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00:00कभी हुआ ऐसा कि जुखाम वगर आओ गया नाग बह रही हो वो बह करके यहां आ गई और पता नहीं चलता और तभी कहीं से गुजरे वहाँ पर कुछ ऐसे ही मिल गया फीशा लगा हुआ था दिख गया और दिखा नहीं कि क्या करते हो तुरंद अब दिख जाना काफी है दि
00:30मतलब उसने भी देखा नहीं और कोई वजह नहीं आत्मवलोकन नहीं कर रहा है तो इसलिए भी यहरे पे चीछन पुता हुआ है पक्का है कि नहीं देखा देख लिया होता तो ऐसे घुमे गई नहीं और न देखा हो तो फिर और बहुत तरीके के आयकारक्रम हो सकते है ऐसे
01:00नएज आयぜके की नमकी नुतरी है मारकेट में तो उपनिशद इसको ऐसे कहते हैं कि आत्म ग्यान ही आत्म स्नान है
01:09चेतना का इसनान क्या है ग्यान
01:14चेतना गंदी रहती है जब तक उसको देखने लेते
01:18शरीर को साफ करने के लिए उसे धोना पड़ता है
01:24और चेतना को साफ करने के लिए उसे देखना पड़ता है
01:27और कुछ नहीं करना पड़ता
01:29तो उसको कबीर साब ऐसे कहते हैं कि ग्यान ही साबन है
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