ओडिशा के बालासोर के युवा वैज्ञानिक डॉ सिद्धार्थ पति ने झींगा मछली के छिलकों से दवा बनाने की विधि विकसित की है. कमाल की बात है कि भारतीय पेटेंट ऑफिस से उसे मंजूरी भी मिल गई है. ऐसा पहली बार हुआ है, जब कचरे से ऐसी दवा बनाने की प्रक्रिया को पेटेंट मिला. इस विधि से कैप्सूल के कवर बनाए जा सकते हैं. डॉ सिद्धार्थ पति और उनके साथी डॉ. देवब्रत पांडा ने समुद्री कचरे जैसे मछली, केकड़ा और झींगा के छिलकों से कई उपयोगी चीजें बनाई हैं. उनकी कंपनी 'नाटनोव बायोसाइंस' भारत सरकार के स्टार्टअप इंडिया से मान्यता मिली है.. इस कंपनी में 50 से ज्यादा लोग काम करते हैं. जिनमें महिलाएं और आदिवासी युवा शामिल हैं.
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