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  • 50 minutes ago
बिहार के बाबा दूधनाथ मंदिर की मछलियों से जुड़ी अनोखी कहानी

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00:00यहाँ पर केवल आपको डाल डाल पे सेंकडो चमगादर नहीं दिखेंगे बलकि यह जो उसके ठीक सामने इन पेडों के ठीक सामने यह जो तालाब है इसमें आपको सेंकडो मचलिया दिख जाएंगी देखिए आपको एक बार हम चारा डालते हैं और कितनी संख्या में यहा�
00:30बाबा की श्रद्धा में इस मंदिर प्रांगण में रहने वाला कोई नहीं खाता है और दूसरा जितने भी लोग यहाँ पर आते हैं वो यहाँ पर इस तालाब में मचलियों को कुछ नहीं करते हैं
00:43बीस-बीस-पचीस-पचीस किलो की मचलियां जो है वो बताई जा रही है यहाँ पर जो इस तालाब में अभी है और सेकड़ों की संख्या में है यानि कोई जल का हिस्सा मुझे नहीं दिख रहा है जहां पर इतनी मचलिया नहीं यह भी अपने आप में अधभुत अविश्
01:13लेकिन उसको खाते नहीं है जबकि हाँ से पकड़ने लाइक किस्टिती रहते हैं दूसरा जीजे कोई जानवर वगरे बिल्ली वगरे कोई जानवर उस मचली को छती नहीं पहुँचाता है
01:22तालाब के ठीक पीछे बाबा दूधनात महादेव का प्रसिद्ध मंदर है तालाब और मंदर की कहानी एक दूसरे से जुड़ी हुई
01:41यानि मचलियों को लेकर ये मानिता कही न कही मंदर की आस्था से जुड़ती होगी ये सोचकर हम मंदर की ओर पढ़े
01:48यहां ताλαब के खुदाई हो गई और तालाब यहां हो गया और मंदर वही न की सतापना हो गयी इसलिए उसका नाम दूनात पढ़ा
02:17पोखर अब दिख रहे हैं जिसमें मचली है वहीं से परकट लिये थे और जब कुदाल चला था वहां सब पोखर का निर्मान हो रहा था उसी समय बाबा दूधनात वहां से उत्पन हुए और पूरा पोखर दूध से भढ़ गया तब ही से इनका नाम दूधनात महादेव रख
02:47मंधना पूरा पोखर दूध से और दूध से भढ़ गया उसके कारण वहां से फिर्वां उंसे एक यहां पूरूव में मतलब पूरा 2020 बहुत बहुत पहले जो यहां एक शन्त रहते थे उनको यह वह सपने मिला कि पोखर में आप यह को खुडवाऎ उसके बाद वह और उन
03:17बिहार के मुझफ़र पुर्जिले के इस मंदिर में सावन के महीने में जल चड़ाने के लिए सेंकडों किलोमीटर दूर से श्रद्धालू यहां पहुँचते
03:33हमें मंदिर में शिवलिंग पर कुलहाडी का निशान भी दिखा। कहते हैं इस क्षेत्र में जब जब भुकंप से लेकर कोई प्राकृतिक आपदा आई और आसपास नुकसान पहुचा इस मंदिर को कोई क्षती कभी नहीं पहुचे
03:54गाउवालों की ये प्रवल मान्यता है कि यहां पर जो चमकादर रहते हैं इतनी बड़ी संख्या में वो महादेव का आशेरवाद है
04:10ये इसी प्रांगण में इसी हिस्से में ये दूधनाथ महादेव का मंदिर है लेकिन जो अध्भूत पहलू इसका ये है कि इस मंदिर में कोई जूट नहीं बोल सकता
04:24ये बड़ी अनूठी बात थी पूरे क्शेत्र में ये विश्वास प्रबल था हर कोई हमें बता रहा था कि बाहर खड़ा होकर कोई कुछ भी बोले पर मंदिर में प्रवेश करने के बाद संभव ही नहीं कि जूट बोल दे
04:42इसला नहीं होता है तो इनके हां ले आते हैं तो कोई जूट नहीं बोल पाते हैं
05:10जूत नहीं बोलता है, जूत बोलता है से वा अपने नुकसान हो जाता हूं।
05:26एसा भी नहीं कि लोग महादेव की भक्ति वाशिय कह रहे हैं।
05:30ऐसा कहने के पीछे इस क्शेत्र के लोगों का अपना अपना अनुभव है।
05:40अपने आप यह प्रकट हुए है महादेव ऐसा हम लोग जानते हैं और हमारे समाज में तो यह स्थिती है कि अगर यहां दो पक्ष में बीवाद होता है ग्रामीन कोई पंचायती होती है तो उसमें लोग कह देते हैं यह बात कि आप चलिए और बाबा दूधनास मंदिर के पर
06:10हर एक व्यक्ति यह दावा करता दिखा कि मंदिर में जूट बोले तो इश्वर इंसाफ करते हैं यही कारण है कि इन लोगों में जिनका मामला अदालत में भी अटका रह जाता है उसका न्याए यहां मंदिर में मिल जाता है
06:27जूट बोलेगा उजिंदा नहीं रहता है विदी ने विक उसका फैसला हो जाना अगर धूट बोलेगा उसके बाद अगर आपको कोही नियाए नहीं मिला ना कानून से ना समाद से और इनके नदिक जा करके अब मता पटक देता है लेगन सत्य होना चाहें का जेए बाबा�
06:57अद्बुत है ये विश्वास क्योंकि भोलेपन और सरलता के बीच जूट के पाखंड की जगे भी तो नहीं होती
07:07पनी जी ये गठवंधन क्या है ये जब कोई लोग किसी मुराद को मांगते हैं वो मुराद जब पूरी हो जाती है वो साधी विबाग का हो किसी के बच्चे का हो तो जो मुराद पूरी होती हो तो गठवंधन कराई जाती है यहां पर शिवजी स्थापित है यहां पर पार
07:37महासिवरात्री में और वसंद पंचिमी में यह दो बार यहां यह गड़बंधन लोग आ करके करते हैं दूर दूर से ऐसा सिर्फ बाबा धाम में होता है और यहां होता है यह दो जगें होती है
07:49मंदिर में दर्शन करने के बाद अब हम वापस उस अद्भुत संसार की ओर लोटे जहां चमगादणों का सामराज्य था
08:02अंधीरा होने में अभी भी कुछ समय था पेड़ों की डालूं पर उल्टे लटके इन चमगादणों को हमने और करीम से देखा
08:14ये बात कुछ अटपटी थी कि दिन के उजाले में ये चमगादण आक्टिव थे
08:18स्थानिय लोगों का कहना था कि ये तो रोज की प्रक्रिया है
08:23ये जो पक्षी है ये सोर वाले इलाके में और बसावट वाले इलाके में नहीं रहती है
08:30लेकिन यह प्रक्षी यहां कितने सालों से, लबकलब हजारों साले सो यह प्रक्षी यहां है और यहां से कहीं जाती नहीं है
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