Mission Bhagavad Gita Day 53 | Arjuna ka Man Dwandwa | Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 2.6 Explained | Hare Krishna Bhakti Vibes अर्जुन के मन में युद्ध से पहले उठे द्वंद्व को दर्शाता है यह श्लोक। वह सोचता है — “क्या जीत मेरे लिए श्रेष्ठ है या हार?” क्योंकि जिनके विरुद्ध वह खड़ा है, वे ही उसके अपने हैं। यह मोह, यह भ्रम… उसकी आत्मा को झकझोर देता है। भगवद्गीता का यह अध्याय हमें सिखाता है — जब जीवन में भ्रम हो, तब केवल धर्म और कर्तव्य ही मार्ग दिखाते हैं। This verse reveals Arjuna’s inner conflict before the war — He wonders, “Is victory truly mine if it costs me my loved ones?” Bhagavad Gita Chapter 2, Shloka 2.6 teaches us that in times of confusion, only Dharma (righteous duty) can guide the soul toward clarity and peace.
📖 Join Mission Bhagavad Gita – One Shloka a Day with Hare Krishna Bhakti Vibes 🙏 हर दिन एक श्लोक, हर दिन आत्मा का उत्थान। जय श्रीकृष्ण।
00:00हरे कृष्ण दोस्तों, मेरा एक ही लक्ष्य है, श्रीमत भगवत गीता के साथ सौ श्लोकों को हर दिल तक पहुचाना, अगर यह ज्यान आपको छू जाएं, तो इसे साजा कीजिए और जुडिए मेरे साथ इस मिशन में,
00:13मिशन भागवत गीता श्लोक दिवस्तिरपन अध्याय दो, श्लोक दो दशमलव छै, न चैतद विद्मा कतर्नो गरियो, यद्वा जयन यदीवानो जययुआ, याने भत्वा न जिजी विशान, स्तेवस्थिताह प्रमुखे धार्तराष्ट्रा है, भावार्त, हमें यह भी न
00:43भूमी में खड़े हैं, धृत्राष्ट्र के पुत्र, आज मैं युद्ध भूमी में खड़ा हूँ, लेकिन दिल उल्जा है, क्या जीप मेरे लिए श्रिष्ठ है, या हार्त, क्योंकि जिनके विरुद्ध खड़ा हूँ, उन्हें मार कर भी मैं जीना नहीं चाहता, वे ही,
01:13्या जे बत्त सय्टाइबूँ, झाला क्योंकि झाम, सर्वकित है, भी में है, क्योंकि पुत्त स्थ्टेतर्ग के जिनके हैं, क्योंकि भी में स्ट्ब्राण श्रिशों, भी में जीने, पुत्व bishopा ता फड़ नहा हूग
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