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बेबाक भाषा के दलित डिस्कोर्स में दिल्ली के श्यामलाल कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर, लेखिका और दलित आंदोलन की मुखर आवाज़ सुमित्रा महरोल जी से बातचीत की लेखक-पत्रकार राज वाल्मीकि ने और उनसे जाना मौजूदा सामाजिक व्यवस्था में शारीरिक चुनौतियों से भी जूझ रही एक दलित स्त्री के संघर्ष की।
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00:00नवस्कार दोस्तों मैं हूँ राजवालमी की और आप देख रहे हैं बेवाग भासा
00:08बेवाग भासा के डलिक डिस्कोर्स में आपका स्वागत है आज हम जिस सक्सिस से आपको रूबरू करा रहे हैं उनका नाम है सुमित्रा महरों
00:23सुमित्रा जी स्यामलाल कॉलिज में पढ़ाती हैं लेखिका हैं और उनकी सख्सियत को देखते हुए मुझे टबी की कुछ बंग्तिया यादा रही है
00:34कि सफलता उनको मिलती है जिनके सपनों में जान होती है पंक होने से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है
00:48तो आज इनी होसलों वाली सक्सियत जिन्होंने टूटे पंखों से परवाज तक का सफर किया है आज हम उनसे करते हैं बात्ची सुमित्रा जी बेबाग भासा में आपका स्वागत है जी नमस्कार जी नमस्कार और अभी हमने बात की कि दलितों का जीवन होता है
01:09चाहे वो पुरुस हो महला महलाओं का तो और भी और खासकर अगर अपने दलित परिवार में एक महला हो और फिजिकली चैलेंज हो तो मुझे लगता उनके सामने बहुत सारे संगर्स बहुत सारी चुनौतियां होती होंगी लेकिन आपने उस पारिवारे जीवन को जीते हु�
01:39आपने ये जो सफर तै किया कैसी कैसी चुनौतियां आपके सामने रहें जहां तक चुनौतियों की बात है तो दलित जीवन से संबंदिज चुनौतियां किसी भी दलित समाज के व्यक्ति के सामने आती हैं उनसे सामना तो उसका तब होता है जब वो होश संभालता है
02:01मगर जो मेरी जन्म के साथ ही या जन्म के लगभग दस महीने बाद ही मुझे पोलियो हो गया था
02:12जिसकी वज़े से मेरे दोनों पैर लगभग 60% तक बेकार हो गए थे
02:18तो जैसे ही मैंने होश संभाला तो मैं देखती थी कि मेरे चारों तरफ का समाज है
02:28जो भी हैं बच्चे हैं या जो भी मेरी देश्टी की सीमा में आते थे
02:32वो सब गतिमान हैं और मैं सिर्फ एक स्थान पे बैठी हुई हूँ या भी सट रही हूँ
02:39तो उस वक्त मैं समझ नहीं पाती थी कि मतलब मेरी ये दशा क्यों है
02:47और जहां तक दलित समाज की बात है कि उसके सामने किसी भी दलित परिवार के सामने
02:57सबसे पहले आजीविका का संकट होता है उसकी परिस्थितियां ऐसी नहीं होती है
03:04कि उसके परिवार में अगर कोई इस तरह का शारिरिक चुनोतियों को जेल रहा बच्चा अगर उसके पास है
03:11तो वो अपनी संपूर्ण ताकत अगर उस पर लगाना भी चाहे तो ना तो उसकी परिस्थितियां होती है और ना ही उनमें इतनी समवेदना भी नहीं होती है
03:22और यह समझ लीजे कि आज से कितना समय पहले लगभग साथ वर्ष पहले तो हमारा समाज उतना जागरूप भी नहीं था
03:30इस पी एक सवाल मेरे मन में आ रहा है समित्र जी कि जैसे वह तो आपने जो बतायों बहुत बच्पन का था लेकिन जैसे जैसे आप बड़ी हुई आपने वह समाला पढ़ाई लिखाई कि मानों 10 साल 12 साल की एज में जब आप थी तो किस तरह की फीलिंस आपके मन में आते �
04:00को उपेक्षिती ही पाया जो बच्चे हैं इस तरह के जो विकलांग बच्चों के साथ जल्दी से गुनते मिलते नहीं हैं ऐसे बच्चे उनके लिए एक कौतु हलका और मनुरंजन का विशे होते हैं तो वो सब उपेक्षा अपमान और अकेला पन मैंने बहुत अबोद अ�
04:30जहां तक मेरा परिवार है मेरी दादी जी जो है वो अक्सर दूसरों से यह कहती थी जैसे कोटु हल्वश कोई भी उन से पूछता था कि यह मतलब क्या हो गया इससे तो पहले तो बताती थी पॉलियो अलियों तो समझती नहीं थी वो यह कहती थी हवा मार गई और अब हम �
05:00शब्द थे कि अब हम इसे खूब पढ़ाएंगे, वो कहीं मेरे जहन में दर्ज रह गए थे, तो जब से मैंने स्कूल जाना शुरू किया, प्रात्मिक शिक्षा और उसके बाद माध्यमिक, फिर जो है कॉलेज की, फिर यूनिवर्स्टी की, तो वो शब्द मेरे जहन में कही
05:30कि वहां से दुखी होने के बाद मुझे लगता था कि फिर वही दादी की बात याद आ जाती थी, कि अब मुझे खूब पढ़ना है, तो फिर मैंने अपना ध्यान बच्पन से ही, अपनी स्टडीज की तरफ ही केंवरित कर लिया था, और मैं ये सोचती हूँ, कि मैं जो कु
06:00तो साहिते ने ना केवल अपने पैरों पर खड़ा होकर मुझे आर्थिक, मतलब आत्म निर्भार तो मुझे बनाया ही, मगर इसके साथ ही जो साहिते, चूंकि हम समझते हैं कि समाज से हमें जोडता है, और हमारी संबेदनाओं का विस्तार करता है,
06:19कि आपकी रुची कैसे हुई, कोई घर में ऐसा माहोलता है, मैं पहले वह वाली बात तूरी कर दो, मतलब फिर उस साहिते ने मुझे व्यक्ति को और समाज को समझने में मदद की, कि व्यक्ति की मनों भावनाएं क्या होती है, या समाज के कमतर वर्गों के प्रती, जो मुख
06:49कि हमें उन कठिन चुनोतियों का, परिस्थितियों का, उपेक्षा का, अपमान का, उसको अंदेखा करते हुए, हमें कैसे अपना रास्ता बनाना है, तो ये, साहिते आपको काफी प्रेणा मिली, मुझ याद है आपको उस समय आपके प्रियलेखक कहन हुआ करते थे, इसकी
07:19ये, शे, पांच, छे-साथ ऐसे होंगी शायद, तो मेरे पड़ोस में बच्चियां, जो मेरे से कुछ बड़ी बच्चियां थी, लड़कियां थी, जो दिल्ली पब्लिक लाइबरेरी से किताबे लाला के पढ़ती थी, तो मैं उनसे मतलब मांग कर फिर मैं किताब पढ़न
07:49उस गर के बच्चे मैं पढ़ने जो जो लिए उसे साहित्य को
08:06मुझे मोगा मिला मतलब जो व्यवर्वात बच्चों की कहानियों से ही
08:11नन-न चर्द मामा फोल जू नबाल पढ़ने लेसं गई
08:15एह हैं और दिलि पब्लीक लाइब्रेरी से जो लो कथाएं और यह सब
08:18लाला की जो पड़ती थी तो वहीं से यह कहिए कि साहित्य के प्रती प्रेम का जो अंकुर है वो मेरे अंदर पनप गया था और फिर बाद में वो पुष्पित और पल्लवित होके और धीरी धीर अक्से होता है कि हमने आपने जुस जमाने की बात है पड़ाई कि उसमें मुझ
08:48और प्रेमचंद की इदगाहा है बुड़ी काकी है यह सब बहुत बच्पने में नॉर्मली यह कोर्स में होती थी तो उसके बाद जब आप कॉलेज गई तो उस समय जो आपने पड़ा तो आपने जैसा जिकर किया है कि आपने दो पन्यासकारों को चुना अपने लेखने प
09:18तो क्यों आपके मन में आया है कि इन लोगों को ही चुना जाए जैसे कि मैं आपको बताना चाहूंगी कि अमरितलाल नागर जी का एक उपन्यास था
09:30सुहाग के नूपूर उसके उपर मैंने एमफिल की थी और पी एच्टी मेरी नागर जुन के उपन्यासों के उपर थी तो चुनकि ये समाजिक जीवन से जुड़े हुए दोनों ही लेखक जो हैं उन्होंने समाज का बहुत गहराई से अध्यन किया था और अमरितलाल नाग
10:00के उपर ही मैं अपने जो भी अध्यन को केंदरित रखू तो इसलिए ना गार जुन को भी एचिन मतलब
10:11उसे पहले में पढ़ चुकी थी जैसे कि चु की मेरी
10:15साहित्य तो जीवन को अपने लेखन का आधार बनाया है अहि leaned
10:26जीवन की जोबी हैं के उनके में कपते होब Шokje
10:36अशे मं कि नहीं पड़े लेकिन मैंने उनकी कए दो
10:40अपने कोर्स में एक थी बागल को घिरते देखा है और एक अकाल और उसके बाद तो आपने बिल्कुल सही चुना अब एक चीज़ मन में आती है और हमारे दुर्सक भी जानना चाहते हैं
10:57कि आपने अपनी आत्मकरथा लिखी तूते पंक्वासे परवाज तरह तो आत्मकरथा लिखने की हिब्ड़ भी समय नहीं होती तो आपने लिखा तो तो क्या आपके मन में आये था कि
11:22क्यूं आपको लगा कि आत्मकत्रा लिखी जानी चाहिए?
11:26मुझे बस ऐसे लगा कि जिस समाज से मैं हूँ,
11:30मतलब दलित समाज से भी और साथ में विकलांग समाज का भी प्रतिनी दित्व कर रही हूँ,
11:37तो हमारे जीवन के बारे में बहुत कम लिखा गया है,
11:42तो हमारे जीवन के जो सच्चाईयां हैं, हमारी चुनोतियां, हमारे संगर्ष, हमारी आकांशाएं, हमारे सपने,
11:51मुझे लगता है कि इसके बारे में जो दूसरा मुख्यधारा का समाज है, उसे पता होना चाहिए,
11:58तो अब किसी ना किसी को तो इसकी शुरुआत करनी ही थी, और हमारे बारे में कोई दूसरा लिखे, जो कि उस तरह की चुनोतियों को उसने स्वयम ना जहला हो,
12:13तो मुझे नहीं पता कि मतलब उसमें कितनी सक्चाई होगी, तो बेहतर यही है कि हम अपने जीवन की प्रमानिक अनुभूतियों को अगर खुदी वानी देते हैं, तो इससे बेहतर तो कुछ हो नहीं सकता.
12:29मुझे इसका दूसरा पहलो भी नज़राता है, कि जैसे आपकी आत्मकता पढ़के पाठक जो होंगे, काफी प्रेरित होंगे, कि भी देखिए, कहां से कहां कर, किस तरह किन संगर्सों से गुजरते हुए, आपने अपना सफर तै किया.
12:43जैसा कि मैं इससे पहले भी बताई चुकी हूँ, कि मैं हमारे जो विकलांग जीवन की जो भी सक्चाईयां होती है, बहुमुखी सक्चाईयां, उससे समाज को परिचित कराना चाहती थी, इसलिए मैंने इस आत्मकता का लेखन किया, और ये बताते हुए मुझे बहुत अ�
13:13मुझे लग रहा था कि सिरफ इसका छपना जरूरी है, इसलिए मैं बहुत जादा भटकी नहीं, और जहां से मतलब उन्हों संजीब चंदन जी ने आगरे किया और मैंने उन्हें ही दे दी थी, और उसके बाद मगर पाठकों ने इस पुस्तक को हाथों हाथ लिया, और पा�
13:43गरिमा श्रीवास्तव और रजत रानी मीनू और मतलब कापी अच्छे लेकों ने और इस पे सर्वेश मौरिया, प्रोफेसर सर्वेश मौरिया, कर्मानंद मौरिया इन सबने इनकी समिक्षाएं लिखी हैं और इसके साथ ही मुझे बताते हैं बहुत अच्छा लग रहा है क
14:13विकलांग जिनको हम कहते हैं तो ऐसे लोगों के प्रति आप से जानना चाहता हूं कि समाज का कैसा वहार होता है और सरकार इन हमारे देश के विकलांग हो कुछ भी कहें लेकिन हैं तो हम सब इस देश के नांगरिक तो क्या सरकार इनके साथ कुछ नयाय कर पाती है दो ची�
14:43क्या नयाय कर पाती है मैं बारी बारी से दोनों आपके जिग्यासाओं का उपतर देने की कोशिश करूँगी तो देखिए मैं ना अपने जीवन का एक बहुत बड़ा हिस्सा जी चुकी हूं अब मैं साथ वर्ष भी कंपलीट कर चुकी हूं जी लेकिन आप लगती नहीं है
15:13उन समग्र अनुभवों के आधार पर में कह सकती हूं कि समाज इस वर्ष के प्रती बिल्कुल भी संबेदन शील नहीं है चाहे वो व्यक्ति
15:23मतलब अपनी शारिविक चुनोतियों से उपर उठकर कोई अच्छा मुकाम हासिल कर भी लेता है तो वो उनसे अप्चारिक ही बने रहते हैं
15:36मतलब उनसे स्लेहे का और सम्मान का रिष्टा तो मुश्किल सही शायद या यह कह लिजे कि कुछ दो-चार लोग ही उनके साथ अपने मन की अंदरी उन्हों ही तहों में भेदभाव की भावना ना रखते हों
15:53अक्सर तो जारतर 95 परसंट तो उन्हें चाये वह कितने भी बड़े उचे ओधे पर हो उन्हें कमतर ही समझते हैं और समाज की मानसित्ता अभी भी यही है
16:08मतलब ऐसे विक्ति को वो कम तरी समझेंगे, मतलब उसकी जो अन्य जो भी उसकी विशेष्ताएं हैं, या उसकी जो भी उपलबदियां हैं, वो तो कहीं बाद में आएंगी, पहले जो भी उसकी शारिक जो भी विकृती है या जो कुछ भी है, उनके दिमाग में वहीं सबसे �
16:38विकलांग व्यक्ती से पहले ही उसकी विकलांगता अपना परिचय दे देती है,
16:45जैसे कि मानलो मैं अब सौ कदम दूर से आरी हूँ
16:48और कोई व्यक्ती मुझे यहां से देख रहा हो,
16:51तो पहले वो मुझे नहीं जान पाएगा मैं कौन हूँ, क्या हूँ,
16:54पढ़ाती हूं कितनी मेरी शिक्षा है या मेरी पारिवारिक प्रिष्ट भूमी क्या है वो इसे नहीं जानता सबसे पहले ही उसे दिखेगा कोई मतलब कोई हमसे अलग कोई व्यक्ति आ रहा है और मतलब वो चवी जो भी विकलांगता से संबती चवी उसके मस्तिष्क में अं
17:24इंप्रेशन एक बार अपने से कम समझ लिया तो फिर चाहिए आप बताते ही रहो मगर फिर वो इसको कह सकते हैं कि संबेदन से व्यक्ति तो ऐसा नहीं से तो मुझे तो नहीं लगता है कि आज से 20 साल पहले का समाज तो फिर भी मैं कह सकती हूं कि थोड़ा बहुत संबेद
17:54से तो नहीं चाहता है मगर कुछ लोक लाज का भै था तो अपनी अंदरुनी भावनाएं चुपा लेता था मगर आज के उदारी करण और भूमंडली करण आज के दौर में तो व्यक्ति अपने आप में इतना केला हो गया है उसकी बहुत चुनोतियां मतलब सामाजी का आर्
18:24हैं विकलांगों के प्रती उनके जो भी है री हैबिलिटेशन के लिए पैंशन की हैं और अगर रोजगार वगएरा शुरू करना चाहें तो कागजी तो पर देखा जाए तो कोई योजनाएं तो हैं और मगर उन योजनाओं का लाभ लाभारती तक कितने अंशों में पहु
18:54हैं अगर वो शिक्षा का से उतने शिक्षित नहीं हो पाए हैं उतने जोके उत्यादी से परिचित नहीं है तो इसक आप कहा लेकिस्टार की जो
19:09प्रोसेस है, इसकीम की, जो प्रोसेस है, वो मतलब क्या कम्प्लिकेटेड है, सरल होनी चाहिए, क्या लगते हैं?
19:18यहां पर मैं यह कहना चाहूंगी, जो समाज में फैला हुआ ब्रष्टाचार है, वो अगर खतम हो जाए और जो भी सरकार, केंदर और राज्य सरकारें हैं, वो वास्तव में उनकी इच्छा हो, कि हमें समाज का यह वाला जो वर्ग है, इसको मुख्यधारा में लाना है, इसक
19:48और दिल से प्रयास भी सरकार, मतलब सरकार कौन है, यह सारे हम लोग ही तो मिलके बने हुए हैं, मतलब सरकार में जो उन्होंने मान लीजे कोई योजना बनी है, उसे कार्यान में तो जो निचले विभाग होते हैं, वही करते हैं, तो जब तक वो समवेधन शील नहीं होंग
20:18जरूरी है, और इस बीच में अगर कुछ अर्चने भी हैं, तो उन्हें कैसे दूर किया जा सकता है, जब तक यह वाली मतलब मन से सोच नहीं होगी, वरना तो वो कावेधन शील होके महां तक पहुँचके और उन योजनाओं को असली जामा पहनाने की प्रती जब तक वो भ
20:48तो क्यों ना उनको ही हायर पोस्ट पे, पॉवर्फुल जो पोस्ट है, अगर वो दिव्यांगों को ही दे दिया जाए सरकार के सब्दों में, तो ज़्यादा अच्छा नहीं रहेगा, क्योंकि वो बहतर समझेंगे उन चीजों, यह भी हो सकता है, मगर वही वाली बात है, क
21:18जो भी बात हमारी कर रहे हैं, यह शहरों में रहने वाले जो विकलांग हमारे भाई भेहन हैं, उनके लिए बात नहीं कर रहे हैं, यह इस तरह की मतलब विकलांगता से पीडिट प्यक्ति तो कहीं भी हो सकता है, दूर दराज गाहों में हो सकता है, किसी बीमारी की वज़े
21:48ब्रहष्टा चार दूर नहीं किया जाएगा यह सारी चीज़ें आपस में जुड़िये हुआ है तो उनके लिए आप कुछ कहना चाहेंगे
22:10बस सबसे पहले मैं उनसे यही कहना चाहोंगी कि अपना सहारा आपको खुदी बनना है और अपने आत्म बल से आपको अपने आपको यह समझाना जरूरी है कि बाहर से कोई अपकी मदद करने आए या ना आए आपको यह दृष्टी अपनानी है यह सोचना है
22:33कि मैं ऐसा कौन सा रास्ता अपना हूँ जो कि मेरे जीवन को अच्छा बना सके,
22:41मुझे जीवन में आगे बढ़ाने के और तरक्की के रास्ते जो खोल रहा है,
22:46पहले अपने मन में द्रड संकल्प लेने के बाद,
22:49शिक्षा, मतलब शिक्षा के बगएर तो कुछ नहीं हो सकता है,
22:53अपने आपको शिक्षा के प्रती जोंक देना है,
22:57चाहे रास्ते में कितनी भी बाधाएं क्यों ना आएं,
23:01मगर जो है, शिक्षा को नहीं छोड़ना है,
23:05और आपके आसपास जो भी लोग होंगे,
23:09वो तो आपका मनोबल तोड़ने की बहुत कोशिश करेंगे,
23:12उससे नहीं घबराना है, हमेशा आपने आपको सकारात्मक रखना है,
23:17और अगर आप इन चीजों पर भी अमल कर लेते हैं,
23:22इन बातों पर भी अमल कर लेते हैं,
23:24तो मुझे लगता है कि एक सामानने व्यक्ति की तरह जीवन जीने में अवश्य ही काम्याब हो जाएंगे।
23:29सुमित्रा जी, आप एक लेखिका भी हैं,
23:32तो हम जरूर जानना चाहेंगे कि आप लेखन में क्या-क्या लिखती ही पड़ती हैं,
23:37जो कहानिया ही लिखने के अलावा माल लीजेए अगर कोई रचना मुझे बहुत अच्छी लगती हैं,
23:49मेरे मन को बहुत चूती है, तो उसकी समिक्षा लिखना भी मुझे अच्छा लगता है।
23:53के उसकी समिक्षा लिखना भी मुझे अच्छा लगता है कहानी संग्रह कोई टा stack कानी संग्रह बस थोड़े दिनों में आने वाला है जो सुऔर्य
24:03कि अजय जी है अच्छा प्रकासन धीन है वो हां आ गया है करने का मतलब वो कह रहे थे के चंद महीनों में ही शायद आने वाला है संग्रह और कविता हैं कविता थोड़ा कम लिखी है लेकिन लिखी है थोड़ी बहुती लिखी है ज्यादा नहीं कि अगर आपको कोई कविता म
24:33अब को याद है कि प्रज्वलन के नाम पर पानी की छीटे मार कर मुझे बुझाते रहो खुद हाथ सेखते रहो कह कहे लगाती रहो पर अब नहीं आउंगी मैं जासे में धूर्त बहेलियों के फांसे में नहीं पढ़ने दूंगी खुद पर बहकावे का पानी भीतर की अ�
25:03बहुत बहुत बहुत बहुत मुझे लगता है हमारे दिर से मुझे पसंद आई होगी आपने कविता बिल्कुल दिल से लिखी और मिनी फीलिंग्स हैं इसमें काफी समझने लाइक चीज़े हैं और क्योंकि अब लेखन की बात चल लिए है तो हम जरूर्श हैंगी कि दलित �
25:33अपने वारे में लिखा एक सवाव डूसरा है कि अगश्या री जूर्श ऑर इस्विमर्श में आप क्या फर्त देकती है किस नजरिये से लेखती है मेरे यह दो सवाल है
25:42राज जी जो है हमारे जितने भी पुरुष दलिट साहितेकार हैं लेखक हैं उन्हों में उन्होंने भी जो है इस्त्रियों के उपर लिखा है आप जो है उम्परकाश वालमीकी जी सुरजपाल जी और महंदास नेमिश्राय जी इन सब
26:04जो है अपनी रचनाओं में स्त्रियों को केंद्र में रखा है और इस त्री जीवन के बाहिये पक्ष हैं जो बहुत सारे मुद्दे हैं वो उनकी रचनाओं में भी आए हैं तो ऐसा नहीं है कि हमारे दलित लेकपों की द्रिश्टी सिर्फ पुरुषों की तरफ ही रही हैं उ
26:34परिवेश उसमें उभरता है तो जैसे कि जो है आप जूठा नहीं लेंगे तो उसमें उनकी माता जी का जिक्र है और भी कई स्त्री पात्र उसके अंदर आई है और उन्होंने मतलब स्त्रियों को रखा है अपने रचनाओं में सुरजपाल जी ने भी रखा है और दूसरा आ�
27:04नहीं है वह बात करता है जाती से संबंदित हमारे समाज में जो भेदभाव मुझूद है जी कि जाहिए वो मुखेदारा का समाज हो मतलब वह ज़िव मर्श के अंदर इस तरिया जाती से
27:21जो मुद्दे हैं जो चुनोतियां हैं उनकी चर्चा के साथ पित्र सत्ता के कारण उनको क्या क्या कुछ झेलना पड़ता है चलते जलते एक सवाल और आप से कर लेते हैं कि आप इतने सालों से पड़ा रही हैं लिख रही है क्या समाज ने आपके इन उपलब्दियों को पह�
27:51तो क्या कुछ आपको किसी तरह के पुरस्कार अवार्ड कुछ मिले हैं जी जी मुझे जो है दलित असमिता सम्मान 2018 मिला था और इसके अलावा लाड़ली मीडिया अवार्ड ये भी मुझे मिला था और बहुत ही भव्य है उसमें बंबई का है एक एने पीसी या कोई बहु
28:21और इसके अलावा ओम प्रकाश वालमी की सम्मान जो साहित्ते चेतना मंच वो देते हैं वो भी मिला है इसके लावा और भी हैं कई छिट-पुट तो प्रोधसान सवार्ग मिले हैं आपको लगता है कि कहीं तो मुझे एक पहचान मिली सम्मान पुरसकारों की वैसे मुझे �
28:51देखेंगे जादा से जाधा लोग आपके कहानी संग्र को पढ़ें आपकी आत्म कथा को पढ़ें और मुझे लगता है अपने दरसकों से भी मैं कहना चाहूंगा कि सुमित्र महरोग जी की जो आत्म कथा है तूटे पंखों से परवाज तक मैं चाहता हूँ साथिव आपक
29:21महरोल जिसे हमें बातचित कर रहे थे साथियों काफी प्रिणास्पद पर्सनालिटी और आगे हम
29:28कि मिलेंगे किसी और सक्सेत के साथ नमस्कार
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