00:00कुरु क्षेत्र का मैदान शांध था, हवा में धूल थी, पर वातावरण में एक गहरी बेचैनी, अर्जुन रत पर बैठे दूर क्षितिज की ओर देख रहे थे, उनके मन में एक नया प्रशन उट रहा था, कृष्ण मुस्कुराते हुए रत का सारथ्य कर रहे थे, मानो अ
00:30क्रिश्ण थोड़ा मुस्कुराए, हवा के हलके जोंके जैसे उनके शब्दों को भी स्पर्श कर गए, क्रिश्ण पार्थ, ये समझने के लिए पहले ये जानना आवशक है, कि सहार क्या है, क्या तुम इसे विनाश मानते हो, अर्जुन, हाँ केशव, जब कुछ नष्ठ ह
01:00कोई भी तत्व नहीं नष्ठ होता, केवल अपना रूप बदलता है, जैसे बीज मिटी में मिलकर व्रिक्ष बन जाता है, व्रिक्ष लकडी बनता है, लकडी अगनी में बदलती है, और अगनी फिर आकाश में विलीन हो जाती है, पर क्या कभी कुछ वास्तव में नष्ठ ह
01:30जब कारण समाप्थ हो जाते हैं, जब किसी रूप का करतव्य संपन्न हो जाता है, तब प्रकृती स्वयम उसे बदल देती है, मैं केवल उस प्रकृती का अधिश्ठ हाता हूँ, उसका संचालन करता हूँ, किन्तु साहार की इच्छा नहीं करता, स्रिजन और साहार दोनों
02:00जगमगाने लगा, कृष्ण, हे अर्जुन, जब अत्याचार बढ़ता है, जब सत्य और धर्म खत्रे में पढ़ जाते हैं, जब संसार का संतुलन विगड़ जाता है, तो मैं काल बनकर प्रकृत होता हूँ, मैं सहार नहीं करता, मैं केवल उस राह को खोलता हूँ, जिससे
02:30अर्जुन, तो हे जनार्दन, क्या हम सहार से डरे, कृष्ण ने धीरे से कहा, कृष्ण, पार्थ, जिसका जन्म हुआ है, उसका परिवर्तन निश्चित है, उसका भय अनुचित है, सनहार मृत्यू नहीं, नया आरंभ है, और परमात्मा किसी को नश्ट नहीं करते, वे के�
03:00अर्जुन, हे केशव अब समझ गया, पर मात्मा सहारक नहीं, वे तो परिवर्तन के नियनता हैं। कृष्ण, मुस्कुराई, यही सत्य है धनन्जय।
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