00:00अब जो बोले ना जे, रूट तो फिक्स होई जाता है, ना अब जब आ रहा है अपि, मैं निकली थी, जिक लेकर, कि यूदि रूट यहां पर ठिक नहीं है, तो फिर मैंने एक जगा में तीन-चार बर मैंने गुणी, तो फिर मैंने देखी कि उटी से नहीं होगा, तो इस उ
00:30सागर सरिता का जो उदाहरण है, वो यही बताती है कि नदियों को देखो, कोई नदी ऐसी नहीं होती, जो अपना रास्ता ना बदलती हो, और कोई नदी ऐसी नहीं होती, जो सागर बदल देती हो, और कोई नदी ऐसी भी नहीं होती, जो अपना पहाड, माने अपना उदग
01:00पहुचना सागर तक की है, नदी चलती है तो अपना ऐसे रास्ता बदलती चलती है तो वो लचीला पन वो लोच, फ्लेक्सिबिलिटी होनी चाहिए, मुझे पता है मुझे जाना कहा है तो उसके लिए ऐसे जैसे जैसे भी जाना पड़े मैं जाओंगी, नदी जा रही है उसक
01:30सोख लेता है तो तब एक आवाज आती है समान से पागल तुझे सागर था की पहुंचना है ना कि हाँ तुम मिट जा भाब बादल बनेगी और बादल तुझे रेगिस्तान के पार ले जाएगा तु सागर पहुंच जाएगी
01:46मंजल से इस कदर प्यार होना चाहिए कि वहाँ पहुंचने के लिए रास्ता बदलना तो सुईकार है रूप बदलना भी सुईकार है
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