Mission Bhagavad Gita Day 51 | अर्जुन और पूज्य गुरु | Hare Krishna Bhakti Vibes Hare Krishna dosto! 🙏 Mission Bhagavad Gita श्लोक दिवस 51, अध्याय 2, श्लोक 2.4
भावार्थ: अर्जुन ने कहा – हे मधुसूदन! युद्ध में मैं भीष्म पितामह और द्रोणाचार्य जैसे पूज्य गुरुओं पर बाणों से कैसे प्रहार करूं? हे अरिसूदन! वे तो पूजनीय हैं, उनका युद्ध में सामना कैसे करूं?
जब अर्जुन युद्धभूमि में अपने ही पूज्य गुरुओं को सामने देखता है, तो उसका मन कांप उठता है। वह कृष्ण से पूछता है — 'हे मधुसूदन! मैं कैसे अपने गुरु द्रोण और पितामह भीष्म पर बाण चला सकता हूं? वे तो मेरे पूज्य हैं… शत्रु नहीं!'
यह केवल युद्ध नहीं, धर्म और संबंधों की एक भीषण परीक्षा थी, जहां अर्जुन के सामने धर्म, कर्तव्य और करुणा—तीनों टकरा रहे थे।
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00:00हरे कृष्ण दोस्तों, मेरा एक ही लक्ष्य है, श्रीमत भगवद गीता के साथ सो श्लोकों को हर दिल तक पहुचाना, अगर यह ज्यान आपको छू जाएं, तो इसे साजा कीजिए और जुडिए मेरे साथ इस मिशन में।
00:30भावार्त, अर्जुन ने कहा है मधुसूदन, युध में मैं भीश्न पितामा और द्रोवाचारिय जैसे पूजे गुरुओं पर बाणों से कैसे प्रहार करूँ।
01:00अपने गुरु द्रोण और पितामा भीश्म पर बान चला सकता हूँ। वे तो मेरे पूज हैं।
01:06शत्रो नहीं। यह केवल युध नहीं, धर्म और संबंधों की एक भीशन परीक्षा थी।
01:14जहां अर्जुन के सामने धर्म, कर्तव्य और करुणा तीनों टकरा रहे थे।
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