00:00स्री कृष्णा हमें समझाते है कि गीता किन लोगों को समझ में नहीं आएगी
00:05तो उसमें पहला ही जो कैटेगरी थी वो अलप बुद्धी लोग थे
00:10तो ऐसे लोगों को गीता का ग्यान समझ में नहीं आएगा
00:14ऐसा स्री कृष्णा ने हमें समझाया था
00:16उत्तर गीता में त्रिकृष्ण अर्जुन को समझाते हैं कि ये ग्यान किसी कुपात्र को मत देना तो ये दो बाते एक साथ कैसे देखे हैं
00:27दारी जिम्मेदारी जगे हुऊं कि होती है घर में आग लगी हुई है दस जने मस्त सो रहे हैं
00:33एक जग्या किसी वजए से
00:36अब कूता फानता परिशान होता चीक मारता किसको पाओगे वगे जो सो रहे हैं
00:47किसी के लिए हम कह रहे हैं कि इसको गीता का ज्यान नहीं मिलना चाहिए
00:51जिसकी बुद्धि अंकार से संचालित होती हो वो अल्प बुद्धि है
00:56तो उसकी बुद्धि को सही जगह से जोड़ दो नहीं तो यह कहना तो बहुत आसान है कि मैंने तुम्हें गीता नहीं दीक्योंगे तुम्हल बुद्धिवाले लो इनसान वो है ना
01:05जो उसको भी गीता पहुंचा दे जिस तक कभी पहुंचनी थी नहीं
01:12प्रश्ण कुछ ऐसा था मेरा कि अध्य दो में 42 से 44 जोश लोग है उसमें आपने मतलब समझाया था कि स्री कृष्ण हमें समझाते है कि गीता कि इन लोगों को समझ में नहीं आएगी तो उसमें पहला ही जो कैटेगरी थी वो अलप बुद्धि लोग थे
01:37और आगे भी थे वेद वाधर था और फिर स्वर्ग और सुक में विश्वास रखने वाले और भी थे पुनरजन्म में विश्वास रखने वाले तो ऐसे लोगों को गीता का ग्यान समझ में नहीं आएगा ऐसा स्री कृष्ण ने हमें समझाया था
01:53और आपने पहले अद्धाय में एक जगा पे ऐसा बोला था कि उत्तर गीता में त्रिकृष्ण अर्जुन को समझाते हैं कि ये ग्यान किसी को भी मत देना किसी कुपात्र को मत देना
02:06और अभी आज का जो स्लोक है इसमें सबको साथ लेके चलने के लिए बोल रहे हैं तो ये दो बाते एक साथ कैसे देखें
02:16कुपात्र को सुपात्र बना के ग्यान दे दो न कुपात्र को ग्यान नहीं देना तो इसका मतलब कुपात्र को सुपात्र बना दो फिर ग्यान दे दो अल्प बुद्ध को ग्यान नहीं देना अल्प बुद्ध की मैंने क्या परिभाशा बताई थी जिसकी बुद्धि अल्प
02:46तो उसकी बुद्धि को सही जगह से जोड़ दो, कोई वज़ा है ना किसी के लिए हम कह रहे हैं कि इसको गीता का ज्ञान नहीं मिलना चाहिए, वो वज़ा हटा दो ना, क्या नहीं चाहते हैं आपकी गीता का ज्ञान मिले किसी को?
03:00लेकिन आचारे जी साम उसके साथ मैं ऐसा भी बोला गया था कि उन लोगों में निश्चयात्मिक का बुद्धी नहीं होती नहीं होती तो अगर तुम्हारी करोणा है तो उनमें वो बुद्धी जागरत करो
03:30लेको ये बात उनसे कही जा रही है कि बेटा अगर तुम्हारी ऐसी अल्फ बुद्धी चलेगी तो गीता तुम्हारे काम नहीं आएगी और तुम सब यही काम में कर्मों में ही लगे रहोगे वेदोक्त तो भी तुम्हें गीता समझें ये उनको कहा जा रहा है ताकि वो स�
04:00ना नहीं तो ये कहना तो बहुत आसान है कि मैंने तुम्हें गीता नहीं दीकियोगी तुम्हार बुद्धी वाले ओ तो कोई भी बोल दे
04:06इंसान वो है न जो उसको भी गीता पहुंचा दे जिस तक कभी पहुंचनी थी नहीं
04:20जैसा प्रक्रति और प्रारब्ध का खेल चल रहा था उसमें है कोई जिस तक कभी गीता पहुंची नहीं सकती थी
04:28और यह बात बहुत साधारन लगती कहते है इस दिन सा आदमी तक गीता कहते पहुंचेगी
04:32आपका काम है उस कुपात्र तक भी गीता पहुंचा देना
04:36कैसे?
04:41उसे सुपात्र बना कर
04:43और सुपात्र बनाने में जो शरम लगना है वो आप करोगे
04:46किसने कहा था कि आप जागरत हो जाओ
04:51जागरत अब हुए हो तो भुखतो
04:52जो सो रहा है वो सपने में मज़े ले रहा है
05:01जो जगेगा वो रोएगा
05:03हमने कहा था जगो जगे हो तो
05:04जिम्मेदारी उठाओ
05:06सारी जिम्मेदारी जगे हुँँ की होती है
05:10घर में आग लगी हुई है दस जनेमस्द सो रहे है एक जग्या किसी वज़य से
05:16अब कूता फांता परिशान होता चीख मारता किसको पाओगे वो जो सो रहे या जो जग गया है
05:28जो जगा हुआ है तो जगा हुआ है वही चीखे मारता नजर आता है जो सो रहे है वो तो मौझ में
05:34जागने के साथ साथ जिम्मेदारी भी आ जाईगी बाखी लोगों को भी लेके चले बिल्कुल अब ये तो कर नहीं पाओ गए अगर जग गए हो कि घर में आग लगिये तो अकेले ही भग जाए
05:44उनको उठाना पड़ेगा कोशिश करेंगे उस कोशिश में कई बार ऐसा भी होगा कि उनको उठाते उठाते ये तो हो गया कि वो उठा गए अपन जल जुला गए थोड़ा बहुत तो ठीक है जल गए थोड़ा बहुत तो ठीक है या ऐसे अकेले बचके चले भी जाते तो ऐस
06:14सामाचिया
06:16थोड़ी कमी पर आज के सत्र से मुझे थोड़ा आप जो सी पीख दे रहे हैं उसमें में रोधा भाज लग रहा है
06:38इस से पहले हुए संसरीदा में जब आप से प्रख्ष्न करका ने उचा था कि एक पैतारीस वर्षी दंपर्थी ने पुत्र आपती के लिए पैतारीस वर्षी लोम्ड में बच्चा पैदा किया है तब आपने कहा था कि ज्यान के मुर्खताओं के आगे ज्यान भी मौन पर �
07:08हमें सिखा रहे हैं
07:09कि ग्यान की यही पहचान है
07:12कि अग्यान को मिटा दे
07:13पर अग्यान के सा
07:15तो मेरे इस वीडियो दाबास थो
07:18इजिनसी कंफूजन है
07:22कौन सी बात किस्छे कही जा रही
07:24यह नहीं समझ रहे हैं
07:25आप दो हैं
07:26एक मरीज है और एक चिकितसक है ठीक है मरीज अगर अपनी बीमारी को पकड़े रहने को आतो रहे तो मैं उससे आगे कहूंगा अरे तुझ जैसे मरीज को तो उंचे से उंचा डॉक्टर भी नहीं बचा सकता
07:41ये बात मैं मरीज से बोलूँगा डॉक्टर से नहीं बोलूँगा मरीज से क्यों बोलूँगा ताकि वो सुधरे और जाके मैं डॉक्टर से क्या बोलूँगा कि मरीज की हालत कितनी भी खराब हो मरीज कितना भी अडियल हो तुम्हें उसे बचाना है मरीज को बोलूँगा त
08:11जाना है तो वो जो मैंने
08:13बात बोली थी कि वो 45 वर्शी
08:16हैं और तब भी बच्चे औगरा करे जा रहें
08:17मैंने कहा था कि इनके
08:19अग्यान के आगे तो सब ग्यान
08:21बेफल है वो बात किससे
08:23बोली थी
08:24मरीज से
08:27बोली थी कि तुम ये जो हरकत कर रहो ना
08:29तुमें तो कोई रामकृष्ण कोई नहीं बचा सकता
08:31लेकिन जो ग्यानी होगा
08:35उसको बोलूँगा है तो ये
08:37बहुत ऐसे ही
08:39लेकिन फिर भी इनको
08:40फिर भी इनको बचाओ
08:45आपके सामने कोई आए जो बहुत बुरी हालत
08:51में है तो आपका काम है उसको
08:53को बोलना कि तुझे कोई नहीं बचा सकता तुझे मैं भी नहीं बचा सकता बलकि मैं ही तुझे इस्तमाप्त कर दूँगा
08:57लेकिन भले ही आप उसे कितना ही बोलेंगे तुझे मैं ही खत्म कर दूँगा लेकिन आपको करना क्या है
09:05उसे बचाने का प्रयासा
09:11पर अचार जी मरीज को अगर हम ऐसा बोलेंगे तो हम कहीं न कहीं उसे विज़ित नहीं करता है
09:18मत बोलो ना इस तरीके से जिस तरीके से उचित हो उस तरीके से बोलो
09:26तो यही शब्द जाकर के थोड़ी दुहरा देने है
09:35मतलब अचार जी कर्मि के साथ साथ उड़ा करता को भी नहीं
09:46उड़ा करता को भी नहीं पूरा ही करता को देखना है
09:49करता ऐसा नहीं है कि सबजी पे थोड़ा सा नमक डाल दिया
09:53करता ही सब कुछ है
10:03कर्म के माद्भ्यम से करता को देखना है
10:05कर्म से पहले करता हो कैसे देखलो करता कहा रहता है ?
10:09टीशिर्ट के अंदर बैठा है करता खा कहा है करता ?
10:12कर्म के अलावा करता का क्या परिछाह है ?
10:17तो बस कर्म को .....
10:32कैसे समझोगे वो सारे कर्म वगेरा देखके हैं कि मेरा सवाल वैसे तो इतना गहरा नहीं है बस चोटी सी चीज खटक रही थी बस वही पुछना था कि कुरुषेत्र के मैदान में जो बात आजमने सीखी इसकी प्रसंगित्ता क्या है मतलब कि अगर कोई भावी सिक्षक होता
11:02अरजुन एक योद्धा है यूद्ध लड़ रहे है वहां पो उनके वात किस काम हो की और क्रिश्ण क्यों नहीं बात बताना चाहा है तो कि अरजुन के युद्ध का कर्म आना अरजुन के आत्मग्यान से है
11:17अर्जुन के आत्मग्यान से जो बात आज बताई जा रही है उससे अहम की प्रक्रते अहम के प्रेम और इसलिए अहम के कर्तवे का निर्धारण होता है
11:32अर्जुन से अगर बस युद्ध ही रड़वा देना होता तो कृष्ण का एक आदेश पर्याप्त था साथ सोच लोक नहीं चाहिए
11:44लेकिन कृष्ण अगर आदेश देकर युद्ध करा देते तो फिर कृष्ण अपने ही दर्शन का उलंगन करते
11:50कृष्ण का दर्शन क्या है कि कर्म पहले आता है या करता आता है अब जो युद्ध का कर्म है वो तो अर्जुन से कराया जा सकता था
12:00अरजुन मैं आदेश देता हूँ युद्ध करो
12:03पर कृष्ण ऐसा नहीं करेंगे कि आदेश देके काम करा दे
12:06कृष्ण ने कहा तुम युद्ध तो करोगे
12:10लेकिन समझ कर करोगे
12:13अब समझने में अगर अठारा ध्याय लगते हो तो लगे
12:17लेकिन मैं तुम से ये नहीं कह सकता कि भीतरी तोर पर तुम ना समझ हो
12:23तुम युद्ध के प्रते विरोध से भी भरे हो
12:27तुम एकदम नहीं जान पा रहे कि युद्ध आवश्यक क्यों है तुम्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा
12:32लेकिन मैंने आदेश दे दिया है तो तुम लड़ पड़े
12:36कृष्ण ने का मैं ऐसे नहीं करवाऊंगा
12:38पहले जो भीतरी जगत है वो तुम्हें इस पश्ट होना चाहिए
12:42अहम कैसे चलता है हमने का अहम की प्रकृते
12:45अहम का प्रेम
12:47अहम की करुणा और उस करुणा से उठता हुआ अहम का करतव्य
12:52तो ये जो पूरी बात है वो आत्मग्यान की दिशा में
12:57जब आत्मग्यान होगा तो युद्ध फिर अपने आप हो जाएगा
12:59युद्ध्यस्व कोई आदेश नहीं है
13:03युद्ध्यस्व एक सहज स्फुरुणा है
13:07जब ज्ञान होता है न तो युद्ध अपने आप हो जाता है
13:11जब भीतर ज्ञान होता है तो बाहर अपने आप युद्ध शुरू हो जाता है
13:14कौन सा युद्ध्य सही धर्म युद्ध्य है नहीं के दरोदर जाके
13:17गुसाला चलाए वो नहीं
13:22तो यह जो बात बताई जा रही है
13:26इसका आपको सीधे-सीधे युद्ध से कोई संब्ध दिखेगा नहीं
13:30दिखना चाहिए भी नहीं
13:32क्योंकि कृष्ण को अगर सीधे-सीधे युद्ध कराना हो
13:36तो उसके लिए कोई श्लोक नहीं चाहिए
13:38उसके लिए तो बस एक आदेश चाहिए
13:39गीता आत्मग्यान का ग्रंथ है
13:44अगर किसी कर्म में खुद को जोंक नहीं पारे
14:02यह जानते हुए भी कि मैंने खुछ सोचके
14:06वही उच्छ कर्म अपनी वद्वान सिथी के साथ से तो इसे क्या समझा जाए
14:14पें की कमी आलस या कुछ और क्या इसका कोई समाधा नहीं
14:21यह सारी चीजें एक हो जाती है अग्यान में
14:24समझ नहीं रहे हैं कि वो कर्म आपके लिए जरूरी क्यों है वास्ता में पुछी है तो यह कभी निर्धारित करना भी नहीं चाहिए कि आपके लिए
14:36एक कर्म कोई है जो बहुत जरूरी है शुरुआत होनी चाहिए अपने आपको देखने से अपने आपको देखते हुए कर्म का मैदान एकदम खुला छोड़ देना चाहिए
14:48अपने आपको देखिए, समझेए, स्थिति क्या है, आप कौन हो, क्या चल रहा है
14:53उससे ये बात फिर अपने आप अचानक स्पष्ट हो जाती है कि आप करना क्या है
14:58और वो कर्म चूंकि आपकी समझ से निकला होता है
15:03तो इसलिए उसमें मन ना लगने का कोई सवाल नहीं पैदा होता
15:12आम तोर पर कर्म में मन तब नहीं लगता, जब कर्म कहीं बाहर से आपको बता दिया गया है
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