा है, पर भीतर ही भीतर बिशैनी रहती है, जै
00:01:28होता है, तो क्या ये बेचैनी मतलब एक प्रकार से हमारे मन के ही भीतर का जूट है या फिर कुछ और?
00:01:40जूट क्यों है, जब आप उसे अनुभाव कर रहे हैं, अनुभाव में आ रहा है, तो आपके लिए तो जूट नहीं है, ना?
00:01:47आप उसको अनुभाव कर रहे हैं, उससे आपको तकलीफ हो रही है, बेचैनी के क्षण में धड़कने बढ़ जाती हैं, पसीना आ जाता है, सरदर्द हो सकता है, तो ये सब बाते हम कैसे गया दें कि जूट है, बैठी, अच्छा प्रश्ण, देखिए,
00:02:05जवानी, युव अवस्था, बड़ा एक खास और जबरदस्त समय होती है, आप दुनिया को समझने बूझने लगे हैं, और आपके पास मानसिक ताकत आ गई है, और शारिरिक प्रिपक्वता आ गई है,
00:02:28तो अब आप बच्चे तो हो नहीं, अचानक दिखाई पड़ता है कि ये जो पूरी दुनिया है, ये आपकी पहुँच में है, एक जीवन आपके सामने खड़ा हुआ है, जिसको बनाने की, सवारने की, सार्थक करने की जिम्मेदारी आपकी है,
00:02:53बहुत बड़ा एक आकाश खुल जाता है, नहीं, दूसरों पर चुकि आश्रित नहीं है, तो दूसरों की बात मानने का, या दूसरों के अनुशासन में रहने का, न दाइत तो बच्चता है, न डर बच्चता है,
00:03:18उतनी उर्जा, जितनी न बच्चे में हो सकती है, न प्रोड़ में हो सकती है, न व्रद्ध में हो सकती है, अचानक आपको उपलब्ध हो जाती है, एक युवा होने के नाते,
00:03:35अब उर्जा का, करें क्या, वो उर्जा यूही नहीं होती, मेर अर्थक नहीं होती है वो उर्जा, वो उर्जा किसलिए होती है, चर्चा करते करते हैं, हम शायद पहुंचें वहां तक,
00:03:58लेकिन ये निश्चित है कि आज के युवा को जितने विकल्प उपलब्ध हो गए हैं, अपनी उर्जा को पचास तरफ, सौ तरफ, बिखेर देने के, विभाजित कर देने के,
00:04:19उतने विकल्प पहले कभी नहीं थे, और वो कोई साधारन विकल्प नहीं है, जो आपको आज उपलब्ध है, वो बड़े आकरशक हैं, वो आपको खीच के रखते हैं, वो बनाए ही इस तरह से गए हैं कि वह अचित को मोह लें, बांध लें,
00:04:41तो अब आप जवान हैं, और आपके भीतर कुछ बैठा है, जो कह रहा है, यही तो जीवन का मेरे स्वर्ण काल है, इसी में कुछ करके दिखाना है, पर क्या करके दिखाना यह इस पश्ट नहीं है, पर यह निश्चित है कि आप कोई बहाना नहीं चलेगा,
00:05:03क्योंकि पढ़िक गए हो, मांसिक दृष्टे से परिपक्क हो, बुद्धी भी खूब है, और शारीरिक शमता भी पूरी है, आपको मालूम है, बहुत कम लोग हैं किसी भी ख्शेत्र में, जिन्होंने अपने ख्शेत्र का उत्कृष्टितम काम,
00:05:2240-45 की उम्र के बाद किया हो, ये तो हम सब जानते ही हैं कि 30-35 की उम्र के बाद प्रतिवर्ष, आपकी मासिक पेशियों की ख्शमता, लगभग एक प्रतिशत कम होने लगती है, एक प्रतिशत प्रतिवर्ष,
00:05:41आपकी जो बाद धिक शमता होती है न, वो भी कम होने लग जाती है, तो यौवन वो समय होता है, जब आप न सिर्फ शारीरिक बलके मानसिक रूप से भी अपने शिखर पर होते हो,
00:06:00अगर आप एक साधारण सी सर्च करेंगे, गूगल पर, या या इसे पूछेंगे, कि जितने नोबल लॉरियेट्स हुए हैं, उनको जब नोबल पुरुसकार मिला था, तो उनकी उम्र क्या थी,
00:06:15तो आपको दिखाई देगा कि बहुत कम लोग हैं, पचास पार के, बहुत कम लोग है, और अगर आपको पैतिस चालिस है पैतालिस में नोबल प्राइज मिल रहा है, तो माने आपने जो अपना सबसे उत्कुरुष्ट काम है, वो तीस, पैतिस, चालिस की उम्र में आसपास
00:06:45इसी काल के लिए हुआ हो, यही जो अवद ही है, आपको सौपी गई है, ताकि आप जो सबसे उची चोटी है, उसको छू सकें, लेकिन पता नहीं वो उची चोटी है क्या, भीतर कुछ आगरही रहता है, तलपता रहता है, कुछ कर जाने के लिए, कुछ अलग पाने के लि�
00:07:15कहां है वो हिमाले जिसकी चोटी पुकारती है, उसका कुछ पता नहीं चलता, पता क्या चलता है, यह जो चारो तरफ बाजार सजा दिये गए हैं, इनकी चकाचाउंत पता चलती है, और अभी थोड़ी देर पहले हमने कहा कि, चितने बड़े और आकरशक यह बाजार आज ह
00:07:45खीचते हैं, बलकि इतने ज्यादा विकल्प देते हैं, कि आपको किसी भी तरीके से निराश होने का मौका नहीं मिलता, आपको एक चीज से अगर मोह भंग होता है, जो दुनिया भर के बादार सजाए गए हैं, तार्थिक, सामाजिक, पारिवारिक और दैहिक भी,
00:08:13उनमें अगर आपको किसी एक विशह से निराशा मिलती भी है, मोह भंग होता भी है, तो इतनी विविधता है माल की, कि एक खटा तो दस खड़े हो जाते हैं, कि कोई बात नहीं, पिछली बार बात नहीं बनी, अब हमें आजमाओ, इस बार बात बन जाएगी,
00:08:31और जो इवा वरतत हैं, उसे कुछ चाहिए, कुछ बहुत बेताबी से चाहिए, पता बस नहीं ही क्या चाहिए, पता नहीं है क्या चाहिए,
00:08:48तो जब उसके सामने सस्ते और लुभावने विकल परोज दिये जाते हैं तो वो उनको आजमाना शुरू कर देता है उस सोचता है शायद यही चाहिए
00:08:56शायद यही चाहिए लेकिन वो उनको जितना आजमाएगा उतना भीतर से और खुखला होता जाएगा
00:09:06क्योंकि उनको आजमाने पर एक के बाद एक बस हार मिलनी है और सीधी हार मिल जाए न तो भीतर उतनी चोट महीं लगती उतना दिल नहीं तूटता
00:09:21जितना कि जब छुपी हुई हार मिलती है जब जीत में हार मिलती है बादार इसलिए तो नहीं सजाएगा है न कि आप माल खरीद ही न सको कि वहाँ जो कुछ है वो आपकी पहुँच से बाहर कर रहे नहीं बादार तो इसलिए है कि आप जाओ अपना श्रम अपने संसाधन �
00:09:51जीत हो गई फलानी चीज का मैंने प्रयास करा और वो मुझे हासिल हो गई जीत हो गई और ये सबसे बुरी हार होती है क्योंकि इसने आपको जीत का आश्वासन दे दिया होता है आप कुछ घर लेकर के आते हो कोई डिगरी हो सकती है वो कोई नया फोन हो सकता है वो गाड�
00:10:21हो सकती है पैसा हो सकता है वही पुरानी चीजें पर बहुत सारे नए नए लुभावने और विविध प्रकार के रूपरंगों में है ना तो ये सब आप ला सकते हो जीत सकते हो इनको और थोड़ी देर के लिए ऐसा लगता है जैसे दुनिया एकदम इंद्रधनुशी हो ग
00:10:51आपको समझ में आ रहे हैं आपने खाई वहां बेचैन क्यों है क्यों इतना डिप्रेशन है एंग्जाइटी है जबकि आज आम तोर पे लोगों के पास इतना पैसा है इतना पुरानी पीडियों के पास तो नहीं होता था
00:11:04जितनी आपके पास आज टेक्नॉलजी है इतनी पुरानी पीडियों के पास तो नहीं थी लेकिन आज जितनी mental illness है वो भी पुरानी पीडियों में नहीं थी
00:11:14कारण कुछ दिखाई देना शुरू हो रहा है एक के बाद एक बाजार आपके सामने माल खड़ा करता जाता है ये चीज़ ले लो अब ये चीज़ ले लो आपका दिल तूटता है तो आप समझ पाएं कि पूरी प्रक्रिया क्या थी उससे पहले ही आपके सामने चार पाँ�
00:11:44बहुत अच्छी नौकरी लगी थी वहाँ दो-तीन दिन जॉइन करा तो पता चला कि यहां तो मामला ही गड़बड़ है तो कोई बात नहीं है वीकेंड पर कहीं चले जाओ मौल में चले जाओ खापी लो घूम फिर लो कुछ खरीद लो
00:12:01जहां कहीं से भी असलियत सचाई दिखनी शुरू हो रही हो उसके सामने फिर एक आकरशक परदा डाल दो ठीक वैसे ही जैसे उपनिशद कहते हैं कि सोने के आवरण के पीछे ढखा रहता है सच
00:12:25जैसे ही सच जरा सा भी दिखना शुरू करे कोई और ऐसी चीज़ आपके सामने परोज दी जाती है जिससे कि आपका नशा बरकरार रहे
00:12:43आज समझ रहे हैं ना एक रिष्टा टूटा कोई बात नहीं कोई एप है उस पर चले जाओ
00:12:48प्रियास करो पांस साथ दस बार नया रिष्टा बन जाएगा
00:12:53एक कोर्स बताया गया कि इसको कर लो तो बिल्कुल सोने की फसल काटोगे
00:13:05पता चला ऐसा हो तो कुछ होता नहीं है कोई बात नहीं कोई बात नहीं यह दूसरा एक शॉट टर्म कोर्स है इसको कर लो
00:13:11ये कोर्स कर लो के तो बहुत अच्छे करियर प्रॉस्पेक्ट्स हैं
00:13:16ये कर लो
00:13:17और क्यों कर लो
00:13:19आपको कोई आ करके
00:13:23अपनी आपईती सुना देगा या टिस्टिमूनियल देगा
00:13:26या आपको कोई वीडियो फॉरवर्ड कर दिया जाएगा
00:13:28प्रचार होगा विज्यापन होगा आपको लेगा यही रास्ता है मेरे लिए
00:13:31यही तो मुझे करना था और यह अगर मिल गया
00:13:34तो बात बन जाएगी
00:13:36आप गए आपने एक तरह के कपड़े खरीदे
00:13:41और वो कपड़े जैसे दुकान में लगते हैं
00:13:45घर लाकर पहनने के बाद पतानी क्यों कभी वैसे नहीं लगते
00:13:48किस-किस के साथ हुआ है
00:13:49कोई बात नहीं कोई बात नहीं
00:13:54अभी बहुत सारे और कपड़े मौझूद हैं दुकानों में
00:13:58जाके उनको आजमाओ ना
00:14:01पिछली बार जो तुम्हें धोखा मिला
00:14:05इसमें गलती दुकान की नहीं है वैवस्था की नहीं है
00:14:09इसमें गलती तुम्हारी आँख की है तुमने ठीक से चुना नहीं
00:14:13और कोई बात नहीं गलती हो गई तो चलिए दुबारा चलते हैं
00:14:20शॉपिंग भी करेंगे पॉपकॉर्ण भी खाएंगे और कुछ और ले करके आएंगे
00:14:26और ये सब करते करते जवानी कब बीच जाती है आपको पता नहीं चलता
00:14:42न पैसा अनंत होता है न समय अनंत होता है न संसाधन अनंत होते हैं
00:14:47ये सब जल्दी ही खर्च हो जाते हैं बीच जाते हैं
00:14:53और आप हक्के बक्के से देख रहे हो अपने चारों और कि ये हुआ क्या मेरे साथ
00:14:59ये दुनिया है जिसने मुझे लुभाया था बड़ा भरोसा दिलाया था कि
00:15:05आओ आओ आओ मैं बिल्कुल बाहें खोल कर तुम्हारे सौगत के लिए ततपर हूँ
00:15:11तुम आओ तो मेरे पास तुम्हें इतने तरह के सुख दूँगी मैं
00:15:16और हम भी बिल्कुल उत्तेजित हो गए थे
00:15:20उन्होंने बुलाया हम चल भी पड़े थे
00:15:25कभी इस दिशा कभी उस दिशा
00:15:28और फिर एक दिन आप आईने के सामने खड़े होते हैं देखते हैं
00:15:33ये क्या सफेद सफेद क्या है
00:15:35क्या
00:15:37सफेद बार मैं बुड़ी हो रही हूँ
00:15:41ये कैसे हो गया
00:15:45समय सारा चहां चला गया उर्जा सारी कहां चली गई
00:15:49जो लोग 40 पार के हाँ बैठे हैं अगर वो याद करना चाहेंगे
00:15:55कि उन्होंने अपने 20s एक पूरा दशक कहां गुजा रहा था उनको ठीक से याद नहीं आएगा
00:16:09जैसे बहुत तेजी से पानी बह गया हो
00:16:11कहां चला गया पता ही नहीं पर कहीं चला नहीं गया
00:16:19वो किसी ने आप से लूट लिया
00:16:23सिधानती है कि कुछ अगर आप खो रहे हैं तो कोई है जो उसको इकठा भी कर रहा है
00:16:33एक चीज जो आपके पास थी आपके पास नहीं है तो किसी और के पास पहुँच गई है
00:16:38यौवन अगर आपके जीवन का स्वर्ण काल है
00:16:44और वो स्वर्ण काल आपने अगर गवाया है तो किसी ने उसे अपनी जोली में भर भी लिया है और चुप चाप मुस्कुराते हुए
00:16:53वो निकल लिया है कि हो गया यही तो चाहिए था
00:16:57जवानी क्या नहीं कर सकती
00:17:03दुनिया की बड़ी से बड़ी इक्रांतियां जवानों ने करी हैं
00:17:08पर जवानी को पता ही नहीं चलता है कि उसका समय कब
00:17:16रील्स देखते हुए और स्क्रॉलिंग करते हुए बीट गया
00:17:20अनन्त स्क्रॉलिंग
00:17:25जब तक आँ उठा तूटके ना गिर जाए
00:17:35पता ही नहीं चलता कहां चला गया
00:17:36कहीं नहीं चला गया
00:17:38किसी के मुनाफे में चला गया
00:17:41किसी की जेब में चला गया
00:17:43और जिनके पास चला गया ऐसा नहीं कि उन्हें भी कुछ मिल रहा है
00:17:49बरबाद उनकी जिन्दगी भी है
00:17:52पर उनकी होगी तो होगी
00:17:55उनकी मुर्खता की खातिर आप अपनी जिन्दगी क्यों बरबाद करें
00:17:59क्यों आप इस हड़बड़ी में रहते हैं कि जल्दी से
00:18:07जो आसपास विकल्ब दिखाई ही दे रहे हैं एक ये रखा एक ये रखा एक ये रखा ये रखा ये तो सामने के ही है
00:18:13इन में से ही कोई उठा लो
00:18:15और जब वहाँ पर चोट पड़े धोखा मिले तो चलो ये नहीं तो ये वाला ले लो ये नहीं तो ये वाला ले लो
00:18:23इंडस्ट्रियल रिवलूशन हो चुका है भाई और दिविक करांति के बाद अब तो इलेक्ट्रोनिक करांति भी हो चुकी है
00:18:34आपको ऐसे ऐसे विकल्ब दिये जाएंगे जो आपने सोचे भी नहीं मांगना तो दूर की बात है
00:18:40आप मांगने नहीं गए थे आपने सोचा भी नहीं है पर आपको परोसा जाएगा
00:18:45कि देखो अब ये आठ नए तरह के बर्गर है अठारा नए तरीके के फीचर्स है फोन में
00:18:53खलाने माल में इतने तरह की वराइटी आ गई है अरे कहां तुम इधर उधर बस भारत में ही घूम रहे हो
00:19:03ये देखो ये अठारा प्रकार की नई exotic vacation destinations है क्या यार तुम जवान आदमी हो और अभी तक तुम इहां घूमने नहीं गए क्या कर रहे हो
00:19:17और अगर घूमने जाना है तो उसके लिए हमीं लोग तुम्हें लोन दे देंगे
00:19:25आप घूमके आईए ये देखिए ये बहुत बढ़िया जगह है इसके आपको तस्वीर दिखाई जा रही है दवान आदमी अभी नहीं जाओगे तो कब जाओगे वही जब दाद गिर जाएंगे
00:19:36अभी जाओ यहां जाओ
00:19:38वहां पर बिलकुल स्वर्ग लोग उतरा हुआ होगा पोस्टर पे और कुछ सुन्दरियां आप सराएं भी अब बिलकुल तुरंट राजी हो जाएंगे हां मुझे जाना है
00:19:54पैसे नहीं है कोई दिक्कत नहीं
00:19:56सिर्फ 15 प्रतिशत की दर पर हम दे रहे हैं न
00:20:01हम आपको यह डिस्टिनिशन भी दे रहे हैं जाएंगे और हम उसको फाइनेंस भी कर रहे हैं जाएंगे
00:20:11इतना कुछ चारों और बिखरा रहता है कि
00:20:15आप बिलकुल आतर हो जाते हो, लालाहित हो जाते हो यह बाजार का काम और इसके साथ फिर समाज है और शरीर है
00:20:28समाज में तो शुरुआत अपनी परिवार से होती है कि जल्दी से कोई चुनाव करो न जल्दी से कोई रास्ता कोई ढर्रा पकड़ो न
00:20:37बाजार दर्वाजे पर खड़े हुआ है
00:20:40पूरा ट्रक ले करके
00:20:42ये चीजे हैं इसमें से बताओ क्या क्या चाहिए
00:20:44आप घर के अंदर हो
00:20:47वो ट्रक आपके दर्वाजे पर खड़ा है
00:20:48और जो घर के अंदर लोग हैं
00:20:50वो भी आपको धक्का दे रहे हैं
00:20:53क्या रहे देखो इधर का बंटू और उधर की पिंकी
00:20:57उन्होंने तो माल चुन लिया और वो जाकर के सेटल हो गए
00:21:00तुम क्या कर रहे हैं तुम भी जल्दी से कुछ उठाओ
00:21:02और बाजार और समाज के बाद
00:21:08सबसे बड़ा दुश्मन तो अपने सबसे पास अपना शरीर ही है
00:21:12वो भी चिल्ला रहा है कि हाँ मुझे सुख चाहिए
00:21:16सुख चाहिए जवान है तो देह का सुख चाहिए
00:21:19वो भी चिल्ला रहा है
00:21:21तो आप जल्दी से जा करके यही जो सस्ते लेकिन विविध विकलप अपने चारों और देखते हो इसमें से कुछ उठा लेते हो
00:21:31चोट लगती है तो फिर दूसरा उठा लेते हो तीसरा उठा लेते हो करते जाते हो
00:21:3520-25 साल गवाना कौन सी बड़ी मुश्किल बात होती है
00:21:39गुड़े हो जाते हो
00:21:41ये है कुल मिलाकर जवानी की कहानी
00:21:47और जितना तुम ये सब करते जाते हो
00:21:51उतना ही भीतर जो बैठा हुआ है
00:21:53जो छटपटा रहा है कुछ और पाने के लिए
00:21:57वो बिचैन होता जाता है
00:22:05पड़ता है
00:22:06वो भीतर से बस यही चिला रहा है
00:22:11ये नहीं ये नहीं ये भी नहीं ये भी नहीं ये भी नहीं तुम उसे लाला के
00:22:15नए नए तरीके के रंगीन माल दिखा रहे हो
00:22:17अब ये ले लो अब ये ले लो अब ये ले लो
00:22:19सतही तोर पर तुम खुश भी होते जा रहे हो
00:22:23लेकिन कोई कोई है भीतर
00:22:30आप उसे कितनी भी घूस दिखा दो
00:22:35वो इमान नहीं छोड़ता
00:22:37वो कहता है नहीं यह नहीं चाहिए था
00:22:40यह ले लो यह ले लो उसे ललचाते हो लुभाते हो
00:22:43वो नहीं मानता वो कहता है कि
00:22:49सुख मनाना है, तुम कर लो, हम तो नहीं मानेंगे.
00:22:56मेरे ख्याल, धुमिल जी का वक्तव यह है, ठीक ठीक पूरा शायद ना उध्रत कर पाऊं, पर कुछ इस तरह है कि
00:23:04जब-जब महफिलों में होता हूँ, बाजारों में होता हूँ, रह रह कर चहकता हूँ,
00:23:13यह जवानों को अपनी सी बात लग रही है, कितने जवान हैं यहाँ पर?
00:23:25मैं तो दोनों ही हाथ खड़े कर देता हूँ.
00:23:34जब-जब महफिलों में होता हूँ, बाजारों में होता हूँ, रह रह कर चहकता हूँ, जैसे आप चहकते हो,
00:23:40आपने देखा है कभी आप मॉल औगरा जाते हो, आपको कुछ नभी खरीदना हो, तो भी मूड अच्छा हो जाता है,
00:23:48इतनी सारी चिज्जू दिखाई दे रही होती ही न, बस, शीशे की दिवार है, उससे आप देखो ये चिज्जू दिख गई है, देखने में ही वड़ा अच्छा लग जाता हूँ, एस ही भी है,
00:23:57बस देखने में ही मन अच्छा हो गया, दर्शन हो गए, दर्शन हो गए, लेकिन वापस आकर अपने कमरे के एकांत में जूते से निकाले, पाउंसा महकता हूँ,
00:24:14जब-जब महफिलों में होता हूँ, बाजारों में होता हूँ, फूप चहकता हूँ, लेकिन वापस आकर अपने कमरे के एकांत में जूते से निकाले गए, पाउंसा महकता हूँ, ये है कहानी, चहको, चहको, चहको, पर भीतर कोई है जो चहकने से इंकार कर देगा, वो नह
00:24:44मेरे पास इसका जवाब नहीं है,
00:24:47तो आप कहोगे, जब तुमारे पास जवाब नहीं है,
00:24:49तो मुझे ये सब जो मिल रहा है, मुझे यही भोगने दो,
00:24:51ना, बुग एका नहीं, इससे बात नहीं बन रही है, कुछ और,
00:24:56कुछ और,
00:24:58यही जीवन का जवानी का उद्देश है
00:25:06उसी को पाना है
00:25:09और वो असंभव नहीं है
00:25:14और वो ऐसा भी नहीं है कि बहुत बहुत मुश्किल है
00:25:18बहुतों ने पाया भी है
00:25:21और आपका भी जन्म बस उसी को पाने के लिए हुआ है
00:25:25और उसको नहीं पाओगे तो अंजाम यही होगा
00:25:31अवसाद, तनाव और अपनी आखों के सामने बरबाद जाता एक जीवन
00:25:38बरबादी की कोई यही परिभाशा थोड़ी होती है
00:25:46वो पुरानी बासी परिभाशा थी
00:25:47कि बरबादी का मतलब है कि खाने को पैसे नहीं है
00:25:50और पाओ में भटी चपल है, दुनिया आर्थिक रूप से अब जितनी उन्नत है
00:25:59भारत भी शामिल है उसमें, उतना कभी नहीं थी
00:26:04मैं हर चार-पाँच साल में भोपाल आता हूँ
00:26:10और चीजें बदलती हुई पाता हूँ
00:26:14सबसे पहले मैंने 2004 में वक्त बुजा रहा था है, चार-पाँच महीने
00:26:20और उसके बाद से कुछ-कुछ सालों में आता रहता हूँ
00:26:22हर बार, तरक्की हो रही है, तरक्की हो रही है, सब हो रहा है
00:26:26तो बरबादी की परिभाशा अब ये नहीं है, कि पैसे ही नहीं है
00:26:32पैसे अब सबको मिल जाते हैं, जितनी आपकी खामना हो, उतने कभी नहीं मिलते
00:26:37पर है, कितने मुबाइल फोन है भारत में पता है न, कितने हैं, पता गरिएगा
00:26:52तो अब ऐसी इस्थिति तो बिल्कुल भी नहीं है, कि लोगों के पास
00:26:55खाने पीने को या पहनने को नहीं है, या सर छुपाने को नहीं है, है वो, पर अब वो सब कम होता जा रहा है
00:27:03और आगे और भी कम हो सकता है
00:27:05अभी बरबादी की परिभाशा दूसरी है, बरबादी की परिभाशा ये है
00:27:10कि जन्म ही अकारत चला गया
00:27:14एक के बाद एक चीजें आजमाते रहे
00:27:22रिश्टे आजमाते रहे
00:27:24अनुभव आजमाते रहे
00:27:25और जब उनमें चोट पड़ी
00:27:31तो ये किया कि और चीजें और रिश्टे आजमाएंगे
00:27:38ये है जीवन के
00:27:42और आपका जनम इसले नहीं हुआ है
00:27:45भीतर है कुछ जो कुछ और मांगता है
00:27:49अब इक कुछ और अगर साफ साफ परिभाशित होता है
00:27:52तो हम सब क्या देते हैं मुझे भी कुछ और चाहिए
00:27:56और एक बहुत बड़ी दुगान खुल जाती हैं कुछ और मिलता है
00:27:59इस कुछ और के साथ एक राज जुड़ा हुआ है
00:28:03और वो राज ये है
00:28:05कि इसको पाना नहीं बहुत मुश्किल है
00:28:10ये चीज लगती बहुत दूर की है पर इसको पाना नहीं बहुत मुश्किल है
00:28:17बशर्ते जो कुछ आपको लुभाने के लिए बाजार, समाज और शरीर ने तयार कर रखा है
00:28:26आप उसके प्रति थोड़ा विवेक और थोड़ा सैयम रख पाएं तो
00:28:32सैयम की भी ज़रूरत नहीं, विवेक परयापत है
00:28:36विवेक से सैयम अपने आप आ जाता है
00:28:38जो भी कुछ आपको दिया जा रहा है, हडबड़ी में उसको आप सुईकार करने से
00:28:46अगर आप इनकार कर दें, इतना काफी होता है
00:28:54पर जल्दी बहुत होती है, और आप डर जाते हैं
00:28:58क्योंकि ट्रेन छूटी जा रही है और उस ट्रेन पर सभी सवार है
00:29:02मैं अखेले ही तो नहीं रह जाओंगा कहीं पर
00:29:04और विशेशकर भारत में हमारी परवरिश में डर का बड़ा महाल रहता है
00:29:12और डर माने यहीं नहीं होता है कि थपड मार दिया, सजा दे दी
00:29:16जहां कहीं भी आग्याकारिता पर बहुत जोर है
00:29:20वहां महाल डर का ही है
00:29:22जहां कहीं भी अच्छा बच्चा उसको माना जाता है जो आग्याकारी है
00:29:26वहां समझ लो कि डर गहरा है
00:29:30और जब डर बहुत होता है न तो आप सवाल नहीं कर पाते
00:29:37आप नकार नहीं कर पाते
00:29:40आप नहीं कह सकते कि यह सब लोग जो कर रहे होंगे
00:29:44कर रहे होंगे यह कुछ पा रहा होगा
00:29:46यह किसी दिशा जा रहा होगा इनको जाने दो
00:29:48मैं अभी तैयार नहीं हूँ
00:29:50मुझे कुछ और देखना है
00:29:51क्या देखना है पता नहीं
00:29:53पर ये नहीं चाहिए, ये निश्चित है, ये क्या है पाने के लिए एक भीतरी आजादी चाहिए, जो हमें भारत में आम तोर पर हमाई घरों में है, परवरिश में मिलती नहीं है, हमारी संस्कृती भी जैसी है और लोगधर्म जैसा है, उसमें डर पर बहुत जोर है, सर जु
00:30:23जाते हो, तो जैसे पुराने लोगों की जिन्दगी वरबात थी, वैसे ही आपकी भी हो जाती है, जो सब आपको बता रहे हैं कि जल्दी से बेटा अब जो नौकरी मिल रही है ये ले लो, और उसके बाद फिर ये करना, फिर एक अटेम्ट और देना, फिर उसमें ऐसे कर ल
00:30:53ये बहुत अच्छी बात है, लेकिन वो जब कुछ और है, क्या उन्होंने हासिल करा है, और नहीं करा है, तो जीवन तो बरबादी गया न, पैदा आप खाने और सो जाने के लिए नहीं हुए थे, वो काम तो सारे जानुवर भी करते हैं, बंदर भी कोशिश करता है,
00:31:16कि जिधर सबसे ज़्यादा फलदार रसदार पेड़ हों, उधर पहुँच जाओं और कबजा कर लूँ, और जिन्दगी पूरी मौज में बीते, ये काम तो जानुवर भी कर लेते हैं, इनसान का जन्म किसी और उत देशे के लिए होता है, फिर हम आगए इसी कुछ और, क�
00:31:46खोजने की जरूरत है, बस जिन चीजों में तुम खो जाते हैं, उनमें खोना मत, वो चीज मिली ही हुई है, जिसके लिए तुम पैदा हुए हो, तो फिर हमें करना क्या है, तुम्हें करना ये है कि तुम्हें खोने से बचना है, ये तुम्हारा काम है, तुम्हें करना ये
00:32:16तुम्हें करना ये है कि अगर सुननी ही है तो बाजार, समाज, शरीर की सुनने की अपेक्षा, उनकी सुनो जिनके दम पे आज हम अपने आपको इनसान कह पाते हैं
00:32:32वो चंद लोग, मुठी भर लोग, वो अपने आसपास मिलेंगे नहीं क्योंकि वो बिर्गले होते हैं
00:32:40लाखों करोडों में एक होते हैं तो आपको अपने आसपास यहां मोहले में ही या जरूरी नहीं है कि शहर गाओं कजबे में टहलते हुए कहीं पर मिल जाएंगे या अपनी युनिवरस्टी में मिल जाएंगे बिलकुल भी जरूरी नहीं है, संभावना बहुत कम है
00:32:54पर वैसे लोग अपने पीछे अपना हाल छोड़ गए हैं अपनी बात छोड़ गए हैं अपनी सीख छोड़ गए हैं अपनी जीवनी छोड़ गए हैं उसको पढ़ो उसको पढ़ने से होसला आता है कि जोका आ रहा है उसके साथ बह जाना जरूरी नहीं है
00:33:14कि खड़ा रहा जा सकता है
00:33:21अपने पैरों से अपनी जमीन पर डट करके
00:33:26कि कोई आगे मेरे बहुत अपना धन वैभव प्रतिष्था बल दिखा रहा हो
00:33:35तो भी रीड सीधी रखी जा सकती है
00:33:38याचक बनना गिड़गड़ाना किसी कतार में जाकर खड़े हो जाना बिलकुल भी ज़रूरी नहीं है
00:33:47और जैसे जैसे जो कुछ आपकी आँखों के सामने है
00:33:59आप उसका सामना करना शुरू करते हो
00:34:04समझो बात को वो हमारी आँखों के सामने तो होता है
00:34:09पर हम कभी उसका सामना नहीं करते हैं
00:34:11हम उसके आगे घुटने टेक देते हैं
00:34:14जो कुछ आँखों के सामने है न उसका सामना करना सीखो
00:34:17तो वैसे वैसे जो आँखों के पीछे है वो अपने आप प्रकट होने लगता है
00:34:25वही वो कुछ और है जिसके लिए जवानी मिली है आपको
00:34:38फिर उसके बाद नए आविश्कार होते हैं नए असाहिते रचा जाता है
00:34:43कलाएं अपने सुन्दर्तम रूप में निखरती हैं सामने आती हैं
00:34:50अन्याय के शोशन के खिलाफ बड़ी बड़ी क्रांतियां हो जाती हैं तब होता है
00:34:57जिनके मुँ में बर्गर भरा हुआ है वो क्रांतिय के नारे क्या लगाएंगे
00:35:16कैसे लगाएंगे उनको कहा जाए मुठी भीचो और ऐसे बोलो आजादी सत्य मुक्ते तो कहेंगे अरे इसमें वो नया आइफोन है वो कहां रखें पहले
00:35:39हमें बर्गर से और आइफोन से कोई समस्या नहीं है
00:35:48हमें समस्या है उस जीवन से जो सोचता है कि यही सब पाना मेरा उद्देश्य है
00:35:58जीवन को सार्थक्ता देने में फोन काम आ रहा हो तो बहुत अच्छी बात है फोन होना चाहिए
00:36:03पर फोन पा लेना और सोचना कि वाह क्या बढ़िया चीज मिल गई है यह पागलपन है
00:36:15आपके पास एक अच्छी उच्छी सुन्दर मनजिलों पहुँचने के लिए और फिर आप कहें कि जूते चाहिए उस यात्रा के लिए
00:36:25तो बिलकुल हक है आपका कि अच्छे समुचित जूते आप हासिल करें पर आना जाना कहीं है नहीं
00:36:34मियागिद और मस्जिद तक ऐसा ही बस अपने ही इर्द इर्द परिक्रमा करनी है और कह रहे हो कि जूते चाहिए बीस हजार के
00:36:46कान में जूलाने हैं जूते क्या करोगे उन जूतों का तुम्हारे पास कोई वाजब मंजल नहीं है पहुचने के लिए क्या करोगे जूतों का
00:36:56अधारी समझ में है जवानी इसलिए है ताकि दुनिया में जो कुछ भी ठीक नहीं है उसे आप ठीक कर सको
00:37:16और दुनिया माने भीतर की दुनिया और बाहर की दुनिया दोनों जगह
00:37:26और वो काम अगर आपने अपनी युवावस्था में नहीं करा है तो मत सोचिएगा कि जब पैसा
00:37:41बहुत हो जाएगा और सुरक्षे तनभव करूंगा और बुढ़ा हो जाऊंगा तो रिटायर होने के बाद कुछ करके दिखाऊंगा
00:37:48लाठी टेकते हुए प्रांतियां क्या करोगे जब जवानी में ही नहीं करीं
00:37:59बाहर आप कुछ बदलो नबदलो भीतर तो कोई बैठा है न जिसको जवाब देना होता है वो असली चीज है उसी के साथ रहना होता है
00:38:15चेहरा भी उसी को दिखाना पड़ता है क्योंकि वो पूर्णता मांगता है और आपकी जिन्दगी इसी लिए है कि उसे पूर्णता दे पाओ
00:38:28आपने उसको दी नहीं है तो आप अपनी नजरों में ही शर्मिंदा रहोगे आईने को देखोगे और कहोगे
00:38:35मैं इस व्यक्ति का सम्मान नहीं कर सकता आप अपने ही अगर सम्मान नहीं कर सकते तो कैसी है फिर जिन्दगी
00:38:45कुछ आरी बात से मुझपे हैं दुनिया को आज जितने सुधार की जरूरत है सुधार नहीं छोटा शब्द है
00:39:00आमूल्चूल परिवर्तन की जरूरत है बहुत कुछ ऐसा है जिसको जड़ से उखाड़ फेकने की जरूरत है उतनी तो जरूरत इतिहास में कभी भी नहीं रही
00:39:13और विक्सित होते हुए राष्ट्रों की जवानी आज जितनी सोई हुई है उतनी कभी नहीं सोई हुई थी
00:39:24कभी भी नहीं
00:39:27और ये गजब बात है
00:39:29क्योंकि आज आपके पास
00:39:30शिक्षा भी ज्यादा है
00:39:31तकनीकी भी ज्यादा है
00:39:33सूचना ज्यादा है और पैसा भी ज्यादा है
00:39:36थोड़ा पिछली शताब्दी पे
00:39:39गौर करिएगा ठीक है
00:39:40पूर्वार्थ और उत्तरार्थ
00:39:43पिछली शताब्दी का 1950 से पहले का
00:39:46पांच दशक और
00:39:471950 के बाद के पांच दशक
00:39:49आप जब महापुरुशों
00:39:52की बात करते हो तो
00:39:53ज्यादातर नाम
00:39:55आपको कहां से मिलते हैं
00:39:571950 मानि लगभग आजादी
00:39:59से पहले या बाद में
00:40:01ये कैसे हो गया
00:40:03अजादी से पहले
00:40:05तो भुखमरी की हालत थी
00:40:06भुखमरी की हालत थी
00:40:11और जितने भी बड़े नाम है
00:40:15जिनको आज आप इतिहास पुरुश कहते हो
00:40:17वो तो सब आपको
00:40:191950 से पहले के दिखाई दे रहे हैं
00:40:2090 प्रदिशत
00:40:21उसके बाद क्या हुआ
00:40:23हमारे जीन्स पदल गए क्या
00:40:24उसके बाद
00:40:29जवानी बिक गई
00:40:30क्योंकि बाजार में
00:40:36चिज्जू आ गई
00:40:37क्या करना क्या है
00:40:42क्यों टैगोर
00:40:47की तरह लिखें
00:40:49क्यों भगत सिंग की तरह भिड़ें
00:40:52करना क्या है
00:40:53इतनी सारी चीजें आ गई है
00:40:57दुनिया में आप मौज करते हैं
00:40:58करना क्या है
00:40:59विज्ञान के क्षेतर में भी आप देखिएगा
00:41:06तो जो बड़ी खोजे
00:41:10भारतियों ने करी है
00:41:12वो आपको 1950 के बाद की नहीं मिलेंगी
00:41:17और 1900 से 1950 के बीच में आपको विज्ञान के क्षेतर में भी कई बड़े भारतिये नाम मिल जाएंगे
00:41:26जहां नया नया पैसा आने लग जाता है वहाँ बड़ी समस्या हो जाती है
00:41:33अतीत गरीबी का है ना
00:41:39गरीबी नहीं बुखमरी का अतीत है
00:41:42अकाल का अतीत है दुर्भिक्ष चारो तरफ
00:41:47तो नया नया जब पैसा आता है
00:41:50तो भोग वृत्ति विस्फोट ले लेती है
00:41:54कि हमारी कई पीडियों ने
00:41:58जो चीजें नहीं भोगी हैं और वंचित रह गए वो सब हम भोग डालेंगे
00:42:02जैसे बिचारा कोई गाउं का हो उसने कुछ न देखा हो
00:42:14गाउं भी कोई सुदूर पिछड़ा हुआ गाउं
00:42:16उसको अचानक आप ले जाओ किसी बहुत बड़े शहर में
00:42:25यूरोप के अमेरिका के और उसके हाथ में पैसा भी दे दो
00:42:28वो क्या करेगा अब उसको बचाना पड़ेगा उमरना जाए
00:42:35वो इतना कंजमशन करेगा
00:42:39इतना कंजमशन करेगा कि मरने को आ जाएगा
00:42:41ये हमारी हालत है
00:42:43हर तरफ से हमें खीचा जा रहा है
00:42:53देखो तुम ये कर लो तो तुम्हें ये मिल जाएगा
00:42:57ये कर लो ये मिल जाएगा ये कर लो ये मिल जाएगा
00:42:59और जिन चीजों को हमें दिखाया जा रहा है वो चीजें हमारे बाप दादाओं को तो कभी नसीब थी नहीं
00:43:04तो हमें लगता है कि बड़ी अद्भूत चीजें और चुकि उन चीजों का अनुभव हमारे घर परिवार समाज में किसी ने पहले नहीं करा था
00:43:11तो हमें कोई बताने वाला भी नहीं है कि बेटा हम इनका अनुभव कर चुके हैं और इनमें कुछ नहीं रखा है
00:43:17विदेशों में जो इंडियन यूथ है इसको आप जानते हैं किस दिरिश्टी से देखा जाता है
00:43:28कुछ तो जो बिलकुल क्रीमी हो गए वो अलग है
00:43:35पर बाकी जो ये इंडियन मैन पावर इतना बड़ा है करोडों में इसको कैसे देखा जाता है
00:43:48चीप लेबर
00:43:51इनको पैसा देखाओ थोड़ा और जादा देखाओ फिर थोड़ा और जादा देखाओ कुछ भी करने को तयार हो जाएंगे
00:44:05और मेरे लिए अफसोस की बात है कि वो जो सोच रहे हैं जो कह रहे हैं वो शायद बहुत गलत नहीं है
00:44:14तिती ऐसी ही है
00:44:17जब तुम कुछ भी करने को तयार हो जाओगे तो भीतर बेचैनी उठेगी कि नहीं उठेगी
00:44:22इन्सान हो भाई पत्थर नहीं हो जानवर भी नहीं हो
00:44:26गधा होता है
00:44:35उसके उपर आप दुनिया की सबसे उची किताबें रख दो और बोलो कि ढो
00:44:40बीस किलो वो धो देगा
00:44:46कोई फरक नहीं पड़ेगा कहेगा यह मुझे तो क्या मिलना है यह सब हो जाए उसके बाद शाम को
00:44:51थोड़ा सा खाना मिल जाना है वो तो मुझे मिली जाएगा बीस किलो था मैंने धो दिया
00:44:55और लाशे हो लोगों की कटे हुए अंग हो खून बैराओ 20 किलो का ऐसा बोज हो वो उसको भी धो देगा उसे कोई फर्क नहीं पड़ेगा
00:45:15वो क्या बोलेगा कुछ भी ढोदो मुझे मेरा पैसा तो मिली जाता है और गठे के लिए पैसा मने वो तो मिली जाता है पर आप पशु नहीं हो आप और हम
00:45:30अपने काम में सार्थक्ता मांगते हैं
00:45:34हम उपर-उपर से भले न मानते हों पर भीतर कोई बैठा है
00:45:37जो पूछता है कि ये जो दिन भर कर रहे हो ये है क्या
00:45:40और ये ये वो सवाल है जिसके सामने आपको खड़े होना पड़ेगा
00:45:48आपको बहुत सारे उपलब्ध रास्ते अपने लिए बंद करने पड़ेंगे
00:45:56आपको बहुत सारे तोहफे और न्योते ठुकराने पड़ेंगे
00:46:00कलपना बहुत हो गया कि कुछ मिल जाए, कुछ मिल जाए, कुछ मिल जाए, कुछ मिल जाए
00:46:08वो सब कुछ जो बिल्कुल तश्तरी पर सजा कर आपको मिल रहा होगा आपको उसको भी ठुकराना सीखना होगा
00:46:16और जब आप ये सब कर रहे होगे उस वक्त हो सकता है आपका साथ देने वाला कोई ना हो
00:46:27हो सकता है बिलकुल नितांत अकेला पन सुना पन हो क्योंकि एक रेल गाड़ी आई थी और पूरी भीड़ उसमें सवार होकर चली गई आप अकेले हो जिसने कहा नहीं मैं नहीं चड़ूंगा बिलकुल हो सकता है
00:46:40आपको करना पड़ेगा यह सामना करने में दम लगता है इसलिए आपको जवानी में लिए क्योंकि जवानी में
00:46:52कि दम का दो तरह से इस्तेमाल हो सकता है मेरे पास ताकत है उसका दो तरह से इस्तेमाल हो सकता है अब जवान हो आज आपके पास ताकत है बुद्धिबल बाहुबल सब है उसका दो तरह से
00:47:12इतेमाल हो सकता है एक यह कि जिन्होंने पूरी प्रिथवी को यह आज बरबाद कर दिया
00:47:19कि मैं उनका सेवक बन जाओं अपनी शक्ति को उनकी चाकरी में लगाओं बिल्कुल हो सकता है
00:47:25हो सकता है न और आप यह करोगे तो तुरंत आपको लाब भी हो जाएगा वो कुछ चीज़ें आपकी और फेक देंगे लिए
00:47:31और हमारी जवानी बहुत उत्सुक है किसी के सामने जा करके घुटने टेक देने के लिए
00:47:47कि जाएं और वो जो भी कुछ करवा रहा हो जो भी कुछ करवा रहा हो गधे के उपर चाहें वो लाशे डोने को कह रहा हो मैं ढोँगा बस तु मुझे कुछ फेक देना रुपया पैसा सोने के दो-चार टुकड़े जैसे कुट्ते को बोटी फेकी जाती है
00:48:04मुझे मालूम है कड़े शब्द है पर ये कड़े शब्द किसी को तो कहने पड़ेंगे न जो नंगी सच्चा ही है उसकी बात कोई तो करे सवाल बेचैनी पर है मैं कुछ बोल जाओं उससे बेचैनी दूर भी ना हो तो कोई फाइदा तो आपने सवाल पूछा है तो मुझ
00:48:34कि जो कुछ गलत है तो मुझे को समर्पित हो जाओ जो शोशक है तो मुझे की सेवा में लग जाओ ये पहले तरीके का इस्तेमाल है अपनी ताकत अपने दम का और दूसरा इस्तेमाल यह है कि दम मिला है न तो तुझे तोड़ेंगे और तुझे तोड़ने की प्रक्रिया म
00:49:04चार बिलियन साल पुराना जीवन हमारा, उसकी तुलना में हम 60-80 साल जीएं या 30-40 साल जीएं, सब एक बराबर है, सब एक बराबर है।
00:49:18और ये तो बिल्कुल अतिकी, एक्स्ट्रीम बात हो गई कि मरना ही पड़ेगा, आम तो आप में मरना नहीं पड़ता है, बस संघर्ष करना पड़ता है।
00:49:28दम जो आपको मिला है न वो संघर्ष ही करने के लिए मिला है।
00:49:36बाजार का खरीदार बनने के लिए नहीं मिला है।
00:49:56तो दो आपके सामने विकल्प हैं, एक है उपर-उपर का चैन और भीतर की बेचैनी।
00:50:02उपर-उपर का चैन मिल जाता है।
00:50:09किसी विदेशी ब्रैंड की नई टी-शयर्ट खरीद लो उससे भी मिल जाता है उपर-उपर का चैन।
00:50:13अच्छा तो लगता है, सभी एक हिए लगता है।
00:50:18कोई आपको ऐसी नई डिश खाने को मिल गई जो भारत में चलती नहीं यह पर आप गए महंगी थी आपने खरीद के खाली अच्छा तो लगता यह लगता है कि बाकी सब को नहीं लगता मुझे लगता है लगता है पर ऊस थोड़ी
00:50:39के लिए ही कम लेकिन तयार हो जाते हैं काफी कुछ दे देने को है ना तो एक तो यह है कि बाहर-बाहर का उपर-उपर का चैन और वी थर की बे चैनी और दूसरा रास्ता यह है कि बाहर की बे
00:50:55चानी आमंतरित करनी पड़ेगी सूवि कार करनी पड़ेगी भीतर के शैन के लिए भीटर और बाहर दोनों तरफ का एक साथ चैन मिल जाए ये मनुष्य जन्म को सुविधा नहीं है नहीं है
00:51:11कि देह धरे का दंड है सब का हुको होए किसी तल पर तो बेचैनी सुईकार करनी पड़ेगी ये आपको चुनना है कि आपको भीतरी बेचैनी चाहिए ये बाहरी और जिनको भीतरी बेचैनी चाहिए
00:51:29स्विकार है जिन्हें वो बाहर के चैन के आगे बहुत जल्दी बिग जाते हैं
00:51:36क्याते हैं भीतर बेचायने कोई बात नहीं बाहर तो ठीक चल रहा है चलने दो
00:51:39लेकिन अगर यहां सुकून चाहिए
00:51:44तो बाहर फिर संघर्ष झेलने पड़ेंगे
00:51:49बाहर संघर्ष झेलने पड़ेंगे
00:51:54यह अनिवार एक कीमत है जो चुकानी पड़ेगी
00:51:57किधर को चाहिए चैन बाहर या भीतर
00:52:06भीतर अगर चाहिए तो बाहर की बेचैनी के लिए तयार हो जाईए
00:52:09तोनों एक साथ नहीं मिलेंगे
00:52:14और बाहर जिनके जीवन में अर्थ यह निकलता है
00:52:20कि बाहर जिनके जीवन में आपको चैन बहुत दिखाई दे
00:52:23कोई संघर्ष है यही नहीं
00:52:25सब बढ़ियां है
00:52:27चिल, all cool, सब बढ़ियां चल रहा है
00:52:30इतने वह जाते हैं, नौकरी करते हैं
00:52:33मस्त वापस आ जाते हैं, कोई समस्या नहीं है
00:52:35घूस भी मिल जाती है
00:52:37कोई दिक्कत नहीं है
00:52:40वापस आते हैं, बढ़ियां अपना
00:52:42सब कुछ
00:52:44वेवस्थित तरीके से चल रहा है
00:52:46वे उस्थित तरीके से परिवार बना लिया है वच्चे वच्चे भी हो गए नौकरी बी वैसी चल रही है और नौकरी सधी सधाई है जमी जमाई है कहीं संघर्ष जैसी कोई बात है नहीं जिनके जीवन में बाहर संघर्ष नहीं बेचैनी नहीं वह भीतर से बहुत बेचैन �
00:53:16पड़ेगा
00:53:17आप उनको देखेंगे बाहर बाहर से तो आपको लेगा इसकी जिन्दगी में तो बहुत ज्यादा
00:53:27खलबली मची हुई उथल पुथल मची हुई है
00:53:29उठा पटेक मार पीट
00:53:31कुछ भी इसको आसानी से नहीं मिल रहा है ये तो हर मोर्चे पर जूज रहा है
00:53:46अभी आप चुन लो
00:53:50बेचैन तो हो नहीं है या तो बाहर बेचैन हो लो
00:53:54या फिर भीतर की बेचैनी को जेलो
00:53:58दोनों चीज़ें एक साथ नहीं मिलेंगी
00:54:04कि बाहर भी जूजना नपड़े
00:54:08और भीतर भी आत्मस्त रहें बिलकुल शान्त मौज बहुत अच्छा चल रहा है नहीं नहीं नहीं
00:54:14अर्जुन को लड़ने को इसी लिए कहा गया था
00:54:21अर्जुन बाहर अगर नहीं लड़ोगे न तो भीतर तुम्हारे टुकड़े टुकड़े हो जाएंगे
00:54:27अर्जुन बाहर अगर नहीं लड़ोगे तो भीतर तुम्हारे जिन्दगी भर लड़ाई चलती रहेगी और यहीं सजा होगी तुम्हारी
00:54:39लगातार एक बटा हुआ खंडित जीवन जीओगे अंतर दुन्द रहेगा
00:54:55आरे ही बात समझ को है
00:54:56मैं आपको नहीं पता पाऊंगा क्या करें
00:55:00क्योंकि मुझे खुद नहीं पता था कि क्या करना है पर मुझे ये दिखाई दे रहा था क्या नहीं करना है
00:55:08और ये दिखाई देना बहुत मुश्किल काम नहीं होता आप पढ़े रिखे लोग हैं
00:55:12आपके पास सूचना जानकारी, बाहरी ज्ञान भी है, अपना विवेक भी है, क्या नहीं करना है जंदगी में ये इस पश्ठ हो, फिर ट्रेन छूटती हो तो छूटें इंतजार करना पड़े, इसंघर्ष करना पड़े, उसके लिए तयार रहिए, रास्ते अपने आप खुल
00:55:42अपने आप खुलेंगे, दूसरे लोग आपको नहीं बता पाएंगे कि ये तुम्हारा रास्ता है, एक चीज अपने लिए लेकिन निश्चित रखिये कि जिन रास्तों पर सभी चल रहे हैं, उन रास्तों में तो 99 प्रतिशत संभावना यही है कि मामला गड़बड़े, मत
00:56:12मिला है, और उनको जितना मिला है अगर मैं उतने से संदुष्ट हूँ तो कोई बात नहीं, पर अगर कुछ जादा चाहिए, कुछ बहतर चाहिए, तो ठुकराना सीखो, ठुकराना सीखो, और कोई बहुत सरपर ही चल करके बोले कि नहीं ये फलानी चीज तो सुईकार करो,
00:56:42अचालीजी प्रणाम, मेरा नाम चिन्मे है, इसी प्रश्न पे मैंने भी बहुत विचार किया है, और मैं अक्सर मीन्स और एंड्स में चीजों को देखने लग गया हूँ अब कि जो आज का यूवा है या जो हम लोग है, एंड बहुत दुनला सा दिखता है और ऐसा लगता है
00:57:12जैसे कि कोई नया फोन दिखा, वो पाना है क्योंकि उसके एंड कुछ और है, फोन से क्या मिलेगा, लेकिन हाँ वो एपल का फोन देखेंगे, तो चार लोग ये हमारे बारे में क्या सोचेंगे, समझेंगे, वो एंड बन गया, अब उसके लिए मेंस में फिर आदमी एमा�
00:57:42क्यों डिसाइड कर रहा है, अभी जैसे मैं अभी आइन राइन की फिलोसोफी हूँ नीड जड पढ़ रहा था, तो उसमें भी आइन राइन से इसकी फिलोसोफी सबको चाहिए, क्योंकि हर एक इनसान एक फिलोसोफी लेके तो चल ही रहा है, तो आज का जो यूवा है या �
00:58:12गड़बड हो जाते हैं और वो अंत तक नहीं पहुँच पाता, तो अब जब मैं फिर वेदान्त के उसमें देखता हूँ, तो वेदान्त जितनी मैं जितना समझ पाया हूँ, वो ये कहता है कि, अगर आपको देखना ही है, तो आनंद मातर है, आनंद, तो फिर मीन्स सारे �
00:58:42होता जीवन में, तो वो बेचैनी अंदर से शुरू हो जाती है, तो सही संगर्ष का चुनाओ, ही एक मीन्स होगा, तो जो कि जिसको हम आनंद कहते हैं, जिसको जो कुछ भी कहते हैं, वो हम नहीं कहते हैं, वो हम सुनी-सुनाई बात को सिर्फ दोराते हैं, हमें क्या पता �
00:59:12आप एंड कह रहे हो न, अंत, अंत, जिसके लिए सब कुछ है, जो आखरी बात है, वो अंत है, आप अंत हो, आप अंत हो, आप, खुद को जानना, मैं हूँ कौन मेरी आनंद की भी परिभाशा आ कहां से गई, ये अंत है, सब कुछ अपने ही लिए होता है, मैं ही अंत हू�
00:59:42ना मेरे अनुभव में ना मेरे कर्म में ना मेरे सरुकार में सब कुछ मेरी यही लिए तो है मैं ही तो अंत हूँ
00:59:49यह सारी बात आप किसके लिए कर रहे हो
00:59:52किसके लिए कर रहे हैं अपने लिए कर रहे हैं आप अंत हो और अगर मैं अंत हूँ तो मुझे पता तो चले मैं हूँ कौन
01:00:01मुझे पता ही नहीं चला मैं हूँ कौन
01:00:03और मैंने एक उधारी का मैं खड़ा कर लिया उसकी उधारी की परिभाशाएं
01:00:10और उसकी संतुष्टी के लिए काम करना शुरू कर दिया
01:00:17तो अब बरबाद ही गया वेर्थ ही गया
01:00:25बात आरी ये समझ मैं
01:00:26विदानत कहता है ये भी मत बोलो की जीवन आनंद के लिए
01:00:33जैसे ही कुछ उठे मन में पूछो ये आया कहां से
01:00:37क्योंकि मैं अपने आप में कुछ नहीं है
01:00:40जो भी कुछ तुमने इधर उधर से जोड पकड़ रखा है वही मैं बन जाता है
01:00:44आनंद वाली बात भी कहीं से उठा ली होगी
01:00:48कहां से क्या उठा लिया ये देखते चलना और जो कुछ अपना नहीं है उसको बस जानते चलना ये मेरा नहीं है ये बात ही मैंने कहीं से उठा लिया ये भी मैंने कहीं से सोच लिया ये लक्ष भी मेरे मन में कहीं से बैठा दिया गया
01:01:04ये फलानी चीज जिसको मैं अपना विचार कह रहा हूँ
01:01:09ये सिर्फ एक शारेरिक वृत्ति है
01:01:11फलानी बात जिसको मैं अपनी भावना कह रहा हूँ
01:01:13या मैं अपनी ममता कह रहा हूँ
01:01:15ये भी सिर्फ एक शारेरिक रसायन है
01:01:18ये जानना
01:01:21उस मैं के बिना आप आनंद की भी बात करोगे तो भी चूक जाओगे
01:01:25गड़बड हो जाएगी बहुत पास आकर भी आप दूर रह जाओगे
01:01:34हाई बिलकुल ठीक है सचिदानंद घन बिलकुल और आत्मा के निकटस्थ बिलकुल आनंद में कोश होता है
01:01:43लेकिन बड़ा खत्रा है आप किसी आम साधारण तरह की खुशी को या आनंद बोलना शुरू कर सकते हो
01:01:53जो आपकी सबसे व्यर्थ तरह की कामना हो व्यर्थ लेकिन बड़ी आकरशक
01:02:02वो पूरी होने लग जाए आप कहा सकते हो आनन्द आ गया
01:02:05आपको कैसे पता आनन्द माने क्या
01:02:08किसके लिए है वो उसको जानना ही end है
01:02:12I am the end
01:02:14You are the measure of all things
01:02:19सब कुछ तुम्हारे लिए है
01:02:20जीना तुम्हें अपने ही साथ है
01:02:23जीना अपने ही साथ है
01:02:27और आप जिस स्थित में आ गये हो जन्म ले करके
01:02:31उस स्थित में आपको पचास तरीके से चारो तरफ से बस घेरा जाता है
01:02:38घेरा जाता है जीना अपने साथ है
01:02:41ये सब घेरते हैं ताकि आप अपने आप से अलग हो जाओ
01:02:44तो फिर जीवन का मतलब ही संघर्ष है
01:02:47आपको आपसे अलग करने के लिए है ये जन्म दुनिया संसार
01:02:53और आपको संघर्ष करना है आपको कहना है नहीं नहीं नहीं
01:02:59प्रेम की बात है मेरा मुझ से प्रेम
01:03:03ज्यान की भाशा में इसको बोल देते हैं कि अहम कात्मा के प्रते जुकाव
01:03:14भक्तिमें इसको कह देते हैं
01:03:16भगवान के प्रत्यानुराग
01:03:18एट प्रेम की बात है
01:03:19हम अलग नहीं होंगे
01:03:21तुम सब लगे हुए हो बस इसी में
01:03:24कि हम अलग हो जाएं नहीं
01:03:25मुझे मेरे पास रहने दो
01:03:27वही जो है जिसके पास मुझे
01:03:29पिए रहना है उसे आत्मा कहते हैं आत्मा भी माने क्या मैं कि को कि इसको आप फिलोसफी कह रहे हो वो सब विर्थ हो जाएगी अगर वो
01:03:40दुनिया भर की बाते करना फिलोसोफी नहीं है
01:03:45अपनी बात करना फिलोसोफी है
01:03:49ये कैसा है ये कैसे हो गया ये हो गया हो गया
01:03:53ये ठीक है ये फिलोसोफी का एक बाहरी हिस्सा हो सकता है
01:03:57पर सब दर्शन के केंद्र में आत्मदर्शन बैठा हुआ है
01:04:10झाल झाल
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