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00:00:00वासना इतनी बेताब चीज होती है, इतनी बेचैन, इतनी अधीर, कि जहाँ जो नहीं है, वहाँ वो देखना उसकी मजबूरी हो जाती है
00:00:11अर्जुन का आश्चर है, समझ में आने जैसी बात है
00:00:19अरे भाई उस कामना से अगर आपको कुछ सुख मिल रहा होता, तो कृष्णा आप से बोलते कामना में और गोते मारो
00:00:26जवान आदमी परेशान हो जाता, उसको लगता उसकी कोई बड़ी भारी चीज छीन ली जा रही है
00:00:30अगर कामना की बात हो रही है, तुम्हारी कोई चीज छीनी नहीं जा रही है
00:00:36तुम जो कर रहे हो उसमें दुख है तुम्हारे लिए
00:00:38यही वज़ा होती है कि कामी आदमी अपने दो रुपए के फायदे के लिए दुनिया का लाकों का नुक्सान करा देता है
00:00:47इतनी अगर साफ बात है तो दुनिया में किसी को क्यों नहीं दिखाई देती
00:00:52आप जिसको भी जैसे भी देखते हैं इसलिए देखते हैं क्योंकि आप में उसके प्रतिकामना है
00:00:58इसलिए आप किसी का यथार्थ कुछ नहीं जानते
00:01:01जब कॉलेजों में जाता था तब से लेकर आज तक, सब के मन में एक ये जिग्यासा बड़ी रहती है, किसी की सच्चाई कैसे जाने है?
00:01:16अरजुन पुछते हैं, कि जब सारी बात हेकेश उतनी ही इस पश्ट है, जितनी आप कह रहे हैं,
00:01:31तो फिर पूरा संसार मोहित क्यों रहता है?
00:01:43वो उस पश्टता उनको उस खशन में प्रतीत हो रही है, वो उस पश्टता उनकी अपनी नहीं है,
00:01:51फिर भी प्रश्न में एक व्यादता तो है,
00:01:54क्यूंकि सत्य तो सरल के लिए सरल होता है,
00:02:10और जो देख पाए उसके लिए प्रत्यक्ष होता है,
00:02:14दौरजुन का ये पूछना सम्यक ही है कि सत्य जैसी चीज जिसमें कोई जटिलता नहीं,
00:02:33दुराव नहीं, चुपाव नहीं, जिसको जानने के लिए किसी प्रिष्टभू में, किसी सिध्धान्त क्या वश्चक्ता नहीं है,
00:02:46वो सत्य क्यों हमारे लिए इतना दुरगम और दुश्प्राप पे हो जाता है,
00:02:52आम आदमी तो उसकी अभीप्सा भी नहीं करता, और साधक लोग जिंदगी भर खोजते रह जाते हैं, तब भी नहीं पाते,
00:03:05ये प्रश्ण इतना विकट हो गया है, सच्चाई क्या है, इतना विकट और इतना असंभव हो गया है ये प्रश्ण,
00:03:22कि पूछना ही हास्यास्पद हो गया है, सवाल जैसे चुटूला बन गया है,
00:03:31क्यों बन गया है, सिर्फ इसलिए क्योंकि जो सरल और सहज भी है,
00:03:39जो इतना उपलब्द है कि उससे भाग कर दूर जाना चाहो तो भी नहीं जा सकते,
00:03:45इतना उपलब्ध है कि अनिवार रहे है
00:03:50वो भी हमारे लिए
00:03:55अनंत गुना असंभव हो गया है
00:04:01पाना जीवन में उतारना
00:04:06दर्शन करना
00:04:15तो अरजन बड़े भोलेपन से पूछ रहे हैं
00:04:19कि कोई छुपी हुई चीज होती, किसी को नहीं मिल रही होती
00:04:24तो समझ में आता भी
00:04:25कोई छोटी चीज होती
00:04:29छुप गई होती, खो गई होती
00:04:33कहीं रख के भूल आये होते
00:04:36तो समझ में आता भी
00:04:38घर में आप कई बार चोटी चीज़ें भूल जाते हो
00:04:44कुछ छोटा सा कुछ भी
00:04:48कान की बाली
00:04:54कलम
00:04:58कुछ छोटा सा कागस
00:05:04इस तरह की चीज़ें होती हैं जो खो जाती हैं आप कहते हो खो गया मिल ली रहा
00:05:10घर में हाथी बंधा हो खो जाया क्या करेंगे
00:05:20रूमाल था
00:05:29रूमाल समझ में आता है
00:05:32कोई छोटी सी कील थी
00:05:43पिन
00:05:44वो समझ में आती है
00:05:46हाथी
00:05:49कि घर में हाथी है दिखनी रहा गई मिलनी रहा क्या हो गरी खो जाये
00:06:02घर में घर नहीं मिल रहा इधर उधर घूम रहे है घर में और परेशानी क्या है
00:06:13घर नहीं मिल रहा तो अर्जुन का आश्चर रहा है
00:06:23समझ में आने जैसी बात है
00:06:27मतसुदन आप जो बता रहे हो इतना स्पष्ट करे दे रहे हो
00:06:36इतनी अगर साफ बात है तो दुनिया में किसी को क्यों नहीं दिखाई देती
00:06:45कलम का धक्कन नहीं खो गया है
00:06:57घर में हाथ ही खो गया है
00:07:01अरे घर में घरी खो गया है
00:07:04और दिखन नहीं रहा किसी को
00:07:07तो पहले तो ज़रा सर्धानतिक तरीके से उसका उत्तर देते हैं
00:07:15क्रिश्न क्या बोलते हैं
00:07:16कहते हैं यह जो रजोगुण का पूरा कुनवा है न
00:07:20उसके गारण होता है
00:07:25कुछ नहीं दिखाई देता
00:07:29यह सब उसका काम है
00:07:32वो तुमारी चेतना को सत्य तक नहीं पहुचने देता
00:07:36फिर उसी बात को आने वाले दोशलोकों में
00:07:43और पार्थिव तल पर समझाते हैं
00:07:47तो उन दोशलोकों में से पहला
00:07:50हम आज लेंगे
00:07:52मैं कौन हूँ
00:07:59यही है न केंदरी प्रशन वेदानत का
00:08:02मैं कौन हूँ
00:08:05इसको ही ऐसे लिखा जा सकता है
00:08:09इसके लिख लीजीए
00:08:10मेरी कामना क्या है
00:08:17ठीक है
00:08:22सत्य तो पूछने आता नहीं कभी मैं कौन हूँ
00:08:28कुछ है ही नहीं कि वाँ पूछे विचारा
00:08:32किस से पूछे विचारा
00:08:33उसको इसब जंजट नहीं है
00:08:39को हमें त्या दे
00:08:40और एकदम जड़ पदार्थ हो
00:08:46वो भी अपनी
00:08:48तमसा में
00:08:50तंद्रिल है
00:08:51एकदम सोया पड़ा है
00:08:53जैसे पत्थर है वो सोया पड़ा है
00:08:55ऐसा नहीं कि पत्थर में चेतना नहीं है
00:08:57लेकिन चेतना प्रसुपत है
00:08:59एक दिन आएगा
00:09:02वो पत्थर टूट टाट के
00:09:03क्या बनेगा मिट्टी बनेगा
00:09:06और मिट्टी क्या बनेगी
00:09:09वो अन बनेगी
00:09:11फूल बनेगी ब्रक्ष बनेगी
00:09:14कुछ बनेगी
00:09:14अब फिर वो जो पत्थर था वो बोल उठेगा
00:09:19व्रिक्ष बोलते हैं न
00:09:22अब व्रिक्षों का बोलना नहीं सुन पा रहे हैं तो ऐसे समझे लो कि
00:09:26जो व्रिक्ष है कोई बकरी आएगी उसका पत्ता खाएगी बकरी बोलेगी
00:09:31देखो मिट्टी बोल रही है, बकरी नहीं बोल रही है, समझ भारी ही बात
00:09:37तो सत्य कभी नहीं पूछता मैं कौन हूँ
00:09:45उसको इस तरह की कोई समस्या ही नहीं है
00:09:50और जो जड़ पदार्त होता है अपनी चेतना में
00:09:54सोया पड़ा
00:09:56वो भी कभी नहीं पूछता है कि
00:09:58मैं कौन हूँ
00:10:00यह प्रश्न है
00:10:01यह अपूर्णता का प्रश्न है
00:10:04और अपूर्णता मने वही
00:10:06इसकी बात श्री कृष्न पिछले शलोप में कर रहे थे
00:10:09रजस
00:10:10राजस्क्ता
00:10:13राजस्क्ता
00:10:16हमेशा आपने साथ
00:10:18क्या लेकर आती है
00:10:19कामना
00:10:20मैं कौन हूँ
00:10:24यह प्रश्न
00:10:25यही है कि मेरी कामना क्या है
00:10:28मेरी कामना क्या है
00:10:30मैं कौन हूँ
00:10:31कहां से उठेगा अपूर्णता से ही तो उठेगा
00:10:33आप पूर्ण हो तो थोड़ी पूछोगे मैं कौन हूँ
00:10:35सत्य नहीं पूछता
00:10:37आपकी अपूर्णता ही पूछती है
00:10:40मैं कौन हूँ और अपूर्णता माने क्या होता है
00:10:42क्या होता है
00:10:45कामना
00:10:46ठीक
00:10:48तो मैं कौन हूँ यही सवाल है
00:10:50कि मेरी कामना क्या है
00:10:52मैं कौन हूँ का कोई
00:10:55जो वास्तविक
00:10:58उत्तर होता है वो होगा
00:10:59उस पर अभी आ जाएंगे बाद में
00:11:02आम आदमी के पास
00:11:04तो मैं कौन हूँ
00:11:06के पूरो निश्चित
00:11:09बंधे बंधाए जवाब
00:11:12पहले ही उपलब्द होते हैं
00:11:14ठीक
00:11:15तो धारण के लिए आप
00:11:18बोल देते हो
00:11:19मैं व्यावसाई हूँ
00:11:21कुछ व्यावसाई बता दो
00:11:24मैं दुकांदार हूँ
00:11:27मैं दुकांदार हूँ
00:11:29तो जो दुकान है
00:11:32वो आपकी कामना से जुड़ी हुई है
00:11:33मैं कौन हूँ
00:11:36के जूटे जवाब जितने होते हैं
00:11:38वो सब
00:11:39आपकी कामनाओं के
00:11:41प्रतीक होते हैं
00:11:42मैं कौन हूँ
00:11:43मैं दुकान हूँ
00:11:45दुकान क्या करती है मेरी कामना की पूर्ति करती है
00:11:50मैं कौन हूँ मैं पती हूँ मैं पती क्यों हूँ मेरे पास एक पत्नी है
00:11:54पत्नी क्या करती है मेरी कामना की पूर्ति करती है
00:11:57मैं कौन हूँ मैं मां हूँ मैं मां क्यों हूँ
00:12:00क्योंकि मेरे पास बच्चा है
00:12:02बच्चा क्या करता है मेरी कामना के पूर्ते करता है
00:12:05ये सब मैं कौन हूँ के जूटे जवाब है
00:12:12लेकिन चलते यही जवाब है
00:12:15दुनिया में आप किसी से ही पूछी हा भाई तुम कौन हो
00:12:18ये तो नहीं बोलेगा मैं नहीं जानता
00:12:20उसके पास उत्तर होते हैं
00:12:23और ये जितने उत्तर होते हैं
00:12:25ये सब हमारी कामनाओं के प्रतिनिधी होते हैं
00:12:31एक एक उत्तर
00:12:32इसलिए जब मैं कौन हूँ
00:12:36का वास्तविक उत्तर हम ढूड़ने निकलते हैं
00:12:39तो हमें कोई उत्तर मिल नहीं सकता
00:12:41उसकी प्रक्रिया वसी होती है
00:12:44कि जितने जूटे उतर थे उनको काट दो
00:12:47कौन कहता है कि मैं कौन हूँ का
00:12:50कोई भी सही जवाब हो सकता है
00:12:52कोई सही जवाब नहीं होता
00:12:53एकदम नहीं होता
00:12:54आप बोलोगे कि मैं ब्रहम हूँ
00:12:58मैं सत्य हूँ
00:12:59मैं आत्मा हूँ
00:13:00मैं बोध हूँ, मैं शुद्ध चैतन्य हूँ
00:13:02यह आप जितनी बातें बोल रहे हो यह बातें हैं यह आप
00:13:08जितने शब्द प्रयोक कर रहे हो
00:13:12यह सब भाशा के बाहर के हैं
00:13:14भाशा में वही आ सकता है जो परिभाशित होता हो
00:13:20भाशा में वही आ सकता है जो परिभाशित होता हो
00:13:27और परिभाशित करना माने परिसीमित करना
00:13:38परिसीमित करना माने बांध देना परिसीमन
00:13:41बांध देना तो सरकमस्क्राइब यह होता है परिसीमन
00:13:50to define is to circumscribe
00:14:01और मैं कौन हूँ उसको आपने बांधी दिया है
00:14:06तो फिर बंधे ही रहो न वैसे ही पहले ही बंधे हुए थे
00:14:08दुबारा बंधने की क्या जरूरत है
00:14:10आप पहले बंधे हुए थे आप बोल रहे थे मैं दुकानदार हूँ
00:14:13वो एक बंधी हुई परिभाशा थी है ना
00:14:15अब आप बाहर निकले सची परिभाशा ढूंडने
00:14:17और सची परिभाशा में आपको बता दिया गया कि तुम आत्मा हो
00:14:21और आत्मा अगर भाशा के अंदर का शब्द है तो वो भी क्या होगा
00:14:27परिसी मित होगा तो भाई जब बंध नहीं है तो दुकान से बंध जाते हैं आत्मा सकाय को बंध है
00:14:31दुकान से कम रुपया मिलता है आत्मा कौन किसी को रुपया देने आती है
00:14:35ठीक है तो इसलिए मैं कौन हूँ का कोई अथार्थ उत्तर होता नहीं है
00:14:41कोई बहुत चौराहे पर शोर ना मचाए कि मैं शुद्ध बुद्ध चैतन्य मात रूँ ये कोई ऐसी बात बोलोगे तो
00:14:50बुद्ध इनको कहते थे ना कि ये अव्याकरत कहते थे
00:14:56अव्याकरत मान लो एक तरीके से अवैध या अप्रतिबंधित
00:15:02ये सब बेकार की बाते हैं इस पर हमें कोई लेना देना नहीं है
00:15:08मैं कौन हूँ जब पूछा जाए तो सिर्फ एक काम करा जा सकता है
00:15:16जो कुछ माने बैठे हो उसकी कटाई है
00:15:20जो कुछ भी माने बैठे हो काट दो, धो दो, पीस दो, चूर दो, भगा दो
00:15:28भांडा फोड़ कर दो, पोल खोल दो, जैसे भी बोलना हो
00:15:36उसका खोखलापन दिखा दो, उसकी शूनिता ओध घाटित कर दो, जिस दिशा से लाना हो
00:15:43संतों से पूछोगे तो उसी तरीके से बोलेंगे कि धुलाई कर दो
00:15:49भीतर चदरिया क्या कर रखी बड़ी, मैली कर रखी, धुलाई कर दो
00:15:55तो वो इस तरह से बोलेंगे, बौधों से पूछोगे तो क्या बोलेंगे
00:15:59बोलेंगे खाली है सब, खाली है सब, लेकिन वो बात एक ही बोल रहे है
00:16:05कोई बोले कि धुलाई कर दो, कोई बोले खाली कर दो, दोनों बात एक ही कह रहे है
00:16:17आशा एक ही है, कि जो कुछ है उसके जूट को या विर्थता को या निसारता को पहचान लो
00:16:27क्यों पहचान लो, क्या निसारता है, बात पूरी क्या है
00:16:36क्यों इतना कहा जा रहा है कि मैं जो कुछ भी हूँ, अपने आपको जो भी मैं समझता हूँ, मेरी पहचान है, वो जूट है
00:16:47निसरक्दत महराज जे एक बार कोई मिलने आया था, देशी था कोई
00:16:52तो उससे करी होगी लंबी चौड़ी बात हम नहीं जानते है, उसको समझ बेना आया जो भी हो, उनकी आदत थी, वो डाट बहुत जल्दी दिया करते थे
00:17:02तो वो फिर बोलता है, बिचारा खड़ा होके हाँ जोड़के बोलता है, मुझे कुछ समझ भी नहीं आ रहा है, आप क्या बोल रहे हूँ, वो तो दुनिया भर में तरह तरह की युद्ध चल रहे हैं, नहीं के, समय में 71 की लड़ाई हुई थी, वियतनाम की लड़ाई हु
00:17:32एक पिछड़े हुए लाके में, एक बहुत छोटे से घर में एक आदमी बैठा हुआ है, जो कह रहा है, मैं ब्रहम हूँ, बोल रहा है, मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है, आप क्या बातें कर रहा हूँ, उसे पुछा ही, जो लड़ाई चल रही है, इसके बारे में कु
00:18:02बोल रहे हैं, वो बिचारा है, उसको नहीं समझ में रहा हूँ, तो उसने का, हमें नहीं समझ में आ आए, कोई आखरी बात हो तो बता दीजिए, तो बोले, आखरी बात हो, बस इतनी तुमें बतानी है, कि मैं क्या कह रहा हूँ, ये समझने का प्रयास छोड़ दो, तुम �
00:18:32पश्ट करके बोल दूँ, विस्तार में बोल दूँ, सरल करके बोल दूँ, तुमको कुछ समझ में नहीं आएगा, यहां ते हमें थोड़ा इशारा मिलता है, क्या बोल रहे हैं वो, वो बोल रहे हैं, जब तक तुम वही हो जो तुम अपने आपको माने बैठे हो,
00:18:56तब तक मैं तुम्हारे सामने सत्य साक्षात खड़ा कर दूँ, तो भी तुम्हें कुछ दिखाई नहीं देगा,
00:19:04तो उसको थोड़ी सी कुछ जलक मिली होगी, रोश्नी कौंधी होगी, उसने सुना वो चला गया,
00:19:19पर इस से हमको इशारा मिलता है कि जूठी पहचान का नुकसान क्या है,
00:19:28जूठी पहचान का नुकसान क्या है, और हमने कहा जूठी जो पहचान होती है, मैं कौन हूँ,
00:19:33उसका अनेवारे संबंध किस से है, कामना से, मैं कौन हूँ माने मेरी कामना क्या है,
00:19:39तो जितनी तरीके कामनाई होती है उसी अनुसार मैं कौन हूँ के आपको विविद प्रगार के उत्तर मिलते जाते है आपकी कामनाई बदलते जाती है आपकी आत्म परिभाशा बदलते जाती है ठीक है तो उससे को कहा कि तुम जो अपने आपको मानते हो वो जब तक कायम रह
00:20:09देखती नहीं है वो प्रक्षेपित करती है वो देखती नहीं है वो प्रक्षेपित करती है जो आपके भीतर आपकी पहचान है मने जो भीतर आपके आपकी कामना है आपको आपकी दुनिया बिल्कुल वैसी दिखाई देगी तो बताओ सत्य कैसे दिखाई देगा अरजुन य
00:20:39बताईए दिखता क्यों नहीं तो कृष्ण वई समझा रहे हैं आज कि अरे तुम्हारी आख में रजोगुन बैठा है माने कामना बैठी है और जिस आख में कामना बैठी है जिसकी अपनी पहचान दूशित है उसको जगत में भाति भाति के मित्या तत्तो ही दिखाई देंग
00:21:09लिए जगत भी तमाम तरीके की परस्पर विरोधाभासी कहानियों की एक अनंत श्रिंखला भर होगा हम भीतर क्या है अपने एक कहानी कहानी तो जो हमारी दुनिया होती हो भी क्या होती है हम भीतर जो कहानी है वो कोई एक कहानी तो है नहीं हो पचास-साठ कहानिया है कु�
00:21:39लड़ती हैं
00:21:42आपकी एक कहानी यह है उधारण के लिए कि आप सनातनी हो
00:21:50आप अगर सनातनी हो तो आपको रिशीयों के सुननी पड़ेगी
00:21:53और रिशी तो आपको ज्यान समझाते हैं
00:21:59और आपकी दूसरी कहानी यह है
00:22:01कि आप आधनिक युग के एक उच्च मध्यम वरगी नागरिक हो
00:22:07और वहाँ आपको बहुत प्रकार का अज्यान पकड़ना ही पड़ेगा
00:22:13नहीं तो आप आधनिक नहीं हो सकते
00:22:14नहीं तो आप समाज के साथ कंदे से कंधार, कदम से कदम मिलाके नहीं चल सकते
00:22:20तो यह दो कहानिया हैं भीतर और दोनों हैं
00:22:24आप अपने आपको आधनिक भी बोलते हो और अपने आपको आप सनातनी भी बोलते हो
00:22:28और यह दो कहानिया भीतर क्या करेंगी लड़ेंगी
00:22:31तो जैसे भीतर हमारे कहानियां होती हैं
00:22:34वैसे ही बाहर फिर हमारे कहानियां होती हैं
00:22:35इसके भीतर कहानियां हैं वो बाहर सच नहीं देखेगा
00:22:38उसे बाहर भी कहानियों का निर्मान करना पड़ेगा
00:22:41करना नहीं पड़ता हो जाता है
00:22:43खुदी हो जाता है
00:22:44भीतर की कहानियां क्या करती हैं आपस में तो बाहर की भी जो सब कहानियां उनमें आपस में क्या रहेगी
00:22:51असंगती, contradictions
00:22:54और वो सब आपस में क्या करेंगी, लड़ेंगी
00:22:59अब वो व्यक्ति उन से पूछ रहा है कि वियतनाम में लड़ाई चल रही है, बंगलादेश में लड़ाई चल रही है
00:23:04वो उसको कैसे बताएं कि वो जो बाहर लड़ाई चल रही है, इसलिए चल रही है
00:23:10जब तुम्हारे भीतर इड़ाई चल रही हो
00:23:16तो पूरा विश्व तुम्हारे लिए कुरुक्षेतरी तो बनेगा और क्या बनेगा
00:23:20जब तुम्हारे भीतर कहानी हो जिसमें तुम एक डरे हुए किरदार हो
00:23:29भीतर तुम्हारे कहानी है जिसमें तुम एक डरे हुए किरदार हो
00:23:33तो इसमें ताज्यूब क्या कि बाहर तरीके तरीके के दुश्मन तुमको दिखाई देने लगते हैं
00:23:41जो डरा हुआ है उसको बाहर दुश्मन के लावा कौन दिखाई देगा
00:23:44जो डरा हुआ है उसको बाहर दो आप डरे हुए हो तब ही पीछे कोई बिल्ली आकर कि ऐसी कोई बरतन गिरा देती है
00:23:53हालत क्या होती है आपकी कुछ नहीं बिल्ली है
00:23:56कुछ उसका नाम चिंकी बिल्ली
00:24:02वही जिसको आप सौ बाह पहले भी देख चुके हो
00:24:07पर आप एकदम डरे हुए हो किसी वज़े से वो पीछे से आई उसने कुछ गिरा दिया
00:24:11और आप इतना बुरा चौके
00:24:14गेर दे आगा हाथ नहीं हो गया बड़ी बात है
00:24:18यह हुआ है कि नहीं हुआ है
00:24:20सधारण सी बात उस बिल्ली को आपने हो सकता कई बारा थे हाथ में उठाया भी हो
00:24:24जान पहचान की बिल्ली
00:24:25और बिल्ली आपके लिए ऐसे हो गई जैसे पता नहीं क्या
00:24:29यह मराज कब हैसा
00:24:31भीतर जब गडबड है तो बाहर गडबड आपको प्रक्षेपित करनी पड़ती है
00:24:40समझ में आ रही है बात
00:24:43नहीं सच्चाई दिखाई देती जब भीतर जूट बरा हुआ है
00:24:47कामना भीतरी जूट है जिसके कारण हमें बाहरी जूटों का निर्मान करना पड़ता है
00:25:01जिसकी भीतर जो कामना होगी वो उसी अनुसार अपने जगत का निर्मान कर लेगा
00:25:12निर्मान बोलने से ऐसा लगता है ऐसे कोई ठोस काम करा जा रहा हूँ
00:25:15तो हम निर्मान नहीं बोलेंगे हम कहेंगे कलपना
00:25:17कलपना क्या सकते हैं
00:25:22प्रक्षेपन क्या सकते हैं
00:25:23कुछ भी कह लिजी
00:25:24कभी मैं निर्मान भी बोल दूँगा
00:25:28तो निर्मान यह मैं समझेगा कि
00:25:29कोई ठोस चीज़ है, कोई तथ है
00:25:31कुछ यह अथार्थ है, नहीं कुछ नहीं
00:25:33निर्माण माने वैसे इसे आदमी सपने में घर बना रहा हूँ, निर्माण कर लिया घर का, सपने में, तो क्या निर्माण किया, कुछ नहीं, आप दुनिया देखते नहीं हो, जो आपको चाहिए, आप उसकी कल्पना करते हो, इसका प्रमाण ये है, कि जो कुछ भी आप दे�
00:26:03निकलते ही नहीं जैसा आपने उसको सूचा था और बड़ा प्रमाण यह है कि आप जो कुछ भी देखते हैं अपनी कलपना की पूरती के लिए ही देखते हैं अपनी कामना की पूरती के लिए और कामना की पूरती उससे कभी होती नहीं अगर वो जो बाहर का विशे है वो सच
00:26:33अपनी कामना हे तुभी देखते हो, बिना कामना के तो कुछ भी नहीं देखते हो, देखा और उसको देख करके उसके विशय में कुछ निशकर्च करा, अपने साथ ही खेलते हैं, निशकर्च ऐसे करा जैसे कि अभी नई ताजी चीज दिखी हो और उसके बारे में अब खोज
00:27:03कि इस चीज से मेरी कामना बुझेगी
00:27:05अगर वो चीज सचमुच वही होती
00:27:08जो आपको वो प्रतीत हो रही थी
00:27:12तो उससे आपकी कामना शान्त तो ही होती
00:27:15कामना तो कभी शान्त होती नहीं
00:27:17माने वो जो सामने चीजे कभी भी वो नहीं होती
00:27:20जो आपको वो लग रही है
00:27:21हमें कुछ नहीं दिखाई देता
00:27:26जिसके कामना जितनी ज्यादा होगी
00:27:29वो संसार में उतनी मिथ्या कहानिया बुनेगा अपने हर तरफ
00:27:36उसकी आँखें खुली होंगी उसे दिख कुछ नीरा होगा
00:27:41आँखें खुली हैं दिख कुछ नीरा
00:27:50और वासना इतनी बेताब चीज होती है
00:27:54इतनी बेचैन, इतनी अधीर
00:27:57कि जहाँ जो नहीं है वहाँ वो देखना उसकी मजबूरी हो जाती है
00:28:03जहाँ जो नहीं है देखना पढ़ता है भाई
00:28:07नहीं तो जीओ के कैसे, भीतर क्या है बस
00:28:12अपूरित कामना है धहकती एक्छाएं
00:28:16बहुत तरह के प्रयोग हुए है
00:28:22बनोवज्ञानिकों ने कर रहे हैं
00:28:25जिसमें उन्होंने इस तरह के चित्र बनाई
00:28:29या बनोवज्ञान में बहुत चलते हैं
00:28:31इनको इनका एक खास नाम होता है
00:28:33ऐसे चित्र होते हैं
00:28:37जिसमें कई तरीके की छवियां देखी जा सकती हैं, ठीक है, एक चित्र होगा, उसमें दो, तीन, पाँच चीजें देखी जा सकती हैं, इस पर निर्भर करता है कि देखने वाला कौन है, तो दो चार तो मुझे याद भी आ रहे हैं, वो हमारी एक्टिविटी में भी हैं, कि �
00:29:07करफ से देखें तो वृद्धा है, ठीक है, तो मनवग्यानिकों ने इस तरह किए कि बहुत सारे चित्र बनाए, और उसमें उन्होंने ये पाया, कि जो भीतर से जितना ज्यादा डिजायरस होता है, उसकी संभावना उतनी ज्यादा होती है, चित्र का कुछ भी उल्टा उल
00:29:37इसी भी आदमी के लिए खाना देखना बड़ा मुश्किल होगा, वो किसी चीज का चित्र है, वो पेडों का चित्र है, वो एक बगिया का चित्र है, इसमें कई तरीके के पेड है, पर उस तरह से बनाया गया है, कि एक दूसरी दृष्टी से देखा जाए, तो उसमें कु�
00:30:07लोगों को दिखाया गया, तो उसमें उनको पेड दिखाई दिये, वो चित्र जब भूखे लोगों को दिखाई दिया, तो उसमें उनको खाना दिखाई दिया, आम लोगों ने वो चित्र देखा, उन्हें उसमें पेड दिखे, और पेड ही बनाया गये थे, लेकिन वही च
00:30:37हुआ औरुए। आपको वही दिखाई देता है जो आप देखना चाहते हो,
00:30:49आप वही देखना चाहते हो जो आप होते हो वही आपको दिखाई
00:30:53देता है इसी को कहते हैं कि संसार एहंकार का विस्तार होता है
00:30:58आपको वही दिखाई देता है जिसकी आपको कामना होती है और जो आपकी
00:31:09कामना है वही आप हो क्योंकि कामना का संबंद अपूर्णता से है और
00:31:13अब पूर्णता ही अहंकार है
00:31:14तो आपको वही दिखाई दे रहा है जो आप हो
00:31:19समचरबात को
00:31:27क्या बोलते हैं उन चित्रों को
00:31:28एक उनके लिए विशेश नाम होता है
00:31:30उन इमिजेस को कुछ बोलते हैं
00:31:33पहले, दस साल पहले की बात है
00:31:36तो उसको पढ़ाते भी थे हम लोग एक अक्टिविटी में का
00:31:39ने, ओप्टिकल इल्यूजन दूसरी चीज होती है
00:31:42ओप्टिकल इल्यूजन इंदरियों का धोखा होता है
00:31:45वो पूरी साइकॉलोजी का एक शेत्र ही होता है
00:31:51तो जो बात आज हम वहाँ पर जाके समझ रहे हैं
00:32:02कि किसी चीज का स्टार्ट क्या होता है
00:32:05वो चीज गीता में कृष्ण
00:32:08तीसरे अध्याय में हमको समझा रहे हैं
00:32:14और अश्टागरिशे भी वही बात बोलते हैं
00:32:18पर बिना इतना विस्तार में समझाए
00:32:22वो सीधे ही घोशित कर देते हैं
00:32:24डिकलेयर कर देते हैं
00:32:26वो सीधे ही बोल देते हैं
00:32:27कि ये जगत और कुछ नहीं है
00:32:30मेरे द्वारा देखा जा रहा सपना है
00:32:34ये जगत क्या है जागो लोगो ना सो ना करो नीन से प्यार जैसे सपना रैन का तहसा ये संसार अप सांच में आ रही ये बात है आपका ही सपना और आप सपने में वही देखोगे ना क्या देखोगे आप वो क्या देखोगे सपने में वही जा क्या फ्रॉइट से पूछोगे
00:33:04आपकी कामना ही आपकी दुनिया बनकर आपके सामने खड़ी हो जाती है
00:33:09इसी लिए सब लोग अपने अपने व्यक्तिगत विश्व में रहते हैं
00:33:21क्योंकि सब की अपनी अपनी व्यक्तिगत कामना है
00:33:24और इसी लिए जगत में इतने युद्ध होते हैं
00:33:29क्योंकि दुनिया जैसी एक के लिए है, बिलकुल वैसी दूसरे के लिए होई नहीं सकती, सत्य एक होता है, असत्य तो अनन्त हो सकते हैं, दो लोग हो और दोनों को सत्य का दर्शन हो रहा हो, तो दोनों में कभी लड़ाई नहीं होगी, क्योंकि दोनों में पूरी सहमत ही बन
00:33:59लेकिन अगर दोनों के पास अपने अपने इरादे हैं, तो दोनों की दुनिया पूरी तरीके से आप हाँ, विपरीथ होगी, बेमेल होगी, और फिर वहाँ से युद्ध होगा उनमें आपस में.
00:34:13जब युद्ध होगा तो दोनों क्या बोलेंगे, सच किसके साथ है? वो बोलेगा मेरे साथ है सच, वो क्या बोलेगा? मेरे साथ है सच.
00:34:26तो अभी आजगर उधर यहुदी है उनको पक्का भरोसा है सच उनके साथ है
00:34:31उधर अरब है अरबों को भरोसा है कि सच उनके साथ है
00:34:35सच तो एक होता है
00:34:41वह आपके साथ कभी हो नहीं सकता
00:34:45इतनी बड़ी चीज है कि वो साथ रखी नहीं जाती
00:34:50सत्य की संगती जैसी तो कोई चीज होती ही नहीं है, सत्य में तो बस अपना लोप होता है, आप लीन हो सकते हो, गल सकते हो, विगलन हो सकता है, विसर्जन हो सकता है, समर्पण हो सकता है,
00:35:05सच क्या कोई बक्सा है क्या कि साथ में लेक के चल रहे हो आगे मैं बाइक चला रहा हूं पीछे बक्सा रखा यह सच है ऐसा तो सच होता नहीं
00:35:16तो मेरा सच ऐसी कोई वस्तु हो सकती मेरा सच लेकिन सबको यही लगता है कि मेरा सच ही आखरी सच है
00:35:25जब तक आप हो तो कामना है, और जब तक कामना है तो सपना है, सच नहीं, आपका होना मने कामना का होना, और कामना का होना मने सपने का होना, सच का होना नहीं, तो सच फिर किसको दर्शन देता है?
00:35:43जो होता ही नहीं जो होगा वो तो क्या देखेगा अपना सपना ही देखेगा
00:35:55जो होगा उसकी आँखें क्या देखेंगी अपना सपना तो एक सपना होता है बंद आखों का
00:36:08और एक सपना होता है
00:36:09विचारकों ने प्रश्ण पूछा है
00:36:23मैं कैसे भरोसा कर लूँ
00:36:25कि अभी जो मैं देख रहा हूं सपना नहीं है
00:36:28नागार्जुन ने पूछा ये प्रश्ण
00:36:39मैं कैसे भरोसा करूँ मैं रात ने भी जब देख रहा था सपना तो मुझे क्या लग रहा था अभी भी देख रहा हूं तो मुझे क्या लग रहा है
00:36:46मुझे कैसे पता वो जूट है ये सच है
00:36:49कोई प्रमान
00:36:51कुछ नहीं
00:36:54जगत क्या है खुली आँखों का सपना
00:36:59और ज्ञानी उसे इससे ज्यादा महत्तो देता भी नहीं है
00:37:04खुली आँखों का सपना
00:37:09सपने में क्या देख रहे हो
00:37:12जिसकी कामना है
00:37:16काम, काम
00:37:17वही आज के श्लोक का विशह है
00:37:19काम
00:37:20जो कामना है
00:37:24वही दिखाई दे जाकी रही भावना जैसे
00:37:28प्रभु की मूरत भी तुम वही देखते हो
00:37:31जैसी भावना रखके बैठे हो
00:37:32जैसी जाकी भावना सोता ही के पास
00:37:38जल में बसे
00:37:41कुमोदिनी चंदा बसे
00:37:44यहाँ कुछ यथार्थ नहीं है
00:37:50यहाँ सब सब्जेक्टिव है
00:37:52मन के हारे हार है
00:37:55मन के जीते जीत
00:37:56क्या मने, क्या मने, कहां हार, कहां जीत, तब तुम्हारा सपना है, तुम्हारे मन के अनुसार तुम्हें लग रहा है, जिसकी जो भावना है, उसको उसी अनुसार, अपनी दुनिया प्रतीत होती है, सत्ते हां कहीं नहीं है, जिसके भीतर काम है, उसके संसार में सत्ते नहीं ह
00:38:26तो अरे इतनी कहानी बता दी
00:38:28क्यों बताई इसलिए बताई
00:38:30क्योंकि जो जूट में जीता है वो दुख पाता है
00:38:32कहीं कुछ भी बोला जा रहा हो
00:38:35अगर वो बात अंततह
00:38:37दुख के शोध पर आकर नहीं रुकती
00:38:41तो वो बात विर्थी बोली जा रही है
00:38:43अध्यात में इसलिए नहीं है कि आप
00:38:47इधर उधर की
00:38:49तात्विक बाते करें
00:38:52मेटाफिजिकल
00:38:53पराभोतिक
00:38:56अध्यात में इसलिए है कि
00:38:58सारी बात आकर अंततह आपके
00:39:01दुख का उपचार करें
00:39:04जो भी बात बोली गई हो सकता है
00:39:05बात बहुत एक तरफ को निकल गई हो
00:39:07दूर चली गई हो
00:39:08पर वहां जहां भी दूर गई है
00:39:09वहां से बात को लौट कर आना होगा
00:39:11और उसे आपके दुख का उपचार बनना होगा
00:39:14बात जहां को निकल गई है
00:39:16वहां को निकली गई
00:39:17तो भाड़ा में जाए ऐसी बात है, हमें कोई लेना देना नहीं
00:39:20कोई आपको मिल गया है, चाहे वेक्ते हो, चाहे किताब हो, ग्रंत हो, कोई चीज हो
00:39:26जिसमें दुनिया की बहुत बाते हो, पर उन बातों का आपके दुख से क्या संबंध है
00:39:31ये बात कहीं हो यह नहीं
00:39:33क्योंकि लेखक ने, या भाशेकार ने, वक्ता ने, किसी ने
00:39:39इस बात को किंद्रिय मुद्दा बनाया ही नहीं
00:39:45दुख के उनमूलन को, उसने अपने शोध का, अपने वक्तव्य का, अपनी मीमांसा का मुद्दा बनाया ही नहीं
00:39:55तो उसने जो कुछ भी कहा है लिखा है वो सब कूड़ा जानियेगा
00:39:59बॉद्धिक विलास है बस वो
00:40:03विलास माने कुछ नहीं मतलब कुछ नहीं है लग्जरी
00:40:09मौज यूँ ही
00:40:11समय बहुत था तो क्या करा बैठ कर गें
00:40:15इधर उधर की थीसिस लिख डाली
00:40:18उससे क्या मिला उससे पिएचडी मिल गई
00:40:21उससे कुछ कम हुआ
00:40:24कम क्या करना है
00:40:26कुछ पाने के लिए का था कम करने के लिए तो
00:40:29अरे दुख कम हुआ
00:40:31नहीं दुख तो नहीं कम हुआ
00:40:32ये तो कभी उदेशे भी नहीं था कि जो भी कुछ कर रहे हैं
00:40:35उसे दुख कम होना चाहिए, तो तुमने जो भी कुछ करा, विर्थ करा, पर ये बात सिर्फ चिंतकों पर या शोधकरताओं पर नहीं लागव होती, ये बात हर आम आदमी पर लागव होती है, ये करा, वो करा, ये गाड़ा, वो उखाड़ा, ये सब करने के बाद अंतिम प्
00:41:05समय खराब करके आगए हो बिकार, हटा हो, कोई ले ना दिना नहीं, सबच मेहारी बात है, तो काम की जो बात यहां कृष्ण कर रहे हैं, वो इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि काम का संबंध दुख से है, श्री कृष्ण वाक विलास करने वालों में नहीं है, वो व्यर्थ प्र
00:41:35बोल रहे हैं, बोल रहे हैं, लच्छेदार बात हैं, सुनने में अच्छी लग रहे हैं, ऐसा कुछ नहीं है, वो जो भी कुछ बोलेंगे, उसका संबंध होगा निश्चित रूप से, इनसान के दुख से, देखिए अध्यात्म को हम कई बार बोल देते हैं, ग्यान, आत्म
00:42:05जिस से दूसरों का अपना दुख नहीं देखा जाता, ठीक है, शुरुआत यहां से होती है, तो शुरुआत हमारे बहुत पास से होती है, वो फिर अपना दुख, आपका दुख मिटाने के लिए हो सकता है, समाधान लाने उसको बहुत दूर जाना पड़े, लेकिन उसका
00:42:35कोई संजीवनी बूटी खोज रहा हो दुख के उपचार की
00:42:38लेकिन वो उपचार आपका ही करना चाह रहा था
00:42:43उपनिशद कर दें बहुत दूर दूर की बात है
00:42:45अरे बाप बाप
00:42:46क्या बहुत धिक उडान भरी है दादा
00:42:50का जाता है कि
00:42:54उपनिशदों के बाद दर्शन की कोई ज़रूरत ही नहीं
00:42:57जो आखरी बात है वहां बोल दी गई है
00:42:59क्या बात बोली गई है
00:43:01तो ऐसा लगता है कि जन्होंने
00:43:03बुला है उनको चिंतन
00:43:04में ही विशेशग्यता हासिल थी
00:43:06नहीं वो चिंतक नहीं थे
00:43:08वो सबसे पहले
00:43:10प्रेमी थे, यहाँ दिल था उनके पास
00:43:13और उन्होंने
00:43:14दुनिया में तकलीफ देखी
00:43:16उस तकलीफ का निवारण
00:43:21करने के लिए जो भी कुछ कर रहे हैं सो कर रहे है
00:43:23अब ठीक वैसे ही जैसे
00:43:27कि एक दवाई होती है
00:43:28और वो दवाई जिस रिसर्च से बनी है तो
00:43:30आपको तो नहीं समझ में आएगा
00:43:32अब आपने उसमें क्या-क्या नहीं रिसर्च लगी हो
00:43:34हो सकता है नुकलियर मेडिसेन हो
00:43:36एक मेडिकल
00:43:40मॉलिक्यूल बनाना
00:43:42कोई हलकी बात नहीं होती है
00:43:44तो आपको लगा कि यह जो आदमी है
00:43:48यह पेशेवर बस क्या है
00:43:50शोध करता है या विचारक है
00:43:53कि तो यह तो
00:43:55बिलकुल सेरिब्रल आदमी है
00:43:57उसने इतनी मेहनत इसलिए करी है
00:44:01क्योंकि उसके पास दिल है
00:44:02आप सोचते हो उसने जो भी करा
00:44:04इसलिए करा है क्योंकि उसके पास दिमाग है
00:44:07नहीं बात दिमाग की नहीं है बात दिल की है
00:44:09दिमाग का इस्तिमाल उसने निसंदे करा है पर दिल के पीछे पीछे
00:44:15बात समझ में आ रही है जिसको मैं दिल दिमाग बोल रहा हूँ
00:44:24उसको आप आत्मा और बुद्धी बोल सकते हो
00:44:28पर दिल दिमाग बोलो तो जादा आसानी समझ में आता है
00:44:32हम फिल्मी लोग है
00:44:34समझ में दिमाग का पूरा इस्तिमाल करा है
00:44:39संसाधन के तौर पर
00:44:42साध्य क्या है पाना क्या है
00:44:47मुक्ति
00:44:47साध्han क्या है
00:44:50बुद्धि, स्मृति, दुनिया भर की और लैब है
00:44:53वो भी साधन है, अनुभव भी साधन है, समय साधन है, पांच-साथ और लोगों के साथ मिलकर एक टीम बनाई गई, यह सब साधन है, पाना क्या है, दुख से मुक्ति, मैं देखता हूँ वो बच्चा है, वो बच्चा दर से तड़ पराए, और वहां से फिर उसका शोध शु
00:45:23में सब कुछ हुआ हो, उसमें यह लिखेगा नहीं कि यह जो बच्चा है, वो यह बात तो कभी आएगी ही नहीं सामने, पर वो जो कुछ हुआ है, वो हुआ किसके लिए, एक बच्चे के लिए हुआ है, कितने ही ऐसे ग्रंथवी हैं, जैसे लीलावती है, लीलावती कौन �
00:45:53गड़ित में उसकी रूची बहुत थी कि जो पूरी वैसे शिक्षा विवस्था रही हो उसमें उन्होंने उसको पढ़ाने से मना कर दिया हो क्या बोलकर कि लड़की है तो बोले आजा तेरी होम स्कूलिंग होगी
00:46:06और उसको उन्होंने जो वहां जो गड़ित बताई वही गड़ित पूरी एक किताब बन गई और उसकिताब का नाम उन्होंने दे दिया लीलावती नहीं तो गड़ित की किताब का नाम कोई लीलावती काई गो देगा लीलावती उनकी बिटिया थी और उसी को पढ़ाया करते
00:46:36क्या है वहीं धड़कता हुआ दिल जो किसी का दुख नहीं देख पा रहा है बात बड़ी व्यक्तिक था एक तरीके से
00:46:45आज आप कहते हो और यह तो सब बड़े-बड़े नाम है आरे भठ हो गए भासकराचार रहे हो गए सुश्रूत हो गए भारती एतिहास में और
00:46:59या भारत में ही काहे कुलो दुनिया भर में जो बड़े-बड़े नाम है पर आप उन सब की जीवनिया पढ़ोगे तो बीच-बीच में आपको ऐसे इशारे मिलेंगे
00:47:08कहीं ने कहीं ये व्यक्ते किसी के दुख से दरवित हुआ था बहुत और इसका जो सरोतकृष्ट उधारण है वो तो हमारे महात्मा बुद्धी है
00:47:23आज आप बहुत दर्शन पढ़ते हों उसको बोला जाता है कि ये दर्शन नहीं है विज्ञान है बापरे
00:47:31बहुत सारे पश्चमी विचारक हैं
00:47:35वो बुद्ध की देशना को धारमेक मानने से इंकार करते हैं
00:47:39कहते हैं यह जो पारमपरी करते हैं उसमें धर्म है ही नहीं
00:47:43यह तो दर्शन है बस
00:47:44rigorous philosophy
00:47:46ethical humanism
00:47:48और इतनी बड़ी बात हो गई
00:47:53अब पूरी बात शुरू कहां से हुई
00:47:57कि एक दिखा वो बिमार है और खांस रहा है
00:48:02एक दिखा वो बुढ़ा है
00:48:07उसके कूबर निकल आया चल नहीं रहा ठीक से
00:48:11और फिर एक दिखा होगा अर्थी जा रही है
00:48:16अब बुद्ध ने देखा होगा कोई रो रहा है
00:48:18और ये वो घटना होती है जहां सब बदल जाता है
00:48:23और जिसके पास वो मन नहीं है
00:48:27जो पिखल सके
00:48:29वो जीवन में फिर कोई बड़ा काम कर भी नहीं पाएगा
00:48:32भूलियेगा नहीं कि बड़े काम जितने भी होते हैं
00:48:37वो करे तो जाते दिमाग से हैं
00:48:40पर उनका निर्धाता उनका स्रोत उनका मालिक दिल होता है
00:48:47तरमजरबात को
00:48:53श्री कृष्ण को कोई आपकी कामना तो दुश्मनी नहीं हो गई है
00:48:57कि वो कह रहे हैं कि अरे ये तो कामना में बहुत सारी चीजों का भोग करता है
00:49:02और भोग करना अनैतिक बात है इसका भोग छड़वाना है
00:49:06तो चलो कामना के विर्ध दो चार श्लोग हम मारते हैं
00:49:10उन्हें कामना से नहीं कोई तकलीफ हो गई है
00:49:12उन्हें तकलीफ है आपकी तकलीफ से
00:49:15जो जितना कामना से भीतरी तोर पे गरस्त रहेगा
00:49:21वो संसार में जीवन में उतना ज्यादा दुख पाता है
00:49:25और ये बात विचलित करती है किसी आउतार को भी
00:49:29वो परेशान हो जाता है
00:49:33ब्रहम नहीं परेशान होता
00:49:34इसलिए हम ब्रहम की पूजा ही नहीं करते हैं
00:49:39होगा ये ब्रहम अपने करते हैं
00:49:42ब्रह्म की पुजा सुनी कभी
00:49:46हम तो दिल किसको देते हैं
00:49:49हम दिल देते हैं
00:49:52जो हमारे सामने खड़ा हो
00:49:53नहीं तो हो गए
00:49:55आप अपने कही आसमान के भईया
00:49:57पता नहीं, अनन्त है
00:49:58हमें क्या पता
00:50:00जी, बढ़ियां
00:50:03अच्छा है, ब्रहू
00:50:05हमें प्यार किस पे आता है
00:50:10जो शवरी के जूठे बेर खाता है
00:50:13ब्रह्म से किसको प्यार है बता या
00:50:16कौन बेट है
00:50:18जो कभी कर्ण के पास जाता है
00:50:30कभी दुर्योधन को समझाता है
00:50:32और कभी करोधे थो करके भीश्म की और दौड़ पड़ता है
00:50:36उसके साथ हमारा कुछ नाता जुड़ता है
00:50:42क्योंकि हम देखते हैं कि हमारे दुख में दुखी है
00:50:46तो ये बातें कोई सिध्धानत की नहीं है
00:50:54किताबी बातें नहीं है
00:50:55लोग इधर उधर होने लगते हैं
00:51:00बगले जहकने लगते हैं
00:51:02जब उनको कामना की निसारता बताओ
00:51:04अरे भाई उस कामना से अगर आपको कुछ सुख मिल रहा होता
00:51:09तो कृष्णा आप से बोलते कामना में और गोते मारो
00:51:12वो आपको जो भी कह रहे हैं इसलिए कह रहे हैं
00:51:19क्योंकि आप तकलीफ में हो आप बहुत दुखी हो
00:51:22अवतारों के साथ यही बात जुड़ी होती है
00:51:33कि जो तकलीफ में होता है उसको सहारा देते हैं सांतोना देते हैं धांडस देते हैं तार देते हैं
00:51:40वो अहिल्या थी वो बैचारी पत्थर हुई पड़ी थी उसको इंसान बना दिया
00:51:46पत्थर से क्या आशा ऐसा तो नहीं कि पत्थर इंसान बन जाता है
00:51:49पत्थर से कि चेतना जड़ हो गई थी
00:51:52पत्थर माने जड़
00:51:53तो कुछ समझाया होगा, कुछ किया होगा
00:51:57उसमें पुना प्राण आ गए
00:51:58यह अवतार का काम होता है कि जहां दुख देखता है
00:52:05वो पूरा प्रयास करता है कि दुख को हटाएं
00:52:08और बुद्ध ने भी आजीवन प्रयास करा दुख को हटाने का
00:52:12बुद्ध ने दुख को बिलकुल अपने केंदर पर रखा सारे प्रयास हों के
00:52:16फिर इसलिए हाला कि उन्होंने वेदों का इतना विरोध करा
00:52:20लेकिन बाद में भारत में वैश्णवों ने कहा कि इनको विश्णों का आउतार मानना पड़ेगा
00:52:29तो उनको अपने में ले लिया, बहुत हमारी तरफ के हैं, ये कोई पराई नहीं हो सकते
00:52:37पराई इसलिए नहीं हो सकते क्योंकि इस आदमी में करुणा बहुत थी
00:52:43जो भी इसने कहा, वो बात भले वेद विरुद्ध हो, लेकिन कहीं तो इसी नियत से गई थी
00:52:51कि आम आदमी का दुख कटे, तो हम कैसे इसको पराया मान लें, तो आओ, तुम भी आओ, तो हमारी तरफ के हो
00:53:00तो फिर वैदिक लोगों ने भी बुद्ध को बड़ा उंचा सम्मान देना शुरू कर दिया, ठीक है, बढ़िया है, तो कुछ समझ में आ रही है ये बात, हम बहुत कतर आते हैं, ज्यानियों से, रिशियों से, बहुत कतर आते हैं, क्योंकि वो बात शुरू ही यहां से करत
00:53:30हमें लगता है यह देखो फिर आ गया, आभी हमें चाहने नहीं देगा, दुखी करेगा, ऐसे ही होता है न, चभी यही बन गई है, जन्मानस में, कहीं कोई दिख जाए, सफेद कपड़ों वाला, गेरुआ वाला, या अध्यात्मिक बाते करने वाला, या तो कुछ संस्कृ
00:54:00खास तोर पर जवान लोग वाँ से धीरे धीरे भागते हैं, कि किसी को पता भी न चले भाग जाए, यहने अपनी आखों से होते हो देखा है, हमारा सत्र चल रहा था, जब नुड़ा में हुआ करता था, तो जब रविवार को सुपह हो तो भीड काफी लग जाए, भीड मा
00:54:30जाए, तो वो खचा-कच भरा हुआ है, उसको पीछे थोड़ा लंबा भी करवाया, रिसेप्शन कर चे तरह था, तो उसमें एक दिन मैं बोल रहा हूँ, और भीड खूब है, और पीछे मुझे कुछ हल्चल सी दिखी, तौहां देखता हूँ, बाकी सब जमीन पे बैठा क
00:55:00और उसके मुँपर जबरदस्त साउधानी का भाव है, ठीक वैसे ही, जैसे कि जब कोई तसकर अंतर राश्ट्रिय सीमा पार करता हूँ, छुप छुप के, जितनी ध्यान और साउधानी से और छुपके छुपके किया जाता है, वैसे ही, अब मैं अपने लह में बोल रहा थ
00:55:30मैं रुख गया, मैं रुख गया उधर को देखने लगा, जब देखने लगा तो लोग थोड़ा हट गए, जब लोग हट गए तो सामने एक चौपाया दिखाई दे रहा है, और वो वहीं पे बिलकुल फ्रीज हो गया, जैसे बच्चे खेलते हैं न स्टैच्यू, फिर धीर
00:56:00कामना की बात हो रही है, तुमारी कोई चीज छीनी नहीं जारी बेटा, तुम जो कर रहे हो उसमें दुख है तुमारे लिए, और जब लगता है कोई चीज छीन रही है तो क्रोध भी आता है, तो अभी पिछले ही श्लोक में कृष्ण बोल रहे थे ना कि काम के साथ क्या च
00:56:30क्या हुआ ड्रॉप आउट होगा है कि अब जो यह जो अब हिस्सा आया है गीता का, यह कुछ हमें जच नहीं रहा है, वहां तक तो सब ठीक था प्रकृते के तीन गोण बता दिये यह सब वो सब बातें जरा दूर की लगती थी, अब तो यह सीधे हमारी तमनाओं पर आग
00:57:00जो चाहेगा वो सपने में जीएगा जूट में जीएगा और जूट में जीना ही दुख का कारण है
00:57:11जो है नहीं तुम वो देख रहे हो
00:57:15तुम जो हो नहीं तुम वो बने हुए हो
00:57:18तुम जो हो नहीं तुम वो बने हुए हो
00:57:21जो है नहीं तुम उसकी कामना कर रहे हो
00:57:24उसमें तुम उर्जा लगा रहे हैं
00:57:26समय लगा रहे हैं
00:57:27उसको पाने के बाद क्या मिलती है बस
00:57:29हताशा
00:57:32चोट
00:57:35और उसके बाद भी चेते नहीं
00:57:39अगली चोट खाने को फिर प्रस्तुत हो जाते हो
00:57:47समझ में आ रहे हैं ये बात कुछ
00:57:49कोई भी एक वस्तु
00:57:54दो लोगों के लिए सदा अलग-अलग होगी
00:57:57आप जैसे हैं वैसा ही
00:58:04आपका उस वस्तु
00:58:07का ज्यान होगा
00:58:09संसार के कुल ज्यान के
00:58:12मूल में बस काम है
00:58:14आप जैसे हो वैसा ही आपका उस वस्तु का ज्यान होगा
00:58:19और जैसा आप बने वैठे हो जैसे आपने वस्तु बना ली
00:58:22उसी अनुसार आपका और उस वस्तु का
00:58:24संबंध होगा
00:58:26हम भी गलत
00:58:28जो सामने चीज देख रही है
00:58:31वो भी मित्या
00:58:32और दोनों में जो संबंध है
00:58:34वो फिर देगा क्या
00:58:36आपको दुख देगा और
00:58:38जो भी आप देख रहे हो चीज
00:58:40उसका भी कुछ नाशी होगा
00:58:42वो चीज वो ही नहीं जो आपको चाहिए
00:58:45आप
00:58:52अपनी स्कूटी को
00:58:55फेरारी समझ ले
00:58:58तो आपको भी दुख मिलेगा
00:59:04पता नहीं कहां कहां कैसे कैसे गिरोगे
00:59:07और स्कूटी तो बचने की नहीं है
00:59:11लेकिन स्कूटी को आप फेरारी देखोगे
00:59:15क्यों देखोगे
00:59:16क्योंकि आप में
00:59:19कामना है
00:59:20वो स्कूटी है लेकिन नहीं दिखाई देगे की स्कूटी है
00:59:25भीतर कामना है
00:59:29कामना है कि मुझे बड़ा आदमी होना है
00:59:34जो बड़ा आदमी होना है तो वो क्या है फिर
00:59:35वो फिरारी है
00:59:37कोटा में कोचेंग इंडस्ट्री है
00:59:41बच्चे आत्मत्या कर रहे हैं
00:59:42क्यों कर रहे हैं
00:59:44अब वो
00:59:46पापा बुलेट है
00:59:50मम्मी लमरेटा है
00:59:54दोनों मिलेंगे तो स्कूटी तो पैदा करेंगे
00:59:57लेकिन उससे उमीद क्या है
01:00:01कि ये फेरारी की तरह उड़े
01:00:03आशा कामना साथ साथ चलते
01:00:08आशा त्रिष्णा
01:00:09त्रिष्णा माने प्यास
01:00:11तो ये तो ये कठे ही चलते
01:00:13तो अब उससे उमीद क्या कर रखा है कि
01:00:18ये फेरारी की तरह उड़ेगा
01:00:20अब कैसे उड़े फेरारी की तरह
01:00:22आप ही की तो उलाद है
01:00:24आप कितना उड़े थे जिन्दगी में
01:00:27वो कैसे उड़ जाए
01:00:28जितने नंबर तुम चाह रहे हो
01:00:31कि उसके आ जाए
01:00:32उतने तो तुम्हारे तीन परिक्षा मिला कि
01:00:35कभी नहीं आये थे
01:00:36पिता जी के एक बार आए
01:00:39तीस एक बर पैंतिस एक बर बतिस
01:00:42और सुपतर से उम्मीद है कि
01:00:45पिच्चानवे से नीचे तो आना नहीं चाहिए इसका
01:00:47काम ना
01:00:55तो पूरा भरोसा है कि इस पर ये कर दें वो कर दें
01:00:59तो ये कुछ कर ही ले जाएगा
01:01:02आसपास भी लोगों को बता रहे हो कि
01:01:05सेलेक्शन पक का इसका
01:01:06स्कूटी को फेरारी बनाओगे
01:01:11तो उसका अंजर पंजर बस उड़ जाएगा
01:01:13चारो तरफ अब वो लड़का वहाँ
01:01:16बहुत सारा दबाओ जेले
01:01:18कोटा में और पंखे से लटक जाए
01:01:20तो बताओ दोशी कौन है
01:01:22काम नहीं ना
01:01:25कामना सच्चा ही नहीं देखने देती
01:01:27अब आप
01:01:33के लिए एक
01:01:34काम
01:01:36काम माने कार रहे हैं कामना नहीं
01:01:41ये एक
01:01:45संयोग मात्र नहीं है
01:01:47कि हमारी आम भाशा में काम और काम
01:01:51एक है इसका रहती है कि हम काम करते ही काम के लिए
01:01:55हम चूंकि काम के लिए ही काम करते हैं
01:02:00कामना के लिए ही कार रहे करते हैं
01:02:02तो हमने दोनों को एक ही नाम दे दिया काम
01:02:04नहीं तो एक कार रहे होना चाहिए था और दूसरे को
01:02:09कामना होना चाहिए था
01:02:11पर हमने जो भी कार्रे कराए आज तक जिन्दगी में किसके लिए कराए
01:02:14निश्काम हम कभी हुए ही नहीं सारा कार्रे कामना के लिए वा तुमने का चलो
01:02:19कार्रे को काम ही बोलना शुरू कर देते हैं
01:02:22तो आपके लिए एक काम
01:02:26थोड़ा सा पहचानने की कोशिश करिए
01:02:30कि आप दुनिया को जैसे देख रहे
01:02:33दुनिया माने यह नहीं कि
01:02:35वाइट हाूस अमेरिका का
01:02:37कि वहां का पोलर बियर
01:02:41आर्टिक का
01:02:45हमारी दुनिया माने
01:02:52आप उसको जैसे देख रहे हो
01:02:54थोड़ा बुरा लगेगा
01:02:56दिल पर थोड़ी चोट लगती है
01:02:58पर देखिए कि जैसे भी आप देख रहे हो, खुद को और दुनिया को, उसमें सपना कहां कहां है, जूट, मिथ्या, आप वो मानने को मजबूर हो, जो है नहीं।
01:03:28अगर आप भीतर अपने कामना हटा दो, सब बदल जाता है, जैसी आपकी दृष्टी होती है, वैसी ही आपकी दुनिया होती है।
01:03:48अभी यहाँ पर एक हिंसक पशु आ जाए, तो उसके लिए यह जगह, कोई पवित्र पावन मंदिर थोड़ी होगा,
01:04:02वे थोड़ी कहेगा कि यहाँ पर यह सब बैठे हुए हैं, मुमुक्छू लोग, ज्यान पिपासू, यह सब कौन हैं?
01:04:18ज्यानी हैं, भक्त हैं, साधक हैं, योगी हैं, वो यह थोड़ी कहेगा, उसकी दुनिया में यह सब क्या है?
01:04:30बहुत सारा मासू उसकी कामना किसकी है? उसकी कामना मास की है, तो उसके लिए आप भी मास होूँ
01:04:39यहां कृष्ण स्वायम बैठे हों, वो भी उसके लिए क्या हो जाएंगे? मास
01:04:46यही वज़ा होती है, कि कामी आदमी अपने दो रुपए के फायदे के लिए दुनिया का लाखों का नुकसान ख़रा देता है
01:04:59वो जो आएगा, जो भी है, भीडिया, शेर है, वो अपने दो रुपए के फायदे के लिए हो सकता है, गीता में ही अवरोध ले आदे
01:05:13दो रुपए का फायदा उसका, लेकिन उसके लिए वो गीता को रुकवा सकता है
01:05:19तो गनित की और मैनेजमेंट की भाशा में इसको कहेंगे कि कामना का परिणाम हमेशा सब आप्टिमल होता है
01:05:28वो छोटा फाइदा बड़ा नुकसान देती है
01:05:33लोकल मैक्सिमा दे देती है
01:05:36और जो बड़ा नुकसान हुआ है जो मैक्रो लॉस हुआ है उसको वो कभी देखी नहीं पाती
01:05:43लेलेशोरी घर छोड़ रही थी
01:05:50तो कहते हैं कि लोगों ने रोका पूछा क्या बात है
01:05:57तो कई बाते थी जिसमें से एक तो ये थी कि उनके घर वाले मास खाते थे
01:06:03और कहते थे कि तू भी खा तो उन्होंने बहुत समझाया बुझाया होगा ऐसे तो नहीं घर छोड़ दिया होगा
01:06:12तो अपने घरवालों को बहुत समझाती रही मास मत खाओ मास मत खाओ वो मानने के नहीं
01:06:18कश्मीर का मामला था, कश्मीर और मास न चले, ऐसा हो नहीं सकता, तो फिर जब निकलने को हो गई, तो रोकने का प्रयास किया गया होगा, कहते हैं, बहुत सुन्दर थी,
01:06:33जो उन से एक और बहुत बाते बोली गई, जो एक बात और बोली गई बीच में, यह थी कि क्या है, पत्ती को छोड़ करके जाना क्यों है,
01:06:48तो बोलते हैं क्योंकि
01:06:51वो मुझे
01:06:53पतनी की तरह
01:06:55देखता है, जाने ये बोला था कि
01:06:57स्तरी की तरह देखता है
01:06:58अब अलग-अलग जगों पर अलग-अलग बितानत आते हैं
01:07:01याद नहीं ठीक से
01:07:05अब ये भात चौकाने
01:07:07वाली है, स्तरी
01:07:09तो तुम हो
01:07:11और अगर वो पति है, तो पतनी तो तुम हो, पर वो घर छोड़ के जा रही है, और कोई पूछ रहा है कि क्यों, तु बोल रही है क्यों कि ये मुझे इस्तरी समझता है, आशे अब समझे, क्या बोल रही है वो,
01:07:32पुरी यह जो व्यक्ति है न इसमें देह भाव बहुत है
01:07:39और इसकी संगत में मैं भी देही बन जाऊंगी
01:07:46और उसकी मजबूरी है जब वो देह बना वैठा है
01:07:50माने नर बना वैठा है तो जो सामने है वो भले ही इतिहास की उच्चतम JUSTनाउं में से हो
01:07:58वो यही कहेगा यह तो नारी देह है
01:08:00अब नारी देह देखेगा तो फिर
01:08:05मास से तो वही रिष्टा रखेगा
01:08:08जो भेडिया कोई आप से रखेगा भी
01:08:12दूसरे उदारण में हम कहा रहे थे नहीं भेडिया जाए
01:08:14इसके लिए आप मास है तो क्या करेगा
01:08:17वो कोई आपको आशिरवात तो देगा नहीं, महास उखाड़ के ले जाएगा सारा, सुछ में आरी ये बात, आप जिसको भी जैसे भी देखते हैं, इसलिए देखते हैं, क्योंकि आप में उसके प्रतिकामना है, इसलिए आप किसी का यथार्थ कुछ नहीं जानते, और इसलि
01:08:47कामना से भरी आँख जिधर को भी देखेगी, उधर बस धोखा ही पाएगी, और फिर हम परिशान हो जाते हैं, लोगों ने कितनी बार सवाल पूछा, जब कॉलेजों में जाता था तब से लेकर आज तक, सब के मन में एक ये जिग्यासा बड़ी रहती है, किसी की सच्चा�
01:09:17किया, how to know whether he is faking, मैं बोलता था, तुम नहीं जान सकते, उसका सच जानने के लिए पहले तुम्हें स्वयम सच्चा होना पड़ेगा, अगर तुम्हारे मन में कामना है, तो सामने तुम्हें बस जूट ही दिखाई देगा, और दुनिया तुमको जूट में फसा ही इसलिए �
01:09:47मैंने एक बार बोला था, मैंने का था कि तुम इन्वेजन को इन्विटेशन समझते हो, तुम को इन्वेड करने आ रहा है और तुम सोचते हो कि मुझे इन्वाइट कर रहा है, और वो इसलिए तुमको इन्वेड कर पाता है, माने तुम पर आकरवन कर पाता है,
01:10:17क्योंकि तुम्हारे पास कामना है जो आमंत्रण की बड़ी आतुर है
01:10:21कि कोई आके प्रणाय निमेदन करे
01:10:23तो कोई आके प्रणाय निमेदन कर देता है
01:10:26और उसके पीछे जो हिंसा छिपी हुई है
01:10:28जो आकरामक्ता छिपी हुई है
01:10:30वो तुमको दिखाई भी नहीं देती
01:10:32और ये सवाल हमारे लिए बहुत रहता है
01:10:38कहीं मुझे कोई बेवकूफ तो नहीं बना रहा
01:10:40कहीं मुझे धोखा तो नहीं दे रहा
01:10:43Is she faking it?
01:10:46सवाल ये नहीं है कि वो fake कर रहा है कि नहीं कर रहा है
01:10:49वो पूरी तरह सच भी हो
01:10:51तो भी क्या तुम्हें वो सच दिखाई देगा?
01:10:55जो हमारी हालत है वो पूछने आई है कि
01:10:58How do I know whether he is faking it?
01:11:01मैं कहा रहा हूँ आपके सामने साक्षात कृष्ण खड़े हो जाए
01:11:04तो क्या वो आपको कृष्ण जैसे दिखाई देंगे?
01:11:09ये गीता कि हम बात कर रहे हैं
01:11:10मैं आपसे बार बार पूछा करता हूँ
01:11:12दुरियोधन को क्रिश्ण दिखाई दे रहे थे क्या?
01:11:17तो ये तो छोड़ दो लड़की
01:11:19कि वो लड़का है तुम्हारी कॉलेज का कहीं
01:11:23वो तुम्हें धोगा तो नहीं दे रहा?
01:11:24कहीं तुम उसकी सच्चाई से अन्भिग्य तो नहीं हो
01:11:29सत्य साक्षाथ तुम्हारे सामने खड़ा हो जाए
01:11:33तुम उससे भी अन्भिग्य ही रहोगी
01:11:35क्योंकि बात इसकी नहीं है कि ये सब कैसे हैं
01:11:38बात इसकी है कि तुम्हारे भीतर बस कामना ही कामना उबल रही है और जहां कामना है वहां समझ लो आत्म प्रवंचना है आत्म प्रवंचना मने सोयम को दिया गया धोखा
01:11:53जिसके पास कामना जितनी ज्यादा है
01:11:57उसको लेकर तुम उतने निश्विकर हो सकते हो
01:12:04कि इसको बेवकूफ बनाने की जरूरत है ही नहीं
01:12:09क्यों?
01:12:13उस स्वेमी बेवकूफ बनेगा
01:12:18जिसके पास हसरतें, अर्मान, इच्छाएं जितनी ज्यादा है
01:12:23उसको बेवकूफ बनाने की जरूरत उतनी कम है
01:12:27वो बेवकूफ स्वेमी बनेगा
01:12:31बनाना के?
01:12:39जहां जो नहीं है वहां वो जरूर देखेगा
01:12:41और जो है, वो नहीं देखेगा
01:12:44स्पश्टोरी ये बात
01:12:49श्री कृष्ने कह रहे है
01:12:52देखती आग हो
01:12:54पता चलती है क्या?
01:12:59आग से तो उज्वल प्रकाश विस्तीर्ण होता है
01:13:02और दिखाई क्या देता है बस?
01:13:05धुआ, काला
01:13:06बलकि आग ना हो
01:13:11तो इतनी कालिमा ना हो
01:13:12आग से आना चाहिए था प्रकाश
01:13:14और आ क्या गया?
01:13:17काला धुआ
01:13:18घुप काला धुआ
01:13:20उल्टी बात
01:13:21सब छुप जाता है
01:13:25जो है वो बिलकुल छुप जाएगा
01:13:27और फिर ऐसे ही कहते हैं कि
01:13:32गर्भ में होता है न शिशुप पता थोड़ी चलता है
01:13:35छुपा रहता है
01:13:37वैसे ही
01:13:39और धरपन होता है न
01:13:42उसमें क्या दिखता है अगर उस पर
01:13:45धूल जम गई है
01:13:48तो ये तीन आज वो प्रतीक लेते हैं
01:13:51होता है दिखेगा नहीं
01:13:55सत्य सम्मुक है अर्जुन
01:13:58तुमने बड़ा अच्छा सवाल पूछा कि
01:14:00जो चीज सबको उपलब्धी है
01:14:02जो सत्य है
01:14:04जो सभाव है
01:14:05जिसके अतरिक्त कुछ और हो ही नहीं सकता
01:14:09जो अद्विती है वो भी हमें काई नहीं पता चलता
01:14:12ये तो बड़ी हास्यास्पद बात है कि दुनिया भर के साधक, खोजी, ज्यानी, शोधक
01:14:18सब लगे हुए क्या करने में
01:14:20कह रहे हम सच्चाई की खोज में निकलें
01:14:24अरे कोई छुपी चीज एक खोज में निकलें घर में हाथी खोज ने निकलें
01:14:28कोई छुपी चीज एक खोज रहे हो
01:14:32उसे खोजना इसलिए पड़ता है क्योंकि
01:14:36कामना जबरदास्त है, जहां कामना होती है, वहां सच नहीं दिखाई देता
01:14:40वहार एक अर्थ क्या है, आप में से जो लोग ध्यान से सुन रहे होंगे, वो स्वयम ही समझ गए होंगे
01:14:48सच्चाई जाननी हो, कामना का परदा थोड़ा सरकाई है
01:14:53जगत की सच्चाई जाननी हो, स्वयम की सच्चाई जाननी हो, कामना का परदा सरकाई है
01:15:00हर चीज बिलकुल अलग दिखाई देगी
01:15:04कोई चीज वैसी नहीं है जैसे आपको आज तक लगती आई
01:15:07हम सब धोखे में जी रहे हैं
01:15:09जैसे सपना रहन का
01:15:10कुछ नहीं पता
01:15:12और ऐसा नहीं कि थोड़ा बहुत अंतर है
01:15:15जो चीज आपको पूरब लगती हो सकता है
01:15:18हो पच्छिम दिशा हो
01:15:19जहां आप आस लगाए बैठे हो
01:15:25सहारे की
01:15:28हो सकता है वहीं से घाता आना हो
01:15:31जहां आपको मुनाफ़ा दिखा जा रहा है और आप
01:15:36निवेश किये जा रहे हैं हो सकता है वहीं
01:15:38आपको बरबाद होना हो कुछ नहीं पता चलता है
01:15:40कामना मारे सब डूपते हैं
01:15:43सोच में आ रही बाती है
01:15:48कभी भीतर सवाल उठे
01:15:51मुझे धोखा क्यों मिला जिन्दगी में
01:15:53मुझे धोखा क्यों मिला
01:15:56क्यों मिला
01:15:57इधर उधर मत भटकिएगा
01:16:00एक जवाब है बस इसका
01:16:02क्या मिला
01:16:02क्योंकि
01:16:04इतनी इच्छाएं लेके घुम रहे हो तो तो तो मिले गई
01:16:09आपके भीतर बड़ा वेग हो कुछ पाने का तो देखा है दुकानदार कोई भी कैसे ठग लेता है
01:16:20और जितने आप जरूरत मंद होके किसी दुकान में जाते हैं उतना ज्यादा ठगे जाते हैं
01:16:25क्या यह अनुभव नहीं है आपका अधरूरत माने काम ना यह बहुत ठगता है माया महा ठग नहीं हम जानी
01:16:40छोटे मोते ठग आपकी जेव काटते हैं माया आपका अस्तित्व ही काट देती है पूर्ण को अपूर्ण बना देती है काट करके
01:16:54इसलिए वो ठगनी नहीं क्या है महा ठगनी है वो जेव नहीं काटती है वो हमें ही काट देती है
01:17:03पूरे को अधूरा बना देती है असीमित को सीमित बना देती है
01:17:12हाथी को चूहा बना देती है है हाथी पर अपनी नजर में चूहा राजा को रंक बना देती है
01:17:25है राजा पर भूला
01:17:27तो अपनी नजर में क्या है वो
01:17:29रंक
01:17:30आपको मावल में दुनिया का सबसे
01:17:35मुश्किल काम है
01:17:36उस रंक को
01:17:39ये यकीन दिलाना कि
01:17:41वो राजा है बहुत मुश्किल है
01:17:42राजा को रंक बनाना
01:17:45फिर भी आसान है रंक
01:17:47जो की रंक है ही नहीं
01:17:49उसको ये भरोसा दिलाना याद दिलाना कि तू पूर्ण है अपना एश्वर्य याद कर बड़ा मुश्किल है
01:18:03किसी को बंधन में डालना फिर भी आसान है जो बंधन में है उसे मुक्त करना बड़ा मुश्किल है
01:18:14वो खुदी नहीं तैयार होता है बंधन माने कामना आप कामना खड़ी हो गई ना कामना कौन छोड़ना चाहता है
01:18:20आप उसको लेके जा रहे है वो भिखारी को चल तेरा महल दिखाएंगे वो बोल रहा है बाद में चलेंगे क्यों
01:18:29यह सुबह की आरतिये मंदिर में उसके बाद भीक का टैम हो गया है
01:18:35उसको बोला जा रहा है चल तेरा सुर्ण महल है उधर अब वो क्या बोल रहा है
01:18:42अब ही अगर उधर चला गया तो दो पैसे का नुकसान हो जाएगा
01:18:46दो पैसे का पूरा नुकसान होगा अब आप सर पीटो अपना
01:18:50बोल रहा है भी नहीं चलते सुबह सुबह यहां सब लोग आते हैं
01:18:56वहां मैं ऐसे खड़ा हो जाता हूँ और फिर वो उसमें दो पैसा डाल देते हैं
01:19:00तो इस टाइम थोड़ी चोट लगी है जिन्दगी में दुख मिला है कामना रही होगी
01:19:14विस्तार में और बहुत विवरन जानने की जरूरत ही नहीं है
01:19:18तकलीफ मिली है जिन्दगी में कामना के मारे मिली है और कोई बात नहीं है
01:19:24बहुत लंबी कहानी मत बताओ
01:19:29कहानी बहुत छोटी है
01:19:32दोखा खाया है
01:19:34एकदम मूरख बने हो
01:19:36ठगे गए हो
01:19:38काम ना थी
01:19:39कोई और बात नहीं थी
01:19:41धूमेन आबरियते
01:19:48ठीक है धूम माने धूआ
01:19:51आबरियते माने धका हुआ
01:19:54क्या धका रहता है
01:19:56अगनी के लिए है यहां पर
01:19:57वहनी
01:20:00तो धूमेन आबरियते
01:20:03वहनिर यथा धर्शो
01:20:06जैसे धूम से धक जाती है आग
01:20:12जैसे आदर्श
01:20:14आदर्श माने दर्पन
01:20:16जैसे दर्पन धक जाता है
01:20:20किस से मलेन चा
01:20:21मल माने धूल
01:20:23जैसे धूमें से धक जाती है आग
01:20:26जैसे मल से ढख जाता है आदर्श तरपन जैसे यथोल बेनावृतो गर्भस्त था तेने दमावृतम और जैसे आवृत रहता है गर्भ किस से?
01:20:55जो मा के गर्भ में एम्नियॉटिक फ्लूइड बोलते हैं उसको क्यों से बोलते हैं हां एम्नियॉटिक फ्लूइड उससे जैसे ढखा रहता है उसी तरीके से काम के द्वारा यहां काम नहीं काया है क्योंकि काम की बात पिछले श्लोक में कह दिये तो बस तेन कहकर इशारा कर
01:21:25बोलो तो उसका भी यहाँ पर
01:21:27नाम नहीं लिया है बस इदम कह दिया है
01:21:29तेन कह दिया है इदम कह दिया है
01:21:31तो जैसे
01:21:35आग धुएं से
01:21:39दरपण धूल से
01:21:43और
01:21:45बालक गर्भस्त शिशु
01:21:47जो जरायू होती है
01:21:50उससे ढखा रहता है
01:21:52उसी तरीके से
01:21:55सच्चाई तुम्हारी कामना
01:21:57से ढखी रहती है
01:21:59इसी बात को
01:22:05उपनिशत कैसे बोलते हैं
01:22:07बोलते हैं कि
01:22:08सत्य
01:22:10का जो पात्र है
01:22:13उसका
01:22:15मुख
01:22:15सोने के
01:22:19आवरण से ढखा हुआ है
01:22:20तो सच को
01:22:23मान लो कि जैसे पात्र हो
01:22:24कोई भी पात्र ले लो
01:22:25तामबाग कांसा या घड़ा है
01:22:27और उसका जो मुँ है वो बंधा हुआ है
01:22:30किस से?
01:22:31सोने के मान लो कपड़े से
01:22:33सोने के कपड़े से
01:22:36तो कहते हैं वो जो सोना है ना सोना स्वर्ण
01:22:39उस स्वर्ण के मारे तुम्हें वो जो सत्य है उसमें प्रवेश नहीं मिलता उसका कुछ पता नहीं चलता धर्शन नहीं होता
01:22:47जहां स्वर्ण है वहां सत्य नहीं हो सकता
01:22:51धन्तेरस कैसी चल रही है?
01:22:56कब है?
01:22:58अरे अब क्या होगा?
01:23:01तो उपनिशदों ने तो कुछ और बता दिया
01:23:03जहां स्वर्ण है वहां सत्य नहीं
01:23:06तो यह मैं जिस श्लोक की बात कर रहा हूँ
01:23:10थोड़ा इसको खोज करके अभी एप पर डाल दीजेगा
01:23:13उसके बाद कल धन्तेरस है कोई दिक्कत नहीं है
01:23:18क्यों है?
01:23:24मस्ती वाली तो नहीं तो
01:23:25लोग बहुत खोश हो रहे हैं आज तुम्हारा सवाल देखके
01:23:29जल में बसे कुमूदनी
01:23:41चंदा बसे अकास
01:23:48जल में बसे कुमूदनी
01:23:54चंदा बसे अकास
01:23:59जैसी जिसकी भावना
01:24:06सोता ही के पास कवीरा
01:24:12सोता ही के पास
01:24:17जल में बसे कुमूदनी
01:24:23चंदा बसे अकास
01:24:29जल में बसे कुमूदनी
01:24:35चंदा बसे अकास
01:24:41जैसी जिसकी भावना
01:24:47सोता ही के पास कवीरा
01:24:53सोता ही के पास
01:24:59जागो लोगो मत सो
01:25:05ना करो नींद से प्यार
01:25:11जैसे सपना रहन का
01:25:17ना करो नींद से प्यार
01:25:23जैसे सपना रहन का
01:25:29ऐसा यह संसार कभीरा
01:25:35ऐसा यह संसार
01:25:41जागो लोगो मत सो
01:25:47ना करो नींद से प्यार
01:25:53जागो लोगो मत सो
01:25:59ना करो नींद से प्यार
01:26:05जैसे सपना रहन का
01:26:11ऐसा यह संसार कभीरा
01:26:16ऐसा यह संसार
01:26:21प्राइब प्राइब प्राइब प्राइब
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