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Death ke Baad 13 Din ke Hindu Niyam Explained | Religious & Scientific Meaning of Mourning Period | Hindu Rituals After Death
मृत्यु के बाद 13 दिन के हिंदू नियम | धार्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गहरा अर्थ

मृत्यु… जीवन का सबसे बड़ा सत्य। लेकिन जब कोई प्रिय व्यक्ति इस संसार को छोड़ जाता है, तो हिंदू धर्म में परिवार 13 दिनों तक कई नियमों का पालन करता है — नए कपड़े नहीं पहनना, उत्सवों से दूर रहना, और केवल साधारण भोजन करना।

क्या आपने कभी सोचा है कि इन नियमों के पीछे क्या कारण हैं?
क्या यह सिर्फ परंपरा है या इसके पीछे कोई गहरा आध्यात्मिक और वैज्ञानिक रहस्य छिपा है?

इस वीडियो में जानिए –
🔸 मृत्यु के बाद आत्मा की यात्रा का आध्यात्मिक पक्ष
🔸 13 दिन तक अशौच और शोक के पीछे छिपा विज्ञान
🔸 श्राद्ध, पिंडदान और “तेहरवीं” की वास्तविक महत्ता
🔸 मानसिक और भावनात्मक healing का मनोवैज्ञानिक कारण
🔸 अन्य धर्मों में mourning period की तुलना

यह वीडियो बताएगा कि कैसे धर्म और विज्ञान दोनों एक ही सत्य की ओर इशारा करते हैं — मृत्यु अंत नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत है।

जय श्री कृष्णा 🙏
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Transcript
00:00मृत्यू, ये एक ऐसा सच है, जिसे कोई नकार नहीं सकता।
00:05जब हमारे अपने इस संसार से विदा लेते हैं, तो सिर्फ शुन्यता और पीडा नहीं आती, बलकि कई तरह के प्रश्न भी उठते हैं।
00:14खास कर हिंदू समाज में जब कोई अपने शरीर को छोड़ता है, तो परिवार पर कई तरह के नियम, व्रत और रिस्ट्रिक्शन आ जाते हैं।
00:44आज के इस विडियो में हम विस्तार से समझेंगे कि मृत्यू के बाद तेरा दिन तक हिंदू परिवार इतने नियम क्यों मानते हैं।
01:14परिवार में एक दृष्टिकोन, स्पिरिचुल एंगर, एक आत्मा की यात्रा।
01:18हिंदू धर्म कहता है कि मृत्यू शरीर की समापती है, आत्मा की नहीं।
01:23मृत्यू के बाद आत्मा तुरंत अगले जन में नहीं जाती।
01:27कहा जाता है कि 10-13 दिन तक आत्मा, पृत्वी लोक और पित्र लोक के बीच एक संक्रमन काल में रहती है।
01:36इस अवधी को अंतराल काल कहा गया है।
01:39इसी दौरान आत्मा को मार्ग दर्शन और आशिरवाद की आवशक्ता होती है।
01:45दो अशौच, जब परिवार का कोई सदस्य जाता है, तो पूरा परिवार अशौच में माना जाता है।
01:52इसका अर्थ है कि वे आध्यात्मिक रूट से भारी, समवेधन शील और शोक ग्रस्त है।
01:58अशौच का समय दस दिन ब्रहामनों के लिए, बारत दिन क्षत्रियों के लिए, और तेरा दिन सामान यतह परिवार के लिए माना जाता है।
02:07तीन श्राद और पिंड़ान।
02:10आत्मा को शांती देने और पित्रों तक अनवजल पहुचाने के लिए, श्राद और पिंड़ान किये जाते हैं।
02:17ऐसा माना जाता है कि जब तक ये कर्म नहीं होते, आत्मा भटक सकती है।
02:23गीता और गरुड पुरान में कहा गया है कि ये कर्म आत्मा को आगे की यात्रा के लिए शक्ती और संतोष देते हैं।
02:31चार शुब कारियों पर रोक इस अवधी में विवा, उत्सव या मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं।
02:38इसका अर्थ है कि परिवार पूरी तरह शोक और प्रार्थना में डूबा रहे हैं।
02:44आत्मा को विदाई देने के समय हसी खुशी के बजाए शान्ती और साधना आवश्चक है।
02:50पांच प्रती कात्मक महत्वा, तेरा दिन पूरे होने पर तहरवेल की रस्म होती है।
02:56ये केवल एक सामाजिक सभा नहीं, बलकि आत्मा की यात्रा का पूर्ण विराम भी है।
03:03इसके बाद परिवार सामान्य जीवन में लौट आता है।
03:06वैज्ञानिक द्रिष्टी कोन, साइन्टिफिक आंगल, एक स्वास्थिय और हाईजीन, पुराने समय में शव घर पर रखा जाता था।
03:15संक्रमन और बिमारियों का खत्रा ज्यादा था।
03:18इसलिए परिवार को कुछ दिनों तक अलग रहना और साधारन भोजन करना आवश्यक माना गया।
03:25राख, गंगाजल और अगनी का उप्योग जीवानों और वातावरन को शुद्ध करने के लिए किया जाता था।
03:32दो मन और भावनात्मक स्वास्थय, साइकोलोजी ओव ग्रीफ, मृत्यू परिवार को हिला देती है।
03:39मनों विज्ञान कहता है कि शोक के समय इंसान के भीतर तनाव, हार्मोन, कॉटिसोल बढ़ जाते हैं।
03:46इसी लिए उत्सव और मेलजोल से दूर रहना ज़रूरी है, ताकि मन को संभलने का समय मिल सके।
03:53तेरा दिन का शोक काल एक तरह का हीलिंग पीरियड है।
03:57तीन भोजन संबंधी नियम।
04:00शोक काल में हलका भोजन जैसे खिचडी, दाल चावल या पफल लिया जाता है।
04:06इसके पीछे कारण है कि दुख के समय डाइजेशन कमजोर हो जाता है।
04:10साधारन भोजन शरीर और मन दोनों को संतुलन देता है।
04:14चार शुब कार्य क्यों वर्जित है।
04:17आधुनिक दृष्टिकों से देखे तो, ग्रीव के समय इनसान सोशल फंक्शन में नैचरल बिहेवियर नहीं दिखा पाता।
04:24यदि किसी परिवार का सदस्य गुजर गया हो और उसी समय विवा या उत्सव हो, तो ये मानसिक रूप से भारी पड़ सकता है।
04:32इसलिए परमपरा ने इन कारियों को कुछ समय के लिए वर्जित किया।
05:02इसलिए धर में भी मौनिंग पीरियड होता है, और फ्यूनरल के बाद कुछ दिनों तक चर्च में विशेश प्रार्थना होती है।
05:10बौद धर में भी मृत्यू के बाद उन्चास दिन तक आत्मा की यात्रा मानी जाती है।
05:16यानि हर संस्कृती ने मृत्यू के बाद के दिनों को ट्रांजिशन पीरियड माना है।
05:20जहां मृत्यक के लिए प्रार्थना और जीवितों के लिए हीलिंग जरूरी है।
05:25तो दोस्त अब आपने देखा कि मृत्यू के बाद हिंदू समाज में जो तेरा दिन तक के नियम और रिस्ट्रिक्शन्स है।
05:34वे केवल अंद विश्वास नहीं बलकी गहरे आध्यात्मिक और वैज्ञानिक कारणों से जुड़े हैं।
05:40धर्म कहता है कि ये समय आत्मा की अगली यात्रा के लिए आवश्चक है।
05:44जबकि विज्ञान कहता है कि ये परिवार के स्वास्थ्य, मानसिक संतुलन और सामाजिक हीलिंग के लिए जरूरी है।
05:52यानि धर्म और विज्ञान दोनों एक ही दिशा में इशारा करते हैं कि मृत्यू केवल अंत नहीं है बलकी एक नई शुरुवात है।
06:02और इस संक्रमन काल में हमें मृतक के लिए प्रार्थना करनी चाहिए और अपने लिए धैर्यव शक्ती संचित करनी चाहिए।
06:10इसलिए हमारे रिश्यों ने कहा है मृत्यू अंत नहीं एक नया जन्म है और शोक केवल दुख नहीं बलकी जीवन को समझने का अफसर है।
06:22अगर इस विडियो ने आपके जीवन में कुछ मुल्य जोड़ा हो या आपको अच्छा लगा हो तो हमारे साथ जुड़े रहिए।
06:29जै श्री कृष्णा अगर आप ऐसे और सनातन रहस्य जानना चाहते हैं तो जुड़े रहिए हमारे साथ।
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