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  • 2 days ago

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00:00तो आप पश्वयों को मारेंगे, तो शक्ति को या शिव को यह बात सुहाएगी क्या? वो भी उनहीं के दिनों में
00:06जिन देवी के नाम पर हम इतनी हत्याएं करते हैं विशेशकर बंगाल में यह उन देवी की कता है
00:11जो पशुओं के स्वामी है, वही देवी के पती हैं, मैं उत्तर भारत का वैशलव होने के नाते नहीं बोल रहा हूं
00:17तब पशु, सब जीव, सब प्राणी, उनके बच्चे ही नहीं है, उनका अपना रूप है
00:35बुरा लग रहा होगा सुनने में, पर मुझे पताओ न, अगर त्योहार के अधार में धर्म नहीं है, तो त्योहार में और एक वीकेंड पार्टी में क्या अंतर है
00:42देवी का त्योहार इसलिए थोड़ी आता है कि हम खुद ही महिशा सुर बन जाएं
00:47आप से मिवेधन करता हूँ, आपकी मौच किसी की मौत ना पर
00:50अजकल नवरात्रों के दिन चल रहा है, और देवी की पुझा हर दिन की जा रहा है
01:00और भी रीसेंट लिए मैंने परश्चिन बंगाल की खबर में पढ़ा
01:04कि वहाँ पर सेलिब्रेशन के लिए, जो वहाँ की कैदी हैं, उनकी खाने में कुछ बदलाब किया गया है
01:10और श्टिकन बिर्यानी और मटन बिर्यानी को सब्किया जा रहा है
01:13तो मैं ये चीज़ समझ नहीं पा रही हूँ कि
01:16हमेश्चा एक ही चीज़ सेलिब्रेट करते हैं, व्यभारिक तौर पर
01:33आदर्श वगरा छोड़ो
01:36जो जमीनी सच्चाई है वो ये है कि
01:40हम जैसे है
01:42हम अपने वैसे ही होने को बड़ी भारी बड़ी अच्छी बड़ी सुन्दर चीज़ मानकर सेलिब्रेट करते रहते हैं
01:53ते वहार आता इसलिए है
01:57कि आप वैसे न रहो कम से कम कुछ दिन जैसे आप रहते हो
02:03कुछ बहतर हो जाओ
02:05कुछ उचे उठपाओ
02:07पर हम
02:10बड़े धुरंधर लोग है
02:14हमारे लिए तियोहार का मतलब होता है
02:18मैं जैसा हूँ
02:18वैसा रहे रही मौज मार लूँगा
02:21बलकि मैं जैसा हूँ
02:25चुकि अब मौज मारने का लाइसेंस मिल गया है
02:28तो अपने ही और गिरे हुए
02:32चेहरों को अभिव्यक्त कर दूँगा
02:35कोई मैंने जटेल बात नहीं बोल दी
02:39साधारण मतलब यह है
02:40कि साधारण दिनों में तो फिर भी हो सकता है
02:43कि हम थोड़े तमीज के लोग होते हूँ
02:47लेकिन जब तिवहार के देना जाते है
02:50तो हम अपनी रही सही तमीज भी गायब कर देते है
02:55हमें अनुमत मिल गई है धार्मिक
03:00हमारे अनुसार हमें धार्मिक अनुमत मिल गई है
03:03मौज मारने की
03:05तो आप दुनिया भर में देखिए
03:09सबसे आदा प्रदूशन कब हो रहा होगा
03:13तिवहारों के दिनों में हफ्तों में
03:17अभी 25 दिसंबर से लेके
03:22एक जनवरी तक का जो समय आएगा
03:25वो दुनिया भर में प्रदूशन के लिए
03:30और क्लाइमेट के लिए
03:31सबसे घातक समय होता है
03:33जितनी एर ट्रेवल उस समय होती है कभी नहीं होती
03:37जितना कंजम्शन उस समय होता कभी नहीं होता
03:39मार्केट में जितनी डील्स तब होती है कभी नहीं होती
03:41और टूरिज्म में जितनी गंदगी उस समय फैलती है कभी नहीं फैलती
03:46क्योंकि हमारे देखे
03:49दो-दो काम हो रहे हैं
03:51क्रिस्मस तो है धार्मिक
03:52और न्यू येर भी एक तरह से
03:55धार्मिक ही बात हो गई धार्मिक नहीं तो
03:57कम से कम सांस्कृतिक
03:58बकरीद पर
04:02जितने बकरे कटते हैं
04:04वो आम दिनों की अपेक्षा
04:07कई गुना कटते हैं
04:09एक आम दिन
04:10दुनिया में बकरे भेड़
04:12भारत में बकरों का जादा है और जगों पर
04:15और जानवर भी काटे जाते हैं
04:17तो वो दिन ऐसा होता है
04:19जिस दिन एक स्पाई का जाती है
04:20कि इतने तो रोज कटी रहे थे
04:23आज
04:23किसी भी तरह का प्रदूशन हो
04:30किसी भी तरह की असभ्यता हो
04:34वो हमारे त्योहारों पर ही सबसे आदा बढ़ जाती है
04:38यह करा है
04:44हमने धर्म के साथ
04:46धर्म का जो उद्देश यह है वास्तविक
04:51उसको हमने बिलकुल उलट करके रख दिया है
04:54इन्वर्स, फ्लिप
04:55किसी भी धर्मिक त्योहार पर
05:04प्रक्रति को, पशु को
05:06जीव को
05:09शति पहुचाना
05:12धर्म के बिलकुल विरुद्ध है
05:15और देवी के महोत्सव पर
05:20तो ऐसा करना
05:22महोत्सव के प्राण खीच लेने जैसी बात है
05:25जो पूरा शाक्त मार्ग ही है
05:34देवी का जो मार्ग है
05:37उसका जो केंदरी ये ग्रंथ है
05:39उसका आप नाम जानते हैं
05:40ठीक हैं? हम बहुत बार उसकी चर्चा कर चुके हैं
05:42क्या है? दुर्गा सब्शती
05:45या दुर्गा महात्मे
05:48कई नामों से जाना जाता है
05:50सब्शती जादा प्रचलित नाम है
05:51और सब्शती पर
05:56उन्हें इतनी बार बोला है आप लोगों को इतनी बार
05:58समझाया है एक-एक श्लोक की विस्तृत व्याख्या करिए
06:01वो पूरा ग्रंथ ही ये आपको बताने के लिए है कि देवी वास्तव में प्रक्रत ही हैं
06:18जिन राजा के वैराग्य और दुख से कथा शुरू होती है दुर्गा सब्शती में
06:27वो राजा जब जा रहे है मेधा मुनी के आश्रम में
06:30तो वहाँ पर क्या देख रहे हैं शुरू आथ ही कैसे होती राजा करशित कैसे होती हो तो जंगल आये थे कि
06:37जंगल में हम अपने प्रान तयाग देंगे कहानी ऐसी है कि
06:43राजा बड़े अच्छे आदमी थे मोटे तोर पर बता रहा है लेकिन उन्हीं के भाई बिरादरोंने मंत्रियोंने रानियोंने सबने मिल करके युद्ध में उनकी हार करवा दी दूसरे इधर उधर के राजाओं से मिल करके युद्ध में
07:01में इनको हरवा दिया
07:03और ये बड़े अच्छे आदमी थे
07:05प्रजा के लिए काम वगएरा करते थे
07:07तो इनके भीतर बड़ी गलानी उठी
07:09बड़ा ख्शोब
07:10कि मैं अच्छा आदमी था, सब के लिए ठीक किया
07:12फिर मेरे साथ ये क्यों हुआ
07:14और ये अब जंगल आ गए बोले जानी दे दूँगा
07:16और दूसरी और एक और भी सज्जन थे
07:22उनका बड़ा व्यापार था
07:26उनके साथ भी लगभग यही हुआ था
07:29उनका व्यापार डूप गया, उनके घरवालों ने
07:31बच्चों ने, भाई बेरादरों ने, उनकी पत्नी ने
07:33सबने मिलके उनको भगा दिया, निकलो यहाँ से किसी काम के नहीं
07:35वो भी जंगल आये थे
07:36और जंगल में आकर के भी वो कह रहे थे
07:39कि
07:40पता नहीं
07:43ये जो मेरे बच्चे हैं, ये सकुशल होंगे के नहीं
08:01तो ये दो लोग हैं, अब ये जा रहे हैं मुनी के आश्रम में
08:06जिन देवी के नाम पर हम इतनी हत्याएं करते हैं, विशेशकर बंगाल में
08:12जीव हत्या
08:14तो ये उन देवी की कथा है
08:18तो जा रहे हैं वहां मेधा मुनी के आश्रम में, वहां क्या देख रहे हैं
08:25कि वहाँ पर खर्गोष बैठा हुआ, और हिरन बैठा हुआ है, बत्क बैठी हुई है, उसके एक तरफ बाख बैठा है बीच में, भिडिया बैठा हुआ है, और कोई कुछ बोल नहीं रहा है, और मुनि सब को ग्यान दे रहे हैं, कहानी सुना रहे हूं, सब ऐसे बैठ के अ�
08:55उने व्यथा सुनाई तो मुनी बुले कि तुम्हें समस्या ये है कि तुम्हारी बुद्धी भी है इन पशुओं जैसी है तुम्हारी बुद्धी भी है इन ही पशुओं जैसी है और यहां जगत में जितने लोग हैं सब पैदा तो पशुबुद्धी लेके ही होते हैं वही �
09:25खुशियार हो ध्यान दोगे तो समझ लेना पिर उप कान ही बताते हैं पूरी
09:28कि विश्णों सोहे हुए थे
09:30उनके कान के महल से दो राक्षास पैदा हो गए
09:34तो एक के बाद एक करके उसमें राक्षास आते हैं
09:36मदु कैटव आते हैं चंड मुंड आते हैं
09:38महिशा सोराता है तो यह सब अपना
09:41यह चल रही है बार बार यह इंगित किया जाता है
09:48कि देवी प्रक्रति ही हैं और यह जितने राक्षास हैं
09:53यह वो लोग हैं जो प्रक्रति को भोगना चाहते हैं
09:56तो देवी माने वो जो उनका संगहार करती हैं जो प्रक्रति के साथ हिंसा करते हैं
10:05और हम देवी के भक्त बनते हैं और देवी के ही दिनों में प्रक्रति के साथ हिंसा करते हैं
10:10शिव और शक्ति का संबन तो समझते हैं ना
10:14शिव और शक्ति का संबन समझते हैं ना
10:18दोनों को साथ दिखाया जाता है
10:20पति-पत्नी के रूप में
10:24ठीक यही है ना
10:27और शिफ पशुपति भी कहलाते हैं
10:30पशुपति इस अर्थ में कि पशुओं के स्वामी
10:32जो पशुओं के स्वामी है
10:38वही देवी के पति हैं
10:41पति साधारन अर्थ में नहीं
10:44दूला दुलहन नहीं
10:45हलांकि शिव पारोते की कथा में दूला दुलहन भी है
10:48तो आप पशुओं को मारेंगे
10:54तो शक्ति को या शिव को ये बात सुहाएगी क्या
10:56और वो भी उन्हीं के दिनों में
10:59और इन दिनों में
11:03तो जलवा बिखरता है
11:05जो आम आदमी कम मचली खाता होगा ज्यादा खाएगा
11:08जो कम बकरा खाता होगा ज्यादा खाएगा
11:11दंदना के बली दी जाती है
11:13इतनी बली इतनी बली की कोई हद नहीं
11:16और जो बली नहीं भी दे रहे हैं
11:20उनको बकरा तो जरूर चाहिए
11:21विशेशकर बंगाल में
11:35कैदियों को सबको चिकन और मटन दिया जाए
11:39ये खुशी मनाने का तरीका है
11:42कि किसी गर्धन काट दो उससे खुशी मनाई जाएगी
11:44चलो अब मेरे सिध्धान्त की बात नहीं है
11:46मुझसे मत लड़ो
11:47वो कहरे लग जाते हैं कि देखो आप तो
11:51उत्तर भारत के वैशनव होना
11:53इसलिए आप शाकाहार शाकाहार बोलते हो
11:55मैं उत्तर भारत का वैशनव होने के नाते नहीं बोल रहा हूँ
11:59और मैं आपसे पूर्वी भारत बंगाल
12:03के शाक्त से नहीं बात कर रहा हूँ
12:07मैं भी उन्ही देवी की दिशा से आ रहा हूँ
12:16जिन देवी की आराधना आप करते हैं
12:18मैं दुर्गा सब्षती को आधार बना कर आपसे बात कर रहा हूँ
12:21दुर्गा को आप पूझते हैं न
12:24तो मैं दुर्गा के ग्रंथ की बात कर रहा हूँ
12:27या आप क्या कर रहे हो
12:29साधारण दिनों में जितने मास की खपत होती है उससे कई गुना ज्यादा मास आप इन दिनों में खा रहे हो
12:39खाने में नहीं बुराई है कि आप अशुद्ध हो जाओगे
12:42एक बार तो मर गया तो आप खाओ कि फेको वो तो गया ही जान से
12:47आपके खाने के लिए ही तो कतल किया जाता है आप ही के हाथ खून में रंगे हुए है शुम्बने शुम्चंड मुंड ये सब जब साफ हो जाते है
13:02तो अंत में मालू में क्या होता है कितनी गदब बात है मैं जतनी बार सोचता हूँ लोम हर शक बात है बिलकुल
13:08क्या नतीजा होता है जब देवी सब असुरों का सफाया कर देती है बुलते हैं जितनी प्रक्रत में गड़बड थी वो ठीक हो गई
13:21नदियां संकुचित हो गई थी अपने रास्ते से विचलित हो रही थी नदियां वापस मार्ग पे आ गई
13:27और पूरी धार के साथ बहने लग गई स्वक्छ हो गया उनका जल
13:32आस्मान पे धूल के बादल चाहे हुए थे वो हट गए सूरी की प्रभा अपने ओज के साथ बिखरने लगी
13:38अंधर तूफान आते थे अंधर तूफान आने रुख गए
13:43मने जो लोग प्रक्रत के साथ खिलवाड कर रहे थे उनका नाश करना ही देवी का काम है
13:50और यह सारे राक्षस क्या कर रहे थे देवी किसकी प्रतने दिये है प्रक्रत की
13:56यह सारे राक्षस एक ही काम करते थे यह देवी के पास प्रस्ताओं भेजते थे भोग का
14:05जो तीसरा उसमें चरण है उसमें वही तो है
14:09देवी वहाँ परवत पर बैठी हुई है
14:13और एक के बाद एक उनके नियोते भेजे जा रहे है
14:15क्या हो हमारी रानी बनो
14:17हम विश्यो जेता हैं
14:18सारे देवताओं को हरा दिया है
14:20और सारे जो
14:21अमूल लेरत्न हैं
14:23वो हमारे पास हैं
14:24और तुम भी तो एक अनुपम सुन्दरी हो
14:26तुम्हें हमारे पास होना चाहिए
14:27और देवी कहती है
14:32मैंने तो तैकर आये कि
14:33जो मुझे आकर जीत लेगा
14:35मैं उसकी पतनी बन जाओंगी
14:36कह दो जाके अपने मालिकों से
14:38कि आकर मुझे जीत ले
14:40मालिक आते हैं जीतने के लिए
14:42दे थपड़ दे थपड़
14:43माने जो भोग करने आएगा
14:46वो बहुत थपड़ खाएगा देवी से
14:47जो भोग करने आएगा बहुत थपड़ खाएगा
14:52एक बिंदु पर एक असुर देवी को ताना मारता है
14:57बोलता है क्योंकि वहाँ पर क्या होता है कि जो विवरण ऐसा है कि सहस्त्रों देवियां प्रकट हो जाती है अलग-अलग रूपरंग में
15:07देवी की सहायता करने के लिए
15:11न जाने कितनी देवियां वहाँ प्रकट हो जाती है
15:15कोई कहीं से कोई कहीं से कोई किसी से उठती है
15:17कोई किसी देवता से आती है
15:18कोई कि नहीं के शरीर से निकलाती है
15:20अब वो सब प्रकट हो जाती है
15:22और अक्षासों को दनादन पीट रही है तो वो जो असुर है वो ताना मारता है
15:28वो बोलता है इतनी सारी लेया करके क्या तुम बहुत वीरांगना बन रही हो
15:35दम है तो अकेले लडो देवी मुस्कडा के बोलती है तू पागल
15:39नौ का जो आकड़ा है वो आपको यह ही बताने के लिए है
16:07कि जहां जहां जहां प्रकृति में जो कुछ है
16:09जितनी भी विधताएं हैं
16:11उन सब को देवी ही मानना
16:13उनको अगर देवी ही मानना है तो उनका गला काट करके
16:15खा कैसे सकते हो
16:16पर हम अपनी संस्कृति को धर्म से उपर रखते हैं
16:22हमारे देखे
16:24संस्कृत पहले आती है
16:25और धर्म को हम रूपांतरित करेंगे
16:27संस्कृत में फिट होने के लिए
16:29हमारा ऐसा कल्चर है
16:30तो कल्चर के हिसाब से हमारा एलिजन चलेगा
16:32और जब कि बात
16:33बिलकुल उल्टी होनी चाहिए
16:35धर्म के आधार पर संस्कृत को
16:40बदलना चाहिए, वास्तविक धार्मिक्ता तै करेगी
16:42कि संस्कृत का साफ
16:44शुद्ध रूप क्या होगा, पर नहीं
16:46क्योंकि संस्कृत है हमारी आदत
16:48की बात होती है, संस्कृत है हमारे व्यवहार
16:50की, बहेवियर की, परमपरा, ट्रेडिशन
16:52की बात होती है तो हम संस्कृत इसे चिपके रहते हैं
16:54कि इमें उसके आदत लग गई होती है
16:55habituated होते हैं
16:57और फिर हम धर्म को
17:00तोड़ मरोड देते हैं ताकि हो जाकर के
17:02संस्कृत के खाचे में किसी तरह fit हो जाए
17:04हमने अपनी आदतों को धर्म का नाम
17:10दे दिया है
17:10तो ठीक उस समय
17:14जब उत्तर भारत में
17:16शाकाहारी थाली चलती है
17:18और कहते हैं नई नई अभी तो नवरात्री
17:20special थाली
17:21ठीक उसी समय बंगाल में मारागाट
17:24चलती है मैं ये नहीं कहा रहा है उत्तर भारत
17:26शेष्ट हो गया पूर अपसे इसते ही पता जलता है
17:27कि दोनों जगे बस आदतों के गुलाम है लोग
17:29ये शाकाहारी हैं तो कहते हैं
17:32अभी नवरात्र है तो मुझे और शाकाहार करना है
17:34वो मासाहारी है तो कहते हैं
17:36अभी नवरात्र है तो मुझे और मासाहर करना है
17:38दोनों में से कोई भी दूसरे से शेष्ट नहीं है
17:40दोनों बस अपनी आदतों
17:42परंपरा व्यवहार संस्कृति के गुलाम है
17:44और धर्म को वो संस्कृति का अनुगामी बना रहे है
17:47धर्म पीछे-पीछे चलेगा
17:48हमारे लिए कल्चर बहुत बड़ी बात है
17:51बार-बार कल्चर कल्चर करेंगे
17:53कल्चर क्या है तुम्हारी आदत का नाम कल्चर होता है
17:55भई बदलो अपने कल्चर को
17:57जैसे आदते बदली जाती है
17:58and since most of our habits are bad habits
18:02hence most of our culture is bad culture
18:04सीधी सी बात नहीं है क्या यह
18:07इतना क्या गवर्फ करते हो कल्चर पे
18:09जो कुछ पीछे से चला आ रहा है
18:12जो कुछ तुम्हारे व्योहार में है
18:14behavior में उसको ही कल्चर बोलते है न
18:15तुम्हारा बैठने उठने का तरीका
18:17तुम्हारे खाने पीने का तरीका
18:18तुम्हारी भाशा
18:19तुम्हारी पसंद ना पसंद यही सब तो culture होता है
18:22बार बार अभी भी मैं यह कर रहा हूँ
18:29भारी विरोध हाएगा
18:30He is speaking against Bengali culture
18:33Am I?
18:40He is speaking on behalf of North Indians
18:42Am I?
18:49उत्तर भारत की संस्कृती
19:03पर तो मैं इतने ताने मारता हूँ कि उत्तर भारती है मेरे पीछे पड़े हैं
19:11और देश के किसी और हिस्से के लोगों को समझाने जाओ तो वो मुझे फिर उत्तर भारती की तरह देखें यह कहां से बात आ गई
19:19सीथे सीथे क्यों नहीं बोलते हो तुम्हें मास मसाला पसंद है
19:34जानवर कोई देवी के लिए थोड़ी है देवी थोड़ी जानवर खाएंगी
19:40खाते तो तुम हो
19:42हम में कितनी बैमानी है कि हम सीथे साधे सच को भी सुईकार नहीं कर सकते
19:51अपनी जबान के सुआद के लिए काट रहे हो उसको धर्म का है उसमें नाम ले रहे हो
19:55धर्म क्या है यहां
19:57और वो भी ऐसी देवी के तेवहार में तुम जानवर काट रहे हो जो स्वयन सब पशुवों की रक्षक हैं वो प्रकृति की देवी हैं
20:11सब पशुव, सब जीव, सब प्राणी उनके बच्चे ही नहीं है उनका अपना रूप है
20:24हम यह भी नहीं कह सकते कि वो देवी हैं और यह सब चोटे चोटे उनके बच्चे हैं बच्चे भी नहीं है वो देवी के रूप है
20:31वो देवी के सजीव रूप हैं
20:37देवी के सजीव रूप को देवी की प्रत्मा के सामने काट रहे हो
20:40ये कहां की हुश्यारी है
20:58अभी तो मैं इस पर आ ही नहीं रहा हूँ
21:00कि धार में आधार हटा भी दो
21:02तो पर्यावरण की दरिश्टे से
21:06और क्लाइमेट चेंज की दरिश्टे से
21:08जानवरों को मारना
21:11कितना बड़ा गुनाहा है
21:14अभी तुमें इस पर आभी निराउं की क्लाइमेट चेंज का
21:20दूसरा सबसे बड़ा कारण मासाहार है
21:22कि deforestation का और biodiversity extinction का सबसे बड़ा कारण महासाहार है
21:32अभी तो मैं इस पर आही नहीं रहाँ
21:34कि fresh water scarcity का सबसे बड़ा कारण महासाहार है
21:43इसकी तो अभी मैं बात ही नहीं कर रहाँ
21:44अभी तो मैं बात बस धर्म और संस्कृतिक ही कर रहाँ
21:52हमारे धर्म ग्रंथों का अगर सही अर्थ किया जाए
21:59तो बड़े उंचे हैं, बड़े प्यारे हैं ग्रंथ हमारे
22:02पर हमें बस त्योहारों पर धूम मचानी है
22:07ग्रंथ से कोई लेना देना नहीं
22:10त्योहार अगर ग्रंथ पर आधारित नहीं है
22:15तो वो त्योहार
22:16एक ordinary
22:20party से बढ़कर
22:22कुछ है क्या
22:23बुरा लग रहा होगा सुनने में
22:28पर मुझे बताओ न
22:29अगर त्योहार के आधार में धर्म नहीं है
22:32तो त्योहार में और एक weekend party में
22:34क्या अंतर है
22:34और धर्म क्या होता है
22:43तुमारी माननेताओं को
22:44beliefs को
22:45culture को धर्म नहीं बोलते
22:48धर्म का मतलब होता है
22:53submission to the truth
22:54आदत की अपेक्षा
23:03सत्य को सम्मान देना धर्म है
23:13हम मौज मारते हैं
23:19हम कहते हैं हमारा त्योहार आया
23:21और सोचो ये करोणों
23:24बेजुबान छोटे प्राणी
23:27इनके लिए क्या आया
23:28हमारे लिए मौज आई
23:31इनके लिए मौज आई
23:32दुर्गा सब्तशती का केंद्रिय संदेश यही है
23:42प्रक्रत को भोगोगे
23:45प्रक्रत को कंजम्शन की चीज मानोगे
23:48तो देवी तुम्हारा वही हाल करेंगी
23:51जो चंड मुंड मधु कैटब शुम्बन शुम्बका किया था
23:55महिशासुर कौन है
23:57जो प्रक्रत को
24:00कंज्यूम करने निकलता है
24:02जो कहता है
24:03I'll have fun at the expense of प्रक्रते
24:07वही महिशासुर है
24:08देवी का त्योहार इसलिए थोड़ी आता है
24:18कि हम खुद ही महिशासुर बन जाएं
24:25आपसे निवेदन करता हूँ
24:34आपकी मौज किसी की मौत ना बने
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