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  • 3 days ago
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Transcript
00:00कुरुक शेत्र के विशाल मैदान में युद्ध से पहले की ठंडी हवा बह रही थी
00:04अर्जुन अपने रत पर खड़ा था धूल भरीक शितिच को चिंतित आँखों से देखता हुआ
00:10उसके मन में अनेक सवाल उठ रहे थे
00:12जीवन, कर्तव्य, जन्म, मृत्यू और स्रिष्टी को लेकर
00:17वो धीरे-धीरे बोला
00:18मधुसूदन एक बात मन में कौन रही है
00:22क्या ये सारा संसार, ये जीव, ये पेड़ पौधे, ये अनंत आकाश
00:27क्या सब कुछ परमात्मा से ही उत्पन्न हुआ है
00:29क्रिष्ण मुस्कुराए, उनका चहरा सूर्य की किरणों जैसा शान्त और उज्वल था
00:35उन्होंने सार्थी की लगाम को हलके से ढीला किया
00:38और अर्जुन की ओर मुड़ कर बोले
00:40पार्थ, जैसे समुद्र से लहरे उठती हैं और फिर उसी में लीन हो जाती है
00:45वैसे ही संपूर्ण जगत मुझसे प्रकट होता है और अंत में मुझमें ही वापसाता है
00:51स्रिष्टी का मूल कारण, उसका आधार और उसका अंत सब एक ही परमचेतना है
00:57स्वहम वही चेतना अंगिनत रूपों में प्रकट होकर ये संसार बनाती है
01:02अरजुन ने विश्मित होकर पूछा, तो क्या हम सब उसी का अंश है?
01:08क्रिष्टन ने सिरह लाया, हाँ अरजुन, जैसे सूर्य की किरन सूर्य से अलग नहीं होती, वैसे ही जीव परमात्मा से अलग नहीं है
01:16रूप बदलते हैं, शरीर बदलते हैं, पर भीतर का प्रकाश वही रहता है
01:22संसार स्थाई नहीं है, पर जिस चेतना से वो उत्पन होता है, वो शाश्वत है
01:27अरजुन के चहरे पर शान्ती उतराई, उसने धनुष को उठाया और बोला
01:32ये कृष्ण अब समझ गया, जब सब कुछ उसी से उत्पन है, तब कर्तव्य भी उसी की देन है, मैं अपने धर्म का पालन करूँगा
01:41कृष्ण मुस्कुराए, यही सत्य है धनन्जय, ज्यान से अरजित हुई स्थिरता ही मनुष्य को सही मार्ग दिखाती है
01:49और फिर रत आगे बढ़ा, जैसे स्वयम समय ने एक नया अध्याय लिखना शुरू कर दिया हो
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