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"इस कहानी में एक अनोखी सीख छुपी है जो आपके जीवन को बदल सकती है! यह कहानी न केवल बच्चों के लिए बल्कि बड़ों के लिए भी एक प्रेरणा साबित होगी। अगर आपको नैतिक कहानियाँ (Moral Stories), प्रेरणादायक कहानियाँ (Inspirational Stories) और हिंदी लघु कथाएँ (Short Stories in Hindi) पसंद हैं, तो यह वीडियो आपके लिए है। पूरी कहानी देखें और अपने विचार हमें कमेंट में बताएं!
🔹 वीडियो की खास बातें:
✅ सुंदर एनीमेशन और इमोशनल कहानी
✅ हर उम्र के लिए अनुकूल
✅ सीखने और समझने योग्य नैतिकता
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00:00च्छत पर खाना बनाने वाली गरीब बहू वर्सिस एसी में सोने वाली अमीर बहू
00:04चोटी भाबी कितनी जादा सुन्दर है ना भया आप तो बिलकुल चान का टुकड़ा लेकर आएं
00:10कितनी बार का है तो जे सिमरन हर वक्त मुझे फाल तुबाते पसंद नहीं सारे महमान खड़ें एतनी सारी रस्में बाकियां और तू है कि
00:18क्या हुआ मा सिमरन ने तो बस तारीफ की है
00:21तू तो इसकी तरफदारी करेगा ही तेरी पसंद की जो है
00:25अरे बस भी करो तुम लोग सिमरन बेटा समिक्षा बहु को अंदर ले जाओ
00:30सिमरन अपनी नई नवेली छोटी भावी को अंदर ले जाती है
00:34और अब थोड़ी देर में समिक्षा की मुझ दिखाई की रस्म शुरू होती है
00:39ऐसी राद होती है और सब सोने के लिए चले जाते है
01:05सुबा के तकरीबन चार बजे होते हैं कि तब ही
01:08समिक्षा के दर्वाजे पर दस्तक होती है
01:11समिक्षा जैसे यादी अदूरी नीद में उठकर दर्वाजा खोलती है
01:14तो सामने उसकी सास खड़ी होती है
01:16माजी आप वो भी इतनी सुबा सुबा सुबा सब ठीक तो है न
01:21मैं तुझे बस ये बताने के लिए आई थी कि हम लोग सुबा और रात का खाना चट पर करते हैं
01:25और खाना भी चट पर ही बनता है
01:27दूप निकलने से पहले हम लोग नाश्ता कर लेते हैं इसलिए अब जल्दी से तयार हो जा
01:31और चट पर जाकर सब के लिए नाश्ता बना छे बजने से पहले सब नाश्ते के लिए आ जाएंगे
01:36इतना कहकर माला चली जाती है
01:38समिक्षा जल्दी से मूध होती है और रसोई से खाना बनाने का समान लेकर चट पर जाती है
01:43चट पर एक छोटा सा मिट्टी का चूला बना हुआ था तो वहीं चार बजे का वक्त था जिसके चलते अभी चट पर हलका हलका अंधेरा चाया हुआ था
01:52अंधेरा पी ओर है और दूर दूर तक मुझे कोई दिक भी नहीं रहा है
01:55खुद के ससुराल की चट इस वक्त इतनी डरावनी लग रही है लेकिन अब क्या ही कर सकते हैं जल्दी से नाश्ता बनानी की तयारी कर लेती हूँ
02:03समिक्षा फटाफट सब के लिए चूले पर नाश्टा बनाती है।
02:06छे बजने से पहले ही सबी लोग छट पर नाश्टा करने के लिए आ जाते हैं।
02:11अरे समिक्षा बहू, नाश्टा तो काफी जादा बढ़िया बनाया है तुमने।
02:15नाश्टा करके सब अपने अपने कामों पर चले जाते हैं, तो सुबह के नौ बजे समिक्षा की जिठानी कशिश सो कर उठती है।
02:41अपनी सास के कहने पर समिक्षा धूप में छट पर जाती है, और अपनी जिठानी के लिए नाश्टा तयार करके उसके कमरे में ले आती है।
02:48समिक्षा की जठानी कशिश अपने कमरे में बैट पर बैठे हुए AC की थंडी हवा में फोन चला रही होती है जिसे देख
02:55बाबी आपने तो कमरे को बिल्कुल कश्मीर बना कर रख दिया है इतनी तेज AC कौन चलाता है मुझे तो थंड लग रही है
03:03अपनी जिठानी का घमंड से भरा जवाब समिक्षा को बिल्कुल भी पसंद नहीं आता
03:19शाम होते ही जब रात का खाना बनाने के लिए समिक्षा चट पर जाती है
03:23समिक्षा चट चट दोती है और अब गर्मी में बैठ कर चट पर रात के खाने की तयारी करती है
03:45थोड़ी देर में खाना बन जाता है और अब सब चट पर आकर खाना खाने लगते है
03:49भापी आप सारे जूटे बड़तन मेरे साथ रसोई में लेकर आ जाइए
03:52किया कहा तुमने मैं जूटे बड़तनों को उठाऊ
03:55समिक्षा ये सारे काम तुम्हारे है मेरे नहीं समझी
03:58भापी आप इस तरह से क्यों बात कर रही हैं मुझ से
04:01जिस तरह आप मैं इस गर की बहु हूँ, आप भी तो इस गर की बहु हैं, क्या ये सब काम आपके नहीं है?
04:06अपने और अमीर जिठानी के बीच अपनी सास को इस तरह भेदभाव करता हुआ देख, समिक्षा को काफी दोख होता है, गरीब घर से होने की वज़ा से समिक्षा ही घर के सारे काम करती,
04:36सुबा शाम गर्मी में सब के लिए नाश्टा और खाना बनाती, तो वहीं अमीर बहु कशिश दिन भर बस अपने एसी वाले रूम में आराम करती,
04:44गर्मी का मौसम अपनी चरम सीमा पर पहुंच चुका था, जिसके चलते अब सुबा के चार बजे का वक्त हो, या शाम के छे बजे का,
05:11समिक्षा की चट पर गर्मी में खाना बनाते हुए हालत खराब होती, हर रोज की तरह समिक्षा चट पर खाना बना रही होती है कि तब भी अचानक चट पर दो बंदर आ जाते हैं,
05:21वो दोनों बंदर समिक्षा का बनाय हुआ खाना उठा कर ले जाते हैं, जिसे देख समिक्षा
05:31समिक्षा फिर से कड़ी धूप में बैट कर दुबारा खाना बनाती है
05:41कभी-कभी तो सुबा जल्दी उठने के चक्कन में समिक्षा की नीदी पूरी नहीं होती, जिसके चलते कई बार छट पर चड़ते उतरते हुए समिक्षा के कड़म लड़ खड़ा जाते
05:51समिक्षा पसीने से तर बतर होकर जब छट पर खाना बनाकर नीचे घर के काम करने के लिए आती तो अपने एसी वाले कमरे में बैठी कशिश समिक्षा को देख कर
06:04समिक्षा इन चीजों से काफी परेशान हो चुकी थी, जिसे देख
06:34समिक्षा तुम अब मुझे बिल्कुल भी वक्त नहीं देती हो, दस बजे ही सोने चली जाती हो, मैं जानता हो रोज सुबा चार बजे उठकर सबके लिए छट पर नाश्टा बनाना, गर के सारे काम करना, और फिर रात में भी गर्मी में खाना बनाना, तुम्हारे लिए कि
07:04समिक्षा की एक और ड्यूटी शुरू हो जाती है, और ऐसे ही कुछ दिन गुजर जाते हैं, आज मौसम काफी अच्छा था, तो पूरा परिवार सुबह सुबा नाश्टा करने के लिए छट पर जा पहुंचता है, लेकिन जैसे ही वो लोग छट पर पहुंचते हैं, तो द
07:34समिक्षा बहु हैं, आखिर समिक्षा है कहां, मा, समिक्षा तो कल रात को ही घर छोड़ कर अपने माई के चले गई, वो कह रही थी, अब वो उससे ये सब नहीं होगा, क्या कहा तो ने समिक्षा घर छोड़ कर चली गई, और कर अपनी पसंद से शादी देखा, भाग गई �
08:04अपनी सास के कहने पर कशिश मू बनाते हुए, सब के लिए गर्मी में बैठ कर छट पा नाश्ता बनाती है, और चिड़ कर अपने कमरे में चली जाती है, ऐसे ही शाम हो जाती है, कशिश बहु शाम हो गई, रात का खाना नहीं बनाना गया तुझे, मा जी सुबह तो मैंने
08:34खाना बनाती है, मा में कॉलेज जाओ या खाना बनाओ, मुझे मेरी पढ़ाई भी करनी होती है, आप भाबी को क्यों नहीं कह दी, आपने उन्हें कितना सर पर चड़ा लिया है, हाँ बेटा तो ठीक कह रहे है, मुझे कशिश से इस बारे में बात करनी होगी, माला कशिश क
09:04एहमियत समझ आ सके, समीक्षा भले ही दहिज में कुछ नलाई हो लेकिन उसने हमेशा आपकी सारी बात मानी, दिन रात गर्मी में छट पर खाना बनाया, और कभी आपसे कोई शिकायद नहीं की, तो वहीं आपकी एसी वाली अमीर बहु धंक से एक दिन का खाना भी नहीं ब
09:34माई के जाने का नाम सुनकर कशिश गवरा जाती है और नचाहते हुए भी अब कशिश को समीक्षा के साथ मिलकर घर की सारी जिम्मेदानिया और छट पर खाना बनाना पड़ता है
09:44नदी किनारे बैट कर मोनिका गंदे कपड़ों को धो रही है, वहीं दूसरी तरफ दर्वाजे पर दुलहन के जोड़े में खड़ी है अनू
09:50ये कैसे अंडिवलप्ट काउं में शादी कर दी पापा ने मेरी?
09:54तबी हाथों में पूजा की थाली लेकर गंगा अपनी बड़ी बहु को आवाज देती हुई कहती है
09:59अरे बहु, अब तक तालाब में तेरे कप्रे धोने खत्म नहीं हुए क्या?
10:04तेक छोटी बहु आ चुकी है, अपने ससुराल अब तू भी जल्दी आजा, ग्रहे प्रवेश करवा
10:11मोनीका भागी भागी तालाब से घर की तरफ आती है, जहां गंगा अनू का ग्रहे प्रवेश करवा रही
10:22आओ बहु रानी, घर के अंदर आओ
10:25ग्रह प्रवेश के बाद अगले दिन, सुभा अनू गर्मी से परिशान होती हुई रसोई में खाना बना रही है
10:31हाई राम कितनी कर्मी पढ़ रही है, और अभी तो मुझे अपनी पहली रसोई का खाना भी बनाना है, पर यहां आसपास तो मुझे सबजियां दिखाई ही नहीं दे रही
10:40तब ही वहाँ पर गंगा आती है
10:42अरे बहू मैं तो तुझे बताना ही भूल गई, रसोई की सब्जियां खत्म हो गई है, और अब सब्जियां लाने के लिए तलाब के उस पार सब्जियों के खेट में जाना होगा
10:51क्या खेत में जाना होगा सब्सियां लाने कोई मौल नहीं है असपास सब्सियों का
10:57तब ही रसुई में आती शिखा ये सारी बाते सुनकर कहती है
11:01नहीं छोटी भाबी ये गाओं है और यहां कोई मौल नहीं है
11:06यहां सब्सी लाने के लिए तालाब को पार करके सब्सियों के खेत में ही जाना पड़ता है
11:11तालाब के उस पार हमारा सब्सियों का खेत है
11:15अब अनू मौनिका के साथ तालाब के ऊपर बने लकड़ी के पुल के साहरे तालाब के उस पार जाती है
11:21जहां बहुत सारी सबजियों की खेती होती है
11:23अनू एक बहुत ही अमीर फैमिली से थी
11:32और इस तरह कड़ी धूप में सबजियों को तोड़ते हुए अनू को बहुत गुसा आ रहा था
11:37कुछ दिर बाद मोनिका और अनू सबजी को लेकर घर आती है
11:39जहां अनू का बदलता रूप देख गंगा कहती है
11:42क्या हुआ बहु गुसे में लग रही हो
11:45गुसा नहीं तो और क्या करूँ
11:48पहले तिन ही मुझे गवारों की तरह सबजी लेने के लिए तानाब के उस पार भेज़ दिया
11:52अरे आप लोगों का कोई स्टैंडर्ड है या नहीं पर मेरा भौत है
11:55विशाल मेरी बात कान खोल कर सुलो
11:58मैं इस घर में अब एक और पल नहीं रह सकती
12:01अनू ये कैसी बाते कर रही हो तुम
12:03मैं अपनी मा को छोड़ कर कहां जाओंगा
12:06मुझे कुछ नहीं पता
12:07सास की नजर में जिठानी को अच्छा बनता देख
12:32अनू को गुसा आया पर वो कुछ नहीं बोली
12:34और अब गाओं के बाहर बसे एक अच्छी छोटी जगा पर
12:38अनू अपने पती के साथ रहने लगती है
12:39वहीं मोनिका हमेशा की तरह अपने पूरे परिवार की देख बाल अकेले ही कर रही थी
12:44तबी एक दिन गाओं की कुछ औरतें और मोनिका बैटकर तालाब में
12:48जूटे बरतनों को धो रही थी
12:49अब ही तो ये जूटे बरतन धो लिए उसके बाद मुझे अपने परिवार वालों के गंदे कप्ड़े भी धोनी है
12:55हाँ सवीता मुझे भी धोने है कप्ड़े तो पर पहले ये जूटे बरतन धो लो
13:00तब ये आखों में चेश्मा लगा कर कोकोनेट वाटर पीती हुई अनू वहां से गुजरते हुए कहती है
13:06यूची कितने ही अनहाईजिनिक लोग है ये
13:10कैसे तालाब में जूटे बरतर और गंदे कप्ड़े धो रही है
13:13आच्छा हुआ मैं अपने सस्वराल वालों से दूर हूँ नहीं तो मुझे भी एक अवार हरकते करनी पड़ती
13:18मोनिका ये तुम्हारी देवरानी है न ये क्या बड़बरा रही है हमें देख के
13:23वो कविता अनू को तालाब का पानी इस्तिमाल करना पसंद नहीं है
13:28बड़ी आई एश्वरी अराय बनने वाली शकलता देखो इसकी खुद को कहीं की महरानी समझती है क्या
13:34तालाब से बरतन और कपड़े धोकर मोनिका घर में आती है
13:38दो दिन हो गए बहु तालाब के उस पार सबजियों के खेत में एक बुंद पानी नहीं गया है
13:44जो अपनी ननन्द के साथ जाकर सबजियों के खेत में पानी पटा दे
13:47वरना सारी सबजियां कड़ी धूब में गर्मी में सूख जाएंगी
13:51मैं भी तैयार हूँ भाबी तालाब के उस पार सबजियों के खेत में जाने के लिए
13:56अब मोनिका अपनी नंद के साथ तालाब से बाल्टी में पानी भरके पुल के रास्ते से सब्जी के खेतों में आती है और बाल्टी से पानी डालती है
14:04अब जहां मोनिक अपने पूरे परिवार तालाब और तालाब के उस पार सब्जों की खेती के देखबाल अकेले कर रही थी
14:19वहीं दूसरी तरफ उसकी देवरानी अपने घर में एसी की ठंडी-थνडी हवा का रही थी
14:23टोटी से पानी का इस्तेमाल कर रही थी
14:26ऐसे ही कुछ दिन गुजरते हैं
14:28अब रेखा और बिवेखा सबजियों को लेकर पुल के पास आती है
14:42और सभी सड़ी सबजियों को तालाब में फेकने लगती है
14:45वहीं दूसरी तरफ गाउं का श्रिवास्ताव अपनी दोनों भैसों को तालाब में नहा कर ले जा रहा होता है
14:50और ये सारा नजारा वहां आती मोनिका देख लेती है
14:53अरे ये क्या कर रही हैं आप लोग
14:56रेखा विबेका आप इस तरह से सड़ी सबजियों तालाब में क्यों फेक रही है
15:00और काका जी आप अपनी भैसों को तालाब में डुबो कर क्यों नहला रही है
15:04हम यही पानी इस्तिमाल करती है
15:06अगर आपको अपनी गाए भैसों को नहला नहीं है
15:08तो आप तालाब का पानी लेकर दूसरी तरफ भी अपनी गाएं भैसों को नहला सकते हो
15:12इस तरह गाएं भैसों को तालाब में छोड़ना ठीट थोड़ी है
15:15गाड़ी से गुजर रही अनूई ये सब देखती है
15:18अब घुसे में मोनिका खुद तालाब की गंदगी को साफ करने लगती है
15:30और ये सारी चीज़ देखकर गाउं के लोगों को कुछ शर्मिंदगी महसूस होती है
15:34अरे रोको वीटी आप मैं मदद करवा देता हूँ
15:38गलती हो गई अब मैं कभी अपने बहसों को इस तरह तालाब में नहीं लाओगा
15:41मोनिका मुझे भी इस तरह से सड़ी सब्दियां इस तालाब में नहीं फैकनी चाहिए थी
15:46लाओ मैं भी आपके मदद करा देती हूँ
15:48अरी मेरी जिठानी तो बहुत महान बन गई इन गाउवलों की नजर में पर मैं भी देखती हूँ
15:54कितने दिनों तक मेरी जिठानी अपने इस तालाब के पानी को साफ रखती है
15:57अब मोनिका की हो रही वावाई अनू से देखी नहीं जाती
16:02जिसके बाद अनू रात में सबके सो जाने के बाद अपने घर का सारा गंदा कच्रा उठा कर तालाब में फेक आती है
16:08अगले दिन सुभा गाओं के कुछ लोग और मोनिका गंगा तालाब में कच्रा देखकर हैरान होते हुए कहते है
16:22अरे बहु ये तालाब का पानी कैसे गंदा हो गया
16:26बुरा मत मैं न मोनिका पर अधिराग को जब में अपनी बालकली में आई थी तो मैंने देखा था आपके देवरानी इस तालाब में धेर सारे कच्रे को फेक रही थी
16:34अरे नहीं वो इतनी भी बुरी नहीं है शाय तुमें कोई कलत फेहमी हुई है
16:39फिलाल मुझे चिंता इस बात की है कि कर्मी के बढ़ते तापमान के कारण तालाब का पानी भी अब कम होता जा रहा है
16:45जिस वज़े से सब्जियों के खेत में भी पानी ठीक तरीके से नहीं पहँच रहा है और सब्जिया सोक रही है
16:50इस तरह से तो हमें पानी और सब्जी तोनों के ही लाले पढ़ जाएंगे
16:54दूर खड़ी अनू
16:55अब फिर से मोनिका सबी के साथ मिलकर तालाब के पानी को साफ करती है
17:11फिर साफ पानी को ले जाकर तालाब के उस पार सब्जियों के खेत में पानी देती है
17:15ऐसे कुछ दिन गुजरते हैं
17:17अब जब महां मोनिका तालाब के पानी से गुजर बसर कर रही थी
17:21वहीं अनू के घर में पानी की एक एक बून्द की किल्लत हो रही थी
17:24वो कमरे में एसी में बैठी पानी पानी चिला रही थी
17:28पानी पानी विशाल मुझे पानी तो मुझे भ्यास लग रही है
17:35हाँ अनू रुको मैं अभी यलाया
17:37विशाल रसोई में आता है और फ्रिज खोलता है लेकिन फ्रिज में एक भी पानी की बोतल नहीं होती
17:42विशाल आरो के पास आता है तो आरो मेंसे भी पानी नहीं आ रहा होता है
17:47सिंक में धेर सारे जूटे बरतन पड़े हुए होते हैं
17:50अरे अभी तक पानी वालों ने पानी सप्लाई नहीं किया क्या एक बार पानी विवाग में फोन करता हूँ
17:56भही आभी पानी के पाइप लाइन में कुछ दिखकर चल रही है इसलिए कुछ दिनों तक अभी और पानी नहीं आएगा
18:02शिट अब क्या करूँ अनु की तो तबियत खराब होती ही जा रही है विशालकों को समझ में नहीं आता और वो बॉकलाता हुआ बेहुश अनु को गोद में उठा कर अपने परिवार के पास लेकर आता है
18:14माँ भाबी अनु की तबियत बहुत खराब हो रही है आप पहले अनु को पानी पिलाए है हमारी घर में तो पानी की एक-एक बून्द की किल्लत हो रही है अब चिंता मत करो दीवर जी हम हेना हम दियान रखेंगे अनु का
18:25अब इसी तरह मोनिका घर में रखे तालाब के पानी को अबाल कर ठंडा करके पहले अनु को पिलाती है और पिर तालाब के उस पारोगी सबजियों को तोड़ कर लाती है और उसकी खिचडी बनाकर अपनी बीमार देवरानी को खिलाती है अच्छे से देख भाल करने पर अन
18:55क्या तालाब का पानी
18:57हानू जिस तालाब के पानी को तुम अनहाईजिनिक मानती थी
19:01आज उसी तालाब के पानी और तालाब के उस पारूगी हरी सबजियों को खा कर ही
19:05तुमारी सिहत ठीक हुई है
19:07आप तो तुम्हें एहसास हो गया ना
19:09कि हमारा तालाब का पानी कितना सुच्छ है
19:12मुझी माफ करतीजी
19:13आप लोगोंने मेरी कितनी देख भाल करी
19:15और एक मैं थी जो उस तालाब और तालाब के
19:18उस पार होगी उन हरी सबजियों की खेती को देख कर
19:20आप लोगों को गवार समझ कर
19:22ये घर छोड़ कर चरी गई थी
19:23पर आज मुझे हैसास हो गया है
19:25कि आप लोग मुझसे कितना प्यार करते हैं
19:27अब अनू अपने पती के साथ वापस घर आ जाती है
19:30और अगले दिन जिठानी के साथ खेत जाती है
19:32और बाल्टी से पानी डालती होई कहती है
19:34मोनीका अपनी सास, नंद, पती और देवर को बुला कर लाती है
19:54पती देवर तालाब से खेत के लिए एक नाली कोधते है
19:57जिसका सीधा पानी खेत तक जाता है
19:59ये देख सब खुश होते है
20:00फिर इसी तरह अनु अपने परिवार के साथ तालाब और खेत के लिए अच्छे अच्छे उपाई दे कर उसको बहतर बनाने में मदद करती है
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