उत्तर प्रदेश के बनारस के ऊंच गांव की बहू नीतू गांव के घूंघट से निकलकर कब ड्रोन दीदी बन गईं, उन्हें खुद पता ही नहीं चला. इनके जीवन में बदलाव ड्रोन उड़ाने की ट्रेनिंग के बाद आया. डेढ़ साल पहले इनके सफर की शुरूआत हुई. जब वो गांव के स्वयं सहायता समूह से जुड़ी . इसी दौरान उन्हें नमो ड्रोन दीदी योजना के बारे में पता चला. इस योजना के तहत सलेक्शन और फिर ट्रेनिंग ली. इनके सफर की सराहना खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर चुके हैं.नीतू के ड्रोन दीदी बनने का सफर आसान नहीं था. 2009 में शादी हुई, तीन बच्चे हैं. चार दीवारी को लांघकर घर से बाहर का सफर, जब सफर शुरू हुआ तो गांव वालों के ताने. सब कुछ सहना इतना आसान नहीं था नीतू के लिए. लेकिन आत्मनिर्भर बनने के बाद नीतू की जिंदगी का सफर संवर गया.नीतू गांव-गांव जाकर खेतों में यूरिया, डीएपी और कीटनाशक का छिड़काव करती हैं. यूपी के गांवों में तो वो छिड़काव करती हैं, साथ ही बिहार तक जाती है. एक एकड़ में छिड़काव के लिए 300 रुपये चार्ज करती हैं. 10 मिनट का समय. और 10 लीटर रसायन का इस्तेमाल होता है.वहीं नीतू के पति को नीतू के काम पर गर्व है.
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