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00:00मेरे धर्म में और मेरे राष्ट्र में आत्मसम्मान की बड़ी कमी है।
00:04सबसे पहले हम तयार होते हैं रीड जुकाने को।
00:07तो फिर वो राष्ट्र गुलाम बनता है बार-बार।
00:09क्योंकि वहाँ लोगों ने जुकने की, दबने की, सवाल न पूछने की,
00:13भाग्य पर टाल देने की, आस्मानी शक्तियों पर टाल देने की आदत बना ली होती है।
00:43अगर हम वही हैं तो आप ऐसी कैसे हो गई? ये किस ने किया?
01:13नवस्ते चार जी, मेरा प्रशनी ये है, मेरा नम निकिता है, मेरा प्रशनी ये है कि जैसे जब तक कुछ कामों के लिए, जब तक बाहर से कोई प्रभाव ना डाला जाए, वो काम हो नहीं पाते हैं।
01:25जैसे कि मतलब पढ़ाई है, पर साथी साथ कुछ काम ऐसे भी हैं जिनके लिए कोई प्रभाव की जब नहीं पढ़ती आला सित्यादी के लिए, तो इसको जो मैं देखती हूं तो मुझे ऐसा लगता है कि स्वयम से जीवन से जरा सा भी प्रेम नहीं है, ये समस्या है, पहल
01:55मुझे ऐसा लगता है कि मतलब मुझे ऐसा लगता है मैं अपनी जीवन के प्रती बहुत आसमवेदन सीलूं क्यूंकि जैसे जो चीजे सही है उ भी नहीं हो पाती है, मतलब ऐसा लगता है कि जीवन में मतलब खुद से जैसे थोड़ा सा भी मतलब एक ही गड़े में बार बा
02:25एक एक करके बताईए क्या कहरा जाती है
02:29पहले तो ये जैसे कि आपने कहा था कि जैसे बोध के आने के
02:33पहले बोध नहीं बोला था पहले कुछ और बोला था
02:35प्रभाव बोला था कुछ
02:36बाहरी प्रभाव की जैसे या तो बाहर से कोई डड़ लाइन में
02:40वो आदत लग गई है न
02:42भीतर
02:44से जब इंजन
02:49संचालेत होता ही नहीं
02:52पूरी वेवस्था जंग खा गई है वो
02:57वो गाड़ी चलती ही धक्का मारके
03:01वो गाड़ी बाहर से ही धक्का खाके चलती है
03:07इंजन का इस्तेमाल नहीं हुआ कब से
03:09सब जंग खाके बैठा हुआ है न
03:12अब हालत ये है
03:15कि उसको धलान पे छोड़ दो तो भी बाहरी प्रभाव है गुर्त्वाकरशन
03:22चलेगी तो बाहरी
03:27दम पर ही चलेगी
03:30लेकिन अगर आपको उसको रिपेर के लिए ले जाना है
03:35मरमत के लिए वर्कशॉप ले जाना है तो भी बाहरी बल ही लगाना पड़ेगा
03:42अब अगर उसका भीतरी बल भी सक्रिय करना है
03:47आप उसको लेके जाओगे वर्कशॉप वो उसका इंजन ठीक करेंगे
03:52पर उसका भीतरी के इंद्र भी जागरत हो सके शक्रिय हो सके इसके लिए पहले
03:59बाहरी ही उसपे कुछ प्रभाव कुछ बल लगाना पड़ेगा
04:04तो अब सवाल भीतरी बनाम बाहरी का नहीं रह जाता
04:11जब बाहरी धकों से प्रभावों से ही चलने की आदत पड़ जाती है
04:19तो फिर सवाल ये नहीं रह जाता कि जो उर्जा मुझे संचालित कर रही है
04:26वो भीतरी है या बाहरी अब निश्चित हो जाता है कि होगी तो बाहरी ही
04:33सवाल दूसरे हो जाता है हलनकि सवाल अभी बहुत सार्थक है
04:37अब सवाली हो जाता है कि जो बाहरी ताकत है आपको जो धक्का दे रही है
04:41वो आपको गड़े की और ले जा रही है या वर्क्शॉप की और
04:45अब ये सवाल है
04:47क्योंकि बाहर से भी आपको दोनों दिशाओं में ले जाया जा सकता है
04:51भीतर से तो पक्का ही है कि कोई सार्थक दिशा कोई जाओगे
04:54वो तो भीतर की बात हो गई
04:56जो भीतर से जागरत हो गया
04:58उससे तो अब पुछने की भी धरूरत नहीं कि दिशा क्या तेरी
05:04वो सब जानता है अपनी दिशा
05:07वो भीतर से चल रहा है
05:08पर भीतर से तो हमारा चलने का कब का भ्यास शूट गया
05:12हमने तो दूसरी चीज में बिलकुल प्रवीडता ले ली है
05:16है ना तो अब सवाल यह होना चाहिए कि बाहर से जो आ रहा है
05:21उसमें विवेक कैसे लगाएं
05:24कैसे चुने कि कौन हमें हाथ लगाएगा
05:28हम किसकी संगत में जाएंगे
05:30किसको अपने कान देंगे
05:33किसको अपना ध्यान देंगे
05:35अब यह हो जाता है प्रश्न
05:37ठीके
05:41बाहरी तो है अब खेल है तो है
05:43क्या कर सकते हैं इतनी उम्र हो गई अभी तक
05:45भीतर की और देखोगे तो घुप पंधेरा दिखाई देगा
05:48वहाँ कोई अब प्रकाश दिखाई नहीं देगा
05:50कि उससे दिखाई मिले
05:51अब स्वैम से पूछोगे क्या करें
05:54तो वहाँ भी दूसरों की आवाज नहीं सुनाई देंगी
05:58कि मैं सोचने बैठी इस दिखाई में
06:02इस स्थिति में क्या करना चाहिए
06:03तो मुझे लगा ममी ने ये बोला है
06:05बुआ ने ये बोला है
06:06अध्यापकों ने ये बोला है
06:09दोस्तों ने ये बोला है
06:10यही भीतर भी घुज गए है
06:13जब बाहर वाले
06:13तो भीतर जैसा भी कुछ बचा नहीं है
06:15भीतर जो है
06:18भोगा कोई छोटा सा ऐसे
06:21टिम्टे माता दिया
06:21और उसके उपर
06:24परत दर परत अंधेरे चड़कर बैठ गए है
06:27तो भीतर अब कुछ आपको दिखाई नहीं देगा
06:30तो बाहर की ओर ही थोड़ा विवेक रख लो
06:35कि किसको
06:37हम अपने पास आने दे रहे हैं
06:41वो बहुत बड़ी बात है
06:42वो सब कुछ है
06:42सब कुछ है
06:44सब कुछ
06:48जो चलता है न बिनु सचसंग विवेक न हुई
06:51वाट ठीक है वो
06:53विवेक
06:56अंतता अपनी बात होती
06:58आत्मिक बात होती है
07:00पर उसको जागरत करने के लिए भी सचसंग चाहिए
07:04सचसंग मानने यह नहीं कि बाबाजी के आगे बैठ के
07:06पालती मारके वो नहीं सचसंग होता
07:07सचसंग तो प्रतिपल की बात है
07:11लगतार जीवन में किसको संगती दे रहे हो
07:13टीवी में भी क्या देख रहे हो भी सचसंग है
07:17किस जगह जा रहे हो कहां बैठ रहे हो
07:21चाय कॉफी कहां पी रहे हो यह भी सचसंग है
07:23कपड़े खरीदना
07:27किसको नंबर लगा रहे हो
07:30फोन पर ये भी सत्संग है
07:31ये सब सत्संग की बात है
07:35आरी बात समझ मैं है
07:41तो ये शिकायत मत करिए
07:43कि मैं क्या करूँ
07:44बाहरी प्रभावों पर ही चलती हूँ
07:46ये कोई शिकायत अब वाजिब नहीं रही
07:48अभी तो कुछ समय तक कम से कम
07:51गाड़ी चलेगी बाहरी धक्के से ही
07:55सवाल ये होना चाहिए कि धक्का देके
07:57उसको वर्क्शॉप की और लाया जा रहा है
08:01या गड़े की और लाया जा रहा है
08:03वर्क्शॉप की और लाया जा रहा है
08:05तो सत्संगती है
08:06वर्क्शॉप की और लायारा तो इसका मतलब यह है कि धीरे धीरे अब धक्या की जरूरत कम होती जाएगी अपना ही इंजन ओन होता जाएगा
08:16अब मरम्मत में जितना समय लगे वो निर्भर करता है कि कितना कूड़ा कर लिया है गाड़ी को
08:21पर गाड़ी जब तक आप सांस ले रहो इतनी कूड़ा कभी भी नहीं हो जाती कि वो अब इर्रेपेरेबल हो जाए मनें मरम्मत से आगे की बात हो जाए ऐसा नहीं होता
08:37यह ठीक है यह समझे आगई बात अब दूसरी बात बताईए
08:41तो मेरा यही पूछना है कि मतलब जो बौध से पहले का प्रेम होता है जो आप बौध क्या होता है
08:57बौध से पहले तो तब बात होगी ना पहले बौध पता होगा बौध वाने क्या
09:01मतलब जैसे की सही काम क्यों ले जाना
09:04मतलब सही काम
09:05तो वो पूछो ना सही काम क्या
09:08तो सही काम करने के लिए जो मतलब
09:11कैसे मतलब प्रेम आई मतलब पहले की
09:15मतलब करना है
09:16अपने लिए अच्छा है तो इसो करना है
09:18अपने लिए बुरा क्या है ये देखना होता है
09:21अपने लिए अच्छा ग्या है ये इतनी अकल होती तो वही न कर रहे होते
09:26जो अच्छा है उसको तो पता नहीं कहां फेक आए बहुत दूर कर दिया
09:32और अच्छे का तमगा किस पर लगा दिया है
09:36जो ऐसे ये उसको पकड़ के बैठे हैं उसी को बोल रहे हैं यही तो अच्छा है यही तो अच्छा है
09:45जो पकड़ कर बैठे हो शुरुआत हमेशा उससे की जानी चाहिए
09:49यह टर्मिनलोजी में मतफस हो बोध प्रेम ज्यान बड़ी खतरनाक बात होती है
09:54क्योंकि उसमें अब्स्ट्रैक्शन्स होते हैं बहुत सारे
09:56अब्स्ट्रैक्शन मनने हुई कुछ हूँ
09:58मैं तुरिया तीत निगल गया हूँ
10:05बहुत हुआ है ऐसा हो जे मैं एक दम ऐसा है
10:14कुछ तुरही दो मूँ में और बाहर करो
10:15सीधी बात जमीन की बात करो
10:24सही काम के लिए प्रेम तो तब आएगा न
10:30जब पहले अब ही जिसको सही काम बोल रहे हो दिखेगा कि गलत काम है
10:35सबकी जिन्दगी तो सही काम हों से भरी ही हुई है
10:40अभी सत्र चल रहा है आधे से ज्यादा लोग हो सकता है दो तेहाई लोग
10:44अभी न देख रहे हों हो सकता है तीन चाथा ही न देख रहे हों
10:48कुछ पता नहीं
10:49अरे भाई अब तो त्योहारों का महीना चल रहा है परिवार वालों के साथ होना पड़ता है न ऐसे थोड़ी
10:55उनकी दृष्टि में सत्र न देखना ही सही काम है
11:02पहले उनको दिखाई तो दे कि तुम जो कर रहे हो वही पाप है
11:05सत्र चल रहा है इसको छोड़ करके तुम जो भी पारिवारिक धार में काडंबर कर रहे हो पाप है
11:11उनको यह नहीं दिखाई दे रहा
11:14जैसे ही त्योहार आते हैं सत्रों में पस्थिते कम हो जाती है
11:21जन्माष्टमी के दिन तो याद है माड़ गये थे
11:25उनको पूर चौबीस घंटे चलाएंगे
11:26चौबीस घंटे तो नहीं पर बारा घंटे फिर भी चला दिया था
11:29भगे जा रहे हैं रुखिय नहीं रहे
11:32आज तो मक्खन मार के रहेंगे
11:35जितनों कहों रोक सकते थे रोका
11:38कि भाई जन्माष्टमी ये तो गीता सुनो
11:41अभी नवरात्री चल रही थी
11:45जैसे इसे नवरात्री आगे बढ़िये
11:51वैसे वैसे उपस्त्रती गिरती गई है
11:59उनकी दृष्टे में भागना ही अच्छा गाम है
12:03उनको पहले समझ में तो आए है
12:05कि तुम गीता से भागके
12:09जहां कहीं भी जा रहे हो धर्म बटोर ने
12:13वो धर्म नहीं अधर्म है
12:14कौन सा धर्म है जो तुमें गीता से दूर ले जा रहा है
12:16क्या करने जा रहे हो
12:21आप ही लोग हो जो भगते हो
12:25अस दिन परिभार का दिन होता है ना
12:32जितनी भी मतलब
12:33सबसे विर्थ के नमूने हो सकते हैं
12:35उस दिन आप उनके हो जाते हो
12:37ये भी नहीं कि आप
12:39वो आपके हो जाएं
12:40ये भी नहीं कि आज आई हो बुआ तो बैठो सत्र देखो
12:43ये नहीं होगा
12:45ये होगा कि आज बुआ आई है तो आज मुझे बुआ के हिसाब से
12:49अरे महमान का दिल रखना होता है न
12:50तुम्हें पहले दिखाई तो दे कि
12:53सब घटिया कामों कोई पकड़ के उनको बोलते हो कि
12:59अच्छा गाम है अच्छा गाम है
13:00मैं दिवाली की रात सतर रख दूँगा
13:11बाहर पठाखे बजएंगे भीतर हम बजएंगे
13:26आई वास मुझे मैं है
13:27पिंजडे वाली चड़िया प्रेम प्रेम भोले तो वो शुभा नहीं देता उसको
13:37उसको प्रेम नहीं उसको आग चाहिए विद्रो चाहिए वही है प्रेम
13:41वो हाँ बैट करके
13:44रोमेंटिक गाने गा रही है और कह रही है नहीं पर
13:49प्रेम तो अच्छी ही बात होती है
13:53सभी को हो सकता है
13:54तू छुपकर ये
13:56लानत की बात है
13:58तू बंध है पिंजडे में और वहां तू कह रही है
14:00कि घोसला और अंडे और चिडा
14:02कहा है मेरा और
14:04चिची चिची चुचु
14:06चुचु
14:06चुच
14:09ये सब
14:15अपनी हालत
14:28की भयावहता के
14:30दिखने से ही शुरुआत हो सकती है
14:32और कहीं से नहीं
14:34और जो अपनी हालत
14:37पर थूक नहीं रहा
14:40वो अगर कहता है कि मैं धार्मिक हूँ
14:42अध्यात्मिक हूँ
14:43तो उससे बड़ा छली
14:46प्रपंची नो टंकी बाज
14:48दूसरा कोई नहीं है
14:48तेरी जिंदगी देख
14:51तेरे डर देख
14:52तेरा मू देख
14:53और उसके बाद तू कहरा है
14:55आओ बैठके ग्यान बाचेंगे
14:56अचिडिया को मेहनत ना करनी पड़े
15:10पिंजला तोड़ने की
15:12तो भीतर बैठके एकदम आखों आख मूंद करके
15:14पाल्थी मार के कह रही
15:16आहम ब्रहमासमी
15:17मुझे आकाश में जाना क्यों है
15:20मैं तो स्वयम आकाश मात्र हूं
15:24ये बड़ी
15:28बड़ी
15:30फरेबी चिडिया है
15:32बड़ी फरेबी चिडिया है
15:34क्यान का भी दुरूपयोग करे वैठिये
15:39बोधो आहम
15:41मैं बोध हूं
15:44तो बोध नहीं है तो
15:47छोड़ आप
15:49ग्यान आता है न जब तो वो शान्त नहीं करता
16:02वो आपको छटपटाहट से भर देता है
16:04जो ग्यानी के आपने छवी बना रखी है
16:08कि ग्यानी ऐसे हूं
16:10अधमरा
16:19हिल ना पाता हो
16:22उसी को ग्यानी मानते हो
16:23एकदम ऐसा बैठा ही है
16:26जंग लग जाए
16:28दीमक लग जाए
16:29चीटियां लग जाए
16:30वो ग्यानी है
16:31ग्यान का मतलब होता आत्म ग्यान
16:34और आत्म ग्यान माने अपनी कुकी हुई हालत को देखना
16:38उसके बाद क्या होता है
16:42आग लगती है आदमी छट पटाता है
16:44ग्यान से वेदना उठती है
16:47उसी वेदना से वेद उठते है
16:50विद धात माने होता है जानना
16:57और उसी विद धात उसे आती है पीडा
17:01वेद के दोनों अर्थ होते हैं
17:05वेद माने जानना भी और वेद माने दर्द भी
17:08और दर्द का और ग्यान का बड़ा गहरा रिष्टा है
17:12यान माने दर्द
17:14दर्द कहीं कुछ है नहीं उल्टे और आख बंद कर ली और
17:25यह समूचा चकत
17:30मात्र दिश्य प्रपंच मात्र है
17:36मैं चिद स्वरूप शुद्ध बुद्ध मुक्त आत्मा हूं
17:39कौन कौन हो गया है
17:48चिद स्वरूप शुद्ध बुद्ध मुक्त आत्मा
17:52कौन कौन है यहां पर
17:54सामने उत्पड़ जाना है
17:56यह देखो
18:08देखा दोहर
18:09हाथ उठा रहे थे
18:10गूरा ऐसे उठाते उठते है
18:12ज्यान माने वेदना
18:21ज्यान माने दर्द
18:23वही जो करहा है न वो फिर आजादी देती है
18:32ज्यान माने दर्द
18:39इसलिए तो ज्यान खतरनाक होता है
18:45इसलिए तो लोग भगते हैं
18:48इसलिए तो भारत ने ऐसा ठुकराया ज्यान को
18:51अद्वायत को बहुत खतरनाक होता है
18:55सच्चा ही दिखा देता है
18:57भारत ने गाँ धर्म के नाम पे हमें कल्पनाए चाहिए
19:00मीठी मीठी बैट जाओ और
19:01ज्यानी आपको कभी मिलेगा ही नहीं
19:04खुश खुश खुश खुश
19:05आहाहा क्या मिठासी है मधुर मधुर मधुर मधुर
19:08ज्यानी ये करता मिली नहीं सकता
19:10उसे असली जिन्दगी जीनी है
19:12असली काम करने है
19:13वो ये करी नहीं सकता
19:15अरे अब हमें क्या करना है
19:22हमारा बिड़ा तो प्रभू पार करेंगे
19:24हम तो बस शल्नागत है
19:25हमें थोड़ी कुछ करना है
19:27यानि ये सब नहीं कर पाएगा
19:32वो अब यथारत के धरातल पर आ गया है
19:36वो जान गया है कि जिन्दगी क्या चीज है
19:38मीठी कलपनाओं में और
19:44लड्डू, बर्फी, पेठा, पेडा
19:48इनमें वो खुद को अब दिलासा नहीं दे पाएगा
19:57पारी बात समझ में है
20:13तो भारत ने ग्यान को ही ठुकरा दिया
20:16और विदान्त माने ही ग्यान होता है
20:19तो भारत ने विदान्त को ही ठुकरा दिया
20:21पर नहीं चाहिए
20:22तो विदान्त को ठुकरा दिया
20:23कहते तो हो कि धर्म हमारा वैदिक है
20:26वेदान्त को ठुकरा दिया तो कौन से धर्म के मानने वाले हो फिर
20:30धर्म क्या है तुम्हारा
20:31ये जो तुम करते हो धर्म के नाम पर
20:34ये तो चीज कहीं है नहीं उपनिशदों में
20:36और जो उपनिशद कह रहे हैं वही धर्म है तुम्हारा वो उपनिशद वेद ही नहीं है उपनिशद तो वेदान्त है
20:44वेद की भी चोटी है उपनिशत
20:47और आप जो कर रहे हो उसका उपनिशत से तो कोई लेना ही देना नहीं है
20:51जो धर्म के नाम पर पूरे भारत में चल रहा है
20:53उसका तो कोई लेना ही देना नहीं उपनिशत से
20:55तो ये लोग किस धर्म के मानने वाले हैं
20:57ये सनातनी तो नहीं ये वैदिक तो नहीं ये है किस धर्म के और इन्होंने ठेका पूरा उठा लखा है हमी सनातनी तुम जो कर रहे हो वो तु किसी द्रिष्टे से वैदिक नहीं है
21:09दिखाओ कहाँ शुति प्रमाण है
21:13दिखाओ कहाँ शुति माने उपनिशद
21:16जो तुम कर रहे हो उसका समर्थन करते है
21:18करना भी छोड़ो तुम्हारी जो माननेता है
21:21शुति उसको ही न
21:22तुम्हारी तो माननेता पूरी तुम
21:24शुति तो माननेता का ही खंडन करती है
21:27जो माननेताओं पर चले उसे धर्म मानती है नहीं शुति
21:31पर वो सब चलता है खूब चलता है
21:40अगर आपसे कोई बोले कि वो बगल में आए हैं नए नए मिश्राजी और बहुत धार्मिक हैं
21:45तो तुरंत आपके मन में क्या चवी उठेगी
21:47क्या उठेगी ग्यानी की उठेगी जो बिलकुल
21:53हम्ग जमीन ठोस जमीन धरातल पर रहता है ऐसी उठेगी कैसी उठेगी
22:03आप बिलकुल अब इंतजार करोगे कि यह आई रहोंगे पेड़ा लेकर
22:07लीजिए लीजिए प्रशाद ये साको शा क्यों बोलते हैं मुझे ये नहीं समझ में आता
22:14शायद वो शा से शक्कर शायद मीठा मीठा सब होता है इसलिए
22:17लीजिए लीजिए जी लीजिए अरे पहले हाथ दो लीजिए और बहुत पूरा
22:22पूरा डॉमिनेशन ये हमने धर्म बना दिया
22:35धर्माने क्या होता है तड़क
22:52और आग और आह और विद्रूख वेदना वेद ये धर्म है
22:58शक्कर नहीं होती धर्म
23:06और बतो
23:18एक लाश था मतलब इसका मतलब ये कि अगर स्वैम के प्रती संबेदन सीलता नहीं आ रही है अभी अपना मतलब असली मतलब वो करेंट कंडिशन पता नहीं है
23:30खाल मूटी है लत्खोर है पढ़ रही है जिंदगी से पढ़ रही है क्या फरक पढ़ता है पढ़ रही है
23:38क्या होता है गैंडे जैसी खाल कर लिये क्या फरक पढ़ता है बंदर जैसा पिछवाणा हो गया है क्या फरक पढ़ता है
23:50क्या फरक पढ़ता है वो भी तो जीव हैं वो ऐसे जी सकते हैं तो हम भी जी सकते हैं वस उद्यायो कुटूंब कम
23:58यही है बस आत्मसम्मान की कमी है
24:05वो पूरी दुनिया में है पर विशेश कर
24:12मेरे धर्म में और मेरे राष्टर में
24:15आत्मसम्मान की बड़ी कमी है
24:17सबसे पहले हम तयार होते हैं रीड जुकाने को
24:21जुकाना भी छुड़ो तुड़वाना भी मन्जूर
24:27क्या जवाब दू मैं
24:32जिन्दगी पीट रही है
24:34हमें पिटने से
24:36कोई एतराज ही नहीं
24:38तो मैं क्या जवाब दू
24:39कोई कहे कि समवेदन शीलता की कमी है
24:42तो अब इसके आगे तो कुछ हो इनी सकता न
24:45समवेदन शीलता की कमी का मतलब होता है
24:48मेरी जो हालत है वो मुझे सुईकार है
24:50मुझे अगर पढ़ती भी है
24:53तो मुझे महसूस नहीं होता
24:55तो अब तो कुछ हो ही नहीं सकता
24:57इसका मतलब है कि आप मुर्दे हो
24:58मुर्दे को कितना भी मारूँ से महसूस होता है
25:01तो पस आप तो फिर खत्म हो गया
25:02कहानी खत्म हो गई
25:03आत्म सम्मान का मतलब होता है
25:08भाई जिन्दगी है
25:10और अगर मैं
25:13सचमुच अपने भीतर जरा भी
25:15सचाई रखता हूँ
25:16तो जिन्दगी सम्मान योग्य है
25:19जिन्दगी इसलिए थोड़ी है कि
25:21गधे की तरह पिट रहे हो पिट रहे हो
25:23पिट रहे हो जुक रहे हो जुक रहे हो जुक रहे हो जुक रहे हो
25:27पर हमने यही सीख लिया धर्म के नाम पर
25:31है ना
25:31तो इसलिए अब जुकने में में शर्म भी नहीं आती
25:34क्योंकि उस जुकने को हम किसका नाम दे देते हैं
25:37धर्म का नाम दे देते हैं
25:39भारत के साथ ये बड़ा धोखा हो गया है
25:45कि धर्म है हमारा वैदिक, विदान्त, अपनिशदिक
25:51पर नाम हमने ले लिया है विदान्त का
25:58और काम हम सारे वो कर रहे हैं, मानेता हम सारी वो रख रहे हैं
26:03जो बिलकुल भी शुतिसम्मत नहीं है
26:05विदान्त कहता है जुक मत जाना किसी हालत में
26:09और धर्म हमारा हो गया हजारों के सामने जुकने का
26:13वही हमारा राष्ट्री और धार्मिक चरित्र बन गया है
26:17दास बन जाओ
26:22पिर अगर पिट भी रहे हो तो तुम कह सकते हो ना
26:34मैं क्या करूँ मेरा तो काम ता जुक जाना जुकने के बाद
26:36अब किसी ने मुझे पिट दिया तो मैं क्या कर सकता हूँ
26:38प्रभू का आदेश होगा
26:40पिट गया मैं
26:41मैं बुरा क्यों मानूँ
26:44मैं बुरा क्यों मानूँ
26:49प्रभु की लीला है प्रभु की लीला नहीं है तुम्हारे अहंकार की माया है
27:14असमवेदन शिलता का कोई उपचार नहीं है
27:16उसका जो फिर उपचार होता है वो बहुत कठेन और बहुत महंगा होता है
27:24उसका फिर उपचार यह होता है कि आपको जब फर्की नहीं पड़ता
27:28किसी भी तरह का न्याय हो रहा है गरिमा छीनी जा रही है
27:33जीवन विरुद्ध सब कुछ हो रहा है
27:35और आपको सिखाया जा रहा है
27:37तो फिर ये होता है कि किसी को
27:39अपना खून देना पड़ता है
27:40ताकि थोड़ी तो आपके भीतर
27:42संवेदना पैदा हो
27:44फिर जैसे इतिहास में हुआ है कि
27:48महापुरुषों ने मंजूर कराये
27:50कि उनकी लाशें गिरें
27:51वो करना पड़ता है फिर किसी को
27:53कि आप में थोड़ी सी तो जुर जुरी पैदा हो
27:56ये तो आप तो काट हो गए हो
28:01अचेत हो गए हो
28:04बोलो वो करवाना है
28:08उसकी जरूरत पड़ती रही है इतिहास में बार बार
28:12या दूसरा ये होता है कि जब
28:20एक पूरा राष्ट्र ही
28:23सामूहिक रूप से असम्वेदन शील हो जाता है
28:26तो दूसरों को मौका मिल जाता है आगर कि
28:30उनकी पिटाई लगाने का वो पिटाई लगाना
28:31आसान हो जाता है
28:33क्योंकि पता है कि अभी पिटेंगे तो भी
28:37कुछ करेंगे नहीं क्योंकि ये कैसे हो गए है
28:41असम्वेदन शील
28:42तो फिर वो राष्ट गुलाम बनता है बार बार
28:47क्योंकि वहाँ लोगों ने जुकने की दबने की
28:51सवाल न पूछने की
28:53भाग्य पर टाल देने की
28:57आस्मानी शक्तियों पर टाल देने की आदत बना ली होती है
29:01वो अपना पौरोश अपनी करमठता भूल चुके होते हैं
29:07तो फिर दूसरे बाहर से आगर के उन पर हावी हो जाते हैं
29:16तो कोई आपका भला चाहता होगा
29:18वो ये करेगा कि वो अपना प्रान देगा आपके सामने
29:22ताकि कुछ तो आप में इस पंदन पैदा हो
29:24और जो आपका भला नहीं चाहता होगा
29:27वो आगे सीधे आप पे कब्जा कर लेगा
29:29और से पता है कि आप विरोध भी नहीं करोगे
29:31क्योंकि आप में कोई गर्म है कोई आत्मसम्मान तो बचा ही नहीं है
29:34आत्मसम्मान तो सवाल पूछता है न वो कहता है
29:38तू कुछ बोल रहा है ऐसे कैसे मान लूँ
29:40मेरी भी कोई हस्ती है कोई वजूद है
29:42विरोध नहीं कर रहा है सवाल कर रहा हूँ
29:45जवाब दे तू कह रहा है ये मान ये मान ऐसे जी वैसे जी ये सब कर समझा दे
29:50इतनी सी बात है इतना भी अगर नहीं करोगे है तो फिर तो दो में से एक ही चीज होंगी
29:59कोई प्यार करने वाला मिल गया तो तुम्हाई लिए जान दे देगा
30:01और कोई अत्यचार करने वाला मिल गया तो आ के तुम पर कबजा कर लेगा
30:07ज्यादा संभव ना अत्यचार वाले की है वो आएगा फिर से गुलाम बनाएगा और उन्हीं कारणों से बनाएगा
30:16जिन कारणों से बार बार बने हजार साल तक
30:18कारण धार्मिक है
30:20कारण है जो वेदान्त के साथ
30:23हमने गुस्ताखी करी है
30:24वही कारण है
30:25धर्म होना चाहिए था आत्मग्यान को
30:31वो धर्म न जाने क्या बन गया
30:32वही कारण है मूल
30:36और वो कारण आज भी साबूत है यथावत है
30:42कोई भी अनिश्ट कभी भी घट सकता है
30:45जाकर के खोजना आम आदमी जिसको धर्म कहता है यह आ कहां से गया
30:55हैरान रह जाओगे जानके कि क्या हुआ है बहुत बड़ा धोखा हुआ है
31:00खोज के लाओ वो धोगा किस ने किया और कैसे हुआ
31:04आम आत्मी जिसको धर्म कहता है
31:07धर्म तो यहां हम पढ़ रहे हैं
31:10ठीक विदान्त तो आपके सामने है
31:12और आपको इसका कोई मेल दिखाई देता है लोग धर्म से
31:16तो खोज के लाओ कि यह लोग धर्म कहां से आ गया
31:19धर्म तो यह है वो कहां से आ गया
31:21खोजो तो
31:22और जटका खाने को तयार हो जाओ जब पता चलेगा कहां से आया
31:28गुलाम इंसेंसिटिव रहे
31:42इसमें मालिक का स्वार्थ है
31:47है की नहीं
31:50समझ में आ रही है बात यह
31:51आप जिसका शोशन करना चाहते हो उसका शोशन होता भी रहे
31:56और वो तब भी न रोए
31:57इसमें आपका स्वार्थ है आप समझ क्यों नहीं रहे हो
32:03जिन परमपराओं में जातियों का महिलाओं का शोशन नहित हो
32:15वो परमपराएं स्वयम ऐसा इंतजाम करेंगी कि आदमी
32:19असमवेदनशील हो जाए ताकि विरोध न करे
32:22और तरह तरह कि फिर कहानिया बना दी जाएंगी कि विरोध क्यों नहीं करना चाहिए
32:28कर्मफल है ये है वो है पचास बाते है आरे ये बात समझ में
32:41आप असमवेदनशील हो नहीं गए आपको बनाया गया है
32:58उसी के लिए ये सब बाते होती है कि अरे अब नारी पैदा हुई हो कुछ बातें तो सहनी पड़ेंगी न
33:05इतना क्या तुम बवाल कर रही हो
33:10अरे जब प्रभू ने ही तुम्हारे साथ भेदभाव करा और तुमको नारी बनाया
33:17तो अब समाज अगर तुम पर कुछ हत्याचार कर रहा है तो शिकायत क्यों कर रही हो
33:22शिकायत कर नहीं है तु प्रभू से करो और प्रभू से शिकायत नहीं कर सकती
33:26क्योंकि प्रभू ने तो तुम्हारे पिछले कर्मों का दंड दिया है तुमको उस तरी बनाके
33:30तो अब आप शिकायत नहीं करोगे, उसको हम कहेंगे भारत की नारी सदाचारी
33:37बिल्कुल शिकायत नहीं करती, एनीमिक रहती है, हिमोग्लोबिन साथ, आठ, लेकिन शिकायत नहीं करती, महान है भारत की नारी
33:49और जिनने शोशन करना है वो यह सब सुन रहा है वो उसको रारे करें बढ़िया है
34:19अगर जिन्दगी सार्थक हो तो स्वार्थी होना पुण्ने है अपने हित जानो और अपने हितों की रक्षा करना सीखो
34:40निश्कामता हमेशा हमने क्या कहा है किसके बाद आती है आत्मग्यान के बाद
34:45जब अभी तुम खुद को जानते नहीं तो क्यों निश्वार्थ बनने की कोशिश कर रहे हो
34:53मैं निश्वार्थ भाव से अपने परिवार की सेवा करता हूँ
34:56मैं निश्वार्थ भाव से समाज की सेवा करता हूँ
34:58मैं निस्वार्थ भाव से सबके लिए खाना बनाती हूँ
35:02निस्वार्थता तो आ सकती है सिर्फ आत्मग्यान के बाद
35:08और आत्मग्यान तुमको बताएगा कि तुम्हारा हित कहां है तुम कौन हो
35:13वो अभी हुआ नहीं, तुम खुद को जानते नहीं, तुम्हें अपना हित अहित कुछ पता नहीं
35:18लेकिन निशकामता तुम ढो रहे हो और इस कारण अत्याचार सब बरदाश्ट कर रहे हो
35:30निशकाम भी वही हो सकता है जो अपना हित जानता हो
35:35फिर वो छोटी चीजों के पीछे नहीं भागता, इसको कहते हैं निश्कामता
35:39आप लोग तो अपना वास्तविक हित पहचानी और उसके लिए अड़ना सीखिए
35:51लड़ना सीखिए
35:53ये शराफत का धोंग हटाईए
35:59आपकी सज्जनता पाखंड है
36:05अच्छा छोड़ा, सोचते है
36:11हमें पता है हम कौन है
36:15हाँ, genetically हम वही है
36:18जो European है, Nordics है, वो सब लोग है, उधर वाले
36:22है ना, वही है
36:24है ना, उन्ही की शाखा है वो इरान आती है
36:29इरान तो शब्द ही आरे से बना है
36:31इरान तो शब्द ही इरान है ना, वो आरे से ही निकला है
36:37हम वही है
36:38हम वही है
36:41पूरा भारत वही है
36:43हाँ, कुछ और जनजातियां थी भारत में
36:46वो भी है
36:47पर कम से कम उत्तर भारत में ज्यादा तर जो लोग है
36:50जैनिटिक रूप से वो वही हैं जो इरानी है
36:54बलकि वो वही हैं जो यूरोपियन लोग भी है
36:57तो आप बताईए आपके कंधे इतने कम चोड़े क्यों है
37:00ये कैसे हो गया
37:06इरानी महीलाएं देखी
37:09इरान के पहलवान ओलम्पिक्स में बहुत जीतते हैं
37:12अगर हम वही हैं तो आप ऐसी कैसे हो गई
37:16ये किस ने किया
37:17ये कई कई कई कई कई पीडियों तक
37:23जब ठीक से खाना नहीं मिलता न तब ये होता है
37:26पेठी नहीं जीन्स खराब हो जाते हैं
37:30ये हिया है कि वह आ है हमारे साथ
37:32ये रोप आले तो हमें थोड़ा दूर के लगेंगे
37:44तो पडोस के इरानी हैं उनको देखो ना
37:46हम वही हैं जीन्स बिलकुल वही हैं
37:50रिक वेद जो रिक वेदिक सब देवी दे होता थे
37:58और वहाँ पैहूरा माजदा और जेंडविस्टा वो
38:01वो सब बिलकुल
38:03एकदम निकट का रिष्टा है उनमें
38:08जैसे भाई-भाई का रिष्टा हों कजिन्स हों
38:10हम अगनी की पूजा कर थे वहाँ फाइर टेम्पिल होता था
38:18तो हम ऐसे कैसे हो गए हमारे कद इतना छोटा कैसे रह गया हमारे कंदी कैसे सुकड़ गये
38:24ये कैसे हो गया
38:26खसकर महिलाओं में ऐसे कैसे हो गया और अभी भी आप गाउं वगरा में चले जाओ वहाँ जो व्रिधाएं होती है पाच फिट की भी नहीं होती है
38:34और उपर से कूबर निकलाया होगा ऐसे चल रही होगी वो चार फिट की हो जाती ये कैसे हो गया
38:38और वो बहुत खुश होगी वो बोले कि आरे हम तो भक्त है प्रभू ने जैसी जिन्दगी दिये हम जिये रहे हो प्रभू ने नहीं दिये वो एक सामाजिक साजेश है
38:50तेरा शोशन हुआ है दादी और तुझे पता भी नहीं है तुझे तेरे ही खिलाफ असमवेदन शील करके जीवन भर तेरा शोशन किया गया है
39:20और ये सब कुछ क्या बोल करके निस्वार्थ होना चाहिए परुपकार की भावना रखो
39:36स्वार्थ पाप है, स्वार्थ बिल्कुल पाप नहीं है
39:38स्वार्थ पुर्णे है, बस स्वार्थ पता होना चाहिए
39:44ज्यान है, तो स्वार्थ से बड़ा पुर्णे दूसरा नहीं होता
39:48और अज्यान है, तो तुम निस्वार्थ निश्काम होना भी चाहो
39:59तो हो नहीं सकते
40:00अग्यान है तो निस्वार्थता की आड में तुम स्वार्थ की रोटी से कोगे
40:04तो ले देकर निस्वार्थ होने की कोशिश मुर्खता है
40:12ग्यान है तो अपने आपने स्वार्थ हो जाओगे
40:15और नहीं है ग्यान, तो निस्वार्थ होने की कोशिश में भी स्वार्थ रहेगा
40:18कैसे बचाएं किसी मरीज को जो बचना ही न चाहता हो
40:32जिसके भीतर ये भाव भर दिया गया हो
40:36कि बस तू निछावर हो जा, कुर्बान हो जा
40:45कुछ डर, कुछ लालच, डर ये कि अगर निछावर नहीं होगा तो
40:50बाकी लोग तेरा सब हुका पानी, खाना पीना सब बंद कर देंगे
40:56और लालच ये कि निछावर हो जाएगा तो
40:58सब बोलेंगे अरे देखो सज्जन है, सुशील है, आदर्श है, महान है
41:15बोध, ये ज्यादा जरूरी है
41:24हेलो, मेरा नाम अश्मित है, मैं आचायर जी से लगभग चार साड़े-चार साल से जुड़ा हुआ हूँ
41:43और एक जो मूलभूत प्राबलम सबसे बड़ी समस्या थी, वो थी डर की, एंग्जाइटी की
41:53मुझे याद है कि बहुत ही हाइपर एंग्जाइटी अटैक्स मैंने एक दो बार महसूस की हैं जहेलें
42:02और आचायर जी के साथ कंटिनिवसली उनके सेशन से जुड़े रहना, हर सेशन के साथ डर कम होता गया, कम होता गया, कम होता गया
42:14और अब यह हाल है कि मतलब कोई विशेश डर जैसा तो कुछ महसूस नहीं होता और यह भी समझ में आता है कि अब वो डर आ भी नहीं सकता मेरे लिए, मतलब वो डर मेरे लिए है भी नहीं
42:26तो जिसको एक यह डर की समस्या हो और दूसरी एक समस्या कि कभी भी आप जिंदगी में फील करें कि मैं छोटा हूँ, कमजोर हूँ, दूसरों से कमतर हूँ
42:42तो ऐसे में आचारी जी की संगती करने पर आपको पता चलता है कि आप कमजोर हूँ, वो एक भ्रम था आपका जो आपको एसास कराता था कि आप कमजोर हूँ, आप हो नहीं कमजोर
42:56तो दो समस्या हैं जिसको भी जंदगी में महसूत होती है, एक तो एंग्जायटी डर छो एक ही बाता है, ऑनग्जायटी डर पैनिक्स यह सब चीजे हैं या फिर आपको हीन भावना की समस्या होती है इन �टो सी फील होती है कि मैं अग्छेट हूँ या नहीं मैंपर्यात ह
43:26झाल
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