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00:00अध्यात्म में थोड़ा सा आगे बढ़कर हीतर ये उमीद बैठ जाती है कि हम दूसरों से श्रेष्ठ हैं
00:08ठीक है, हम दूसरों से श्रेष्ठ हैं
00:11तो कोई बिछोड गया है, मृत्ति हो गई है, तो दूसरे रो रहे हैं, तो रो रहे हैं, मुझे क्यों दुख हो रहा है
00:30और जिसने जैसा जीवन जिया होता है, मृत्यु को उसका उत्तर भी उसी तरह का होता है, जो जीवन ही बिना जाने समझे जीता आया हो, उसको कोई भारी दुख पड़े मृत्यु जैसा, तो उसको आप सोचें कि मैं अचानक समझा लूँगी, तो ऐसा हो नहीं पाएगा, ऐस
01:00की तरह थोड़ी होता है, कि कोई बहुत भारी घटना घटेगी, तो तयारी रखे, पहले से वैसा कुछ नहीं है, हम केंद्र वही रखते हैं, आज सुख का दिन हो, तो भी हमारा केंद्र, दुख का दिन हो, तो भी वही केंद्र, वह केंद्र की ही ऐसे continuity रहती है, निरंतरत
01:30भागों के जटके आएंगे, तो समहाल लेगा, और तो ठीक नहीं है, तो अचानक से समझाने से कोई लाव होने नहीं वाला है, यो ऐसी इसी बात है कि किसे मैं कहा करता हूं, कि किसी को हार्ट अटेग आ गया, और आप चाहो कि अचानक से अब मैं इसके लिए कुछ कर दू
02:00कर पाओगे, सुधार की जो प्रक्रिया भी चलेगी, वो लंबी चलेगी, हुँआ धन्ले बाद आशारे, रसो भागे हैं आप पोलकाता में रुक के हैं
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