00:00कुरुक्षेत्र का मैदान, दो सेनाएं आमने सामने खड़ी थी, लेकिन अर्जुन के मन में अभी भी कई शंकाएं थी, वे रत पर बैठे गहरी सोच में दूबे थे, श्री कृष्ण मुस्कुराते हुए उनकी और देख रहे थे, अर्जुन विनम्र होकर,
00:16कृष्ण, तुमने कर्म, अकर्म और विकर्म की बात की है, कर्म और अकर्म मैं कुछ समझता हूँ, पर विकर्म क्या होता है, ये समझने की मेरी बुद्धी अभी सक्षम नहीं है, कृपा कर मुझे समझाओ,
00:29कृष्ण, एक शांत मुस्कान के साथ, पार्थ, सुनो, विकर्म वो कर्म है, जो नियम, धर्म और मर्यादा के विरुद्ध हो, ऐसा कार्य जो अनुचित, अनैतिक, हिंसक, अधर्म या लोभ मोह से प्रेरित हो, अर्जुन, गंभीर होकर, तो क्या हर गलत कर्म विकर्म है, क
00:59जिसे करते हुए भीतर से आवाज आए, ये उचित नहीं, वह विकर्म कहलाता है, अर्जुन, मधुसूदन, पर युध्र तो हिंसा है, तो ये कैसे धर्म हो गया, क्या ये भी विकर्म नहीं, क्रिश्न, गंभीर स्वर में, पार्थ, किसी भी कर्म का फल, उसकी भावना और
01:29से मुक्त करने के लिए, और न्याय की स्थापना के लिए है, इसलिए ये धर्म युध है, विकर्म नहीं, अर्जुन, तो विकर्म केवल बाहली कारे नहीं, बलकि मन की प्रवृत्ती से भी तै होता है, क्रिश्न, बिलकुल अर्जुन, कर्म बाहरी है, पर उसका धर्म अध
01:59अब समझ गया केशव, कर्म वही, जो धर्म के अनुरूप हो, अकर्म हो, जिसमें बुद्धी जागरित रहे, पर कार्यना हो, और विकर्म हो, जो अधर्म पर आधारित हो, क्रिश्न, अर्जुन के कंधे पर हाथ रखते हुए, सही कहा पार्थ, याद रखो, धर्म की रक्�
02:29अपने गांडीव को संभाल कर खड़े हुए, अपने धर्म, अपने कर्तव्य और अपने पत को पहचान कर।
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